मैंने कहीं पढ़ा था घुमक्कड़ से बड़ा दुनिया में कोई धर्म नहीं होता। मैं उस धर्म में बंधे रहने की कोशिश में लगा रहता हूँ। मेरे लिए ये कोई मायने नहीं रखता कि वो जगह पहाड़ है या मैदानी। मैं तो बस घूमना चाहता हूं और घूम वही पाता है जो निश्चियंत होता है। घूमना हमेशा कूल नहीं होता है, इसकी भी अपनी परेशानियां होती हैं और खट्टे-मीठे अनुभव। लेकिन वो अनुभव बेहद प्यारे होते हैं। जाने क्यों वो अनुभव बेहद सुखद होते हैं, उनको याद करता हूं तो मुस्कुराहट खुद-ब-खुद चेहरे पर तैर जाती है। चकराता का अनुभव मेरे लिए कुछ ऐसा ही है। पहली बार घूमते हुए बारिश का सामना किया था। लेकिन उससे पहले चकराता को जिस तरह से देखा वो बेहद खूबसूरत था। बारिश की फुहारों के बीच चलना एक अनंत यात्रा थी जो खत्म न होती तो अच्छा होता और मैं उस रास्ते पर बस चलता रहता।
देहरादून से चकराता हम कुछ घंटों में पहुंच गये थे। यहां तक आने का रास्ता भी बेहद खूबसूरत था। यहां की हवा में जादू था जो शहर के शोर को हममें से झाड़ रही थी। चकराता हिल स्टेशन पहुंचकर देखा कि सड़कें पूरी तरह से खाली थीं और कुछ दुकानें सामने दिख रहीं थीं। सामने कुछ आर्मी वाले दिख रहे थे, जिससे पता लग चुका था कि ये आर्मी का इलाका है। चकराता के आज में जाने से पहले इतिहास में चलना चाहिए। इतिहास जाने बिना यात्राएं अधूरी रह जाती हैं। चकराता समुद्र तल से 7,000 फीट की उंचाई पर स्थित है। अंग्रेजों की सेना गर्मियों में इस जगह को अपना बेस बनाते थे। तब चकराता की स्थापना कर्नल ह्यूम और उनके कुछ सहयोगियों ने की थी। बाद में भारत आजाद हो गया और ये जगह भारतीय सेना का बेस कैंप बन गया। यहां सेना के जवान ट्रेनिंग करते हैं शायद इसलिए इस खूबसूरत जगह पर किसी भी विदेशी नागरिक को आने की अनुमति नहीं है। अब आज में आते हैं।
देहरादून से चकराता हम कुछ घंटों में पहुंच गये थे। यहां तक आने का रास्ता भी बेहद खूबसूरत था। यहां की हवा में जादू था जो शहर के शोर को हममें से झाड़ रही थी। चकराता हिल स्टेशन पहुंचकर देखा कि सड़कें पूरी तरह से खाली थीं और कुछ दुकानें सामने दिख रहीं थीं। सामने कुछ आर्मी वाले दिख रहे थे, जिससे पता लग चुका था कि ये आर्मी का इलाका है। चकराता के आज में जाने से पहले इतिहास में चलना चाहिए। इतिहास जाने बिना यात्राएं अधूरी रह जाती हैं। चकराता समुद्र तल से 7,000 फीट की उंचाई पर स्थित है। अंग्रेजों की सेना गर्मियों में इस जगह को अपना बेस बनाते थे। तब चकराता की स्थापना कर्नल ह्यूम और उनके कुछ सहयोगियों ने की थी। बाद में भारत आजाद हो गया और ये जगह भारतीय सेना का बेस कैंप बन गया। यहां सेना के जवान ट्रेनिंग करते हैं शायद इसलिए इस खूबसूरत जगह पर किसी भी विदेशी नागरिक को आने की अनुमति नहीं है। अब आज में आते हैं।
टाइगर फाल तक का सफर
चकराता हिल स्टेशन। |
खूबसूरत नजारों से भरी ये घाटी
