Friday 29 July 2022

कल्पा: किन्नौर घाटी का एक छोटा-सा गांव, कल्पना से भी खूबसूरत है ये जगह

घूमते हुए अब तक पहाड़ी जगहों पर जा चुका हूं लेकिन किन्नौर वैली के कल्पा जैसा खूबसूरत कोई नहीं लगा। कल्पा की वादियों में एक अलग-सा सुकून है। यहां नी कहीं जाने की बहुत जल्दी होती है और ना कुछ करने का मन करता है। कल्पा की गलियों में टहलिए और स्थानीय लोगों से बातें करते रहिए, आपका दिन ऐसे ही निकल जाएगा। जब शहर आपको कचोटने लगे या किसी शानदार जगह पर जाने का मन हो तो मेरी तरह कल्पा चले आइए।

हम रिकांगपिओ से बस से कल्पा में चुगलिंग आ चुके थे और हमें जाना सुसाइड प्वाइंट था। हम लगभग 20 स्थानीय महिलाओं के साथ एक जगह पर खड़े हो गए। कुछ देर इंतजार करने के बाद एक पिकअप आई। जिसमें अंदर कुछ सीटें हैं और पीछे खड़े होने की बहुत सारी जगहें। ज्यादातर महिलाएं आगे बैठ गईं। हम पिकअप में कुछ महिलाओं के साथ पीछे चढ़ गए। मैं पहाड़ों में पहली बार किसी खुली गाड़ी में चढ़ा।

सुसाइड प्वाइंट

कुछ देर में हमारी गाड़ी हवा से बातें करने लगी। हम स्थानीय महिलाओं से बातें करने लगे और आसपास के नजारे देखने लगे। वो महिलाएं रोघी गांव में शादी में आईं हैं। सुसाइड प्वाइंट रोघी गांव से पहले पड़ता है। मेरा मन पहाड़ी शादी को देखने का बहुत मन है लेकिन इस बार मौका नहीं आया। कभी मौका लगा तो पहाड़ी शादी को करीब से जरूर देखूंगा। रास्ते में कई सारे होटल और होमस्टे मिलने लगे। हमें लौटकर इन्हीं में से किसी में ठहरना होगा।

रास्ते में खूब सारे सेब के बागान दिखाई दे रहे थे। इन्हीं बागानों ऊंचे पहाड़ों को देखते हुए हम सुसाइड प्वाइंट पहुंच गए। यहां पर आई लव किन्नौर लिखा है और लोहे की रेलिंग लगी हुई है। हवा काफी तेज चल रही है। मैं जब इस जगह पर पहुंचा यहां कोई नहीं था लेकिन कुछ देर बाद कई गाड़ियां आ गईं। सभी अलग-अलग पोज में फोटो खिंचवा रहे हैं। हम यहां कुछ देर रूककर खूबसूरत वादियों को देखने लगे।

व्यू प्वाइंट

रास्ते में हमें कुछ होमस्टे और होटल दिखाई दिए थे। उस जगह तक हमने पैदल जाने का तय किया। यहां पर पैदल चलने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। हम पैदल-पैदल आगे बढ़ने लगे। रास्ते में कई खूबसूरत नजारे हमारे इंतजार में हैं। चलते-चलते एक जगह पर खूब सारी भेड़ें और एक चरवाहा मिला। हवा अभी भी काफी तेज चल रही है। एक तरफ हरे-हरे पहाड़ और फिर दूर तलक ऊंचे बर्फ से ढंके पहाड़।

रास्ता और नजारे दोनों की खूबसूरत हैं। पहाड़ी रास्तों पर चलने में भी बोरियत नहीं आती है। पैदल चलते हुए मुझे नीचे की तरफ एक व्यू प्वाइंट दिखाई दिया। हम रोड से नीचे उतरकर उस तरफ चलने लगे। कुछ देर बाद हम उस जगह पर पहुंच गए। यहां से दूर-दूर तक खूबसूरत और हरियाली से भरी वादियों का नजारा दिखाई। ऐसा नजारा कम ही देखने को मिलता है। यहां भी हवा काफी तेज है और हम मुस्कुराते हुए वापस लौटने लगे। वापस लौटते समय रोड तक पहुंचने में हालत खराब हो गई।

शिवालिक

हम फिर से रोड पर चलने लगे। कुछ देर बाद हम होटल खोजने लगे। पहले हम एक होटल में गए तो जगह नहीं मिली लेकिन उसके पास में ही होटल शिवालिक में बात बन गई। हमनें 1000 रुपए का कमरा ले लिया। सबसे अच्छी बात होटल की बालकनी से चीनी गांव और बर्फ से ढंके पहाड़ दिखाई दे रहे हैं। कल्पा में सब अच्छा है लेकिन छोटे ढाबे नहीं है। होटलों के ही रेस्टोरेंट आपको ज्यादा मिलेंगे।

हमने शिवालिक होटल के ही रेस्टोरेंट में खाना खाया। पूरा दिन हमें कल्पा के नजारों को देखते रहे और शाम के समय कुछ काम किया। रात में हमें कल्पा में एक ढाबा मिल गया। हम वहां गए तो हमारी मुलाकात वहां के एक स्थानीय लड़के से हुई। उसने हमें सर्दियों में कल्पा कैसे दिखता है? ये बताया भी और अपने मोबाइल में दिखाया भी। बातों में ही उसने बताया कि कल्पा में ही श्याम सरण नेगी रहते हैं।

श्याम सरण नेगी

श्याम सरण नेगी वो व्यक्ति हैं जिन्होंने आजाद भारत के पहले आम चुनाव में पहला वोट डाला था। दरअसल पूरे देश में 1952 में वोट पड़े थे लेकिन हिमाचल के किन्नौर में सर्दी के चलते 4 महीने पहले वोट डलवा लिए गए थे और 1951 में पूरे भारत में पहला वोट श्याम सरण नेगी जी ने ही डाला था। मुझे ये तो पता था कि वो हिमाचल प्रदेश में रहते हैं लेकिन ये नहीं जानता था कि कल्पा में ही रहते हैं।

श्याम सरण नेगी जी का घर।
हम खाना खाकर अपने होटल में वापस लौट आए। अब हमने कल सबसे पहले श्याम सरण नेगी जी के घर जाने का प्लान बनाया। अगले दिन सुबह 8 बजे हम श्याम सरण नेगी जी के घर की खोज में निकल पड़े। एक स्थानीय व्यक्ति ने उनके घर का रास्ता बताया। सड़क से थोड़ा ऊपर की ओर जाने पर एक खूबसूरत पहाड़ी घर दिखाई दिया। हमने दरवाजे की कुंडी बजाई तो नेगी जी के लड़के आए। उन्होंने बताया कि नेगी जी अभी सो रहे हैं 9 बजे के बाद आइए।

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हम कल्पा की गलियों में टहलने लगे। एक दुकान पर हमने चाय ले ली। वहां एक छोटे से बच्चे से मैंने बात की। बच्चे का नाम तेग बहादुर है और पीठ पर बस्ता टांगे हुए। पूछने पर बताया कि वो नेपाल का है और पापा के साथ यहां रहता है। कल्पा में आपको नेपाल और बिहार के लोग काम करते हुए काफी संख्या में मिल जाएंगे। ऐसे ही टहलते हुए समय निकल गया और हम फिर से श्याम सरण नेगी जी के घर पहुंच गए।

