राजस्थान की यात्रा मेरे लिए कई मायने में शानदार रही। एक ही यात्रा में राजस्थान की इतनी खूबसूरत जगहों को देखना एक ग़ज़ब का एहसास रहा है। राजस्थान के हर शहर की अपनी अलग खूबी है। उदयपुर में तीन दिन घूमने के बाद मुझे फिर से राजस्थान के एक नये शहर की यात्रा पर निकलना था। उदयपुर से कुछ घटों की यात्रा के बाद मैं तीर्थराज पुष्कर जाने वाला था। पुष्कर राजस्थान के सबसे छोटे और शानदार शहरों में से एक है। यहाँ की गलियों में टहलने का एक अलग ही मज़ा है और यहाँ की आबोहवा भी शानदार है। तो आइए चलते हैं पुष्कर की यात्रा पर।
उदयपुर से सुबह 6 बजे हम पैदल-पैदल रेलवे स्टेशन की तरफ़ चल पड़े। हम जहां ठहरे थे, वहाँ से रेलवे स्टेशन दूर नहीं था। कुछ ही मिनटों में मैं उदयपुर रेलवे स्टेशन पहुँच गया। हमारी ट्रेन पहले से ही प्लेटफ़ार्म पर लगी हुई थी। हम जाकर अपनी सीट पर बैठ गए। कुछ देर के इंतज़ार के बाद ट्रेन उदयपुर से चल पड़ी। ट्रेन से सुरमई सुबह का नजारा वाक़ई में खूबसूरत होता है। शानदार सूर्योदय को देखते हुए ट्रेन अपनी गति से बढ़ती जा रही थी। ट्रेन चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन पर रूकी। पहले हम इस शहर को एक्सप्लोर करने वाले थे लेकिन अब हमारी यात्रा में शामिल नहीं है। हम इस रेलवे स्टेशन से पोहा का नाश्ता किया। लगभग 11 बजे ट्रेन अजमेर रेलवे स्टेशन पहुँची।
अजमेर-पुष्कर
अजमेर रेलवे स्टेशन। |
ब्रह्मा मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा भी है। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी जब पुष्कर में यज्ञ करने के लिए धरती पर आए तो देवी-देवता भी साथ में आए। ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री को भी इस यज्ञ में शामिल होना था लेकिन उनको देर हो रही थी और शुभ मूहुर्त निकलता जा रहा था। तब ब्रह्मा जी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर यज्ञ शुरू कर दिया। जब सावित्री यज्ञ स्थल पर पहुँची तो उन्होंने ब्रह्मा जी के बग़ल में किसी स्त्री को देखा। क्रोधित होकर सावित्री जी ने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि पृथ्वी लोक में आपकी कहीं भी पूजा नहीं होगी। देवताओं ने जब सावित्री जी आग्रह किया तब उन्होंने कहा कि सिर्फ़ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी। बाद में इसी पुष्कर में ब्रह्मा जी का भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर बहुत बड़ा नहीं है लेकिन मंदिर के हर पत्थर पर लोगों का नाम गुदा हुआ है। ये वही लोग होंगे जिन्होंने इस मंदिर को बनवाने में मदद की होगी। मंदिर के गर्भ गृह में ब्रह्मा जी के साथ गायत्री माता की मूर्ति है। मंदिर को देखने के बाद हम बाहर आ गए।
पुष्कर सरोवर
ब्रह्मा मंदिर के पास में ही एक मिठाई की दुकान पर हम मालपुआ लिया। पुष्कर की सबसे शानदार चीज मालपुआ है, इसे खाकर मज़ा ही आ गया। इसके बाद हम पुष्कर सरोवर की तरफ़ चल पड़े। पुष्कर लेक के चारों तरफ़ 52 घाट है। कुछ देर में हम पुष्कर लेक पहुँच गए। इस समय पुष्कर और सरोवर दोनों में ही लोगों की भीड़ नहीं थी जिससे मुझे यहाँ मज़ा आ रहा था। पुष्कर सरोवर की भी एक पौराणिक कथा है। ब्रह्मा जी को पृथ्वी लोक पर एक बड़ा यज्ञ करना था। उन्होंने जगह चुनने के लिए कमल धरती पर भेजा। कमल का फूल जिस जगह गिरा, उसे ब्रह्मा जी ने यज्ञ के लिए चुना। ये जगह राजस्थान का पुष्कर शहर था। फूल जिस जगह गिरा वहाँ एक बड़ा-सा सरोवर बन गया जिसे आज हम और आप पुष्कर सरोवर के नाम से जानते हैं।
