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Saturday, 16 October 2021

ओरछा: खूबसूरती भरे इस ऐतहासिक शहर में दोबारा जाना वाकई शानदार रहा

एक ही जगह पर दोबारा जाना एक अलग प्रकार का सुकून देता है। आपको उस जगह के बारे में सब कुछ पता होता है। वहां का खाना, जगहें, रास्ते और ठिकाना सब कुछ आप जानते हैं। फिर भी ऐसी जगहों पर आकर खुशी मिलती हो। मैं ऐसी जगहों पर ऐसे फिरता हूं जैसे कि मेरा घर हो। ऐसी कम ही जगह हैं जहां मैं दोबारा गया हूं। उन कम जगहों में ओरछा सबसे ऊपर है। ओरछा एक ऐतहासिक और धार्मिक स्थल दोनों है। घूमते हुए आप दोनों के बारे में जान सकते हैं। मैंने भी इस बार ओरछा की वैभवता को जानने की भरसक कोशिश की।

ओरछा का प्लान 


तो हुआ यूं कि मेरी अपने एक खास दोस्त से बात हुई। वो चाह रही थी कि दोनों सोनभद्र घूमने चलें और मैं खजुराहो चलने पर जोर दे रहा था। मेरे पास इतना समय नहीं था कि सोनभद्र जा सकूं और खजुराहो उसके लिए दूर पड़ रहा था। सो मैंने उसे ओरछा आने के लिए कहा। फोन पर चर्चा होने के बाद आखिर ओरछा जाने का प्लान पक्का हो गया। मेरे घर से ओरछा लगभग 60 किमी. की दूरी पर है। जिस दिन उसे आना था, मैं झांसी गया। देर रात होने की वजह से हमने रात झांसी में ही बिताई। इसके बाद अगली सुबह झांसी बस स्टैंड से ओरछा के लिए शेयर्ड ऑटो में बैठ गए।

झांसी से ओरछा का रास्ता बेहद खूबसूरत है। चारों तरफ आपको हरियाली ही हरियाली मिलेगी। रोड ट्रिप के लिए ये रास्ता परफेक्ट है। अगर मौसम सुहावना रहता है तब तो ये जगह और भी खूबसूरत हो जाती है। हम इतने खूशनसीब नहीं थे लेकिन रास्ता फिर भी अच्छा लग रहा था। आधा घंटे के बाद हम हाइवे को छोड़कर ओरछा के रास्ते पर आ गए। इस रास्ते पर जाते हुए सारी पुरानी यादें जेहन में चलने लगीं। कुछ ही देर बाद हम ओरछा में थे।

सबसे पहले क्या?

पूड़ी-सब्जी।
हमने सबसे पहले अपने होटल में चेक इन किया और बाहर जाने के लिए तैयार हो गये। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था इसलिए पेट पूजा भी बहुत जरूरी थी। हम किसी होटल में नहीं जाना चाहता था इसलिए रामराजा मंदिर के सामने छोटी-सी दुकान है। जहां की सब्जी-पूड़ी खाए बिना ओरछा की यात्रा पूरी नहीं मानी जा सकती। सब्जी-पूड़ी के साथ मिर्च नींबू का अचार और रायते ने स्वाद को और भी बढ़ा दिया। इसके बाद हमने सबसे पहले किले को घूमने का प्लान बनाया।

धूप तेज थी और गर्मी भी काफी लग रही थी लेकिन अब आ गए थे तो कमरे में तो नहीं बैठ सकते थे। पुल पार करने के बाद किले के पुराने गेट से होकर टिकट काउंटर पर पहुंच गए। टिकट लिया, जेब में डाला और निकल पड़े किला घूमने। किले में घुसते हर दायीं तरफ एक बड़ी इमारत आती है जहां कभी राजा का दरबार लगता था। किले की ये जगह मायूस कर देती है। इमारत की छज्जों पर नक्काशी देखने लायक है लेकिन चारों तरफ गंदगी ही गंदगी है। यहां से हम राजा महल की तरफ बढ़ गए।

टिकट कहां गया?