इस बार घर में नेगी जी की बहू मिलीं। वो ही हमें घर के अंदर एक लकड़ी के बने कमरे में ले गईं। उसी कमरे में एक बिस्तर पर श्याम सरण नेगी जी बैठे हुए हैं। मुझे उनके चेहरे में अपने परदाद का अक्स नजर आया। श्याम सरण नेगी जी की उम्र 105 साल हो गई है। नेगी जी ने पूछा कहां से आए हो और कहां ठहरे हो? श्याम सरण नेगी जी को कम सुनाई देता है। अब वो बाहर ज्यादा जाते भी नहीं है। मेरे लिए तो उनसे मिलना ही बहुत बड़ी बात है।

लगभग आधे घंटे के बाद हम श्याम सरण नेगी जी के घर से वापस आ गए। हमने अपने होटल से चेकआउट कर दिया। अब हमें रिकांगपिओ जाना था। हमें एक रास्ता मिल गया था जो सीधा चीनी गांव जा रहा था और वहां से हम बस से पिओ जाने वाले थे। कल्पा कई मायनों में यादगार रहा। सबसे पहले तो ऐसी खूबसूरत जगह मैंने देखी नहीं है और सबसे बड़ी बात श्याम सरण नेगी जी से मुलाकात हो गई। अभी तो हिमाचल यात्रा काफी दूर जाने वाली है।


Tuesday 26 July 2022

रामपुर बुशहर से रिकांगपिओ होते हुए कल्पा तक की यात्रा शानदार रही

घूमते ही कई बार आप ऐसी जगहों पर पहुँच जाते हैं जिसकी आप कल्पना ही कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश की यात्रा में हमने एक ही ऐसी ही शानदार जगह देखी। कल्पा हमारी कल्पना से भी शांत और खूबसूरत निकला। कल्पा तक पहुँचने की यात्रा हमारी हिमाचल प्रदेश के रामपुर बुशहर से शुरू हुई। हमें हिमाचल आए एक दिन हुआ था लेकिन अभी से मेरा दिल यहाँ लगने लगा था।

5 जून 2022। हम सुबह 4 बजे उठकर तैयार होने लगे थे क्योंकि रामपुर बुशहर से रिकांगपिओ के लिए सुबह 5 बजे पहली बस निकलती है। हम इसी बस से रिकांगपिओ जाना चाहते हैं। रामपुर बुशहर शिमला जिले में आता है और रिकांगपिओ किन्नौर जिले में पड़ता है। अब हम किन्नौर घाटी की यात्रा पर जाने वाले हैं। तैयार होकर थोड़ी देर में हम रामपुर की सड़कों पर चल लगे। रामपुर पूरी से सुनसान था और अंधेरा भी था। सतलुज नदी के बहने की आवाज हमें साफ-साफ सुनाई दे रही है।

रामपुर बुशहर

हम जहाँ रूके थे वहाँ से बस स्टैंड 1 किमी. की दूरी पर है। बस स्टैंड पहुँचने में हमें आधा घंटे का समय लग गया। रामपुर बुशहर बस स्टैंड पर भी अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। हम वहीं एक बेंच पर बैठ गए। थोड़ी देर बाद एक बस स्टार्ट हुई। पता किया तो वही बस रिकांगपिओ जाने वाली थी। हम अपने सामान के साथ बस में बैठ गए। बस पूरी तरह से खाली पड़ी हुई थी। ठीक 5 बजे बस रामपुर बुशहर से चल पड़ी।

थोड़ी देर बाद हम रामपुर बुशहर से निकलकर पहाड़ी रास्तों पर आ गए। उजाला होने लगा लेकिन जब तक सूरज ना निकले दिन का आना नहीं माना जाता। रामपुर बुशहर से रिकांगपिओ की दूरी 90 किमी. है। बस में हमारे अलावा कुछ और भी लोग आ चुके हैं चारों तरफ बस पहाड़ ही पहाड़ नजर आ रहे हैं। रास्ते में कई गाँव भी मिले लेकिन इतनी सुबह होने के चलते लोग कम दिखाई दिए। हालांकि कुछ लोग टहलते हुए जरूर नजर आए। 7 बजे हमारी बस बधाल नाम की जगह पर रूकी। यहाँ पर एक होटल था जहाँ नाश्ता किया जा सकता है, हमने गर्म-गर्म चाय की चुस्की ली।

किन्नौर वैली

थोड़ी देर बाद बस चल पड़ी। मेरे कैमरे को देखकर बस के कंडक्टर ने अपनी सबसे आगे वाली सीट मुझे दे दी। अब नजारे बेहद शानदार दिखाई दे रहे थे जो ड्राइवर देख रहा था, वही मैं देख रहा था। अब मेरी पिओ तक की यात्रा शानदार होने वाली थी। थोड़ी देर बाद एक गेट आया जिस पर लिखा था, किन्नौर जिले में आपका स्वागत है। इस तरह हमने किन्नौर घाटी में प्रवेश कर लिया।

किन्नौर के शुरू होते ही रास्ता और नजारे दोनों खूबसूरत होने लगे। कंडक्टर ने मुझे बताया कि अब वो सड़क आने वाली है जिसे पहाड़ को काटकर बनाया गया है। थोड़ी देर में काले पहाड़ के नीचे से बस गुजरने लगी। ऐसे लग रहा था कि हम किसी गुफा से गुजर रहे हैं जो एक तरफ से खुली हुई है। इन्हीं खूबसूरत नजारों को देखते हुए हमारी यात्रा बढ़ रही थी। बस में बज रहे पुराने गाने इस सफर को और भी शानदार बना रहे थे।

करचम डैम

बात करते हुए कंडक्टर ने बताया कि अभी कुछ देर बाद करचम डैम आएगा। डैम से पहले दाई तरफ की ओर पुल गया है। अगर आपको रकचम, सांगला और चितकुल जाना है तो उसी रास्ते से जाना होगा। अगर आपके पास खुद की गाड़ी है तो उस पुल के रास्ते जा सकते है। अगर आप बस से जाना चाहते हैं तो इन जगहों के लिए रिकांगपिओ से आपको बस मिल जाएगी।

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थोड़ी देर बाद करचम बांध भी आ गया। अब हम पिओ के रास्ते पर थे। जैसे ही रिकांगपिओ पास आने लगा बर्फ से ढंके पहाड़ हमें दिखाई देने लगे। इस नजारे को देखकर मन एकदम खुश हो गया। जून के महीने में बर्फ देखने को मिले तो क्या ही कहने? कंडक्टर से बात करने पर पता चला कि कल्पा यहाँ से 10 किमी. है। उसके लिए बस रिकांगपिओ बस स्टैंड के बाहर से मिलेगी। पहले हमारा प्लान रिकांगपिओ और बाद में कल्पा घूमने का था लेकिन अब हम कल्पा जाने वाले थे।

कल्पा

रिकांगपिओ बस स्टैंड।
कुछ देर बाद हम रिकांगपिओ बस स्टैंड पर खड़े थे। सुबह के 9 बजने वाले थे और कल्पा वाली बस 9:30 बजे आने वाली थी। बस में अभी समय भी था और सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। बस स्टैंड के पास में ही एक दुकान में घुस गए। मस्त परांठा खाया और वापस रिकांगपिओ बस स्टैंड के बाहर खड़े गए। थोड़ी देर बाद हिमाचल परिवहन की एक चमचमाती बस आई। हम उसी बस में बैठ गए।

कंडक्टर ने बताया कि ये बस चुगलिंग तक जाएगी। अब हमारे दिमाग में यही था कि कल्पा कैसे पहुँचेंगे। छोटे-छोटे रास्ते से होकर बस बढ़ रही थी और खिड़की से बर्फ से ढंके पहाड़ों का नजारा शानदार दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर बाद बस चीनी मार्केट में रूकी। कंडक्टर ने हमें बताया कि ये मिनी कल्पा और ऊपर कल्पा है। हम आपस में यही बात कर रहे थे, तभी एक स्थीनीय व्यक्ति ने हमें टोका।

