Sunday 24 January 2021

खजुराहोः पहली नजर में मुझे ये शहर खूबसूरत और प्यारा लगा

यात्राएं आसान नहीं होती हैं लेकिन ये मन को सुकून और खुशी देती हैं। यात्रा पूरी करने के बाद भी वो जगह मुझ पर कई दिनों तक हावी रहती है। वो कुछ दिन किस तरह गुजरे, क्या किया, क्या देखा? सब कुछ जेहन में एक फिल्म की तरह बार-बार चलता है। शायद यही वजह है कि यात्राएं हमें हल्का कर देती हैं। यात्राएं सिर्फ खुशी ही नहीं देती हैं ये सुनी-सुनाई बातों को सही या गलत के रास्ते पर ले जाती है। जैसे कि मुझे खजुराहो में घूमने के दौरान पता चला कि लोग इस शहर के बारे में कितना गलत सोचते हैं। खजुराहो की यात्रा में मैंने मंदिर से लेकर प्रकृति की खूबसूरती देखी।


मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के पन्ना और छतरपुर शहर के बीच में स्थित है, खजुराहो। यहां कभी खजूर के पेड़ बहुत होते थे उसी से इस जगह का नाम खजुराहो पड़ा। खजुराहो बुंदेलखंड का ऐतहासिक शहर है। यहां के मंदिर पूरी दुनिया में फेमस हैं जो अपनी शिल्प कला के लिए जाने जाते हैं। खजुराहो को यूनेस्को ने विश्व विरासत का दर्जा दिया है। खजुराहो चंदेलों की राजधानी हुआ करती थी। उन्हीं राजाओं ने यहां के मंदिरों को बनवाया था। सिकन्दर लोधी समेत कई मुसलमान शासकों ने इन मंदिरों को नष्ट कर दिया। बाद में 1900 के बाद खजुराहो का पुनरुद्धार भारतीय पुरात्व विभाग ने करवाया। आज हम जिस खजुराहो को देखते हैं वो पूरी तरह से प्राचीन नहीं है।

लो शुरू हो गया सफर

सुबह-सुबह का नजारा।

मैंने खजुराहो जाने का सोचा था लेकिन कब जाना होगा, ये पता नहीं था। कई महीनों तक जब घूम नहीं पाया और जैसे ही कहीं जाने का मौका मिला तो उसके लिए मैंने खजुराहो को चुना। खजुराहो के बारे में मुझे ज्यादा नहीं पता था, बस इतना कि यहां बहुत सारे मंदिर और इन मंदिरों पर सेक्स करते हुए मूर्तियां बनी हुई हैं। मैं बुंदेलखंड में ही अपने घर पर था। मेरे घर से खजुराहो की दूरी लगभग 150 किमी. है। मैंने अपने छोटे बैग में कुछ सामान रखा और सुबह 6 बजे खजुराहो के सफर पर निकल पड़ा।

मऊरानीपुर।

दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में सुबह-सुबह कहीं निकलना कोई आसान काम नहीं है। घूमने की वजह से मैं कई महीनों बाद इतनी सुबह उठा था। अभी पूरी तरह से उजाला नहीं हुआ था। सड़क पर कम ही लोग दिख रहे थे। कुछ देर बाद लाल सूरज दिखा। लाल सूरज बेहद प्यारा लग रहा था। खेतों और पेड़ों के पीछे खूबसूरत उगता हुआ सूरज हमारे सफर को शानदार बना रहा था। जब आसमान में ऐसा खूबसूरत नजारा दिखाई देता है तो कुछ और देखने का मन नहीं करता। कुछ देर बाद चारों तरफ घूप निकल आई। इसी धूप के साये में होते हुए मैं थोड़ी देर बाद मउरानीपुर पहुंच गया। 

पहले छतरपुर

समोसे का नाश्ता।

अगर आप झांसी से खजुराहो जाते हैं तो आपको मउरानीपुर शहर मिलेगा। एक छोटा-सा शहर, जहां आसपास के लोगों की जरूरतों की सभी चीजें मिलती हैं। सबेरे-सबेरे मउरानीपुर बिल्कुल शांत लग रहा था। मुझे यहो से खजुराहो जाने वाली बस पकड़नी थी। बस स्टैंड पहुंचा तो पता चला कि खजुराहो जाने वाली बस अंबेडकर चैराहे पर मिलेगी। कुछ मिनटों के बाद चैराहे पर बस का इंतजार कर रहा था। आसपास के लोगों से बात करने पर मालूम हुआ कि अभी बस आने में समय है। सुबह से कुछ खाया नहीं था तो वहीं पास की दुकान से समोसे ले लिए। समोसे खाने के कुछ देर बाद छतरपुर जाने वाली बस भी आ गई। मैं छतरपुर वाली बस में बैठ तो गया लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि छतरपुर पहले है या खजुराहो। 

