Saturday 25 February 2023

भरतपुर: राजस्थान का पूर्वी द्वार

राजस्थान भारत के उन राज्यों में से एक है जहां की गलियों, महलों और किलों में इतिहास आज भी झलकता है। जहां के महलों में आज भी वैभवता और समृद्धता झलकती है। राजस्थान में कई बेहद शानदार शहर हैं। इन शहरों में बड़ी संख्या में सैलानी पहुँचते भी हैं। इन बड़े और लोकप्रिय शहरों की वजह से कुछ छोटे शहर छिप से जाते हैं। इन छोटे शहरों का भी इतिहास होता है और देखने को भी काफ़ी कुछ है। राजस्थान का एक ऐसा ही छोटा-सा शहर है, भरतपुर। भरतपुर को राजस्थान का पूर्वी द्वार भी कहा जाता है।

भरतपुर राजस्थान के प्राचीन शहरों में से एक है। इस शहर का निर्माण का निर्माण महाराजा सूरजमल ने 1733 में करवाया गया था। इस शहर का नाम भगवान राम के छोटे भाई भरत के नाम पर रखा गया है। भरतपुर पर कई बार मुगलों ने आक्रमण किया लेकिन कोई भी ऐसे जीत नहीं पाया। इस वजह से भरतपुर के क़िले को अजेय दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है। दिल्ली से भरतपुर 200 किमी, जयपुर से 150 किमी. और आगरा से सिर्फ़ 50 किमी. की दूरी पर स्थित है। वीकेंड पर घूमने के लिए भरतपुर एकदम परफ़ेक्ट है।

भरतपुर

मथुरा और वृंदावन को घूमने के बाद अब मुझे भरतपुर जाना है। भरतपुर राजस्थान का एक बढ़िया और प्राचीन शहर है। वृंदावन से सबसे पहले मैं ऑटो से मथुरा बस स्टैंड पर पहुँचा। बस स्टैंड पर मैंने कचौड़ी और जलेबी खाई। इसके बाद टिकट लेकर भरतपुर जाने वाली बस में बैठ गया। बस लोगों से खचाखच भरी हुई थी। थोड़ी देर बाद बस मथुरा से निकल पड़ी। रास्ते में बस रुक रही थी और लोगों का आवागमन चल रहा था। लगभग 2 घंटे बाद मैं भरतपुर पहुँच गया। अब मुझे भरतपुर में रहने का ठिकाना खोजना था। भरतपुर में अगले दिन कोई परीक्षा होनी थी, इस वजह से होटल वालों ने रेट बढ़ा दिए। 

महाराजा सूरजमल।

मैं जिस भी होटल में जाऊँमेरे बजट से ऊपर ही जा रहा था। काफ़ी कड़ी मशक़्क़त के बाद मुझे सारस चौक पर एक बढ़िया सा होमस्टे मिल गया। जंगल लॉज नाम का ये होमस्टे बेहद शानदार है। मैंने अपना सामान रखा और निकल पड़ा भरतपुर को देखने के लिए। मैंने लोहागढ़ क़िले तक जाने के लिए एक रिक्शा ले लिया। भरतपुर के बाज़ार से होते हुए बढ़ते जा रहा था। पहली नज़र में भरतपुर एकदम छोटा-सा शहर लगा लेकिन ज़रूरत का सामान यहाँ सब कुछ दिखाई दे रहा था। प्राचीन मथुरा गेट को पार करने के बाद मैं लोहागढ़ क़िला पहुँच गया।

लोहागढ़ क़िला

भरतपुर का लोहागढ़ क़िला एक बहुत बड़ा परिसर है जिसमें कई सारे महल और क़िले है। 18वीं शताब्दी में जाटों द्वारा बनवाया गया ये क़िला लोहे जैसा काफ़ी मज़बूत है। इस वजह से इस क़िले का नाम लोहागढ़ क़िला रखा गया। लोहागढ़ क़िले में किशोरी महल, ख़ास महल, कोठी महल, कामरा महल और पुराण महल है। इस इसी परिसर में देखने लायक़ जो सबसे शानदार जगह है, वो है राजकीय संग्रहालय।

