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Friday, 25 March 2022

ऋषिकेश: इस शहर में बार-बार आना, मेरी यात्रा में लगा देता है चार चांद

यात्रा में कुछ जगहें ऐसी होती हैं जहां कितनी ही बार जाओ अच्छा लगता है। वहां की गलियां, दुकानें और जगहें सब कुछ आपको पता होता है लेकिन फिर भी वहां जाकर अच्छा लगता है। ऋषिकेश मेरे लिए ऐसी ही एक जगह है। मैं ऋषिकेश इतनी बार जा चुका हूं कि कितनी बार गया हूं, ये मुझे खुद पता नहीं है। मैं 3 साल से उत्तराखंड नहीं गया था जिसका मुझे बुरा लगता है। कोरोना और फिर दूसरी वजहों से ऋषिकेश जाना हो ही नहीं पा रहा था। आखिरकार उत्तराखंड जाना तय हो गया और सबसे पहले पहुंचना था, ऋषिकेश।

25 फरवरी 20222। यही वो तारीख थी जिस दिन मैं अपने एक दोस्त के साथ रात 9 बजे प्रयागराज जंक्शन से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बैठ गया। खाना ट्रेन में चढ़ने से पहले ही खा लिया था इसलिए अब ट्रेन में अपनी सीट पकड़कर नींद की आगोश में जाना था। काफी देर तक मोबाइल चलाने के बाद नींद आ ही गई। सुबह जब नींद खुली तो ट्रेन फरीदाबाद पार कर चुकी थी। कुछ देर बाद हम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर थे।

दिल्ली

दिल्ली में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। हमें यहां से आईएसबीटी जाना था। मेट्रो स्टेशन के बाहर इतनी लंबी लाइन थी कि दिमाग ही चकरा गया। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर आईएसबीटी जाने वाले ई-रिक्शा पर बैठ गये। सुबह-सुबह दिल्ली में उतनी भीड़ नहीं होती। खाली सड़कों से गुजरते हुए कुछ देर में हम आईएसबीटी पहुंच गये। आईएसबीटी के बाहर काफी संख्या में महिलाएं नारे लगा रहीं थीं। वो आने-जाने वाले लोगों को पर्चा दे रहीं थी। उसी पर्चे से पता चला कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता वेतन वृद्धि की मांग के लिए हड़ताल पर बैठी हैं।

कुछ देर में हम ऋषिकेश जाने वाली रोडवेज बस में बैठे थे। मैं दिल्ली से उत्तराखंड ज्यादातर बस से ही गया हूं। कुछ देर बाद बस चल पड़ी। काफी देर तक हम दिल्ली में ही रहे और फिर उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर गये। दिल्ली से पास होने की वजह से गाजियाबाद से लेकर कुछ शहर दिल्ली जैसे ही दिखाई देते हैं। बारिश अभी भी हल्की-हल्की हो रही थी। एक जगह जाकर बस रूक गई। आगे लंबा जाम लगा था। मैं नीचे उतरकर काफी आगे गया तो देखा कि ब्रिज का कुछ काम हो रहा है। कुछ देर बाद गाड़ियां आगे बढ़ने लगीं और मैं वापस बस में बैठ गया।

कब आएगी मंजिल?

रुड़की।
दिल्ली से उत्तराखंड बस जाये और किसी हाईवे वाले ढाबे पर न रूके, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। हमारी बस भी ढाबे पर रूकी। इन ढाबों पर सारा सामान बहुत महंगा रहता है। कुछ देर बाद बस फिर से चल पड़ी। कुछ देर बाद रूड़की आया। रूड़की से ही उत्तराखंड शुरू हो जाता है। रास्ते में बाबा रामदेव वाला विशाल पतंजलि भी दिखाई देता है। इन तीन सालों में पतंजलि का परिसर काफी फैल गया था। कुछ देर बाद बस हरिद्वार पहुंच गई।