हम रास्ते में कई जगह रूक रहे थे और इसकी वजह थी यहां की सुंदरता। खूबसूरती की कोई परिभाषा नहीं होती लेकिन मेरे हिसाब से जिस जगह पर आपके कदम रूक जाएं, वही खूबसूरती है। वहां बैठना भी अच्छा लगता है और पसरना भी, हम दोनों ही कर रहे थे। रास्ते में गाड़ियों का आना-जाना लगा हुआ था। पहली वजह ये टूरिस्ट प्लेस है और दूसरी वजह हम वीकेंड के समय पर यहां आए थे। यहां की हरियाली देखकर कोई भी मोहित हो जाए। पहाड़ आसमानों से बातें कर रहे थे। कुछ आगे बढ़े तो एक बहुत बड़ा बोर्ड दिखा। जिस पर लिखा हुआ था, वेलकम टू टाइगर फाल।
वेलकम टू टाइगर फाल। |
आसमां से गिरता पानी
ये ढलान वाला रास्ता बहुत संकरीला और गड्ढों वाला था, जिससे गाड़ी धीरे-धीरे ले जानी पड़ रही थी। कुछ देर में हम उस जगह पर पहुंच गये, जहां बहुत-सी गाड़ी खड़ी हुई थी। हमने भी वहीं गाड़ी रख दी और चल पड़े टाइगर फाल को देखने। रास्ते में कुछ घर भी थे और खेत भी। धान के ये खेत पहाड़ों के बीच बेहद खूबसूरत लग रहे थे। आगे चले तो वो जगह आई जिसे देखने हम 30 किमी. नीचे आये थे, टाइगर फाल। बहुत ऊंचाई से एक धार में गिरता पानी शोर कर रहा था। पानी की ये आवाज रौबीली थी जिसे देखने में हमें अपनी नजर बहुत ऊपर ले जानी पड़ रही थी। यहां कुछ लोग नहा रहे थे तो कुछ लोग इस झरने को बस देख ही रहे थे। हम भी कुछ ही देर यहां ठहरे और वापस लौट आये। मुझे उस वाटरफाल से खूबसूरत बहता हुआ पानी अच्छा लग रहा था, जो शांति से बहा जा रहा था।
टाइगर फाल। |
सीढ़ीदार खेत। |
हम चकराता पहुंचने ही वाले थे तभी सामने जो देखा उसे देखकर विश्वास नहीं हो रहा था। सामने धुंध ही धुंध थी, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि ये सब जुलाई में हो रहा है। जिस कोहरे को सर्दियों में देखते हैं, वो यहां जुलाई के महीने में था। कुछ घंटे पहले मैं इसी रास्ते से गुजरा था तब यहां धुंध का नामोनिशान नहीं था। ये सब विचित्र था लेकिन देखकर खुशी हो रही थी। उसी धुंध को पार करते हुए हम चकराता पहुंच गये। अब हमें देहरादून के लिए निकलना था लेकिन एक बार फिर बारिश ने हमें रोक लिया। कुछ देर बाद बारिश रूकी और हम देहरादून की ओर चल दिये। हम थोड़ा ही आगे चले थे कि बारिश फिर से चालू हो गई, लेकिन इस बार हम रूके नहीं। बारिश में भीगते रहे और चलते रहे। जैसे-जैसे हम देहरादून के पास आ रहे थे बारिश और तेज होती जा रही थी। बारिश इतनी तेज थी कि वो थपेड़े की तरह लग रही थी। जब हम वापस देहरादून पहुंचे तो पूरी तरह से भीगे हुए थे लेकिन खुशी इस बात की थी कि इस छोटी-सी यात्रा ने कई मोड़ लिए और सफर खूबसूरत हो गया।
चकराता को मैं पूरी तरह से नहीं देख पाया। बहुत कुछ छूट गया है, ये मेरे साथ हमेशा होता है। तमाम जगहों को देखने के बाद कुछ जगह रह ही जाती है, रह ही जानी चाहिए अगली बार के लिए। चकराता आने का मतलब है दो-तीन दिन का समय निकालना। अगली बार जब यहां आउंगा तो हर जगह को अच्छी तरह से नापूंगा। यहां के आसमान ने बहुत कुछ दिखाया था ये सब मेरे साथ पहली बार हुआ था। ऐसे ही कई और सफर पर जाने की तमन्ना है काफी पहाड़ों के बीच तो काफी जंगलों के बीच।