Friday, 24 June 2022

जिम कार्बेट नेशनल पार्क के जंगल में की साइकिल राइड और ट्रेकिंग, ना भुलाने वाला अनुभव


पैकेज लेकर ग्रुप में घूमना मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। मुझे खुद से ही घूमना पसंद है। चाहे जितनी परेशानियां आएं लेकिन इसे ही मैं घुमक्कड़ी मानता हूं। पैकेज में आपको सबको पके पकाये खाने की तरह मिल जाता है। आपको कुछ नहीं करना होता है। खुद से घूमने में परिवहवन से लेकर होटल और खाने तक का प्रबंध सब कुछ करना होता है। ये पहली बार था कि मैं पैकेज लेकर किसी रिजार्ट में रूका था। इस पैकेज में मेरे कोई पैसे नहीं लग रहे थे इसलिए मुझे ऐसा करने में कोई गुरेज नहीं था।

मैंने इंटरनेट पर देखा था कि पैकेज में कई सारी गतिविधियां होती थीं। एक दिन पहले हम जिम कार्बेट नेशनल पार्क में रात में जिप्सी राइड पर गये थे। 25 अप्रैल 2022 को हम बिना इंटरनेट के सुबह-सुबह उठे। शहर की भीड़भाड़ से दूर ये हमारी शांति से भरी सुबब थी। हमें कुछ देर बाद जिम कार्बेट में ट्रेकिंग पर जाना था। हम लोग जल्दी-जल्दी तैयार हुए और नाश्ता किया। अब हम चलने को तैयार थे।

जंगल में सैर

हमारे साथ मंडाल रिजार्ट में काम करने वाले दो लोग थे जिनके साथ हम ट्रेक करने वाले थे। हम पैदल-पैदल बकराकोट गांव में चलने लगे। थोड़ा आगे चलने पर उन्होंने पेड़ से एक फल तोड़ा और बताया कि ये रुद्राक्ष है। फल को छीला तो वो रुद्राक्ष ही था। मैं पहली बार पेड़ पर रुद्राक्ष को देख रहा था। मैंने उस रुद्राक्ष को अपने पास रख लिया और आगे बढ़ने लगे। हमें जंगल में 6-7 किमी. पैदल चलना था। 

रुद्राक्ष।
मैंने पहाड़ों में काफी ट्रेकिंग की है लेकिन जंगल में पैदल चलने का पहला अनुभव है। थोड़ी देर में हम खुली जगह से घने जंगल में पहुँच गए। हमारे साथ जो दो लोग थे उन्होंने बताया कि हम जिम कार्बेट के बफर जोन में हैं। जिम कार्बेट नेशनल पार्क में तीन जोन हैं, बफर, कोर और रिजर्व। आग की वजह से कई जगहों पर जले हुए पेड़ मिल रहे थे। इन सबको पार करते हुए हम घने जंगल में बढ़ते जा रहे थे।

टाइगर मिला?

थोड़े आगे बढ़े तो गाइड ने हमें एक पैर का निशान दिखाया। उन्होंने बताया कि ये टाइगर का निशान है और 1 दिन पुराना लग रहा है। आगे बढ़ने पर गाइड ने कहा कि अपने कान और आंखें दोनों खुली रखना। उसका ये बयान चेतावनी की तरह लग रहा था। अब हम बिल्कुल आराम आराम से चले जा रहे थे। रास्ते में हमें एक जहरीला सांप भी मिला।
हमें अपने रास्ते पर बढ़ते जा रहे थे। जंगल इतना शांत था कि हमारे चलने की आवाज हमें साफ-साफ सुनाई दे रही थी। जंगल में लैंटाना ग्रास भी बहुत थी जो जंगल के लिए काफी खराब होती है। ऐसे ही अनजाने पेड़-पौधों के बारे में जानते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में हमें एक जगह और टाइगर का निशान मिला लेकिन अच्छी बात ये रही कि टाइगर अब तक नहीं मिला था और न ही हम चाहते थे कि आज हमें टाइगर दिखाई दे।