नजारे।

बस जब चली तो उस समय सुबह के 8 बज रहे थे। कंडक्टर आया तो उसने बताया कि ये बस छतरपुर जाएगी वहां से आपको खजुराहो के लिए बस मिल जाएगी। मउरानीपुर से छतरपुर का किराया 90 रुपए लगा। अगर आप झांसी से खजुराहो जाना चाहते हैं तो हो सकता है कि आपको खजुराहो की डायरेक्ट बस न मिले, इसलिए पहले छतरपुर पहुंचिए। बस पूरी तरह से खड़खड़ा रही थी। अगर कहीं रास्ता खराब मिलता तो पूरी बस ही हिलने लगती, लगता कि अभी बस के सारे पुर्जे अलग हो जाएंगे। धूप तेज थी लेकिन खिड़की से ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी, मैंने खिड़की बंद कर दी।

सफर में ज्ञान


रास्ते में हरे-भरे खेत, गांव, नहर और अपने रोज का काम करते हुए लोग दिखाई दे रहा था। सबकी जिंदगी शायद रोज की तरह होगी लेकिन मेरी लिए ये दिन कुछ अलग था। जिसकी खुशी मेरे चेहरे पर साफ-साफ दिखाई दे रही थी। मैं जब भी सफर में जाता हूं तो मेरे बैग में एक किताब जरूर रहती है चाहे फिर मैं उसको पढ़ू या न पढ़ूं। इस बार मेरे बैग में क्रिक पांडा पों पों थी जिसको लिखा है ऋषभ प्रतिपक्ष ने। मैंने वो किताब बैग से निकाली और फिर ऋषभ, ऋषभ की किताब पढ़ने लगा। बस में पुराने गाने बज रहे थे और बस भरी भी नहीं थी। मैं किताब पढ़ रहा था कभी बाहर देख रहा था। 

मेरे बगल वाली सीट पर एक शख्स बैठे थे, 50 से उपर की उम्र रही होगी। मैंने उनसे पूछा कि ये बस कहां जाएगी? उन्होंने बताया, राजनगर जाएगी। खजुराहो से आगे राजनगर है। उन्होंने बताया कि वे राजनगर के सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर हैं। उन्होंने ही बताया कि अस्पताल में डाॅक्टर के अलावा किसी की इज्जत नहीं है लेकिन उनकी है। उन्होंने अपने पूरे परिवार के बारे में बता दिया कि तीन बेटे हैं, तीनों ने इंजीयनियरिंग की है। एक की नौकरी लग गई है और शादी भी हो चुकी है। दूसरे का काॅललेटर आने वाला है लेकिन उसके लिए रिश्वत देनी पड़ेगी और वो उसके लिए तैयार भी हैं। 

बस के अंदर का नजारा।

ये तो कुछ नहीं था। अभी असली ज्ञान तो मिलना बचा ही था, शादी और प्यार पर। उन्होंने बताया कि जैसे ही लड़के की नौकरी लगे तो फिर शादी कर दो नहीं तो फिर वो अपने मर्जी से शादी करेगा। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं किया तो लड़का लव मैरिज करता है और वो भी दूसरी बिरादरी जाति की लड़की से। उन्होंने अपना ब्रम्ह ज्ञान दिया कि लव मैरिज कभी सफल नहीं होती हैं। सिर्फ 10 फीसदी लव मैरिज चलती हैं। तभी पन्ना शहर आ गया और बस खाली हुई तो वो भाईसाहब दूसरी सीट पर चले गए।