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लोहागढ़ क़िले में स्थित कामरा महल को 1944 में संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया था। 20 रुपए का टिकट लेकर मैं म्यूज़ियम के अंदर चला गया। राजकीय संग्रहालय काफ़ी बड़ा है। म्यूज़ियम में कई सारी दीर्घाएँ हैं जो देखने लायक़ है। कुछ जगहों पर फ़ोटो और वीडियो लेना मना है और कुछ पर फ़ोटो ले सकते हैं। संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियाँ रखी हुई हैं। इसके अलावा आर्ट दीर्घा भी है। इसके अलावा म्यूज़ियम में शिलालेख, टेराकोटा, धातु वस्तुएँ, सिक्के, हथियार, लघु चित्र और स्थानीय कला भी देखने लायक़ है। संग्रहालय के पास में किशोरी महल है जिसके परिसर में महाराजा सूरजमल की विशाल मूर्ति स्थापित है। संग्रहालय को देखने के बाद में वापस कमरे पर गया।

गंगा मंदिर

मथुरा-वृंदावन की तरह भरतपुर में भी सुबह और शाम मंदिर खुले रहते हैं एवं दिन में मंदिर रहते हैं। मैंने दिन में कमरे पर आराम किया और शाम होते ही भरतपुर के दो प्राचीन मंदिर को देखने के लिए निकल पड़ा। सबसे पहले मैं पहुँचा श्रीगंगा मंदिर। 1845 में महाराजा बलवंत सिंह ने इस मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था। इस मंदिर को बनने में 9 दशक से भी ज़्यादा का समय लगा। बलवंत सिंह के पाँचवें वंशज बृजेन्द्र सिंह ने गंगा देवी की मूर्ति स्थापित की। दक्षिण भारतीय, मुग़ल और राजपूत शैली में बना गंगा मंदिर काफ़ी विशाल है। मंदिर का परिसर भी काफ़ी बड़ा है। भरतपुर आएँ तो गंगा मंदिर को ज़रूर देखें।

श्री गंगा मंदिर।

गंगा मंदिर के पास में लक्ष्मण मंदिर है। लक्ष्मण मंदिर भी भरतपुर का एक प्राचीन मंदिर है। भरतपुर का लक्ष्मण मंदिर लगभग 400 साल पुराना मंदिर है। भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को समर्पित ये मंदिर शाही परिवार का मंदिर माना जाता है। कहा जाता है तत्कालीन राजा बलदेव सिंह ने इस मंदिर की नींव रखी थी। उन्होंने अपने बेटे बलवंत सिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया। बलवंत सिंह ने लक्ष्मण मंदिर का निर्माण पूरा करवाया। मैं गंगा मंदिर से पैदल-पैदल लक्ष्मण मंदिर पहुँचा। लक्ष्मण मंदिर का परिसर गंगा मंदिर की तुलना में छोटा है। दोनों मंदिरों को देखने के बाद मैंने बाहर एक होटल में खाना खाया और फिर अगले दिन की यात्रा का प्लान बनाकर सो गया।

केवलादेव नेशनल पार्क

अगले दिन सुबह-सुबह तैयार होकर मैं भरतपुर के नेशनल पार्क को देखने के लिए निकल पड़ा। केवलादेव नेशनल पार्क को पहले भरतपुर बर्ड सैंक्चुरी के नाम से जाना जाता था। 29 वर्ग किमी. में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों की 500 से ज़्यादा प्रजातियाँ है। केवलादेव नेशनल पार्क फोटोग्राफर्स के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। भारतीय के लिए केवलादेव नेशनल पार्क का टिकट 126 रुपए है और विद्यार्थी के लिए 41 रुपए का टिकट है। इसके अलावा आप नेशनल पार्क घूमने के लिए साइकिल भी ले सकते हैं।

केवलादेव नेशनल पार्क।

मैं साइकिल से केवलादेव की सड़कों पर चल पड़ा। शुरूआत में मुझे एक सांभर हिरण दिखाई दिया। वेटलैंड इलाक़ा शुरू होने के बाद इतने पक्षी दिखाई दिए कि मैंने ऐसा नजारा कभी नहीं देखे था। मैं इस जगह से पहले इन पक्षियों को कभी नहीं देखा था। पार्क के आख़िर में भगवान शिव को समर्पित केवलादेव मंदिर भी है। इसी मंदिर के नाम पर इस पक्षी विहार का नाम पड़ा। सुबह-सुबह बड़ी संख्या में लोग देखकर मैं चकित था। सभी के हाथ में बड़े-बड़े कैमरे थे। इन कैमरे वालों के लिए बर्ड सैंक्चुरी एकदम सही जगह है। केवलादेव नेशनल पार्क को देखने के साथ ही मेरी भरतपुर की यात्रा पूरी हो गई। वीकेंड पर घूमने के लिए भरतपुर एकदम शानदार जगह है।