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Sunday, 22 March 2020

जैसलमेर 2: कभी-कभी सफर में रोमांच और चुनौती भी जरूरी है

यात्रा का पिछला भाग यहां पढ़ें।

सफर में कभी भी, कहीं भी कुछ भी हो सकता है। हर तरह की स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। जैसलमेर शहर को हमने देख लिया था। मेरे लिए ये शहर एक जादुई दुनिया की तरह था। अक्सर ऐसा होता है जब शुरूआत अच्छी होती है तो बाकी का सफर अच्छा रहता है और जब शुरूआत में खुशी मिल जाती है तो समझ जाइए चुनौती आगे हमारा इंतजार कर रही है। जैसलमेर शहर के बाहर एक चुनौती हमारा इंतजार कर रही थी। जो जैसलमेर के इस सफर को रोमांचक और यादगार बनाने वाला था।


कुछ देर बाद हम जैसलमेर शहर से बाहर निकलकर हाइवे पर थे। हम तेज हवा के झोंके के साथ आगे बढ़ रहे थे। तीनों बाइक आगे-पीछे चल रही थीं। ये पहला मौका था जब मैं किसी शहर से बाइक रेंट करके घूम रहा था। अब हमें कुलधरा गांव होते हुए सम सैंड ड्यून्स जाना था। जैसलमेर से सैंड ड्यून्स की दूरी 45 किमी. है। बीच में ही कुलधरा गांव पड़ता हैं जो जैसलेमर से 26 किमी. है। हाइवे था तो गाड़ियां स्पीड में बगल से गुजर रही थीं। हमारी तरह ही सबको कहीं न कहीं पहुंचने की जल्दी थी। सारी परेशानियों की जड़ ही जल्दबाजी है। हमारी परेशानी थी कि हम सूरज को डूबते हुए रेत पर खड़े होकर देखें।

कारवां चल पड़ा

कुलधारा की ओर।

सड़क अच्छी थी। हमारी बाइक सनसनाती हुई भागती हुई जा रही थी। हम एक-दूसरे के पास आते है और खुश हो जाते। हंसते-खिलखिलाते हुए हम भागते जा रहे थे। आसपास दूर-दूर तक कोई गांव नहीं था, सिर्फ बंजर पड़ी जमीन दिखाई दे रही थी। बीच-बीच में कुछ घर नजर आ रहे थे लेकिन कुछ घरों को हम एक गांव कहेंगे क्या? अभी तक हमें रेत नहीं दिखाई दी थी। लाल पत्थर, खाली पड़ी जमीन और बीच-बीच में कुछ पेड़ नजर आ रहे थे। कुछ देर बाद इस खाली जमीन पर हमें पवन चक्कियां दिखाई दीं, एक-दो नहीं बल्कि अनगिनत।

रेगिस्तान में पवन चक्कियां।

मैंने इससे पहले पवन चक्कियों के बारे में किताबों में पढ़ा था और फिल्मों में देखा था। आज पहली बार अपनी आंखों से देख रहा था। घूमते-घूमते बहुत कुछ नया मिलता है। इसलिए तो घूमना अच्छा लगता है कुछ नया देखने को मिलता है, बहुत कुछ सीखने को मिलता है। पवन चक्कियां धीरे-धीरे चल रहीं थीं। जब दूर थे तो ये पवन चक्कियां छोटी लग रही थीं। जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे पवन चक्कियां बहुत बड़ी दिखाई दे रही थी। जब तक पवन चक्कियां आंखों के सामने थीं, कुछ और देखने का मन ही नहीं कर रहा था। इनको देखकर जाने क्यों खुशी हो रही थी। कुछ देर के बाद पवन चक्कियां ओझल हो गईं जैसे सफर में वक्त ओझल हो जाता है। सफर में हम इतने डूबे रहते हैं कि समय पता ही नहीं चलता।

कुलधरा गांव

कुलधरा गांव के बाहर लगा एक बोर्ड।

कुछ देर बाद दाएं तरफ एक रास्ता मिला जो कुलधारा गांव की ओर जाता है।  हमारे साथी इस रास्ते पर न जाकर आगे चले गए थे। हम इसी रास्ते पर आगे जाकर रूककर उनका इंतजार करने लगे। कुछ देर के बाद जब वो आ गए तो हम कुलधरा की ओर बढ़े। कुछ ही देर बाद हमें एक बड़ा-सा पत्थर दिखाई दिया जिस पर लिखा था, कुलधरा एक पुरातात्विक स्थल।

