जंगल में सैर
रुद्राक्ष। |
रुद्राक्ष। |
उत्तराखंड मेरे लिए एक ऐसी जगह है जहां मैं बार-बार जाता हूं। उत्तराखंड में मुझे कुछ अपनापन-सा लगता है इसलिए यहां की नई-नई जगहों पर जाता रहता हूं। अभी महीने भर पहले देवप्रयाग, मसूरी, लंढौर, ऋषिकेश और हरिद्वार की यात्रा करके आया था और अब फिर से उत्तराखंड की कुछ नई जगहों पर जाने के लिए तैयार थे। अब तक मैंने उत्तराखंड में गढ़वाल की ही यात्रा की है लेकिन इस बार मैं उत्तराखंड के कुमाऊं की यात्रा करने वाला था। मैं और मेरा दोस्त दिल्ली आ चुके थे।
23 अप्रैल 2022 को हम दोनों पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर थे। यहां से उत्तरांचल क्रांति एक्सप्रेस से हमें रामनगर जाना था। ये ट्रेन एक लिंक एक्सप्रेस हैं। मुरादाबाद में ये ट्रेन दो भागों में बंट जाती है। एक जाती है, रामनगर और दूसरी ट्रेन जाती हल्द्वानी और काठगोदाम जाती है। 4 बजे जाने वाली ट्रेन आधे घंटे लेट दिल्ली पहुंची। कुछ देर बाद हम जनरल डिब्बे में बैठे थे और लगभग 5 बजे ट्रेन पुरानी दिल्ली से चल पढ़ी।
आप चाहे जितना रोड ट्रिप औप फ्लाइट से यात्रा कर लें लेकिन असली यात्रा तो ट्रेन से होती है। कहते हैं कि असली भारत को देखना है तो ट्रेन से यात्रा करिए। ट्रेन से बाहर के सारे नजारे एक जैसे ही लगते हैं। अप्रैल के महीने में ट्रेन में गर्मी का एहसास हो रहा था। शाम 7 बजे ट्रेन मुरादाबाद पहुंची। यहां से ट्रेन दो भागों में बंटती है। मुझे लगा था कि मुरादाबाद में ट्रेन रुकेगी लेकिन 10 मिनट में हमारी ट्रेन चल पड़ी।
मुरादाबाद के बाद ट्रेन में भीड़ कम होने लगी थी। इतने जल्दी ट्रेन में नींद भी नहीं आने वाली थी। रात के 9 बजे ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। पता चला कि रामनगर आ गया है। हमने सामान उठाया और रामनगर की ओर निकल पड़े। रामनगर उत्तराखंड का एक छोटा-सा कस्बा है जो नैनीताल जिले में आता है। रामनगर कुमाऊं इलाके में आता है और नैनाताल से 65 किमी. की दूरी पर है।
हमने रामगर में होटल खोजने के बजाया पहले से ही ऑनलाइन बुकिंग कर ली थी। रुद्राक्ष होटल रामनगर बस स्टैंड के पास में था। रामनगर रेलवे स्टेशन के बाहर से हम शेयर्ड टैक्सी में बैठ गए और कुछ देर बाद हम अपने होटल में थे। होटल में सामान रखकर हम बस स्टैंड के पास एक रेस्त्रां में गए डिनर किया और वापस आकर सो गये।
अगले दिन सुबह उठे, तैयार हुए और नाश्ता करने के लिए निकल पड़े। बहुत देर तक घूमने के बाद हमने छोले-कुल्चे का स्वाद लिया। हमने जिम कार्बेट नेशनल पार्क के अंदर मंडाल रिजार्ट का पैकेज लिया था। रामनगर से हमें जिम कार्बेट जाना था। उसके लिए हमें मोहान चेक प्वाइंट पर पहुंचना था। जहां हमें रिजॉर्ट वाले लेने आने वाले थे। रामनगर से मोहान चेक प्वाइंट 20 किमी. की दूरी पर है।
बस स्टैंड से हम बस में बैठे। पूरा रास्ता हरियाली से भरा हुआ था। रास्ते में जिम कार्बेट नेशनल पार्क के कुछ गेट हमें मिले लेकिन हमे तो मोहान चेक प्वाइंट जाना था। कुछ देर बाद हम मोहान चेक प्वाइंट के एक रेस्टोरेंट में बैठे। कुछ देर बाद रिजॉर्ट के दो लोग हमें लेने आए। रिजार्ट के दोनों लोग एक जैसे कपड़े पहने हुए थे और उनकी टी-शर्ट के पीछे मंडाल रिजार्ट लिखा था।
जिप्सी गाड़ी में हम बैठे और गाड़ी चल पड़ी। गाड़ी थोड़ी देर तक तो मुख्य सड़क पर चलती रही लेकिन अचानक एक मोड़ से कच्चे रास्ते की ओर मुड़ गई। जंगल की ओर ले जाने वाला ये रास्ता खड़ी चढ़ाई जैसा था। ऊबड़-खाबड़ वाले इस रास्ते पर हम तो खुद को संभाले हुए थे, ड्राइवर भी एक हैंडल पकड़कर गाड़ी चला रहा था। कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा और फिर हम मंडाल रिजार्ट पहुंच गए।
कुछ देर हमने आराम किया और फिर शानदार लंच किया। 4 बजे मेरा काम शुरू हो जाता है। जब मैंने लैपटाप खोला तो पता चला कि वाईफाई चल ही नहीं रहा है। मैंने सोचा कमरे के अंदर नहीं चल रहा है। शायद कमरे के बाहर चले तो मैं बाहर चला गया। बाहर मंडाल रिजार्ट के मालिक रोहित थे। उनको अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने किसी के मोबाइल से इंटरनेट देकर मेरा काम शुरू करवा दिया।