हरिद्वार वो शहर है जहां मैंने अपनी जिंदगी के शानदार 3 साल गुजारे। न बस की मंजिल हरिद्वार थी और न ही हमारी मंजिल हरिद्वार थी। बस हरिद्वार के बस स्टैंड से ऋषिकेश के लिए बढ़ गई। जैसे-जैसे बस आगे बढ़ रही थी हरिद्वार मे बहुत कुछ बदला-बदला दिख रहा था। हरिद्वार में सड़कें बहुत चौड़ी हो गईं थीं और ऊपर से ब्रिज भी बन रहा था। हरिद्वार से ऋषिकेश के बीच में दोनों तरफ घना जंगल देखने को मिलता है। रोड किनारे जंगली जावनरों से सावधान रहने का बोर्ड भी लगा हुआ था।

ऋषिकेश

लगभग घंटे भर बाद हम ऋषिकेश बस स्टैंड पर थे। ऋषिकेश में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। अब हमें एक सस्ता और टिकाऊ होटल लेना था। हमने वहां से लक्ष्मण झूला के लिए ऑटो ली। राम झूला को पार करने के बाद हम लक्ष्मण झूला पहुंच गये। हम पैदल-पैदल ही होटल की खोज में निकल पड़े। कुछ होटलों को देखने के बाद एक होटल में हमें अपने बजट में कमरा मिल गया। हमने सामान रखा और फ्रेश होकर जैसे ही बाहर जाने लगे तो देखा कि बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी।

बारिश देखकर लगा रहा था कि बारिश जल्दी नहीं रूकने वाली है और हमें आज का दिन कमरे में ही बिताना पड़ेगा। हमें अगले दिन किसी और जगह के लिए निकलना था। हमारे पास ऋषिकेश घूमने का आज का ही दिन था। हमारी किस्मत अच्छी थी, कुछ देर में बारिश रूक गई। हम भी बाहर ऋषिकेश की सड़कों पर बाहर निकल आए। बारिश की वजह से ऋषिकेश गीला-गीला हो गया था। हम लक्ष्मण झूला को देखने के लिए चल पड़े। चलते-चलते और बातें करते हुए लक्ष्मण झूला पहुंच गये।

लक्ष्मण झूला

लक्ष्मण झूले पर काफी भीड़ थी, लग रहा था कि बंदे के ऊपर बंदा है। हम भी उसी भीड़ का हिस्सा हो लिए। बारिश की वजह से ऋषिकेश का मौसम काफी शानदार था। झूला झूले की तरह हिल रहा था। लक्ष्मण झूला को पार करके हम दूसरी तरफ पहुंच गये। हम पैदल-पैदल चलते जा रहे थे और कुछ-कुछ जगहों पर ऋषिकेश को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद भी कर रहे थे। अब हमें पैदल-पैदल ही राम झूला तक जाना था।

रोड से लक्ष्मण झूला से राम झूला दूर लगता है लेकिन पुल के दूसरी तरफ से कुछ ही मिनटों में राम झूला तक पहुंचा जा सकता है। हम भी उसी रास्ते पर आगे बढ़ते जा रहे थे। इस रास्ते पर भी बहुत भीड़ थी और गाड़ियों की वजह से जाम भी लग रहा था। कुछ आगे चलने पर अचानक फिर से तेज बारिश हो गई। बारिश से बचने के लिए हम एक झोपड़ी के नीचे छिप गये। बारिश धीमी होने पर हम फिर से आगे बढ़ चले। कुछ देर बाद राम झूला की सड़क पर थे। राम झूला से पहले ही हम नीचे उतरकर गंगा किनारे पहुंच गये।

राम झूला

गंगा किनारे की रेत पूरी तरह से सफेद है जो इस जगह को और भी शानदार बनाती है। गंगा में रिवर राफ्टिंग हो रही थी और उनमें बैठे लोग चिल्ला रहे थे। बारिश की वजह से हवा तेज चल रही थी और ठंड भी लग रही थी। काफी देर बाद यहीं बैठे रहे। शाम होने पर राम झूला की लाइट जल गई। राम झूला सुंदर लग रहा था। हम राम झूला को पार करके दूसरी तरफ गये। मुख्य सड़क पर चलते हुए मोमोज का ठेला लगा हुआ था, हमने मोमोज खाए और वापस राम झूला की तरफ चल पड़े।