पुष्कर सरोवर। |
पुष्कर सरोवर के घाटों पर कुछ देर टहलने के बाद हम फिर से पुष्कर की गलियों में थे। मैंने यहाँ फलाफेल का स्वाद लिया, पुष्कर जाएँ तो फलाफेल ज़रूर खाएँ। इसके बाद हम अपने होटल आ गए। कुछ देर आराम करने के बाद शाम को हम फिर से पुष्कर सरोवर के घाट पर पहुँच गए। यहाँ हमने शाम की आरती देखी और सूर्यास्त देखा। सूरज डूबने के बाद बाद पूरा लाल हो गया। ऐसा लग रहा था पुष्कर के बादलों को किसी ने चटक लाल रंग से पोत दिया हो। रात को हमने ब्रह्मा मंदिर के पास एक ढाबे पर दाल बाटी चूरमा खाया। खाना खाने के बाद जब हम कमरे पर लौट रहे थे, तब पुष्कर में ज़्यादातर दुकानें बंद हो चुकी थीं। इसी खाली पुष्कर को देखने के लिए मैं दूसरी बार यहाँ आया था।
सावित्री मंदिर
अगले दिन हमें सावित्री मंदिर जाना था। सावित्री मंदिर पुष्कर में एक पहाड़ी पर स्थित है। पुष्कर की गलियों से होते हुए हम कुछ देर में उस जगह पर पहुँच गए, जहां से मंदिर तक जाने के दो रास्ते हैं। पहला, पैदल-पैदल सीढ़ियों से पैदल जाइए और दूसरा रोपवे ले लीजिए। हमने पैदल जाने का तय किया। हम आराम-आराम से सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे थे। रोपवे हमारे पास से आता-जाता दिख रहा था। शुरू में चढ़ाई आसान लगी और जब हम काफ़ी सीढ़ियाँ चढ़ गए तब मुश्किल आनी शुरू हुई। बाद में खड़ी सीढ़ियाँ मिलने लगी। उससे भी बड़ी बात सीढ़ियों पर लंगूरों का एक पूरा झुंड था। लगभग 100 सीढ़ियों पर लंगूर बैठे हुए थे और एक लंगूर ने तो लगभग हमें डरा ही दिया था। ऊँचाई से पहुँचने के बाद पुष्कर और भी ज़्यादा शानदार लग रहा था लेकिन अभी हमारा ध्यान मंदिर तक पहुँचने पर था। लगभग डेढ़ घंटे की चढ़ाई के बाद हम मंदिर पहुँच गए। सावित्री मंदिर के परिसर में कई देवियों के मंदिर हैं और यहाँ फ़ोटो भी लेना मना है। मंदिर से दूर-दूर तक पहाड़ और उनके बीच में बसा पुष्कर दिखाई दे रहा था। यहाँ काफ़ी हवा भी चल रही थी।
रंगजी मंदिर। |
मंदिर को देखने के बाद अब हमें नीचे लौटना था। चढ़ाई से ज़्यादा उतरना आसान होता है लेकिन फिर भी नीचे पहुँचने में काफ़ी समय लग जाता। इसलिए हमने रोपवे से जाने का तय किया। मैं पहली बार रोपवे में बैठा। रोपवे से पहाड़ों का नजारा अच्छा था। हम कुछ ही देर में पुष्कर पहुँच गए। इसके बाद हम घाट के पास बने एक प्राचीन मंदिर पहुँचे। इस मंदिर का नाम रंगजी मंदिर है। भगवान विष्णु को समर्पित रंगजी को 1823 में सेठ पूरनमल गनेरीवाल ने बनवाया था। द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर में कहीं-कहीं राजपुताना शैली का भी इस्तेमाल किया गया है। इस मंदिर के अंदर फ़ोटो और वीडियोग्राफ़ी करना मना है। मंदिर को देखने के बाद मैंने एक बार फिर से मालपुआ का स्वाद लिया। इसके बाद होटल से बैग उठाया और निकल पड़ा बस स्टैंड की ओर। इस तरह मेरी पुष्कर और राजस्थान की यात्रा पूरी हुई।
No comments:
Post a Comment