Thursday 26 January 2023

हिमाचल प्रदेश के बिर बिलिंग में लग्ज़री कैंपिंग का अनुभव

हिमाचल प्रदेश घूमने वालों के लिए एक जन्नत है। यहाँ प्राकृतिक सुंदरता से लेकर रोमांच तक सब कुछ है। मैं पहली बार हिमाचल प्रदेश स्पीति वैली की यात्रा पर आ गया था। तब से बार-बार हिमाचल जाने का मन करता है। इस बार भटकते-भटकते बिर-बिलिंग पहुँच गया। एक बात आपको साफ़ करना चाहता हूँ कि बिर बिलिंग एक जगह नहीं है बल्कि बिर और बिलिंग दोनों अलग-अलग जगह है। बिर में एक ट्रेक और दो शानदार झरनों को देखने के बाद अब एक नया अनुभव लेना बाक़ी था। अगले कुछ दिन हमने हिमाचल प्रदेश की वादियों में कैंपिंग की।

बिर बिलिंग को हमने अभी एक्सप्लोर नहीं किया था और हम बिर को घूमना भी चाहते थे। साथ में ही बिर के पास एक गाँव में कैंपिंग का मौक़ा मिल रहा था। जब मैंने उसका पैकेज देखा तो उसमें बिर को घूमना भी शामिल था। हमने बिर के होटल में बैठकर अगले तीन दिन के लिए कैंपिंग में बुकिंग कर ली। मैं इससे पहले जैसलमेर की रेत में ऐसे लग्ज़री कैंप में ठहरा था। पहाड़ों में ट्रेकिंग के दौरान भी टेंट में रूकने का मौक़ा मिला है लेकिन पहाड़ों में ऐसे लग्ज़री कैंप में ठहरने का पहला अनुभव होने वाला था।

पहला दिन

लग्ज़री कैंपिंग

अगले दिन सुबह-सुबह उठे तो देखा कि बाहर बारिश हो रही है। मौसम काफ़ी ख़राब हो चुका था। हमारी कैंपिंग वालों से बात हो चुकी थी। वो हमें बिर से ही पिक अप करने वाले थे। कुछ देर में बारिश रूक गई। हम पैदल-पैदल सबसे पहले एक चाइनीज़ फ़ूड की दुकान पर गए। वहाँ हमने शानदार थुकपा का स्वाद लिया। इसके बाद हम पैदल चलते हुए लैंडिंग साइट की तरफ़ पहुँच गए। वहाँ हम कुछ देर एक कैफ़े में बैठे रहे और केक भी खाया। कुछ देर में हमें कैंप वालों का फ़ोन आ गया। होटल से सामान उठाया और गाड़ी से चल पड़े एक नये सफ़र पर।

कुछ देर में हम बिर से बाहर निकलकर छोटे-से रास्ते पर बढ़ते जा रहे थे। पहाड़ी और जंगल के रास्ते से लगभग आधे घंटे के बाद हम एक गाँव में पहुँच गए। कुछ ही देर में कैंप साइट पर पहुँच गए। इस कैंप साइट में पाँच लग्ज़री टेंट बने हुए हैं। इसके अलावा एक रेस्टोरेंट जैसा कुछ है, जहां बैठकर आप खाना खा सकते हैं और किचन भी है। पहाड़ों और जंगलों से घिरी ये कैंप साइट वाक़ई में शानदार है। अंदर से भी टेंट काफ़ी शानदार और सज़ा हुआ है। बारिश की वजह से मौसम भी काफ़ी शानदार है। थोड़ी देर बाद फिर से बारिश शुरू हो गई। मैं यही सोच रहा था कि हमने सही समय पर ट्रेकिंग और वाटरफॉल देख लिया। बारिश की वजह से हम पहले दिन कहीं नहीं जा पाए हालाँकि लज़ीज़ खाना ज़रूर खाया।

