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Friday, 9 August 2019

चकराता 2: सुर्ख स्याहे के बीच से झलकती है यहां की खूबसूरती

मैंने कहीं पढ़ा था घुमक्कड़ से बड़ा दुनिया में कोई धर्म नहीं होता। मैं उस धर्म में बंधे रहने की कोशिश में लगा रहता हूँ। मेरे लिए ये कोई मायने नहीं रखता कि वो जगह पहाड़ है या मैदानी। मैं तो बस घूमना चाहता हूं और घूम वही पाता है जो निश्चियंत होता है। घूमना हमेशा कूल नहीं होता है, इसकी भी अपनी परेशानियां होती हैं और खट्टे-मीठे अनुभव। लेकिन वो अनुभव बेहद प्यारे होते हैं। जाने क्यों वो अनुभव बेहद सुखद होते हैं, उनको याद करता हूं तो मुस्कुराहट खुद-ब-खुद चेहरे पर तैर जाती है। चकराता का अनुभव मेरे लिए कुछ ऐसा ही है। पहली बार घूमते हुए बारिश का सामना किया था। लेकिन उससे पहले चकराता को जिस तरह से देखा वो बेहद खूबसूरत था। बारिश की फुहारों के बीच चलना एक अनंत यात्रा थी जो खत्म न होती तो अच्छा होता और मैं उस रास्ते पर बस चलता रहता।


देहरादून से चकराता हम कुछ घंटों में पहुंच गये थे। यहां तक आने का रास्ता भी बेहद खूबसूरत था। यहां की हवा में जादू था जो शहर के शोर को हममें से झाड़ रही थी। चकराता हिल स्टेशन पहुंचकर देखा कि सड़कें पूरी तरह से खाली थीं और कुछ दुकानें सामने दिख रहीं थीं। सामने कुछ आर्मी वाले दिख रहे थे, जिससे पता लग चुका था कि ये आर्मी का इलाका है। चकराता के आज में जाने से पहले इतिहास में चलना चाहिए। इतिहास जाने बिना यात्राएं अधूरी रह जाती हैं। चकराता समुद्र तल से 7,000 फीट की उंचाई पर स्थित है। अंग्रेजों की सेना गर्मियों में इस जगह को अपना बेस बनाते थे। तब चकराता की स्थापना कर्नल ह्यूम और उनके कुछ सहयोगियों ने की थी। बाद में भारत आजाद हो गया और ये जगह भारतीय सेना का बेस कैंप बन गया। यहां सेना के जवान ट्रेनिंग करते हैं शायद इसलिए इस खूबसूरत जगह पर किसी भी विदेशी नागरिक को आने की अनुमति नहीं है। अब आज में आते हैं।

टाइगर फाल तक का सफर


यात्राएं जितना हल्का करती हैं, उतना भर भी देती हैं। चकराता की खूबसूरती मेरे अंदर कुछ ख्याल भर रही थी। चकराता हिल स्टेशन भीड़ भाड़ वाली जगह नहीं है, अगर आप बेहद शांत और खूबसूरत जगह की खोज में हैं तो मेरे ख्याल से आपको चकराता जरूर जाना चाहिए। हमें यहां की कुछ बेहतरीन जगहों पर जाना था लेकिन दिक्कत ये थी सभी जगहें एक-दूसरे से बहुत दूर थीं। देववन, टाईगर फाल, कनासर और लाखामंडल में से किसी एक को चुनना था। जिसमें से हमने चुना टाइगर फाल। टाइगर फाल, चकराता से 30 किलोमीटर की दूरी पर था। मौसम साफ था रास्ते में जरूर कुछ बूंदा-बांदी हुई थी। बारिश की उन फुहार से मौसम और ये पहाड़ दोनों खूबसूरत लगने लगे थे।

चकराता हिल स्टेशन।

हम एक बार फिर से यात्रा पर थे। इस बार सफर चकराता हिल स्टेशन से टाइगर फाॅल तक का था। ये सफर भी खूबसूरत नजारों से भरा हुआ था। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और उन पर तैरते सफेद बादल, ये नजारा देखकर तो कोई भी खुशी से नहीं समायेगा। रास्ते में वो मुंडेर भी मिलती है जहां रूककर आप कुछ देर ठहरना चाहते हैं और इस जगह को अनुभव करना चाहते हैं। पहाड़ों में घुमावदार रास्तों पर मोड़ बहुत हैं। हर मोड़ पर मुझे अपना कुछ जिया हुआ दिखता है। मैं इन दृश्यों को समेटने की कोशिश में था। गाड़ी भागी जा रही थी लेकिन मैं उस भागे हुए रास्ते में अपने लिए कुछ जगह ढ़ूंढ ही ले रहा था। वैसे भी सफर में पूरा कोई भी नहीं पा पाता है कुछ न कुछ छूट जाता है। ये छूटना भी सफर की एक खूबसूरती है।

