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Monday, 4 July 2022

इन खूबसूरत झीलों को देखे बिना मेरी नैनीताल की यात्रा अधूरी ही रहती

कुछ जगहें होती हैं जो बहुत मशहूर होती हैं इसलिए यहां भीड़ भी बहुत होती है। मैं ऐसी जगहों पर जाने से दूर रहता हूं लेकिन मैं नैनीताल हमेशा से जाना चाहता था। वजह है यहां की खूब सारी झीलें। मुझे नैनीताल को देखने में इतनी ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी जितनी आसपास की झीलों को देखने में थी। हम नैनीताल में एक दिन पहले आ चुके थे लेकिन असली घुमक्कड़ी अब शुरू होने वाली थी।

27 अप्रैल 2022। हम सुबह-सुबह उठे और तैयार हो गए। हमने मल्लीताल में नाश्ता किया और अब हमें पैदल ही मॉल रोड जाना था। हमें नैनीताल को घूमने के लिए एक स्कूटी की जरूरत थी। हमने एक स्कूटी वाले से बात कर ली थी। सबसे पहले हम नैनी लेक को देखने गए। सुबह-सुबह नैनी लेक खूबसूरत लग रही थी। झील में इस समय बोटिंग नहीं हो रही थी। इस वजह से भी लेक अच्छी लग रही थी।

थोड़ी देर बाद हम मॉल रोड पर स्कूटी वाले की दुकान पर थे। यहां हमने टीवीएस की स्कूटी को 700 रुपए में रेंट पर ले लिया। हम दुकानदार से ही नैनीताल के आसपास की जगहों के रास्ते के बारे में पूछ लिया। अब हम स्कूटी से नैनीताल में थे और थोड़ी देर बाद ही नैनीताल से बाहर थे। हम सबसे पहले भवाली जाना था और वहां से नीम करौली कैंची धाम।

सफर शुरू

नैनीताल से भवाली 10 किमी. की दूरी पर है। हमने एक जगह पेट्रोल भरवाया और फिर आगे बढ़ चले। कुछ देर बाद शहर पीछे छूट गया और हम पहाड़ी रास्ते पर आगे बढ़ चले। घुमावदार रास्ते पर स्कूटी चलाने में वाकई में मुझे मजा आ रहा था। पहाड़ों में स्कूटी चलाने का एक अलग अनुभव होता है। मसूरी के बाद अब मैं नैनीताल में पहाड़ों में स्कूटी पर था। लगभग आधे घंटे बाद हम लोग भवाली पहुंच गए। यहां से हमें तीन रास्ते मिले। एक रास्ता मुक्तेश्वर की ओर जा रहा था। एक रास्ता भीमताल की तरफ और एक कैंची धाम।

हमने नीम करौली कैंची धाम का रास्ता पकड़ लिया। थोड़ी ही दूर चले थे तो हम एक जगह आग लगी दिखी। गर्मियों में पहाड़ों में अक्सर आग लग जाती है। यहां तो चीड़ के पेड़ भी बहुत हैं जिसकी वजह से आग अक्सर लग जाती है। हम फिर से घुमावदार रास्ते पर बढ़ने लगे। कुछ देर बाद हम कैंची धाम पहुंच गए। कैंची धाम नीम करौरी बाबा का है।

कैंची धाम

कैंची धाम।
कैंची धाम रोड किनारे की स्थित है। हम उस आश्रम को देखने के लिए बढ़ गए। परिसर के अंदर फोटो खींचना मना था। हम उसी का पालन करते हुए आश्रम को देख रहे थे। आश्रम में कई सारे मंदिर थे जिसमें एक मंदिर नीम करौरी महाराज का भी था। जिसमें उनकी एक मूर्ति भी रखी हुई है। परिसर को देखने के बाद हम बाहर आ गए। स्कूटी उठाई और भवाली की ओर बढ़ चले। 