दूसरा दिन

बैजनाथ धाम

अगले दिन कैंप में नींद जल्दी खुल गई। पहले दिन कहीं जा नहीं पाया, इसका दुख हो रहा था। आज किसी भी हालत में बाहर निकलना था। कैंप के बाहर आकर देखा तो बारिश नहीं हो रही थी हालाँकि मौसम फिर भी ख़राब था। मैं कैंप से बाहर निकलकर गाँव में टहलने के लिए निकल आया। इस गाँव में शांति और सुकून था। यहाँ पक्षियों की आवाज़ साफ़-साफ सुनाई दे रही थी। सुकून और शांति के लिए ऐसे ही गाँवों में जाना ज़रूरी है। थोड़ी देर में हम बैजनाथ जाने के लिए निकलने वाले थे। जैसे ही बाहर निकले तो तेज़ बारिश शुरू हो गई लेकिन गाड़ी बाहर निकल चुकी थी तो हम भी बैजनाथ की तरफ चल पड़े। बारिश के बूँदों के बीच में हम कुछ ही देर में बैजनाथ पहुँच गए। इस जगह को बैजनाथ धाम भी कहा जाता है।

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बैजनाथ में एक काफ़ी प्रसिद्ध मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। बैजनाथ में दशहरा पर रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है इसके पीछे एक किंवदंती है। कहा जाता है कि लंकापति रावण ने कड़ी तपस्या की लेकिन जब भगवान ने दर्शन नहीं दिए तो रावण अपने सभी सिरों को काटकर समर्पित करने लगा। जब रावण अपने आख़िरी सिर को काटने वाला था तो भगवान शिव ने दर्शन देकर उसका हाथ पकड़ लिया। रावण ने उनसे शिव के स्वरूप शिवलिंग को लंका में स्थापित करने का वर माँगा। 

भगवान ने शिवलिंग तो दे दी लेकिन साथ में शर्त रखी कि तुम इसको कहीं रखना नहीं है, अगर एक बार कहीं शिवलिंग रख दी तो वहीं स्थापना हो जाएगी। जब रावण लंका की तरफ़ जा रहा था तो उसे पेशाब लगी। उसने पास में ही खड़े चरवाहे को शिवलिंग को पकड़ा दिया और पेशाब करने के लिए चला गया। चरवाहा शिवलिंग का भार नहीं सह पाया और उसने नीचे रख दी। जिस जगह पर शिवलिंग रखी, वहीं पर बैजनाथ मंदिर है। इस वजह से बैजनाथ में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। 

सूर्यास्त

बैजनाथ मंदिर को देखने के बाद हम पास में ही स्थित शेरावलिंग मोनेस्ट्री पहुँच गए। ये मोनेस्ट्री भट्टू गाँव में स्थित है। शेरावलिंग मोनेस्ट्री का परिसर काफ़ी बड़ा है। हमने मोनेस्ट्री को अच्छे से एक्सप्लोर किया। इतनी शानदार मोनेस्ट्री को पहले कभी नहीं देखा था। ये मोनेस्ट्री काफी बड़ी शानदार है। मैंने स्पीति वैली के काजा शहर में मठ देखा था लेकिन ये तो लाजवाब निकली। इसके बाद हम बिर पहुँच गए। बारिश की वजह हमने पैराग्लाइडिंग तो नहीं की लेकिन कैफ़े में बैठकर शानदार सूर्यास्त देखा। पहाड़ों में सूर्यास्त काफ़ी शानदार होता है। हर जगह का सूर्यास्त एक अलग अनुभव देता है।

बिर बिलिंग में लाजवाब सूर्यास्त देखने के बाद हम वापस कैंपिंग पहुँच गए। रात के समय जब लाइट जली तो कैंपिंग साइट और भी सुंदर लगने लगी। इस कैंपिंग साइट में ये हमारा आख़िरी दिन था। लाजवाब खाना खाने के बाद कुछ ही देर में हम नींद की आग़ोश में चले गए। अगले दिन मौसम साफ़ था। लग रहा था कि बिर हमें विदा करने के लिए तैयार था। थोड़ी देर में हम बिर पहुँच गए। तिब्बती कॉलोनी से हमने बस पकड़ी और निकल पड़े एक नई यात्रा पर। ये यात्राएँ ही तो हैं जो हमें ज़िंदा क़ौम का एहसास दिलाती हैं।

