Friday 22 March 2019

हरिद्वार में कहीं इन ठोकरों पर जाना तो नहीं भूल गये

जब-जब मुझे लगता है कि जिंदगी में बोरियत आ रही है तो मैंं एक सफर पर निकल जाता हूं। कभी वो सफर लंबा होता है तो कभी बहुत छोटा। हरिद्वार मेरे लिये घर जैसा है। यहां की हर गली और दुकान सेे वाकिफ हूं। मैं इस शहर में कभी घूमने के लिहाज से नहीं आया। इस बार भी मैं हरिद्वार घूमने नहीं गया लेकिन खुशी है कि पुरानी गलियों और रास्तों को फिर से पैदल नाप आया हूं। हरिद्वार में सिर्फ हर की पौड़ी और गंगा नहीं है, यहां तो शोर और लुटाई के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। असली हरिद्वार तो उन घाटों पर है। जहां लोग होते हुये भी नहीं जाते।


10 मार्च 2019। मैं आराम से दिल्ली में अपने रूम पर हफ्ते भर की थकान दूर कर रहा था। तभी मुझे एक काॅल आया और मैं हरिद्वार जाने के लिये तैयारी करने में लग गया। मैंने रात को 12 बजे कश्मीरी गेट से हरिद्वार के लिये बस पकड़ी और चल पड़ा फिर हरिद्वार के सफर पर। रास्ता जाना-पहचाना था, बस समय निकालना था। गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर पार करते हुये बस आगे बढ़ गई। दिल्ली से आने पर जब रूड़की का आता है तो फिर लगता है अब हरिद्वार दूर नहीं है। रात के अंधेरे में सब शांत था सिवाय हाइवे पर दौड़ती गाड़ियों के। सुबह के 5 बजे होंगे बस ने मुझे एक चौराहे पर उतार दिया।

जानी-पहचानी जगह


ये हरिद्वार का प्राइवेट बस स्टैंड है। प्राइवेट बसें यहीं तक आती हैं और यहीं से ऋषिकेश, देहरादून के लिये निकल जाती हैं। शहर के अंदर सरकारी बस ही जाती है। जो पहली बार हरिद्वार आयेगा वो पक्का कन्फ्यूज हो जायेगा कि कहां जाया जाये? मुझे रास्ता पता था सो मैं पैदल ही बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ गया। हरिद्वार यहां पूरी तरह शांत था। रास्ते में प्रेस क्लब  है जहां मैं काॅलेज के समय में कई बार आया था। यहीं दीवारों पर तस्वीरें उकेरी गई थीं। जिसमें एक योग के बारे में थी और एक भारत रत्न मदन मोहन मालवीय जी की थी। यूं ही चलते-चलते मैं बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के सामने आ गया था।

हरिद्वार की गलियों में।

मैं पैदल ही आगे चलने लगा। कुछ लोग बार-बार आये जिनमें कुछ होटल में रूकने के लिये कह रहे थे और कुछ हर की पौड़ी तक छोड़ने की बात कह रहे थे। मैंने दोनों चीजों के लिये मना कर दिया। मुझे हर की पौड़ी तो जाना था लेकिन मुझे पता था कि अंधेरे में हरिद्वार ठगने को तैयार बैठा रहता है। मैं पैदल ही हर की पौड़ी की ओर बढ़ गया। पहले के ही तरह मैं एक बार फिर अंधेरे की खामोशी में हरिद्वार देख रहा था। मैं उन्हीं गलियों में फिर से चल रहा था जहां दिन के उजाले में भीड़ और शोर-शराबा रहता है। इस बार फर्क इतना था कि इन गलियों में मैं भटक नहीं सकता था। इसलिये मैं जल्दी ही हर की पौड़ी पहुंच गया।