खजुराहो का सफर

छतरपुर का बस स्टैंड।

रास्ते में कई जगह पर रोड बन रही थी तो कुछ एक जगह पर नया टोल प्लाजा भी बनता हुआ दिखाई दिया। कुछ देर बाद बस छतरपुर के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अंतर्राज्यीय बस स्टैंड पर पहुंच गई। बस स्टैंड काफी बड़ा था, बिल्कुल झांसी जैसा ही बड़ा। यहां अलग-अलग जगहों के लिए बस लगी थी। कुछ लोगों से पूछने पर बस मिल गई और खिड़की वाली सीट पकड़ ली। कुछ देर बाद बस चल पड़ी। छतरपुर से खजुराहो की दूरी 43 किमी. है। सड़क अच्छी तो लगभग 1 घंटे के बाद बमीठा पहुंच गया। यहां से खजुराहो की दूरी 11 किमी. है। पांच मिनट बस यहां पर रूकी और फिर आगे चल पड़ी।



अब रास्ते में होटल के बोर्ड मिलने लगे थे जिससे समझ आ रहा था कि खजुराहो टूरिज्म शुरू हो गया है। मैंने 126 रुपए में अपना होटल बुक किया था। इतने सस्ते में होटल मिलने से मैं खुश था। मेरा होटल राजनगर रोड पर था। कुछ देर बाद गाड़ी बस स्टैंड पर पहुंच गई, मैं वहीं उतर गया। खजुराहो बस स्टैंड बहुत छोटा है।  यहां पर एक दुकान है और बस तो एक भी नहीं मिली सिर्फ बस स्टैंड के बाहर ऑटो खड़ी थीं जो हर किसी को मंदिर छोड़ने की बात कह रहे थे। मैं उनको छोड़कर पैदल ही चल दिया। यहां से मेरा होटल करीब 3 किमी. था। गूगल मैप पर होटल की डायरेक्शन लगाई और चल पड़ा खजुराहो को देखने।

चलो गली-गली

खजुराहो की सड़क।

कहते हैं कि किसी भी नए शहर को देखना और समझना हो तो उस शहर में पैदल चलना चाहिए। कुछ देर बाद एक चैराहा आया जिस पर अंबेडकर की मूर्ति लगी हुई थी। यहां खजुराहो बिल्कुल शांत और साफ लग रहा था। पहली नजर में खजुराहो मुझे भा गया था। इस चैराहे से मैं दायीं तरफ चल पड़ा। कुछ देर बाद मैं खजुराहों की गलियों से होते हुए चले जा रहा था। लोग बुंदेली बोल रहे थे तो मुझे लग रहा था कि मैं अपनी ही किसी जगह पर हूं। रास्ते में होटल बहुत सारे दिखाई दे रहे थे और सभी पर एक ही बात लिखी थी, यहां से मंदिर का नजारा दिखाई देता है। कुछ देर बाद मुझे एक तालाब दिखाई दिया। तालाब के किनारे पर पानी में काफी गंदगी थी बीच में पानी साफ लग रहा था। 
तालाब।

तालाब के चारों तरफ हरे-भरे पेड़ लगे हुए थे जो इसे खूबसूरत बना रहा था। कुछ देर बैठने के बाद मैं आगे बढ़ गया। कुछ आगे बढ़ा तो पहली बार मुझे वो मंदिर दिखाई दिए जिनको देखने के लिए दुनिया भर से लोग यहां आते हैं। मैंने दूर से ही उन मंदिरों को कुछ देर निहारा और निकल पड़ा अपने होटल की ओर। आगे बढ़ा तो खजुराहो संग्रहालय दिखाई दिया। जिसके कुछ देर बाद चलने पर खजुराहो से बाहर राजनगर तरफ चले जा रहा था। कुछ देर बाद गूगल मैप वाली जगह पर पहुंच गया लेकिन वहां होटल के नाम का कोई बोर्ड नहीं था। वहां तो किसी आश्रम का बोर्ड था। जब मुझे होटल नहीं दिखाई दिया तो जिस नंबर पर बुक किया था उसे काॅल किया। पता चला कि वो आश्रम होटल में ही मुझे ठहरना है। फाॅर्मेल्टी पूरी करने के बाद मैं अपने कमरे में था। 126 रुपए के हिसाब से कमरा बेहतरीन था। बालकनी से शानदार नजारा भी दिखाई दे रहा था।

126 रुपए वाला कमरा।

मैं खजुराहो आ चुका था, अब मुझ शहर को घूमने के लिए निकलना था। आपकी आधी घुमक्कड़ी तभी पूरी हो जाती है जब आप उस जगह पर पहुंच जाते हैं। अब मुझे इस शहर को सिर्फ देखना ही नहीं था बटोरने थे बहुत सारे अनुभव। पहली नजर में मुझे खजुराहो प्यारा और खूबसूरत लगा।