Sunday, 1 December 2019

पुष्कर: अनुभवों से भर देती हैं ऐसी यात्राएं

लोगों की भीड़ में खुद को अकेला पाना हमेशा बुरा नहीं होता। किसी जगह को पैदल नापते समय मैं अक्सर अकेला ही होता हूं। लेकिन वो अकेलापन मुझे बहुत कुछ सिखाता है। खुद से मिलना, एक जगह को अच्छे से जानना, यही सब होता है मेरे अकेले होने में। अकेले घूमने का ये मतलब नहीं है कि किसी से बात न की जाए। मुझे उन लोगों पर बहुत आश्चर्य होता है जो बस यात्रा करते हैं। यात्रा करते समय आप इतने लोगों से मिलते हैं तो उनसे बात जरूर कीजिए। ये अनुभव ही आपके सफर को बेहद खूबसूरत बनाते हैं। मैं अभी घूम रहा हूं कभी पहाड़ों में तो कभी मैदानों में। इस बार मैं निकल पड़ा था राजस्थान की खूबसूरती देखने।


राजस्थान के नाम पर मैंने पहले सिर्फ जयपुर ही देखा था। वो मेरी पहली सोलो ट्रिप थी। उसके बाद मेरा राजस्थान जाना हो ही नहीं पाया। जब मुझे पुष्कर मेला के बारे में पता चला तो मैंने जाने का प्लान बना लिया। तारीख थी 8 नंवबर 2019, जाने से कुछ घंटे पहले मैंने अपने दोस्तों को इस सफर के बारे में बताया। ताज्जुब की बात थी कि वो भी जाने को तैयार हो गए। कुछ घंटे पहले जहां हम सिर्फ दो लोग थे, अब हम 7 लोग हो चुके थे। रात के 11 बजे हम दिल्ली के इफको चौक पर बस का इंतजार कर रहे थे। हम सरकारी बस का इंतजार कर रहे थे और हमारे सामने बार-बार एसी बस आ रही थी। हमने एसी बस का रेट पूछा तो उसने बहुत ज्यादा बताया लेकिन उसने एक दूसरी स्कीम बताई। उसने हमें फर्श पर बैठने को कहा और किराया भी बहुत कम था। फिर क्या था हम तैयार हो गए? और निकल पड़े एक नए सफर पर।

सफर है! चलता रहेगा


हमारा प्लान कुछ ऐसा था कि हम जयपुर जाएंगे और कुछ घंटे जयपुर में रहेंगे। उसके बाद पुष्कर निकलेंगे। मैं बस के फर्श पर बैठे-बैठे सोच रहा था कि ये सफर कैसा होगा? बहुत वक्त के बाद इतने लोगों के साथ कहीं घूमने जा रहा था। मुझे अकेले चलते रहना बहुत पसंद है, तब आपके पास वक्त ही वक्त होता है। मगर अब सोचता हूँ दोस्तों के साथ भी सफर होने चाहिए, जिन्हें बाद में याद किया जा सके। शायद ये मेरा वही सफर होने वाला था। कुछ घंटों के बाद हम जयपुर पहुंच गए थे। जयपुर मेरे लिए जाना-पहचाना शहर था। पुरानी जगह पर दोबारा आना बहुत सुकून वाला होता है। हर जगह से आपकी पुरानी यादें जुड़ जाती हैं। मैं जयपुर को देख तो आज में रहा था लेकिन जेहन में एक साल पुराना सफर चल रहा था।


सुबह के पांच बजे थे। जयपुर में सुबह-सुबह क्या किया जाए? ये सवाल मेरे पास पिछले साल थे, लेकिन अब मेरे पास जवाब था। सुबह खूबसूरत लगती है, उसकी लालिमा से। जब सूरज को निकलते देखते हैं तो वो पल सबसे सुकून वाला होता है। उसी लालिमा को देखने के लिए हमें एक पहाड़ी पर जाना था। जो नाहरगढ़ किले के रास्ते में पड़ती है। अगर हम गाड़ी करके जाते तो बहुत समय लगता। तब मैंने एक और रास्ता बताया, जो छोटा लेकिन कठिन था। जल महल के पास से होकर जाने वाली गलियों से हम शहर के बाहर आ गए। हम जंगल जैसे एक सुनसान इलाके में थे। अब हमें यहां से एक पहाड़ की सीधी चढ़ाई करनी थी। मुश्किल ये थी कि कोई भी इसके लिए तैयार नहीं था। किसी ने भी नहीं सोचा था कि राजस्थान में उन्हें पहाड़ चढ़ना होगा।

