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Thursday, 7 February 2019

प्रयागराज 9: स्वराज भवन में वैभवता से ज्यादा इंदिरा गांधी की बपैती दिखती है

ये यात्रा का आखिरी भाग है, पिछली यात्राओं के बारे में यहां पढ़ें।

इतिहास की एक मुख्य कड़ी को मैं अब तक देख चुका था। मैं तो यही सोच रहा था। आंनद भवन के जिस कोने में खड़ा था वहां से नीचे देखा तो लोग सामने के रास्ते पर जा रहे थे। नीचे उतरकर पता किया तो वो स्वराज भवन था। वो स्वराज भवन जो कभी नेहरू परिवार का घर हुआ करता था। बाद में कांग्रेस का मुख्यालय बन गया और आज वो संग्रहालय है। जहां सिर्फ इंदिरा हैं तस्वीरों में भी और किस्सो में भी।


इतिहास के पन्ने से


जिस आनंद भवन को हम देख चुके थे। उसकी एक कहानी है। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने शेख फय्याज अली से खुश होकर ये जमीन दे दी। जिसके बाद कई लोगों के पास ये आती-जाती रही और ये भवन भी एक मंजिला का बन गया था। साल 1899 में इसे मोतीलाल नेहरू ने इसे 20000 रूपये में खरीद लिया। इसके बाद 1927 में अपने भवन को कांग्र्रेस को दे दिया। जिसका नाम आनंद भवन था और फिर उसका नाम स्वराज भवन रख दिया।

तब नेहरू परिवार इस भवन में आया और इसका नाम रख दिया गया आनंद भवन। पहले ये भवन में एक ही तल का था, बाद में इसका दूसरा तल बनवाया गया। आनंद भवन में कई ऐतहासिक निर्णय लिये गये। यहीं पर मोतीलाल नेहरू ने अपना संविधान लिखा था। यहीं पर भारत छोड़ो आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई थी। ऐसे ही कई महान और ऐतहासिक निर्णयों का साक्षी रहा है ये भवन।

आनंद भवन से स्वराज भवन की ओर जाता रास्ता।
आजादी के बाद ये भवन कई सालों तक ये नेहरू परिवार के संरक्षण में रहा। बाद में 1970 में इंदिरा गांधी ने इसे भारत सरकार के संरक्षण में कर दिया। कुछ सालों बाद लोगों के लिये भी खोल दिया। ये फोटोग्राफी करना मना है और जगह-जगह पर सुरक्षा के लिये सुरक्षा गार्ड भी तैनात हैं। कुछ सालों तक यहां आने के लिये कोई टिकट नहीं है लेकिन अब आनंद भवन को देखने के लिये टिकट देना पड़ता है। अगर आप 70 रूपये देते हैं तभी स्वराज भवन देख सकते हैं।

स्वराज भवन


आनंद भवन के ठीक बगल पर स्वराज भवन है। जहां जाने का रास्ता आनंद भवन से गया हुआ है। स्वराज भवन एक प्रकार से इंदिरा भवन है। रास्ते में ही कुछ तख्तियां मिल जाती हैं जिस पर इंदिरा गांधी की तस्वीर लगी हुई है। हम आगे बड़ जाते हैं। मैं गार्ड को देखकर टिकट ढ़ूढ़ने लगता हूं। गार्ड हंसकर कहता है, हम समझ जाते हैं कौन गड़बड़ है? आप जाइये, मैं भी मुस्कुराकर धन्यवाद कहकर आगे बड़ जाता हूं।

तस्वीरों में इंदिरा गांधी।
आनंद भवन की तरह ही ये भवन भी काफी बड़ा दिख रहा है। बाहर एक बोर्ड लगा हुआ है- ‘इंदिरा गांधी की जन्म स्थली- स्वराज भवन’। इंदिरा गांधी का जन्म इसी भवन में हुआ था और उनका बचपन इसी भवन में बीता। मैं वहीं सीढ़ियों पर चढ़ने लगता हूं। पीछे से आवाजा आती है वो अंदर जाने का रास्ता नहीं है। आवाज उसी गार्ड की थी जिसने हमारा टिकट देखे बिना ही अंदर आने दिया था।

