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Saturday, 9 April 2022

सुंदर नजारों वाले इस छोटे-से ट्रेक ने मसूरी यात्रा को बना दिया लाजवाब

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घूमना इस दुनिया का सबसे खुशनुमा एहसास है। यात्रा में हम सिर्फ पहाड़ों, नदियों और झीलों के सुंदर नजारे नहीं देख रहे होते हैं बल्कि इस दुनिया को देखने का नजारा बदल जाता है। पहले मुझे घूमना पैसे और समय की बर्बादी लगती थी लेकिन जब से घुमक्कड़ी शुरू की है, घूमने के अलावा मुझे कुछ और सूझता ही नहीं है। दिमाग में वही चलता रहता है।

पहाड़ तो हर किसी को पसंद होते हैं। शांत और खूबसूरत लंढौर को देखने के बाद हम वापस मसूरी आ गए। अब हमें एक और नई जगह पर जाना था। हम फिर से स्कूटी से मसूरी से बाहर निकलकर एक नये रास्ते पर चल पड़े। ये रास्ता हमें मसूरी के जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक की ओर ले जा रहा था। मसूरी के लाइब्रेरी चौक से ये जगह 7-8 किमी. की दूरी पर है। हमारे पास स्कूटी थी सो हमें ज्यादा समय नहीं लगने वाला था।

हाथीपांव

हम छोटे-से रास्ते से आगे बढ़े जा रहे थे। जहां हमें दिक्कत आती, हम स्थानीय लोग से पूछ लेते। कुछ देर बाद हम खूबसूरत रास्ते पर थे। जहां लोगों के कम घर, कम होटल और लोगों की भीड़ नहीं थी। ऐसे रास्तों पर चलना हमेशा सुकून का एहसास कराता है। बीच-बीच में कुछ-कुछ रास्ता भी खराब था। इस ट्रेक का नाम जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर पड़ा है जो 1830 में भारत आया था।

कुछ देर बाद हम एक ऐसी जगह पर पहुंचे, जहां कुछ दुकानें थीं और खूब सारी गाड़ी रखी हुईं थीं। इस जगह का नाम है, हाथी पांव। इसके आगे गाड़ियां नहीं जाती हैं। चारों तरफ घन जंगल और हरा-भरा मैदान था और कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। हमने यहां अपनी गाड़ी रखी और इस छोटे-से ट्रेक को करने के लिए निकल पड़े।

आओ ट्रेक करें

मैंने आखिरी बार 3 साल पहले केदारकंठा का ट्रेक किया था। उस ट्रेक में तो आनंद ही आ गया था। जॉर्ज एवरेस्ट तक जाने के लिए डिजाइनदार पत्थर का रास्ता भी बना हुआ था और एक तरफ लोहे की रेलिंग भी लगी हुई थी। हम इसी रास्ते पर बढ़ते जा रहे थे। हेरीटेज पार्क तक चढ़ाई बिल्कुल आसान थी। हम बातें करते-करते आराम से इस पक्के रास्ते को पार गये।

पहले हम सोच रहे थे कि 1 किमी. का जो ये रास्ता है बस इतनी ही चढ़ाई करनी है लेकिन जब हम खुली जगह पर पहुंचे तो पता चला कि अभी तो लंबी चढ़ाई है। अब रास्ता भी बदल गया था और नजारे भी बदल गये थे। शुरूआत में कुछ दुकानें भी हैं। जहां मैगी से लेकर खाने-पीने का सामान मिल रहा था। हम इसको नजरंदाज करके आगे बढ़ गये।

जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक

जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक।
दुकानें से आगे बढ़े तो पहले आसपास चीड़ के पेड़ दिखाई दिए और फिर हरे-भरे जंगल। दूर-दूर हरे-भरे पहाड़ दिखाई दे रहे थे। ऐसे खूबसूरत नजारों के लिए इस छोटे-से ट्रेक को करना खल नहीं रहा था। ट्रेक करने वाले कई सारे लोग थे लेकिन इतनी भीड़ नहीं थी कि रास्ता भर गया हो। हम पहाड़ों के सुंदर और लुभावने नजारों को देखते हुए पतले से रास्ते पर बढ़े जा रहे थे।