जहांगीर महल से पहले राजा महल आता है। हम महल के बड़े-से गेट से अंदर घुसे। अंदर गार्ड ने टिकट मांगा। मैंने जेब में हाथ डाला लेकिन टिकट नहीं मिला। मैंने फिर दूसरी जेब देखी, पर्स देखा लेकिन टिकट नहीं मिला। गार्ड ने कहा, चले जाओ अंदर लेकिन मैं परेशान था कि टिकट गया कहां? हम टिकट खोजने के लिए उसी रास्ते पर चलने लगे, जिससे आए थे। जब मुझे लगने लगा कि अब टिकट नहीं मिलेगा, तभी सीढ़ियों पर मुझे छोटा-सा कागज दिखाई दिया। उसे उठाया तो देखा कि वो मेरा ही टिकट है। चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई।

हम वापस लौटे और राजा महल के अंदर आए। राजा महल की नींव राजा रुद्र प्रताप ने 1531 में रखी थी। इसका पूरा निर्माण उनके बेटे भारती चन्द्र ने करवाया। बाद में राजा मधुकर शाह ने महल को अंतिम रूप दिया। इस महल में आवास कक्ष, दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास है। हम इन्हीं महलों को घूम रहे थे। किले का आर्किटेक्चर देखकर हम हैरान थे। छज्जे और दीवार पर रामलीला और कृष्ण लीला का उकेरा गया था जो वाकई शानदार लग रहा था। बुंदेली शैली में बना ये किला वाकई शानदार था।

किले के उपरी भाग पर नजारा भी शानदार था और हवा भी काफी ठंडी चल रही थी। यहां से हमें रामराजा मंदिर, चतुर्भुज मंदिर और जहांगीर महल तो दिख ही रहा था। वहीं दूसरी तरफ हमें हरा-भरा ओरछा दिखाई दे रहा था। चारों तरफ ऐसी हरियाली देखकर मन पुलकित हो उठा। बीच-बीच में मौसम भी हमारा साथ दे रहा था। कुछ घंटे घूमने के बाद हम किले के बाहर थे।

दाऊजी की कोठी

राजा महल के दायीं तरफ एक रास्ता गया था। इस तरफ दाउ जी की कोठी थी। कुछ ही मिनटों के बाद हम दाउजी की कोठी के बाहर थे। ये कोठी बुंदेल राज्य के सैन्य अधिकारी और मंत्री बलवंत दाउ की थी। अंदर गया तो पाया कि कोठी तो काफी बड़ी है लेकिन रखरखाव बहुत अच्छा नहीं है। कोठी की छत नहीं है लेकिन एक बार देखने लायक है। इसके बाद जहांगीर महल की ओर चल पड़े।

मैंने राजस्थान के कई किले देखे हैं। वो किले काफी खूबसूरत होते हैं लेकिन मुझे सुकून ओरछा के किले ही देते हैं। यहां के किलों में मन बसता है। हम जहांगीर किले के गेट से घुसे। घुसते ही हमें ओरछा की वैभवता दिखाई दी। इस खूबसूरत किले के बनने की एक कहानी है। मुगल शासक अकबर ने अपने सेनापति अबुल फज़ल को अपने विद्रोही बेटे को पकड़ने का आदेश दिया। जहांगीर को खतरे के बारे में पता चल गया। 

जहांगीर ने ओरछा के राजा वीर सिंह को अबुल फज़ल से निपटने को कहा। वीर सिंह ने अबुल फज़ल को हमेशा के लिए जहांगीर के रास्ते से हटा दिया। वीर सिंह से जहांगीर इतने खुश हुए कि कई जागीर उन्हें दे दी। बाद में जब जहांगीर ओरछा आने वाले थे तो उनके स्वागत में ये भव्य जहांगीर महल बनवाया गया। हम किले की छत पर गए और ओरछा नगर की भव्यता को देखा। इस महल से ओरछा और भी खूबसूरत लग रहा था।

अब कल घूमेंगे

ओरछा आने से पहले ही प्लान बना लिया था कि दिन में घूमेंगे और शाम में काम करेंगे। जहांगीर महल और प्रवीण राय महल को देखने के बाद हम अपने होटल में वापस लौट आए। बाकी कुछ बताने के लिए नहीं, बस काम करते हुए रात हो गई और फिर नींद की आगोश में चले गए। सुबह आराम से उठे, तैयार हुए और निकल पड़े रामराजा मंदिर। रामराजा मंदिर भी बेहद शानदार है। इस मंदिर में अंदर फोटो खींचना मना है। 

इस मंदिर की भी एक कहानी है। महाराजा मधुकर शाह कृष्ण के भक्त थे और रानी श्रीराम की। एक दिन दोनों में बहस छिड़ गई कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। रानी ने प्रतिज्ञा कर ली कि वे श्रीराम को ओरछा लेकर आएँगी। श्रीराम के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण भी शुरू कर दिया। रानी अवध गईं और सरयू नदी के किनारे कठिन तपस्या की। जब भगवान प्रसन्न नहीं हुए तो अंत में सरयू में प्राण देने लगीं। तभी एक झूला नदी से निकला जिसमें बालक रूपी राम थे। 

