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Saturday, 9 April 2022

सुंदर नजारों वाले इस छोटे-से ट्रेक ने मसूरी यात्रा को बना दिया लाजवाब

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घूमना इस दुनिया का सबसे खुशनुमा एहसास है। यात्रा में हम सिर्फ पहाड़ों, नदियों और झीलों के सुंदर नजारे नहीं देख रहे होते हैं बल्कि इस दुनिया को देखने का नजारा बदल जाता है। पहले मुझे घूमना पैसे और समय की बर्बादी लगती थी लेकिन जब से घुमक्कड़ी शुरू की है, घूमने के अलावा मुझे कुछ और सूझता ही नहीं है। दिमाग में वही चलता रहता है।

पहाड़ तो हर किसी को पसंद होते हैं। शांत और खूबसूरत लंढौर को देखने के बाद हम वापस मसूरी आ गए। अब हमें एक और नई जगह पर जाना था। हम फिर से स्कूटी से मसूरी से बाहर निकलकर एक नये रास्ते पर चल पड़े। ये रास्ता हमें मसूरी के जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक की ओर ले जा रहा था। मसूरी के लाइब्रेरी चौक से ये जगह 7-8 किमी. की दूरी पर है। हमारे पास स्कूटी थी सो हमें ज्यादा समय नहीं लगने वाला था।

हाथीपांव

हम छोटे-से रास्ते से आगे बढ़े जा रहे थे। जहां हमें दिक्कत आती, हम स्थानीय लोग से पूछ लेते। कुछ देर बाद हम खूबसूरत रास्ते पर थे। जहां लोगों के कम घर, कम होटल और लोगों की भीड़ नहीं थी। ऐसे रास्तों पर चलना हमेशा सुकून का एहसास कराता है। बीच-बीच में कुछ-कुछ रास्ता भी खराब था। इस ट्रेक का नाम जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर पड़ा है जो 1830 में भारत आया था।

कुछ देर बाद हम एक ऐसी जगह पर पहुंचे, जहां कुछ दुकानें थीं और खूब सारी गाड़ी रखी हुईं थीं। इस जगह का नाम है, हाथी पांव। इसके आगे गाड़ियां नहीं जाती हैं। चारों तरफ घन जंगल और हरा-भरा मैदान था और कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। हमने यहां अपनी गाड़ी रखी और इस छोटे-से ट्रेक को करने के लिए निकल पड़े।

आओ ट्रेक करें

मैंने आखिरी बार 3 साल पहले केदारकंठा का ट्रेक किया था। उस ट्रेक में तो आनंद ही आ गया था। जॉर्ज एवरेस्ट तक जाने के लिए डिजाइनदार पत्थर का रास्ता भी बना हुआ था और एक तरफ लोहे की रेलिंग भी लगी हुई थी। हम इसी रास्ते पर बढ़ते जा रहे थे। हेरीटेज पार्क तक चढ़ाई बिल्कुल आसान थी। हम बातें करते-करते आराम से इस पक्के रास्ते को पार गये।

पहले हम सोच रहे थे कि 1 किमी. का जो ये रास्ता है बस इतनी ही चढ़ाई करनी है लेकिन जब हम खुली जगह पर पहुंचे तो पता चला कि अभी तो लंबी चढ़ाई है। अब रास्ता भी बदल गया था और नजारे भी बदल गये थे। शुरूआत में कुछ दुकानें भी हैं। जहां मैगी से लेकर खाने-पीने का सामान मिल रहा था। हम इसको नजरंदाज करके आगे बढ़ गये।

जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक

जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक।
दुकानें से आगे बढ़े तो पहले आसपास चीड़ के पेड़ दिखाई दिए और फिर हरे-भरे जंगल। दूर-दूर हरे-भरे पहाड़ दिखाई दे रहे थे। ऐसे खूबसूरत नजारों के लिए इस छोटे-से ट्रेक को करना खल नहीं रहा था। ट्रेक करने वाले कई सारे लोग थे लेकिन इतनी भीड़ नहीं थी कि रास्ता भर गया हो। हम पहाड़ों के सुंदर और लुभावने नजारों को देखते हुए पतले से रास्ते पर बढ़े जा रहे थे।

