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Saturday, 2 July 2022

रामनगर से नैनीताल की यात्रा वाकई में शानदार रही!

जिम कार्बेट नेशनल पार्क के एक रिजॉर्ट में हमें दो दिन हो चुके थे। अब हमें आगे एक नई यात्रा पर निकलना था। हम सुबह-सुबह उठकर जल्दी तैयार हुए और नाश्ता किया। रिजार्ट की एक गाड़ी हमें भकराकोट बस स्टैंड पर ले गई। पहाड़ों में बस का इंतजार करना भी एक अनुभव है। कुछ देर बाद बस आई और हम अब एक नई जगह की यात्रा के लिए निकल पड़े।

थोड़ी देर बाद हम नेटवर्क जोन में आ गए। मोबाइल में नेटवर्क आते ही मैसेज और नोटिफिकेशन की झड़ी लग गई। कुछ देर हम मोबाइल में ही घुसे रहे। इस बस से हम रामनगर जा रहे थे। जहां से हमें दूसरी बस पकड़नी थी। उस बस को पकड़ने से पहले मुझे रामनगर में ही अपने एक दोस्त से मिलना था। हम उसे बस में ही फोन कर चुके थे। थोड़ी देर बाद हम रामनगर के बस स्टैंड पर थे। यहीं से हमारी यात्रा शुरू होनी थी।

इंतजार

26 अप्रैल 2022 ही वो तारीख थी जिस दिन हम बस स्टैंड के सामने एक रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे और अपनी दोस्त का इंतजार कर रहे थे। काफी इंतजार के बाद कविता अस्वाल के दर्शन हुए। कविता और मैंने हरिद्वार के देव संस्कृति विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन साथ में की है। कविता उत्तराखंड की ही रहने वाली है। उसे रामनगर के बारे में पता है तो हमें एक रेस्टोरेंट में ले गई। जहां हमने खूब सारा खाया और गपशप भी काफी की।



थोड़ी देर बाद हम सब बस स्टैंड पर आए। कविता को बाय-बाय किया और नैनीताल जाने वाली बस में धमक गए। नैनीताल जाने वाली बस में काफी भीड़ थी। मुझे सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने की जगह मिली। रामनगर से नैनीताल 105 किमी. की दूरी पर है। अब तक हम मैदानी इलाके में थे लेकिन अब हम पहाड़ी इलाके में जाने वाले थे। बस अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी। हरे भरे जंगलों और लोगों को पीछे छोड़ती जा रही थी।

खूबसूरत पहाड़

लगभग 1 घंटे बाद कालाढूंगी नाम की जगह पर बस रूकी। यहां बस आधे घंटे तक रुकी रही। यहां बस इतनी ज्यादा भर गई थी कि लग रहा था हम गलती से यूपी रोडवेज की बस में बैठ गए हों। आधे घंटे बाद बस चल पड़ी। कुछ देर बाद बस मैदानी इलाकों को छोड़कर पहाड़ों में घुस गई। अब रास्ता घुमावदार हो गया था और नजारे खूबसूरत हो चले थे। मसूरी जैसे ही रास्ते पर बस बढ़ी जा रही थी।

रास्ता वाकई में खूबसूरत था। चारों तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली थी। घुमावदार रास्ते की वजह से बस की स्पीड कम हो चुकी थी। हम आराम-आराम से बढ़े जा रहे थे। जब रास्ते इतने खूबसूरत हों तो लंबी यात्राएं भी अखरती नहीं हैं। हम काफी ऊंचाई पर आ चुके थे। मौसम में ठंडक महसूस हो रही थी। जब रास्ते में कई सारे होटल और रिजार्ट दिखने लगे तो हम समझ गए कि हमारी मंजिल आने वाली है। कुछ देर बाद हम नैनीताल के बस स्टैंड पर थे।