उन्होंने बताया कि यही पुराना और असली कल्पा है। ऊपर तो सिर्फ टूरिस्ट प्लेस हैं इसिलए वो ज्यादा फेमस है। कुछ देर में बस आगे चल पड़ी। कुछ ही मिनटों में बस चुगलिंग पहुँच गई। हमारे साथ 20 महिलाएं नीचे उतरीं। सभी महिलाएं पारंपरिक परिधान भी थीं। इन महिलाओं को भी आगे गाँवों में जाना था। उनकी एक गाड़ी आने वाली थी।

कंडक्टर ने उन लोगों से बात करके हमें सुसाइड प्वाइंट तक छोड़ने की बात कर ली। अब हम उस गाड़ी के इंतजार में थे। कई बार मंजिल से ज्यादा खूबसूरत रास्ता होता है। मैं न तो किसी बाइक से था और खुद की गाड़ी से था। हम तो बसों से ही इस हिमाचल यात्रा को कर रहे थे और आगे भी इसी तरह बढ़ने वाले थे लेकिन शिमला जिले से किन्नौर का रास्ते बेहद खूबसूरत है। इस रास्ते पर जाए बिना हिमाचल यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी।

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Saturday 23 July 2022

रामपुर बुशहर: ऊंचे पहाड़ों और खूबसूरत नदी के किनारे बसा हिमाचल प्रदेश का अद्भुत शहर

कुछ जगहें ऐसी होती हैं जो आपकी घूमने की लिस्ट में नहीं होती हैं लेकिन जब आप उस जगह पर पहुंचते हैं तो आप अचंभित रह जाते हैं। ऐसी छोटी जगहें वाकई में कमाल की होती हैं। ऐसी ही शानदार और कमाल की जगह है, रामपुर बुशहर। हिमाचल की यात्रा के पहले मैंने इस जगह का नाम नहीं सुना था लेकिन हिमाचल में मेरा पहला दिन इसी शहर को देखने में बीता।

सुबह 10 बजे हमारी बस रामपुर बस स्टैंड पर पहुंची। हम बस स्टैंड के पास किसी होटल में रूकना चाहते थे ताकि अगले दिन अगली जगह के लिए जल्दी निकल सकें। हम बस स्टैंड से बाहर रूकने के ठिकाना खोजने के लिए पैदल निकल पड़े। हम चलते जा रहे थे लेकिन अब तक कोई होटल या गेस्ट हाउस नहीं दिखाई दिया। थोड़ी देर बाद हम मुख्य सड़क पर पहुंच गए जहां दोनों तरफ पहाड़ और बीच में सतलुज नदी बह रही थी। वाकई में सुंदर नजारा था।

नई जगह नए लोग

रामपुर बुशहर।
लगभग 1 किमी. चलने के बाद हम एक कमरा मिला। हमें कमरा रोड किनारे मिला। जहां से सामने एक छोटी-सी मोनेस्ट्री, रामपुर का बाजार और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। हमें जल्दी रामपुर बुशहर को देखने के लिए निकलना चाहते थे। कमरे में सामान रखा और नहा धोकर रामपुर बुशहर की सड़कों पर आ गए। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था और भूख जोर की लगी थी।

हम रामपुर बुशहर की सड़क पर खाने की खोज में निकल पड़े। हमारा कुछ चाइनीज खाने का मन था। मुख्य सड़क पर नानवेज वाली दुकानें ज्यादा थीं और कुछ जगहों पर परांठा मिल रहा था। मैंने यहां पर मछली का पकौड़ा दुकान पर बेचते हुए देखा। हम मुख्य सड़क से नीचे गलियों में आ गए। कुछ ही दूर चले थे कि एक दुकान पर चाइनीज फूड मिल रहा था। इस दुकान को महिलाएं चला रहीं थी। दुकान पर कोई मर्द नहीं था, ये देखकर अच्छा लगा।

मैंने थुकपा पहले कभी नहीं खाया था इसलिए उसे ही मंगाया। गर्म-गर्म थुकपा वाकई में शानदार था। बिल्कुल साधारण था, कोई मिर्च मसाला नहीं। थुकपा का स्वाद लेने के बाद हम रामपुर की गलियों में घूमने लगे। बाहर से रामपुर छोटा लग रहा था लेकिन असली रामपुर तो इन गलियों में था। यहां टीवी, फ्रिज से लेकर छोटी-बड़ी हर प्रकार की दुकान थी। बाजार में बहुत ज्यादा भीड़ भी नहीं थी। मुझे तो इस शहर के छोटे-से बाजार से प्यार हो गया था।

मंदिर

रामपुर बुशहर में घूमते हुए हमें एक पुराना मंदिर दिखाई दिया। ये रामपुर बुशहर का भूतेश्वर नाथ मंदिर है। हिमाचली शैली में बने इस मंदिर में कोई नहीं था। इस मंदिर को देखने के बाद अब हमें नदी किनारे जाना था। चलते-चलते नीचे जाते हुए सीढ़ी मिली। ये सीढ़ी हमें नदी के पास में तो ले गईं लेकिन नदी के किनारे नहीं। यहां पर एक मंदिर भी था, श्री जानकी माई गुफा मंदिर।

श्री जानकी माई गुफा मंदिर।
रामपुर बुशहर का श्री जानकी माई गुफा मंदिर लगभग 150 साल पुराना मंदिर है। शिखर शैली में बने इस मंदिर को यहां के स्थानीय महंतों ने बनवाया था। लकड़ी और पत्थर से बने इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों के अलावा भी कई देवी-देवताओं की मूर्ति है। मंदिर में एक पुजारी भी थे जिन्होंने हमें प्रसाद भी दिया। नदी किनारे बना ये मंदिर वाकई में शानदार है।

सतलुज

सतलुज नदी।
मंदिर को देखने के बाद अब वापस रामपुर की गलियों में आ गए। अब हमें नदी किनारे जाना था। रामपुर बुशहर में सतलुज नदी बहती है। हम नदी पर बने पुल पर पहुंच गए। यहां से नजारा तो खूबसूरत था ही हवा भी तेज चल रही थी। नदी के दोनों तरफ रामपुर बुशहर है। इस पुल से स्थानीय लोग आते-जाते हैं। हम भी इसी पुल को पार करके उस पार पहुंच गए।

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थोड़ा आगे चलने पर एक जगह से नदी किनारे जाने के लिए सीढ़ियां गईं थीं। उन सीढ़ियों से उतरकर हम नदी किनारे पहुंच गए। नदी में पैर डाला तो दिमाग झन्ना गया। पानी बहुत ज्यादा ठंडा था। रामपुर बुशहर में सर्दी नहीं थी लेकिन पानी बहुत ज्यादा ठंडा था। यहां से रामपुर बेहद सुंदर लग रहा था। चारों तरफ हरियाली, ऊंचे पहाड़ और पास से कलकल करती हुई नदी। नदी की धार बहुत तेज थी। हम नदी किनारे एक पत्थर पर बैठ गए। नदी किनारे बैठना हमेशा मुझे सुकून देता है।