स्वराज भवन इंदिरा गांधी की तस्वीरों का संग्रहालय है,स्वराज भवन।
मैं नीचे उतरा और दाईं तरफ बढ़ गया। जहां से रास्ता था। अंदर घुसते ही तस्वीरों के बीच में आ जाता हूं। तस्वीर एक ही शख्स की, इंदिरा गांधी की। हर कमरे में गार्ड हैं। जो देख रहे हैं कि कोई तस्वीर न ले पायें। मैं तस्वीरों को देखने लगता हूं। तस्वीरों में इंदिरा गांधी अभी छोटी हैं। फिर तस्वीर इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के विवाह की दिखती है। मैं उस तस्वीर से ज्यादा उस चबूतरे को ध्यान से देखता हूं जिसे मैंने अभी कुछ ही देर पहले देखा है।

इंदिरा, राजीव और संजय।
उसके बाद कुछ तस्वीरें फिरोज और इंदिरा की होती हैं। एक तस्वीर है जिसमें इंदिरा गांधी हैं। जिसके बारे में लिखा है इसे फिरोज गांधी ने खींची है। इसी तरह की तस्वीर फिरोज गांधी की है। उस कमरे की तस्वीर देखने के बाद दूसरे कमरे में आ जाता हूं। इसमें इंदिरा गांधी की बहुत बड़ी तस्वीर है। इंदिरा गांधी इस तस्वीर में मुस्कुरा रही हैं। इस कमरे की सबसे बड़ी तस्वीर यही है, मैं फोटो खींचना चाहता हूं लेकिन गाॅर्ड खड़ा है। मैं आगे वाले कमरे में आ जाता हूं।

ये चुपके से खींची गई फोटो हैं।
इस कमरे में कोई गार्ड नहीं है। यहां से मैं वो तस्वीर खींचता हूं। उसके बाद इंदिरा गांधी की सभी तस्वीरें राजनैतिक हैं। कुछ तस्वीरें अपने बेटों राजीव और संजय के साथ हैं। तो कुछ में वे विदेश दौरे में हैं। कहीं वे मुस्कुरा रही हैं, कहीं अभिवादन कर रही हैं। इन्हीं बहुत सारी तस्वीरों को देखकर मैं आगे बढ़ जाता हूं। ये बाहर जाने का रास्ता है। लेकिन ये भवन इतना ही नहीं है। भवन और भी बड़ा है लेकिन लोगों के लिये वो खोला नहीं गया है। इस भवन में मुझे सबसे अच्छी लगी ये जगह। जहां से पूरा भवन दिख रहा है, भवन के बीच में खुला बरामदा है। बरामदे के बीच में एक फव्वारा लगा हुआ है। मैं कुछ पल वहां रूका और वहां से निकल आया।

स्वराज भवन की सबसे बेहतरीन जगह।
मैंने इन दो दिनों में इस शहर की दो धारायें देखी थी। एक संगम की धारा। जहां गंगा और यमुना हमें एकता में मिलने का संदेश दे रही है। वहीं ये भवन, जिसने कई सालों तक हमारे देश का संचालन किया। मुझे इंदिरा गांधी की वो बात याद आ रही है जिसे मैंने बचपन मे पढ़ा था कि जब तक मेरे खून का एक-एक कतरा रहेगा। मैं इस देश की सेवा करती रहूंगी। वो गांधी परिवार आज भी है, बस चेहरा और पीढ़ी बदल गये हैं। मैं शहर को काफी हद तक देख चुका था, कुछ था जो अभी बाकी रह गया था। वैसे इतने कम समय में मैं हर चीज को तो नहीं देख सकता लेकिज जो देखा जी भर देखा। अब चलने का वक्त हो गया था, एक नये सफर पर।