Saturday 21 January 2023

बिर का गुनेहर वाटफॉल और छिपा हुआ बोनगोड़ू झरना

बिर बिलिंग वैसे तो पैराग्लाइडिंग के रोमांच के लिए जाना जाता है लेकिन हम बिना पैराग्लाइडिंग के ही काफी रोमांच देख चुके थे। पहले भीगते हुए फिसलन वाले रास्ते से राजगुंधा पहुँचे। वहाँ पलाचक का ट्रेक किया और फिर लौटे भी खतरनाक रास्ते से। हमने सोचा अब बिर आ गए हैं तो घूमने में वैसा खतरा और कठिनाई वाले रास्ते पर नहीं जाना होगा लेकिन मैं एक बार फिर से गलत निकला। इस बार एक झरने ने मुझे रोमांच और खतरे में डाल दिया।

राजगुंधा वैली से लौटने के बाद हमने बिर में एक सस्ता सा होटल ले लिया। इस दिन तो हमने आराम करके दो दिन की पूरी थकावट मिटाया। हमने जो स्कूटी किराए पर ली थी वो हमारे पास अगले दिन 12 बजे तक थी। अगले दिन सुबह उठकर एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार हो गए। हमारे पास स्कूटी थी तो मैंने सोचा क्यों ना इसका फायदा उठा जाए। हमने सबसे पहले बिर में झरने को देखने के बारे में सोचा। बिर के आसपास दो झरने हैं, गुनेहर और बोनगोड़ू वाटरफॉल।

गुनेहर

मैंने गूगल किया तो गुनेहर गाँव बिर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर दिखाई दे रहा था। हमने स्कूटी उठाई और गुनेहर की तरफ चल पड़े। बिर की काफी गलियों को पार करने के बाद एक जगह आई जहाँ गुनेहर का बोर्ड लगा हुआ था। हमें लगा कि आगे गुनेहर गाँव है तो यहीं झरना होगा हालांकि गूगल कहीं और दिखाई दे रहा था। वहीं एक स्थानीय व्यक्ति से बात की तो पता चला की गुनेहर गाँव तो यहीं लेकिन झरना यहाँ नहीं है। उसके लिए आगे बिलिंग रोड की तरफ जाना पड़ेगा।

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हम बिलिंग रोड की तरफ चल पड़े। कुछ किलोमीटर बाद एक जगह पर एक व्यक्ति बैठे थे। वो बिलिंग की तरफ जा रहे लोगों से 20 रुपए ग्रीन टैक्स के ले रहे थे। उन्होंने ही बताया कि आगे जाने पर दाहिने तरफ एक रास्ता नीचे की ओर जाएगा जो सीधा गुनेहर वाटरफॉल ले जाएगा। कुछ देर में हम उस रास्ते पर पहुँच गए जिसके बारे में पता किया था। उस रास्ते पर चलते हुए हम एक गाँव में पहुँच गए जिसका नाम बोनगोड़ू है। हमने एक घर के सामने अपनी गाड़ी को पार्क कर दिया।

पहला झरना

लोगों से बात की तो पता चला कि यहाँ एक नहीं बल्कि दो झरने हैं। एक तो गुनेहर वाटरफॉल है जिसको हम देखने आए थे और दूसरा बोनगोड़ू झरना है जिसको यहाँ हिडन वाटरफॉल भी कहा जाता है। लोगों ने ये भी कहा कि गुनेहर वाटरफॉल तो पास में ही है लेकिन दूसरे झरने को देखने के लिए आपको गाइड करना ही पड़ेगा। मैंने उनकी बात को नजरंदाज किया और गुनेहर झरने को देखने के लिए निकल पड़ा। गाँव से निकलते ही बायीं तरफ एक बड़ा-सा झरना है जो वाकई में बेहद शानदार है।

हम थोड़ा ऊपर चढ़कर गुनेहर झरने के पास गए। पानी काफी ऊँचाई से गिर रहा था और काफी तेज भी थी। ऐसी जगहों पर आकर मन को तसल्ली-सी मिलती है। हम यहाँ कुछ देर ठहरे और फिर बोनगोड़ू वाटरफॉल को देखने के लिए निकल पड़े। हमने सोचा कि गाइड नहीं करते हैं और अगर झरना मिल जाएगा तो देख लेंगे और नहीं मिलेगा तो वापस लौट आएंगे। यहाँ से पहाड़ का दृश्य भी बेहद सुंदर है। ऐसा लग रहा है कि किसी ने पहाड़ों पर हरी चादर बिछा दी हो। पहाड़ों के बीच से बहती नदी इस नजारो को और भी सुंदर बना रही थी।

कहाँ है झरना?

