Showing posts with label chakrata hill station. Show all posts
Showing posts with label chakrata hill station. Show all posts

Monday, 15 July 2019

चकराता: मंजिल से ज्यादा खूबसूरत और सुंदर ये सफर है

मैं जब भी पहाड़ों की ओर जाता हूं तो हर बार कुछ अलग पाता हूं। मैं कभी नहीं कह पाता कि पहाड़ों मे कहीं भी चले जाओ सब एक जैसा। ये सब वैसे ही जैसे मौसम, कभी धूप है तो कभी छांव, बस ऐसा ही कुछ पहाड़ है। मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं पहाड़ में कहां जाना चाहिए, वो उस जगह के बारे में पूछते हैं। मैं नहीं बता पाता हूं, उन लोगों को पता ही नहीं है कि पहाड़ में मंजिल उतनी खूबसूरत नहीं होती, जितना कि सफर। ऐसी ही खूबसूरती और कई रंगों को दिखाता है चकराता का सफर। यहां देवदार का सुंदर जंगल है, घुमावदार रास्ते और इन खूबसूरत रास्तों के चारों तरफ फैले थे, हरियाली से लदे पहाड़।


14 जुलाई 2019 को मौसम बहुत सुहाना था और उसी सुहाने मौसम में हम निकल पड़े चकराता की ओर। चकराता देहरादून से 90 किमी. दूर है और उसे हम तय करने वाले थे बाइक से। मैं दूसरी बार रोड ट्रिप पर पर जा रहा था लेकिन यहां जाने का उत्साह बहुत ज्यादा था। मुझे चकराता के बारे में ज्यादा पता नहीं था लेकिन इतना पता था कि हिल स्टेशन है तो खूबसूरत जरूर होगा। सुबह का सुहानापन अपने सुरूर में था और उसी के फाहे में हम आगे बढ़ते जा रहे थे। देहरादून से बाहर निकलने के बाद भी वो हममें बना ही हुआ था। शहर से निकलने के बाद भी वो कुछ देर बना ही रहता है।

देहरादून से पहाड़ों तक पहुंचने में एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। ये रास्ते उन आदतों को दूर करने के लिए होते हैं जिनको हम अपनी जिंदगी मान लेते हैं और जब हम इस रास्ते को तय कर लेते हैं तो हम जहां पहुंचते हैं वो जगह सबसे खूबसूरत होती है लेकिन अभी तो हमें खूबसूरती से पहले एक लंबे रास्ते को तय करना था। देहरादून से निकलने पर सबसे सुद्धौवाला मिलता है। लोग दिन की शुरूआत कर रहे थे और हम एक सफर पर निकले हुए थे। थोड़ा आगे बड़े तो से 
सेलाकुई आया। हम देहरादून शहर से बाहर थे लेकिन उसका इंडस्ट्रियल क्षेत्र अब भी बना हुआ था। उत्तराखंड के तीन बड़े इंडस्ट्रियल क्षेत्र हैं, देहरादून, हरिद्वार और रूद्रपुुर। विकास पैदा करने वाली ऐसी ही एक जगह से हम गुजर रहे थे, यहीं वो होटल भी मिला जहां भारतीय क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी की शादी हुई थी।


मैदान के बाद है खूबसूरती

देहरादून से 40 किमी. दूर है विकासनगर। विकासनगर भी देहराूदन की तरह ही एक विकसित शहर है। बड़ी-बड़ी दुकानें, बहुत सारे चौराहे, होटल और रोड पर लगता जमा ये बताने के लिए काफी है कि ये बड़ा शहर है। हम मोटरसाइकिल से जा रहे थे सो हमारा जहां मन हो रहा था हम वहां रूक रहे थे। अभी तक हम जहां-जहां रूके भी तो सिर्फ अकड़न दूर करने के लिए। वैसी खूबसूरती और सुंदरता अब तक नहीं आई थी जिसके लिए हम रूकते। विकासनगर से आगे चले तो मिला कालसी। कालसी में हमने वो नजारा देखा जिसके लिए हमें रूकना ही पड़ा। किसान अपने खेत में हल चला रहा था, ग्रामीण भारत का ये नजारा बेहद खूबसूरत था। कालसी आखिरी मैदानी जगह थी, अब हम पहाड़ों की गोद में आ चुके थे।