कुछ तो था

हम घने जंगल में बढ़े जा रहे थे। तभी गाइड ने हमें रूकने का इशारा दिया। मैंने एक जानवर को भागते हुए देखा लेकिन साफ-साफ नहीं देखा वो कौन-सा जानवर है? गाइड ने हमें वापस चलने को कहा। हम जल्दी-जल्दी पीछे लौटने लगे। अब हम दूसरे रास्ते पर चल रहे थे। गाइड ने बताया कि उसे वहां भालू कि गंध आ रही थी इसलिए वापस लौटे।

लगभग आधे घंटे के पैदल चलने के बाद हम अपने रिजार्ट वापस लौट आए। यहां हमने कुछ देर आराम किया और फिर लजीज खाना खाया। बिना इंटरनेट के यहां समय बिताना वाकई में अच्छा लग रहा था। हमने कुछ देर आराम किया और अब फिर से हमें जिम कार्बेट में ही साइकिल राइड पर जाना था। ये मेरे लिए अलग अनुभव था क्योंकि मैंने पहाड़ों में कभी साइकिल नहीं चलाई थी।

अब साइकिलिंग


इस बार साइकिल राइड पर हमारे साथ मंडाल रिजार्ट के होस्ट जाने वाले थे। पहले हम गाड़ी से ऊंचाई तक जाने वाले थे और फिर वहां से साइकिल चलाते हुए वापस आने वाले थे। प्लान में बदलाव हुआ और फिर हम साइकिल से ही ऊपर जाने के लिए तैयार हो गए जो वाकई में एक गलत फैसला था। 

हम थोड़ी देर तक तो आराम से साइकिल चला रहे थे लेकिन जैसा ही ऊंचाई वाला रास्ता आया, हमें पैदल चलना पड़ रहा था। समतल रास्ते आने पर हम साइकिल पर होते थे और ऊंचाई आने पर पैदल होते थे। तब मुझे समझ आया कि पहाड़ों में साइकिल यात्रा करना सबसे कठिन काम है। हम वापस लौटने के बारे में सोच रहे थे तब एक पिकअप दिखी। हमने लिफ्ट मांगी और उसने हमें लिफ्ट दी भी दी।

चलो वापस चलें

गाड़ी वाला इन घुमावदार रास्तों पर भी गोली की रफ्तार से गाड़ी चला रहा था। कुछ ही मिनटों में हम चिपटाखाल में थे। अब हमें यहां से साइकिल चलाते हुए वापस लौटना था जोकि आसान काम था क्योंकि पूरा रास्ता ढलान वाला था। हम आराम से चले जा रहे थे। ढलान इतनी ज्यादा थी कि हमें साइकिल का पैडल भी नहीं चलाना पड़ रहा था। हम लोग जिम कार्बेट के दुर्गा देवी गेट पर रूके और फिर आगे बढ़ चले।

मैं पहाड़ों में पहली बार साइकिल चला रहा था। इतना तो समझ आ चुका था कि कभी पहाड़ों की पूरी यात्रा साइकिल से तो बिल्कुल भी नहीं करूंगा। जब हम अपने गंतव्य तक पहुँचने वाले थे तो हमारे होस्ट एक जगह रूक गए। वो रूके तो हमें भी रूकना पड़ा। उन्होंने बताया कि देखो पेड़ पर लंगूर आवाज कर रहा है। 

उन्होंने बताया कि यहां पक्के में टाइगर है। वो देखने के लिए थोड़े आगे भी गए लेकिन बात बनी नहीं। कुछ देर के इंतजार के बाद हम जिम कार्बेट में हम वापस लौट आए। हमने रात में जिम कार्बेट के पूरे अनुभव को याद किया। मुझे पैकेज या किसी रिजार्ट में ऐसे ठहरकर घूमना पसंद नहीं है लेकिन ये वाकई में शानदार अनुभव था। अभी तो सफर शुरू हुआ था। अगले दिन फिर से हमें एक नई यात्रा पर निकलना था।