अब हम नैनीताल के आसपास की झीलों को देखना था। सबसे पहले हमें भीमताल जाना था। इसके लिए हम वापस उसी रास्ते से भवाली जा रहे थे। कुछ देर बाद हम लोग भवाली पहुंच गए। यहां से हमने भीमताल जाने वाला रास्ता पकड़ लिया। भवाली से भीमताल की दूरी 11 किमी. है। घुमावदार रास्ते से बढ़े जा रहे थे और भीमताल पहुंचने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा।

भीमताल लेक

भीमताल लेक।
भीमताल लेक के चारों तरफ सड़क है हालांकि लेक के आसपास लोगों की भीड़ न के बराबर थी। इस लेक में भी बोटिंग होती है लेकिन हमारा ऐसा करने का कोई मन नहीं था। भीमताल नैनीताल जिले का एक कस्बा है। झील का पानी एकदम हरा और साफ था। यहां पर हम कुछ देर रूके और फिर आगे बढ़ चले।

भीमताल से अब हमें नौकुचियाताल जाना था। भीमताल से नौकुचियाताल लगभग 9 किमी. की दूरी पर है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, रास्ता सुंदर होता जा रहा था। लोगों से लेक का रास्ता पूछते हुए हम नौकुचियाताल पहुंच गए। हमने अपनी गाड़ी पास में ही पार्क कर दी और लेक देखने पहुंच गए। नौकुचियाताल लेक भीमताल लेक से बड़ी लग रही थी।

नौकुचियाताल लेक

नौकुचियाताल लेक।
नौकुचियाताल लेक के चारों तरफ हरे-भरे पेड़ और खूबसूरत पहाड़ थे। लेक में लोग बोटिंग कर रहे थे। किनारे में कुछ बत्तख भी थीं। नौकुचियाताल लेक नैनीताल की सबसे गहरी झील में से एक है। ये लेक 983 मीटर लंबी, 693 मीटर चौड़ी और 40 मीटर गहरी है। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था इसलिए यहीं एक दुकान पर मैगी खाई।

पिछली यात्रा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

नौकुचियाताल लेक के ठीक बगल पर एक और छोटी सी झील है। इस लेक का पानी काफी गंदा था। मैगी वाले ने बताया कि ये कमलताल लेक है। कुछ दिनों के बाद पूरी झील कमल से भर जाती है। वाकई में वो खूबसूरत नजारा होता होगा। दोनों झीलों को देखने के बाद हम आगे बढ़ गए। अब हमे सात ताल लेक देखने जाना था।

सातताल लेक

सातातल झील।
हम फिर से अपनी स्कूटी से आगे बढ़े जा रहे थे। इस बार हमें कुछ लंबी दूरी नापनी थी। नौकुचियाताल से सात ताल लगभग 17 किमी. की दूरी पर है। सबसे पहले हम भीमताल आए और वहां से सात ताल के रास्ते पर चल पढ़े। कुछ देर चलने के बाद हम मुख्य सड़क से गांवों वाले रास्ते पर चलने लगते हैं। सातताल लेक तक का रास्ता वाकई में शानदार है। गांवों से होकर जाने वाले इस रास्ते में हरियाली ही हरियाली है। रास्ते में हमें बहुत ज्यादा गाड़ियां भी नहीं मिलीं।

हमें बहुत जोर की भूख लगी थी और हमें कुमाऊंनी थाली भी खानी थी। सात ताल में पहुंचने के बाद हमने अपने लिए एक ढाबे से कुमाऊंनी थाली मंगवा ली। इस कुमाऊंनी थाली में हमें आलू के गुटके, भट्ट की दाल, कुमाऊंना रायता, झोली, भांग की चटनी, मडुवा की रोटी और चावल मिले। थाली वाकई में शानदार थी। पेट पूजा करने के बाद हम सात ताल लेक को देखने लिए निकल पड़े।