बौद्ध मंदिर

बौद्ध मंदिर।
काफी देर तक बैठने के बाद हम वापस चल पड़े। घूमते-टहलते हुए अपने कमरे पर वापस आ गए। हमने थोड़ी देर आराम करने का मन बनाया। बेड पर लेटे तो नींद आ गई और आंख खुली शाम 5 बजे। बालकनी से देखा तो शाम हो चुकी थी और पहाड़ों पर धुआं दिखाई दे रहा था। पहाड़ों में गर्मियों के दौरान आग काफी लगती है। थोड़ी देर में हम होटल के बाहर थे।

हमारे कमरे के सामने एक मोनेस्ट्री थी। हम रोड पर पार करके मोनेस्ट्री में पहुंच गए। अंदर आने पर पता चला कि ये दुंग ग्युर बौद्ध मंदिर है। 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और 14वें दलाई लामा ने इस बौद्ध मंदिर का लोकार्पण किया था। बौद्ध मोनेस्ट्री का गेट बंद था तो हम बस चारों तरफ से देखकर बाहर आ गए। हम फिर से रामपुर की गलियों में थे।

हमने दिन में थुकपा खाया था तो अब हम रोटी सब्जी जैसा कुछ खाना चाहते थे। लोग से पूछते-पूछते काफी देर बाद हमें एक छोटा-सा भोजनालय मिला। यहां हमने बेहद लजीज राजमा चावल खाए। पेट पूजा करने के बाद हम रामपुर की गलियों में थे। हमें फिर से एक और मंदिर दिखाई दिया। मैं हनुमान घाट मंदिर में घुस गया। मंदिर काफी खूबसूरत था और पहाड़ी शैली में बना हुआ था। हिमाचल में ज्यादातर मंदिर इसी शैली में बने होते हैं। मंदिर को देखने के बाद हम वापस अपने कमरे में आ गए।



रात में रामपुर बुशहर किसी आसमान के जैसा लग रहा थी जहां तारे-तारे चमक रहे थे। पूरा दिन रामपुर बुशहर में घूमने के दौरान मुझे कोई टूरिस्ट नहीं मिला। ज्यादातर लोग के लिए रामपुर गेटवे की तरह है। वे यहां आते हैं और यहां से रिकांगपिओ, कल्पा और नाको के लिए चले जाते हैं। रामपुर बुशहर बेहद छोटा लेकिन प्यारा शहर है। मैं इस जगह को हिमाचल प्रदेश की सबसे अच्छी जगहों में रखूंगा। 

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Friday 22 July 2022

पहली हिमाचल यात्रा: दिल्ली से रामपुर बुशहर की यात्रा काफी लंबी व शानदार रही!

मैंने जब से घूमना शुरू किया है, पहाड़ों में ही सबसे ज्यादा घूमा है। पहाड़ों में इतना घूमने के बाद मैं दावे से कह सकता हूं कि अगर कहीं जन्नत है तो वो इन पहाड़ों में है। इसके बावजूद मेरे मन में एक बात कचोटती थी कि अब तक हिमाचल घूमने नहीं जा पाया हूं। मैं हिमाचल जाना चाहता था लेकिन किसी न किसी वजह से हर बार प्लान कैंसिल हो जाता था। अबकी मेरे पास मौका था तो मेरे हिमाचल जाने का प्लान बनाया और सफल भी हुआ।

मैंने अपनी इस यात्रा के बारे में कई लोगों को बताया। कुछ लोगों ने जाने के लिए हामी भर दी लेकिन कहते हैं न दोस्त तो होते ही हैं प्लान कैंसिल करने के लिए। अंत समय में ज्यादातर लोगों ने हिमाचल जाने से इंकार कर लिया। अब इस हिमाचल यात्रा को दो लोग करने वाले थे। हम दोनों लोग ही पहली बार हिमाचल जा रहे थे।

यात्रा शुरू

3 जून 2022। मैं अपने घर से दिल्ली पहुंच गया। मेरे साथ जाने वाला साथी दिल्ली में ही रहता है। हम दोनों शाम 6 बजे आईएसबीटी कश्मीरी गेट पहुंच गए। मैंने हिमाचल परिवहन की वेबसाइट से पहले ही रोडवेज में टिकट बुक कर ली थी। हम दिल्ली से रामपुर बुशहर जा रहे थे। तय समय से बस भी आ गई और हमने अपनी सीट भी पकड़ ली। शाम 6:30 बजे बस दिल्ली से चल पड़ी।

मुझे पूरा दिल्ली एक जैसा लगता है। इतने साल दिल्ली में रहने के बाद भी ये शहर मुझे अपना नहीं लगा। इस शहर से मैं दूर ही रहना पसंद करता हूं। हम दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों से आगे बढ़ते जा रहे थे। दिल्ली शहर से निकलने के बाद भी दिल्ली से निकलने में काफी समय लगता है। दिल्ली का विकास दिल्ली के आसपास भी फैला हुआ है। बातें करते-करते रात भी हो गई।

रात के बाद सुबह

रात 9 बजे बस अंबाला से पहले नीलखेड़ी में एक ढाबे पर रूकी। हाईवे पर बने इन ढाबों पर बसें रूकती तो हैं लेकिन यहां कभी खाने का मन नहीं करता है। हर सामान यहां बहुच महंगा होता है। लगभग आधे घंटे बस इस ढाबे पर रूकी रही और हम हाईवे के किनारे खड़े होकर आती-जाती गाड़ियों को देखने लगे। कुछ देर में बस चल पड़ी। हम फिर से अंधेरे रास्ते में बढ़ गई।

चंडीगढ़ बस स्टैंड।
अब नींद आने लगी थी लेकिन बस का सफर सोने कहां देता है? हम सो रहे थे लेकिन बार-बार नींद खुल जा रही थी। रात 12 बजे बस चंड़ीगढ़ पहुंची। उसके बाद कालका। कालका वही जगह है, जहां से शिमला के लिए टॉय ट्रेन चलती है। कालका के बाद एक चेक पोस्ट आता है, परवानू चेक पोस्ट। यहीं से हिमाचल प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। हिमाचल प्रदेश शुरू होते ही हरियाली शुरू हो गई। ऐसा लगा कि कंक्रीट का शहर छोड़कर नई जगह पर आ गए हों।

हिमाचल

अब तक हमारी नींद थोड़ी-थोड़ी देर में खुल रही थी लेकिन अब झटके लग रहे थे। हिमाचल प्रदेश में घुसते ही घुमावदार रास्ते शुरू हो गए। काफी देर यही सिलसिला चलता रहा। सुबह 4 बजने को थे और हमें शिमला दिखाई देने लगा था। ऐसा लग रहा था कि पहाड़ों में किसी ने लाखों जुगनू छोड़ दिए हों। रात में पहाड़ पर चलने वाली लाइटें आसमान में चमकने वाले तारों की तरह लग रही थी।

थोड़ी देर में बस शिमला पहुंच गई। हम हिमाचल प्रदेश पहली बार आए थे लेकिन अभी शिमली हमारी लिस्ट में नहीं था। हमें तो रामपुर बुशहर पहुंचना था। लगभग आधे घंटे बाद बस शिमला बस स्टैंड से चल पड़ी। शिमला से बस का ड्राइवर बदल चुका था। सुबह-सुबह शिमला में वो भीड़ नहीं थी जैसा मैंने अब तक सुन रखा था। हर बड़े शहर सुबह-सुबह शांत ही लगते हैं।

कब आएगा रामपुर?

