Showing posts with label juda ka talab to kedarkantha. Show all posts
Showing posts with label juda ka talab to kedarkantha. Show all posts

Saturday, 15 February 2020

केदारकंठा 3: मुश्किलें मिलती गईं और मैं चलता गया

सुबह-सुबह नींद खुली तो ताजगी का एहसास हो रहा था। टेंट के बाहर का नजारा देखकर मन खिल उठा। इतनी खूबसूरत सुबह कभी नहीं देखी थी। मैंने बस सोचा था कि एक दिन पहाड़ पर टेंट में रात बितााऊंगा और सुबह उठते ही बर्फ देखूंगा। मुझे नहीं पता था कि वो सोच इतने जल्दी सच हो जाएगी। अभी धूप नहीं निकली थी, बाहर अभी ठंड थी। हम वहीं बैठकर धूप का इंतजार करने लगे। हमें यहां कहीं जाने की जल्दी नहीं थी। मुझे नहीं याद मैंने कब सूरज के लिए इतना इंतजार किया था। ये पल भर का इंतजार बेहद अच्छा लग रहा था। जब धूप धीरे-धीरे बढ़ रही थी तो हम उसे साफ-साफ देख पा रहे थे। कुछ ही देर में धूप ने सब कुछ जगमग कर दिया।



कुछ ही पल में नजारा बदल गया और ये बदला हुआ दृश्य हर किसी को लुभा रहा था। ऐसा लग रहा था कि सूरज ने इन पहाड़ों को चमकीले कपड़े पहना दिए हों। हम कुछ देर धूप सेंकते रहे और इस नजारे को देखते रहे। अब हमें भी आगे के सफर के लिए निकलना था। हम सबने अपना टेंट बांधा और निकल पड़े अगले पड़ाव की ओर। हमें बताया गया था कि दूसरा बेस कैंप ज्यादा दूर नहीं है इसलिए हम आराम-आराम से चल रहे थे। शुरूआत में रास्ता सीधा था, चलने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। थोड़ी ही देर में चढ़ाई शुरू हो गई। अब तक हम जैसे रास्ते से चलकर आये थे, ये उससे कठिन था।


नए पड़ाव की ओर 


अभी हम तरोताजा थे, इसलिए चलने में कोई परेशानी नहीं आ रही थी। थोड़ी ही देर में एक टी-प्वाइंट आ गया। हमें यहां न रूकने का मन था और न ही रूकने की वजह। हममें से किसी के पास पैसा नहीं था, इसलिए कुछ लेने की तो सोच भी नहीं सकता था। इसके बावजूद हमारे चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। हमने सोच लिया था, आए हैं तो मंजिल तक पहुंच ही जाएंगे। सफेद चादर के बीच चलना और देखना अब कोई बड़ी बात नहीं रह गई थी। जब आप लगातार जिस चीज के साथ रहते हैं तो उसकी आपको आदत हो जाती है। हमें भी बर्फ में चलने की आदत हो गई थी। हमारे लिए बर्फ देखना वैसा ही था जैसे जमीन। 



कुछ देर चलने के बाद हमारी रफ्तार धीमी हो गई थी। हम बार-बार ठहरकर आगे बढ़ रहे थे। थोड़ी देर बाद हम ऐसी जगह पर आ गए, जहां चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे। यहां धूप पूरी तरह से नीचे नहीं आ पा रही थी। धूप-छांव का खेल यहां हो रहा था। हमारे साथ एक कुत्ता भी चल रहा था। हम रूकते तो वो भी रूकता, हम बढ़ते तो वो भी साथ चलता। हमारे इस सफर में एक और साथी जुड़ गया, बस कुछ देर के लिए। थोड़ी वक्त बाद वो कहीं और निकल गया। जरा-सा आगे बढ़कर पीछे देखा तो बर्फ से ढंकी चोटी हमें देखकर मुस्कुरा रही था। ऐसा लग रहा था कि वो हमारा स्वागत कर रही हो। थोड़ी देर बाद हम फिर से लोगों के शोर के बीच थे।