अंधेरा हो चुका था। अब हमें खाना खाना था और फिर लक्ष्मण झूला की तरफ अपने कमरे पर भी तो जाना था। हम राम झूला पार करके चोटीवाला होटल गये और खाना खाया। उसके बाद वापस लक्ष्मण झूला की तरफ चल पड़े। ठंडी-ठंडी हवा के झोंके के बीच हम आगे बढ़ते हुए लक्ष्मण झूला और फिर होटल पहुंचे। हम जल्दी ही सो गये। थकान तो कुछ ज्यादा नहीं हुई थी लेकिन अगली सुबह फिर हमें एक नये सफर पर निकलना था।

Wednesday, 10 April 2019

ऋषिकेश में राम झूला-लक्ष्मण झूला के अलावा भी देखने को बहुत कुछ है

यात्रायें मुझे बेहद हद तक शांत रखती हैं। जब मैं बहुत दिनों तक एक ही जगह रुक जाता हूं तो परेशानी मेरा चेहरा बयां कर देता है। यात्राएं बेहद कठिन लेकिन अद्भुत होती हैं। जो हमें जीवन के फेर से दूर रखती हैं, वे हमें उलझने नहीं देती हैं। यात्रा करके अक्सर मैं हल्का महसूस करता हूं। मैं हरिद्वार में था पूरे एक दिन। हरिद्वार की गलियों और शाम शांति की बाहों में खेलने के बाद, हम अगले दिन ऋषिकेश निकल पड़े। हरिद्वार और ऋषिकेश में अंतर है, उतना ही जितना एक खडंहर घर और नये मकान में होता है। ऋषिकेश शून्यताओं से भरा है, अथाह खोज के लिये।


हरिद्वार से ऋषिकेश जाना बेहद आसान हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है। बस और आॅटो मिनटों के हिसाब से मिल जाते हैं। दोनों का किराया लगभग एक ही जैसा है। मैं ऋषिकेश टैक्सी से ही जाना पसंद करता हूं। बस में बैठता हूं तो लगता है किसी ने बांध रखा है, टैक्सी खुलेपन का एहसास देता है। हम उसी टैक्सी में बैठकर ऋषिकेश जा रहे थे, पहाड़ों के और पास। रास्ते में कई शहर और शहर से ज्यादा होटल नजर आ रहे थे। बीच में रेलवे क्राॅसिंग आई और हम कुछ देर वहीं ठहर गये।

हवा में लटका, झूला


दिल्ली से दूर होते ही सब कुछ हरा लगने लगता है। लगता है पूरी हरियाली यहीं है, जैसे किसी ने यहां हरियाली की बारिश कर दी हो। आॅटो आगे बढ़ गई और वो हरियाली भी साथ चलने लगी। लगभग आधे घंटे के बाद हम ऋषिकेश की गलियों में थे, हम अब भी आॅटो में ही थे। हम सीधे रामझूला उतरे और फिर इस शहर की भीड़ में शामिल हो गये। ऋषिकेश टूरिस्ट प्लेस है, बहुत ज्यादा टूरिस्ट प्लेस। यहां तीन में से दो लोग घूमने वाले ही मिलेंगे। थोड़ी देर में हम राम झूला पर चल रहे थे। राम झूला एक पुल ही तो है जिस पर लोग और मोटरसाइकिल आराम से गुजरते हैं।


राम झूला पर इतनी भीड़ होती है कि रुकने का मन ही नहीं करता है, हमारा भी नहीं किया। राम झूला पार किया और चल पड़े गंगा के तीरे। ऋषिकेश में गंगा बहुत साफ है, हरिद्वार से भी ज्यादा साफ। हरिद्वार अध्यात्म क्षेत्र है और ऋषिकेश टूरिस्ट प्लेस है। यहीं गंगा के किनारे एक पत्थर पर बैठ गये। कुछ देर यहीं बैठने का मन किया और हम वहीं गंगा के किनारे एक पत्थर पर बैठ गये। चलते-चलते हम जिस जगह रुकते हैं तो वो जगह भी हमारी तरह यायावर हो जाती है। कितना सुंदर है ये? पहाड़, गंगा और ये सफेद रेत।


