Saturday, 23 July 2022

रामपुर बुशहर: ऊंचे पहाड़ों और खूबसूरत नदी के किनारे बसा हिमाचल प्रदेश का अद्भुत शहर

कुछ जगहें ऐसी होती हैं जो आपकी घूमने की लिस्ट में नहीं होती हैं लेकिन जब आप उस जगह पर पहुंचते हैं तो आप अचंभित रह जाते हैं। ऐसी छोटी जगहें वाकई में कमाल की होती हैं। ऐसी ही शानदार और कमाल की जगह है, रामपुर बुशहर। हिमाचल की यात्रा के पहले मैंने इस जगह का नाम नहीं सुना था लेकिन हिमाचल में मेरा पहला दिन इसी शहर को देखने में बीता।

सुबह 10 बजे हमारी बस रामपुर बस स्टैंड पर पहुंची। हम बस स्टैंड के पास किसी होटल में रूकना चाहते थे ताकि अगले दिन अगली जगह के लिए जल्दी निकल सकें। हम बस स्टैंड से बाहर रूकने के ठिकाना खोजने के लिए पैदल निकल पड़े। हम चलते जा रहे थे लेकिन अब तक कोई होटल या गेस्ट हाउस नहीं दिखाई दिया। थोड़ी देर बाद हम मुख्य सड़क पर पहुंच गए जहां दोनों तरफ पहाड़ और बीच में सतलुज नदी बह रही थी। वाकई में सुंदर नजारा था।

नई जगह नए लोग

रामपुर बुशहर।
लगभग 1 किमी. चलने के बाद हम एक कमरा मिला। हमें कमरा रोड किनारे मिला। जहां से सामने एक छोटी-सी मोनेस्ट्री, रामपुर का बाजार और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। हमें जल्दी रामपुर बुशहर को देखने के लिए निकलना चाहते थे। कमरे में सामान रखा और नहा धोकर रामपुर बुशहर की सड़कों पर आ गए। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था और भूख जोर की लगी थी।

हम रामपुर बुशहर की सड़क पर खाने की खोज में निकल पड़े। हमारा कुछ चाइनीज खाने का मन था। मुख्य सड़क पर नानवेज वाली दुकानें ज्यादा थीं और कुछ जगहों पर परांठा मिल रहा था। मैंने यहां पर मछली का पकौड़ा दुकान पर बेचते हुए देखा। हम मुख्य सड़क से नीचे गलियों में आ गए। कुछ ही दूर चले थे कि एक दुकान पर चाइनीज फूड मिल रहा था। इस दुकान को महिलाएं चला रहीं थी। दुकान पर कोई मर्द नहीं था, ये देखकर अच्छा लगा।

मैंने थुकपा पहले कभी नहीं खाया था इसलिए उसे ही मंगाया। गर्म-गर्म थुकपा वाकई में शानदार था। बिल्कुल साधारण था, कोई मिर्च मसाला नहीं। थुकपा का स्वाद लेने के बाद हम रामपुर की गलियों में घूमने लगे। बाहर से रामपुर छोटा लग रहा था लेकिन असली रामपुर तो इन गलियों में था। यहां टीवी, फ्रिज से लेकर छोटी-बड़ी हर प्रकार की दुकान थी। बाजार में बहुत ज्यादा भीड़ भी नहीं थी। मुझे तो इस शहर के छोटे-से बाजार से प्यार हो गया था।

मंदिर

रामपुर बुशहर में घूमते हुए हमें एक पुराना मंदिर दिखाई दिया। ये रामपुर बुशहर का भूतेश्वर नाथ मंदिर है। हिमाचली शैली में बने इस मंदिर में कोई नहीं था। इस मंदिर को देखने के बाद अब हमें नदी किनारे जाना था। चलते-चलते नीचे जाते हुए सीढ़ी मिली। ये सीढ़ी हमें नदी के पास में तो ले गईं लेकिन नदी के किनारे नहीं। यहां पर एक मंदिर भी था, श्री जानकी माई गुफा मंदिर।