Friday, 17 June 2022

जिम कार्बेट नेशनल पार्क में पहला दिन कुछ इस तरीके से बीता

उत्तराखंड मेरे लिए एक ऐसी जगह है जहां मैं बार-बार जाता हूं। उत्तराखंड में मुझे कुछ अपनापन-सा लगता है इसलिए यहां की नई-नई जगहों पर जाता रहता हूं। अभी महीने भर पहले देवप्रयाग, मसूरी, लंढौर, ऋषिकेश और हरिद्वार की यात्रा करके आया था और अब फिर से उत्तराखंड की कुछ नई जगहों पर जाने के लिए तैयार थे। अब तक मैंने उत्तराखंड में गढ़वाल की ही यात्रा की है लेकिन इस बार मैं उत्तराखंड के कुमाऊं की यात्रा करने वाला था। मैं और मेरा दोस्त दिल्ली आ चुके थे।

23 अप्रैल 2022 को हम दोनों पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर थे। यहां से उत्तरांचल क्रांति एक्सप्रेस से हमें रामनगर जाना था। ये ट्रेन एक लिंक एक्सप्रेस हैं। मुरादाबाद में ये ट्रेन दो भागों में बंट जाती है। एक जाती है, रामनगर और दूसरी ट्रेन जाती हल्द्वानी और काठगोदाम जाती है। 4 बजे जाने वाली ट्रेन आधे घंटे लेट दिल्ली पहुंची। कुछ देर बाद हम जनरल डिब्बे में बैठे थे और लगभग 5 बजे ट्रेन पुरानी दिल्ली से चल पढ़ी।

दिल्ली से रामनगर

आप चाहे जितना रोड ट्रिप औप फ्लाइट से यात्रा कर लें लेकिन असली यात्रा तो ट्रेन से होती है। कहते हैं कि असली भारत को देखना है तो ट्रेन से यात्रा करिए। ट्रेन से बाहर के सारे नजारे एक जैसे ही लगते हैं। अप्रैल के महीने में ट्रेन में गर्मी का एहसास हो रहा था। शाम 7 बजे ट्रेन मुरादाबाद पहुंची। यहां से ट्रेन दो भागों में बंटती है। मुझे लगा था कि मुरादाबाद में ट्रेन रुकेगी लेकिन 10 मिनट में हमारी ट्रेन चल पड़ी।

मुरादाबाद के बाद ट्रेन में भीड़ कम होने लगी थी। इतने जल्दी ट्रेन में नींद भी नहीं आने वाली थी। रात के 9 बजे ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। पता चला कि रामनगर आ गया है। हमने सामान उठाया और रामनगर की ओर निकल पड़े। रामनगर उत्तराखंड का एक छोटा-सा कस्बा है जो नैनीताल जिले में आता है। रामनगर कुमाऊं इलाके में आता है और नैनाताल से 65 किमी. की दूरी पर है।

हमने रामगर में होटल खोजने के बजाया पहले से ही ऑनलाइन बुकिंग कर ली थी। रुद्राक्ष होटल रामनगर बस स्टैंड के पास में था। रामनगर रेलवे स्टेशन के बाहर से हम शेयर्ड टैक्सी में बैठ गए और कुछ देर बाद हम अपने होटल में थे। होटल में सामान रखकर हम बस स्टैंड के पास एक रेस्त्रां में गए डिनर किया और वापस आकर सो गये। 

जिम कार्बेट

अगले दिन सुबह उठे, तैयार हुए और नाश्ता करने के लिए निकल पड़े। बहुत देर तक घूमने के बाद हमने छोले-कुल्चे का स्वाद लिया। हमने जिम कार्बेट नेशनल पार्क के अंदर मंडाल रिजार्ट का पैकेज लिया था। रामनगर से हमें जिम कार्बेट जाना था। उसके लिए हमें मोहान चेक प्वाइंट पर पहुंचना था। जहां हमें रिजॉर्ट वाले लेने आने वाले थे। रामनगर से मोहान चेक प्वाइंट 20 किमी. की दूरी पर है।

