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Saturday, 21 January 2023

हिमाचल प्रदेश के बिर से राजगुंधा वैली का यात्रा

 मुझे पहाड़ वाक़ई में बहुत पसंद हैं। मुझे नये-नये पहाड़ी शहरों और गाँवों में जाना अच्छा लगता है। एक नई जगह को देखना का एक अलग ही एहसास होता है। ऐसा लगता की आपने एक नया मुक़ाम हासिल कर लिया हो। मैं एक बार फिर से हिमाचल प्रदेश के एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार था। कुछ ही महीने पहले मैंने शिमला से स्पीति वैली की एक लंबी यात्रा की थी। अब मैं हिमाचल प्रदेश के बिर बिलिंग की यात्रा पर जा रहा था। पहले मुझे लगता था कि बिर बिलिंग एक ही जगह है लेकिन असल में बिर और बिलिंग दो अलग-अलग जगहें हैं। दिल्ली में कुछ वक़्त बिताने और मजनू टीला की गलियों में खोने के बाद हम शाम को दिल्ली से बिर के लिए निकल पड़े।

हिमाचल प्रदेश के बिर जाने के लिए आप सरकारी और वॉल्वो बस दोनों ले सकते हैं। रोडवेज़ बस समय ज़्यादा लगाती है इसलिए मैंने वॉल्वो बस से जाने का तय किया। बस मजनू टीला से चल पड़ी। कुछ ही देर में बस दिल्ली को पार करते हुए आगे बढ़ गई। रात के अंधेरे में नज़ारे कम आती-जाती हुई गाड़ियाँ ज़्यादा दिखाई देती हैं। बस रात के 11 बजे एक ढाबे पर रूकी। यहाँ मैंने छोले-भटूरे से पेट भरा। थोड़ी देर में बस फिर से चल पड़ी। मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। सुबह 6 बजे मेरी नींद खुली तो देखा कि बस पहाड़ी रास्तों पर बढ़ती जा रही थी। पता नहीं क्यों मुझे अच्छा नहीं लग रहा था? वाल्वो बस में उल्टी के लिए पॉलीथिन दी जाती हैं। मेरी सीट पर भी कई सारी थीं। मैंने एक बार उल्टी करनी शुरू की तो फिर तो कारवां बढ़ता जा रहा था। बस एक पेट्रोल पंप पर टायर बदलने के लिए रूकी तो मैं बाहर निकल गया।

बिर तो आ गए

कुछ देर में बस चल पड़ी लेकिन मेरी उल्टी का सिलसिला ख़त्म नहीं हुआ। मैं जल्दी से जल्दी बिर पहुँचना चाहता था। काफ़ी देर बाद बस बिर की तिब्बती कॉलोनी में रुकी। बस से उतरने के बाद मैं कुछ देर बाहर बैठा रहा। दिल्ली की मेरी एक दोस्त बिर में कुछ महीनों से यहीं रुकी हुई थी और एक दोस्त घूमने के लिए आई थी। बिर में उसके कमरे तक पैदल चलने लगे। पहली नज़र में बिर मुझे एक छोटी-सी जगह लगी। जहां छोटी-छोटी दुकानें दिखाई दे रहीं थीं। कुछ होटल भी रास्ते में मिले। कुछ देर में हम अपने दोस्तों के कमरे पर बैठे थे। बातों ही बातों में आगे जाने के प्लान के बारे में बात हुई। मैं तो यही सोचकर आया था कि पहले बिर घूमा जाएगा और फिर धर्मशाला की तरफ़ निकल जाएँगे लेकिन दोस्तों के साथ प्लान बदलने का भी अलग मज़ा है।