हम थोड़ा चल रहे थे और फिर रूककर आसपास के दृश्यों को निहार रहे थे। हमें कहीं जाने की जल्दी भी नहीं थी इसलिए आराम-आराम से आगे बढ़ रहे थे। कुछ देर बाद सीढ़ियां आ गईं, जिन पर फिसलनदार छोटे-छोटे कंकड़ पड़े हुए थे। कुछ देर मैं उस जगह पर पहुंचा जहां रंग-बिरंगे झंडों पर कुछ मंत्र लिखे हुए थे। पहाड़ों में घूमने वली ज्यादातर जगहों पर ये झंडे जरूर होते हैं।

सबसे ऊंची जगह

कुछ देर की चढ़ाई के बाद हम जॉर्ज एवरेस्ट की चोटी पर थे। मसूरी की सबसे ऊंची जगह से सबसे खूबसूरत नजारे को देख रहे थे। ऊंचाई पर पहुंचकर सबसे कुछ छोटा और खूबसूरत लगने लगता है। यहां से दूर-दूर तक सिर्फ हरियाली और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। हमारे साथ चलते हुए एक कुत्ता भी यहां पर आ गया था। यहां मैं कुछ देर तक बैठा रहा। पहाड़ की ऊंची जगह पर बैठना वाकई अच्छा लगता है।

मसूरी का ये ट्रेक बिल्कुल भी कठिन नहीं था। मैं आराम से इस ट्रेक को कर गया लेकिन इस जगह पर आकर खराब भी नहीं लग रहा था। लुभावने नजारों ने मेरा दिन बना दिया। कुछ देर ठहरने के बाद हम नीचे उतर आये। पहले हम हाथीपांव पहुंचे और फिर वहां से मसूरी। शाम हो गई थी और मेरे काम करने का समय हो गया था। दोस्त की छुट्टी थी, सो वो मसूरी की अन्य जगहों को देखने के लिए निकल गया।

मसूरी में एक और दिन

हमने एक और दिन मसूरी में बिताया लेकिन इस दिन हम मसूरी शहर में ही घूमे। पहले हमने एक छोटी-सी दुकान पर मैगी खाई जोकि बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। फिर हमने मसूरी को पैदल नापा। लाइब्रेरी चौक पर बनी लाइब्रेरी में भी गये लेकिन वहां जाकर पता चला कि लाइब्रेरी में वही लोग जा सकते हैं जिनके पास मेंबरशिप हो। हम कुछ देर के लिए मेंबरशिप तो नहीं लेने वाले थे।

मसूरी।
मसूरी भीड़भाड़ वाला शहर है लेकिन शहर से बाहर बहुत खूबसूरती है। मेरा तो मानना है कि मुझे तो हर छोटी और लोकप्रिय जगह की यात्रा करनी है। मैं इससे पहले एक बार मसूरी कई साल पहले आया था लेकिन तब न इतनी समझ थी और न ही घूमने का बहुत शौक। अब तो हर रोज एक नये सफर पर जाने का मन करता है।

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Saturday, 2 April 2022

देवप्रयाग: सुंदरता का पर्याय है नदी किनारे बसा ये पहाड़ी शहर

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जब आपका अपना शहर आपको जकड़ने लगे और जिंदगी सुईयों पर चलने लगे तो तब आपको घूमने निकल जाना चाहिए। मैं अपने शहर को जकड़ने का वक्त ही नहीं देता हूं और एक नई जगह पर निकल जाता हूं। हर घूमने वाले की अपनी कहानी होती है। उस कहानी में कुछ शहर प्लानिंग का हिस्सा होते हैं और कुछ जगहें बस हिस्सा बन जाती है। मैं अपनी घुमक्कड़ी की कहानी में देवप्रयाग को लेनी की बड़ी तमन्ना थी। तुंगनाथ की यात्रा के बाद से मैं इस शहर को अच्छे से जानना चाहता था।

26 फरवरी 2022 को सुबह 6 बजे हम अपने सामान के साथ होटल के बाहर खड़े थे। होटल वाले ने बताया कि देवप्रयाग के लिए बस यहीं से निकलेगी। ऋषिकेश सुबह-सुबह शांत और खूबसूरत लग रहा था। चाय की एक दुकान भी खुली हुई थी, जहां कुछ लोग चाय पी रहे थे। कुछ ही मिनटों में देवप्रयाग वाली बस आ गई और हम देवप्रयाग के सफर पर निकल पड़े। बस अपनी रफ्तार से बड़ी जा रही थी। जैसे-जैसे हम बढ़ रहे थे, खूबसूरत नजारे देखने को मिल रहे थे।