हम सीधे रास्ते पर चलते हुए एक जगह पहुँचे, जहाँ भूस्खलन से रास्ता टूट चुका था। वहाँ मिले लोगों ने बताया कि आपको यहाँ से घूमकर पहाड़ चढ़ना और फिर नीचे उतरना होगा। मैं बिना गाइड उस पहाड़ पर चढ़ने लगा। ये कोई रास्ता नहीं है लेकिन पुराना रास्ता टूट गया है तो लोग इसी से आते-जाते रहते हैं। कुछ देर बाद मैं सामान्य रास्ते पर लौट आया। एक जगह तो पत्थर पर झरने का नाम लिखा था। इससे मुझे अंदाजा हो गया कि मैं सही रास्ते पर हूं।

एक जगह से तो मुझे ऊँचाई से झरना दिखाई दे रहा था तो मुझे लगा कि अब तो झरने के पास पहुँच ही जाऊँगा। काफी चलने के बाद एक रास्ता नीचे की ओर जा रहा था। मैं उस रास्ते पर ही नीचे पानी तक पहुँच गया लेकिन झरना नहीं मिला। मैं थका-हारा पीछे की तरफ लौट आया। वहाँ मुझे एक रास्ता नीचे की ओर दिखाई दिया और उस पर निशान भी बना हुआ था। मुझे लगा कि अब तो झरना मिल जाएगा लेकिन नीचे पहुँचकर पानी मिला लेकिन झरना नहीं मिला। मुझे पानी की तेज आवाज तो आ रही थी लेकिन मुझे ये नहीं लगा कि इतने अंदर झरना होगा।

आखिर में गाइड

मुझे झरना नहीं मिल रहा था और मुझे काफी दुख रहा था। तब मुझे लगा कि गाइड कर ही लेना चाहिए था। मैं वापस लौटने के बारे में मन बना चुका था तभी मुझे याद आया कि कुछ लोगों के यहाँ पर घर हैं। वहाँ पर लोगों से पूछता हूं कि वाटरफॉल कहाँ है? काफी चलने के बाद वहाँ पहुँचा और एक घर के बाहर से आवाज लगाई तो एक बच्चा आया। उससे मैं झरने का रास्ता पूछा तो वो साथ चलने को तैयार हो गया। अब मैं एक स्थानीय बच्चे के साथ छुपे हुए झऱने को देखने के लिए निकल पड़ा।

मैं पहले तो काफी थक चुका था और वो बच्चा पहाड़ पर काफी तेज चल रहा था। मैं थक रहा था और वो आराम से कदम बढ़ाते जा रहा था। रास्ते में उसका का ही जान पहचान का एक व्यक्ति मिला। उसने ही बताया कि वो गाइड है। मैंने इस बार उसको हाथ से नहीं जाने दिया। अब मैं झरने को देखने के लिए दो लोगों के साथ जा रहा था। मैं अकेले दूसरी बार जिस तरह से नीचे उतरा था, ये लोग मुझे नीचे ले गए। अब मुझे पता चला कि मैं आया तो सही रास्ते पर था लेकिन असली कठिनाई तो पानी के अंदर चलना था।

हिडन वाटरफॉल

मैं पहला कदम जैसे ही पानी में रखा तो ऐसा लगा कि रूह और जिस्म दोनों अलग हो गए हों। पानी बहुत ही ज्यादा ठंडा है और अब मुझे काफी देर तक इसी पानी में चलना है। दो लोगों की मदद से पानी में चलता जा रहा थी। रास्ते में बड़ी-बड़ी चट्टानें मिलीं जिस पर अकेले चढ़ना नामुमकिन-सा है। उन दोनों लोगों की मदद से थोड़ी आसानी तो हो रही थी। एक जगह तो मैं फिसलकर गिर भी गया लेकिन ये सब तो घूमने में चलता ही रहता है। आखिर में मैं उस हिडन वाटरफॉल के पास पहुँच गया।