सातताल लेक सात ताजे पानी की झीलों से मिलकर बनी हुई है। ये झील काफी बड़ी भी है। ये काफी सुंदर भी है। सातताल में लोगों की भीड़ भी कम थी और चारों तरफ हरियाली भी बहुत थी। यहां पर भी बोटिंग होती है लेकिन हमें पैदल घूमने में ही अच्छा लग रहा था। हम लेक के पास ही एक जगह जाकर बैठ गए। यहां हम काफी देर बैठे रहे। एक बुजुर्ग व्यक्ति रस्सी के सहारे पानी में गोते लगा रहा था और उसकी पत्नी फोटो खींच रही थी। ऐसे ही कई नजारों को सातताल में हम देख रहे थे। नैनीताल का सफर अभी खत्म नहीं हुआ था। अभी तो हमें कई सारे एडवेंचर करने थे।

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Saturday, 2 July 2022

रामनगर से नैनीताल की यात्रा वाकई में शानदार रही!

जिम कार्बेट नेशनल पार्क के एक रिजॉर्ट में हमें दो दिन हो चुके थे। अब हमें आगे एक नई यात्रा पर निकलना था। हम सुबह-सुबह उठकर जल्दी तैयार हुए और नाश्ता किया। रिजार्ट की एक गाड़ी हमें भकराकोट बस स्टैंड पर ले गई। पहाड़ों में बस का इंतजार करना भी एक अनुभव है। कुछ देर बाद बस आई और हम अब एक नई जगह की यात्रा के लिए निकल पड़े।

थोड़ी देर बाद हम नेटवर्क जोन में आ गए। मोबाइल में नेटवर्क आते ही मैसेज और नोटिफिकेशन की झड़ी लग गई। कुछ देर हम मोबाइल में ही घुसे रहे। इस बस से हम रामनगर जा रहे थे। जहां से हमें दूसरी बस पकड़नी थी। उस बस को पकड़ने से पहले मुझे रामनगर में ही अपने एक दोस्त से मिलना था। हम उसे बस में ही फोन कर चुके थे। थोड़ी देर बाद हम रामनगर के बस स्टैंड पर थे। यहीं से हमारी यात्रा शुरू होनी थी।

इंतजार

26 अप्रैल 2022 ही वो तारीख थी जिस दिन हम बस स्टैंड के सामने एक रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे और अपनी दोस्त का इंतजार कर रहे थे। काफी इंतजार के बाद कविता अस्वाल के दर्शन हुए। कविता और मैंने हरिद्वार के देव संस्कृति विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन साथ में की है। कविता उत्तराखंड की ही रहने वाली है। उसे रामनगर के बारे में पता है तो हमें एक रेस्टोरेंट में ले गई। जहां हमने खूब सारा खाया और गपशप भी काफी की।



थोड़ी देर बाद हम सब बस स्टैंड पर आए। कविता को बाय-बाय किया और नैनीताल जाने वाली बस में धमक गए। नैनीताल जाने वाली बस में काफी भीड़ थी। मुझे सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने की जगह मिली। रामनगर से नैनीताल 105 किमी. की दूरी पर है। अब तक हम मैदानी इलाके में थे लेकिन अब हम पहाड़ी इलाके में जाने वाले थे। बस अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी। हरे भरे जंगलों और लोगों को पीछे छोड़ती जा रही थी।

खूबसूरत पहाड़

लगभग 1 घंटे बाद कालाढूंगी नाम की जगह पर बस रूकी। यहां बस आधे घंटे तक रुकी रही। यहां बस इतनी ज्यादा भर गई थी कि लग रहा था हम गलती से यूपी रोडवेज की बस में बैठ गए हों। आधे घंटे बाद बस चल पड़ी। कुछ देर बाद बस मैदानी इलाकों को छोड़कर पहाड़ों में घुस गई। अब रास्ता घुमावदार हो गया था और नजारे खूबसूरत हो चले थे। मसूरी जैसे ही रास्ते पर बस बढ़ी जा रही थी।

रास्ता वाकई में खूबसूरत था। चारों तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली थी। घुमावदार रास्ते की वजह से बस की स्पीड कम हो चुकी थी। हम आराम-आराम से बढ़े जा रहे थे। जब रास्ते इतने खूबसूरत हों तो लंबी यात्राएं भी अखरती नहीं हैं। हम काफी ऊंचाई पर आ चुके थे। मौसम में ठंडक महसूस हो रही थी। जब रास्ते में कई सारे होटल और रिजार्ट दिखने लगे तो हम समझ गए कि हमारी मंजिल आने वाली है। कुछ देर बाद हम नैनीताल के बस स्टैंड पर थे।

