Sunday, 7 November 2021

जयपुर 2: दोस्तों के साथ कुछ नई तो कुछ देखी हुई जगहों को किया एक्सप्लोर

अगले दिन उठे तो पता चला कि जयपुर में इंटरनेट बंद हो गया है। हमारे होटल में वाई फाई तो हमें काम करने में कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी। अगले दिन सब लोगों ने घूमने से मना कर दिया। मैं और दया भाई बिना इंटरनेट के घूमने निकल पड़े। हमने गलता जी मंदिर जाने का प्लान बनाया। हमने लोकल बस ली और उसके बाद ई-रिक्शा। जिसने हमें उस जगह पहुँचा दिया, जहाँ से हमें गलता जी मंदिर के लिए चढ़ाई करनी थी।

हमें हरे-भरे जयपुर के नजारे देखते हुए चढ़ाई करने लगे। पहले चढ़ाई की और फिर बहुत नीचे उतर गये। नीचे जाकर पता चला कि इस रास्ते से गलता जी मंदिर बंद है। फिर क्या था? कुछ फोटों खींची और वापस चल पड़े। इस बार चढ़ने में थकान आ रही थी। कुछ जगह ठहरने के बाद हमने चढ़ाई कर ही ली। इस रास्ते में बंदर बहुत थे जो उछल-कूद काफी कर रहे थे। रास्ते में ही सूर्य मंदिर था। हमने सूर्य मंदिर से जयपुर शहर का शानदार नजारा देखा। इसके बाद हमने म्यूजियम जाने के बारे में सोचा।

अल्बर्ट हॉल म्यूजियम

कुछ देर बाद हम ई-रिक्शा से अल्बर्ट हॉल म्यूजियम पहुँच गये। टिकट लेकर हम लोग म्यूजियम के अंदर पहुँच गये। जयपुर में ये म्यूजियम एक अलग ही दुनिया है। इतना बड़ा म्यूजियम मैंने अब तक कहीं नहीं देखा है या फिर मैं उन जगहों पर गया नहीं हूं जहाँ इससे भी बड़ा म्यूजियम है। अंदर घुसते ही हमें आंगल मिला, जिसकी दीवारें संगमरमर की थीं। यहाँ पर कई हॉल थे जिसमें पूरी दुनिया का कुछ न कुछ सामान रखा हुआ था। जिसमें रोमन, चीन, अरबी आदि संग्रह रखा हुआ है। कई प्रकार की मूर्तियां, वाद्य यंत्र और भी बहुत कुछ रखा हुआ था।


कुछ आगे बढ़े तो हमें ममी दिखाई पड़ी। पहले ये ममी म्यूजियम के तलघर पर हुआ करती थी लेकिन हाल ही में आई बाढ़ की वजह से इसका स्थान बदल दिया गया है। मैंने खबरों में इस बारे में पढ़ा था। इसके बाद हम संग्रहालय के बाहर आ गये। हमने अब तक कुछ खाया नहीं था। हमने आसपास नजरें दौड़ाईं तो फूड कोर्ट दिखाई दिया। 10 रुपए का टिकट लेकर अंदर पहुँच गये। 

राजस्थानी थाली


यहाँ पर खूब सारी दुकानें लगी हुईं थीं। खाने वालों के लिए ये जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। हमने पहले सारी दुकानों का मुआयना किया। इसके बाद राजस्थानी थाली खाने का मन बना लिया। हमने एक राजस्थानी थाली ली जिसमें दो सादा रोटी, 2 बेजड़ रोटी, बेसन गट्टा, कढ़ी पकौड़ा, टिपोरा और लहसुन चटनी थी। इस राजस्थानी थाली का स्वाद लेकर मजा ही आ गया। इसके बाद हम लोग अपने होटल पहुँचे और काम पर लग गये।

दिन 3

एक बार फिर से हम पांचों लोग एक साथ घूमने निकल पड़े। आज हमें आमेर किला देखना था। कुछ देर बाद हम आमेर वाली बस में बैठ गये। कुछ देर बाद हम आमेर वाले रास्ते पर थे। बीच में नाहरगढ़ वाले रास्ते में उतर गये। यहाँ टैक्सी वालों ने जब अपना रेट बहुत ज्यादा बताया तो हमने पहले आमेर को देखना ही सही समझा। टैक्सी से हम आमेर पहुँच गये।