ये ऐसी जगह है जहां कुछ और दिन रुकना चाहिये? हां, ये शहर, ये जगह एक दिन में समझ नहीं आयेगा। हमें सीधे यहीं आना चाहिये था, मेरे साथी यही कह रहे थे। ये जगह है ही इतनी सुंदर। पहाड़ हमारे बगल में खड़े हैं। इनको देखकर लगता है वे हमारी तरह चलकर नहीं आये। वे हमेशा से यही खडे थे, बिल्कुल शांत। कुछ देर हम वहीं रुके रहे और फिर उठकर नई जगह पर चल दिये। मैंने आगे जाने के लिये दो जगह चुनीं नीर झरना और बीटल्स आश्रम। बीटल्स आश्रम पास में था सो हम सबसे पहले वहीं चल दिये।

शांति की खोज


बीटल्स आश्रम जाते वक्त गलियों में ऋषिकेश का बाजार मिलता है, ठीक वैसा जैसा हरिद्वार में लगा रहता है। दुकानों में मालायें, कड़े, रुद्राक्ष, कुर्ते और भी बहुत कुछ। हम उन सबको पार करके आगे बढ़ गये। हम गलियों में अब भी चल रहे थे लेकिन अब यहां कोई दुकान नहीं थी। बीच में एक छोटा-सा कैफे था, उसके आगे गाॅर्डन था। जिसमें एक विदेशी शख्स बैठकर कुछ काट रहा था, मैं आश्चर्य था और उसी आश्चर्य को लेकर आगे बढ़ गया।


धूप बहुत तेज पड़ रही थी लेकिन इस बीटल्स आश्रम को देखना तो था। मैं तीन साल हरिद्वार में रहा था, कई बार ऋषिकेश आया था लेकिन इस बीटल्स आश्रम के बारे में नहीं सुना। अब जो कई लोगों से सुन लिया तो देखने का मन भी हो रहा था। इस धूप और छांव के चक्कर में कुछ ही देर में हम बीटल्स आश्रम पहुंच गये।  इस आश्रम का नाम एक अमेरिकी सिंगर बीटल्स के नाम पर है। इस जगह पर महर्षि योगी रहा करते थे। तभी सिंगर बीटल्स अपने ग्रुप के साथ यहां आये और कुछ दिन यहीं रुके।


बीटल्स ने यहां योग और मेडिटेशन किया। बीटल्स ने लगभग 40 गाने यहीं पर लिखे जो बाद में सुपरहिट हो गये। बाद में इस जगह नाम बीटल्‍स आश्रम पड़ गया। हम उसी बीटल्स को देखने आये थे। बाहर से बीटल्स आश्रम पूरा गुंबद की तरह दिख रहा था। अंदर आये तो देखा, यहां भी अंदर जाने का टिकट लगता है। इंडियन के लिये 150 रुपये और फाॅरनेर के लिये 600 रुपये। हम अंदर चले तो एक बोर्ड मिला जिस पर लिखा था, ये जगह हिमालय पर्वत की शिवालिक रेंज के राजाजी टाइगर रिजर्व में आती है। आश्रम तक जाने के लिये छोटी-सी चढ़ाई थी, जिसे चढ़ने के लिये हमारे कुछ साथियों के पसीने छूट रहे थे। हम तब तक एक दीवार को देखने लगे, जिस पर लिखा था, ‘वी लव ऋषिकेश’। आगे चलने पर आश्रम का गेट मिला जिसे चौरासी कुटिया भी कहा जाता है।


बीटल्स आश्रम


बीटल्स आश्रम में पूरी तरह जंगल वाला लुक था। जहां बहुत सारे पेड़ लगे थे और बीच में कुछ कुटिया बनी थीं। हम उन कुटिया को देखने लगे, कुटिया के अंदर इंग्लिश में बहुत सारे क्वोट्स लिखे थे। वहीं बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था इन कुटिया में जो पत्थर लगे हैं वो गंगा के किनारे से लाये गये हैं। बहुत सारी कुटियां थीं। कुटिया में अच्छी व्यवस्था थी, उसमें वेस्टर्न टाॅयलेट भी बनी हुई थी। मेरे साथी ने बताया कि इनमें रुक भी सकते हैं, एक रात के 1500 रुपये। देखने के लिहाज से ये कुटिया बेहद अच्छी लग रही थीं लेकिन रुकने के लिहाज से व्यवस्था नहीं थी। किसी भी कुटिया में सफाई नहीं थी। बीटल्स आश्रम का टिकट लिया जाता है, सरकार को उसी पैसे को यहां की व्यवस्था के लिये लगाने चाहिये।