सुबह-सुबह हर की पौड़ी।

इतने महीनों से दिल्ली में रह रहा था तो सोचता था कि हरिद्वार और दिल्ली का मौसम एक जैसा है, देहरादून थोड़ा ठंडा है। यही सोचकर मैं बिना गर्म कपड़े के हरिद्वार आ गया था लेकिन अब ठंडी-ठंडी हवा मुझे कपा रही थी। मुझे समझ आ गया था कि हरिद्वार, हमेशा से दिल्ली से ज्यादा ठंडा रहता है। हर की पौड़ी का दृश्य वैसा ही था जैसा मैं हमेशा देखते आया था। कुछ लूटमारी, कुछ भक्ति और गंगा की कलकल करती आवाज। कुछ अलग था तो हर की पौड़ी पर बंदूक लिये तैनात सेना के कुछ जवान। शायद देश का इस समय जो माहौल है उसी को देखते हुये सुरक्षा के इंतजाम किये गये हैं।

सुबह-सुबह अविरल गंगा।

घाटों की सैर

सुबह के 6 बजते ही गंगा मैया की आरती शुरु हो गई। आरती देखने के बाद मैं हर की पौड़ी पर ही घाट के किनारे बैठ गया। हर की पौड़ी पर आने का सबसे बेहतर वक्त यही है। इस समय सबसे कम भीड़ रहती है और आराम से घाट पर बैठा जा सकता है। अब कुछ उजाला हो चला था कि मैं पुल पर आ गया और पार करते हुये हर की पौड़ी से बाहर निकल आया। कभी-कभी रास्ते ही अपनी मंजिल बना लेते हैं। वैसे ही मेरे रास्ते ने मेरी मंजिल बदल दी थी। मैं तो आटो पकड़ना चाह रहा था लेकिन कुछ पैदल चला तो एक नया रास्ता दिख गया और नई मंजिल।

हर की पौड़ी पर गंगा और शिव।

मैं इसी रास्ते पर आगे बढ़ गया। अब तक धूप भी आ चुकी थी लेकिन इतनी नहीं कि गर्मी लगे। मैं आराम से इस धूप में चल सकता था। कुछ आगे बढ़ा तो मुझे कुछ घाट दिखे। तभी मैंने प्लान बनाया कि अब इन घाटों को फिर से देखना है। सबसे पहले जो घाट मिला है उसका नाम है ‘स्व. श्रीमती फूलपति स्मृति घाट’। घाट पूरी तरह से पक्का बना हुआ है। नाम से ही पता चल रहा है कि इस घाट को किसी की स्मृति में बनाया गया है। घाट पर उनकी मूर्ति भी बनी हुई है। उसके बगल में ही श्री स्वामी गुप्ता नंद घाट है।

श्री स्वामी गुप्ता नंद घाट

यहां गंगा और लोग दोनों शांत हैं। यहां हर की पौड़ी की तरह न कलकल करती ध्वनि है और न ही लोगों का शोर। इसी घाट पर भगवान शिव का छोटा-सा मंदिर भी है और उस पर लिखा है- शिव की पौड़ी। घाट पूरी तरह साफ-सुथरा है और पक्का भी। यहां आराम से सीढ़ियों पर बैठा जा सकता है और गंगा को निहारा जा सकता है। यहीं पर सर्वानंद घाट है। अब तक मुझे मिले घाटों में सबसे बड़ा और अच्छा घाट। यहां पर भगवान शंकर का मंदिर है और उसके पुजारी मंदिर में जल चढ़ा रहे हैं। यहां सीढ़ियों के बाद एक बैरक बनाई गई है, सुरक्षा के लिये। यहीं से एक पुल दिख रहा है जहां से गाड़ियां, बसें जा रही हैं। ये घाट दिखने में तो अच्छा है लेकिन हाईवे होने के कारण शोर बहुत है। यहां कुल चार घाट हैं उनको देखने के बाद मैं हाइवे पर आ गया।

घाट से ऐसी दिखती है गंगा।

घाट नहीं, ठोकर है


रोड पार करके मैं अपनी-जानी पहचानी सड़क की ओर जाने लगा। तभी मुझे वो कच्चा पुल दिखा और मेरे एक दोस्त की मानें तो लवर प्वाइंट। जिसके कहने पर हम यहां एक बार चले आये थे और बाद में खुद पर हंस रहे थे। पुरानी जगहों पर आकर पुराने दिन और बातें याद आने लगती हैं। मैं उसी लवर प्वाइंट पर पहुंच गया। यहां से दूर-दूर तक गंगा, पहाड़ और जंगल ही दिखता है। कुछ देर यहां बिताने के बाद मैं वापस अपनी जानी-पहचाने रास्ते पर चलने लगा। मुझे पता था ये रास्ता मुझे कहां ले जायेगा?


