Tuesday, 14 February 2023

भगवान श्रीकृष्ण के पवित्र शहर मथुरा को मैंने कुछ इस तरह से एक्सप्लोर किया

मथुरा भारत की सबसे पवित्र जगहों में से एक है। दिल्ली से लगभग 150 किमी. की दूरी पर स्थित मथुरा एक ऐतिहासिक और पवित्र शहर है। मथुरा को भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के लिए जाना जाता है। मथुरा में देखने के लिए कई धार्मिक और ऐतिहासिक जगहें हैं। मैं घूमने के लिए बिहार गया था लेकिन किसी काम की वजह से लौटना पड़ा। मेरा मन बिना घूमें मान नहीं रहा था, दिल्ली में बैठे-बैठे मैं घूमने के लिए जगह के बारे में सोच रहा था। मेरे दिमाग़ में उत्तराखंड और मथुरा के बीच कन्फूयजन चल रहा था। काफ़ी जोड़-घटाओ के बाद मैंने भारत के सबसे पवित्र और श्रीकृष्ण के शहर मथुरा जाने का तय किया।

अगले दिन मैं सुबह-सुबह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुँच गया। दिल्ली से मथुरा के लिए बसें भी जाती हैं लेकिन ट्रेन से आराम भी है और समय भी कम लगता है। कुछ ही देर में ट्रेन चल पड़ी। राजस्थान जा रही इस ट्रेन ने 2 घंटे में मुझे मथुरा रेलवे स्टेशन छोड़ दिया। अब मुझे मथुरा में एक ठिकाना खोजना था और वो भी सस्ता। मैंने ऑनलाइन हॉस्टल की बुकिंग की थी। उसका कॉल आया और वो ही रेलवे स्टेशन पर लेने भी गया। कुछ देर में मैं 4 बेड वाले एक हॉल जैसे कमरे में था। सभी बेड ख़ाली थे और ये जगह रेलवे स्टेशन से 1 किमी. की दूरी पर था। मैं थोड़ी देर में तैयार हो गया और घूमने के लिए भी तैयार हो गया।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि

मैंने घूमने के लिए एक स्कूटी ले ली लेकिन बाद में ऐसा लगा कि इस शहर में स्कूटी की ज़रूरत नहीं है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट से इस शहर को अच्छी तरह से घूमा जा सकता है। मथुरा उत्तर प्रदेश के बृज क्षेत्र में आता है। मथुरा में मंदिरों को घूमने के लिए टाइमिंग सही होनी चाहिए। मथुरा में सभी मंदिर सुबह 6 बजे खुल जाते हैं और दिन में 12 बजे बंद हो जाते हैं। 4 घंटे मंदिर बंद रहते हैं, उसके बाद शाम 4 बजे से मंदिर फिर से खुलने शुरू हो जाते हैं और रात 8 बजे तक खुले रहते हैं। आप मथुरा के मंदिरों के सुबह और शाम को देख सकते हैं। मैं कुछ ही देर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पहुँच गया।


इस मंदिर का एक सुनहरा इतिहास है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मथुरा के महाराजा कंस ने अपनी बहन और उसके पति को एक भविष्यवाणी के चलते जेल में बंद कर दिया था। इसी जेल में देवकी ने भगवान श्रीकृष्ण को जन्म दिया था। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा के सबसे भव्य और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर के अंदर मोबाइल, कैमरा, बड़े बैग, हेलमेट, घड़ी और इलैक्ट्रिक सामान ले जाना सख़्त मना है। मंदिर के बाहर इन सामानों को जमा करने के लिए लॉकर बने हुए हैं जिसका मामूली शुल्क लगता है। वही शुल्क देकर मैं भी मंदिर के अंदर पहुँच गया। मंदिर के अंदर जाने का कोई टिकट नहीं लगता है। मंदिर के अंदर सिर्फ़ कारागृह मंदिर नहीं है। इसके अलावा भी कई सारे मंदिर बने हुए हैं। इस पूरे परिसर को घूमने के लिए आपको 1-2 घंटे का समय तो लग ही जाएगा। 