कहा जाता है कि भगवान ने शर्त रखी कि वो एक बार जहां विराजमान हो जाएंगे, वहीं रहेंगे। जब रानी ओरछा आईं तो चतुर्भुज मंदिर बनकर तैयार नहीं हुआ था। रानी ने महल की किचन में भगवान राम को रख दिया। शर्त के अनुसार, वे महल में ही विराजमान हो गये। तब से ये महल रामराजा मंदिर कहलाने लगा। मंदिर में भीड़ नहीं थी इसलिए जल्दी घूमकर बाहर निकल आए।

चतुर्भुज मंदिर

राम राजा मंदिर के बगल से एक रास्ता गया है जो चतुर्भुज मंदिर गया है। हम दोनों चतुर्भुज मंदिर के लिए निकल पड़े। अगर आपने महल के लिए टिकट लिया है तो उसी टिकट से इस मंदिर को देख सकते हैं। इस मंदिर को भूलभुलैया भी कहते हैं। ऐसा क्यों कहते हैं ये आपको मंदिर घूमते हुए समझ आ जाएगा। कई मुश्किलों का सामना करने के बाद हम मंदिर की छत पर पहुंच गए। जहां से हमें पूरा ओरछा दिख रहा था। कुछ मिनट रूकने के बाद हम नीचे उतरने लगे। 

मंदिर से नीचे उतरना भी एक टास्क था। हम जिस रास्ते जा रहे थे, वापस लौटकर वहीं आ जा रहे थे। कड़़ी मशक्कत के बाद हमें आखिर रास्ता मिल ही गया और मंदिर से बाहर आ गए। ओरछा का स्टीट फूड शानदार है। अगर आपने यहां ही चाट नहीं खाई तो कुछ भी नहीं खाया। मुझे मामा चाट भंडार की चाट बहुत पसंद है। पत्ते के दोने में मिलने वाली चाट का स्वाद बेजोड़ है। आप एक बार खाओगे बार-बार खाने का मन करता हैं। चाट के बाद हमने समोसा रायते का भी स्वाद लिया। 

लक्ष्मी मंदिर देखा

हमें आज ही झांसी के लिए निकलना था। जहां से हम दोनों को अपने-अपने घर जाना था। उससे पहले थोड़ा समय था इसलिए लक्ष्मी मंदिर देखने के लिए निकल गए। ओरछा के इस मंदिर को देखने के लिए कम ही लोग आते हैं लेकिन मेरी नजर में ये बेहद शानदार जगह है। आर्किटेक्चर देखकर तो मन खुश हो जाएगा इस मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र बने हुए है। 

लक्ष्मी मंदिर।
मंदिर के छत से ओरछा के नजारे और ठंडी हवा का लुत्फ उठाया जा सकता है। हमने कुछ देर यहां का लुत्फ उठाया। इस बार मैंने कंचना घाट और छतरियां नहीं देख पाया। मेरा मानना है हर जगह पर कुछ जगहें रह जानी चाहिए। ये जगहें ही हमें उस जगह पर वापस आने का मौका देती हैं। अगली बार इन जगहों पर जरूर जाउंगा। हमनें ओरछा से झांसी के लिए टैक्सी ली और निकल पड़े एक और सफर के लिए। ओरछा मेरे लिए हमेशा से ही खूबसूरत शहर रहा है। मुझे पहाड़ बहुत पसंद हैं लेकिन ओरछा मेरे घर और दिल दोनों के बहुत करीब है। इसलिए जब भी मौका मिलता है ओरछा चला आता हूं।

 

Friday, 30 November 2018

ओरछा 2: ओरछा की प्राचीनता आज भी इन किलों की दीवारों पर देखी जा सकती है

ओरछा ने अब तक प्राचीनता की जर्जर तस्वीर दिखाई और दीवार पर बुंदेली नक्काशी। मैं राजस्थान नहीं वहां के किले नहीं देखे। फिर भी मुझे पता है ओरछा जैसे ही होंगे किले। जिनमें प्राचीनता झलक रही होगी आधुनिकता की पुटीन इन किलों पर नहीं चढ़ पाती है। अब तक मैं ओरछा की वो जगहें देख चुका था। जहां कम ही लोग जाते। अब मुझे भी उस जगह जाना था जहां सभी जाते हैं किला और जहांगीर महल।



जहांगीर महल


जहांगीर महल ओरछा का सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र है। इसका मुख्य द्वार पर बड़ा सा गेट। दरवाजा के दोनों तरफ बड़े-बड़े हाथी बने हुये हैं। खास बात ये है कि दोनों हाथी का सिर झुका हुआ है। इस महल के कहानी रोचक है।