पानी इतनी ऊँचाई और तेजी से गिर रहा था कि हम 100 मीटर दूर खड़े थे और पानी की बौछारें हम तक पहुँच गईं थीं। हम उन बौछारों से भीग गए थे। यहाँ तक पहुँचना जरूर कठिन है लेकिन जब मैंने इस झरने को देखा तो लगा कि इस खूबसूरत वाटरफॉल को देखने के लिए तो इतनी कठिनाई तो बनती है। कहते हैं ना कि सबसे कठिन रास्तों के बाद ही सबसे सुंदर नजारों के दीदार होते हैं। बोनगोड़ू वाटरफॉल को देखने के बाद हम उसी रास्ते से गाँव तक पहुँचे। वहाँ से स्कूटी उठाई और बिर पहुँच गए। हमने समय से स्कूटी को वापस भी कर दिया और एक खूबसूरत सफर को भी तय कर लिया।

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पलाचक वैली: मेरी कल्पना से भी खूबसूरत है हिमाचल प्रदेश की ये जगह

हर कोई लगातार घूमने की चाहत रखता है कि लेकिन सबको ना ही मौक़ा मिलता है और ना ही सभी के पास समय होता है। ख़ुशक़िस्मत लोग होते हैं जो लगातार घूमने को अपना मक़सद बना लेते हैं। मैं लगातार तो नहीं घूमता लेकिन कोशिश करता हूँ कि महीन में एक नई जगह को एक्सप्लोर किया जाए। घुमक्कड़ी जबसे मेरी ज़िंदगी में आई है, मेरी ज़िंदगी ख़ूबसूरत बन गई है। मुझे पहाड़ों में जाना पसंद हैं और ट्रेकिंग को तो मैं एक चुनौती की तरह देखता हूँ। हिमाचल प्रदेश में मैंने एक ऐसा ही शानदार ट्रेक किया, जिसकी खूबसूरती को बयां करना बेहद मुश्किल है, पलाचक वैली।

हम एक दिन पहले रात को राजगुंधा गाँव पहुँच चुके थे। राजगुंधा तक का सफ़र काफ़ी कठिन और रोमांचक रहा। रात को तो अंधेरे की वजह से राजगुंधा को देख नहीं पाए थे लेकिन सुबह के उजाले में राजगुंधा की ख़ूबसूरती देखने को मिली। ऊँचे और खूबसूरत पहाड़ों से घिरी ये छोटी-सी जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। अपने टेंट से निकलकर कुछ देर पगडंडियों पर चला और काफ़ी देर तक सूरज को उगते हुए देखा। कीबोर्ड वाली ज़िंदगी में कभी-कभार ही सूर्योदय को उगते हुए देखने को मिलता है। जब सूर्योदय पहाड़ी जगह पर देखने को मिले तो वो अनुभव और भी शानदार हो जाता है। इसके बाद मैं तैयार हुआ और फिर पराँठे का नाश्ता किया। इसी बीच आगे का प्लान भी बन रहा था। पहले प्लान बना कि हम ट्रेक नहीं करेंगे सीधे बिलिंग के लिए निकलेंगे लेकिन नाश्ता ख़त्म होते-होते पलाचक वैली ट्रेक करने का तय हो गया।

ट्रेक के लिए तैयार

पलाचक वैली का कोई ट्रेक नहीं है बल्कि थमसर पास ट्रेक का ही भाग है। थमसर पास के ट्रेक में पलाचक जगह मिलती है। पलाचक का ट्रेक बहुत लंबा नहीं है लगभग 7-8 किमी. का ट्रेक है। हमें ऐसा बताया गया कि बहुत ज़्यादा कठिन भी नहीं है। एक दिन पहले यहाँ काफ़ी बारिश हुई थी तो फिसलने का ज़रूर डर था लेकिन तेज़ धूप की वजह से हम पलाचक जाने के लिए तैयार हो गए। कुछ देर में हम पैदल-पैदल आगे बढ़ चले। राजगुंधा में राजमा काफ़ी होता है। लोगों के घरों पर राजमा दिखाई दे रहा था और कुछ लोग एक गाड़ी पर बोरियाँ चढ़ा रहे थे। शायद ये बोरियाँ बाज़ार में बेचने के लिए जा रही होंगी। गाँव से एक रास्ता ऊपर की ओर बढ़ गया। हम उसी रास्ते से आगे बढ़ने लगे। अभी तक रास्ता साधारण था लेकिन अब छोटे-छोटे पत्थर शुरू हो गए थे और बीच-बीच में पानी भी भरा हुआ था।