अब हम कुछ ही देर में राजगुंधा के लिए निकलने वाले थे। राजगुंधा जाने वाले हम 7 लोग हो चुके थे। हमने 3 स्कूटी किराए पर ले लीं और एक के पास ख़ुद की गाड़ी है। राजगुंधा जाने के दो रास्ते हैं, पहला बिलिंग होते हुए राजगुंधा जाएँ जो क़रीब 30 किमी. पड़ेगा लेकिन रास्ता बेहद ख़राब है। दूसरा लंबा रास्ता बरोट होते हुए है। हमारे पास पूरा दिन तो हमने उसी लंबे रास्ते से जाने का तय किया। कुछ ही देर में हम सबके पास स्कूटी थी और हम पहाड़ी रास्तों से बढ़ते जा रहे था। मुझे पहाड़ों में स्कूटी चलाने में बहुत मज़ा आता है। हमने एक ढाबे पर खाना भी खाया और फिर से चल पड़े। दोपहर के दो बजे हम बरोट पहुँच गए। बरोट के बारे में काफ़ी सुना था लेकिन पहली बार देख रहा था। बरोट तो बिर से भी छोटी जगह है लेकिन बेहद खूबसूरत है। बिर में उह्ल नदी बहती है जो इस जगह को और सुंदर बनाती है। कुछ लोगों को यहाँ खाना खाना था इसलिए मैं नदी किनारे चला गया। क़रीब घंटे हम बरोट में रहे। बरोट ऐसी जगह है जहां कुछ दिन गुज़ारने चाहिए।

असली परीक्षा तो अब

बरोट से हमें अब राजगुंधा जाना था। बरोट से राजगुंधा क़रीब 26 किमी. है। हम बरोट से राजगुंधा की तरफ़ चल पड़े। अब तक हम आसान रास्ते से चलते आ रहे थे और हम ऐसा सोच भी रहे थे कि आगे भी ऐसा ही रास्ता होगा। हम अपनी स्पीड से बढ़ते जा रहे थे। कुछ देर चलने पर बारिश अचानक शुरू हो गई। हम ऐसी ख़ाली जगह पर थे जहां छुपने का ठिकाना नहीं थी। हम एक पेड़ के नीचे रूक गए लेकिन हमारा भींगना जारी रहा। साथ ही लैंडस्लाइड का भी ख़तरा था। पीछे एक शेल्टर बना हुआ था लेकिन वहाँ जाने का मतलब है पूरा भीग जाएँगे। फिर भी हम भीगते हुए उस जगह पर पहुँच गए। हमारे कुछ साथी पहले से वहाँ थे। अब हमें बारिश रूकने का इंतज़ार करना था। भींगने की वजह से ठंड भी काफ़ी लग रही थी।

कुछ देर बाद बारिश रूक गई। हमने आगे चलने का तय किया क्योंकि शाम हो रही थी और हमें अपनी मंज़िल तक पहुँचना था। कुछ देर बाद हम एक गाँव दिखाई दिया। हमें लगा कि अब हम पहुँच गए लेकिन अभी तो काफ़ी चलना था। हम बढ़ते जा रहे थे लेकिन हमारी मंज़िल नहीं आई थी। फिर एक ऐसा रास्ता आया कि लगा कि इसे पार करना तो मुश्किल है। हमें कच्चे रास्ते से ऊपर चढ़ना था। रास्ता पूरा ऊबड़-खाबड़ था और बारिश होने की वजह से फिसलन भी हो गई थी। ये चढ़ाई काफ़ी लंबी थी। इस चढ़ाई को हमने बहुत मुश्किल से चढ़ा। इस रास्ते पर दो लोग गिर भी गए थे। जब हम अपनी मंज़िल पर पहुँचे तो अंधेरा हो चुका था और हम थककर चूर हो गए थे।

हमारे लिए एक कमरे में आग की व्यवस्था की गई। कपड़े बदलकर हम आग के पास बैठ गए। उसके बाद बातों का सिलसिला शुरू हुआ। बिर से राजगुंधा की इस रोमांचक यात्रा को याद करके एक-दूसरे पर हंस रहे थे। राजगुंधा तक की यात्रा वाक़ई में रोमांचक थी। ऐसे रोमांच रोज़-रोज नहीं आते हैं लेकिन हमारी इस यात्रा में अभी तो रोमांच की शुरूआत हुई थी। खाना खाने और कुछ मस्ती धमाल करने के बाद मैं एक टेंट पर जाकर लेट गया। कुछ ही देर में नींद की आग़ोश में चला गया। राजगुंधा में अभी तो एक और शानदार सफ़र बाक़ी था।

आगे की यात्रा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

Friday, 22 July 2022

पहली हिमाचल यात्रा: दिल्ली से रामपुर बुशहर की यात्रा काफी लंबी व शानदार रही!

