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Sunday, 18 December 2022

स्वर्ण नगरी जैसलमेर में मेरा पहला दिन: सोनार किला, पटवों की हवेली और गड़ीसर लेक

राजस्थान गौरवशाली इतिहास और वैभवता का प्रतीक है। यहाँ का हर शहर अपनी एक अलग खासियत और खूबसूरती लिए हुए है। मैं राजस्थान की एक लंबी यात्रा पर निकल चुका था। राजस्थान की राजधानी जयपुर से शुरू हुई ये यात्रा जोधपुर से होकर बीकानेर पहुँच गई। अब मुझे राजस्थान के एक और खूबसूरत शहर की ओर निकलना था। राजस्थान की इस जगह का नाम है, जैसलमेर।

बीकानेर में दो दिन घूमने के बाद रात को मैं बीकानेर में अपने होटल से सामान उठाकर रेलवे स्टेशन की तरफ निकल पड़ा। होटल से रेलवे स्टेशन पहुँचने में सिर्फ 5 मिनट का समय लगा। बीकानेर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन अपने सही समय पर पहुँची। हमने अपनी सीट पकड़ ली और कुछ ही देर में ट्रेन चल पड़ी। रात के अंधेरे में कुछ बाहर का तो दिखना नहीं था इसलिए मैं नींद की आगोश में चला गया। सुबह के 4 बजे जब आंख खुली तो ट्रेन जैसलमेर रेलवे स्टेशन पर पहुँच चुकी थी।

जैसलमेर

मैं दूसरी बार राजस्थान के जैसलमेर की धरती पर कदम रख रहा था। मैं ट्रेन के अंदर अपना सामान समेट रहा था और लोग होटल के लिए अपना कार्ड लेकर अंदर आ रहे थे लेकिन मेरी होटल के लिए कहीं और बात हो चुकी थी। इसी तरह एक आदमी और अंदर आया और उसने भी सस्ते में कमरा दिलाने की बात कही। मैंने जब उसे बताया कि मेरी कहीं बात हो चुकी तो उसने कहा कि ठीक है, मैं वहाँ छोड़ देता हूं मेरे पास टैक्सी भी है। चलते-चलते उसने होटल का नाम और एड्रेस भी पता किया। इसके बाद मुझे बहलाने लगा कि मैं सस्ता और अच्छा होटल दूंगा। इसके अलावा वो फर्जी पैसा लगकर ठगी कर लेगा। मैंने जब मना कर दिया तो उसने कहा कि मेरी पास कोई टैक्सी नहीं है, दूसरी टैक्सी ले लो।

इसके बाद मैंने दूसरी ऑटो ली और होटल की तरफ चल पड़ा। हमारी ऑटो जैसलमेर की गलियों में चलती जा रही थी। कुछ देर में हमारी टैक्सी किले के पीछे पार्किंग में पहुँची। होटल का नाम है, डेजर्ट गोल्ड। मैंने एक सस्ता सा कमरा लिया जो रूकने के लिए बढ़िया है। अब कुछ देर मुझे आराम करना था। एक बार फिर से मैं नींद की आगोश में था। कुछ घंटे आराम करने के बाद सुबह 8 बजे उठा और फिर जैसलमेर को एक्सप्लोर करने के लिए तैयार हो गया।

सोनार किला

जैसलमेर की स्थापना राव जैसल ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम जैसलमेर रखा गया है। हम पैदल-पैदल किले की तरफ चल पड़े। किले के सामान एक ठेले पर हमने दाल-पकवान खाया। इस स्वादिष्ट दाल पकवान का स्वाद लेकर जैसलमेर की यात्रा एकदम शानदार तरीके से शुरू हो गई। जैसलमेर किले को घूमने के लिए हमने एक गाइड भी कर लिया। कुछ देर में हम किले के अंदर थे।

पिछली यात्रा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

जैसलमेर का किला दुनिया के सबसे विशालतम किलों में से एक है। 1156 में भाटी राजपूत शासक राव जैसल द्वारा बनवाया गया था। इस किले को सोने का किला भी कहा जाता है। जैसलमेर का किला एक विश्व विरासत स्थल है। सोनार किला जमीन से 250 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। ये किला 1500 फुट लंबा और 750 फीट चौड़ा है। किले के चार प्रवेश द्वार है। इस किले के अंदर 5000 से ज्यादा लोग रहते हैं। किले के अंदर लोगों के घर, दुकानें, होटल और हॉस्टल भी हैं।