बस स्टैंड से हम बस में बैठे। पूरा रास्ता हरियाली से भरा हुआ था। रास्ते में जिम कार्बेट नेशनल पार्क के कुछ गेट हमें मिले लेकिन हमे तो मोहान चेक प्वाइंट जाना था। कुछ देर बाद हम मोहान चेक प्वाइंट के एक रेस्टोरेंट में बैठे। कुछ देर बाद रिजॉर्ट के दो लोग हमें लेने आए। रिजार्ट के दोनों लोग एक जैसे कपड़े पहने हुए थे और उनकी टी-शर्ट के पीछे मंडाल रिजार्ट लिखा था।

जिप्सी गाड़ी में हम बैठे और गाड़ी चल पड़ी। गाड़ी थोड़ी देर तक तो मुख्य सड़क पर चलती रही लेकिन अचानक एक मोड़ से कच्चे रास्ते की ओर मुड़ गई। जंगल की ओर ले जाने वाला ये रास्ता खड़ी चढ़ाई जैसा था। ऊबड़-खाबड़ वाले इस रास्ते पर हम तो खुद को संभाले हुए थे, ड्राइवर भी एक हैंडल पकड़कर गाड़ी चला रहा था। कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा और फिर हम मंडाल रिजार्ट पहुंच गए।

जंगल के अंदर गांव

मंडाल रिजार्ट जिम कार्बेट नेशनल पार्क में तो है लेकिन एक गांव में स्थित है। गांव का नाम है बकराकोट। जिम कार्बेट नेशन पार्क के अंदर गांव है और उसी गांव में हम ठहरे हुए हैं। यहां हमें एक शानदार कमरा मिला। कमरा तो अच्छा था लेकिन उससे अच्छा था बाथरूम। ऐसा वॉशरूम मैंने सिर्फ फिल्मों में देखा था। बकराकोट में हमारे मोबाइल में कोई नेटवर्क नहीं था, यहां सिर्फ वोडाफोन चलता था और हमें ये बात पता नहीं थी। हालांकि रिजार्ट में वाईफाई था। 

कुछ देर हमने आराम किया और फिर शानदार लंच किया। 4 बजे मेरा काम शुरू हो जाता है। जब मैंने लैपटाप खोला तो पता चला कि वाईफाई चल ही नहीं रहा है। मैंने सोचा कमरे के अंदर नहीं चल रहा है। शायद कमरे के बाहर चले तो मैं बाहर चला गया। बाहर मंडाल रिजार्ट के मालिक रोहित थे। उनको अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने किसी के मोबाइल से इंटरनेट देकर मेरा काम शुरू करवा दिया।

जिप्सी राइड


देर रात तक मेरा काम ऐसा ही चलता रहा। रात में हम दोनो रोहित जी और मुंबई से आए दोस्तों के साथ गपशप करते रहे। बातों ही बातों में रोहित ने कहा जिप्सी राइड पर चलते हैं। कुछ देर बाद हम 6 लोग रात के अंधेरे में जिप्सी गाड़ी में बैठे हुए थे। रिजार्ट से आगे बढ़े तो देखा कि जंगल की आग फैलती जा रही है। मैंने उत्तराखंड के जंगलों में पहले भी आग लगते हुए देखी था लेकिन इतने पास से जंगल में आग को पहली बार देख रहा था।

उस आग को देखकर हम आगे बढ़ गये। हम रात के अंधेरे में सड़क चले जा रहे थे। रोहित जी ने बकराकोट बस स्टैंड पर गाड़ी रुकवाई और बताया कि एक टाइगर ने इसी जगह पर कुछ लोगों पर हमला किया था। उसके बाद ही यहां पर इस मंदिर को बनवाया था। हम रोहित जी से उनके अनुभवों और कहानियों को सुनते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। रोहित जी बीच-बीच में गाड़ी की लाइट बंद करते थे जो बेहद डरावना था। 