हम आरामबाग होते हुए सीढ़ियां चढ़कर आमेर पहुँच गये। जिस दिन हम आमेर पहुँचे, उस दिन विश्व पर्यटन दिवस था। इस वजह से घूमने के लिए आज कोई टिकट नहीं था। कुछ देर बाद दीवान-ए-आम में थे। आमेर में भीड़ बहुत थी लेकिन सब अपने में मस्त थे। कुछ देर बाद हम दीवान-ए-खास में पहुँच गये। यहीं पर शीश महल भी है। यहाँ भी एक खूबसूरत बाग है।

इस जगह को देखते हुए हम मानसिंह महल की ओर बढ़ गये। कहा जाता है कि यहीं पर राजा का परिवार रहता था। इन कमरों की चित्रकारी देखकर आपका दिल खुश हो उठेगा। आमेर किले में सीसीडी भी है। हम लोग सीसीडी की छत पर पहुँच गए, जहाँ से जयगढ़ और खूबसूरत घाटी दिखाई दे रही थी। यहाँ कॉफी पीने के बाद हमने नाहरगढ़ जाने का मन बनाया। हममें से दो लोग वापस चले गये और हम तीनों टैक्सी से नाहरगढ़ के लिए निकल पड़े।

नाहरगढ़

आमेर से नाहरगढ़ का रास्ता बेहद खूबसूरत है। रास्ते में जयगढ़ किला भी पड़ता है लेकिन हमारे पास एक ही किले को देखने का वक्त था। कुछ देर हम एक व्यू प्वाइंट मिला, जहाँ से जल महल का खूबसूरत नजारा दिखाई पड़ा। यहाँ कुछ देर रूके और फिर आगे बढ़ गये। कुछ देर बाद नाहरगढ़ किले में थे। ताड़ी गेट से होते हुए हमने किले में प्रवेश किया। यहीं पर वैक्स म्यूजियम भी है। हम किला देखने आए थे सो हम आगे बढ़ गये।

कुछ देर बाद हम माधवेन्द्र महल में थे। इस बार महल में बहुत कुछ बदल गया था। पहले हर कमरे में कुछ न कुछ रखा हुआ था लेकिन इस बार कमरे खाली थे। इन सबको देखते हुए हम किले की छत पर पहुँच गये। यहाँ से जयपुर का सबसे खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। दूर-दूर तक सिर्फ शहर ही शहर दिखाई दिया। इसके बाद हम वापस लौट पड़े। जलमहल पर हमें टैक्सी वाले ने छोड़ा। जहाँ हमने कुछ देर जलमहल को देखा। जब हमें बस आती हुई दिखाई तो हम अपने होटल के लिए निकल पड़े। 

अगले दिन सुबह-सुबह हम जयपुर से निकल पड़े। इन तीन दिनों में जयपुर की कई सारी जगहों को देखा। जिनमें से कुछ पहले देखी हुईं थी लेकिल कुछ नई जगहों पर भी गया। इन नई जगहों ने मेरे इस सफर को और भी यादगार बना दिया। मैं अब जयपुर नहीं जाना चाहता लेकिन क्या पता फिर से किस्मत इसी शहर में ले आये।

यात्रा का पिछला भाग यहां पढ़ें।

 

Saturday, 6 November 2021

जयपुरः इस बार इस शहर को पहले से ज्यादा नया और सुंदर पाया

राजस्थान भारत के सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक है। मुझे खूबसूरत महल और किलों वाले इस प्रदेश में जाना पसंद है। जब भी मौका मिलता है मैं राजस्थान के किसी शहर में पहुँच जाता हूं। इसी तरह मैंने पुष्कर, अजमेर, जैसलमेर और जयपुर को एक्सप्लोर कर चुका हूं। मैं दोबारा किसी शहर में जाना पसंद नहीं करता हूं लेकिन न चाहते हुए भी जयपुर बार-बार पहुँच जाता हूं। हर बार जयपुर में कुछ अलग और नया पाता हूं। इस बार भी मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ।