मल्लीताल में ठिकाना

मैं पहली बार नैनीताल आया था। नैनीताल तक रास्ता तो खूबसूरत था अब इस शहर को देखना था। सबसे पहले हमें एक कमरा देखना था जो बहुत महंगा न हो। नैनीताल में ऐसे ही घूमते हुए हम मल्लीताल पहुंच गए। जहां हमें सस्ता-सा कमरा मिल गया। कमरा में पंखा नहीं था। होटल वाले ने कहा, यहां आपको पंखे की जरूरत नहीं पड़ेगी। 4 घंटे की लंबी यात्रा के बाद थोड़ी थकावट। शरीर आराम मांग रहा था।

शाम में हम खाना खाने और नैनीताल को देखने के लिए निकल पड़े। हम जिस जगह ठहरे थे वहां से झील काफी दूर थी। हमने सबसे पहले एक जगह पर खाना खाया और फिर पैदल-पैदल नैनीताल की सड़कों पर चल पड़े। हम ढलान पर उतरते जा रहे थे। कुछ देर बाद नैनीताल का बाजार शुरू हो गया। सड़कों पर लोगों और गाड़ियों की काफी भीड़ थी। काफी चलने के बाद हम झील के पास पहुंचे।

रात में नैनीताल

नैनी लेक के पास हमें सर्दी थोड़ी ज्यादा लग रही थी। मौसम तो ठंडा था लेकिन वातावारण पूरा गर्म था। झील के पास बहुत भीड़ थी। लेक के पास पूरा मेला लगा हुआ था। यहां आपको हर चीच मिल जाएगी। हमें कुछ खरीदना तो नहीं था इसलिए हम भटक रहे थे। काफी देर तक टहलने के बाद लेक किनारे एक जगह पर बैठ गए। पास में भी भुट्टे वाले का ठेला लगा हुआ था।

अंधेरा हो चुका था और झील अब शांत लग रही थी। झील बिना बोटिंग के ही अच्छी लगती है। झील के ऊपर पहाड़ों पर छोटे-छोटे बल्ब तारों की तरह चमक रहे थे। ऐसा लग रहा था कि नैनीताल के पहाड़ों पर आसमान के तारे टिमटिमा रहे थे। हर पहाड़ी शहर और कस्बे में आपको रात में ऐसा ही नजारा देखने को मिलेगा। कुछ देर हम यहीं बैठे रहे और फिर मल्लीताल की ओर चल पड़े।

जब हम अपने कमरे से लेक तक आए थे तो ढलान की वजह से कठिनाई नहीं हुई थी। अब चढ़ाई में हालत खराब हो रही थी। काफी मशक्कत के बाद हम अपने कमरे पर पहुंचे। थकान की वजह से हम फिर से बिस्तर पर थे। अभी तो हम नैनीताल आए थे, इसे देखना और समझना दोनों बाकी था।

Friday, 17 June 2022

जिम कार्बेट नेशनल पार्क में पहला दिन कुछ इस तरीके से बीता

उत्तराखंड मेरे लिए एक ऐसी जगह है जहां मैं बार-बार जाता हूं। उत्तराखंड में मुझे कुछ अपनापन-सा लगता है इसलिए यहां की नई-नई जगहों पर जाता रहता हूं। अभी महीने भर पहले देवप्रयाग, मसूरी, लंढौर, ऋषिकेश और हरिद्वार की यात्रा करके आया था और अब फिर से उत्तराखंड की कुछ नई जगहों पर जाने के लिए तैयार थे। अब तक मैंने उत्तराखंड में गढ़वाल की ही यात्रा की है लेकिन इस बार मैं उत्तराखंड के कुमाऊं की यात्रा करने वाला था। मैं और मेरा दोस्त दिल्ली आ चुके थे।