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कुछ देर खुले रास्ते में चलने के बाद हम पेड़ों के बीच गए। हमारे एक तरफ़ ऊँचे पहाड़ थे और दूसरी तरफ़ पेड़ ही पेड़ नज़र रहे थे हालाँकि रास्ता अब आसान लगने लगा था। ये रास्ता जंगलों से इतना घिरा हुआ था कि धूप हम तक नहीं पा रही थी। कुछ देर बाद हम फिर से एक खुले रास्ते पर गए। यहाँ से हमें राजगुंधा और उह्ल नदी दिखाई दे रही थी। ये खूबसूरत नजारा किसी को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है और हमारा तो थकना भी अभी शुरू नहीं हुआ था। रास्ते में अचानक एक ऐसा पेंच आया जो ऊबड़-खाबड़ था। इसको सबने पार तो कर लिया लेकिन अब कुछ लोग आगे जाना चाहते थे और कुछ लोग ट्रेक नहीं करना चाहते थे। काफ़ी चर्चा के बाद ये तय हुआ कि जो लोग ट्रेक करना चाहते हैं वो आगे चलें और बाक़ी लोग वापस चलें जाएँ। हम राजगुंधा से 7 लोग ट्रेक के लिए निकले थे लेकिन अब 4 लोग ही आगे जा रहे हैं।

पगडंडी और नजारा

खुले रास्ते से बढ़ते हुए हम ऐसी जगह पर पहुँच गए जहां से पहाड़ का एक अद्भुत नजारा दिखाई दिया। पहाड़ों में जैसे-जैसे ऊँचाई वाली जगह पर जाते हैं तो लोग कम देखने को मिलते हैं लेकिन नज़ारे सुंदर होते जाते हैं। कहते हैं ना जहां मनुष्य कम होगा वहाँ प्रकृति का सबसे सुंदर स्वरूप देखने को मिलेगा। यहाँ हम कुछ देर रूके और फिर से आगे बढ़ चले। रास्ते में एक जगह कुछ खच्चर भी मिले। पहाड़ों में ऐसी जगहों पर गाड़ी तो नहीं सकतीं तो सामान ले जाने के लिए खच्चर ही एक माध्यम होता है। कई जगहों पर तो खच्चर पर बैठकर अपनी मंज़िल तक पहुँचते हैं। आगे बढ़ने पर सामने से पहाड़ी भेड़ें आती हुई दिखाई दीं। ये भेड़ें 50-100 की संख्या में नहीं बल्कि कई हज़ार में थीं। शायद चरवाहे इनको कुछ महीनों पहले चराने के लिए ले गए थे और अब वापस लौट रहे हैं। ट्रेक के दौरान ऐसे नज़ारे सफ़र को और शानदार बना देते हैं।


रास्ते में कुछ छोटे-छोटे झरने भी मिल रहे थे जिनको पार करके आगे बढ़ते जा रहे थे। बारिश में ऐसे झरनों को पार करना काफ़ी मुश्किल होता है लेकिन मौसम तो हमारे साथ था। रास्ता चढ़ाई वाला नहीं मिल रहा था लेकिन छोटे-छोटे पत्थर और फिसल की वजह से थोड़ा जोखिम था। मैंने इससे पहले तुंगनाथ, फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, कुंजापुरी, नैना देवी पीक और केदारकंठा का ट्रेक किया है। मुझे ट्रेकिंग का थोड़ा-थोड़ा अनुभव है तो ये रास्ता मुझे ज़्यादा कठिन नहीं लग रहा था। काफ़ी घने जंगलों से होकर हम फिर से एक खुली जगह पर पहुँच गए। यहाँ से हमें कुछ घर दिखाई दिए। वही पलाचक है और मुझे वहीं जाना था। देखकर लग रहा था कि हम कुछ ही मिनटों में वहाँ पहुँच जाएँगे लेकिन ऐसा नहीं होने वाला था।

