इतने महीने से घर पर था तो लग रहा था कि एक जगह जड़ हो गया हूं। चाहते हुए भी कहीं नहीं जा पा रहा था। पहले कोरोना वायरस का डर और फिर काम वक्त निकालना बड़ा मुश्किल हो रहा था। कई बार घूमने के बारे में सिर्फ सोचना नहीं काफी नहीं होता, एक कदम भी बढ़ाना होता है। आखिरकार मैंने घूमने के लिए दिन निकाल ही लिया। मैं घर से बहुत दूर जा सकता था लेकिन मैं नहीं गया। मैं जब भी किसी बड़े शहर या किसी लंबी दूरी वाली जगह पर जाता हूं तो ये मलाल रहता है कि अपने आसपास की जगह पर घूमने क्यों नहीं गया? इसलिए मैंने इस बार सबसे पहले ऐसी ही जगह चुनी, गढ़कुण्डार।
अगर आप बुंदेलखंड के इलाके के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से नहीं हैं तो शायद ही आपने इस जगह का नाम सुना हो। गढ़कुण्डार, भारत के सबसे पुराने किलों में से एक है। जिसका इतिहास बेहद गौरवशाली है। गढ़कुण्डार किला, बुंदेलखंड के डरावने और रहस्मयी किलों में से भी एक है। इस किले को बौना चोर का किला भी कहा जाता है। गढ़कुण्डार कभी बुंदेलखंड की राजधानी हुआ करती थी जो बाद में ओरछा हो गई। गढ़कुण्डार किला बेहद खूबसूरत है लेकिन झांसी और ओरछा से दूर होने की वजह से लोगों को इसके बारे में पता नहीं है।
गढ़कुण्डार
गढ़कुण्डार किला झांसी से 70 किमी. की दूरी पर कुढ़ार गांव की पहाड़ी पर स्थित है। इस किले की ये खासियत है कि आपको ये 5-6 किलोमीटर दूर से तो ये किला दिखाई देगा लेकिन पास आने पर आपको किला नहीं दिखाई देगा। मेरा घर बुंदेलखंड में ही है। जिस वजह से मैं इस किले के बारे में बचपन से सुनता आया हूं लेकिन कभी यहां आना नहीं हुआ। जब अब कोरोना होने के बावजूद घुमक्कड़ी शुरू हो चुकी है तो मैंने गढ़कुण्डार तक की रोड ट्रिप का प्लान बनाया है। इस पूरे सफर का साथी रहा मेरा छोटा भाई। हम दोनों लगभग 10 बजे बाइक से गढ़कुण्डार के लिए निकल पड़े।
मेरे यहां से गढ़कुण्डार की दूरी लगभग 55 किमी. है। धूप अच्छी थी लेकिन ठंड लग रही थी। रास्ते में आसपास खेत ही खेत थे जिनमें पानी लग रहा था। इस समय पूरे क्षेत्र में बुवाई हो चुकी है। किसान की मेहनत सफर में देखने को मिल रही थी। थोड़ा आगे चले तो रोड बन रहा था लेकिन आगे जाने पर बुरा लगा कि इस रोड को बनाने के लिए पहाड़ को तोड़ा जा रहा है। पहाड़ को इस प्रकार देखना वैसा ही था जैसे इंसान को बिना कपड़े के देखना। ये विकास है लेकिन ऐसा विकास किस काम का? जिससे विकास के नाम पर मौलिकता से छेड़छाड़ की जाए।
घुमक्कड़ को कोई नहीं रोक सकता?