मैं अपने दो दोस्तों के साथ हरियाणा के हिसार में था। हम लोगों के पास 3-4 दिन थे सो मैंने उनसे आगरा चलने के लिए कहा। उन्होंने जयपुर घूमने की बात कहीं। काफी चर्चा के बाद जयपुर के लिए मैंने हाँ कर दिया। शाम को हम हिसार बस स्टैंड गये। जहाँ हमें जयपुर के लिए रात में कोई बस नहीं मिली। किस्मत से एक ट्रेन में सीटें खाली थीं। हमने रात 12 बजे की टिकट बुक कर ली। हमारे दो दोस्त दूसरे होटल में ठहरे हुए थे। हम समय बिताने के लिए वहाँ पहुँच गए।

ट्रेन पकड़ पाएंगे?

जब हमने उनको अपना प्लान बताया तो पहले तो उन्होंने न चलने की बात कही लेकिन आखिरी समय पर हाँ कर दी। इसके बाद जल्दी-जल्दी सामान समेटा और रोड पर आ गए। अब रेलवे स्टेशन के लिए कोई टैक्सी न मिले। हमें लगने लगा कि अब तो टैक्सी मिलना बहुत मुश्किल है। तभी एक टैक्सी सामने से आते हुए दिखाई दी। फिर क्या था कुछ ही मिनटों में हम हिसार रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए। ट्रेन पहले से लगी हुई थी सो हम सब अपनी-अपनी सीट पर जाकर लेट गए।

जयपुर रेलवे स्टेशन।
जब सुबह आंख खुली तो जयपुर आने ही वाले थे। कुछ ही देर बाद हम जयपुर रेलवे स्टेशन पर थे। पहली बार मैं जयपुर रेलवे स्टेशन को देख रहा था। अब तक जयपुर बस से ही आया था। थोड़ी देर बाद हम जयपुर की गलियों में होटल खोज रहे थे। तो तय ये हुआ था कि पूरे दिन घूमा जाएगा और शाम से काम किया जाएगा। कुल मिलाकर हमें वर्क फ्रॉम ट्रैवल करना था। हमें यहाँ आकर पता चला कि जयपुर में कोई परीक्षा होनी है कि जिसकी वजह से एक दिन के लिए इंटरनेट को बंद किया जाएगा।

अब हमें ऐसा होटल चाहिए था जहाँ वाई फाई अच्छा चलता हो। एक टैक्सी वाला मिला जिसने हमसें कहा कि ऐसा होटल हमारे बजट में दिलवाएगा। फिर क्या था? हम जयपुर के होटलों को खोजने लगे। कई सारे होटलों में गये। कहीं बजट बहुत ज्यादा था तो कहीं वाई फाई नहीं था। आखिर में बाईस गोदाम के पास एक ऐसा ही होटल मिल गया। हमने सामान रखा और तैयार होकर जयपुर को घूमने के लिए निकल गये।

दिन 1

हवा महल

हवा महल।
कुछ देर बाद हवा महल के टिकट काउंटर से अपना टिकट ले रहे थे। हम लोगों के पास स्टूडेंट आईडी थी सो हमें टिकट काफी सस्ता मिल गया। हवा महल को 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था। राजा राधाकृष्ण के भक्त थे। इसका आकार बाहर से भगवान कृष्ण के मुकुट की तरह ही है। हवा महल पांच मंजिला है। हर तल का एक नाम भी है जैसे रतन मंदिर, विचित्र मंदिर, प्रकाश मंदिर और हवा मंदिर। पांचवी मंजिल का नाम हवा महल के नाम पर रखा गया है। इस महल में छोटी-छोटी 953 खिड़कियां हैं।

कुछ ही देर बाद हम पांचों लग हवा महल के अंदर थे। यहाँ आकर मुझे अपना पुराना घुमा हुआ सब कुछ याद आने लगा। उस समय मैंने जयपुर को अकेला नापा था। महल के बीचों बीच फुव्वारा बना हुआ है जो इस समय चल रहा था। दिखने में अच्छा भी लग रहा था। कुछ देर बाद हम दूसरी मंजिल पर पहुँच गये। जब हम सबसे उपर थे तो बारिश होने लगी। जिसन मौसम को और भी खूबसूरत बना दिया। महल की खिड़कियां बंद थीं इसलिए हवा नहीं आ रही थी।

