Wednesday 10 April 2019

ऋषिकेश में राम झूला-लक्ष्मण झूला के अलावा भी देखने को बहुत कुछ है

यात्रायें मुझे बेहद हद तक शांत रखती हैं। जब मैं बहुत दिनों तक एक ही जगह रुक जाता हूं तो परेशानी मेरा चेहरा बयां कर देता है। यात्राएं बेहद कठिन लेकिन अद्भुत होती हैं। जो हमें जीवन के फेर से दूर रखती हैं, वे हमें उलझने नहीं देती हैं। यात्रा करके अक्सर मैं हल्का महसूस करता हूं। मैं हरिद्वार में था पूरे एक दिन। हरिद्वार की गलियों और शाम शांति की बाहों में खेलने के बाद, हम अगले दिन ऋषिकेश निकल पड़े। हरिद्वार और ऋषिकेश में अंतर है, उतना ही जितना एक खडंहर घर और नये मकान में होता है। ऋषिकेश शून्यताओं से भरा है, अथाह खोज के लिये।


हरिद्वार से ऋषिकेश जाना बेहद आसान हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है। बस और आॅटो मिनटों के हिसाब से मिल जाते हैं। दोनों का किराया लगभग एक ही जैसा है। मैं ऋषिकेश टैक्सी से ही जाना पसंद करता हूं। बस में बैठता हूं तो लगता है किसी ने बांध रखा है, टैक्सी खुलेपन का एहसास देता है। हम उसी टैक्सी में बैठकर ऋषिकेश जा रहे थे, पहाड़ों के और पास। रास्ते में कई शहर और शहर से ज्यादा होटल नजर आ रहे थे। बीच में रेलवे क्राॅसिंग आई और हम कुछ देर वहीं ठहर गये।

हवा में लटका, झूला


दिल्ली से दूर होते ही सब कुछ हरा लगने लगता है। लगता है पूरी हरियाली यहीं है, जैसे किसी ने यहां हरियाली की बारिश कर दी हो। आॅटो आगे बढ़ गई और वो हरियाली भी साथ चलने लगी। लगभग आधे घंटे के बाद हम ऋषिकेश की गलियों में थे, हम अब भी आॅटो में ही थे। हम सीधे रामझूला उतरे और फिर इस शहर की भीड़ में शामिल हो गये। ऋषिकेश टूरिस्ट प्लेस है, बहुत ज्यादा टूरिस्ट प्लेस। यहां तीन में से दो लोग घूमने वाले ही मिलेंगे। थोड़ी देर में हम राम झूला पर चल रहे थे। राम झूला एक पुल ही तो है जिस पर लोग और मोटरसाइकिल आराम से गुजरते हैं।


राम झूला पर इतनी भीड़ होती है कि रुकने का मन ही नहीं करता है, हमारा भी नहीं किया। राम झूला पार किया और चल पड़े गंगा के तीरे। ऋषिकेश में गंगा बहुत साफ है, हरिद्वार से भी ज्यादा साफ। हरिद्वार अध्यात्म क्षेत्र है और ऋषिकेश टूरिस्ट प्लेस है। यहीं गंगा के किनारे एक पत्थर पर बैठ गये। कुछ देर यहीं बैठने का मन किया और हम वहीं गंगा के किनारे एक पत्थर पर बैठ गये। चलते-चलते हम जिस जगह रुकते हैं तो वो जगह भी हमारी तरह यायावर हो जाती है। कितना सुंदर है ये? पहाड़, गंगा और ये सफेद रेत।


ये ऐसी जगह है जहां कुछ और दिन रुकना चाहिये? हां, ये शहर, ये जगह एक दिन में समझ नहीं आयेगा। हमें सीधे यहीं आना चाहिये था, मेरे साथी यही कह रहे थे। ये जगह है ही इतनी सुंदर। पहाड़ हमारे बगल में खड़े हैं। इनको देखकर लगता है वे हमारी तरह चलकर नहीं आये। वे हमेशा से यही खडे थे, बिल्कुल शांत। कुछ देर हम वहीं रुके रहे और फिर उठकर नई जगह पर चल दिये। मैंने आगे जाने के लिये दो जगह चुनीं नीर झरना और बीटल्स आश्रम। बीटल्स आश्रम पास में था सो हम सबसे पहले वहीं चल दिये।