थोड़ी देर में उजाला होने लगा था। सुबह की उजली किरण में पहली बार हिमाचल को देख रहा था। हम गोल-गोल रास्ते से बढ़े जा रहे थे। चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और दूर तक फैली हरियाली दिखाई दे रही थी। इस हरियाली के बीच मैंने हिमाचल प्रदेश में पहली बार सूर्योदय देखा। हिमाचल में सेब की खेती बहुत ज्यादा होती है, ये शिमला से बढ़ते ही समझ में आ रहा था।

दूर-दूर तक सेब के पेड़ लगे हुए थे और उन पर जाली जैसा कुछ डला हुआ था। शायद पेड़ों को कीड़ों से बचाने के लिए ऐसा किया गया हो। थोड़ी देर बाद बस नारकंडा पर रूकी। नारकंडा मेरी बकेट लिस्ट में हमेशा से रहा है लेकिन हमारी इस यात्रा में नारकंडा शामिल नहीं था। फिलहाल तो हमें रामपुर जाना था। बस 13 घंटे घंटे के बाद लग रहा था कि ये रामपुर कब आएगा?

8 बजे हमारी बस एक ढाबे पर रूकी। अब तक गोल-गोल रास्ते पर घूमते हुए दिमाग चकरा गया था। थोड़ी देर के लिए ये ब्रेक जरूरी था। ढाबे के पास में घास पर ही लोट गया। बात करने पर पता चला कि इस जगह का नाम मुर्थल है जो कुमारसैन ब्लॉक में आती है। एक मुरथल दिल्ली के पास में है जहां दिल्ली से लोग कभी-कभार खाना खाने के लिए जाते हैं।

मुर्थल से बस आगे बढ़ती गई। घुमावदार रास्ते के बाद हम सीधे रास्ते पर आ गए। हमारे बाएं तरफ सतलुज नदी बह रही थी। अब बस में लोकल लोग चढ़ रहे थे और उतर रहे थे। बस रूकने पर लोग चढ़ते या उतरते कंडक्टर लगभग हर बार एक ही आवाज देता, ताकी मार मतलब दरवाजा बंद करो। जब बस रूकती तो हम भी कहते. ताकी मार। जब हम रामपुर पहुंचे तब सुबह के 10 बज रहे थे। शहर को पार करने के बाद रामपुर बुशहर का बस स्टैंड आता है। इस छोटे-सी पहाड़ी शहर में हमें अपने लिए एक छोटा-सा कमरा खोजना था।

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Saturday 16 July 2022

नैना पीक: उत्तराखंड की इस चोटी से नजारा देखकर, मेरे मुंह से निकला ‘वाह’

नैनीताल में टिफिन टॉप का ट्रेक करने के बाद अगले दिन हमें सिर्फ एक ही जगह पर जाना था, नैना देवी पीक। नैना पीक नैनीताल की सबसे ऊंची जगह है। इस चोटी से पूरा नैनीताल दिखाई देता है। नैना पीक समुद्र तल से 2,615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस पीक तक जाने के लिए ट्रेकिंग करनी पड़ती है। पहले मैं और मेरा दोस्त दोनों साथ में जाने वाले थे लेकिन अब मुझे अकेले ही जाना था। मैं सुबह-सुबह जल्दी नैना पीक के लिए निकल पड़ा।

नैनाताल से लगभग 2-3 किमी. दूर एक जगह पड़ती है, टांगे की बैन। इसी जगह से नैना पीक का ट्रेक शुरू होता है। मैंने उस प्वाइंट तक पहुंचने के लिए ही स्कूटी ली थी। मैं स्कूटी से कुछ ही देर में उस जगह पर पहुंच गया। वहां पर छोटी-सी पुलिस चौकी थी और उत्तराखंड टूरिज्म का एक बोर्ड लगा हुआ था। वहीं से ऊपर की ओर रास्ता गया था। मैंने वहीं पर अपनी स्कूटी पार्क की और निकल पड़ा नैना पीक का ट्रेक करने।

बढ़े चलो

मैं आराम-आराम से चला जा रहा था। रास्ता पूरी तरह से खाली था। चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे। जिस दुकान से हमने स्कूटी रेंट पर ली थी। दुकान संचालक ने हमें बताया था कि नैना पीक को पहले चाइना पीक के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बताया कि पहले इस पीक से चाइना दिखाई देता था इसलिए इसे चाइना पीक के नाम से जाना जाता है।

रास्ता पगडंडी वाला था और चौड़ाई में भी काफी छोटा था। जंगल वाला ये रास्ता इतना सुनसान था कि मझे अपने पैरों की आवाज भी सुनाई दे रही थी। अकेला था तो बात करने के लिए भी कोई नहीं था। सोलो ट्रिप में कई बार अकेले होते हैं लेकिन ये अकेलापन मुझे अभी तक अखरा नहीं है। थोड़ी देर में मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी। 7-8 लोगों का एक ग्रुप पीछे-पीछे चला आ रहा था।

ये हसीं वादियां

रास्ते में जगह-जगह बुरांश के फूल लगे हुए थे। एक जगह से मैंने शार्टकट लेने की कोशिश की। वहां से मुझे सुंदर नजारा देखने को तो मिला लेकिन फिसलन वाले रास्ते पर चलने में काफी परेशानी हुई। यहां से दूर-दूर तक हरियाली और एक के पीछे एक पहाड़ दिखाई दे रहे थे। मैं फिर से पगडंडी वाले रास्ते पर चलने लगा। कुछ लोग ऊपर से नीचे की ओर आते हुए दिखाई दिए।

थोड़ी ही दूर आगे बढ़ा तो दो लोग रास्ते पर बैठे हुए दिखाई दिए। उन्होंने बताया कि वो भी ट्रेक करने गए थे लेकिन उनको पीक नहीं मिली और अब वो लौट रहे हैं। बाद में कुछ लोग और मिले जो काफी दूर होने वजह से लौट रहे थे। अब मेरे दिमाग में भी वही चलने लगा कि मेरे साथ भी ऐसा न हो जाए। मुझे नैना पीक को किसी भी हालत में देखना था।

आप सही रास्ते पर हैं

रास्ता थोड़ा कठिन होता जा रहा था लेकिन अब तक शरीर और पैरों को आदत हो चुकी थी। रास्ते पर कुछ लोग और मिले जो नैनी पीक का ट्रेक करके लौट रहे थे। उन्होंने कहा, आप सही रास्ते पर हैं। अभी 2-3 किमी. दूर है पीक। कुछ और आगे चला तो मुझे दो रास्ते मिले। आसपास कोई था भी नहीं जिससे सही रास्ता पूछ जा सके। मैं ऊंचाई वाले रास्ते की ओर बढ़ने लगा। घूमते हुए कई बार आपको ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं। कभी ये सही भी होते हैं और कभी-कभी गलत हो जाते हैं।

चलते-चलते काफी देर हो चुकी थी। पसीना भी काफी आ रहा था लेकिन आसपास का नजारा सुकून दे रहा था। नैनाताल की भीड़ और शोर से दूर यहां सुकून था। कुछ देर बाद फिर से दो रास्ते मिले। बार-बार ये रास्ते मेरी परीक्षा ले रहे थे। यहां एक खंबा लगा हुआ था जिस पर चाइना पीक लिखा हुआ था और तीर का निशान बना हुआ था। मैं उसी रास्ते पर बढ़ गया।

दूर डगर है

अब रास्ते पर काफी बढ़े-बढ़े पत्थर मिल रहे थे हालांकि उनसे काफी परेशानी हो नहीं रही थी। कुछ देर ऐसे चलने के बाद एक जगह प्लास्टिक की बोतल और पॉलिथीन डली हुई थी। पहाड़ों में ऐसा देखकर खराब लगता है। हम ऐसा करके प्रकृति को और नुकसान पहुंचा रहे होते हैं। अगर आप ट्रेक पर अपने साथ पॉलिथीन लेकर आते हैं तो आपकी जिम्मेदारी है कि उसे वापस भी लेकर जाएं।