सिटी पैलेस


हवा महल को देखने के बाद हम एक जगह खाना खाया। उसके बाद हम में से दो लोग होटल वापस लौट गये। बाकी हम तीन सिटी पैलेस देखने निकल पड़े। शहर के बीचों बीच बने इस महल को 1729 में महाराजा सवाई जय सिंह माधो ने करवाया था। 1732 में ये महल बनकर तैयार हो गया था। टिकट लेकर हम पैलेस के अंदर चले गये। बीच में एक आंगन जैसी इमारत थी। जहाँ झालर लगी हुई थी, कुछ हथियार टंगे हुए थे। इसके अलावा चांदी के दो बहुत बड़े कलश रखे थे। इसको देखने के बाद हम मुबारक महल को देखने निकल गये। इसमें राजा-रानी के अलग-अलग प्रकार के कपड़ रखे हुए थे। यहाँ पर फोटो खींचना मना है। 

इसके बाद हमने शस्त्रागार दीर्घा में भी बहुत सारे शस्त्र देखे। अगला पड़ाव चन्द्र महल था। जहाँ राजा का दरबार लगता था। ये महल काफी बड़ा था। महल में लगी झालर बेहद खूबसूरत लग रही थी। यहाँ भी फोटो खींचना मना था। यहाँ सभी महाराजाओं की तस्वीर ओर उनके बारे में लिखा हुआ था। इसके बाद हम बाहर निकल आये। इसके बाद बाकी दोनों लोग होटल के लिए निकल गये और मैं फिर से एक नई जगह को देखने के लिए बेताब था।

गणेश मंदिर जाना है!

इसके बाद किसी ने बताया कि रानी बाजार के बगल से गणेश मंदिर जा सकते हैं। मैं पैदल-पैदल ही लोगों से पूछते हुए चलता गया। किसी ने बताया कि ई-रिक्शा ले लो। मैंने ई-रिक्शा ले लिया, जिसने मुझे एक तिराहा पर छोड़ दिया। कुछ देर पैदल चला तो एक पुरानी इमारत सी दिखी। पास आकर देखा तो उस पर लिखा था गैटोर की छत्रियां। ये वो जगह है जहाँ राजाओं की समाधि है। मैं अंदर गया तो अंदर का नजारा देखकर दिल खुश हो गया। संगमरमर और बलुआ पत्थर से बनी ये जगह बेहद खूबसूरत है।

पहाड़ी के बिल्कुल तलहटी पर स्थित ये जगह वाकई सुंदर है। सबसे अच्छी बात ये है कि यहाँ बहुत भीड़ नहीं थी। इसकी वजह से शहर से दूर होना हो सकता है या फिर लोगों को इस जगह के बारे में पता नहीं होगा। इस जगह को देखने के बाद बगल से लगभग 200 सीढ़ियां गणेश मंदिर की ओर गई हैं। मैं तेज धूप में उन पर चढ़ने लगा। कुछ ही देर बाद मैं थक गया और पसीने से तर-तर हो गया। ऐसे ही चलते-चलते मैं गणेश मंदिर पहुँच गया। यहाँ से जयपुर खूबसूरत लग रहा था। उंचाई से सब कुछ खूबसूरत लगता है। कुछ देर यहाँ ठहरने के बाद वापस चलने लगा। शाम हो गई थी सो अब मैं भी होटल के लिए निकल गया। जयपुर का सफर अब तक मेरे लिए खूबसूरत रहा।