उस आग को देखकर हम आगे बढ़ गये। हम रात के अंधेरे में सड़क चले जा रहे थे। रोहित जी ने बकराकोट बस स्टैंड पर गाड़ी रुकवाई और बताया कि एक टाइगर ने इसी जगह पर कुछ लोगों पर हमला किया था। उसके बाद ही यहां पर इस मंदिर को बनवाया था। हम रोहित जी से उनके अनुभवों और कहानियों को सुनते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। रोहित जी बीच-बीच में गाड़ी की लाइट बंद करते थे जो बेहद डरावना था।
कुछ देर बाद हम नदी के किनारे पहुंच गए। नदी का पानी तेज होने की वजह से हमारी गाड़ी उस पार नहीं जा पा रही थी। इस वजह से हम वापस लौटने लगे। रोहित जी हमें बेहद ऊंचाई वाली जगह पर ले गए। इस जगह से जंगल एकदम शांत लग रहा था। हमें एक-एक पत्ते की आवाज सुनाई दे रही थी। रोहित ने बताया कि जानवर की आहट से पहले जंगल उसके बारे में बता देता है। रास्ते में हमें कई सांभर हिरण देखने को मिले। ये पहला मौका था कि हम सांभर हिरण को देख रहे थे। हम सब यही दुआ कर रहे थे कि बस टाइगर न मिले। लगभग 1 घंटे बाद हम वापस रिजार्ट में लौट आए। जिम कार्बेट में ये हमारा पहला दिन था। अभी तो हमें कुछ और रोमांचकारी अनुभव लेने थे।
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घूमना इस दुनिया का सबसे खुशनुमा एहसास है। यात्रा में हम सिर्फ पहाड़ों, नदियों और झीलों के सुंदर नजारे नहीं देख रहे होते हैं बल्कि इस दुनिया को देखने का नजारा बदल जाता है। पहले मुझे घूमना पैसे और समय की बर्बादी लगती थी लेकिन जब से घुमक्कड़ी शुरू की है, घूमने के अलावा मुझे कुछ और सूझता ही नहीं है। दिमाग में वही चलता रहता है।
पहाड़ तो हर किसी को पसंद होते हैं। शांत और खूबसूरत लंढौर को देखने के बाद हम वापस मसूरी आ गए। अब हमें एक और नई जगह पर जाना था। हम फिर से स्कूटी से मसूरी से बाहर निकलकर एक नये रास्ते पर चल पड़े। ये रास्ता हमें मसूरी के जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक की ओर ले जा रहा था। मसूरी के लाइब्रेरी चौक से ये जगह 7-8 किमी. की दूरी पर है। हमारे पास स्कूटी थी सो हमें ज्यादा समय नहीं लगने वाला था।कुछ देर बाद हम एक ऐसी जगह पर पहुंचे, जहां कुछ दुकानें थीं और खूब सारी गाड़ी रखी हुईं थीं। इस जगह का नाम है, हाथी पांव। इसके आगे गाड़ियां नहीं जाती हैं। चारों तरफ घन जंगल और हरा-भरा मैदान था और कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। हमने यहां अपनी गाड़ी रखी और इस छोटे-से ट्रेक को करने के लिए निकल पड़े।
पहले हम सोच रहे थे कि 1 किमी. का जो ये रास्ता है बस इतनी ही चढ़ाई करनी है लेकिन जब हम खुली जगह पर पहुंचे तो पता चला कि अभी तो लंबी चढ़ाई है। अब रास्ता भी बदल गया था और नजारे भी बदल गये थे। शुरूआत में कुछ दुकानें भी हैं। जहां मैगी से लेकर खाने-पीने का सामान मिल रहा था। हम इसको नजरंदाज करके आगे बढ़ गये।
जॉर्ज एवरेस्ट ट्रेक। |
हम थोड़ा चल रहे थे और फिर रूककर आसपास के दृश्यों को निहार रहे थे। हमें कहीं जाने की जल्दी भी नहीं थी इसलिए आराम-आराम से आगे बढ़ रहे थे। कुछ देर बाद सीढ़ियां आ गईं, जिन पर फिसलनदार छोटे-छोटे कंकड़ पड़े हुए थे। कुछ देर मैं उस जगह पर पहुंचा जहां रंग-बिरंगे झंडों पर कुछ मंत्र लिखे हुए थे। पहाड़ों में घूमने वली ज्यादातर जगहों पर ये झंडे जरूर होते हैं।
हमने एक और दिन मसूरी में बिताया लेकिन इस दिन हम मसूरी शहर में ही घूमे। पहले हमने एक छोटी-सी दुकान पर मैगी खाई जोकि बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। फिर हमने मसूरी को पैदल नापा। लाइब्रेरी चौक पर बनी लाइब्रेरी में भी गये लेकिन वहां जाकर पता चला कि लाइब्रेरी में वही लोग जा सकते हैं जिनके पास मेंबरशिप हो। हम कुछ देर के लिए मेंबरशिप तो नहीं लेने वाले थे।
मसूरी। |
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