मैंने जब से घूमना शुरू किया है, पहाड़ों में ही सबसे ज्यादा घूमा है। पहाड़ों में इतना घूमने के बाद मैं दावे से कह सकता हूं कि अगर कहीं जन्नत है तो वो इन पहाड़ों में है। इसके बावजूद मेरे मन में एक बात कचोटती थी कि अब तक हिमाचल घूमने नहीं जा पाया हूं। मैं हिमाचल जाना चाहता था लेकिन किसी न किसी वजह से हर बार प्लान कैंसिल हो जाता था। अबकी मेरे पास मौका था तो मेरे हिमाचल जाने का प्लान बनाया और सफल भी हुआ।

मैंने अपनी इस यात्रा के बारे में कई लोगों को बताया। कुछ लोगों ने जाने के लिए हामी भर दी लेकिन कहते हैं न दोस्त तो होते ही हैं प्लान कैंसिल करने के लिए। अंत समय में ज्यादातर लोगों ने हिमाचल जाने से इंकार कर लिया। अब इस हिमाचल यात्रा को दो लोग करने वाले थे। हम दोनों लोग ही पहली बार हिमाचल जा रहे थे।

यात्रा शुरू

3 जून 2022। मैं अपने घर से दिल्ली पहुंच गया। मेरे साथ जाने वाला साथी दिल्ली में ही रहता है। हम दोनों शाम 6 बजे आईएसबीटी कश्मीरी गेट पहुंच गए। मैंने हिमाचल परिवहन की वेबसाइट से पहले ही रोडवेज में टिकट बुक कर ली थी। हम दिल्ली से रामपुर बुशहर जा रहे थे। तय समय से बस भी आ गई और हमने अपनी सीट भी पकड़ ली। शाम 6:30 बजे बस दिल्ली से चल पड़ी।

मुझे पूरा दिल्ली एक जैसा लगता है। इतने साल दिल्ली में रहने के बाद भी ये शहर मुझे अपना नहीं लगा। इस शहर से मैं दूर ही रहना पसंद करता हूं। हम दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों से आगे बढ़ते जा रहे थे। दिल्ली शहर से निकलने के बाद भी दिल्ली से निकलने में काफी समय लगता है। दिल्ली का विकास दिल्ली के आसपास भी फैला हुआ है। बातें करते-करते रात भी हो गई।

रात के बाद सुबह

रात 9 बजे बस अंबाला से पहले नीलखेड़ी में एक ढाबे पर रूकी। हाईवे पर बने इन ढाबों पर बसें रूकती तो हैं लेकिन यहां कभी खाने का मन नहीं करता है। हर सामान यहां बहुच महंगा होता है। लगभग आधे घंटे बस इस ढाबे पर रूकी रही और हम हाईवे के किनारे खड़े होकर आती-जाती गाड़ियों को देखने लगे। कुछ देर में बस चल पड़ी। हम फिर से अंधेरे रास्ते में बढ़ गई।

चंडीगढ़ बस स्टैंड।
अब नींद आने लगी थी लेकिन बस का सफर सोने कहां देता है? हम सो रहे थे लेकिन बार-बार नींद खुल जा रही थी। रात 12 बजे बस चंड़ीगढ़ पहुंची। उसके बाद कालका। कालका वही जगह है, जहां से शिमला के लिए टॉय ट्रेन चलती है। कालका के बाद एक चेक पोस्ट आता है, परवानू चेक पोस्ट। यहीं से हिमाचल प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। हिमाचल प्रदेश शुरू होते ही हरियाली शुरू हो गई। ऐसा लगा कि कंक्रीट का शहर छोड़कर नई जगह पर आ गए हों।