थोड़ी देर में हम गांव के कच्चे रास्तों को छोड़कर झांसी हाइवे पर आ गए थे। गाड़ी की स्पीड भी बढ़ गई थी। बहुत दिनों बाद किसी सफर पर निकलना एक अच्छा एहसास दे रहा था। भीतर ही भीतर बहुत खुशी हो रही थी। ऐसा लग रहा था कि किसी जंजाल को तोड़कर अपनी मंजिन की ओर निकल पड़ा हूं। वैसे तो कहा जाता है कि घुमक्कड़ों को कोई नहीं रोक पाता लेकिन एक महामारी ने इस परिभाषा को बदलकर रख दिया। कुछ आगे बढ़ने पर हमने बाइक को रोक दिया। रोड ट्रिप के अपने फायदे होते हैं कि जहां मन किया रोक लिया, जब मन किया चल पड़े। रोड ट्रिप को कितने समय में करना है, ये हम पर निर्भर करता हैं। यहां पर कुछ देर रूके और फिर आगे के सफर के लिए निकल पड़े।
हल्की-हल्की ठंड अब भी लग रही थी लेकिन घूमते समय ये छोटी-छोटी मुश्किलें बुरी नहीं लगती। थोड़ी देर मे हमने घुरैया और टहरौली को पार कर लिया था। आगे चले तो एक छोटी पुलिया पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी। हमने गाड़ी रोककर देखा तो नीचे एक खाई में कार उल्टी पड़ी हुई थी। लोगों से बात करने पर पता चला कि सभी लोग सुरक्षित हैं। इस नजारे को देखकर चकराता रोड ट्रिप अचानक याद आ गई। उस रोड ट्रिप में भी रास्ते में हमें खाई में ऐसी ही कार और लोगों की भीड़ देखने को मिली थी। हम फिर से अपनी मंजिल के रास्ते पर निकल पड़े।
एक प्रदेश से दूसरे राज्य में
कुछ देर बाद हम मध्य प्रदेश की सीमा में आ गए। सेंदरी से मध्य प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश आंख-मिचौली खेलता है। कभी एमपी आता है तो कभी यूपी। अगर आप झांसी से गढ़कुण्डार आते हैं तो निवाड़ी होते हुए आएंगे जो मध्य प्रदेश में आता है। गढ़कुण्डार मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में है। कुछ साल पहले तक ये जगह टीकमगढ़ जिले में आती थी। हाल ही में निवाड़ी को मध्य प्रदेश का नया जिला बनाया है। सेंदरी से गढ़कुण्डार 5 किमी. की दूरी पर है। हमें दूर से ही किला दिखाई देने लगा। थोड़ी देर बाद हम कुड़ार गांव आ गए।
कुड़ार गांव का नाम इस किले पर ही पड़ा है। पहले गढ़कुण्डार का नाम गढ़ कुरार हुआ करता था। दूर से किला दिखाई दे रहा था लेकिन पास आए तो किला दिखाई देना बंद हो गया। यहां एक मंदिर है, विंध्यवासिनी मंदिर। हम पहले वहां गए। पहाड़ी के बिल्कुल तलहटी पर स्थित है ये मंदिर। मंदिर से किला साफ-साफ दिखाई देता है। मंदिर के ठीक बगल पर एक बहुत बड़ी झील है। झील काफी पुरानी लग रही थी क्योंकि इसके तट पुराने समय के बावड़ी जैसे बने हुए थे। पानी तक नीचे जाने के लिए सीढ़ी भी बनी हुईं थीं। मंदिर और झील को देखने के बाद हम किले को देखने के लिए निकल पड़े।
गढ़कुण्डार किला कब बना था, इस बारे में तो किसी को नहीं पता लेकिन लगभग 1500 साल पुराने इस किले पर बुंदेलों-चंदेलों का शासन हुआ करता था। इस किले का ज्यादातर हिस्सा खंगार शासनकाल में बनवाया गया था। हम इसी रहस्मयी किले को देखने के लिए निकल पड़े। रास्ते में केसर दे का चित्र दिखाई दिया। राजकुमारी केसर गढ़कुण्डार के राजा मानसिंह की बेटी थीं। केसर दे की खूबसूरती के बारे में सुनकर मोहम्मद बिन तुगलक ने शादी के लिए रिश्ता भेजा, जिसे राजा ने मना कर दिया। केसर दे को पाने के लिए तुगलक ने गढ़ कुण्डार पर आक्रमण कर दिया। जिसे देख रानी केसर ने कुए में आग जलवाकर 100 महिलाओं के साथ जौहर किया।
स्थानीय लोगों से पूछने पर हमें किले का रास्ता पता चला। रोड से अलग पहाड़ी रास्ते पर थोड़ा चले तो किला साफ-साफ दिखाई देने लगा। किला तक गाड़ी आराम से पहुंच जाती है। किले के बाहर एक ठेला लगा हुआ था। जहां पीने का पानी और खाने के लिए कुछ हल्का-फुल्का मिल रहा था। हमने वहां से पानी लिया और किले की ओर बढ़ गए। किले तक पहुंचने के लिए लगभग 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। जिसके बाद हमें किले का लगभग 20 फीट ऊंचा गेट दिखाई दिया। जिसे सिंह द्वार भी कहा जाता है। किले के अंदर जाने के लिए कोई टिकट नहीं लगता है, गाॅर्ड एक रजिस्टर में इंट्री करता है और फिर आप किले के अंदर जा सकते हैं।
