मैंने जब से घूमना शुरू किया है, पहाड़ों में ही सबसे ज्यादा घूमा है। पहाड़ों में इतना घूमने के बाद मैं दावे से कह सकता हूं कि अगर कहीं जन्नत है तो वो इन पहाड़ों में है। इसके बावजूद मेरे मन में एक बात कचोटती थी कि अब तक हिमाचल घूमने नहीं जा पाया हूं। मैं हिमाचल जाना चाहता था लेकिन किसी न किसी वजह से हर बार प्लान कैंसिल हो जाता था। अबकी मेरे पास मौका था तो मेरे हिमाचल जाने का प्लान बनाया और सफल भी हुआ।
मैंने अपनी इस यात्रा के बारे में कई लोगों को बताया। कुछ लोगों ने जाने के लिए हामी भर दी लेकिन कहते हैं न दोस्त तो होते ही हैं प्लान कैंसिल करने के लिए। अंत समय में ज्यादातर लोगों ने हिमाचल जाने से इंकार कर लिया। अब इस हिमाचल यात्रा को दो लोग करने वाले थे। हम दोनों लोग ही पहली बार हिमाचल जा रहे थे।यात्रा शुरू
3 जून 2022। मैं अपने घर से दिल्ली पहुंच गया। मेरे साथ जाने वाला साथी दिल्ली में ही रहता है। हम दोनों शाम 6 बजे आईएसबीटी कश्मीरी गेट पहुंच गए। मैंने हिमाचल परिवहन की वेबसाइट से पहले ही रोडवेज में टिकट बुक कर ली थी। हम दिल्ली से रामपुर बुशहर जा रहे थे। तय समय से बस भी आ गई और हमने अपनी सीट भी पकड़ ली। शाम 6:30 बजे बस दिल्ली से चल पड़ी।मुझे पूरा दिल्ली एक जैसा लगता है। इतने साल दिल्ली में रहने के बाद भी ये शहर मुझे अपना नहीं लगा। इस शहर से मैं दूर ही रहना पसंद करता हूं। हम दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों से आगे बढ़ते जा रहे थे। दिल्ली शहर से निकलने के बाद भी दिल्ली से निकलने में काफी समय लगता है। दिल्ली का विकास दिल्ली के आसपास भी फैला हुआ है। बातें करते-करते रात भी हो गई।
रात के बाद सुबह
रात 9 बजे बस अंबाला से पहले नीलखेड़ी में एक ढाबे पर रूकी। हाईवे पर बने इन ढाबों पर बसें रूकती तो हैं लेकिन यहां कभी खाने का मन नहीं करता है। हर सामान यहां बहुच महंगा होता है। लगभग आधे घंटे बस इस ढाबे पर रूकी रही और हम हाईवे के किनारे खड़े होकर आती-जाती गाड़ियों को देखने लगे। कुछ देर में बस चल पड़ी। हम फिर से अंधेरे रास्ते में बढ़ गई।
चंडीगढ़ बस स्टैंड। |
हिमाचल
अब तक हमारी नींद थोड़ी-थोड़ी देर में खुल रही थी लेकिन अब झटके लग रहे थे। हिमाचल प्रदेश में घुसते ही घुमावदार रास्ते शुरू हो गए। काफी देर यही सिलसिला चलता रहा। सुबह 4 बजने को थे और हमें शिमला दिखाई देने लगा था। ऐसा लग रहा था कि पहाड़ों में किसी ने लाखों जुगनू छोड़ दिए हों। रात में पहाड़ पर चलने वाली लाइटें आसमान में चमकने वाले तारों की तरह लग रही थी।
थोड़ी देर में बस शिमला पहुंच गई। हम हिमाचल प्रदेश पहली बार आए थे लेकिन अभी शिमली हमारी लिस्ट में नहीं था। हमें तो रामपुर बुशहर पहुंचना था। लगभग आधे घंटे बाद बस शिमला बस स्टैंड से चल पड़ी। शिमला से बस का ड्राइवर बदल चुका था। सुबह-सुबह शिमला में वो भीड़ नहीं थी जैसा मैंने अब तक सुन रखा था। हर बड़े शहर सुबह-सुबह शांत ही लगते हैं।कब आएगा रामपुर?
थोड़ी देर में उजाला होने लगा था। सुबह की उजली किरण में पहली बार हिमाचल को देख रहा था। हम गोल-गोल रास्ते से बढ़े जा रहे थे। चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और दूर तक फैली हरियाली दिखाई दे रही थी। इस हरियाली के बीच मैंने हिमाचल प्रदेश में पहली बार सूर्योदय देखा। हिमाचल में सेब की खेती बहुत ज्यादा होती है, ये शिमला से बढ़ते ही समझ में आ रहा था।
दूर-दूर तक सेब के पेड़ लगे हुए थे और उन पर जाली जैसा कुछ डला हुआ था। शायद पेड़ों को कीड़ों से बचाने के लिए ऐसा किया गया हो। थोड़ी देर बाद बस नारकंडा पर रूकी। नारकंडा मेरी बकेट लिस्ट में हमेशा से रहा है लेकिन हमारी इस यात्रा में नारकंडा शामिल नहीं था। फिलहाल तो हमें रामपुर जाना था। बस 13 घंटे घंटे के बाद लग रहा था कि ये रामपुर कब आएगा?
8 बजे हमारी बस एक ढाबे पर रूकी। अब तक गोल-गोल रास्ते पर घूमते हुए दिमाग चकरा गया था। थोड़ी देर के लिए ये ब्रेक जरूरी था। ढाबे के पास में घास पर ही लोट गया। बात करने पर पता चला कि इस जगह का नाम मुर्थल है जो कुमारसैन ब्लॉक में आती है। एक मुरथल दिल्ली के पास में है जहां दिल्ली से लोग कभी-कभार खाना खाने के लिए जाते हैं।मुर्थल से बस आगे बढ़ती गई। घुमावदार रास्ते के बाद हम सीधे रास्ते पर आ गए। हमारे बाएं तरफ सतलुज नदी बह रही थी। अब बस में लोकल लोग चढ़ रहे थे और उतर रहे थे। बस रूकने पर लोग चढ़ते या उतरते कंडक्टर लगभग हर बार एक ही आवाज देता, ताकी मार मतलब दरवाजा बंद करो। जब बस रूकती तो हम भी कहते. ताकी मार। जब हम रामपुर पहुंचे तब सुबह के 10 बज रहे थे। शहर को पार करने के बाद रामपुर बुशहर का बस स्टैंड आता है। इस छोटे-सी पहाड़ी शहर में हमें अपने लिए एक छोटा-सा कमरा खोजना था।
आगे की
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