कुछ देर चलने के बाद मैं फिर से एक घाट पर आ गया। इस घाट का नाम गुरू कार्षिणि घाट है। मुझे पहला घाट मिला जहां बहुत सारे पेड़ लगे थे। मैं हरिद्वार के भूपतवाला इलाके में आ गया था। यहां घाट पर एक बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था- घाट पर अस्थियां विसर्जित करना मना है। एक-दो घाट पार करने के बाद कुछ घाट कच्चे हो गये थे। अब घाट की जगह ठोकर ने ले ली थी। ठोकर थे तो घाट ही लेकिन उनको कहा ठोकर ही जाता था। मैं ठोकर नंबर 5 पर आ गया था। यहां से गंगा बहुत अच्छी दिख रही थी।

ठोकर नंबर 5 से दिखती गंगा।

ये पूरा इलाका साधु-संतों से भरा हुआ है। सबकी कुटिया बनी हुई है और कुछ की तो कुटिया हाई-फाई बनी हुई है। जिनकी कुटिया पर टाटा स्काई और डिश टीवी की छतरी देखी जा सकती है और कुछ में से तो टीवी चलने की आवाज भी सुनाई देती है। इसके बाद महाराजा अग्रसेन घाट, सच्चिदानंद घाट, गीता कुटीर घाट मिले। इस लाइन में 16 घाट हैं। ये घाट तब तक मिलते-रहते हैं जब तक भारत माता मंदिर नहीं आ जाता। मैंने पहली बार इन घाटों को एक-साथ देखा था। पहले तो बस गंगा किनारे आता था। आज वही गंगा किनारा शांति और शोर में अंतर समझा रही थीं। हरिद्वार अध्यात्मिक क्षेत्र है। यहां शोर से बचना है तो इन घाटों पर आना चाहिये।

5 comments:

  1. Sach bolu to mujhe kabhi koi bhagti bhaav ka aadmi dikha he nahi haridwaar mein, bachpan se har saal ek baar haridwaar tak he le jaane ka budget hota tha gharwaalo ka,to yahi vacation hoti thi apni to,har ki paudi ko itna overhype kar diya gaya hai ke vaha pahuch kar shradhha ki jagah darr lagne lagta hai, 100, 200 mtr pehle sab kuch chalta hai vaala attitude ho jaata hai khatam, kyunki bhai abb aa gai hai har ki paudi sawdhaanv ho jaao,abb koi galat vichaar bilkul mat aane do man mein, aa bhee jaaye to ram ram karne lago to vichaar gaayab ho jaayega,ye darr hai har ki paudi ka.
    Or haridwaar ki agar aap ek ek gali se vaaqif hai or unn logo ko kyu nazarandaaz kar rahe hai jo nashe mein aar paar ho kar ganga mein dubki lagaati aourto or ladkiyo ko aise dekhte hai jaise unhko dekhte hue koi nahi dekh raha hai, or issmein sharaab ko dosh na de,sharaab achhe insaan ko or achha banati hai or bure ko bhyaanak.

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  3. U are improving day by day...gud keep writing😊

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    1. जब आप तारीफ करती हैं तो बेहद अच्छा लगता है, शुक्रिया।

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  4. वाह! यह लेख सचमुच एक कला की तरह है। आपने विषय को अत्यंत सुंदरता से व्यक्त किया है। बधाई हो! यह भी पढ़ें हरिद्वार में घूमने की जगह

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