जयपुर की आगे की यात्रा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

Saturday, 16 October 2021

ओरछा: खूबसूरती भरे इस ऐतहासिक शहर में दोबारा जाना वाकई शानदार रहा

एक ही जगह पर दोबारा जाना एक अलग प्रकार का सुकून देता है। आपको उस जगह के बारे में सब कुछ पता होता है। वहां का खाना, जगहें, रास्ते और ठिकाना सब कुछ आप जानते हैं। फिर भी ऐसी जगहों पर आकर खुशी मिलती हो। मैं ऐसी जगहों पर ऐसे फिरता हूं जैसे कि मेरा घर हो। ऐसी कम ही जगह हैं जहां मैं दोबारा गया हूं। उन कम जगहों में ओरछा सबसे ऊपर है। ओरछा एक ऐतहासिक और धार्मिक स्थल दोनों है। घूमते हुए आप दोनों के बारे में जान सकते हैं। मैंने भी इस बार ओरछा की वैभवता को जानने की भरसक कोशिश की।

ओरछा का प्लान 


तो हुआ यूं कि मेरी अपने एक खास दोस्त से बात हुई। वो चाह रही थी कि दोनों सोनभद्र घूमने चलें और मैं खजुराहो चलने पर जोर दे रहा था। मेरे पास इतना समय नहीं था कि सोनभद्र जा सकूं और खजुराहो उसके लिए दूर पड़ रहा था। सो मैंने उसे ओरछा आने के लिए कहा। फोन पर चर्चा होने के बाद आखिर ओरछा जाने का प्लान पक्का हो गया। मेरे घर से ओरछा लगभग 60 किमी. की दूरी पर है। जिस दिन उसे आना था, मैं झांसी गया। देर रात होने की वजह से हमने रात झांसी में ही बिताई। इसके बाद अगली सुबह झांसी बस स्टैंड से ओरछा के लिए शेयर्ड ऑटो में बैठ गए।

झांसी से ओरछा का रास्ता बेहद खूबसूरत है। चारों तरफ आपको हरियाली ही हरियाली मिलेगी। रोड ट्रिप के लिए ये रास्ता परफेक्ट है। अगर मौसम सुहावना रहता है तब तो ये जगह और भी खूबसूरत हो जाती है। हम इतने खूशनसीब नहीं थे लेकिन रास्ता फिर भी अच्छा लग रहा था। आधा घंटे के बाद हम हाइवे को छोड़कर ओरछा के रास्ते पर आ गए। इस रास्ते पर जाते हुए सारी पुरानी यादें जेहन में चलने लगीं। कुछ ही देर बाद हम ओरछा में थे।

सबसे पहले क्या?

पूड़ी-सब्जी।
हमने सबसे पहले अपने होटल में चेक इन किया और बाहर जाने के लिए तैयार हो गये। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था इसलिए पेट पूजा भी बहुत जरूरी थी। हम किसी होटल में नहीं जाना चाहता था इसलिए रामराजा मंदिर के सामने छोटी-सी दुकान है। जहां की सब्जी-पूड़ी खाए बिना ओरछा की यात्रा पूरी नहीं मानी जा सकती। सब्जी-पूड़ी के साथ मिर्च नींबू का अचार और रायते ने स्वाद को और भी बढ़ा दिया। इसके बाद हमने सबसे पहले किले को घूमने का प्लान बनाया।

धूप तेज थी और गर्मी भी काफी लग रही थी लेकिन अब आ गए थे तो कमरे में तो नहीं बैठ सकते थे। पुल पार करने के बाद किले के पुराने गेट से होकर टिकट काउंटर पर पहुंच गए। टिकट लिया, जेब में डाला और निकल पड़े किला घूमने। किले में घुसते हर दायीं तरफ एक बड़ी इमारत आती है जहां कभी राजा का दरबार लगता था। किले की ये जगह मायूस कर देती है। इमारत की छज्जों पर नक्काशी देखने लायक है लेकिन चारों तरफ गंदगी ही गंदगी है। यहां से हम राजा महल की तरफ बढ़ गए।

टिकट कहां गया?