पलाचक वैली

हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे नदी हमारे पास आती जा रही थी। नदी काफ़ी तेज़ चल रही थी। पहाड़ों के बीच नदी का बहना सबसे सुंदर दृश्यों में से एक है। मैं घटों नदी किनारे बैठ सकता हूँ। मुझे याद है कि नदी किनारे बैठने के चक्कर में घांघरिया ट्रेक में रात कर ली थी। इस बार हमारे पास समय थोड़ा कम था तो मैं ऐसा कुछ करने के मूड में नहीं था। कुछ देर में एक लकड़ी का पुल आया जिससे हम नदी पार करने वाले थे। ये लकड़ी के पुल देखने में बहुत अच्छे लगते हैं लेकिन इनमें ख़तरा भी काफ़ी रहता है। इस नदी को पार करने के बाद मैं उस जगह पहुँचा, जहां एक घर बना हुआ था। इस घर में कुछ लोग थे। बात करने पर पता चला कि वो यहाँ खेती करते हैं सर्दियों में यहाँ से चले जाते हैं। घर के पास में कुछ महिलाएँ एक खेती में मटर काट रही थीं।

नदी के किनारे

हम अपनी मंज़िल पर पहुँच चुके थे। अब हमें यहाँ कुछ देर रूकना था और फिर वापस लौटना था। कुछ लोग हमारे इंतज़ार में राजगुंधा में थे। हमारे लौटने के बाद हमें वापस बिर के लिए निकलना था। इस घर में खाने के लिए मैगी बन सकती थी तो मेरे साथियों ने अपने लिए मैगी खाने का तय किया। मेरा ऐसा कोई मन नहीं था और ना ही भूख लगी थी। मैं मैगी और उस घर से दूर नदी किनारे गया। नदी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। मैं नदी किनारे एक पत्थर पर बैठ गया। पानी में पैर डालने का एक अलग ही मज़ा है लेकिन पानी काफ़ी ठंडा था इसलिए वापस निकालना पड़ा। पहाड़, जंगल और नदी हर जगह ही होती है, नजारा भी अलग ही होता है लेकिन सबसे अलग होता एक नया एहसास। पहाड़ स्थिर होना सिखाते हैं और नदी आगे बढ़ने की सीख देती है।

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मैं वापस पहुँचा तो मैगी बन चुकी थी और खाने वाले खाना शुरू कर चुके थे। मैंने भी उसमें से एक चम्मच स्वाद लिया। तभी मुझे याद आया कि मैं राजगुंधा से एक पराँठा लाया था। बाकी लोग मैगी खा रहे थे और मैं पराँठा। कुछ देर बाद हम वापस राजगुंधा की तरफ़ निकल पड़े। उसी रास्ते से कुछ घंटों बाद हम राजगुंधा पहुँच गए। पहले कुछ खाया और फुर बिर चलने के लिए तैयार हो गए। हम बिर से बरोट होते हुए राजगुंधा आए थे लेकिन अब बिर दूसरे रास्ते से जाने वाले थे। राजगुंधा से सीधा एक रास्ता बिलिंग के लिए जाता है। हम उसी रास्ते से आगे बढ़ चले। रास्ता काफ़ी कठिन था। कुछ ही किलोमीटर पहुँचने में हम काफ़ी समय लग गया। हमने रास्ते में घना कोहरा, मिट्टी और पत्थरों वाले रास्तों का सामना किया। पहले हम बिलिंग पहुँचे और फिर बिर।


 जब मैं दिल्ली से चला था तो मैंने सोचा नहीं था कि इस सफ़र में इतना रोमांच देखने को मिलेगा। पहले एक कठिन रास्ते से राजगुंधा पहुंचा और फिर एक ट्रेक किया। उसके बाद फिर बिर आने के लिए दुर्गम रास्ता चुना। हम अब बिर चुके थे। भारत की एक बेहद मशहूर जगह, जहां हर कोई पैराग्लाइडिंग के लिए आता है। इस जगह पर अभी हमें कुछ और अनुभवों को समेटना था।


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