कुछ देर बाद हम नदी के किनारे पहुंच गए। नदी का पानी तेज होने की वजह से हमारी गाड़ी उस पार नहीं जा पा रही थी। इस वजह से हम वापस लौटने लगे। रोहित जी हमें बेहद ऊंचाई वाली जगह पर ले गए। इस जगह से जंगल एकदम शांत लग रहा था। हमें एक-एक पत्ते की आवाज सुनाई दे रही थी। रोहित ने बताया कि जानवर की आहट से पहले जंगल उसके बारे में बता देता है। रास्ते में हमें कई सांभर हिरण देखने को मिले। ये पहला मौका था कि हम सांभर हिरण को देख रहे थे। हम सब यही दुआ कर रहे थे कि बस टाइगर न मिले। लगभग 1 घंटे बाद हम वापस रिजार्ट में लौट आए। जिम कार्बेट में ये हमारा पहला दिन था। अभी तो हमें कुछ और रोमांचकारी अनुभव लेने थे।

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Saturday, 9 April 2022

सुंदर नजारों वाले इस छोटे-से ट्रेक ने मसूरी यात्रा को बना दिया लाजवाब

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घूमना इस दुनिया का सबसे खुशनुमा एहसास है। यात्रा में हम सिर्फ पहाड़ों, नदियों और झीलों के सुंदर नजारे नहीं देख रहे होते हैं बल्कि इस दुनिया को देखने का नजारा बदल जाता है। पहले मुझे घूमना पैसे और समय की बर्बादी लगती थी लेकिन जब से घुमक्कड़ी शुरू की है, घूमने के अलावा मुझे कुछ और सूझता ही नहीं है। दिमाग में वही चलता रहता है।

पहाड़ तो हर किसी को पसंद होते हैं। शांत और खूबसूरत लंढौर को देखने के बाद हम वापस मसूरी आ गए। अब हमें एक और नई जगह पर जाना था। हम फिर से स्कूटी से मसूरी से बाहर निकलकर एक नये रास्ते पर चल पड़े। ये रास्ता हमें मसूरी के जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक की ओर ले जा रहा था। मसूरी के लाइब्रेरी चौक से ये जगह 7-8 किमी. की दूरी पर है। हमारे पास स्कूटी थी सो हमें ज्यादा समय नहीं लगने वाला था।

हाथीपांव

हम छोटे-से रास्ते से आगे बढ़े जा रहे थे। जहां हमें दिक्कत आती, हम स्थानीय लोग से पूछ लेते। कुछ देर बाद हम खूबसूरत रास्ते पर थे। जहां लोगों के कम घर, कम होटल और लोगों की भीड़ नहीं थी। ऐसे रास्तों पर चलना हमेशा सुकून का एहसास कराता है। बीच-बीच में कुछ-कुछ रास्ता भी खराब था। इस ट्रेक का नाम जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर पड़ा है जो 1830 में भारत आया था।

कुछ देर बाद हम एक ऐसी जगह पर पहुंचे, जहां कुछ दुकानें थीं और खूब सारी गाड़ी रखी हुईं थीं। इस जगह का नाम है, हाथी पांव। इसके आगे गाड़ियां नहीं जाती हैं। चारों तरफ घन जंगल और हरा-भरा मैदान था और कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। हमने यहां अपनी गाड़ी रखी और इस छोटे-से ट्रेक को करने के लिए निकल पड़े।

आओ ट्रेक करें

मैंने आखिरी बार 3 साल पहले केदारकंठा का ट्रेक किया था। उस ट्रेक में तो आनंद ही आ गया था। जॉर्ज एवरेस्ट तक जाने के लिए डिजाइनदार पत्थर का रास्ता भी बना हुआ था और एक तरफ लोहे की रेलिंग भी लगी हुई थी। हम इसी रास्ते पर बढ़ते जा रहे थे। हेरीटेज पार्क तक चढ़ाई बिल्कुल आसान थी। हम बातें करते-करते आराम से इस पक्के रास्ते को पार गये।