खूबसूरत सफर

बस में ज्यादा लोग नहीं थे। कुछ देर बाद हरे-भरे पहाड़ों पर धूप दिखने लगी थी। मैं इस रास्ते से पहले भी गया हूं लेकिन अब रोड काफी चौड़ी कर दी गई थीं। खिड़की खोलने पर ठंडी हवा का झोंका आ रहा था। कुछ देर बाद हमें नीचे घाटी में गंगा नदी दिखने लगी। हरे-भरे पहाड़ों के बीच नदी भी हरी दिखाई दे रही थी। पहाड़ का सफर खूबसूरत होता है। हर एक मोड़ के बाद नजारे कुछ अलग दिखाई देते हैं।

आगे बढ़े तो पहाड़ों के ऊपर तैरते हुए बादल दिखाई दे रहे थे। मुझे पहाड़ों में तैरते हुए बादलों को देखना अच्छा लगता है। धूप तेज हो गई थी लेकिन खिड़की खोलने पर सर्द हवा में कमी नहीं आई थी। आधे सफर के बाद गाड़ी एक ढाबे पर रूकी। हमने यहां कुछ खाया तो नहीं लेकिन टॉयलेट जरूर गये। कुछ देर बाद बस फिर से देवप्रयाग के रास्ते पर चल पड़ी।

देवप्रयाग

जैसे-जैसे देवप्रयाग पास आता जा रहा था, नदी की धार भी तेज दिखने लगी थी। कुछ देर बाद देवप्रयाग दिखने लगा था। हमने ऊपर से संगम भी दिखा। हमें लगा कि ड्राइवर बस को खुद से देवप्रयाग में रोकेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बस देवप्रयाग से आगे निकल आई। मैंने आगे जाकर बस रूकवाई और नीचे उतरे। हमें देवप्रयाग से 1 किमी. आगे आ चुके थे।

अपना बैग पीठ पर उठाया और पैदल चल पड़े देवप्रयाग की तरफ। कुछ देर बाद हम देवप्रयाग की रोड पर थे। अब हमें एक ठिकाना चाहिए था जहां हम सामान रख सकें और आज रूक भी सकें। बात करने पर पता चला कि देवप्रयाग के अंदर एक गेस्ट हाउस है। हमने नीचे का रास्ता ले लिया। रास्ते में छोटी-छोटी कई दुकानें थीं जिसमें जरूरत का सामान मिल जाएगा।

पुल के उस तरफ

कुछ ही दूर चलने पर हमें एक पुल मिला लेकिन गेस्ट हाउस पुल के इसी तरफ था। गेस्ट हाउस के लिए हमें कई सारी सीढ़ियां चढ़नी थीं। हम कुछ सीढ़ियां चढ़ते और गंगा के खूबसूरत नजारे को देखने लगते। नदी की आवाज बहुत तेज थी। कुछ देर बाद हमें एक गेस्ट हाउस दिखाई दिया। हमें उसी गेस्ट हाउस में एक सस्ता-सा कमरा मिल गया। हमने वहां सामान रखा और देवप्रयाग शहर को देखने के लिए निकल पड़े।

हम सबसे पहले मुख्य सड़क पर गये और नाश्ते में परांठे खाए। इसके बाद हम फिर से पुल के इस तरफ खड़े थे और इस बार हमें पुल को पार भी करना था। असली देवप्रयाग पुल के इस पार ही था। ऋषिकेश के राम झूला और लक्ष्मण झूला की तरह बने इस पुल पर लोगों की भीड़ नहीं थी। स्थानीय लोग पुल को पार कर रहे थे और हम भी। इन छोटे शहरों को देखना अपने आप में खास होता है। पुल पार करने के बाद हम देवप्रयाग की गलियों में थे। लोग रोजाना की जिंदगी में लगे हुए थे और हम शहर को देखने में लगे हुए थे।

संगम

आगे बढ़ने पर संगम का बोर्ड दिखाई दिया। हम नीचे की तरफ चल पड़े। यहां से अलकनंदा को बहते हुए देखना किसी सपने के पूरे होने से कम नहीं था। नदी की तेज आवाज और चारों तरफ पहाड़ इस जगह को शानदार बना रहे थे। इसके बाद हम उस जगह पर गए, जिसके लिए देवप्रयाग पूरी दुनिया में लोकप्रिय है। अलकनंदा और भागीरथी का संगम।

देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है। दोनों नदियों में अंतर साफ-साफ समझ में आता है। दोनों नदियों के संगम से गंगा नदी बनती है जो आगे ऋषिकेश और हरिद्वार जाती है। संगम घाट पर दो गुफायें भी हैं। नदी में पैर डाला तो ठंडे पानी ने शरीर से जान ही निकाल दी। मुझे नदी में पैर डालने में दिक्कत हो रही थी और लोग रस्सी पकड़ कर डुबकी पर डुबकी लगाये जा रहे थे।

रघुनाथ मंदिर

रघुनाथ मंदिर।
हम वापस जाने लगे तो एक बाबा मिल गये और खुद से ही इस जगह की कहानी बताने लगे। बाद में उन्होंने पैसे मांगे और मैंने खुद को स्टूडेंट बताया तो उन्होंने नहीं लिये। उन्होंने ही रघुनाथ मंदिर जाने को कहा। हम फिर से देवप्रयाग की गलियों में थे। पूछते-पूछते हम उस जगह पर पहुंच गये, जहां से हमें 100 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी थी। कुछ देर बाद हम मंदिर के अंदर थे।

रघुनाथ मंदिर में भगवान राम की पूजा होती है। हजारों साल पुराने इस  मंदिर में काफी शांति थी। संगम को छोड़ दिया जाए तो देवप्रयाग में घूमने वाले कम ही लोग मिले। मंदिर में कई सारे बंदर दिखाई दे रहे थे और मंदिर के बाहर कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। हमने मंदिर के दर्शन किये और कुछ मिनट वहीं बैठ गये। इसके बाद हम देवप्रयाग को देखने के लिए आगे बढ़ गये।

देवप्रयाग की गलियों में

इसके बाद हम देवप्रयाग शहर को देखने के लिए एक बार फिर से गलियों में चल रहे थे। हमें एक मिठाई की दुकान दिखाई जिसमें बाल मिठाई रखी हुई थी। कॉलेज के दिनों में मुकेश सर अल्मोड़ा से हमारे लिए बाल मिठाई जरूर लाते थे। तब से हमें बाल मिठाई खास पसंद थी। देवप्रयाग में हमने बाल मिठाई ले ली लेकिन वो वाला स्वाद नहीं मिला।

रास्ते में हमें फिर से एक और पुल मिला। मुझे शहर में एक घंटा घर दिखाई दे रहा था लेकिन मेरी दोस्त वहां जाने से मना कर रही थी। मैं उसे वहां जबरदस्ती ले गया। वहां गये तो पता चला कि जेसीबी ने किसी वजह से रास्ता तोड़ दिया। हम वहीं नदी किनारे बैठे रहे। दोस्त ने यहां से वापस लौटने को कहा लेकिन मैंने आगे चलने को कहा। काफी बहस के बाद हम मेरे कहे रास्ते पर बढ़ गये।

कुछ देर बाद हम मुख्य सड़क पर आ गये थे और शहर से कुछ किलोमीटर दूर भी। इस वजह से दोस्त के चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था। कड़ी धूप में आधा घंटा चलने के बाद हम देवप्रयाग पहुंचे। यहां से संगम का नजारा और भी खूबसूरत लग रहा था। पूरा देवप्रयाग शहर घूमने के बाद हमने खाना खाया और फिर कमरे पर लौट आये। शाम को मैं अपने वर्क फ्रॉम होम में लग गया और रात तक यही क्रम चलता रहा।

रात में देवप्रयाग।
रात में जब मैं सोने जा रहा था तो बाहर आकर देखा कि देवप्रयाग रात में भी चमक रहा था। कमरे तक नदी की आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी। ये आवाज किसी संगीत से कम नहीं थी। देवप्रयाग शहर की यात्रा काफी शानदार रही थी। इस जगह को देखने के बाद मैं ऐसे ही पहाड़ी शहरों में बार-बार चाना चाहता हूं। अगली सुबह हमें फिर से एक नये सफर पर निकलना था।