हम थोड़ा चल रहे थे और फिर रूककर आसपास के दृश्यों को निहार रहे थे। हमें कहीं जाने की जल्दी भी नहीं थी इसलिए आराम-आराम से आगे बढ़ रहे थे। कुछ देर बाद सीढ़ियां आ गईं, जिन पर फिसलनदार छोटे-छोटे कंकड़ पड़े हुए थे। कुछ देर मैं उस जगह पर पहुंचा जहां रंग-बिरंगे झंडों पर कुछ मंत्र लिखे हुए थे। पहाड़ों में घूमने वली ज्यादातर जगहों पर ये झंडे जरूर होते हैं।

सबसे ऊंची जगह

कुछ देर की चढ़ाई के बाद हम जॉर्ज एवरेस्ट की चोटी पर थे। मसूरी की सबसे ऊंची जगह से सबसे खूबसूरत नजारे को देख रहे थे। ऊंचाई पर पहुंचकर सबसे कुछ छोटा और खूबसूरत लगने लगता है। यहां से दूर-दूर तक सिर्फ हरियाली और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। हमारे साथ चलते हुए एक कुत्ता भी यहां पर आ गया था। यहां मैं कुछ देर तक बैठा रहा। पहाड़ की ऊंची जगह पर बैठना वाकई अच्छा लगता है।

मसूरी का ये ट्रेक बिल्कुल भी कठिन नहीं था। मैं आराम से इस ट्रेक को कर गया लेकिन इस जगह पर आकर खराब भी नहीं लग रहा था। लुभावने नजारों ने मेरा दिन बना दिया। कुछ देर ठहरने के बाद हम नीचे उतर आये। पहले हम हाथीपांव पहुंचे और फिर वहां से मसूरी। शाम हो गई थी और मेरे काम करने का समय हो गया था। दोस्त की छुट्टी थी, सो वो मसूरी की अन्य जगहों को देखने के लिए निकल गया।

मसूरी में एक और दिन

हमने एक और दिन मसूरी में बिताया लेकिन इस दिन हम मसूरी शहर में ही घूमे। पहले हमने एक छोटी-सी दुकान पर मैगी खाई जोकि बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। फिर हमने मसूरी को पैदल नापा। लाइब्रेरी चौक पर बनी लाइब्रेरी में भी गये लेकिन वहां जाकर पता चला कि लाइब्रेरी में वही लोग जा सकते हैं जिनके पास मेंबरशिप हो। हम कुछ देर के लिए मेंबरशिप तो नहीं लेने वाले थे।

मसूरी।
मसूरी भीड़भाड़ वाला शहर है लेकिन शहर से बाहर बहुत खूबसूरती है। मेरा तो मानना है कि मुझे तो हर छोटी और लोकप्रिय जगह की यात्रा करनी है। मैं इससे पहले एक बार मसूरी कई साल पहले आया था लेकिन तब न इतनी समझ थी और न ही घूमने का बहुत शौक। अब तो हर रोज एक नये सफर पर जाने का मन करता है।

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Sunday, 13 October 2019

बारिश में रात के अंधेरे में ट्रेकिंग की है कभी?

यात्रा का पिछला भाग यहां पढ़ें। 

एक सफर में कई कहानियां घूमती रहती हैं। कभी वो कहानी दूसरों से सुनते हो तो कभी कुछ ऐसा हो जाता है। जो आपके लिए कहानी बन जाती है। यात्रा के बाद सफर ऐसी ही कहानियों से याद रहते हैं। जरूरी नहीं ये कहानी अच्छी ही हों, यात्राओं में काफी कुछ खराब भी होता है। इस सुंदर और खूबसूरत सफर की एक कहानी मेरी भी है। एक रात की कहानी, जिसे मैं याद नहीं करना चाहता। मेरे बस में होता तो मैं उस रात को किसी और तरीके से लिखना चाहता। अब जब भी आकाश को देखता हूं तो वो रात याद आ जाती है। लगता है कि फिर से बारिश होगी और मैं फिर से पहाड़ों से निकलने की कोशिश करुंगा।