हिमाचल

अब तक हमारी नींद थोड़ी-थोड़ी देर में खुल रही थी लेकिन अब झटके लग रहे थे। हिमाचल प्रदेश में घुसते ही घुमावदार रास्ते शुरू हो गए। काफी देर यही सिलसिला चलता रहा। सुबह 4 बजने को थे और हमें शिमला दिखाई देने लगा था। ऐसा लग रहा था कि पहाड़ों में किसी ने लाखों जुगनू छोड़ दिए हों। रात में पहाड़ पर चलने वाली लाइटें आसमान में चमकने वाले तारों की तरह लग रही थी।

थोड़ी देर में बस शिमला पहुंच गई। हम हिमाचल प्रदेश पहली बार आए थे लेकिन अभी शिमली हमारी लिस्ट में नहीं था। हमें तो रामपुर बुशहर पहुंचना था। लगभग आधे घंटे बाद बस शिमला बस स्टैंड से चल पड़ी। शिमला से बस का ड्राइवर बदल चुका था। सुबह-सुबह शिमला में वो भीड़ नहीं थी जैसा मैंने अब तक सुन रखा था। हर बड़े शहर सुबह-सुबह शांत ही लगते हैं।

कब आएगा रामपुर?

थोड़ी देर में उजाला होने लगा था। सुबह की उजली किरण में पहली बार हिमाचल को देख रहा था। हम गोल-गोल रास्ते से बढ़े जा रहे थे। चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और दूर तक फैली हरियाली दिखाई दे रही थी। इस हरियाली के बीच मैंने हिमाचल प्रदेश में पहली बार सूर्योदय देखा। हिमाचल में सेब की खेती बहुत ज्यादा होती है, ये शिमला से बढ़ते ही समझ में आ रहा था।

दूर-दूर तक सेब के पेड़ लगे हुए थे और उन पर जाली जैसा कुछ डला हुआ था। शायद पेड़ों को कीड़ों से बचाने के लिए ऐसा किया गया हो। थोड़ी देर बाद बस नारकंडा पर रूकी। नारकंडा मेरी बकेट लिस्ट में हमेशा से रहा है लेकिन हमारी इस यात्रा में नारकंडा शामिल नहीं था। फिलहाल तो हमें रामपुर जाना था। बस 13 घंटे घंटे के बाद लग रहा था कि ये रामपुर कब आएगा?

8 बजे हमारी बस एक ढाबे पर रूकी। अब तक गोल-गोल रास्ते पर घूमते हुए दिमाग चकरा गया था। थोड़ी देर के लिए ये ब्रेक जरूरी था। ढाबे के पास में घास पर ही लोट गया। बात करने पर पता चला कि इस जगह का नाम मुर्थल है जो कुमारसैन ब्लॉक में आती है। एक मुरथल दिल्ली के पास में है जहां दिल्ली से लोग कभी-कभार खाना खाने के लिए जाते हैं।

मुर्थल से बस आगे बढ़ती गई। घुमावदार रास्ते के बाद हम सीधे रास्ते पर आ गए। हमारे बाएं तरफ सतलुज नदी बह रही थी। अब बस में लोकल लोग चढ़ रहे थे और उतर रहे थे। बस रूकने पर लोग चढ़ते या उतरते कंडक्टर लगभग हर बार एक ही आवाज देता, ताकी मार मतलब दरवाजा बंद करो। जब बस रूकती तो हम भी कहते. ताकी मार। जब हम रामपुर पहुंचे तब सुबह के 10 बज रहे थे। शहर को पार करने के बाद रामपुर बुशहर का बस स्टैंड आता है। इस छोटे-सी पहाड़ी शहर में हमें अपने लिए एक छोटा-सा कमरा खोजना था।

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Friday, 17 June 2022

जिम कार्बेट नेशनल पार्क में पहला दिन कुछ इस तरीके से बीता

उत्तराखंड मेरे लिए एक ऐसी जगह है जहां मैं बार-बार जाता हूं। उत्तराखंड में मुझे कुछ अपनापन-सा लगता है इसलिए यहां की नई-नई जगहों पर जाता रहता हूं। अभी महीने भर पहले देवप्रयाग, मसूरी, लंढौर, ऋषिकेश और हरिद्वार की यात्रा करके आया था और अब फिर से उत्तराखंड की कुछ नई जगहों पर जाने के लिए तैयार थे। अब तक मैंने उत्तराखंड में गढ़वाल की ही यात्रा की है लेकिन इस बार मैं उत्तराखंड के कुमाऊं की यात्रा करने वाला था। मैं और मेरा दोस्त दिल्ली आ चुके थे।