मल्लीताल में ठिकाना

मैं पहली बार नैनीताल आया था। नैनीताल तक रास्ता तो खूबसूरत था अब इस शहर को देखना था। सबसे पहले हमें एक कमरा देखना था जो बहुत महंगा न हो। नैनीताल में ऐसे ही घूमते हुए हम मल्लीताल पहुंच गए। जहां हमें सस्ता-सा कमरा मिल गया। कमरा में पंखा नहीं था। होटल वाले ने कहा, यहां आपको पंखे की जरूरत नहीं पड़ेगी। 4 घंटे की लंबी यात्रा के बाद थोड़ी थकावट। शरीर आराम मांग रहा था।

शाम में हम खाना खाने और नैनीताल को देखने के लिए निकल पड़े। हम जिस जगह ठहरे थे वहां से झील काफी दूर थी। हमने सबसे पहले एक जगह पर खाना खाया और फिर पैदल-पैदल नैनीताल की सड़कों पर चल पड़े। हम ढलान पर उतरते जा रहे थे। कुछ देर बाद नैनीताल का बाजार शुरू हो गया। सड़कों पर लोगों और गाड़ियों की काफी भीड़ थी। काफी चलने के बाद हम झील के पास पहुंचे।

रात में नैनीताल

नैनी लेक के पास हमें सर्दी थोड़ी ज्यादा लग रही थी। मौसम तो ठंडा था लेकिन वातावारण पूरा गर्म था। झील के पास बहुत भीड़ थी। लेक के पास पूरा मेला लगा हुआ था। यहां आपको हर चीच मिल जाएगी। हमें कुछ खरीदना तो नहीं था इसलिए हम भटक रहे थे। काफी देर तक टहलने के बाद लेक किनारे एक जगह पर बैठ गए। पास में भी भुट्टे वाले का ठेला लगा हुआ था।

अंधेरा हो चुका था और झील अब शांत लग रही थी। झील बिना बोटिंग के ही अच्छी लगती है। झील के ऊपर पहाड़ों पर छोटे-छोटे बल्ब तारों की तरह चमक रहे थे। ऐसा लग रहा था कि नैनीताल के पहाड़ों पर आसमान के तारे टिमटिमा रहे थे। हर पहाड़ी शहर और कस्बे में आपको रात में ऐसा ही नजारा देखने को मिलेगा। कुछ देर हम यहीं बैठे रहे और फिर मल्लीताल की ओर चल पड़े।

जब हम अपने कमरे से लेक तक आए थे तो ढलान की वजह से कठिनाई नहीं हुई थी। अब चढ़ाई में हालत खराब हो रही थी। काफी मशक्कत के बाद हम अपने कमरे पर पहुंचे। थकान की वजह से हम फिर से बिस्तर पर थे। अभी तो हम नैनीताल आए थे, इसे देखना और समझना दोनों बाकी था।

Friday, 25 March 2022

ऋषिकेश: इस शहर में बार-बार आना, मेरी यात्रा में लगा देता है चार चांद

यात्रा में कुछ जगहें ऐसी होती हैं जहां कितनी ही बार जाओ अच्छा लगता है। वहां की गलियां, दुकानें और जगहें सब कुछ आपको पता होता है लेकिन फिर भी वहां जाकर अच्छा लगता है। ऋषिकेश मेरे लिए ऐसी ही एक जगह है। मैं ऋषिकेश इतनी बार जा चुका हूं कि कितनी बार गया हूं, ये मुझे खुद पता नहीं है। मैं 3 साल से उत्तराखंड नहीं गया था जिसका मुझे बुरा लगता है। कोरोना और फिर दूसरी वजहों से ऋषिकेश जाना हो ही नहीं पा रहा था। आखिरकार उत्तराखंड जाना तय हो गया और सबसे पहले पहुंचना था, ऋषिकेश।

25 फरवरी 20222। यही वो तारीख थी जिस दिन मैं अपने एक दोस्त के साथ रात 9 बजे प्रयागराज जंक्शन से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बैठ गया। खाना ट्रेन में चढ़ने से पहले ही खा लिया था इसलिए अब ट्रेन में अपनी सीट पकड़कर नींद की आगोश में जाना था। काफी देर तक मोबाइल चलाने के बाद नींद आ ही गई। सुबह जब नींद खुली तो ट्रेन फरीदाबाद पार कर चुकी थी। कुछ देर बाद हम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर थे।