शांति की खोज


बीटल्स आश्रम जाते वक्त गलियों में ऋषिकेश का बाजार मिलता है, ठीक वैसा जैसा हरिद्वार में लगा रहता है। दुकानों में मालायें, कड़े, रुद्राक्ष, कुर्ते और भी बहुत कुछ। हम उन सबको पार करके आगे बढ़ गये। हम गलियों में अब भी चल रहे थे लेकिन अब यहां कोई दुकान नहीं थी। बीच में एक छोटा-सा कैफे था, उसके आगे गाॅर्डन था। जिसमें एक विदेशी शख्स बैठकर कुछ काट रहा था, मैं आश्चर्य था और उसी आश्चर्य को लेकर आगे बढ़ गया।


धूप बहुत तेज पड़ रही थी लेकिन इस बीटल्स आश्रम को देखना तो था। मैं तीन साल हरिद्वार में रहा था, कई बार ऋषिकेश आया था लेकिन इस बीटल्स आश्रम के बारे में नहीं सुना। अब जो कई लोगों से सुन लिया तो देखने का मन भी हो रहा था। इस धूप और छांव के चक्कर में कुछ ही देर में हम बीटल्स आश्रम पहुंच गये।  इस आश्रम का नाम एक अमेरिकी सिंगर बीटल्स के नाम पर है। इस जगह पर महर्षि योगी रहा करते थे। तभी सिंगर बीटल्स अपने ग्रुप के साथ यहां आये और कुछ दिन यहीं रुके।


बीटल्स ने यहां योग और मेडिटेशन किया। बीटल्स ने लगभग 40 गाने यहीं पर लिखे जो बाद में सुपरहिट हो गये। बाद में इस जगह नाम बीटल्‍स आश्रम पड़ गया। हम उसी बीटल्स को देखने आये थे। बाहर से बीटल्स आश्रम पूरा गुंबद की तरह दिख रहा था। अंदर आये तो देखा, यहां भी अंदर जाने का टिकट लगता है। इंडियन के लिये 150 रुपये और फाॅरनेर के लिये 600 रुपये। हम अंदर चले तो एक बोर्ड मिला जिस पर लिखा था, ये जगह हिमालय पर्वत की शिवालिक रेंज के राजाजी टाइगर रिजर्व में आती है। आश्रम तक जाने के लिये छोटी-सी चढ़ाई थी, जिसे चढ़ने के लिये हमारे कुछ साथियों के पसीने छूट रहे थे। हम तब तक एक दीवार को देखने लगे, जिस पर लिखा था, ‘वी लव ऋषिकेश’। आगे चलने पर आश्रम का गेट मिला जिसे चौरासी कुटिया भी कहा जाता है।


बीटल्स आश्रम


बीटल्स आश्रम में पूरी तरह जंगल वाला लुक था। जहां बहुत सारे पेड़ लगे थे और बीच में कुछ कुटिया बनी थीं। हम उन कुटिया को देखने लगे, कुटिया के अंदर इंग्लिश में बहुत सारे क्वोट्स लिखे थे। वहीं बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था इन कुटिया में जो पत्थर लगे हैं वो गंगा के किनारे से लाये गये हैं। बहुत सारी कुटियां थीं। कुटिया में अच्छी व्यवस्था थी, उसमें वेस्टर्न टाॅयलेट भी बनी हुई थी। मेरे साथी ने बताया कि इनमें रुक भी सकते हैं, एक रात के 1500 रुपये। देखने के लिहाज से ये कुटिया बेहद अच्छी लग रही थीं लेकिन रुकने के लिहाज से व्यवस्था नहीं थी। किसी भी कुटिया में सफाई नहीं थी। बीटल्स आश्रम का टिकट लिया जाता है, सरकार को उसी पैसे को यहां की व्यवस्था के लिये लगाने चाहिये।