बारात गायब हो गई थी इस किले में
किले के अंदर घुसते ही लगता है कि किसी भुतियाखाने में आ गए हैं। दूर-दूर तक सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता है। हालांकि किले के इस तल में कुछ रोशनदार बने हुए हैं। जहां से रोशनी आती है। कहा जाता है कि ये किला पांच मंजिला है जिसमें से तीन मंजिला खुला हुआ है और नीचे के दो मंजिला अंधेरे की वजह से बंद कर दिए गए हैं। कहा जाता है कि एक बार यहीं पास में आई बारात किले को देखने आई थी। वो किले के नीचे वाले हिस्से में चले गए, जहां से वे वापस नहीं लौट पाए। उसके बाद भी कुछ इस तरह की घटनाएं हुईं कि नीचे के दो मंजिला बंद करने पड़ा। जो एक मंजिल अंधेरे वाला है उसमें भी काफी अंधेरा है हालांकि यहां की दीवारों और खंभों पर नक्काशी बेहद सुंदर है।
भुलभुलैया की तरह बने इस किले में खोजते हुए हम दूसरे तल पर आ गए। हम अचानक से अंधेरे-से उजाले में आ गए। चारों तरफ बड़े-बड़े कमरे बने हुए थे। किला काफी बड़ा था। किले के बीच में एक जगह छोटा-सा बजरंग बली का मंदिर है और एक जगह लोगों के लिए बैठकी है। किले के हर कमरे में बड़ी-सी खिड़की है। जहां से बाहर का नजारा दिखाई देता है। बाहर चारों तरफ हरियाली और पहाड़ी ही दिखाई दे रही थी। यहां के हाॅलनुमा कमरों में नक्काशी कम ही दिखाई दे रही थी। कमरों में दीवारों की ईटें साफ-साफ दिखाई दे रही थीं।
जर्जर हो रहा किला
किला बहुत बड़ा और सुंदर है लेकिन रखरखाव न होने की वजह से किला अब जर्जर हो रहा है। हम जब वहां घूम रहे थे तो किले में हमारे अलावा घूमने वाला कोई नहीं था। कई जगह से किला टूटा हुआ था। इसके बाद एक किले के सबसे उपरी मंजिल पर गए। जहां से दूर-दूर तक जंगल, पहाड़ और हरे-भरे खेत दिखाई दे रहे थे। ठंडी-ठंडी हवा सुकून दे रही थी। हमें चलते-चलते काफी समय हो गया था, भूख लग आई थी। हम घर से खाना लाए थे वहीं किले की मुड़ेर पर बैठकर खूबसूरत नजारों के बीच हमने खाना खाया और फिर किले को घूमने के लिए निकल पड़े।
किले का उपरी हिस्सा भी काफी अच्छा है। यहां की इमारतों और भवनों में काफर हद तक नक्काशी दिखाई देती है। किले में ज्यादातर बलुई पत्थर है, जो बुंदेलखंड में बहुत पाया जाता है। ये जगह 13वीं से 16वीं शताब्दी तक बुंदेलों शासकों की राजधानी रही है। इस जगह की स्थापना खेत सिंह खंगार ने की थी हालांकि किले काफी पहले बन गया था लेकिन ज्यादातर हिस्सा खंगार शासकों ने बनवाया था। 1531 में राजा रूद्र प्रताप देव ने गढ़ कुंडार से अपनी राजधानी ओरछा कर ली।
इसके बाद हम किले के पीछे तरफ बनी बावड़ी को देखने के लिए निकल पड़े। बावड़ी तक पहुंचने का रास्ता पहली मंजिल से है। अगर अंधेरे की वजह से आपको बावड़ी का गेट नहीं मिलता है तो पीछे की तरफ से भी जा सकते हैं। हम बावड़ी पीछे की ओर से गए। बावड़ी में आज भी पानी है। प्राचीन बावड़ी किले की तरह बनी हुई है। जिसे देखकर समझ आता है कि पहले लोग हर चीज को भव्य तरीक से बनाते थे। इस बावड़ी को देखने के बाद हम किले के बाहर आ गए। आसपास कुछ देखने के लिए कुछ था नहीं तो हम वापस अपने घर की ओर लौट पड़े।
गढ़कुण्डार एक अनछुई और खूबसूरत जगह है। इस किले के बारे में शायद आपको पता न हो लेकिन अगर आप झांसी और ओरछा आए तो गढ़कुण्डार जरूर आएं। यकीन मानिए यहां सुकून और शांति आपका दिल खुश कर देगा। कई महीनों के बाद गढ़कुण्डार मेरी पहली यात्रा काफी शानदार रही। नई जगहें, नई मुस्कान और एहसास देती है। गढ़कुण्डार की यात्रा ने मुझे वैसा ही एहसास दिया है।