पहले हम सोच रहे थे कि 1 किमी. का जो ये रास्ता है बस इतनी ही चढ़ाई करनी है लेकिन जब हम खुली जगह पर पहुंचे तो पता चला कि अभी तो लंबी चढ़ाई है। अब रास्ता भी बदल गया था और नजारे भी बदल गये थे। शुरूआत में कुछ दुकानें भी हैं। जहां मैगी से लेकर खाने-पीने का सामान मिल रहा था। हम इसको नजरंदाज करके आगे बढ़ गये।

जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक

जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक।
दुकानें से आगे बढ़े तो पहले आसपास चीड़ के पेड़ दिखाई दिए और फिर हरे-भरे जंगल। दूर-दूर हरे-भरे पहाड़ दिखाई दे रहे थे। ऐसे खूबसूरत नजारों के लिए इस छोटे-से ट्रेक को करना खल नहीं रहा था। ट्रेक करने वाले कई सारे लोग थे लेकिन इतनी भीड़ नहीं थी कि रास्ता भर गया हो। हम पहाड़ों के सुंदर और लुभावने नजारों को देखते हुए पतले से रास्ते पर बढ़े जा रहे थे।

हम थोड़ा चल रहे थे और फिर रूककर आसपास के दृश्यों को निहार रहे थे। हमें कहीं जाने की जल्दी भी नहीं थी इसलिए आराम-आराम से आगे बढ़ रहे थे। कुछ देर बाद सीढ़ियां आ गईं, जिन पर फिसलनदार छोटे-छोटे कंकड़ पड़े हुए थे। कुछ देर मैं उस जगह पर पहुंचा जहां रंग-बिरंगे झंडों पर कुछ मंत्र लिखे हुए थे। पहाड़ों में घूमने वली ज्यादातर जगहों पर ये झंडे जरूर होते हैं।

सबसे ऊंची जगह

कुछ देर की चढ़ाई के बाद हम जॉर्ज एवरेस्ट की चोटी पर थे। मसूरी की सबसे ऊंची जगह से सबसे खूबसूरत नजारे को देख रहे थे। ऊंचाई पर पहुंचकर सबसे कुछ छोटा और खूबसूरत लगने लगता है। यहां से दूर-दूर तक सिर्फ हरियाली और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। हमारे साथ चलते हुए एक कुत्ता भी यहां पर आ गया था। यहां मैं कुछ देर तक बैठा रहा। पहाड़ की ऊंची जगह पर बैठना वाकई अच्छा लगता है।

मसूरी का ये ट्रेक बिल्कुल भी कठिन नहीं था। मैं आराम से इस ट्रेक को कर गया लेकिन इस जगह पर आकर खराब भी नहीं लग रहा था। लुभावने नजारों ने मेरा दिन बना दिया। कुछ देर ठहरने के बाद हम नीचे उतर आये। पहले हम हाथीपांव पहुंचे और फिर वहां से मसूरी। शाम हो गई थी और मेरे काम करने का समय हो गया था। दोस्त की छुट्टी थी, सो वो मसूरी की अन्य जगहों को देखने के लिए निकल गया।

मसूरी में एक और दिन

हमने एक और दिन मसूरी में बिताया लेकिन इस दिन हम मसूरी शहर में ही घूमे। पहले हमने एक छोटी-सी दुकान पर मैगी खाई जोकि बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। फिर हमने मसूरी को पैदल नापा। लाइब्रेरी चौक पर बनी लाइब्रेरी में भी गये लेकिन वहां जाकर पता चला कि लाइब्रेरी में वही लोग जा सकते हैं जिनके पास मेंबरशिप हो। हम कुछ देर के लिए मेंबरशिप तो नहीं लेने वाले थे।

मसूरी।
मसूरी भीड़भाड़ वाला शहर है लेकिन शहर से बाहर बहुत खूबसूरती है। मेरा तो मानना है कि मुझे तो हर छोटी और लोकप्रिय जगह की यात्रा करनी है। मैं इससे पहले एक बार मसूरी कई साल पहले आया था लेकिन तब न इतनी समझ थी और न ही घूमने का बहुत शौक। अब तो हर रोज एक नये सफर पर जाने का मन करता है।

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