आगे चले तो और भी ऐसी ही कुटिया मिलती जा रही थी। वहीं एक बहुत बड़ा मकान भी बना हुआ था, जो शायद कभी कैंटीन थी। आगे जंगल जैसा रास्ता दिखा, मैंने वहीं रास्ता पकड़ लिया। मेरी आदत है मैं रास्तों में सीधा नहीं चल पाता, अक्सर पगडंडियों की ओर चला जाता हूं। लगता है कि यहां कुछ नया मिलगा, ये रास्ता कोई नई जगह ले जायेगा। जहां कोई न गया हो। मुझे ये पगडंडी भी एक नई जगह पर ले गई जहां से गंगा दिख रही थी, बहती हुई गंगा।


कुछ देर वो आवाज सुनी और फिर आगे बढ़ गया। आगे बढ़ा तो फिर एक और घर मिला। जिसके आगे बोर्ड लगा था यहीं योगी महेश रहते थे, वे यहीं ध्यान करते थे। मैं उस घर को देखने लगा। घर के सभी कमरों में कुछ न कुछ लिखा था। कुछ अच्छे क्वोट्स थे तो कुछ बाकी जगहों के तरह ही अपने प्यार का नाम लिख गये थे। इसी घर में मुझे सीढ़ी मिलीं जो नीचे की ओर जा रहीं थीं। मैं नीचे चल दिया, सीढे उतरते ही एक कमरे में आ गया। यहां पूरी तरह से अंधेरा था लेकिन बहुत ठंडक थी। आगे कुछ और कमरे मिले। शायद यहीं पर सबसे दूर ध्यान करते होंगे। आगे चलने पर सीढियां मिलीं और बाहर निकल आया।

अंधेरे से निकला उजाला


हम महेश योगी के तपोस्थली पर कुछ देर बैठ गये और थोड़ी देर बाद चल दिये। आगे चलने पर फिर एक मकान दिखा जो अब तक के सभी घरों से बड़ा था। मैं उसी में घुस गया, ये चार मंजिला मकान था। जिसका हर कमरा, हर दीवार पर कुछ न कुछ कलाकृति उकेरी गई थीं। कुछ तो बेहद शानदार जैसे वो औरत और हाथ जोड़े वो ऋषि। यही सब देखते-देखते मैं छत पर पहुंच गया। छत पर जो देखा मैं अवाक रह गया। छत पर एक गुफा बनी हुई है और उस पर एक ऋषि की तस्वीर बनी हुई है।


मेरे लिये बीटल्स आश्रम का सबसे शानदार दृश्य यही है। पहाड़ों से उंची दिखती वो गुफा और गुफा को खूबसूरत बनाती वो तस्वीर। यही सबको देखते-देखते हम बीटल्स आश्रम से निकल आये। इसके बाद हम बोट पर बैठकर त्रिवेणी घाट पर जाने के लिये तैयार हो गये। मुझे लगता है 10 रुपये में बोट पर बैठकर गंगा को छूने को मिल रहा है तो उसमें घाटा नहीं है। जब बोट चलती है तो पानी में हाथ डालना सुकून देता है। यहीं से राम झूला साफ दिखता और पास भी।


मैं अभी और भी जगह जाना चाहता था लेकिन इस बार ये शहर हमें इतने ही पल देने वाला था। इस शहर में बेपरवाही है, आकर्षण है और खुद को खोजने की सुलझाने की आदत। इस शहर की भीड़, भीड़ नहीं लगती, यहां कोई हड़बड़ी नहीं है। यहां कोई घंटो एक ही जगह पर बैठा रहता है तो कोई इस शहर में चलता ही रहता है। शहर को देखने का सबका अलग-अलग नजरिया होता है। कोई वहां लोगों से शहर को खोजता है तो कोई वहां की जगहों से।

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