23 अप्रैल 2022 को हम दोनों पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर थे। यहां से उत्तरांचल क्रांति एक्सप्रेस से हमें रामनगर जाना था। ये ट्रेन एक लिंक एक्सप्रेस हैं। मुरादाबाद में ये ट्रेन दो भागों में बंट जाती है। एक जाती है, रामनगर और दूसरी ट्रेन जाती हल्द्वानी और काठगोदाम जाती है। 4 बजे जाने वाली ट्रेन आधे घंटे लेट दिल्ली पहुंची। कुछ देर बाद हम जनरल डिब्बे में बैठे थे और लगभग 5 बजे ट्रेन पुरानी दिल्ली से चल पढ़ी।

दिल्ली से रामनगर

आप चाहे जितना रोड ट्रिप औप फ्लाइट से यात्रा कर लें लेकिन असली यात्रा तो ट्रेन से होती है। कहते हैं कि असली भारत को देखना है तो ट्रेन से यात्रा करिए। ट्रेन से बाहर के सारे नजारे एक जैसे ही लगते हैं। अप्रैल के महीने में ट्रेन में गर्मी का एहसास हो रहा था। शाम 7 बजे ट्रेन मुरादाबाद पहुंची। यहां से ट्रेन दो भागों में बंटती है। मुझे लगा था कि मुरादाबाद में ट्रेन रुकेगी लेकिन 10 मिनट में हमारी ट्रेन चल पड़ी।

मुरादाबाद के बाद ट्रेन में भीड़ कम होने लगी थी। इतने जल्दी ट्रेन में नींद भी नहीं आने वाली थी। रात के 9 बजे ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। पता चला कि रामनगर आ गया है। हमने सामान उठाया और रामनगर की ओर निकल पड़े। रामनगर उत्तराखंड का एक छोटा-सा कस्बा है जो नैनीताल जिले में आता है। रामनगर कुमाऊं इलाके में आता है और नैनाताल से 65 किमी. की दूरी पर है।

हमने रामगर में होटल खोजने के बजाया पहले से ही ऑनलाइन बुकिंग कर ली थी। रुद्राक्ष होटल रामनगर बस स्टैंड के पास में था। रामनगर रेलवे स्टेशन के बाहर से हम शेयर्ड टैक्सी में बैठ गए और कुछ देर बाद हम अपने होटल में थे। होटल में सामान रखकर हम बस स्टैंड के पास एक रेस्त्रां में गए डिनर किया और वापस आकर सो गये। 

जिम कार्बेट

अगले दिन सुबह उठे, तैयार हुए और नाश्ता करने के लिए निकल पड़े। बहुत देर तक घूमने के बाद हमने छोले-कुल्चे का स्वाद लिया। हमने जिम कार्बेट नेशनल पार्क के अंदर मंडाल रिजार्ट का पैकेज लिया था। रामनगर से हमें जिम कार्बेट जाना था। उसके लिए हमें मोहान चेक प्वाइंट पर पहुंचना था। जहां हमें रिजॉर्ट वाले लेने आने वाले थे। रामनगर से मोहान चेक प्वाइंट 20 किमी. की दूरी पर है।

बस स्टैंड से हम बस में बैठे। पूरा रास्ता हरियाली से भरा हुआ था। रास्ते में जिम कार्बेट नेशनल पार्क के कुछ गेट हमें मिले लेकिन हमे तो मोहान चेक प्वाइंट जाना था। कुछ देर बाद हम मोहान चेक प्वाइंट के एक रेस्टोरेंट में बैठे। कुछ देर बाद रिजॉर्ट के दो लोग हमें लेने आए। रिजार्ट के दोनों लोग एक जैसे कपड़े पहने हुए थे और उनकी टी-शर्ट के पीछे मंडाल रिजार्ट लिखा था।

