ये यात्रा का आठवां भाग है, सातवां भाग यहां पढ़ें।
प्रयागराज वो शहर जिसमें आज बसता है। इलाहाबाद वो शहर है जिसमें हमारा इतिहास बसता है। ये शहर कभी देश के केन्द्र में आता था, जिसने कई अहम फैसले लिये। इतिहास की जगहें लोग भूला देते हैं या वो इतनी जर्जर हो जाती है। जिनको देखकर दया आती है कि हमने क्या हाल कर दिया है। लेकिन इलाहाबाद का आनंद भवन आज भी आलीशनता की विरासत है। जो एक परिवार की विरासत है उससे ज्यादा ये हमारी आजादी का साक्षी है।
अब तक मैं कुंभ के लगभग हर कोने से रूबरू हो चुका था। तब मेरे एक दोस्त ने बताया कि इस शहर में हो तो वहां की ऐतहासिक जगहों को देख लो। चन्द्रशेखर आजाद पार्क देख लिया था, वहीं पर एक किला था अकबर का किला। वहां का रास्ता नही मिल रहा था तो हमने वहीं खड़े पुलिस वाले से रास्ता पूछा। उसने रास्ता तो बता दिया और साथ में बता दिया कि कुंभ के कारण किला बंद होगा। अब हमें जाना था आनंद भवन।
आनंद भवन का नाम मैंने उस दिन से पहले एक-दो बार ही सुना था। वो भी किताबों में। बस इतना पता था कि मोतीलाल नेहरू का घर है। कुंभ से निकलकर हम आनंद भवन की ओर निकल गये। अब तक हम भीड़ के हिस्सा थे फिर एक चैराहा आया और भीड़ से अलग चलने लगे। इस रास्ते पर आटो चल रहे थे, आनंद भवन जाने वाले आटो में हम भी बैठ गये। कुछ मिनटों के बाद हम आनंद भवन के सामने खड़े थे।
आलीशान आनंद भवन
बड़े से गेट को पार करके हम टिकट खिड़की पर पहुंचे। टिकट दो भागों में मिल रहा था। 20रूपये एक मंजिला तक जाने के लिये और 70रूपये पूरा आनंद भवन देखने के लिये। मेरे साथी ने कहा, भूतल ही देख लेते हैं। मैंने कहा जब यहां तक आ ही गये हैं तो पूरा देखकर चलते हैं। टिकट लिया और अंदर चल दिये। आनंद भवन की ओर जाते हुये, सबसे पहले आपको पत्थर की शिला मिलेगी। जिस पर जवाहर लाल नेहरू के इस भवन के बारे में कुछ बातें लिखी हैं।
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वही चबूतरा जहां जवाहर लाल नेहरू की अस्थियां रखी गईं थीं। |
इस शिला को ‘प्रहरी चट्टा’ का नाम दिया गया है। इस पर लिखा है ‘यह भवन ईंट-पत्थर के ढांचे से कहीं अधिक है। इसका हमारे राष्टीय संघर्ष से अंतरंग संबंध रहा है। इसकी चाहरदीवारी में महान निर्णय लिये गये और अंदर महान घटनाएं घटीं।’ हम उस ओर चल पड़े जहां आनंद भवन था। आनंद भवन ठीक बाहर एक गोल चबूतरा बना है जिस पर तुलसी का पेड़ लगा हुआ है। उस पर लिखा हुआ है- ‘संगम में विसर्जन से पूर्व जवाहर लाल नेहरू की अस्थियां यहां रखी गईं।’ इसके बाद हम आनंद भवन को देखने लगे।
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आनंद भवन के दूसरे तल पर है महात्मा गांधी का कमरा। |
आनंद भवन दो मंजिला का आलीशान भवन है। जहां की हर चीज आज भी वैसी है जैसी आजादी के पहले थी। भवन का हर कमरा शीशे से बंद है। सबसे पहले वो कमरा दिखता है जिसमें नेहरू परिवार की बैठक होती थी। यहीं पर अतिथियों से मुलाकात होती थी और चर्चायें होती थीं। कमरे में गद्देदार कुर्सियां हैं। कमरे की दीवार पर मोतीलाल नेहरू की तस्वीर है।
