घूमते हुए अब तक पहाड़ी जगहों पर जा चुका हूं लेकिन किन्नौर वैली के कल्पा जैसा खूबसूरत कोई नहीं लगा। कल्पा की वादियों में एक अलग-सा सुकून है। यहां नी कहीं जाने की बहुत जल्दी होती है और ना कुछ करने का मन करता है। कल्पा की गलियों में टहलिए और स्थानीय लोगों से बातें करते रहिए, आपका दिन ऐसे ही निकल जाएगा। जब शहर आपको कचोटने लगे या किसी शानदार जगह पर जाने का मन हो तो मेरी तरह कल्पा चले आइए।
हम रिकांगपिओ से बस से कल्पा में चुगलिंग आ चुके थे और हमें जाना सुसाइड प्वाइंट था। हम लगभग 20 स्थानीय महिलाओं के साथ एक जगह पर खड़े हो गए। कुछ देर इंतजार करने के बाद एक पिकअप आई। जिसमें अंदर कुछ सीटें हैं और पीछे खड़े होने की बहुत सारी जगहें। ज्यादातर महिलाएं आगे बैठ गईं। हम पिकअप में कुछ महिलाओं के साथ पीछे चढ़ गए। मैं पहाड़ों में पहली बार किसी खुली गाड़ी में चढ़ा।सुसाइड प्वाइंट
व्यू प्वाइंट
रास्ते में हमें कुछ होमस्टे और होटल दिखाई दिए थे। उस जगह तक हमने पैदल जाने का तय किया। यहां पर पैदल चलने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। हम पैदल-पैदल आगे बढ़ने लगे। रास्ते में कई खूबसूरत नजारे हमारे इंतजार में हैं। चलते-चलते एक जगह पर खूब सारी भेड़ें और एक चरवाहा मिला। हवा अभी भी काफी तेज चल रही है। एक तरफ हरे-हरे पहाड़ और फिर दूर तलक ऊंचे बर्फ से ढंके पहाड़।
रास्ता और नजारे दोनों की खूबसूरत हैं। पहाड़ी रास्तों पर चलने में भी बोरियत नहीं आती है। पैदल चलते हुए मुझे नीचे की तरफ एक व्यू प्वाइंट दिखाई दिया। हम रोड से नीचे उतरकर उस तरफ चलने लगे। कुछ देर बाद हम उस जगह पर पहुंच गए। यहां से दूर-दूर तक खूबसूरत और हरियाली से भरी वादियों का नजारा दिखाई। ऐसा नजारा कम ही देखने को मिलता है। यहां भी हवा काफी तेज है और हम मुस्कुराते हुए वापस लौटने लगे। वापस लौटते समय रोड तक पहुंचने में हालत खराब हो गई।शिवालिक
हमने शिवालिक होटल के ही रेस्टोरेंट में खाना खाया। पूरा दिन हमें कल्पा के नजारों को देखते रहे और शाम के समय कुछ काम किया। रात में हमें कल्पा में एक ढाबा मिल गया। हम वहां गए तो हमारी मुलाकात वहां के एक स्थानीय लड़के से हुई। उसने हमें सर्दियों में कल्पा कैसे दिखता है? ये बताया भी और अपने मोबाइल में दिखाया भी। बातों में ही उसने बताया कि कल्पा में ही श्याम सरण नेगी रहते हैं।
श्याम सरण नेगी
श्याम सरण नेगी वो व्यक्ति हैं जिन्होंने आजाद भारत के पहले आम चुनाव में पहला वोट डाला था। दरअसल पूरे देश में 1952 में वोट पड़े थे लेकिन हिमाचल के किन्नौर में सर्दी के चलते 4 महीने पहले वोट डलवा लिए गए थे और 1951 में पूरे भारत में पहला वोट श्याम सरण नेगी जी ने ही डाला था। मुझे ये तो पता था कि वो हिमाचल प्रदेश में रहते हैं लेकिन ये नहीं जानता था कि कल्पा में ही रहते हैं।
श्याम सरण नेगी जी का घर। |
हम कल्पा की गलियों में टहलने लगे। एक दुकान पर हमने चाय ले ली। वहां एक छोटे से बच्चे से मैंने बात की। बच्चे का नाम तेग बहादुर है और पीठ पर बस्ता टांगे हुए। पूछने पर बताया कि वो नेपाल का है और पापा के साथ यहां रहता है। कल्पा में आपको नेपाल और बिहार के लोग काम करते हुए काफी संख्या में मिल जाएंगे। ऐसे ही टहलते हुए समय निकल गया और हम फिर से श्याम सरण नेगी जी के घर पहुंच गए।
इस बार घर में नेगी जी की बहू मिलीं। वो ही हमें घर के अंदर एक लकड़ी के बने कमरे में ले गईं। उसी कमरे में एक बिस्तर पर श्याम सरण नेगी जी बैठे हुए हैं। मुझे उनके चेहरे में अपने परदाद का अक्स नजर आया। श्याम सरण नेगी जी की उम्र 105 साल हो गई है। नेगी जी ने पूछा कहां से आए हो और कहां ठहरे हो? श्याम सरण नेगी जी को कम सुनाई देता है। अब वो बाहर ज्यादा जाते भी नहीं है। मेरे लिए तो उनसे मिलना ही बहुत बड़ी बात है।लगभग आधे घंटे के बाद हम श्याम सरण नेगी जी के घर से वापस आ गए। हमने अपने होटल से चेकआउट कर दिया। अब हमें रिकांगपिओ जाना था। हमें एक रास्ता मिल गया था जो सीधा चीनी गांव जा रहा था और वहां से हम बस से पिओ जाने वाले थे। कल्पा कई मायनों में यादगार रहा। सबसे पहले तो ऐसी खूबसूरत जगह मैंने देखी नहीं है और सबसे बड़ी बात श्याम सरण नेगी जी से मुलाकात हो गई। अभी तो हिमाचल यात्रा काफी दूर जाने वाली है।