थकान भरी चढ़ान


थोड़ी देर में हम पहाड़ चढ़ने लगे। जैसे-जैसे हम चढ़ रहे थे हमें नजारा तो खूबसूरत लग रहा था लेकिन थकान भी हो रही थी। सुबह-सुबह हमें गर्मी का एहसास हो रहा था। खिसकते पत्थरों, कांटों और जंगलों को पार करके ऐसी जगह पहुंचे। जहां से सामने जल महल दिख रहा था। इस ऊंचाई से नीचे जल महल और दूर तक आसमान दिख रहा था। हम सब थके हुए थे लेकिन ये नजारा थकान को दूर करने के लिए काफी था। हम अरावली की एक चोटी पर खड़े होकर अरावली की श्रंखला को देख रहे थे। हम काफी देर तक उस लालिमा के लिए रूके लेकिन शायद बादलों ने उसे छुपा लिया था। फिर भी हमने यहां आकर काफी कुछ पा लिया था। जो देखा वो नजारे भी बेहद खूबसूरत थे।

सुबह का नजारा।

पहाड़ों में आवाज गूंजती है और फिर वापस लौटती है। ये फिल्मों में देखा था लेकिन यहां पर हम वही कर रहे थे। हम एक-दूसरे का नाम पुकार रहे थे, जो कुछ पलों में वापस आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि पहाड़ हमारा कहा दुहरा रहा है। पहाड़ पर जितना चढ़ना कठिन है, उससे कहीं ज्यादा कठिन है उतरना। नीचे उतरने में हम पूरी तरह से खाली हो जाते हैं। हम जल्दी उतरना चाहते हैं लेकिन उतर नहीं पाते हैं। फिसलते-संभलते हुए हम नीचे उतरे और चल पड़े बस स्टैंड की ओर। हमारा जयपुर का सफर इतना ही था, अब हमें पुष्कर के लिए निकलना था। लेकिन उससे पहले हमें कुछ खाना भी था। जयपुर आओ और प्याज-कचैरी न खाओ। तो फिर थोड़ा मजा किरकिरा हो सकता है। जयपुर की फेमस दुकान रावत कचैरी वाले से हमने कचैरी ली और निकल पड़े अगले पड़ाव की ओर।

अगले पड़ाव की ओर


घूमते समय मुझे खुद से कहना नहीं पड़ता कि मैं खुश हूं। यात्राओं में आप सच में खुश होते हैं, हर कदम, हर जगह आपके चेहरे पर मुस्कान बनाए रखती है। उसी मुस्कान को लिए मैं पुष्कर की ओर जा रहा था। पुष्कर की बस में लग रहा था कि मैं राजस्थान में हूूं। कुछ बुजुर्ग दिखे, जिनकी लंबी-लंबी मूंछे और सिर पर पगड़ी थी। मुझे लगता है कि राजस्थान के गांवों में अब भी पुरानापन है, वही परिवेश और संस्कृति है। हालांकि सड़कें और सड़क किनारे के घर मुझे इस बात को झुठलाने के लिए भी कहते हैं। ये सब वैसा ही दिख रहा था जैसे हमारे तरफ की जगह हो। लोगों में राजस्थान में दिख रहा था, बस जगह में देखना बाकी था। जयपुर से पुष्कर की दूरी 150 किमी. है। पुष्कर से 15 किमी. पहले अजमेर आता है।

साथी हाथ बढ़ाना।

बस में बैठे-बैठे अजमेर में मुझे बहुत बड़ी झील दिखाई दी। वो सड़क किनारे काफी दूर तक गई थी। ये शहर भी देखने लायक है लेकिन अभी हमें सबसे पहले एक मेले को देखना था। अजमेर से पुष्कर जाते समय अचानक नजारे बदलने लगते हैं। सुंदर-सुंदर घाटियां, पहाड़ नजर आने लगते हैं। बस भी गोल-गोल घूमने लगती है। ये सब देखकर लगता है कि पुष्कर की खूबसूरती शुरू हो गई है। यात्रा एक क्षण से दूसरे क्षण तक पहुंचने की एक लंबी छलांग है। कभी-कभी वो क्षण आपको यात्रा के बीच में ही मिल जाता है और कभी-कभी अंत तक भी नहीं। इसलिए मैं ऐसी छलांगे लगाता रहता हूं उस क्षण को पाने के लिए।

आगे की यात्रा पढ़ें।

5 comments:

  1. लोक जीवन का आईना:सफर
    ऋषभ लिखते रहो ऐसे ही🌼

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  2. पुष्कर में पांच प्रमुख मंदिर हैं, अपेक्षाकृत हाल के निर्माण के बाद से पूर्व की इमारतों को 17th सदी के अंत में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा नष्ट कर दिया गया था। घाटों के रूप में जाने वाले कई स्नानागार, झील के चारों ओर और तीर्थयात्रियों ने शरीर और आत्मा दोनों की सफाई के लिए पवित्र जल में डुबकी लगाई।

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