मुगल शासक अकबर ने अपने सेनापति अबुल फजल को अपने विद्रोही बेटे को पकड़ने का आदेश दिया। जहांगीर को खतरे के बारे में पता चल गया। जहांगीर ने ओरछा के राजा वीर सिंह को अबुल फजल से निपटने को कहा। वीरसिंह ने अबुल फजल को हमेशा के लिए जहांगीर के रस्ते से हटा दिया। वीर सिंह से जहांगीर इतने खुश हुए कि कई जागीर उन्हें दे दी। बाद में जब जहांगीर ओरछा आने वाले थे तो उनके स्वागत में ये भव्य जहांगीर महल बनवाया।

जहांगीर महल
जहांगीर महल ओरछा का सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र है। महल की छत पर चढ़कर पूरे नगर को देखा जा सकता है। दीवारों पर कुछ नक्काशी भी बनी हुई है। देश-विदेश से पर्यटक इसी महल को देखने आते हैं। जहांगीर महल किले के अंदर ही है। महल की मोटी दीवार और बाहर का सुंदर नजारा बेहद खुशनुमा होता है। गर्मी में किले के लाल पत्थर ठंडक महसूस करवाते हैं। किले को देखने का बाद हम राजमहल की ओर बढ़ गये।

राजमहल


किले के अंदर जाते ही सबसे पहले राजमहल ही मिलता है। उसके ठीक सामने है जहांगीर महल। जहांगीर महल के भांति यहां भी एक बड़ा सा गेट है। महल के बीचों-बीच एक चबूतरा बना है। महल दो भागों में बंटा हुआ है। महल भूल-भुलैया टाइप का है। आप जिस जायेंगे लगेगा मैं इधर तो अभी-अभी आया था। इस महल में भी नक्काशी दिखाई देती है। दीवार कला और संस्कृति से पटी हुई है, ऐसा ही कुछ हान छज्जों का भी है।


किला पांच मंजिल का है। हमारे पास में खड़ा गाइड कुछ पर्यटकों को बता रहा था। राजा की 100 रानियां थीं और सभी का अलग-अलग कमरा था। राजा का एक अलग कमरा था। मुझे उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। मैंने ओरछा का इतिहास पढ़ा है। मुझे ऐसी जानकारी कहीं न मिली। न ही किताब में और न ही इंटरनेट पर।  इस महल को महाराजा मधुकर शाह ने पूरा करवाया था।

महल से बाहर निकलकर हम बाहर की ओर जाने लगे। हमें तभी एक बड़ा-सा कमरा दिखाई दिया। जो बहुत बड़ा था। उस बड़े से हाॅल में कई मोटे-मोटे खंभे थे। आगे बढ़ने पर एक पत्थर की बनी हुई गद्दी दिखाई दी। मुझे समझने में देर नहीं लगी कि ये राजदरबार है। यहीं बैठकर राजा अपना राजदरबार चलाते होंगे। यहां के छज्जे पर भी रंगीन नक्काशी दिखाई दे रही थी। लेकिन राज दरबार किले के कोने पर होने पर यहां अंधेरा था।


रामराजा मंदिर


ओरछा बुंदेलखंड की आस्था का केन्द्र है। वजह है यहां का रामराजा मंदिर। पुख के दिन ओरछा किसी मेले के समान सज जाता है। रामराजा मंदिर देखकर अमृतसर का स्वर्ण मंदिर याद आता है। बिल्कुल संगमरमर सा सफेद मंदिर और सोने के समान चमकती चोटियां। रामराजा मंदिर में भगवान श्रीराम विराजे हुये हैं। इस मंदिर की भी एक रोचक कहानी है।

रामराजा मंदिर
महाराजा मधुकर शाह कृष्ण के भक्त थे और रानी श्रीराम की। एक दिन दोनों में बहस छिड़ गई कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? रानी ने प्रतिज्ञा कर ली कि वे श्रीराम को ओरछा लेकर आयेंगी। श्रीराम के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण भी शुरू कर दिया। रानी अवध गईं और सरयू नदी के किनारे कठिन तपस्या की। जब भगवान प्रसन्न नहीं हुये तो अंत में सरयू में प्राण देने लगीं। तभी एक झूला नदी से निकला जिसमें बालक रूपी राम थे।


भगवान श्रीराम जब ओरछा आये तो वे महल में ही विराजमान हो गये। तब से वो महल रामराजा मंदिर कहलाने लगा। भगवान रामराजा के दर्शन किए और ओरछा से वापस चल दिये। ओरछा में देखने लायक बहुत कुछ था लेकिन शाम होने को थी और हमें लंबा रास्ता तय करना था, गांव का रास्ता।

यात्रा का पहला भाग यहां पढें।