ये यात्रा का छठा भाग है। पांचवां भाग यहां पढ़ें।
रात को सोते समय मैंने सोच लिया था कि कल सुबह 4 बजे उठना है। कुंभ बार-बार नहीं आता और न ही ये शाही स्नान। मैं सबेरे-सबेरे अखाड़ों के शाही स्नान को देखना चाहता था। लेकिन जब वो सब हो रहा था तब मुझे मेरी नींद सहला रही थी। मैं नहीं उठ पाया और नहीं देख पाया वो अखाड़ों का शाही स्नान। फिर भी मुझे अभी सुंदरता के संगम में जाना था जहां से कुछ अलग दिखता है।
15 जनवरी 2019 को कुंभ का पहला शाही स्नान है। जब मेरी नींद खुली तब घड़ी में नौ बज रहे थे। उठते ही एक अफसोस हुआ मैं शाही स्नान न देख सका। मैंने अपने साथी को उठाने की कोशिश की। वो उठे लेकिन बहुत जतन करने के बाद। इन्हीं कुछ कारणों की वजह से लगता है कि अकेले घूमना ही बेहतर होता है। दूसरों को साथ ले जाने की चिंता नहीं होती।
हम कमरे से चलते-चलते सिविल लाइन के रोड पर आ गये। कुछ ही दूर चले तो सामने जो देखा उसने तो मेरे होश ही उड़ा दिये। कल जो हुजूम कुंभ क्षेत्र में था वो आज प्रयागराज की सड़कों पर दिख रहा था। सामने की भीड़ को देखकर लग रहा था कुंभ के रंग में प्रयागराज रंग रहा है। इतने भीड़ के कारण बसें और टैक्सी को बंद कर दिया गया था। कल जो ऑटो चुंगी तक जा रही थी वो आज आधे रास्ते से ही लौट आ रही थी।
भीड़ बहुत थी। भीड़ इस तरफ दो-तरफा थी एक संगम की ओर जाने वाली और एक वहां से लौटने वाली। लौटने वालों को देखकर फिर वही अफसोस होने लगता कि सबेरे न जागकर बड़ी गलती हो गई। हम ऐसे ही भीड़ देखते हुये आगे बड़े जा रहे थे। थोड़ी देर बाद एक चैक आया जहां पुलिस खड़ी थी। वो लोगों को रास्ता बता रही थी और गाड़ियों को आगे जाने से रोक रही थी। तभी एक सफेद गाड़ी आगे जाने की कोशिश करती है, पुलिस रोक देती है। गाड़ी से आवाज आती है नेताजी की गाड़ी है। पुलिस वाला भी सख्ती से बोला, कोई भी हो पैदल ही जाना पड़ेगा। गाड़ी को वहीं रोक दिया गया।
देखकर अच्छा लगा कि व्यवस्था के आड़े कोई भी आये, उसे सही तरीका बता देना चाहिये। कल संगम तक जाने के लिये हमें सिर्फ 3 किलोमीटर चलना पड़ा था, आज वो दूरी बढ़कर 5-6 किलोमीटर हो गई। कुंभ में आने वाले लोग चलते नहीं हैं, भागते हैं। शायद यही तो कुंभ है और शाही स्नान। जिस दिन हर कोई यहां आकर स्नान करना चाहता है। मैं जल्दी घाट पहुंचना चाहता था, शायद कुछ कल से अलग दिख जाये।
मेरे साथी जिनके पास अपने कैमरे थे। ये कैमरे वालों को जाने क्या हो जाता है? छोटा-सा रास्ता तय करने में बहुत वक्त लगाते हैं। थोड़ा चलते हैं, ज्यादा रूकते हैं। मुझे उनके साथ रहना अपना वक्त बर्बाद होना लग रहा था। जब वे ऐसे ही नंदी द्वार के पास रूके हुये थे, मैं उनको बिना बताये निकल आया। कुंभ में वैसे भी गुम होना बड़ा आसान है और ढ़ूढ़ना बहुत मुश्किल। ऐसे ही किसी भीड़ के साथ मैं गुम होकर आगे बड़ गया।
अकेले कहीं भी पहुंचना बड़ा आसान होता है, आप अपने हिसाब से अपने कदम तय करने लगते हैं। ऐसे ही मैं भी जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगा। रास्ता पर आज चलना थोड़ा मुश्किल हो रहा था। लोगों से चाल मिलाकर मुझे चलना पड़ रहा था। ऐसे ही आगे-पीछे होते हुये मैं अचानक से भीड़ से हटकर मैदान में आ गया। जहां से आगे भीड़ एक लंबे घाट में बंट गई थी। मैं घाट के किनारे-किनारे चलने लगा। चलते-चलते मैं उस जगह पहुंच गया, जहां दिव्य कुंभ भव्य कुंभ लिखा हुआ है।
कल का जो दृश्य था वही आज का भी दृश्य था। पूरी नदी में नावें और साइबेरियन पक्षियों का डेरा बना हुआ था। मैं वहीं खड़ा हो गया। नाव वाले आपस में लड़ रहे थे, एक-दूसरे को गरिया रहे थे। सब चाह रहे थे कि उनका नंबर पहले लगे और पर्यटकों को संगम तक ले जायें। कुछ नाविक चाहते थे कि कोई उनकी नाव बुक कर ले और नंबर लगाने की नौबत ही न आये। मैं भी ऐसी ही एक नाव में बैठ गया जो अभी-अभी नंबर पर लगी थी। संगम तक जाने के लिये 60 रूपये देने थे। मुझे लग रहा था कि ज्यादा हैं लेकिन मुझे जाना तो था ही सो मैं मान गया।