चारों तरफ फिर से हमें टेंट ही टेंट नजर आ रहे थे। अब हमें अपने टेंट के लिए जगह देखनी थी। चारों तरफ पैकेज वाली कंपनियां टेंट लगाए हुईं थी और जो जगह बची थी वहां टेंट लगाना मुश्किल था। यहां बर्फ ताजी थी जिस वजह से बर्फ धंस रही थी। बड़ी मशक्कत के बाद एक ऐसी जगह मिली, जहां दो टेंट लग सकते थे। वो भी कंपनी वाली जगह थी लेकिन उन्होंने हमें टेंट लगाने दिया। तीसरे टेंट के लिए हमें मेहनत करनी पड़ी। फावड़ा लेकर हमें बर्फ को निकालना पड़ा और उस जगह को सपाट बनाया। मेहनत के बाद हम कुछ देर वहीं पड़ गए।बात करते-करते शाम हो गई। आज हममें से एक का बड्डे था, हम उसके लिए केक लेकर आए थे। जब वो बर्फ के बीच केक काट रहा था, मुझे लगा कि वो इस दुनिया का सबसे खुशनसीब शख्स है। केक काटा, खाया और फिर अपने टेंट में वापस लौट आए। थोड़ी ही देर में सूरज ढलने लगा।

रात के सफर में


मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत शाम में एक और शाम जुड़ गई। अंधेरा होने के बाद एक ही काम रह जाता है बातें करना और सोना। हमें सुबह दो बजे अपनी मंजिल की ओर निकलना था। हम अपना सारा सामान छोड़कर चढ़ाई करनी थी। पहले तो वो बहुत कठिन चढ़ाई थी और दूसरी वजह सुबह हमें यहीं वापस आना था। बात करते-करते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। सोने से पहले मुझे एक ही डर सता रहा था, मेरे जूते। सबने घांघरिया में नए जूते ले लिए थे लेकिन मैंने अपने पुराने जूतों पर विश्वास बनाए रखा था।



हम सभी दो बजे उठ गए और जल्दी-जल्दी तैयार होकर सफर के लिए निकल पड़े। मैंने एक छोटा-सा बैग रख लिया, जिसमें बिस्किट, चाॅकलेट और पानी था। जब मैं चलने लगा तो मेरे एक साथी ने मुझसे ले लिया। मैंने भी ये सोचकर दे दिया कि साथ ही तो रहेगा। मैंने जैसे ही अपना पहला कदम बढ़ाया मैं फिसल गया। उसी एक कदम से मैं समझ गया कि ये मेरी जिंदगी का सबसे मुश्किल सफर होने वाला। मेरे कुछ साथी आगे निकल गए थे और दो साथी साथ थे। मुझे रास्ते पर चलने में बहुत परेशानी हो रही थी। इसलिए मैं ताजी बर्फ में चलने लगा। जहां मुझे दोगुनी मेहनत करनी पड़ रही थी। पहले बर्फ में घुसता फिर उसके बाद निकलता और फिर आगे बढ़ता। जिस वजह से मैं बहुत जल्दी थक रहा था।

मुश्किल भरा सफर


थककर जब पीछे मुड़कर देखता तो उस समय अपनी परेशानी को भूलकर बस उस नजारे में खो जाता। दूर तलक बर्फ ही बर्फ, अंधेरे में दिखते कुछ पेड़ और तारों से भरा आसमां। इस मुश्किल रात में ये खूबसूरत नजारा आगे बढ़ने के लिए हौंसले के जैसा था। मेरे साथी भी बार-बार मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत देते और जहां मैं कहता वे रूकते। मुझे इस समय किसी और पर नहीं अपने आप पर, अपने जूतों पर गुस्सा आ रहा था। थकावट की वजह से मुझे प्यास लग रही थी। हमारे पास एक बोतल पानी था और वो हम अब तक के सफर में खत्म कर चुके थे। थकावट, फिसलना, चढ़ाई इन सबसे मैं लड़ ही रहा था। अब एक और चुनौती थी, प्यासे रहकर चलते रहना।बहुत कठिन होता है इतनी सारी मुश्किलों के बीच चलते रहना। थोड़ी देर बाद हमें एक टी-प्वाइंट मिला, जहां हमने पानी के कुछ घूंट पिये। हम ज्यादा देर न रूककर आगे बढ़ने लगे। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, चढ़ाई और कठिन होती जा रही थी।



चढ़ते समय आप रूकना नहीं चाहते लेकिन थकावट के आगे किसी का बस नहीं चलता। कुछ पल यहां रूकते और बस शांति से देखते तो अंदर ही अंदर बहुत अच्छा लगता। हमने धीरे-धीरे कई टीलों को पार करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। एक बार फिर-से प्यासा गला पानी मांग रहा था और मेरा सामान किसी और के पास था। मुझे गुस्सा आ रहा था क्योंकि मुझे पानी चाहिए था? तब लग रहा था कि बैग मुझे किसी को ही देना ही नहीं चाहिए था। कुछ देर बाद हम एक पत्थर के पास पहुंचे तो कुछ आवाज सुनाई दी। पास जाकर देखा तो मेरे ही साथी थे। जब पानी पिया तो सांस में सांस आई।

चलें तो चलें कैसे!