जहांगीर महल से पहले राजा महल आता है। हम महल के बड़े-से गेट से अंदर घुसे। अंदर गार्ड ने टिकट मांगा। मैंने जेब में हाथ डाला लेकिन टिकट नहीं मिला। मैंने फिर दूसरी जेब देखी, पर्स देखा लेकिन टिकट नहीं मिला। गार्ड ने कहा, चले जाओ अंदर लेकिन मैं परेशान था कि टिकट गया कहां? हम टिकट खोजने के लिए उसी रास्ते पर चलने लगे, जिससे आए थे। जब मुझे लगने लगा कि अब टिकट नहीं मिलेगा, तभी सीढ़ियों पर मुझे छोटा-सा कागज दिखाई दिया। उसे उठाया तो देखा कि वो मेरा ही टिकट है। चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई।

हम वापस लौटे और राजा महल के अंदर आए। राजा महल की नींव राजा रुद्र प्रताप ने 1531 में रखी थी। इसका पूरा निर्माण उनके बेटे भारती चन्द्र ने करवाया। बाद में राजा मधुकर शाह ने महल को अंतिम रूप दिया। इस महल में आवास कक्ष, दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास है। हम इन्हीं महलों को घूम रहे थे। किले का आर्किटेक्चर देखकर हम हैरान थे। छज्जे और दीवार पर रामलीला और कृष्ण लीला का उकेरा गया था जो वाकई शानदार लग रहा था। बुंदेली शैली में बना ये किला वाकई शानदार था।

किले के उपरी भाग पर नजारा भी शानदार था और हवा भी काफी ठंडी चल रही थी। यहां से हमें रामराजा मंदिर, चतुर्भुज मंदिर और जहांगीर महल तो दिख ही रहा था। वहीं दूसरी तरफ हमें हरा-भरा ओरछा दिखाई दे रहा था। चारों तरफ ऐसी हरियाली देखकर मन पुलकित हो उठा। बीच-बीच में मौसम भी हमारा साथ दे रहा था। कुछ घंटे घूमने के बाद हम किले के बाहर थे।

दाऊजी की कोठी

राजा महल के दायीं तरफ एक रास्ता गया था। इस तरफ दाउ जी की कोठी थी। कुछ ही मिनटों के बाद हम दाउजी की कोठी के बाहर थे। ये कोठी बुंदेल राज्य के सैन्य अधिकारी और मंत्री बलवंत दाउ की थी। अंदर गया तो पाया कि कोठी तो काफी बड़ी है लेकिन रखरखाव बहुत अच्छा नहीं है। कोठी की छत नहीं है लेकिन एक बार देखने लायक है। इसके बाद जहांगीर महल की ओर चल पड़े।

मैंने राजस्थान के कई किले देखे हैं। वो किले काफी खूबसूरत होते हैं लेकिन मुझे सुकून ओरछा के किले ही देते हैं। यहां के किलों में मन बसता है। हम जहांगीर किले के गेट से घुसे। घुसते ही हमें ओरछा की वैभवता दिखाई दी। इस खूबसूरत किले के बनने की एक कहानी है। मुगल शासक अकबर ने अपने सेनापति अबुल फज़ल को अपने विद्रोही बेटे को पकड़ने का आदेश दिया। जहांगीर को खतरे के बारे में पता चल गया। 

जहांगीर ने ओरछा के राजा वीर सिंह को अबुल फज़ल से निपटने को कहा। वीर सिंह ने अबुल फज़ल को हमेशा के लिए जहांगीर के रास्ते से हटा दिया। वीर सिंह से जहांगीर इतने खुश हुए कि कई जागीर उन्हें दे दी। बाद में जब जहांगीर ओरछा आने वाले थे तो उनके स्वागत में ये भव्य जहांगीर महल बनवाया गया। हम किले की छत पर गए और ओरछा नगर की भव्यता को देखा। इस महल से ओरछा और भी खूबसूरत लग रहा था।

अब कल घूमेंगे

ओरछा आने से पहले ही प्लान बना लिया था कि दिन में घूमेंगे और शाम में काम करेंगे। जहांगीर महल और प्रवीण राय महल को देखने के बाद हम अपने होटल में वापस लौट आए। बाकी कुछ बताने के लिए नहीं, बस काम करते हुए रात हो गई और फिर नींद की आगोश में चले गए। सुबह आराम से उठे, तैयार हुए और निकल पड़े रामराजा मंदिर। रामराजा मंदिर भी बेहद शानदार है। इस मंदिर में अंदर फोटो खींचना मना है। 