खूबसूरत नजारों से भरी ये घाटी


हरे-भरे पहाड़ों के बीच कुछ घर थे जो देखने में बेहद खूबसूरत लग रहे थे। शहर में रहने वाला हर शख्स इन घरों को देखकर सोचता है कि काश! उसका भी घर इन पहाड़ों के बीच होता। अगर शहर के लोगों को यहां की समस्याओं के बारे में पता होता तो वो ऐसा कभी नहीं कहते। पहाड़ में एक कहावत है, पहाड़ का पानी यहां के लोगों के काम नहीं आता। वैसे ही पहाड़ की खूबसूरती भी यहां के लोगों के लिए नहीं है। कभी यहां के लोगों से बात कीजिए वो बताएंगे अपनी और पहाड़ की परेशानी। लेकिन हम तो कुछ दिन के लिए यहां की खूबसूरती को देखते हैं और वही खूबसूरती को लेकर चले जाते हैं। हम कई किलोमीटर चल चुके थे धूप अब भी निकली हुई थी लेकिन ये धूप सुकून वाली थी। इसमें गर्मी का थोड़ा-सा भी एहसास नहीं था। हम नीचे थे और दूर तलक पहाड़ और बस पहाड़ थे।


हम रास्ते में कई जगह रूक रहे थे और इसकी वजह थी यहां की सुंदरता। खूबसूरती की कोई परिभाषा नहीं होती लेकिन मेरे हिसाब से जिस जगह पर आपके कदम रूक जाएं, वही खूबसूरती है। वहां बैठना भी अच्छा लगता है और पसरना भी, हम दोनों ही कर रहे थे। रास्ते में गाड़ियों का आना-जाना लगा हुआ था। पहली वजह ये टूरिस्ट प्लेस है और दूसरी वजह हम वीकेंड के समय पर यहां आए थे। यहां की हरियाली देखकर कोई भी मोहित हो जाए। पहाड़ आसमानों से बातें कर रहे थे। कुछ आगे बढ़े तो एक बहुत बड़ा बोर्ड दिखा। जिस पर लिखा हुआ था, वेलकम टू टाइगर फाल।

वेलकम टू टाइगर फाल। 

अब मौसम ने भी करवट ले ली थी। कुछ देर पहले जहां बहुत तेज धूप थी, अब चारों तरफ अंधेरा छाने लगा था। हम कुछ देर बाद ऐसी जगह पहुंचे जहां से टाइगर फाॅल की दूरी 2-3 किलोमीटर ही थी। यहां से जाने के दो रास्ते थे एक अपनी गाड़ी से और दूसरा पैदल। मैं पैदल जाना चाहता था लेकिन मेरे साथी गाड़ी से जाने की कह रहे थे। हम गाड़ी से ही आगे बढ़ चले। थोड़ा ही आगे बढ़े तो अचानक तेज बारिश होने लगी, बारिश इतनी तेज थी कि छुपने की जगह ढ़ूढ़ने पड़ी। सामने लकड़ी का एक छोटा-सा घर दिखा, हम वहीं रूक गये। गेट खुला हुआ था अंदर एक बुजुर्ग व्यक्ति था जो सब्जियों को बोरे में भर रहा था। उस शख्स ने बताया कि वो किसान है, इन आलू और टमाटर को विकासनगर की मंडी में भेजता है। जब तक बारिश होती रही, हम उनकी बातें सुनते रहे और वो हमारी। जब हम आने लगे तो कुछ आलू भी दिए, हमारे पास जगह तो थी नहीं लेकिन कुछ आलू ले लिए।