फूलों की घाटी का ट्रेक पूरा करके हम चार बजे तक नीचे आ गये थे। हम अपने बिस्तर पर आराम कर रहे थे। अब हमें कहीं और नहीं जाना था। अब हमें लौटना था। लौटना, यात्राओं का वो सच है जिसे हर कोई अपनाता है। ऐसी खूबसूरत यात्राओं के बाद हम जहां लौटते हैं वो हमारा घर होता है। कई बार लौटने पर दुख होता है तो कई बार सुकून। तब एक एहसास की परत होती है जिसे कोई कैमरा, कोई शब्द बयां नहीं कर सकते। हम आपस में चर्चा कर रहे थे कि लौटना आज है या कल? मेरा मानना था कि आज ही लौटना चाहिए। उतरने में ज्यादा समय नहीं लगता है। आखिर में हमने रात को बेकार न करने के लिए उसी शाम को चलने का फैसला किया।

एक बेवकूफी भरा निर्णय


हम जब गुरूद्वारे से निकल रहे थे। वहां के स्थानीय लोगों ने हमें कहा, आज की रात यहीं गुजारो, सवेरे होते ही नीचे उतरना। उन्होंने कहा रात को जाना समझदारी भरा निर्णय नहीं है। रास्ते में जंगली जानवर का खतरा भी है। मेरे साथी ने मुझसे पूछा क्या करें? मैं तो अब भी अपनी बात पर टिका हुआ था। शाम के 6 बजे हम घांघरिया से पुलना के लिए नीचे चलने लगे। हम जल्दी-जल्दी चल रहे थे, हमने एक किलोमीटर का रास्ता कुछ ही मिनटों में तय कर लिया था। रास्ते में हमें थके हुए लोग मिल रहे थे। सब हमसे वही सवाल पूछ रहे थे, जो कुछ दिन पहले हम पूछ रहे थे। ‘अभी घांघरिया कितना दूर है।’


रास्ता ढलान वाला था, इसलिए हम रास्ते के फ्लो में धड़कते जा रहे थे। मैं चाहता था कि 5 किलोमीटर का ये रास्ता अंधेरा होना से पहले तय कर लूं। इस रास्ते पर पहले हम चल रहे थे, बाद में भाग रहे थे। हमारे तेज चलने से हमारा एक साथी पीछे रह गया था। हमने एक बार रूककर उसका इंतजार किया। कुछ मिनटों बाद हम तीनों रास्तों पर बढ़ रहे थे लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद हम फिर से अलग हो गए। हमें डर अंधेरे का नहीं था, डर था तो बस जंगली जानवरों का। रास्ते में हमें कुछ दुकानें और लोग मिलें। उन्होंने बताया कि रास्ते में जंगली जानवरों का कोई खतरा नहीं है। इस रास्ते में अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है।

घुप्प अंधेरा और बारिश


तेज गति से चलते-चलते एक घंटा हो गया था, अंधेरा भी होने वाला था। थोड़े ही आगे चलने पर नदी के बहने की आवाज सुनाई दी। नदी की कलकल आवाज सुनकर लग रहा था कि भ्युंडार गांव आने वाला है। थोड़ी देर बाद हम जंगल से बाहर निकलकर खुले मैदान में आ गए थे। यहां पहुंचकर मुझे बहुत खुशी हो रही थी। ये खुशी वैसी ही थी, जैसी प्यासे को पानी मिलने पर होती है। ऐसा लगा कि कुछ पा लिया हो। थोड़ी देर बाद हम उसी गांव की पहली दुकान पर बैठे थे। हम अपने तीसरे साथी का इंतजार कर रहे थे। थोड़ी देर बाद घाटी में अंधेरा उतरा आया। आज हमारी किस्मत अच्छी नहीं थी इसलिए रात भी चांदनी नहीं थी। दूर-दूर तक घुप्प अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। हमें आगे बढ़ने से ज्यादा, अपने तीसरे साथी की फिक्र हो रही थी।