जैन मंदिर

जैसलमेर किले के अंदर पहुँचने के बाद हम सबसे पहले राजा-रानी महल के पास पहुँचे लेकिन हमने पहले जैन मंदिर जाने का तय किया। किले की गलियों में कुछ देर चलने के बाद हम जैन मंदिर पहुँच गए। जैसलमेर किले के अंदर 8 जैन मंदिर है। जैन मंदिर में जाने का टिकट नहीं है लेकिन फोटो और वीडियोग्राफी का टिकट 50 रुपए है। हमने टिकट लिया और जैन मंदिर के अंदर चल पड़े। पार्श्वनाथ मंदिर के अंदर की नक्काशी बेहद शानदार है। इसी तरह हमने सभी जैन मंदिर को देखा। सभी जैन मंदिर वाकई में बेहद सुंदर और देखने लायक हैं।

जैन मंदिरों को देखने के बाद हम फिर से किले की गलियों से गुजर रहे थे। इन गलियों मे बहुत सारी दुकानें हैं जहाँ आप अपने लिए कुछ खरीद सकते हैं। कुछ देर हम राजा महल के अंदर पहुँचे। राजा-रानी महल हमने टिकट लिया। हमने टिकट काउंटर से 50 रुपए का टिकट लिया और फिर किले को देखने के लिए निकल पड़ा। किले के अंदर मैंने जैससेमर किले के अलग-अलग महलों को देखा। इसके अलावा जैसलमेर के राजाओं के बारे में जानकारी दी गई और उस समय के हथियारों को भी देखा। जैसलमेर किले को पूरा देखने में काफी समय लग गया। लगभग 2 घंटे बाद मैं किले से बाहर निकला।

पटवों की हवेली

जैसलमेर किले को देखने के बाद अब हमें पटवों की हवेली की ओर जाना था। हम पैदल-पैदल ही पटवों की हवेली पहुँच गए। पटवों की हवेली का निर्माण गुमान चंद पटवा ने किया था। पटवों की हवेली एक नहीं बल्कि पांच हवेलियों का एक समूह है। टिकट लेकर मैं कोठारी हवेली को देखने के लिए निकल पड़ा। इस समय ये हवेली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आती है। पटवों की हवेली के अंदर एक संग्रहालय है जिसमें आप समय के सामान, बर्तन, चित्रकारी और नक्काशी को देख सकते हैं।

पटवों की हवेली को देखने के बाद अब हमें कुछ और जगहों पर जाना था लेकिन सबसे पहले खाना खाना था। दाल पकवान के अलावा हमने कुछ नहीं खाया था। अब हम खाने की खोज में निकल पड़े। हम किले के पास में ही एक होटल में गए और हमने वहाँ शानदार खाना खाया। खाना खाने के बाद हम अपने कमरे में आ गए। अब हम कुछ घंटे आराम करने वाले थे। शाम को हम फिर से एक बार जैसलमेर की गलियों में थे।

गड़ीसर लेक

जैसलमेर की गलियों में चलते हुए हम रोड पर गए और फिर पहुँचे गडीसर लेक। गडीसर लेक रेगिस्तान में पानी का अथाह समुंदर है। गड़ीसर झील का निर्माण 13वीं शताब्दी में राव जैसल द्वारा करवाया गया था। इस लेक को क्षेत्र के सूखे को खत्म करने के लिए बनवाया गया था। बाद में जैसलमेर के मेहरावल गड़सी सिंह ने इस तालाब का जीर्णोद्धार करवाया। बाद में इस झील का नाम उन्हीं के नाम पर गड़ीसर लेक रखा गया।