आसमां से गिरता पानी


ये ढलान वाला रास्ता बहुत संकरीला और गड्ढों वाला था, जिससे गाड़ी धीरे-धीरे ले जानी पड़ रही थी। कुछ देर में हम उस जगह पर पहुंच गये, जहां बहुत-सी गाड़ी खड़ी हुई थी। हमने भी वहीं गाड़ी रख दी और चल पड़े टाइगर फाल को देखने। रास्ते में कुछ घर भी थे और खेत भी। धान के ये खेत पहाड़ों के बीच बेहद खूबसूरत लग रहे थे। आगे चले तो वो जगह आई जिसे देखने हम 30 किमी. नीचे आये थे, टाइगर फाल। बहुत ऊंचाई से एक धार में गिरता पानी शोर कर रहा था। पानी की ये आवाज रौबीली थी जिसे देखने में हमें अपनी नजर बहुत ऊपर ले जानी पड़ रही थी। यहां कुछ लोग नहा रहे थे तो कुछ लोग इस झरने को बस देख ही रहे थे। हम भी कुछ ही देर यहां ठहरे और वापस लौट आये। मुझे उस वाटरफाल से खूबसूरत बहता हुआ पानी अच्छा लग रहा था, जो शांति से बहा जा रहा था।

टाइगर फाल।

बारिश फिर से शुरू हो गई थी और हम इससे बचने के लिए कुछ देर यहीं ठहर गये। बारिश रूकी तो हम चकराता की ओर वापस आने लगे। पहाड़ों से वापस लौटना सबसे कठिन काम होता है लेकिन मैं मन ही मन में वायदा करता हूं कि वापस फिर आउंगा। रास्ते में जो सीढ़ीदार रास्ते खेत दिख रहे थे वो इस सफर का सबसे खूबसूरत नजारा था। बादल से घिरे पहाड़ों से भी खूबसूरत। लौटते हुए शाम होने लगी थी लेकिन पहाड़ों की शाम तो सूरज ढलते ही हो जाती है और सूरज तो जाने कब का ढल चुका था। रास्ते में जब पहाड़ों के आसपास बादलों को देख रहा था। तो अपने आपको बड़ा खुशनसीब समझ रहा था और सोच रहा था कि ‘यही यथार्थ है’ जो मैं देख रहा हूं।

सीढ़ीदार खेत।

हम चकराता पहुंचने ही वाले थे तभी सामने जो देखा उसे देखकर विश्वास नहीं हो रहा था। सामने धुंध ही धुंध थी, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि ये सब जुलाई में हो रहा है। जिस कोहरे को सर्दियों में देखते हैं, वो यहां जुलाई के महीने में था। कुछ घंटे पहले मैं इसी रास्ते से गुजरा था तब यहां धुंध का नामोनिशान नहीं था। ये सब विचित्र था लेकिन देखकर खुशी हो रही थी। उसी धुंध को पार करते हुए हम चकराता पहुंच गये। अब हमें देहरादून के लिए निकलना था लेकिन एक बार फिर बारिश ने हमें रोक लिया। कुछ देर बाद बारिश रूकी और हम देहरादून की ओर चल दिये। हम थोड़ा ही आगे चले थे कि बारिश फिर से चालू हो गई, लेकिन इस बार हम रूके नहीं। बारिश में भीगते रहे और चलते रहे। जैसे-जैसे हम देहरादून के पास आ रहे थे बारिश और तेज होती जा रही थी। बारिश इतनी तेज थी कि वो थपेड़े की तरह लग रही थी। जब हम वापस देहरादून पहुंचे तो पूरी तरह से भीगे हुए थे लेकिन खुशी इस बात की थी कि इस छोटी-सी यात्रा ने कई मोड़ लिए और सफर खूबसूरत हो गया।


चकराता को मैं पूरी तरह से नहीं देख पाया। बहुत कुछ छूट गया है, ये मेरे साथ हमेशा होता है। तमाम जगहों को देखने के बाद कुछ जगह रह ही जाती है, रह ही जानी चाहिए अगली बार के लिए। चकराता आने का मतलब है दो-तीन दिन का समय निकालना। अगली बार जब यहां आउंगा तो हर जगह को अच्छी तरह से नापूंगा। यहां के आसमान ने बहुत कुछ दिखाया था ये सब मेरे साथ पहली बार हुआ था। ऐसे ही कई और सफर पर जाने की तमन्ना है काफी पहाड़ों के बीच तो काफी जंगलों के बीच।