श्री जानकी माई गुफा मंदिर।
रामपुर बुशहर का श्री जानकी माई गुफा मंदिर लगभग 150 साल पुराना मंदिर है। शिखर शैली में बने इस मंदिर को यहां के स्थानीय महंतों ने बनवाया था। लकड़ी और पत्थर से बने इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों के अलावा भी कई देवी-देवताओं की मूर्ति है। मंदिर में एक पुजारी भी थे जिन्होंने हमें प्रसाद भी दिया। नदी किनारे बना ये मंदिर वाकई में शानदार है।

सतलुज

सतलुज नदी।
मंदिर को देखने के बाद अब वापस रामपुर की गलियों में आ गए। अब हमें नदी किनारे जाना था। रामपुर बुशहर में सतलुज नदी बहती है। हम नदी पर बने पुल पर पहुंच गए। यहां से नजारा तो खूबसूरत था ही हवा भी तेज चल रही थी। नदी के दोनों तरफ रामपुर बुशहर है। इस पुल से स्थानीय लोग आते-जाते हैं। हम भी इसी पुल को पार करके उस पार पहुंच गए।

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थोड़ा आगे चलने पर एक जगह से नदी किनारे जाने के लिए सीढ़ियां गईं थीं। उन सीढ़ियों से उतरकर हम नदी किनारे पहुंच गए। नदी में पैर डाला तो दिमाग झन्ना गया। पानी बहुत ज्यादा ठंडा था। रामपुर बुशहर में सर्दी नहीं थी लेकिन पानी बहुत ज्यादा ठंडा था। यहां से रामपुर बेहद सुंदर लग रहा था। चारों तरफ हरियाली, ऊंचे पहाड़ और पास से कलकल करती हुई नदी। नदी की धार बहुत तेज थी। हम नदी किनारे एक पत्थर पर बैठ गए। नदी किनारे बैठना हमेशा मुझे सुकून देता है।

बौद्ध मंदिर

बौद्ध मंदिर।
काफी देर तक बैठने के बाद हम वापस चल पड़े। घूमते-टहलते हुए अपने कमरे पर वापस आ गए। हमने थोड़ी देर आराम करने का मन बनाया। बेड पर लेटे तो नींद आ गई और आंख खुली शाम 5 बजे। बालकनी से देखा तो शाम हो चुकी थी और पहाड़ों पर धुआं दिखाई दे रहा था। पहाड़ों में गर्मियों के दौरान आग काफी लगती है। थोड़ी देर में हम होटल के बाहर थे।

हमारे कमरे के सामने एक मोनेस्ट्री थी। हम रोड पर पार करके मोनेस्ट्री में पहुंच गए। अंदर आने पर पता चला कि ये दुंग ग्युर बौद्ध मंदिर है। 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और 14वें दलाई लामा ने इस बौद्ध मंदिर का लोकार्पण किया था। बौद्ध मोनेस्ट्री का गेट बंद था तो हम बस चारों तरफ से देखकर बाहर आ गए। हम फिर से रामपुर की गलियों में थे।

हमने दिन में थुकपा खाया था तो अब हम रोटी सब्जी जैसा कुछ खाना चाहते थे। लोग से पूछते-पूछते काफी देर बाद हमें एक छोटा-सा भोजनालय मिला। यहां हमने बेहद लजीज राजमा चावल खाए। पेट पूजा करने के बाद हम रामपुर की गलियों में थे। हमें फिर से एक और मंदिर दिखाई दिया। मैं हनुमान घाट मंदिर में घुस गया। मंदिर काफी खूबसूरत था और पहाड़ी शैली में बना हुआ था। हिमाचल में ज्यादातर मंदिर इसी शैली में बने होते हैं। मंदिर को देखने के बाद हम वापस अपने कमरे में आ गए।



रात में रामपुर बुशहर किसी आसमान के जैसा लग रहा थी जहां तारे-तारे चमक रहे थे। पूरा दिन रामपुर बुशहर में घूमने के दौरान मुझे कोई टूरिस्ट नहीं मिला। ज्यादातर लोग के लिए रामपुर गेटवे की तरह है। वे यहां आते हैं और यहां से रिकांगपिओ, कल्पा और नाको के लिए चले जाते हैं। रामपुर बुशहर बेहद छोटा लेकिन प्यारा शहर है। मैं इस जगह को हिमाचल प्रदेश की सबसे अच्छी जगहों में रखूंगा। 

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