गड़ीसर झील में आप बोटिंग कर सकते हैं। इसके अलावा शाम को सूर्यास्त के बाद जब बादल लाल हो जाता है तो ये झील और भी खूबसूरत हो जाती है। मैंने वो नजारा देखा तो लगा कि वक्त वहीं रूक जाए और ये नजारा ऐसे ही बना रहे। थोड़ी देर में एक जगह लोगों की भीड़ जमा हो गई। अंधेरा होने के बाद पहले फव्वारा चला और फिर उसी फव्वारे पर लाइट एंड साउंड शो शुरू हो गया। हम थोड़ी देर बाद एक रेस्टोरेंट में गए और वहाँ राजस्थानी थाली का स्वाद लिया। इस तरह मेरी जैसलमेर की यात्रा पूरी हुई। इस दिन जैसलमेर शहर की कई जगहों को मैंने अच्छे से देखा। अभी तो जैसलमेर के सबसे अच्छे दिन और अनुभव से गुजरना था।

Saturday, 21 March 2020

जैसलेमरः इससे खूबसूरत और प्यारा शहर दूजा नहीं

यात्रा का पिछला भाग यहां पढ़ें।

कई बार ऐसा होता है जब हम किसी जगह को देखकर बहुत खुश होते हैं। लगता है ये वास्तविक नहीं है। इसे किसी चित्रकार या कलाकार ने बनाया है। इसलिए जहां नजर फेरो सब कुछ खूबसूरत लग रहा है। जब मैं जैसलमेर की गलियों में चल रहा था तब मैं ऐसा ही कुछ अनुभव कर रहा था। मैंने इससे खूबसूरत शहर आज तक नहीं देखा था। लग रहा था कि मैं राजाओं वाले वक्त में पहुंच गया हूं। जहां हर घर भव्य और शाही होता था। जैसेलमेर की हर गली, हर घर किले और महल की तरह दिखाई देता है। शायद यही वजह है कि इसे स्वर्ण नगरी कहते हैं।


अजमेर से हम जैसलमेर बस से जा रहे थे। रात हमने बातें और आराम करते हुए निकाली। 8 घंटे के सफर के बाद हम जैसलमेर पहुंचने वाले थे। हम आपस में रूकने और जैसलमेर घूमने की बातें कर रहे थे। तभी एक जनाब हमसे बोले, आपको सस्ते में रूम चाहिए तो बताइए? काफी मोल-भाव के बाद हमने बस में ही बात पक्की कर ली। थोड़ी देर बाद हम जैसलमेर के चौराहे पर खड़े थे। इस शहर को पहली बार आंख से देख रहा था। आसपास सब कुछ पीला-पीला लग रहा था। अब तक राजस्थान के जिन शहरों में गया था वहां जगह कम और भीड़ बहुत देखी थी। इस जगह को देखकर लग रहा था कि खूब बड़ा शहर है और सुबह थी इसलिए भीड़ के बारे में पता नहीं था।

सोने-सा शहर


बस में जिससे बात हुई थी वो अपनी गाड़ी से हमें अपने होटल ले गया। हमने होटल को बाहर से देखा तो लगा कि होटल में नहीं किसी हवेली में जा रहे हैं। बाहर से जितना अच्छा लग रहा था, अंदर भी उतना ही बढ़िया था। हमने अपने कमरे लिए और तैयार होने लगे। कुछ देर बाद तैयार होकर हम होटल की छत पर थे। यहां से पहली बार मैंने जैसलमेर शहर और किला देखा। जैसलमेर किला थोड़ी ऊंचाई पर था। यहां से सब कुछ एक जैसा दिख रहा था। सभी घरों की बनावट, रंगत सब एक जैसा। होटल के मालिक ने बताया, ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां ऐसा ही पत्थर होता है। थोड़ी देर यहां रूकने के बाद हम बाइक रेंट पर लेने गए।

खूबसूरत दुनिया।

हमने तय किया था कि इस शहर को हम बाइक से देखेंगे। थोड़ी देर बाद हम ऐसी ही एक दुकान पर बैठे थे। हमने वहां से एक बाइक और दो स्कूटी ले ली। हमने एक दिन के लिए ये रेंट पर लिए। हम अगले दिन दोपहर तक यहीं वापस लानी थी। हममें से किसी के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था। हमने बाइक वाले से पूछा तो उसने बताया कि यहां चेकिंग नहीं होगी। हम बिना किसी चिंता के अब जैसलमेर की सड़कों पर थे। सबसे पहले हम पहुंचे जैसलमेर किला।