ये दोनों 84 गांवों के वीरान होने की कहानी सुनाते हैं

यहां हमें दो भाई मिले, जो यहां आने वाले लोगों को कुलधरा की कहानी सुनाते हैं। उन्होंने ही बताया, ‘‘कुलधरा के आसपास 84 गांव थे। इन सबमें ब्राम्हण रहते थे। ब्राम्हण की एक लड़की पर दीवान सालम सिंह की बुरी नजर पड़ गई। वो उसे हर हालत में पाना चाहता था। सालम सिंह ने गांव वालों को धमकी दी कि वे पूर्णमासी तक लड़की को खुद ही विदा कर दें। अगर लड़की को नहीं सौंपा तो उसे उठा ले जाएगा। तब इज्जत बचाने के लिए सभी 84 गांव एक रात में खाली हो गए। कहा जाता है कि जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि यहां कोई नहीं बस पाएगा। इसे सबसे डरावनी जगह बताकर लोग यहां नशे करते हैं।’’

कुलधरा गांव।

उनकी कहानी सुनकर हम कुलधरा गांव की ओर बढ़ गए। आगे एक गेट मिला, जो कुलधरा का प्रवेश द्वार था। यहां जाने का भी टिकट लग रहा था। 20 रुपए खुद का टिकट था और 50 रुपए गाड़ी का। अंदर हमने अपनी गाड़ी लगाई और देखने निकल पड़े इस वीरान गांव को। हम एक घर की छत पर चढ़ गए जहां से दूर-दूर तक पसरा ये गांव दिखाई दे रहा था। गांव पूरी तरह से बिखरा हुआ था हालांकि कुछ घर बने हुए दिखाई दे रहे थे। जिनको देखकर समझ में आ रहा था कि इन घरों की मरम्मत की गई है। टूटे और इन घरों में अंतर साफ दिखाई दे रहा था। यहां एक मंदिर भी है जिसे बनाया गया है। इस जगह को देश की सबसे भूतिया और डरावनी बताया जाता है। कुलधरा गांव में काफी देर तक रहने के बाद चल दिए सम गांव की ओर।

सफर बाकी है


हम आधा रास्ता तय कर चुके थे। रास्ते में अब हमें गांव मिल रहे थे। इन गांवों को देखते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में हमें एक और किला मिला जिसको हमें देखना था लेकिन समय की कमी की वजह से आगे बढ़ गए। जैसा कि मुझे लगता है कि सफर में कुछ जगहें छूट ही जाती हैं। छूटना उस जगह पर वापस लौटने का एक मौका होता है। थोड़ी देर बाद हमें रोड के आसपास रेत दिखाई दी। कुछ देर बाद हमें ऊंट भी दिखाई दे रहे थे। अब हमें लग रहा था कि हम राजस्थान में ही हैं।

सफर ठहर गया है।

फिर से हमारे आसपास पवन चक्कियां आ गईं थीं। हम लग रहा था, हम कुछ देर बाद रेत को देख रहे होंगे। तभी कुछ ऐसा हुआ कि हम सब रोड पर बैठे हुए था। तीन गाड़ियों में एक स्कूटी को जाने क्या हुआ आगे बढ़ ही नहीं रही थी। काफी देर तक हम कोशिश करते रहे लेकिन कुछ हो नहीं रहा था। समय बीतता जा रहा था और गाड़ी सही हो नहीं रही थी। हम सभी लोग दो गाड़ियों में आ सकते थे लेकिन इस गाड़ी को नहीं छोड़ सकते थे। हमने गाड़ी वाले को फोन किया तो उसने भी इसको सम गांव तक लेने जाने की बात कही। अब समस्या थी कैसे ले जाएं?

सुनसान सड़क पर सिर्फ हम ही हम।

तभी हमें एक खेत में कुछ लोग और लोड करने वाली गाड़ी दिखाई दी। दो लोग उनसे बात करने चले गए और बाकी लोग वहीं सुनसान सड़क पर बैठ गए। हम सब परेशान थे, दूर-दूर तक कोई नहीं था। तभी इस टेंशन को दूर किया हमारे दो साथियों ने। बीच सड़क पर अब नाचा जा रहा था। सब कुछ भूल कर हम नाच रहे थे। खाली सड़क पर डांस करूंगा ऐसा अक्सर सोचता था लेकिन जब गाड़ी खराब हुई तो दिमाग में ऐसा कुछ आया नहीं। मैंने सोच लिया था अब अगर कुछ नहीं होता तो डूबते हुए सूरज को यहीं से देखा जाएगा। कम से कम इस पल को, इस नजारे को यादगार बनाया।