Monday, 15 July 2019

चकराता: मंजिल से ज्यादा खूबसूरत और सुंदर ये सफर है

मैं जब भी पहाड़ों की ओर जाता हूं तो हर बार कुछ अलग पाता हूं। मैं कभी नहीं कह पाता कि पहाड़ों मे कहीं भी चले जाओ सब एक जैसा। ये सब वैसे ही जैसे मौसम, कभी धूप है तो कभी छांव, बस ऐसा ही कुछ पहाड़ है। मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं पहाड़ में कहां जाना चाहिए, वो उस जगह के बारे में पूछते हैं। मैं नहीं बता पाता हूं, उन लोगों को पता ही नहीं है कि पहाड़ में मंजिल उतनी खूबसूरत नहीं होती, जितना कि सफर। ऐसी ही खूबसूरती और कई रंगों को दिखाता है चकराता का सफर। यहां देवदार का सुंदर जंगल है, घुमावदार रास्ते और इन खूबसूरत रास्तों के चारों तरफ फैले थे, हरियाली से लदे पहाड़।


14 जुलाई 2019 को मौसम बहुत सुहाना था और उसी सुहाने मौसम में हम निकल पड़े चकराता की ओर। चकराता देहरादून से 90 किमी. दूर है और उसे हम तय करने वाले थे बाइक से। मैं दूसरी बार रोड ट्रिप पर पर जा रहा था लेकिन यहां जाने का उत्साह बहुत ज्यादा था। मुझे चकराता के बारे में ज्यादा पता नहीं था लेकिन इतना पता था कि हिल स्टेशन है तो खूबसूरत जरूर होगा। सुबह का सुहानापन अपने सुरूर में था और उसी के फाहे में हम आगे बढ़ते जा रहे थे। देहरादून से बाहर निकलने के बाद भी वो हममें बना ही हुआ था। शहर से निकलने के बाद भी वो कुछ देर बना ही रहता है।

देहरादून से पहाड़ों तक पहुंचने में एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। ये रास्ते उन आदतों को दूर करने के लिए होते हैं जिनको हम अपनी जिंदगी मान लेते हैं और जब हम इस रास्ते को तय कर लेते हैं तो हम जहां पहुंचते हैं वो जगह सबसे खूबसूरत होती है लेकिन अभी तो हमें खूबसूरती से पहले एक लंबे रास्ते को तय करना था। देहरादून से निकलने पर सबसे सुद्धौवाला मिलता है। लोग दिन की शुरूआत कर रहे थे और हम एक सफर पर निकले हुए थे। थोड़ा आगे बड़े तो से 
सेलाकुई आया। हम देहरादून शहर से बाहर थे लेकिन उसका इंडस्ट्रियल क्षेत्र अब भी बना हुआ था। उत्तराखंड के तीन बड़े इंडस्ट्रियल क्षेत्र हैं, देहरादून, हरिद्वार और रूद्रपुुर। विकास पैदा करने वाली ऐसी ही एक जगह से हम गुजर रहे थे, यहीं वो होटल भी मिला जहां भारतीय क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी की शादी हुई थी।


मैदान के बाद है खूबसूरती

देहरादून से 40 किमी. दूर है विकासनगर। विकासनगर भी देहराूदन की तरह ही एक विकसित शहर है। बड़ी-बड़ी दुकानें, बहुत सारे चौराहे, होटल और रोड पर लगता जमा ये बताने के लिए काफी है कि ये बड़ा शहर है। हम मोटरसाइकिल से जा रहे थे सो हमारा जहां मन हो रहा था हम वहां रूक रहे थे। अभी तक हम जहां-जहां रूके भी तो सिर्फ अकड़न दूर करने के लिए। वैसी खूबसूरती और सुंदरता अब तक नहीं आई थी जिसके लिए हम रूकते। विकासनगर से आगे चले तो मिला कालसी। कालसी में हमने वो नजारा देखा जिसके लिए हमें रूकना ही पड़ा। किसान अपने खेत में हल चला रहा था, ग्रामीण भारत का ये नजारा बेहद खूबसूरत था। कालसी आखिरी मैदानी जगह थी, अब हम पहाड़ों की गोद में आ चुके थे।

पहाड़ में ग्रामीण भारत।

जगहों के साथ-साथ मौसम भी अपनी करवट बदल रहा था, कभी धूप हो रही थी तो कभी घने बादल। पहाड़ के आते ही सिर्फ मौसम नहीं बदल देता, यहां आना वाले लोग भी बदल जाते हैं। इन हरे-भरे पहाड़ को देखकर हम खुश होने लगते है, खुली आंखों से इस खूबसूरती को देखना एक सुंदर एहसास है। जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं खूबसूरती अपे परवान होती है। तब लगता ठीक-ठीक सुंदरता या यूं कहें पूरी सुंदरता कुछ नहीं होती है। हर कोई सुंदरता की इसी चौखट पर आना चाहता है। उत्तराखंड में दो मंडल है गढ़वाल और कुमाऊं। गढ़वाल के अंदर ही एक संस्कृति आती है, जौनसार।  जौनसार के बारे में कम  लोग जानते हैं लेकिन जौनसारी कल्चर सबसे रिच कल्चर माना जाता है, यहां के लोग आज भी अपनी परंपराओं को भूले नहीं है। उसी खूबसरत जौनसार में हम चले जा रहे थे।