हर मोड़ के बाद मुझे ऐसा लगता कि अब नैना पीक आने वाली है लेकिन हर बार एक लंबा रास्ता दिखाई देने लगता। कच्चे रास्ते पर सामने से एक व्यक्ति आते हुए दिखाई दिया। बात करने पर पता चला कि नैना पीक अब दूर नहीं है, 5 मिनट में पहुंचा जा सकता है। ये सुनते ही मेरे कदमों में तेजी आ गई। कुछ देर बाद मैं एक जगह पर पहुंचा जहां एक दो कच्चे घर बने हुए थे।

नैना पीक

यहां एक जगह लिखा हुआ था, पुराना नाम चाइना पीक और नया नाम के सामने नैना पीक लिखा हुआ था। वहीं एक व्यक्ति कुछ काम कर रहा था। उन्होंने बताया कि यही नैना पीक है, आगे व्यू प्वाइंट है। मैं उस व्यू प्वाइंट को देखने के लिए आगे बढ़ गया। यहां चारों तरफ चीड़ और देवदार के पेड़ लगे हुए थे। 100 मीटर चलने के बाद मैंने जो नजारा देखा उसके बाद मेरे मुंह से सिर्फ वाह निकला।

वाकई में नैना पीक से नैनीताल का खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा था। यहां से पूरा नैनीताल और नैनी लेक दिखाई दे रही थी। चारों तरफ हरियाली और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। इस नजारे को देखकर मेरी आंखे थक नहीं रही थी। काफी देर तक यहां बैठने के बाद मैं वापस लौटने लगा। अब मुझे एक और नये सफर पर निकलना था। बिना नैनी पीक ट्रेक के नैनीताल की यात्रा को अधूरा ही माना जाएगा।

टिफिन टॉप ट्रेक की यात्रा यहां पढ़ें।

Wednesday 6 July 2022

नैनीताल का बेहद खूबसूरत टिफिन टॉप ट्रेक, देखने को मिले बेहद खूबसूरत नजारे

नैनीताल की यात्रा अब तक हमारे लिए शानदार रही थी। हमने अपनी स्कूटी से आज कैंची धाम, भीमताल, नौकुचियाताल, कमलताल और फिर सातताल गए। सातताल के बाद हम नैनीताल लौट आए थे। अभी शाम के 5 बजे थे और हमें गाड़ी लौटानी थी 8 बजे। अब या तो हम गाड़ी अभी लौटा देते और फिर पैदल घूमते या फिर 8 बजे तक स्कूटी से घूमते। तब हमने टिफिन टॉप का ट्रेक करने के बारे में सोचा।

हमें ये तो पता था कि टिफिन टॉप नैनीताल में ही है लेकिन कहां है ये पता नहीं थी। हमने नैनीताल लेक के पास पूछते हुए ग्राउंड के पास पहुंच गए, जहां क्रिकेट खेला जा रहा था। हमने वही खड़े एक पुलिस वाले से टिफिन टॉप का रास्ता पूछा। अब हम छोटी गलियों से स्कूटी लेकर चढ़े जा रहे। चढ़ाई इतनी खड़ी थी कि अगर हमारी स्कूटी में ब्रेक अच्छे नहीं होते तो लुढ़कते हुए वापस नैनीताल पहुंच जाते।

ट्रेक शुरू

कुछ देर बाद हम ऐसी जगह पर पहुंचे। जहां से टिफिन टॉप का ट्रेक शुरू होता है। वहां पर टिफिन टॉप का बोर्ड भी लगा हुआ था। टिफिन टॉप का ट्रेक 3-4 किमी. का है। ये बात हमें उस समय पता नहीं थी। शाम होने लगी थी, हमें लग रहा था कि लौटते-लौटते अंधेरे ना हो जाए। फिर भी टिफिन टॉप ट्रेक के रास्ते पर थे। ट्रेक में हमारे साथ कोई नहीं था। शायद शाम होने की वजह से कोई भी यहां नहीं था।

पत्थरों वाला ये ट्रेक मुझे छोटा और आसान ही लग रहा था लेकिन जिन्होंने पहले ट्रेक नहीं किया उनको इसमें भी परेशानी होगी। कुछ ऐसा ही मेरे साथी के साथ हो रही थी। हम आराम-आराम से बात करते हुए बढ़े जा रहे थे। रास्ता पूरा सुनसान था और खूबसूरत भी था। धूप हम तक आ तो नहीं रही थी लेकिन दिखाई दे रही थी कि अब तक सनसेट हुआ नहीं है।

जंगल जंगल



ट्रेक काफी हरा-भरा था। चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे और बहुत सारे फूल भी लगे हुए थे। भीड़ न होने की वजह से यहां इतनी शांति थी कि पंक्षियों की चहचहाहट को आराम से सुना जा सकता था। उसी आवाज तो सुनते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। तभी पीछे से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। तब हमने चैन की सांस ली कि इस ट्रेक में हम अकेले नहीं हैं।

अब हम तीन लोग टिफिन टॉप पर पहुंचने के लिए इस सुनसान रास्ते पर बढ़े जा रहे थे। हम सब यही सोच रहे थे कि अभी कितना दूर है? मुझे छोड़कर बाकी दोनों लोग यहां से वापस लौटने के पक्ष में थे लेकिन मैं तो टिफिन टॉप को देखे बिना वापस लौटने वाला नहीं था। तभी सामने से एक स्थानीय महिला सिर पर लकड़ियां रखकर ऊपर की ओर से आते दिखी। हमने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि आप आ गए हैं, बस थोड़ा दूर है।

खूबसूरत नैनीताल

महिला की बात सुनकर हम सब बढ़े जा रहे थे। अब तक चढ़ाई थोड़ी खड़ी हो गई थी लेकिन चढ़ने में बहुत ज्यादा कठिनाई नहीं हो रही थी। कुछ देर बाद हमें एक जगह पर दुकानें दिखीं। हम समझ गए कि अपनी मंजिल पर पहुंचने वाले हैं। यहां से कुछ सीढ़ियां ऊपर गईं थी और वही टिफिन टॉप था। टिफिन टॉप से क्या खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा था।

टिफिन टॉप से पूरा नैनीताल दिखाई दे रहा था। चारों तरफ हरे-भरे पहाड़ और बीच में कंक्रीट के घर बने हुए थे। अभी भी सनसेट नहीं हुआ था। हम टिफिन टॉप के ऊंचे पहाड़ पर चढ़ गए। यहां से नजारा भी खूबसूरत था और हवाएं भी तेज चल रही थी। हमने यहां से बेहद खूबसूरत सूर्यास्त देखा। नैनीताल की मेरी यात्रा शानदार होते जा रही थी। कुछ देर यहां ठहरने के बाद हमने वहां दुकान पर मैगी खाई।

शाम हो चली थी और अब हमें टिफिन टॉप से नीचे लौटना था। टिफिन टॉप से हम नीचे उतरने लगे और बातों ही बातों में कब नीचे आ गए, पता ही नहीं चला। कुछ देर बाद अब हम नैनीताल लेक के सामने थे। टिफिन टॉप के ट्रेक के बाद नैनीताल का सफर शानदार हो गया था। ऐसे ट्रेक यात्राओं को और भी शानदार बना देते हैं।

नैनीताल के इस सफर में अब एक और शानदार जगह जुड़ना बाकी थी। हमने उस जगह पर जाने के लिए स्कूटी अगले दिन के लिए भी ले ली। हमने स्कूटी लेकर अपने होटल आए और वहीं पर लगा दी। अब हमें इस खूबसूरत यात्रा पर जाने के लिए अगली सुबह का इंतजार करना था।