दिल्ली

दिल्ली में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। हमें यहां से आईएसबीटी जाना था। मेट्रो स्टेशन के बाहर इतनी लंबी लाइन थी कि दिमाग ही चकरा गया। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर आईएसबीटी जाने वाले ई-रिक्शा पर बैठ गये। सुबह-सुबह दिल्ली में उतनी भीड़ नहीं होती। खाली सड़कों से गुजरते हुए कुछ देर में हम आईएसबीटी पहुंच गये। आईएसबीटी के बाहर काफी संख्या में महिलाएं नारे लगा रहीं थीं। वो आने-जाने वाले लोगों को पर्चा दे रहीं थी। उसी पर्चे से पता चला कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता वेतन वृद्धि की मांग के लिए हड़ताल पर बैठी हैं।

कुछ देर में हम ऋषिकेश जाने वाली रोडवेज बस में बैठे थे। मैं दिल्ली से उत्तराखंड ज्यादातर बस से ही गया हूं। कुछ देर बाद बस चल पड़ी। काफी देर तक हम दिल्ली में ही रहे और फिर उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर गये। दिल्ली से पास होने की वजह से गाजियाबाद से लेकर कुछ शहर दिल्ली जैसे ही दिखाई देते हैं। बारिश अभी भी हल्की-हल्की हो रही थी। एक जगह जाकर बस रूक गई। आगे लंबा जाम लगा था। मैं नीचे उतरकर काफी आगे गया तो देखा कि ब्रिज का कुछ काम हो रहा है। कुछ देर बाद गाड़ियां आगे बढ़ने लगीं और मैं वापस बस में बैठ गया।

कब आएगी मंजिल?

रुड़की।
दिल्ली से उत्तराखंड बस जाये और किसी हाईवे वाले ढाबे पर न रूके, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। हमारी बस भी ढाबे पर रूकी। इन ढाबों पर सारा सामान बहुत महंगा रहता है। कुछ देर बाद बस फिर से चल पड़ी। कुछ देर बाद रूड़की आया। रूड़की से ही उत्तराखंड शुरू हो जाता है। रास्ते में बाबा रामदेव वाला विशाल पतंजलि भी दिखाई देता है। इन तीन सालों में पतंजलि का परिसर काफी फैल गया था। कुछ देर बाद बस हरिद्वार पहुंच गई।

हरिद्वार वो शहर है जहां मैंने अपनी जिंदगी के शानदार 3 साल गुजारे। न बस की मंजिल हरिद्वार थी और न ही हमारी मंजिल हरिद्वार थी। बस हरिद्वार के बस स्टैंड से ऋषिकेश के लिए बढ़ गई। जैसे-जैसे बस आगे बढ़ रही थी हरिद्वार मे बहुत कुछ बदला-बदला दिख रहा था। हरिद्वार में सड़कें बहुत चौड़ी हो गईं थीं और ऊपर से ब्रिज भी बन रहा था। हरिद्वार से ऋषिकेश के बीच में दोनों तरफ घना जंगल देखने को मिलता है। रोड किनारे जंगली जावनरों से सावधान रहने का बोर्ड भी लगा हुआ था।

ऋषिकेश

लगभग घंटे भर बाद हम ऋषिकेश बस स्टैंड पर थे। ऋषिकेश में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। अब हमें एक सस्ता और टिकाऊ होटल लेना था। हमने वहां से लक्ष्मण झूला के लिए ऑटो ली। राम झूला को पार करने के बाद हम लक्ष्मण झूला पहुंच गये। हम पैदल-पैदल ही होटल की खोज में निकल पड़े। कुछ होटलों को देखने के बाद एक होटल में हमें अपने बजट में कमरा मिल गया। हमने सामान रखा और फ्रेश होकर जैसे ही बाहर जाने लगे तो देखा कि बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी।