आगे चले तो और भी ऐसी ही कुटिया मिलती जा रही थी। वहीं एक बहुत बड़ा मकान भी बना हुआ था, जो शायद कभी कैंटीन थी। आगे जंगल जैसा रास्ता दिखा, मैंने वहीं रास्ता पकड़ लिया। मेरी आदत है मैं रास्तों में सीधा नहीं चल पाता, अक्सर पगडंडियों की ओर चला जाता हूं। लगता है कि यहां कुछ नया मिलगा, ये रास्ता कोई नई जगह ले जायेगा। जहां कोई न गया हो। मुझे ये पगडंडी भी एक नई जगह पर ले गई जहां से गंगा दिख रही थी, बहती हुई गंगा।


कुछ देर वो आवाज सुनी और फिर आगे बढ़ गया। आगे बढ़ा तो फिर एक और घर मिला। जिसके आगे बोर्ड लगा था यहीं योगी महेश रहते थे, वे यहीं ध्यान करते थे। मैं उस घर को देखने लगा। घर के सभी कमरों में कुछ न कुछ लिखा था। कुछ अच्छे क्वोट्स थे तो कुछ बाकी जगहों के तरह ही अपने प्यार का नाम लिख गये थे। इसी घर में मुझे सीढ़ी मिलीं जो नीचे की ओर जा रहीं थीं। मैं नीचे चल दिया, सीढे उतरते ही एक कमरे में आ गया। यहां पूरी तरह से अंधेरा था लेकिन बहुत ठंडक थी। आगे कुछ और कमरे मिले। शायद यहीं पर सबसे दूर ध्यान करते होंगे। आगे चलने पर सीढियां मिलीं और बाहर निकल आया।

अंधेरे से निकला उजाला


हम महेश योगी के तपोस्थली पर कुछ देर बैठ गये और थोड़ी देर बाद चल दिये। आगे चलने पर फिर एक मकान दिखा जो अब तक के सभी घरों से बड़ा था। मैं उसी में घुस गया, ये चार मंजिला मकान था। जिसका हर कमरा, हर दीवार पर कुछ न कुछ कलाकृति उकेरी गई थीं। कुछ तो बेहद शानदार जैसे वो औरत और हाथ जोड़े वो ऋषि। यही सब देखते-देखते मैं छत पर पहुंच गया। छत पर जो देखा मैं अवाक रह गया। छत पर एक गुफा बनी हुई है और उस पर एक ऋषि की तस्वीर बनी हुई है।


मेरे लिये बीटल्स आश्रम का सबसे शानदार दृश्य यही है। पहाड़ों से उंची दिखती वो गुफा और गुफा को खूबसूरत बनाती वो तस्वीर। यही सबको देखते-देखते हम बीटल्स आश्रम से निकल आये। इसके बाद हम बोट पर बैठकर त्रिवेणी घाट पर जाने के लिये तैयार हो गये। मुझे लगता है 10 रुपये में बोट पर बैठकर गंगा को छूने को मिल रहा है तो उसमें घाटा नहीं है। जब बोट चलती है तो पानी में हाथ डालना सुकून देता है। यहीं से राम झूला साफ दिखता और पास भी।


मैं अभी और भी जगह जाना चाहता था लेकिन इस बार ये शहर हमें इतने ही पल देने वाला था। इस शहर में बेपरवाही है, आकर्षण है और खुद को खोजने की सुलझाने की आदत। इस शहर की भीड़, भीड़ नहीं लगती, यहां कोई हड़बड़ी नहीं है। यहां कोई घंटो एक ही जगह पर बैठा रहता है तो कोई इस शहर में चलता ही रहता है। शहर को देखने का सबका अलग-अलग नजरिया होता है। कोई वहां लोगों से शहर को खोजता है तो कोई वहां की जगहों से।