23 अप्रैल 2022 को हम दोनों पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर थे। यहां से उत्तरांचल क्रांति एक्सप्रेस से हमें रामनगर जाना था। ये ट्रेन एक लिंक एक्सप्रेस हैं। मुरादाबाद में ये ट्रेन दो भागों में बंट जाती है। एक जाती है, रामनगर और दूसरी ट्रेन जाती हल्द्वानी और काठगोदाम जाती है। 4 बजे जाने वाली ट्रेन आधे घंटे लेट दिल्ली पहुंची। कुछ देर बाद हम जनरल डिब्बे में बैठे थे और लगभग 5 बजे ट्रेन पुरानी दिल्ली से चल पढ़ी।

दिल्ली से रामनगर

आप चाहे जितना रोड ट्रिप औप फ्लाइट से यात्रा कर लें लेकिन असली यात्रा तो ट्रेन से होती है। कहते हैं कि असली भारत को देखना है तो ट्रेन से यात्रा करिए। ट्रेन से बाहर के सारे नजारे एक जैसे ही लगते हैं। अप्रैल के महीने में ट्रेन में गर्मी का एहसास हो रहा था। शाम 7 बजे ट्रेन मुरादाबाद पहुंची। यहां से ट्रेन दो भागों में बंटती है। मुझे लगा था कि मुरादाबाद में ट्रेन रुकेगी लेकिन 10 मिनट में हमारी ट्रेन चल पड़ी।

मुरादाबाद के बाद ट्रेन में भीड़ कम होने लगी थी। इतने जल्दी ट्रेन में नींद भी नहीं आने वाली थी। रात के 9 बजे ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। पता चला कि रामनगर आ गया है। हमने सामान उठाया और रामनगर की ओर निकल पड़े। रामनगर उत्तराखंड का एक छोटा-सा कस्बा है जो नैनीताल जिले में आता है। रामनगर कुमाऊं इलाके में आता है और नैनाताल से 65 किमी. की दूरी पर है।

हमने रामगर में होटल खोजने के बजाया पहले से ही ऑनलाइन बुकिंग कर ली थी। रुद्राक्ष होटल रामनगर बस स्टैंड के पास में था। रामनगर रेलवे स्टेशन के बाहर से हम शेयर्ड टैक्सी में बैठ गए और कुछ देर बाद हम अपने होटल में थे। होटल में सामान रखकर हम बस स्टैंड के पास एक रेस्त्रां में गए डिनर किया और वापस आकर सो गये। 

जिम कार्बेट

अगले दिन सुबह उठे, तैयार हुए और नाश्ता करने के लिए निकल पड़े। बहुत देर तक घूमने के बाद हमने छोले-कुल्चे का स्वाद लिया। हमने जिम कार्बेट नेशनल पार्क के अंदर मंडाल रिजार्ट का पैकेज लिया था। रामनगर से हमें जिम कार्बेट जाना था। उसके लिए हमें मोहान चेक प्वाइंट पर पहुंचना था। जहां हमें रिजॉर्ट वाले लेने आने वाले थे। रामनगर से मोहान चेक प्वाइंट 20 किमी. की दूरी पर है।

बस स्टैंड से हम बस में बैठे। पूरा रास्ता हरियाली से भरा हुआ था। रास्ते में जिम कार्बेट नेशनल पार्क के कुछ गेट हमें मिले लेकिन हमे तो मोहान चेक प्वाइंट जाना था। कुछ देर बाद हम मोहान चेक प्वाइंट के एक रेस्टोरेंट में बैठे। कुछ देर बाद रिजॉर्ट के दो लोग हमें लेने आए। रिजार्ट के दोनों लोग एक जैसे कपड़े पहने हुए थे और उनकी टी-शर्ट के पीछे मंडाल रिजार्ट लिखा था।