बारिश देखकर लगा रहा था कि बारिश जल्दी नहीं रूकने वाली है और हमें आज का दिन कमरे में ही बिताना पड़ेगा। हमें अगले दिन किसी और जगह के लिए निकलना था। हमारे पास ऋषिकेश घूमने का आज का ही दिन था। हमारी किस्मत अच्छी थी, कुछ देर में बारिश रूक गई। हम भी बाहर ऋषिकेश की सड़कों पर बाहर निकल आए। बारिश की वजह से ऋषिकेश गीला-गीला हो गया था। हम लक्ष्मण झूला को देखने के लिए चल पड़े। चलते-चलते और बातें करते हुए लक्ष्मण झूला पहुंच गये।

लक्ष्मण झूला

लक्ष्मण झूले पर काफी भीड़ थी, लग रहा था कि बंदे के ऊपर बंदा है। हम भी उसी भीड़ का हिस्सा हो लिए। बारिश की वजह से ऋषिकेश का मौसम काफी शानदार था। झूला झूले की तरह हिल रहा था। लक्ष्मण झूला को पार करके हम दूसरी तरफ पहुंच गये। हम पैदल-पैदल चलते जा रहे थे और कुछ-कुछ जगहों पर ऋषिकेश को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद भी कर रहे थे। अब हमें पैदल-पैदल ही राम झूला तक जाना था।

रोड से लक्ष्मण झूला से राम झूला दूर लगता है लेकिन पुल के दूसरी तरफ से कुछ ही मिनटों में राम झूला तक पहुंचा जा सकता है। हम भी उसी रास्ते पर आगे बढ़ते जा रहे थे। इस रास्ते पर भी बहुत भीड़ थी और गाड़ियों की वजह से जाम भी लग रहा था। कुछ आगे चलने पर अचानक फिर से तेज बारिश हो गई। बारिश से बचने के लिए हम एक झोपड़ी के नीचे छिप गये। बारिश धीमी होने पर हम फिर से आगे बढ़ चले। कुछ देर बाद राम झूला की सड़क पर थे। राम झूला से पहले ही हम नीचे उतरकर गंगा किनारे पहुंच गये।

राम झूला

गंगा किनारे की रेत पूरी तरह से सफेद है जो इस जगह को और भी शानदार बनाती है। गंगा में रिवर राफ्टिंग हो रही थी और उनमें बैठे लोग चिल्ला रहे थे। बारिश की वजह से हवा तेज चल रही थी और ठंड भी लग रही थी। काफी देर बाद यहीं बैठे रहे। शाम होने पर राम झूला की लाइट जल गई। राम झूला सुंदर लग रहा था। हम राम झूला को पार करके दूसरी तरफ गये। मुख्य सड़क पर चलते हुए मोमोज का ठेला लगा हुआ था, हमने मोमोज खाए और वापस राम झूला की तरफ चल पड़े।

अंधेरा हो चुका था। अब हमें खाना खाना था और फिर लक्ष्मण झूला की तरफ अपने कमरे पर भी तो जाना था। हम राम झूला पार करके चोटीवाला होटल गये और खाना खाया। उसके बाद वापस लक्ष्मण झूला की तरफ चल पड़े। ठंडी-ठंडी हवा के झोंके के बीच हम आगे बढ़ते हुए लक्ष्मण झूला और फिर होटल पहुंचे। हम जल्दी ही सो गये। थकान तो कुछ ज्यादा नहीं हुई थी लेकिन अगली सुबह फिर हमें एक नये सफर पर निकलना था।

Sunday, 13 October 2019

बारिश में रात के अंधेरे में ट्रेकिंग की है कभी?

