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जब आपका अपना शहर आपको जकड़ने लगे और जिंदगी सुईयों पर चलने लगे तो तब आपको घूमने निकल जाना चाहिए। मैं अपने शहर को जकड़ने का वक्त ही नहीं देता हूं और एक नई जगह पर निकल जाता हूं। हर घूमने वाले की अपनी कहानी होती है। उस कहानी में कुछ शहर प्लानिंग का हिस्सा होते हैं और कुछ जगहें बस हिस्सा बन जाती है। मैं अपनी घुमक्कड़ी की कहानी में देवप्रयाग को लेनी की बड़ी तमन्ना थी। तुंगनाथ की यात्रा के बाद से मैं इस शहर को अच्छे से जानना चाहता था।
खूबसूरत सफर
बस में ज्यादा लोग नहीं थे। कुछ देर बाद हरे-भरे पहाड़ों पर धूप दिखने लगी थी। मैं इस रास्ते से पहले भी गया हूं लेकिन अब रोड काफी चौड़ी कर दी गई थीं। खिड़की खोलने पर ठंडी हवा का झोंका आ रहा था। कुछ देर बाद हमें नीचे घाटी में गंगा नदी दिखने लगी। हरे-भरे पहाड़ों के बीच नदी भी हरी दिखाई दे रही थी। पहाड़ का सफर खूबसूरत होता है। हर एक मोड़ के बाद नजारे कुछ अलग दिखाई देते हैं।
आगे बढ़े तो पहाड़ों के ऊपर तैरते हुए बादल दिखाई दे रहे थे। मुझे पहाड़ों में तैरते हुए बादलों को देखना अच्छा लगता है। धूप तेज हो गई थी लेकिन खिड़की खोलने पर सर्द हवा में कमी नहीं आई थी। आधे सफर के बाद गाड़ी एक ढाबे पर रूकी। हमने यहां कुछ खाया तो नहीं लेकिन टॉयलेट जरूर गये। कुछ देर बाद बस फिर से देवप्रयाग के रास्ते पर चल पड़ी।देवप्रयाग
जैसे-जैसे देवप्रयाग पास आता जा रहा था, नदी की धार भी तेज दिखने लगी थी। कुछ देर बाद देवप्रयाग दिखने लगा था। हमने ऊपर से संगम भी दिखा। हमें लगा कि ड्राइवर बस को खुद से देवप्रयाग में रोकेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बस देवप्रयाग से आगे निकल आई। मैंने आगे जाकर बस रूकवाई और नीचे उतरे। हमें देवप्रयाग से 1 किमी. आगे आ चुके थे।
अपना बैग पीठ पर उठाया और पैदल चल पड़े देवप्रयाग की तरफ। कुछ देर बाद हम देवप्रयाग की रोड पर थे। अब हमें एक ठिकाना चाहिए था जहां हम सामान रख सकें और आज रूक भी सकें। बात करने पर पता चला कि देवप्रयाग के अंदर एक गेस्ट हाउस है। हमने नीचे का रास्ता ले लिया। रास्ते में छोटी-छोटी कई दुकानें थीं जिसमें जरूरत का सामान मिल जाएगा।पुल के उस तरफ
कुछ ही दूर चलने पर हमें एक पुल मिला लेकिन गेस्ट हाउस पुल के इसी तरफ था। गेस्ट हाउस के लिए हमें कई सारी सीढ़ियां चढ़नी थीं। हम कुछ सीढ़ियां चढ़ते और गंगा के खूबसूरत नजारे को देखने लगते। नदी की आवाज बहुत तेज थी। कुछ देर बाद हमें एक गेस्ट हाउस दिखाई दिया। हमें उसी गेस्ट हाउस में एक सस्ता-सा कमरा मिल गया। हमने वहां सामान रखा और देवप्रयाग शहर को देखने के लिए निकल पड़े।
हम सबसे पहले मुख्य सड़क पर गये और नाश्ते में परांठे खाए। इसके बाद हम फिर से पुल के इस तरफ खड़े थे और इस बार हमें पुल को पार भी करना था। असली देवप्रयाग पुल के इस पार ही था। ऋषिकेश के राम झूला और लक्ष्मण झूला की तरह बने इस पुल पर लोगों की भीड़ नहीं थी। स्थानीय लोग पुल को पार कर रहे थे और हम भी। इन छोटे शहरों को देखना अपने आप में खास होता है। पुल पार करने के बाद हम देवप्रयाग की गलियों में थे। लोग रोजाना की जिंदगी में लगे हुए थे और हम शहर को देखने में लगे हुए थे।संगम
देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है। दोनों नदियों में अंतर साफ-साफ समझ में आता है। दोनों नदियों के संगम से गंगा नदी बनती है जो आगे ऋषिकेश और हरिद्वार जाती है। संगम घाट पर दो गुफायें भी हैं। नदी में पैर डाला तो ठंडे पानी ने शरीर से जान ही निकाल दी। मुझे नदी में पैर डालने में दिक्कत हो रही थी और लोग रस्सी पकड़ कर डुबकी पर डुबकी लगाये जा रहे थे।
रघुनाथ मंदिर
रघुनाथ मंदिर। |
रघुनाथ मंदिर में भगवान राम की पूजा होती है। हजारों साल पुराने इस मंदिर में काफी शांति थी। संगम को छोड़ दिया जाए तो देवप्रयाग में घूमने वाले कम ही लोग मिले। मंदिर में कई सारे बंदर दिखाई दे रहे थे और मंदिर के बाहर कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। हमने मंदिर के दर्शन किये और कुछ मिनट वहीं बैठ गये। इसके बाद हम देवप्रयाग को देखने के लिए आगे बढ़ गये।
देवप्रयाग की गलियों में
रास्ते में हमें फिर से एक और पुल मिला। मुझे शहर में एक घंटा घर दिखाई दे रहा था लेकिन मेरी दोस्त वहां जाने से मना कर रही थी। मैं उसे वहां जबरदस्ती ले गया। वहां गये तो पता चला कि जेसीबी ने किसी वजह से रास्ता तोड़ दिया। हम वहीं नदी किनारे बैठे रहे। दोस्त ने यहां से वापस लौटने को कहा लेकिन मैंने आगे चलने को कहा। काफी बहस के बाद हम मेरे कहे रास्ते पर बढ़ गये।
कुछ देर बाद हम मुख्य सड़क पर आ गये थे और शहर से कुछ किलोमीटर दूर भी। इस वजह से दोस्त के चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था। कड़ी धूप में आधा घंटा चलने के बाद हम देवप्रयाग पहुंचे। यहां से संगम का नजारा और भी खूबसूरत लग रहा था। पूरा देवप्रयाग शहर घूमने के बाद हमने खाना खाया और फिर कमरे पर लौट आये। शाम को मैं अपने वर्क फ्रॉम होम में लग गया और रात तक यही क्रम चलता रहा।
रात में देवप्रयाग। |
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