जिस संगम के बिना इस शहर में आना अधूरा रहता है। जिस संगम के बारे में कहा जाता है कि अगर आप यहां स्नान करते हैं तो आपके सारे पाप धुल जाते हैं। ऐसे ही पापों को धोने बहुत लोग आये थे। मगर मैं तो इस शहर को देखने आया, हर तरफ से चाहे वो इतिहास का पन्ना हो या वर्तमान का कोना।
ये यात्रा का छठा भाग है, आगे की यात्रा यहां पढें।
रात को सोते समय मैंने सोच लिया था कि कल सुबह 4 बजे उठना है। कुंभ बार-बार नहीं आता और न ही ये शाही स्नान। मैं सबेरे-सबेरे अखाड़ों के शाही स्नान को देखना चाहता था। लेकिन जब वो सब हो रहा था तब मुझे मेरी नींद सहला रही थी। मैं नहीं उठ पाया और नहीं देख पाया वो अखाड़ों का शाही स्नान। फिर भी मुझे अभी सुंदरता के संगम में जाना था जहां से कुछ अलग दिखता है।
15 जनवरी 2019 को कुंभ का पहला शाही स्नान है। जब मेरी नींद खुली तब घड़ी में नौ बज रहे थे। उठते ही एक अफसोस हुआ मैं शाही स्नान न देख सका। मैंने अपने साथी को उठाने की कोशिश की। वो उठे लेकिन बहुत जतन करने के बाद। इन्हीं कुछ कारणों की वजह से लगता है कि अकेले घूमना ही बेहतर होता है। दूसरों को साथ ले जाने की चिंता नहीं होती।
शाही स्नान की आस्था
हम कमरे से चलते-चलते सिविल लाइन के रोड पर आ गये। कुछ ही दूर चले तो सामने जो देखा उसने तो मेरे होश ही उड़ा दिये। कल जो हुजूम कुंभ क्षेत्र में था वो आज प्रयागराज की सड़कों पर दिख रहा था। सामने की भीड़ को देखकर लग रहा था कुंभ के रंग में प्रयागराज रंग रहा है। इतने भीड़ के कारण बसें और टैक्सी को बंद कर दिया गया था। कल जो ऑटो चुंगी तक जा रही थी वो आज आधे रास्ते से ही लौट आ रही थी।
भीड़ बहुत थी। भीड़ इस तरफ दो-तरफा थी एक संगम की ओर जाने वाली और एक वहां से लौटने वाली। लौटने वालों को देखकर फिर वही अफसोस होने लगता कि सबेरे न जागकर बड़ी गलती हो गई। हम ऐसे ही भीड़ देखते हुये आगे बड़े जा रहे थे। थोड़ी देर बाद एक चैक आया जहां पुलिस खड़ी थी। वो लोगों को रास्ता बता रही थी और गाड़ियों को आगे जाने से रोक रही थी। तभी एक सफेद गाड़ी आगे जाने की कोशिश करती है, पुलिस रोक देती है। गाड़ी से आवाज आती है नेताजी की गाड़ी है। पुलिस वाला भी सख्ती से बोला, कोई भी हो पैदल ही जाना पड़ेगा। गाड़ी को वहीं रोक दिया गया।
संगम की ओर जाते लोग। |
एकला चलो रे
मेरे साथी जिनके पास अपने कैमरे थे। ये कैमरे वालों को जाने क्या हो जाता है? छोटा-सा रास्ता तय करने में बहुत वक्त लगाते हैं। थोड़ा चलते हैं, ज्यादा रूकते हैं। मुझे उनके साथ रहना अपना वक्त बर्बाद होना लग रहा था। जब वे ऐसे ही नंदी द्वार के पास रूके हुये थे, मैं उनको बिना बताये निकल आया। कुंभ में वैसे भी गुम होना बड़ा आसान है और ढ़ूढ़ना बहुत मुश्किल। ऐसे ही किसी भीड़ के साथ मैं गुम होकर आगे बड़ गया।
संगम में आते-जाते लोग। |
कल का जो दृश्य था वही आज का भी दृश्य था। पूरी नदी में नावें और साइबेरियन पक्षियों का डेरा बना हुआ था। मैं वहीं खड़ा हो गया। नाव वाले आपस में लड़ रहे थे, एक-दूसरे को गरिया रहे थे। सब चाह रहे थे कि उनका नंबर पहले लगे और पर्यटकों को संगम तक ले जायें। कुछ नाविक चाहते थे कि कोई उनकी नाव बुक कर ले और नंबर लगाने की नौबत ही न आये। मैं भी ऐसी ही एक नाव में बैठ गया जो अभी-अभी नंबर पर लगी थी। संगम तक जाने के लिये 60 रूपये देने थे। मुझे लग रहा था कि ज्यादा हैं लेकिन मुझे जाना तो था ही सो मैं मान गया।
घाट में अपने नंबर का इंतजार करती नावें। |
ये यात्रा का छठा भाग है, आगे की यात्रा यहां पढें।
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