यात्रा का पिछला भाग यहां पढ़ें। 

एक सफर में कई कहानियां घूमती रहती हैं। कभी वो कहानी दूसरों से सुनते हो तो कभी कुछ ऐसा हो जाता है। जो आपके लिए कहानी बन जाती है। यात्रा के बाद सफर ऐसी ही कहानियों से याद रहते हैं। जरूरी नहीं ये कहानी अच्छी ही हों, यात्राओं में काफी कुछ खराब भी होता है। इस सुंदर और खूबसूरत सफर की एक कहानी मेरी भी है। एक रात की कहानी, जिसे मैं याद नहीं करना चाहता। मेरे बस में होता तो मैं उस रात को किसी और तरीके से लिखना चाहता। अब जब भी आकाश को देखता हूं तो वो रात याद आ जाती है। लगता है कि फिर से बारिश होगी और मैं फिर से पहाड़ों से निकलने की कोशिश करुंगा।


फूलों की घाटी का ट्रेक पूरा करके हम चार बजे तक नीचे आ गये थे। हम अपने बिस्तर पर आराम कर रहे थे। अब हमें कहीं और नहीं जाना था। अब हमें लौटना था। लौटना, यात्राओं का वो सच है जिसे हर कोई अपनाता है। ऐसी खूबसूरत यात्राओं के बाद हम जहां लौटते हैं वो हमारा घर होता है। कई बार लौटने पर दुख होता है तो कई बार सुकून। तब एक एहसास की परत होती है जिसे कोई कैमरा, कोई शब्द बयां नहीं कर सकते। हम आपस में चर्चा कर रहे थे कि लौटना आज है या कल? मेरा मानना था कि आज ही लौटना चाहिए। उतरने में ज्यादा समय नहीं लगता है। आखिर में हमने रात को बेकार न करने के लिए उसी शाम को चलने का फैसला किया।

एक बेवकूफी भरा निर्णय


हम जब गुरूद्वारे से निकल रहे थे। वहां के स्थानीय लोगों ने हमें कहा, आज की रात यहीं गुजारो, सवेरे होते ही नीचे उतरना। उन्होंने कहा रात को जाना समझदारी भरा निर्णय नहीं है। रास्ते में जंगली जानवर का खतरा भी है। मेरे साथी ने मुझसे पूछा क्या करें? मैं तो अब भी अपनी बात पर टिका हुआ था। शाम के 6 बजे हम घांघरिया से पुलना के लिए नीचे चलने लगे। हम जल्दी-जल्दी चल रहे थे, हमने एक किलोमीटर का रास्ता कुछ ही मिनटों में तय कर लिया था। रास्ते में हमें थके हुए लोग मिल रहे थे। सब हमसे वही सवाल पूछ रहे थे, जो कुछ दिन पहले हम पूछ रहे थे। ‘अभी घांघरिया कितना दूर है।’


रास्ता ढलान वाला था, इसलिए हम रास्ते के फ्लो में धड़कते जा रहे थे। मैं चाहता था कि 5 किलोमीटर का ये रास्ता अंधेरा होना से पहले तय कर लूं। इस रास्ते पर पहले हम चल रहे थे, बाद में भाग रहे थे। हमारे तेज चलने से हमारा एक साथी पीछे रह गया था। हमने एक बार रूककर उसका इंतजार किया। कुछ मिनटों बाद हम तीनों रास्तों पर बढ़ रहे थे लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद हम फिर से अलग हो गए। हमें डर अंधेरे का नहीं था, डर था तो बस जंगली जानवरों का। रास्ते में हमें कुछ दुकानें और लोग मिलें। उन्होंने बताया कि रास्ते में जंगली जानवरों का कोई खतरा नहीं है। इस रास्ते में अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है।

घुप्प अंधेरा और बारिश


तेज गति से चलते-चलते एक घंटा हो गया था, अंधेरा भी होने वाला था। थोड़े ही आगे चलने पर नदी के बहने की आवाज सुनाई दी। नदी की कलकल आवाज सुनकर लग रहा था कि भ्युंडार गांव आने वाला है। थोड़ी देर बाद हम जंगल से बाहर निकलकर खुले मैदान में आ गए थे। यहां पहुंचकर मुझे बहुत खुशी हो रही थी। ये खुशी वैसी ही थी, जैसी प्यासे को पानी मिलने पर होती है। ऐसा लगा कि कुछ पा लिया हो। थोड़ी देर बाद हम उसी गांव की पहली दुकान पर बैठे थे। हम अपने तीसरे साथी का इंतजार कर रहे थे। थोड़ी देर बाद घाटी में अंधेरा उतरा आया। आज हमारी किस्मत अच्छी नहीं थी इसलिए रात भी चांदनी नहीं थी। दूर-दूर तक घुप्प अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। हमें आगे बढ़ने से ज्यादा, अपने तीसरे साथी की फिक्र हो रही थी।