थोड़ी देर में बारिश होने लगी, हमें लगा कि थोड़ी देर में रूक जाएगी। लेकिन बारिश रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी। हम अब तक खुशनसीब थे क्योंकि हमने लगातार बारिश का सामना कहीं नहीं किया था। अब हमें उसी बारिश का सामना करना था। कुछ देर बाद हमारा तीसरा साथी भी आ गया, जो काफी थका हुआ था। वो जब तक आराम कर रहा था। हम बारिश से बचने के इंतजाम में लगे हुए थे। पोंचा और रेनकोट अब हमारे काम आने वाला था। अब आगे का रास्ता हमें अंधेरे और बारिश के बीच तय करना था। हम सबका इस तरह का पहला अनुभव था।

बारिश में ट्रेकिंग


मुझे मन ही मन लग रहा था कि घांघरिया में उन लोगों की बात मान लेनी चाहिए थी। हम मोबाइल की टाॅर्च से अंधेरे में ही आगे बढ़ गए। चलने में अब परेशानी हो रही थी। रास्ता पूरा गीला हो चुका था और अंधेरे की वजह से हम धीरे-धीरे चल रहे थे। अब हम एक-दूसरे से दूर नहीं भाग सकते थे। हम एक साथ, आराम-आराम से आगे बढ़ रहे थे। अब हमें सिर्फ उतरना नहीं था, रास्ता चढ़ाई वाला भी था। डर इस बात का भी था कि पानी की वजह से पत्थर पर पैर फिसल भी सकता है। अंधेर में सब कुछ एक जैसा लग रहा था, खौफनाक। हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। हम सिर्फ सुन पा रहे थे। हम सुनाई दे रही थी नदी की आवाज और बारिश की बूंदों का गिरना। 


मोबाइल की लाइट में हम बढ़े जा रहे थे। बारिश तभी अच्छी लगती है जब आप उसे देख रहे होते हैं। तब तो और अच्छी लगती है जब पहाड़ों में किसी होटल की बालकनी से देखते हैं। लेकिन भारी बारिश में चलना बहुत खतरनाक होता है। उसी भयानक और खतरनाक रास्ते में हम चले जा रहे थे। बारिश के साथ-साथ थकावट भी हम पर हावी थी, इस वजह से हमें बार-बार रूकना भी पड़ रहा था। हमें रास्ते में पानी से बचने की एक जगह मिली। वहां पहुंचे तो 6-7 कुत्ते पहले से ही डेरा डाले हुए थे। कुछ देर वहां रूकने के बाद हम आगे बढ़ गए। पानी रेनकोट से अंदर जाने लगा था। ये बारिश हमें बीमार भी कर सकती थी लेकिन अभी तो हमें यहां से निकलना था।

सिरहन पैदा करने वाला नजारा 


चलते-चलते ऐसी जगह पहुंचे, जहां रास्ता में झरना बन गया था। हमने एक-दूसरे को पकड़कर वो रास्ता तय किया। थोड़ा आगे बढ़े तो जो देखा उसके बाद शरीर में सिहरन-सी दौड़ गई। सामने दो बड़ी-बड़ी चट्टानें गिरी हुई थीं, रास्ता बंद था। पानी की वजह से कुछ देर पहले ही ये पहाड़ यहां गिरा होगा। हमने जल्दी-से वो पत्थर पार किया और तेज कदमों से आगे बढ़ने लगे। डर क्या होता है? वो बस मेरी दिल की धड़कन बता रही थीं। ऐसा कुछ देखने के बाद सफर के खुशनुमा और खूबसूरत वाले नजारे गायब हो जाते हैं। हम बस उस खतरे से बाहर निकलना चाहते थे। अगर हम जल्दी आ गए होते तो हो सकता था कि इन पत्थरों को गिरते हुए देख पाते।