इस मंदिर की भी एक कहानी है। महाराजा मधुकर शाह कृष्ण के भक्त थे और रानी श्रीराम की। एक दिन दोनों में बहस छिड़ गई कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। रानी ने प्रतिज्ञा कर ली कि वे श्रीराम को ओरछा लेकर आएँगी। श्रीराम के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण भी शुरू कर दिया। रानी अवध गईं और सरयू नदी के किनारे कठिन तपस्या की। जब भगवान प्रसन्न नहीं हुए तो अंत में सरयू में प्राण देने लगीं। तभी एक झूला नदी से निकला जिसमें बालक रूपी राम थे। 

कहा जाता है कि भगवान ने शर्त रखी कि वो एक बार जहां विराजमान हो जाएंगे, वहीं रहेंगे। जब रानी ओरछा आईं तो चतुर्भुज मंदिर बनकर तैयार नहीं हुआ था। रानी ने महल की किचन में भगवान राम को रख दिया। शर्त के अनुसार, वे महल में ही विराजमान हो गये। तब से ये महल रामराजा मंदिर कहलाने लगा। मंदिर में भीड़ नहीं थी इसलिए जल्दी घूमकर बाहर निकल आए।

चतुर्भुज मंदिर

राम राजा मंदिर के बगल से एक रास्ता गया है जो चतुर्भुज मंदिर गया है। हम दोनों चतुर्भुज मंदिर के लिए निकल पड़े। अगर आपने महल के लिए टिकट लिया है तो उसी टिकट से इस मंदिर को देख सकते हैं। इस मंदिर को भूलभुलैया भी कहते हैं। ऐसा क्यों कहते हैं ये आपको मंदिर घूमते हुए समझ आ जाएगा। कई मुश्किलों का सामना करने के बाद हम मंदिर की छत पर पहुंच गए। जहां से हमें पूरा ओरछा दिख रहा था। कुछ मिनट रूकने के बाद हम नीचे उतरने लगे। 

मंदिर से नीचे उतरना भी एक टास्क था। हम जिस रास्ते जा रहे थे, वापस लौटकर वहीं आ जा रहे थे। कड़़ी मशक्कत के बाद हमें आखिर रास्ता मिल ही गया और मंदिर से बाहर आ गए। ओरछा का स्टीट फूड शानदार है। अगर आपने यहां ही चाट नहीं खाई तो कुछ भी नहीं खाया। मुझे मामा चाट भंडार की चाट बहुत पसंद है। पत्ते के दोने में मिलने वाली चाट का स्वाद बेजोड़ है। आप एक बार खाओगे बार-बार खाने का मन करता हैं। चाट के बाद हमने समोसा रायते का भी स्वाद लिया। 

लक्ष्मी मंदिर देखा

हमें आज ही झांसी के लिए निकलना था। जहां से हम दोनों को अपने-अपने घर जाना था। उससे पहले थोड़ा समय था इसलिए लक्ष्मी मंदिर देखने के लिए निकल गए। ओरछा के इस मंदिर को देखने के लिए कम ही लोग आते हैं लेकिन मेरी नजर में ये बेहद शानदार जगह है। आर्किटेक्चर देखकर तो मन खुश हो जाएगा इस मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र बने हुए है। 

लक्ष्मी मंदिर।
मंदिर के छत से ओरछा के नजारे और ठंडी हवा का लुत्फ उठाया जा सकता है। हमने कुछ देर यहां का लुत्फ उठाया। इस बार मैंने कंचना घाट और छतरियां नहीं देख पाया। मेरा मानना है हर जगह पर कुछ जगहें रह जानी चाहिए। ये जगहें ही हमें उस जगह पर वापस आने का मौका देती हैं। अगली बार इन जगहों पर जरूर जाउंगा। हमनें ओरछा से झांसी के लिए टैक्सी ली और निकल पड़े एक और सफर के लिए। ओरछा मेरे लिए हमेशा से ही खूबसूरत शहर रहा है। मुझे पहाड़ बहुत पसंद हैं लेकिन ओरछा मेरे घर और दिल दोनों के बहुत करीब है। इसलिए जब भी मौका मिलता है ओरछा चला आता हूं।