जिप्सी गाड़ी में हम बैठे और गाड़ी चल पड़ी। गाड़ी थोड़ी देर तक तो मुख्य सड़क पर चलती रही लेकिन अचानक एक मोड़ से कच्चे रास्ते की ओर मुड़ गई। जंगल की ओर ले जाने वाला ये रास्ता खड़ी चढ़ाई जैसा था। ऊबड़-खाबड़ वाले इस रास्ते पर हम तो खुद को संभाले हुए थे, ड्राइवर भी एक हैंडल पकड़कर गाड़ी चला रहा था। कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा और फिर हम मंडाल रिजार्ट पहुंच गए।

जंगल के अंदर गांव

मंडाल रिजार्ट जिम कार्बेट नेशनल पार्क में तो है लेकिन एक गांव में स्थित है। गांव का नाम है बकराकोट। जिम कार्बेट नेशन पार्क के अंदर गांव है और उसी गांव में हम ठहरे हुए हैं। यहां हमें एक शानदार कमरा मिला। कमरा तो अच्छा था लेकिन उससे अच्छा था बाथरूम। ऐसा वॉशरूम मैंने सिर्फ फिल्मों में देखा था। बकराकोट में हमारे मोबाइल में कोई नेटवर्क नहीं था, यहां सिर्फ वोडाफोन चलता था और हमें ये बात पता नहीं थी। हालांकि रिजार्ट में वाईफाई था। 

कुछ देर हमने आराम किया और फिर शानदार लंच किया। 4 बजे मेरा काम शुरू हो जाता है। जब मैंने लैपटाप खोला तो पता चला कि वाईफाई चल ही नहीं रहा है। मैंने सोचा कमरे के अंदर नहीं चल रहा है। शायद कमरे के बाहर चले तो मैं बाहर चला गया। बाहर मंडाल रिजार्ट के मालिक रोहित थे। उनको अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने किसी के मोबाइल से इंटरनेट देकर मेरा काम शुरू करवा दिया।

जिप्सी राइड


देर रात तक मेरा काम ऐसा ही चलता रहा। रात में हम दोनो रोहित जी और मुंबई से आए दोस्तों के साथ गपशप करते रहे। बातों ही बातों में रोहित ने कहा जिप्सी राइड पर चलते हैं। कुछ देर बाद हम 6 लोग रात के अंधेरे में जिप्सी गाड़ी में बैठे हुए थे। रिजार्ट से आगे बढ़े तो देखा कि जंगल की आग फैलती जा रही है। मैंने उत्तराखंड के जंगलों में पहले भी आग लगते हुए देखी था लेकिन इतने पास से जंगल में आग को पहली बार देख रहा था।

उस आग को देखकर हम आगे बढ़ गये। हम रात के अंधेरे में सड़क चले जा रहे थे। रोहित जी ने बकराकोट बस स्टैंड पर गाड़ी रुकवाई और बताया कि एक टाइगर ने इसी जगह पर कुछ लोगों पर हमला किया था। उसके बाद ही यहां पर इस मंदिर को बनवाया था। हम रोहित जी से उनके अनुभवों और कहानियों को सुनते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। रोहित जी बीच-बीच में गाड़ी की लाइट बंद करते थे जो बेहद डरावना था। 

कुछ देर बाद हम नदी के किनारे पहुंच गए। नदी का पानी तेज होने की वजह से हमारी गाड़ी उस पार नहीं जा पा रही थी। इस वजह से हम वापस लौटने लगे। रोहित जी हमें बेहद ऊंचाई वाली जगह पर ले गए। इस जगह से जंगल एकदम शांत लग रहा था। हमें एक-एक पत्ते की आवाज सुनाई दे रही थी। रोहित ने बताया कि जानवर की आहट से पहले जंगल उसके बारे में बता देता है। रास्ते में हमें कई सांभर हिरण देखने को मिले। ये पहला मौका था कि हम सांभर हिरण को देख रहे थे। हम सब यही दुआ कर रहे थे कि बस टाइगर न मिले। लगभग 1 घंटे बाद हम वापस रिजार्ट में लौट आए। जिम कार्बेट में ये हमारा पहला दिन था। अभी तो हमें कुछ और रोमांचकारी अनुभव लेने थे।

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