हम तेज कदमों से तो चल रहे थे लेकिन नजरें पहाड़ पर थी। अब हमें हर पल पहाड़ और खतरनाक लग रहा था। डर हम सबको लग रहा था और हम जाहिर भी कर रहे थे। रात के पहर में हमारा सुरक्षित निकलना बहुत जरूरी था। क्योंकि दूूूर-दूर तक हमारी मदद करने वाला कोई नहीं था। हमें पूरे रास्ते में कोई नहीं मिला था। हम तीन ही थे जो इस खतरनाक और खौफनाक रात में चल रहे थे। जब ऐसा कुछ होता है तो वैसा ही कुछ दिमाग में भी चलने लगता है। मुझे टी.वी. पर चलने वाली खबरें याद आने लगी थीं। ये सब होने के बाद हौंसला ही होता है जो आपको जूझने के लिए तैयार रखता है। यही वो समय होता है जब आपको सबसे ज्यादा हिम्मत दिखानी होती है।

पहली बार मैंने आंखों से प्रकृति का ऐसा रूप देखा था। अब लग रहा था कि सफर कुछ ज्यादा ही रोमांचक हो गया था।लग रहा था कि ये सफर कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है। पहली बार मैं इस सफर को खत्म करने के लिए बेसब्र था। थोड़ी देर बाद हम पुलना की सड़कों पर चल रहे थे। हम सड़क पर बैचेन होकर होटल और होमस्टे खोज रहे थे। हमें कुछ भी नहीं मिल रहा था। तभी हमें एक जगह होमस्टे का बोर्ड लगा हुआ दिखाई दिया। उसके नीचे नंबर भी लिखा हुआ था। उसे देखकर एक आशा जगी। मैंने नंबर लगा दिया, फिर याद आया यहां तो नेटवर्क नहीं है।

रोमांच के आखिरी पल


अगर पुलना में नहीं रूके तो फिर 4 किलोमीटर चलकर गोबिंदघाट जाना पड़ता। ऐसा करने की हममें से किसी की भी हिम्मत नहीं थी। जहां ये बोर्ड था, उसी के बगल से सीढ़ियां गईं हुई थीं। हम सीढ़िया उतरकर घर के मालिक को बुलाने लगे। एक शख्स बाहर आया, उसने बताया कि मेरा ही होमस्टे है। तब लगा कि अब कुछ आराम मिलेगा। हमें हमारा कमरा दे दिया गया। हमारे सारे कपड़े गीले हो चुके थे। हमने कपड़ों को कमरे में जगह-जगह टांग दिया। लाइट न होने की वजह से मोमबत्ती की रोशनी में बिस्तर पर जा गिरे। ये अगर और कोई दिन होता तो इस रात की तारीफ की जा सकती थी लेकिन अभी तो गिरी हुई चट्टान नजरों के सामने आ रही थी। थकान इतनी थी कि हमने ये भी नहीं पूछा कि कमरे का पैसा कितना होगा? हमें तो कहीं ठहरना था और हम इस घुप्प अंधेरे में बिस्तर पर पड़ गए।


ये पूरी यात्रा कई मायनों में सीखने के लिए बहुत अच्छी रही। इस यात्रा से मैंने कई अनुभव जुटाए। यात्रा की कई अच्छी और बुुरी बात जानी। ये भी कि अनहोनी को टालने से हमेशा बचो। सफर में जोश से ज्यादा, होश का होना बहुत जरूरी है। आपका एक बुरा निर्णय, कई लोगों को मुश्किल में डाल सकता है। इन मुश्किलों के बाद भी हम बचकर सही सलामत आ गए थे। अब मैं सोचता हूं कि उस रात जो हुआ। उसने मेरी इस यात्रा को और रोचक और यादगार बना दिया। जब मैं वापस लौट रहा था तो पिछले कुछ दिनों में जो-जो पाया था। उसकी छवि दिमाग में चल रही थीं। इन तमाम मुश्किलों के बाद मैं फिर से ऐसी ही किसी यात्रा पर जाने के लिए तैयार हूं।