जैसलमेर किला


हम जैसलमेर किला बाइक से कुछ ही मिनटों में पहुंच गए। किले के बाहर स्ट्रीट फूड के कुछ ठेले लगे हुए थे। हमने सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। हम सबने यहां के स्ट्रीट फूड का स्वाद लिया। इसमें ऐसा कुछ नहीं था जिसे हमें राजस्थानी स्ट्रीट फूड कह सकें। अब हम जैसलमेर किले के अंदर जाने के लिए तैयार थे। जैसलमेर किले में घुसेंगे तो आप पहले अंदर लगने वाली दुकानों को देखेंगे। कुछ देर बाद हम जैसलमेर के किले के अंदर थे। इस किले को सोनार किला भी कहते हैं। ये राजस्थान का दूसरा सबसे पुराना किला है। किले के अंदर लोगों के घर हैं, दुकानें हैं। ऐसा इस किले के अलावा एक जगह और है, चित्तौड़ के किले में।

किले का प्रवेश द्वार।

इस किले को 1156 में भाटी राजा महारावल जैसल ने बनवाया था। इन्होंने ही इस शहर की स्थापना की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम जैसलमेर पड़ा। जैसेलमेर यानी कि जैसल का पहाड़ी किला। त्रिकुटा हिल पर बना ये किला 250 फीट उंचा है और इसमें 99 दुर्ग हैं। जैसलमेर किले के चार प्रवेश द्वार हैं- गणेश पोल, अक्षय पोल, सूरज पोल और हवा पोल। हम किले के अंदर राजमहल को देख रहे थे। सब कुछ खूबसूरत और भूलभुलैया की तरह लग रहा था। एक कमरे शीशे से बंद था। शीशे के उस तरफ बेड, कुर्सियां और बहुत बड़ी पोशाक थी। पोशाक इतनी बड़ी थी कि उसमें मुझ जैसे चार लोग आ जाएं। आगे एक जगह पर एक पत्थर पर पूरे किले को उकेरा गया था। उसको देखते हुए हम राजमहल के अंदर ही एक खूबसूरत गली में आ गए। ये रास्ता मुझे फिल्मों में देखे अरब देश की तरह लग रही थी। थोड़ी देर में हमने पूरा राजमहल देख लिया।

खूबसूरत तो ये गलियां हैं


अब हम किले के अंदर की गलियों में घूम रहे थे। यहां का हर घर किले की तरह लग रहा था। गलियां बेहद पतली लेकिन खूबसूरत लग रही थीं। घरों के बाहर सभी ने किसी न किसी की दुकानें लगाई हुईं थी। कपड़े, ज्वैलरी और पेंटिंग्स ये सब गलियों को खूबसूरत बना रहे थे। हम कुछ ले नहीं रहे थे लेकिन देखते जा रहे थे। कुछ देर बाद हम जैन मंदिर के बाहर खड़े थे लेकिन हम अंदर नहीं गए। हमें किले और मंदिरों से ज्यादा खूबसूरत यहां की गलियां लग रही थीं। इन गलियों में चलते रहने का मन हो रहा था, यहां गुम होने का मन था। ऐसे ही चलते-चलते हम ऐसी जगह पहुंचे। जहां रास्ता खत्म हो गया था लेकिन हमें यहां से जैसलमेर दिखाई दे रहा था।

इन गलियों में है असली जैसलमेर।

लौटते हुए हम दो ग्रुप में बंट गए। हम अब तोप देखने जा रहे थे। गलियों और घरों की नक्काशी को देखते हुए हम उस जगह पहुंचे, जहां तोप रखी हुई थी। यहां से पूरा जैसलमेर दिखाई दे रहा था। सब कुछ एक जैसा पिंक सिटी भी इतनी पिंक नहीं थी जितना ये शहर गोल्डन है, थोड़ी देर हम यहीं बैठ गए। कभी-कभी शहर बहुत जल्दी समझ नहीं आता, उसे समझने के लिए उसके साथ रहना पड़ता है, पास बैठना पड़ता है। थोड़ी देर बाद हम सब जैसलमेर किले के बाहर थे।