यहां बहुत तेज हवा चल रही थी। इतनी तेज कि हम उसे न चाहते हुए भी सुन रहे थे। इतने कपड़े पहनने के बावजूद भी हम सबको ठंड जकड़ रही थी, खासकर पैरों में। ऐसा लग रहा था कि पैर जम रहे हैं। हम सब पत्थर के नीचे एक-दूसरे से सटकर बैठ गए। फिर भी कुछ फायदा नहीं हो रहा था। तब हम सबने आगे बढ़ते रहना ही सही समझा। हम फिर से कठिन चढ़ाई चढ़ रहे थे। अब चढ़ाई बिल्कुल सीधी थी और रास्ता भी समझ में नहीं आ रहा था। मैं बहुत मुश्किल से बर्फ में घुस-घुसकर आगे बढ़ रहा था। अब मुझे खूबसूरती से ज्यादा से इस चढ़ाई को पूरा करने की जल्दी थी। ज्यादातर लोग पैकेज में आए थे और ग्रुप में चल रहे थे। ग्रुप में उनका गाइड बोल रहा था, चलते रहो, सूरज निकलने वाला है’। इसी सूरज की पहली किरण को देखने के लिए हर कोई चला जा रहा था। हमें भी सूरज की किरण देखनी थी लेकिन ये भी सोच लिया था कि नहीं देख पाए तो कोई गम नहीं। बस उस चोटी तक पहुंचना जरूर है।


थोड़ी देर में हमें कुछ घास दिखाई दी। बर्फ के बीचों-बीचों घास का होना नामुमकिन-सा होता है। हमें दिखाई दी सो हम वहीं पड़ गए। हम घास पर लेटे हुए तारों से सजे आसमान को देखने लगे। खूबसूरत बर्फ भी थी, सामने खड़े पहाड़ भी थे लेकिन इस सफर का सबसे खूबसूरत पल यही था। उस पल कुछ मिनट को जीने के बाद हम फिर आगे बढ़ गए। कुछ ही देर बाद हम केदारकंठा की पीक पर थे। यहां सिर्फ हम नहीं थे लोगों का हुजूम था। हर कोई अपना कैमरा लगाकर एक चीज का इंतजार कर रहा था, सूरज के उगने का। जब सूरज उगा तो लगा कि लगा जहां जीत लिया। यहां दूर-दूर तक वादियां ही वादियां थीं। उसी वादियों के बीच कुछ गीत हमने गुनगुनाए।

आ लौट चलें


हमने यहां मन भर के पहाड़ देखे, बर्फ देखी और सुंदर-सुंदर नजारे। एक तरफ बर्फ से ढंके पहाड़ थे तो दूर तलक हरे-भरे पहाड़ भी नजर आ रहे थे। काफी समय गुजारने के बाद हम वापस लौटन लगे। हमें तीन दिन का सफर एक दिन में ही पूरा करना था। हमने अपनी मंजिल पा ली थी, अब उस एहसास को जीना था। वापस हम चलते हुए नहीं लोटते हुए आए। हम उपर से स्लोप करते हुए नीचे आने लगे। हम थोड़ी देर चलते और जहां स्लोप मिलता हम लोटने लगते। हमने कई किलोमीटर ऐसे ही पार किए। मैं ज्यादा इसलिए नहीं चल रहा था क्योंकि जब चलता तो फिसलने लगता।



हम जल्दी ही बेस कैंप पहुंच गए और जब वहां से निकलने लगे तब हमें अपने दो साथी मिल गए। जिन्हें हमने बहुत खोजा, वो हमें सफर से लौटते वक्त। इसके बाद तो सफर अच्छा ही अच्छा था। मैंने अपने एक साथी से जूते भी बदल लिए जो फिसल नहीं रहे थे। हम लौटते वक्त अपने सफर को याद कर रहे थे। चढ़ते वक्त मैं फिसल रहा था लेकिन उतरते वक्त फिसलने का जिम्मा बड्डे बाॅय ने ले लिया था। शाम तक हम घांघरिया पहुंचे, हमने वहां से देहरादून के लिए बस पकड़ी। एक सफर आपको बहुत कुछ सीखा जाता है। मुश्किलों से लड़ना और हमेशा एक बात ठाने रहना, मैं कर सकता हूं। शायद इसलिए मैं इस कठिन सफर को पूरा कर सका। यही वजह मुझे आगे भी ऐसे ही सफर पर ले जाएगी। केदारकंठा का सफर खत्म हो चुका है लेकिन सुरूर आज भी बना हुआ है।