पहाड़ में ग्रामीण भारत।

जगहों के साथ-साथ मौसम भी अपनी करवट बदल रहा था, कभी धूप हो रही थी तो कभी घने बादल। पहाड़ के आते ही सिर्फ मौसम नहीं बदल देता, यहां आना वाले लोग भी बदल जाते हैं। इन हरे-भरे पहाड़ को देखकर हम खुश होने लगते है, खुली आंखों से इस खूबसूरती को देखना एक सुंदर एहसास है। जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं खूबसूरती अपे परवान होती है। तब लगता ठीक-ठीक सुंदरता या यूं कहें पूरी सुंदरता कुछ नहीं होती है। हर कोई सुंदरता की इसी चौखट पर आना चाहता है। उत्तराखंड में दो मंडल है गढ़वाल और कुमाऊं। गढ़वाल के अंदर ही एक संस्कृति आती है, जौनसार।  जौनसार के बारे में कम  लोग जानते हैं लेकिन जौनसारी कल्चर सबसे रिच कल्चर माना जाता है, यहां के लोग आज भी अपनी परंपराओं को भूले नहीं है। उसी खूबसरत जौनसार में हम चले जा रहे थे।

हरियाली से लदे पहाड़

मुझे हरियाली बहुत पसंद है और हरे-भरे पहाड़ तो बेहद खूबसूरत लगते हैं। उजाड़ और बंजर पहाड़ से मैं जी चुराता और हरे-भरे पहाड़ को देखते रहने का मन करता है। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, पहाड़ हरियाली से लदते जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि बुग्याली की हरियाली को खड़े पहाड़ में पलट दिया हो। पहाड़ की नीचाई में कोई छोटी नदी बह रही थी, जिसे पहाड़ों में गदेरो कहते हैं। घुमावदार रास्ते और घुमावदार होते जा रहे थे और खूबसूरत भी। रास्ते में कुछ छोटे-छोटे गांव मिले, इस समय हर जगह खेती हो रही थी। देखकर लग रहा था कि जौनसार में खूब खेती होती है खासकर जब सड़क किनारे टमाटर ही टमाटर दिख रहे हों।

हरियाली ही हरियाली।

हम साहिया और हय्या को पार कर चुके थे। अभी भी चकराता काफी दूर था लेकिन हमारे पास में थी तो ये खूबसूरती, जिसको बहुत दिनों बाद देख रहा था। ऐसा लग रहा था कि अपनापन शहरों में नहीं, पहाड़ों में है। लेकिन पहाड़ों में रहने का मतलब है मुश्किल हालातों का सामना करना। पहाड़ों में अपनी गाड़ी से आकर कुछ घंटे बिताने के बाद वो जगह खूबसूरत तो लगती है लेकिन आसान नहीं है। पहाड़ ‘दूर के ढोल के सुहाने’ की तरह है यहां खूबसूरती तो है लेकिन यहां के लोगों के लिए नहीं।

नजर हटी, दुर्घटना घटी

रास्ते  एक में एक जगह खूब भीड़ थी। आगे बढ़े तो एंबुलेंस और पुलिस भी खड़े थे, कुछ  लोग रस्सी खींच रहे थे। कुछ दूर जाकर हम भी रूक गये, वहीं खड़े लोगों ने बताया एक गाड़ी रात को खाई में गिर गई थी और अब निकालने की कोशिश की जा रही है। पहाड़ की ये भी एक सच्चाई है, थोड़ी-सी भी कोताही सीधे खाई में पहुंचा देती है। थोड़ी देर उस खतरनाक दृश्य को देखा और आगे बढ़ गये। हम फिर से पहाड़ों के घुमावदार रास्ते और मोड़ों में गुम होने लगे। मुझे बार-बार पलटकर देखना पसंद है, कुछ छूट गया हो तो पूरा हो जायेगा।


हम जैसे-जैसे आगे आ रहे थे दूर तलक दिखने वाले रास्ते ऐसे लग रहे  थे जैसे खेत के बीच में होती है, पतली-सी मेड़। रास्ते में कुछ खतरनाक पहाड़ भी मिले जहां बारिश के मौसम में लैंसलाइडिंग होती है और रास्ते बंद हो जाते हैं। अब हम चकराता से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर थे। हम फिर से एक जगह रूके और सड़क किनारे लगे पहाड़ी किलमोड़ी तोड़कर खाई और पास के ही रिसोर्ट को देखने लगे। इससे खूबसूरत लोकेशन क्या होगी? चारों तरफ पहाड़, पास में ही चकराता और आसपास होती खेती। यहां टमाटर की खेपों की खेपे देखे जा सकती हैं। इस खूबसूरत रास्तों के बीच से हमने एक और दौड़ लगाई और पहुंच गये चकराता हिल स्टेशन।

मंजिल से पहले रास्ता होता है, उस रास्ते के सबके अपने-अपने किस्से होते हैं और इन्हीं किस्सों में तो जिंदगी बंटी होती है। हम एक रास्ता तय कर चुके थे और एक रास्ता तय करना बाकी था। इस जगह को तराशने का रास्ता। यहां हमें बहुत कुछ नया मिलने वाला था और वही नयापन तो खूबसूरती होती है, खूशबू से भरी खूबसूरती।