यमुना घाट

श्रीकृष्ण जन्मभूमि को देखने के बाद मुझे द्वारिकाधीश मंदिर को देखने के लिए जाना था। उसके पहले कुछ खाने का भी मन किया। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास में ही एक दुकान पर मैंने कचौड़ी और जलेबी खाई। किसी नई जगह पर जाता हूँ तो उस जगह का ज़ायक़े का स्वाद ज़रूर लेता हूँ। पेट पूजा के बाद मैं द्वारिकाधीश मंदिर की तरफ़ चल पड़ा। काफ़ी देर मथुरा की गलियों में घूमते हुए मैं द्वारिकाधीश मंदिर पहुँच गया। जब मैं मंदिर तक पहुँचा, मंदिर के बंद करने का समय हो गया था। मैंने द्वारिकाधीश मंदिर को बाहर से देखा। इस गली काफ़ी पुराने-पुराने घर दिखाई दे रहे थे। मंदिर के पास में ही विश्राम घाट है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने के बाद इस घाट पर विश्राम किया था। इस वजह से इस घाट का नाम विश्राम घाट पड़ गया। कुछ देर में मैं भी विश्राम घाट पहुँच गया।


विश्राम घाट मथुरा के सबसे पावन जगहों में से एक है। आपको इस घाट पर लोगों की आमद ज़्यादा मिलेगी। इस घाट से ही नौका विहार होती है। मुझे ये देखकर दुख हुआ पवित्र यमुना का पानी काफ़ी गंदा था, एकदम काला। अगर ये यमुना नदी ना होती तो इसको नाला कहने में मुझे कोई हिचक नहीं होती। गंगा की तरह यमुना को भी सफ़ाई की ज़रूरत है। घाट के किनार काफ़ी नाव लगी हुई हैं। वैसे तो सुबह और शाम को नौका विहार करना चाहिए लेकिन मेरे पास समय था तो मैं इसी समय नाव की यात्रा करने के लिए तैयार हो गया। कुछ देर में मैं नाव से यमुना घाट को देख रहा था। नाव से मैं विश्राम घाट से कंस क़िला तक गया और वहाँ से लौट आया।

शाही जामा मस्जिद

मैं स्कूटी से एक बार फिर से मथुरा की गलियों में चल रहा था। तभी मुझे एक बड़ी-सी मस्जिद दिखाई दी। मैं सब्ज़ी मंडी के पास में ही एक दुकान पर लस्सी के लिए रूक गया। कुल्हड़ वाले गिलास में लस्सी पीकर मज़ा ही गया। एकदम तरोताज़ा हो गया। दुकानदार से पूछने पर उसने बताया कि ये विवादित मस्जिद नहीं है, पाक मस्जिद है। 500 साल पुरानी इस मस्जिद को शाही जामा मस्जिद कहते हैं। कुछ देर में मैं उसी मस्जिद के अंदर पहुँच गया। मस्जिद के अंदर जो भी मिले मुझसे आने की वजह पूछे। मुझे ऐसा लगा कि कोई पहली बार इस मस्जिद को देखने आया है।



शाही मस्जिद काफ़ी बड़ी है। इस मस्जिद को मुग़ल के शासक औरंगजेब के शासन में गर्वनर नाबिर खान ने बनवाया था। इस मस्जिद में 4 विशाल मीनार हैं और जो आकर्षण का केन्द्र है। मथुरा में दो प्राचीन मस्जिद हैं। एक तो शाही जामा मस्जिद है और दूसरी ईदगाह जामा मस्जिद है जो श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास में स्थित है। ईदगाह जामा मस्जिद को लेकर काफ़ी विवाद भी चल रहा है। शाही जामा मस्जिद की नक़्क़ाशी काफ़ी शानदार और देखने लायक़ है। मथुरा घूमने आओ तो इस मस्जिद को भी देखने ज़रूर जाना चाहिए। कुछ देर बाद मैं अपने कमरे पर लौट गया। शाम को अपने काम की वजह से मैं मथुरा को घूमने के लिए नहीं जा पाया। मेरी मथुरा की यात्रा एक दिन की रही लेकिन बढ़िया रही। इस धार्मिक और पवित्र शहर में काफ़ी शानदार जगहें देखीं।


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