Friday, 25 March 2022

ऋषिकेश: इस शहर में बार-बार आना, मेरी यात्रा में लगा देता है चार चांद

यात्रा में कुछ जगहें ऐसी होती हैं जहां कितनी ही बार जाओ अच्छा लगता है। वहां की गलियां, दुकानें और जगहें सब कुछ आपको पता होता है लेकिन फिर भी वहां जाकर अच्छा लगता है। ऋषिकेश मेरे लिए ऐसी ही एक जगह है। मैं ऋषिकेश इतनी बार जा चुका हूं कि कितनी बार गया हूं, ये मुझे खुद पता नहीं है। मैं 3 साल से उत्तराखंड नहीं गया था जिसका मुझे बुरा लगता है। कोरोना और फिर दूसरी वजहों से ऋषिकेश जाना हो ही नहीं पा रहा था। आखिरकार उत्तराखंड जाना तय हो गया और सबसे पहले पहुंचना था, ऋषिकेश।

25 फरवरी 20222। यही वो तारीख थी जिस दिन मैं अपने एक दोस्त के साथ रात 9 बजे प्रयागराज जंक्शन से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बैठ गया। खाना ट्रेन में चढ़ने से पहले ही खा लिया था इसलिए अब ट्रेन में अपनी सीट पकड़कर नींद की आगोश में जाना था। काफी देर तक मोबाइल चलाने के बाद नींद आ ही गई। सुबह जब नींद खुली तो ट्रेन फरीदाबाद पार कर चुकी थी। कुछ देर बाद हम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर थे।

दिल्ली

दिल्ली में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। हमें यहां से आईएसबीटी जाना था। मेट्रो स्टेशन के बाहर इतनी लंबी लाइन थी कि दिमाग ही चकरा गया। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर आईएसबीटी जाने वाले ई-रिक्शा पर बैठ गये। सुबह-सुबह दिल्ली में उतनी भीड़ नहीं होती। खाली सड़कों से गुजरते हुए कुछ देर में हम आईएसबीटी पहुंच गये। आईएसबीटी के बाहर काफी संख्या में महिलाएं नारे लगा रहीं थीं। वो आने-जाने वाले लोगों को पर्चा दे रहीं थी। उसी पर्चे से पता चला कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता वेतन वृद्धि की मांग के लिए हड़ताल पर बैठी हैं।

कुछ देर में हम ऋषिकेश जाने वाली रोडवेज बस में बैठे थे। मैं दिल्ली से उत्तराखंड ज्यादातर बस से ही गया हूं। कुछ देर बाद बस चल पड़ी। काफी देर तक हम दिल्ली में ही रहे और फिर उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर गये। दिल्ली से पास होने की वजह से गाजियाबाद से लेकर कुछ शहर दिल्ली जैसे ही दिखाई देते हैं। बारिश अभी भी हल्की-हल्की हो रही थी। एक जगह जाकर बस रूक गई। आगे लंबा जाम लगा था। मैं नीचे उतरकर काफी आगे गया तो देखा कि ब्रिज का कुछ काम हो रहा है। कुछ देर बाद गाड़ियां आगे बढ़ने लगीं और मैं वापस बस में बैठ गया।

कब आएगी मंजिल?

रुड़की।
दिल्ली से उत्तराखंड बस जाये और किसी हाईवे वाले ढाबे पर न रूके, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। हमारी बस भी ढाबे पर रूकी। इन ढाबों पर सारा सामान बहुत महंगा रहता है। कुछ देर बाद बस फिर से चल पड़ी। कुछ देर बाद रूड़की आया। रूड़की से ही उत्तराखंड शुरू हो जाता है। रास्ते में बाबा रामदेव वाला विशाल पतंजलि भी दिखाई देता है। इन तीन सालों में पतंजलि का परिसर काफी फैल गया था। कुछ देर बाद बस हरिद्वार पहुंच गई।

हरिद्वार वो शहर है जहां मैंने अपनी जिंदगी के शानदार 3 साल गुजारे। न बस की मंजिल हरिद्वार थी और न ही हमारी मंजिल हरिद्वार थी। बस हरिद्वार के बस स्टैंड से ऋषिकेश के लिए बढ़ गई। जैसे-जैसे बस आगे बढ़ रही थी हरिद्वार मे बहुत कुछ बदला-बदला दिख रहा था। हरिद्वार में सड़कें बहुत चौड़ी हो गईं थीं और ऊपर से ब्रिज भी बन रहा था। हरिद्वार से ऋषिकेश के बीच में दोनों तरफ घना जंगल देखने को मिलता है। रोड किनारे जंगली जावनरों से सावधान रहने का बोर्ड भी लगा हुआ था।