थोड़ी देर में बारिश होने लगी, हमें लगा कि थोड़ी देर में रूक जाएगी। लेकिन बारिश रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी। हम अब तक खुशनसीब थे क्योंकि हमने लगातार बारिश का सामना कहीं नहीं किया था। अब हमें उसी बारिश का सामना करना था। कुछ देर बाद हमारा तीसरा साथी भी आ गया, जो काफी थका हुआ था। वो जब तक आराम कर रहा था। हम बारिश से बचने के इंतजाम में लगे हुए थे। पोंचा और रेनकोट अब हमारे काम आने वाला था। अब आगे का रास्ता हमें अंधेरे और बारिश के बीच तय करना था। हम सबका इस तरह का पहला अनुभव था।

बारिश में ट्रेकिंग


मुझे मन ही मन लग रहा था कि घांघरिया में उन लोगों की बात मान लेनी चाहिए थी। हम मोबाइल की टाॅर्च से अंधेरे में ही आगे बढ़ गए। चलने में अब परेशानी हो रही थी। रास्ता पूरा गीला हो चुका था और अंधेरे की वजह से हम धीरे-धीरे चल रहे थे। अब हम एक-दूसरे से दूर नहीं भाग सकते थे। हम एक साथ, आराम-आराम से आगे बढ़ रहे थे। अब हमें सिर्फ उतरना नहीं था, रास्ता चढ़ाई वाला भी था। डर इस बात का भी था कि पानी की वजह से पत्थर पर पैर फिसल भी सकता है। अंधेर में सब कुछ एक जैसा लग रहा था, खौफनाक। हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। हम सिर्फ सुन पा रहे थे। हम सुनाई दे रही थी नदी की आवाज और बारिश की बूंदों का गिरना। 


मोबाइल की लाइट में हम बढ़े जा रहे थे। बारिश तभी अच्छी लगती है जब आप उसे देख रहे होते हैं। तब तो और अच्छी लगती है जब पहाड़ों में किसी होटल की बालकनी से देखते हैं। लेकिन भारी बारिश में चलना बहुत खतरनाक होता है। उसी भयानक और खतरनाक रास्ते में हम चले जा रहे थे। बारिश के साथ-साथ थकावट भी हम पर हावी थी, इस वजह से हमें बार-बार रूकना भी पड़ रहा था। हमें रास्ते में पानी से बचने की एक जगह मिली। वहां पहुंचे तो 6-7 कुत्ते पहले से ही डेरा डाले हुए थे। कुछ देर वहां रूकने के बाद हम आगे बढ़ गए। पानी रेनकोट से अंदर जाने लगा था। ये बारिश हमें बीमार भी कर सकती थी लेकिन अभी तो हमें यहां से निकलना था।

सिरहन पैदा करने वाला नजारा 


चलते-चलते ऐसी जगह पहुंचे, जहां रास्ता में झरना बन गया था। हमने एक-दूसरे को पकड़कर वो रास्ता तय किया। थोड़ा आगे बढ़े तो जो देखा उसके बाद शरीर में सिहरन-सी दौड़ गई। सामने दो बड़ी-बड़ी चट्टानें गिरी हुई थीं, रास्ता बंद था। पानी की वजह से कुछ देर पहले ही ये पहाड़ यहां गिरा होगा। हमने जल्दी-से वो पत्थर पार किया और तेज कदमों से आगे बढ़ने लगे। डर क्या होता है? वो बस मेरी दिल की धड़कन बता रही थीं। ऐसा कुछ देखने के बाद सफर के खुशनुमा और खूबसूरत वाले नजारे गायब हो जाते हैं। हम बस उस खतरे से बाहर निकलना चाहते थे। अगर हम जल्दी आ गए होते तो हो सकता था कि इन पत्थरों को गिरते हुए देख पाते।