जिप्सी गाड़ी में हम बैठे और गाड़ी चल पड़ी। गाड़ी थोड़ी देर तक तो मुख्य सड़क पर चलती रही लेकिन अचानक एक मोड़ से कच्चे रास्ते की ओर मुड़ गई। जंगल की ओर ले जाने वाला ये रास्ता खड़ी चढ़ाई जैसा था। ऊबड़-खाबड़ वाले इस रास्ते पर हम तो खुद को संभाले हुए थे, ड्राइवर भी एक हैंडल पकड़कर गाड़ी चला रहा था। कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा और फिर हम मंडाल रिजार्ट पहुंच गए।

जंगल के अंदर गांव

मंडाल रिजार्ट जिम कार्बेट नेशनल पार्क में तो है लेकिन एक गांव में स्थित है। गांव का नाम है बकराकोट। जिम कार्बेट नेशन पार्क के अंदर गांव है और उसी गांव में हम ठहरे हुए हैं। यहां हमें एक शानदार कमरा मिला। कमरा तो अच्छा था लेकिन उससे अच्छा था बाथरूम। ऐसा वॉशरूम मैंने सिर्फ फिल्मों में देखा था। बकराकोट में हमारे मोबाइल में कोई नेटवर्क नहीं था, यहां सिर्फ वोडाफोन चलता था और हमें ये बात पता नहीं थी। हालांकि रिजार्ट में वाईफाई था। 

कुछ देर हमने आराम किया और फिर शानदार लंच किया। 4 बजे मेरा काम शुरू हो जाता है। जब मैंने लैपटाप खोला तो पता चला कि वाईफाई चल ही नहीं रहा है। मैंने सोचा कमरे के अंदर नहीं चल रहा है। शायद कमरे के बाहर चले तो मैं बाहर चला गया। बाहर मंडाल रिजार्ट के मालिक रोहित थे। उनको अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने किसी के मोबाइल से इंटरनेट देकर मेरा काम शुरू करवा दिया।

जिप्सी राइड


देर रात तक मेरा काम ऐसा ही चलता रहा। रात में हम दोनो रोहित जी और मुंबई से आए दोस्तों के साथ गपशप करते रहे। बातों ही बातों में रोहित ने कहा जिप्सी राइड पर चलते हैं। कुछ देर बाद हम 6 लोग रात के अंधेरे में जिप्सी गाड़ी में बैठे हुए थे। रिजार्ट से आगे बढ़े तो देखा कि जंगल की आग फैलती जा रही है। मैंने उत्तराखंड के जंगलों में पहले भी आग लगते हुए देखी था लेकिन इतने पास से जंगल में आग को पहली बार देख रहा था।

उस आग को देखकर हम आगे बढ़ गये। हम रात के अंधेरे में सड़क चले जा रहे थे। रोहित जी ने बकराकोट बस स्टैंड पर गाड़ी रुकवाई और बताया कि एक टाइगर ने इसी जगह पर कुछ लोगों पर हमला किया था। उसके बाद ही यहां पर इस मंदिर को बनवाया था। हम रोहित जी से उनके अनुभवों और कहानियों को सुनते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। रोहित जी बीच-बीच में गाड़ी की लाइट बंद करते थे जो बेहद डरावना था। 

कुछ देर बाद हम नदी के किनारे पहुंच गए। नदी का पानी तेज होने की वजह से हमारी गाड़ी उस पार नहीं जा पा रही थी। इस वजह से हम वापस लौटने लगे। रोहित जी हमें बेहद ऊंचाई वाली जगह पर ले गए। इस जगह से जंगल एकदम शांत लग रहा था। हमें एक-एक पत्ते की आवाज सुनाई दे रही थी। रोहित ने बताया कि जानवर की आहट से पहले जंगल उसके बारे में बता देता है। रास्ते में हमें कई सांभर हिरण देखने को मिले। ये पहला मौका था कि हम सांभर हिरण को देख रहे थे। हम सब यही दुआ कर रहे थे कि बस टाइगर न मिले। लगभग 1 घंटे बाद हम वापस रिजार्ट में लौट आए। जिम कार्बेट में ये हमारा पहला दिन था। अभी तो हमें कुछ और रोमांचकारी अनुभव लेने थे।

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