ऋषिकेश

लगभग घंटे भर बाद हम ऋषिकेश बस स्टैंड पर थे। ऋषिकेश में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। अब हमें एक सस्ता और टिकाऊ होटल लेना था। हमने वहां से लक्ष्मण झूला के लिए ऑटो ली। राम झूला को पार करने के बाद हम लक्ष्मण झूला पहुंच गये। हम पैदल-पैदल ही होटल की खोज में निकल पड़े। कुछ होटलों को देखने के बाद एक होटल में हमें अपने बजट में कमरा मिल गया। हमने सामान रखा और फ्रेश होकर जैसे ही बाहर जाने लगे तो देखा कि बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी।

बारिश देखकर लगा रहा था कि बारिश जल्दी नहीं रूकने वाली है और हमें आज का दिन कमरे में ही बिताना पड़ेगा। हमें अगले दिन किसी और जगह के लिए निकलना था। हमारे पास ऋषिकेश घूमने का आज का ही दिन था। हमारी किस्मत अच्छी थी, कुछ देर में बारिश रूक गई। हम भी बाहर ऋषिकेश की सड़कों पर बाहर निकल आए। बारिश की वजह से ऋषिकेश गीला-गीला हो गया था। हम लक्ष्मण झूला को देखने के लिए चल पड़े। चलते-चलते और बातें करते हुए लक्ष्मण झूला पहुंच गये।

लक्ष्मण झूला

लक्ष्मण झूले पर काफी भीड़ थी, लग रहा था कि बंदे के ऊपर बंदा है। हम भी उसी भीड़ का हिस्सा हो लिए। बारिश की वजह से ऋषिकेश का मौसम काफी शानदार था। झूला झूले की तरह हिल रहा था। लक्ष्मण झूला को पार करके हम दूसरी तरफ पहुंच गये। हम पैदल-पैदल चलते जा रहे थे और कुछ-कुछ जगहों पर ऋषिकेश को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद भी कर रहे थे। अब हमें पैदल-पैदल ही राम झूला तक जाना था।

रोड से लक्ष्मण झूला से राम झूला दूर लगता है लेकिन पुल के दूसरी तरफ से कुछ ही मिनटों में राम झूला तक पहुंचा जा सकता है। हम भी उसी रास्ते पर आगे बढ़ते जा रहे थे। इस रास्ते पर भी बहुत भीड़ थी और गाड़ियों की वजह से जाम भी लग रहा था। कुछ आगे चलने पर अचानक फिर से तेज बारिश हो गई। बारिश से बचने के लिए हम एक झोपड़ी के नीचे छिप गये। बारिश धीमी होने पर हम फिर से आगे बढ़ चले। कुछ देर बाद राम झूला की सड़क पर थे। राम झूला से पहले ही हम नीचे उतरकर गंगा किनारे पहुंच गये।

राम झूला

गंगा किनारे की रेत पूरी तरह से सफेद है जो इस जगह को और भी शानदार बनाती है। गंगा में रिवर राफ्टिंग हो रही थी और उनमें बैठे लोग चिल्ला रहे थे। बारिश की वजह से हवा तेज चल रही थी और ठंड भी लग रही थी। काफी देर बाद यहीं बैठे रहे। शाम होने पर राम झूला की लाइट जल गई। राम झूला सुंदर लग रहा था। हम राम झूला को पार करके दूसरी तरफ गये। मुख्य सड़क पर चलते हुए मोमोज का ठेला लगा हुआ था, हमने मोमोज खाए और वापस राम झूला की तरफ चल पड़े।

अंधेरा हो चुका था। अब हमें खाना खाना था और फिर लक्ष्मण झूला की तरफ अपने कमरे पर भी तो जाना था। हम राम झूला पार करके चोटीवाला होटल गये और खाना खाया। उसके बाद वापस लक्ष्मण झूला की तरफ चल पड़े। ठंडी-ठंडी हवा के झोंके के बीच हम आगे बढ़ते हुए लक्ष्मण झूला और फिर होटल पहुंचे। हम जल्दी ही सो गये। थकान तो कुछ ज्यादा नहीं हुई थी लेकिन अगली सुबह फिर हमें एक नये सफर पर निकलना था।