हम तेज कदमों से तो चल रहे थे लेकिन नजरें पहाड़ पर थी। अब हमें हर पल पहाड़ और खतरनाक लग रहा था। डर हम सबको लग रहा था और हम जाहिर भी कर रहे थे। रात के पहर में हमारा सुरक्षित निकलना बहुत जरूरी था। क्योंकि दूूूर-दूर तक हमारी मदद करने वाला कोई नहीं था। हमें पूरे रास्ते में कोई नहीं मिला था। हम तीन ही थे जो इस खतरनाक और खौफनाक रात में चल रहे थे। जब ऐसा कुछ होता है तो वैसा ही कुछ दिमाग में भी चलने लगता है। मुझे टी.वी. पर चलने वाली खबरें याद आने लगी थीं। ये सब होने के बाद हौंसला ही होता है जो आपको जूझने के लिए तैयार रखता है। यही वो समय होता है जब आपको सबसे ज्यादा हिम्मत दिखानी होती है।

पहली बार मैंने आंखों से प्रकृति का ऐसा रूप देखा था। अब लग रहा था कि सफर कुछ ज्यादा ही रोमांचक हो गया था।लग रहा था कि ये सफर कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है। पहली बार मैं इस सफर को खत्म करने के लिए बेसब्र था। थोड़ी देर बाद हम पुलना की सड़कों पर चल रहे थे। हम सड़क पर बैचेन होकर होटल और होमस्टे खोज रहे थे। हमें कुछ भी नहीं मिल रहा था। तभी हमें एक जगह होमस्टे का बोर्ड लगा हुआ दिखाई दिया। उसके नीचे नंबर भी लिखा हुआ था। उसे देखकर एक आशा जगी। मैंने नंबर लगा दिया, फिर याद आया यहां तो नेटवर्क नहीं है।

रोमांच के आखिरी पल


अगर पुलना में नहीं रूके तो फिर 4 किलोमीटर चलकर गोबिंदघाट जाना पड़ता। ऐसा करने की हममें से किसी की भी हिम्मत नहीं थी। जहां ये बोर्ड था, उसी के बगल से सीढ़ियां गईं हुई थीं। हम सीढ़िया उतरकर घर के मालिक को बुलाने लगे। एक शख्स बाहर आया, उसने बताया कि मेरा ही होमस्टे है। तब लगा कि अब कुछ आराम मिलेगा। हमें हमारा कमरा दे दिया गया। हमारे सारे कपड़े गीले हो चुके थे। हमने कपड़ों को कमरे में जगह-जगह टांग दिया। लाइट न होने की वजह से मोमबत्ती की रोशनी में बिस्तर पर जा गिरे। ये अगर और कोई दिन होता तो इस रात की तारीफ की जा सकती थी लेकिन अभी तो गिरी हुई चट्टान नजरों के सामने आ रही थी। थकान इतनी थी कि हमने ये भी नहीं पूछा कि कमरे का पैसा कितना होगा? हमें तो कहीं ठहरना था और हम इस घुप्प अंधेरे में बिस्तर पर पड़ गए।


ये पूरी यात्रा कई मायनों में सीखने के लिए बहुत अच्छी रही। इस यात्रा से मैंने कई अनुभव जुटाए। यात्रा की कई अच्छी और बुुरी बात जानी। ये भी कि अनहोनी को टालने से हमेशा बचो। सफर में जोश से ज्यादा, होश का होना बहुत जरूरी है। आपका एक बुरा निर्णय, कई लोगों को मुश्किल में डाल सकता है। इन मुश्किलों के बाद भी हम बचकर सही सलामत आ गए थे। अब मैं सोचता हूं कि उस रात जो हुआ। उसने मेरी इस यात्रा को और रोचक और यादगार बना दिया। जब मैं वापस लौट रहा था तो पिछले कुछ दिनों में जो-जो पाया था। उसकी छवि दिमाग में चल रही थीं। इन तमाम मुश्किलों के बाद मैं फिर से ऐसी ही किसी यात्रा पर जाने के लिए तैयार हूं।