पधारो म्हारे देश

अंदर जाने का  परमिट।

किले से कुछ ही दूर पर हवेलियां है। जिनसे जैसलमेर का इतिहास जुड़ा हुआ है। उनमें एक हवेली है पटवा की हवेली। संकरी गलियों और लोगों से पूछते हुए हम पटवा हवेली पहुंच गए। पटवा सिल्क रूट के व्यापारी थे। उन्होंने ही इस हवेली को बनवाया था। जिसे पूरा होने में 60 साल लगे। इन हवेलियों में से एक पुरात्व सर्वेक्षण के अधीन है और बाकी में पटवा के बेटे रहते हैं। हवेली के बाहर ही एक व्यक्ति हरमोनियम से गा रहा था, ‘केसरिया बालमो, पधारो म्हारे देश’। इस फेमस लोकगीत को सुनते ही राजस्थान याद आता है और हम तो थे ही राजस्थान में।

पटवा हवेली से बाहर का नजारा।

पटवा हवेली के अंदर जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है। भारतीयों के लिए टिकट 50 रुपए का है और विदेश से आने वालों के लिए 250 रुपए। विधार्थियों के लिए टिकट पर छूट थी सिर्फ 5 रुपए। किस्मत से हम स्टूडेंट थे सो हमें बहुत फायदा हुआ। हमने टिकट लिया और पटवा हवेली को देखने लगे। पटवा हवेली तीन मंजिला है। पटवा हवेली की वास्तुकला देखने लायक है। ये बाहर से तो खूबसूरत लगती ही है, अंदर भी उतनी ही अच्छी नक्काशी है। हम इसकी छत तक गए और यहां से फिर से शहर को देखा। यहां से भी किला दिखाई दे रहा था। इन हवेलियों वाली गलियों को देखकर लग रहा था कि मैं टीवी वाले द्वारका में आ गया हूं। जिसे बचपन में मैंने महाभारत एपिसोड में देखा था। वैसे ही सुंदरता को देखकर मैं मन ही मन बहुत खुश था।

नाथमल की हवेली।

पटवा हवेली को देखकर हम नाथेमल हवेली को देखने चल दिए। पटवा हवेली से नाथेमल हवेली ज्यादा दूर नहीं है इसलिए हम पैदल ही चल दिए। रास्ते में कोई स्थानीय नेता चुनाव प्रचार कर रहा था। बैंड-बाजे के साथ जैसलमेर की गलियों में घूम रहा था। हमारे कुछ साथी पूरे मूड में थे, वे वहीं नाचने लगे। कुछ देर बाद हम नाथेमल हवेली के आगे खड़े थे। ये हवेली बाहर से बहुत खूबसूरत लग रही थी। हवेली के बाहर दोनों तरफ हाथी की मूर्ति बनी हुई है। जो इस हवेली को बाहर से और सुंदर बना रहा था। इस हवेली को 1885 में महारवल बेरिसाल ने बनवाई थी। जिसे उन्होंने अपने दीवान नाथमल को रहने के लिए दे दी थी। अभी इसमें नाथमल की सातवीं पीढ़ी रहती है। इसलिए हमें अंदर नहीं जाने दिया और हम बाहर से ही नाथमल हवेली को देखकर आगे बढ़ गए।

एक को छोड़कर हम सब।

हम बहुत देर से जैसलमेर में घूमे जा रहे थे। हमें शाम तक जैसलमेर से दूर रेत तक पहुंचना था। बीच में कुछ और जगहें भी देखनी थीं। जैसलमेर शहर में कुछ जगहें देखने के लिए रह गई थीं। इन जगहों को हमने कल के लिए छोड़ दिया। हमें शहर से निकलना था। निकलने में एक उम्मीद रहती है, कुछ ढूढ़ने की, रास्ता भटकने की। आगे का सफर हमारे लिए ऐसा ही कुछ होने वाला था। हम थोड़ा परेशान होने वाले थे, थोड़ा हताश। शायद यही तो घुमक्कड़ी है और जिंदगी भी, कभी छांव तो कभी धूप।

आगे की यात्रा यहां पढ़ें।