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इंदिरा गांधी को लिखे नेहरू के पत्र। |
इसी भूतल पर मोतीलाल नेहरू का भी एक कमरा है और एक अध्ययन कक्ष भी है। जहां पर वे अध्ययन किया करते थे। उसके ठीक बगल में उनकी पत्नी स्वरूपरानी देवी का कमरा है। इस कमरे में एक बिस्तर है और दीवार पर एक तस्वीर है। जो शायद उनकी ही है। इस कमरे को देखने के बाद आगे बड़ते हैं तो एक बरामदा आता है जिस पर लिखा होता है- ‘यहां इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी का विवाह संपन्न हुआ था। इसके बाद हम भवन के दूसरे तल पर जाते हैं।
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यही जगह है जहां इंदिरा और फिरोज का विवाह हुआ था। |
दूसरा तल
दूसरे तल पर जो पहला कमरा पड़ता है। उसमें इंदिरा गांधी की तस्वीर लगी है औ कुर्सी लगी है। शायद ये इंदिरा गांधी का कमरा है। इसके बगल में ही जो कमरा है उसमें सफेद चादर वाला कमरा पड़ता है। जिसके जमीन पर कुछ बैठने की पालकी बिछी हुई है। इस कमरे में गांधीजी के तीन बंदर भी बैठे हुये हैं। इसके कमरे की सबसे खूबसूरत है वो तस्वीर। जिसमें गांधीजी अपने बिस्तर पर बैठे हंस रहे हैं और उनके साथ बैठी हैं छोटी-सी इंदिरा।
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विदेश दौरे पर जाने वाले जवाहर लाल नेहरू के कुछ संगी। |
आगे चलने पर वो कमरा आता है जो कई महान निर्णयों का साक्षी बना। जिस कमरे में नेहरू, गांधी, पटेल और कांग्रेसी नेता चर्चाएं करते थे। ये कमरा अब तक के देखे सभी कमरों में सबसे बड़ा है। कमरे में दीवार के एक तरफ किताबें हैं जिन्हें देखकर लगता है कि कानून की किताबें हैं। बाकी पूरे कमरे के फर्श पर गद्दीदार बिस्तर लगा हुआ है।
इसके बाद जो कमरे हैं उसमें नेहरू परिवार की कुछ अहम चीजों को सहेज कर रखा गया है।आगे वाले कमरे में जवाहर लाल नेहरू की कुछ अहम चीजें हैं। जैसे विदेश पहनकर जाने वाले कपड़े, खाने की चम्मचें, स्त्री, चरखा, इंदिरा को लिखे कुछ पत्र भी हैं और वो बहुत बड़ा कलश भी है। जिसमें जवाहर लाल नेहरू की अस्थियां रखी गईं थीं। इसके आगे चलने पर आखिरी में जवाहर लाल नेहरू का अध्ययन रूम मिलता है। जिसमें कुर्सी, टेबल और किताबें रखीं हुई हैं और दीवार पर एक तस्वीर लगी हुई है। जिसमें जवाहर लाल नेहरू कुछ लिखतें हुये दिखाई दे रहे हैं।
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जवाहर लाल नेहरू का अध्ययन कक्ष। |
आनंद भवन को देखने के बाद मुझे इतिहास की झलक तो दिखी। लेकिन मैं बस यही सोच रहा था कि ये भवन आज इतना आलीशान है तो उस जमाने में तो इसका महत्व ज्यादा होगा। भवन की हर चीज सफेद है बिल्कुल संगमरमर की भांति। चीजें पुरानी होते हुये भी कुछ भी धुंधला नहीं है हर चीज साफ है। भवन में नेहरू परिवार की झलक तो है ही। महात्मा गांधी की भी परछाई है जिसका हर एक वाक्य इस परिवार ने अपनाया।
ये यात्रा का आठवां भाग है, यात्रा का आखिरी पड़ाव यहां पढ़ें।
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