हरियाली से लदे पहाड़

मुझे हरियाली बहुत पसंद है और हरे-भरे पहाड़ तो बेहद खूबसूरत लगते हैं। उजाड़ और बंजर पहाड़ से मैं जी चुराता और हरे-भरे पहाड़ को देखते रहने का मन करता है। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, पहाड़ हरियाली से लदते जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि बुग्याली की हरियाली को खड़े पहाड़ में पलट दिया हो। पहाड़ की नीचाई में कोई छोटी नदी बह रही थी, जिसे पहाड़ों में गदेरो कहते हैं। घुमावदार रास्ते और घुमावदार होते जा रहे थे और खूबसूरत भी। रास्ते में कुछ छोटे-छोटे गांव मिले, इस समय हर जगह खेती हो रही थी। देखकर लग रहा था कि जौनसार में खूब खेती होती है खासकर जब सड़क किनारे टमाटर ही टमाटर दिख रहे हों।

हरियाली ही हरियाली।

हम साहिया और हय्या को पार कर चुके थे। अभी भी चकराता काफी दूर था लेकिन हमारे पास में थी तो ये खूबसूरती, जिसको बहुत दिनों बाद देख रहा था। ऐसा लग रहा था कि अपनापन शहरों में नहीं, पहाड़ों में है। लेकिन पहाड़ों में रहने का मतलब है मुश्किल हालातों का सामना करना। पहाड़ों में अपनी गाड़ी से आकर कुछ घंटे बिताने के बाद वो जगह खूबसूरत तो लगती है लेकिन आसान नहीं है। पहाड़ ‘दूर के ढोल के सुहाने’ की तरह है यहां खूबसूरती तो है लेकिन यहां के लोगों के लिए नहीं।

नजर हटी, दुर्घटना घटी

रास्ते  एक में एक जगह खूब भीड़ थी। आगे बढ़े तो एंबुलेंस और पुलिस भी खड़े थे, कुछ  लोग रस्सी खींच रहे थे। कुछ दूर जाकर हम भी रूक गये, वहीं खड़े लोगों ने बताया एक गाड़ी रात को खाई में गिर गई थी और अब निकालने की कोशिश की जा रही है। पहाड़ की ये भी एक सच्चाई है, थोड़ी-सी भी कोताही सीधे खाई में पहुंचा देती है। थोड़ी देर उस खतरनाक दृश्य को देखा और आगे बढ़ गये। हम फिर से पहाड़ों के घुमावदार रास्ते और मोड़ों में गुम होने लगे। मुझे बार-बार पलटकर देखना पसंद है, कुछ छूट गया हो तो पूरा हो जायेगा।


हम जैसे-जैसे आगे आ रहे थे दूर तलक दिखने वाले रास्ते ऐसे लग रहे  थे जैसे खेत के बीच में होती है, पतली-सी मेड़। रास्ते में कुछ खतरनाक पहाड़ भी मिले जहां बारिश के मौसम में लैंसलाइडिंग होती है और रास्ते बंद हो जाते हैं। अब हम चकराता से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर थे। हम फिर से एक जगह रूके और सड़क किनारे लगे पहाड़ी किलमोड़ी तोड़कर खाई और पास के ही रिसोर्ट को देखने लगे। इससे खूबसूरत लोकेशन क्या होगी? चारों तरफ पहाड़, पास में ही चकराता और आसपास होती खेती। यहां टमाटर की खेपों की खेपे देखे जा सकती हैं। इस खूबसूरत रास्तों के बीच से हमने एक और दौड़ लगाई और पहुंच गये चकराता हिल स्टेशन।

मंजिल से पहले रास्ता होता है, उस रास्ते के सबके अपने-अपने किस्से होते हैं और इन्हीं किस्सों में तो जिंदगी बंटी होती है। हम एक रास्ता तय कर चुके थे और एक रास्ता तय करना बाकी था। इस जगह को तराशने का रास्ता। यहां हमें बहुत कुछ नया मिलने वाला था और वही नयापन तो खूबसूरती होती है, खूशबू से भरी खूबसूरती।