सफर है चलता रहेगा।

हमारे दोनों साथी वापस लौटे तो हमें बेफिक्र देखकर बिफर गए। उनमें से एक को लग रहा था कि अगर देर से पहुंचे तो जीप सफारी छूट जाएगी। हम यहां जो करने आए थे, वो नहीं कर पाएंगे। अच्छी बात ये थी कि वो लोडेड कार वाला खराब स्कूटी को कैंप तक लाने के लिए तैयार हो गया। अब हम सब दो गाड़ियों में बैठकर आगे बढ़ गए। शाम होने को थी और जीप सफारी वाले का फोन आ रहा था। हमारी दोनों गाड़ियां हवा से बातें कर रहीं थीं। सूरज धीरे-धीरे नीचे उतर रहा था। वो गोल होकर पीला हो चुका था, बस डूबने ही वाला था। थोड़ी ही देर बाद हम सभी जीप सफारी से सैंड ड्यून्स की ओर जा रहे थे। सफारी बहुत तेज भाग रही थी, इतनी तेज कि मेरी आंख में बार-बार पानी आ रहा था। दूर तलक में सूरज लाल होकर नीचे जा रहा था। थोड़ी देर में हम रेत के बीचों-बीच थे।
शाम होने को है।


रेत ही रेत

गाड़ी हमें रेत के चक्कर लगा रही थी जो बड़ा भयंकर था। रेत के कई चक्कर लगाने के बाद हम ऊंट पर बैठ गए। मैं ऊंट पर बैठना नहीं चाहता था लेकिन पैकेज में था इसलिए बैठ गया। ऊंट पर बैठे ही बैठे हमने आसमान में लालिमा को छाते हुए देखा। एक तरफ आसमान में लालिमा पसरी हुई थी तो दूसरी तरफ चांद दिखाई दे रहा था। उंट की सवारी के बाद हम कैंप में आ गए। यहां हमने राजस्थानी कार्यक्रम देखे, खाना खाकर सो गए। सुबह हम जल्दी उठ गए क्योंकि हमें उगते हुए सूरज को देखना था।

एक बगल में चांद होगा।

कैंप के सामने रोड पर रेत ही रेत थी। ये रेत उस जगह से अच्छी थी जहां हम कल गए थे। यहां हम घंटों रेत में चलते रहे, खेलते रहे। हमने यहां रेस लगाई, उपर से नीचे कूदें और सूरज के उगने का इंतजार किया। मौसम ठंडा था तो उसके आसार कम थे। अचानक से हमें सूरज दिखाई दिया। ऐसा लग रहा था कि कहीं छिपा हुआ था। थोड़ी देर बाद वापस बादल में छिप गया। वापस कैंप लौटे तो चाय पी और तैयार होने लगे वापस जाने के लिए। मुझे और तेज को शेयरिंग जीप से आना था। जिस पर हमने अपनी खराब स्कूटी भी लाद दी। बाकी लोग बाइक से निकल गए थे। थोड़ी देर बाद हम जैसलमेर के लिए निकल गए।

शहर की ओर


वापसी इससे।

हम वापस उसी रास्ते से आ रहे थे जिस रास्ते से गए थे। सुनसान रास्ते और बंजर जमीन को देखते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। अब ये रास्ते अनजान नहीं रह गए थे। ये रास्ते हम सबके अपने-अपने किस्सों और यादों में बस चुके थे। जब भी हम जैसलमेर की बात करेंगे, उसे याद करेंगे तो इन रास्तों को भी याद करेंगे। कुछ घंटों के सफर के बाद हम जैसलमेर के अपने होटल के कमरे में थे। अब हमें वापस लौटना था लेकिन लौटने से पहले हम एक जगह और जाना चाहते थे, गड़ीसर लेक।

गड़ीसर झील



जहां हम ठहरे थे वहां से गड़ीसर झील 1 किमी. की दूरी पर थी। हममें से कुछ लोग थक चुके थे सो वो होटल में आराम करने के लिए रूक गए। बाकी हम लग झील देखने के लिए पैदल चल पड़े। पैदल चलते-चलते बातें करते हुए हम गड़ीसर लेक के पास पहुंच गए। लेक से पहले एक बहुत बड़ा गेट बना हुआ है, जो बिल्कुल महल की तरह ही लगता है। उसके अंदर जाकर हम एक जगह बैठ गए। झील के आसपास काफी भीड़ थी और बहुत सारे लोग झील में बोटिंग कर रहे थे। हममें से किसी को बोटिंग करने का मन नहीं था।

पधारो म्हारे देश।

जब सिंचाई करने के लिए आज जैसी तकनीकें और मशीनें नहीं थी तब सिंचाई के लिए राजा महरावल गडसी ने इसे बनवाया था। उन्हीं के नाम पर इसका नाम पड गया गड़ीसर लेक। झील के बीचों बीच मंदिर जैसा कुछ बना हुआ है। यहां बैठकर सुकून मिल रहा था। हमारा सफर पूरा हो चुका था, अब हमें लौटना था। लौटना यात्रा का उतना ही बड़ा सच है जितना यात्रा में होना। जैसलमेर का सफर हमारे लिए खूबसूरत और कठिन दोनों ही रहा। इस शहर को एक बार में नहीं देखा जा सकता, यहां बार-बार आना चाहिए। ऐसा ही वादा मैंने इस शहर और अपने आप से किया है।