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Monday 4 July 2022

इन खूबसूरत झीलों को देखे बिना मेरी नैनीताल की यात्रा अधूरी ही रहती

कुछ जगहें होती हैं जो बहुत मशहूर होती हैं इसलिए यहां भीड़ भी बहुत होती है। मैं ऐसी जगहों पर जाने से दूर रहता हूं लेकिन मैं नैनीताल हमेशा से जाना चाहता था। वजह है यहां की खूब सारी झीलें। मुझे नैनीताल को देखने में इतनी ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी जितनी आसपास की झीलों को देखने में थी। हम नैनीताल में एक दिन पहले आ चुके थे लेकिन असली घुमक्कड़ी अब शुरू होने वाली थी।

27 अप्रैल 2022। हम सुबह-सुबह उठे और तैयार हो गए। हमने मल्लीताल में नाश्ता किया और अब हमें पैदल ही मॉल रोड जाना था। हमें नैनीताल को घूमने के लिए एक स्कूटी की जरूरत थी। हमने एक स्कूटी वाले से बात कर ली थी। सबसे पहले हम नैनी लेक को देखने गए। सुबह-सुबह नैनी लेक खूबसूरत लग रही थी। झील में इस समय बोटिंग नहीं हो रही थी। इस वजह से भी लेक अच्छी लग रही थी।

थोड़ी देर बाद हम मॉल रोड पर स्कूटी वाले की दुकान पर थे। यहां हमने टीवीएस की स्कूटी को 700 रुपए में रेंट पर ले लिया। हम दुकानदार से ही नैनीताल के आसपास की जगहों के रास्ते के बारे में पूछ लिया। अब हम स्कूटी से नैनीताल में थे और थोड़ी देर बाद ही नैनीताल से बाहर थे। हम सबसे पहले भवाली जाना था और वहां से नीम करौली कैंची धाम।

सफर शुरू

नैनीताल से भवाली 10 किमी. की दूरी पर है। हमने एक जगह पेट्रोल भरवाया और फिर आगे बढ़ चले। कुछ देर बाद शहर पीछे छूट गया और हम पहाड़ी रास्ते पर आगे बढ़ चले। घुमावदार रास्ते पर स्कूटी चलाने में वाकई में मुझे मजा आ रहा था। पहाड़ों में स्कूटी चलाने का एक अलग अनुभव होता है। मसूरी के बाद अब मैं नैनीताल में पहाड़ों में स्कूटी पर था। लगभग आधे घंटे बाद हम लोग भवाली पहुंच गए। यहां से हमें तीन रास्ते मिले। एक रास्ता मुक्तेश्वर की ओर जा रहा था। एक रास्ता भीमताल की तरफ और एक कैंची धाम।

हमने नीम करौली कैंची धाम का रास्ता पकड़ लिया। थोड़ी ही दूर चले थे तो हम एक जगह आग लगी दिखी। गर्मियों में पहाड़ों में अक्सर आग लग जाती है। यहां तो चीड़ के पेड़ भी बहुत हैं जिसकी वजह से आग अक्सर लग जाती है। हम फिर से घुमावदार रास्ते पर बढ़ने लगे। कुछ देर बाद हम कैंची धाम पहुंच गए। कैंची धाम नीम करौरी बाबा का है।

कैंची धाम

कैंची धाम।
कैंची धाम रोड किनारे की स्थित है। हम उस आश्रम को देखने के लिए बढ़ गए। परिसर के अंदर फोटो खींचना मना था। हम उसी का पालन करते हुए आश्रम को देख रहे थे। आश्रम में कई सारे मंदिर थे जिसमें एक मंदिर नीम करौरी महाराज का भी था। जिसमें उनकी एक मूर्ति भी रखी हुई है। परिसर को देखने के बाद हम बाहर आ गए। स्कूटी उठाई और भवाली की ओर बढ़ चले। 

अब हम नैनीताल के आसपास की झीलों को देखना था। सबसे पहले हमें भीमताल जाना था। इसके लिए हम वापस उसी रास्ते से भवाली जा रहे थे। कुछ देर बाद हम लोग भवाली पहुंच गए। यहां से हमने भीमताल जाने वाला रास्ता पकड़ लिया। भवाली से भीमताल की दूरी 11 किमी. है। घुमावदार रास्ते से बढ़े जा रहे थे और भीमताल पहुंचने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा।

भीमताल लेक

भीमताल लेक।
भीमताल लेक के चारों तरफ सड़क है हालांकि लेक के आसपास लोगों की भीड़ न के बराबर थी। इस लेक में भी बोटिंग होती है लेकिन हमारा ऐसा करने का कोई मन नहीं था। भीमताल नैनीताल जिले का एक कस्बा है। झील का पानी एकदम हरा और साफ था। यहां पर हम कुछ देर रूके और फिर आगे बढ़ चले।

भीमताल से अब हमें नौकुचियाताल जाना था। भीमताल से नौकुचियाताल लगभग 9 किमी. की दूरी पर है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, रास्ता सुंदर होता जा रहा था। लोगों से लेक का रास्ता पूछते हुए हम नौकुचियाताल पहुंच गए। हमने अपनी गाड़ी पास में ही पार्क कर दी और लेक देखने पहुंच गए। नौकुचियाताल लेक भीमताल लेक से बड़ी लग रही थी।

नौकुचियाताल लेक

नौकुचियाताल लेक।
नौकुचियाताल लेक के चारों तरफ हरे-भरे पेड़ और खूबसूरत पहाड़ थे। लेक में लोग बोटिंग कर रहे थे। किनारे में कुछ बत्तख भी थीं। नौकुचियाताल लेक नैनीताल की सबसे गहरी झील में से एक है। ये लेक 983 मीटर लंबी, 693 मीटर चौड़ी और 40 मीटर गहरी है। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था इसलिए यहीं एक दुकान पर मैगी खाई।

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नौकुचियाताल लेक के ठीक बगल पर एक और छोटी सी झील है। इस लेक का पानी काफी गंदा था। मैगी वाले ने बताया कि ये कमलताल लेक है। कुछ दिनों के बाद पूरी झील कमल से भर जाती है। वाकई में वो खूबसूरत नजारा होता होगा। दोनों झीलों को देखने के बाद हम आगे बढ़ गए। अब हमे सात ताल लेक देखने जाना था।

सातताल लेक

सातातल झील।
हम फिर से अपनी स्कूटी से आगे बढ़े जा रहे थे। इस बार हमें कुछ लंबी दूरी नापनी थी। नौकुचियाताल से सात ताल लगभग 17 किमी. की दूरी पर है। सबसे पहले हम भीमताल आए और वहां से सात ताल के रास्ते पर चल पढ़े। कुछ देर चलने के बाद हम मुख्य सड़क से गांवों वाले रास्ते पर चलने लगते हैं। सातताल लेक तक का रास्ता वाकई में शानदार है। गांवों से होकर जाने वाले इस रास्ते में हरियाली ही हरियाली है। रास्ते में हमें बहुत ज्यादा गाड़ियां भी नहीं मिलीं।

हमें बहुत जोर की भूख लगी थी और हमें कुमाऊंनी थाली भी खानी थी। सात ताल में पहुंचने के बाद हमने अपने लिए एक ढाबे से कुमाऊंनी थाली मंगवा ली। इस कुमाऊंनी थाली में हमें आलू के गुटके, भट्ट की दाल, कुमाऊंना रायता, झोली, भांग की चटनी, मडुवा की रोटी और चावल मिले। थाली वाकई में शानदार थी। पेट पूजा करने के बाद हम सात ताल लेक को देखने लिए निकल पड़े।

सातताल लेक सात ताजे पानी की झीलों से मिलकर बनी हुई है। ये झील काफी बड़ी भी है। ये काफी सुंदर भी है। सातताल में लोगों की भीड़ भी कम थी और चारों तरफ हरियाली भी बहुत थी। यहां पर भी बोटिंग होती है लेकिन हमें पैदल घूमने में ही अच्छा लग रहा था। हम लेक के पास ही एक जगह जाकर बैठ गए। यहां हम काफी देर बैठे रहे। एक बुजुर्ग व्यक्ति रस्सी के सहारे पानी में गोते लगा रहा था और उसकी पत्नी फोटो खींच रही थी। ऐसे ही कई नजारों को सातताल में हम देख रहे थे। नैनीताल का सफर अभी खत्म नहीं हुआ था। अभी तो हमें कई सारे एडवेंचर करने थे।

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Saturday 2 July 2022

रामनगर से नैनीताल की यात्रा वाकई में शानदार रही!

जिम कार्बेट नेशनल पार्क के एक रिजॉर्ट में हमें दो दिन हो चुके थे। अब हमें आगे एक नई यात्रा पर निकलना था। हम सुबह-सुबह उठकर जल्दी तैयार हुए और नाश्ता किया। रिजार्ट की एक गाड़ी हमें भकराकोट बस स्टैंड पर ले गई। पहाड़ों में बस का इंतजार करना भी एक अनुभव है। कुछ देर बाद बस आई और हम अब एक नई जगह की यात्रा के लिए निकल पड़े।

थोड़ी देर बाद हम नेटवर्क जोन में आ गए। मोबाइल में नेटवर्क आते ही मैसेज और नोटिफिकेशन की झड़ी लग गई। कुछ देर हम मोबाइल में ही घुसे रहे। इस बस से हम रामनगर जा रहे थे। जहां से हमें दूसरी बस पकड़नी थी। उस बस को पकड़ने से पहले मुझे रामनगर में ही अपने एक दोस्त से मिलना था। हम उसे बस में ही फोन कर चुके थे। थोड़ी देर बाद हम रामनगर के बस स्टैंड पर थे। यहीं से हमारी यात्रा शुरू होनी थी।

इंतजार

26 अप्रैल 2022 ही वो तारीख थी जिस दिन हम बस स्टैंड के सामने एक रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे और अपनी दोस्त का इंतजार कर रहे थे। काफी इंतजार के बाद कविता अस्वाल के दर्शन हुए। कविता और मैंने हरिद्वार के देव संस्कृति विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन साथ में की है। कविता उत्तराखंड की ही रहने वाली है। उसे रामनगर के बारे में पता है तो हमें एक रेस्टोरेंट में ले गई। जहां हमने खूब सारा खाया और गपशप भी काफी की।



थोड़ी देर बाद हम सब बस स्टैंड पर आए। कविता को बाय-बाय किया और नैनीताल जाने वाली बस में धमक गए। नैनीताल जाने वाली बस में काफी भीड़ थी। मुझे सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने की जगह मिली। रामनगर से नैनीताल 105 किमी. की दूरी पर है। अब तक हम मैदानी इलाके में थे लेकिन अब हम पहाड़ी इलाके में जाने वाले थे। बस अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी। हरे भरे जंगलों और लोगों को पीछे छोड़ती जा रही थी।

खूबसूरत पहाड़

लगभग 1 घंटे बाद कालाढूंगी नाम की जगह पर बस रूकी। यहां बस आधे घंटे तक रुकी रही। यहां बस इतनी ज्यादा भर गई थी कि लग रहा था हम गलती से यूपी रोडवेज की बस में बैठ गए हों। आधे घंटे बाद बस चल पड़ी। कुछ देर बाद बस मैदानी इलाकों को छोड़कर पहाड़ों में घुस गई। अब रास्ता घुमावदार हो गया था और नजारे खूबसूरत हो चले थे। मसूरी जैसे ही रास्ते पर बस बढ़ी जा रही थी।

रास्ता वाकई में खूबसूरत था। चारों तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली थी। घुमावदार रास्ते की वजह से बस की स्पीड कम हो चुकी थी। हम आराम-आराम से बढ़े जा रहे थे। जब रास्ते इतने खूबसूरत हों तो लंबी यात्राएं भी अखरती नहीं हैं। हम काफी ऊंचाई पर आ चुके थे। मौसम में ठंडक महसूस हो रही थी। जब रास्ते में कई सारे होटल और रिजार्ट दिखने लगे तो हम समझ गए कि हमारी मंजिल आने वाली है। कुछ देर बाद हम नैनीताल के बस स्टैंड पर थे।

मल्लीताल में ठिकाना

मैं पहली बार नैनीताल आया था। नैनीताल तक रास्ता तो खूबसूरत था अब इस शहर को देखना था। सबसे पहले हमें एक कमरा देखना था जो बहुत महंगा न हो। नैनीताल में ऐसे ही घूमते हुए हम मल्लीताल पहुंच गए। जहां हमें सस्ता-सा कमरा मिल गया। कमरा में पंखा नहीं था। होटल वाले ने कहा, यहां आपको पंखे की जरूरत नहीं पड़ेगी। 4 घंटे की लंबी यात्रा के बाद थोड़ी थकावट। शरीर आराम मांग रहा था।

शाम में हम खाना खाने और नैनीताल को देखने के लिए निकल पड़े। हम जिस जगह ठहरे थे वहां से झील काफी दूर थी। हमने सबसे पहले एक जगह पर खाना खाया और फिर पैदल-पैदल नैनीताल की सड़कों पर चल पड़े। हम ढलान पर उतरते जा रहे थे। कुछ देर बाद नैनीताल का बाजार शुरू हो गया। सड़कों पर लोगों और गाड़ियों की काफी भीड़ थी। काफी चलने के बाद हम झील के पास पहुंचे।

रात में नैनीताल

नैनी लेक के पास हमें सर्दी थोड़ी ज्यादा लग रही थी। मौसम तो ठंडा था लेकिन वातावारण पूरा गर्म था। झील के पास बहुत भीड़ थी। लेक के पास पूरा मेला लगा हुआ था। यहां आपको हर चीच मिल जाएगी। हमें कुछ खरीदना तो नहीं था इसलिए हम भटक रहे थे। काफी देर तक टहलने के बाद लेक किनारे एक जगह पर बैठ गए। पास में भी भुट्टे वाले का ठेला लगा हुआ था।

अंधेरा हो चुका था और झील अब शांत लग रही थी। झील बिना बोटिंग के ही अच्छी लगती है। झील के ऊपर पहाड़ों पर छोटे-छोटे बल्ब तारों की तरह चमक रहे थे। ऐसा लग रहा था कि नैनीताल के पहाड़ों पर आसमान के तारे टिमटिमा रहे थे। हर पहाड़ी शहर और कस्बे में आपको रात में ऐसा ही नजारा देखने को मिलेगा। कुछ देर हम यहीं बैठे रहे और फिर मल्लीताल की ओर चल पड़े।

जब हम अपने कमरे से लेक तक आए थे तो ढलान की वजह से कठिनाई नहीं हुई थी। अब चढ़ाई में हालत खराब हो रही थी। काफी मशक्कत के बाद हम अपने कमरे पर पहुंचे। थकान की वजह से हम फिर से बिस्तर पर थे। अभी तो हम नैनीताल आए थे, इसे देखना और समझना दोनों बाकी था।