शुरू से यात्रा यहां पढ़ें।

प्रयागराज 8: आनंद भवन जहां सिर्फ आलीशानता नहीं हमारा इतिहास बसता है

ये यात्रा का आठवां भाग है, सातवां भाग यहां पढ़ें।

प्रयागराज वो शहर जिसमें आज बसता है। इलाहाबाद वो शहर है जिसमें हमारा इतिहास बसता है। ये शहर कभी देश के केन्द्र में आता था, जिसने कई अहम फैसले लिये। इतिहास की जगहें लोग भूला देते हैं या वो इतनी जर्जर हो जाती है। जिनको देखकर दया आती है कि हमने क्या हाल कर दिया है। लेकिन इलाहाबाद का आनंद भवन आज भी आलीशनता की विरासत है। जो एक परिवार की विरासत है उससे ज्यादा ये हमारी आजादी का साक्षी है।

प्रहरी चट्टान

अब तक मैं कुंभ के लगभग हर कोने से रूबरू हो चुका था। तब मेरे एक दोस्त ने बताया कि इस शहर में हो तो वहां की ऐतहासिक जगहों को देख लो। चन्द्रशेखर आजाद पार्क देख लिया था, वहीं पर एक किला था अकबर का किला। वहां का रास्ता नही मिल रहा था तो हमने वहीं खड़े पुलिस वाले से रास्ता पूछा। उसने रास्ता तो बता दिया और साथ में बता दिया कि कुंभ के कारण किला बंद होगा। अब हमें जाना था आनंद भवन।

आनंद भवन का नाम मैंने उस दिन से पहले एक-दो बार ही सुना था। वो भी किताबों में। बस इतना पता था कि मोतीलाल नेहरू का घर है। कुंभ से निकलकर हम आनंद भवन की ओर निकल गये। अब तक हम भीड़ के हिस्सा थे फिर एक चैराहा आया और भीड़ से अलग चलने लगे। इस रास्ते पर आटो चल रहे थे, आनंद भवन जाने वाले आटो में हम भी बैठ गये। कुछ मिनटों के बाद हम आनंद भवन के सामने खड़े थे।

आलीशान आनंद भवन


बड़े से गेट को पार करके हम टिकट खिड़की पर पहुंचे। टिकट दो भागों में मिल रहा था। 20रूपये एक मंजिला तक जाने के लिये और 70रूपये पूरा आनंद भवन देखने के लिये। मेरे साथी ने कहा, भूतल ही देख लेते हैं। मैंने कहा जब यहां तक आ ही गये हैं तो पूरा देखकर चलते हैं। टिकट लिया और अंदर चल दिये। आनंद भवन की ओर जाते हुये, सबसे पहले आपको पत्थर की शिला मिलेगी। जिस पर जवाहर लाल नेहरू के इस भवन के बारे में कुछ बातें लिखी हैं।

वही चबूतरा जहां जवाहर लाल नेहरू की अस्थियां रखी गईं थीं।
इस शिला को ‘प्रहरी चट्टा’ का नाम दिया गया है। इस पर लिखा है ‘यह भवन ईंट-पत्थर के ढांचे से कहीं अधिक है। इसका हमारे राष्टीय संघर्ष से अंतरंग संबंध रहा है। इसकी चाहरदीवारी में महान निर्णय लिये गये और अंदर महान घटनाएं घटीं।’ हम उस ओर चल पड़े जहां आनंद भवन था। आनंद भवन ठीक बाहर एक गोल चबूतरा बना है जिस पर तुलसी का पेड़ लगा हुआ है। उस पर लिखा हुआ है- ‘संगम में विसर्जन से पूर्व जवाहर लाल नेहरू की अस्थियां यहां रखी गईं।’ इसके बाद हम आनंद भवन को देखने लगे।

आनंद भवन के दूसरे तल पर है महात्मा गांधी का कमरा।

आनंद भवन दो मंजिला का आलीशान भवन है। जहां की हर चीज आज भी वैसी है जैसी आजादी के पहले थी। भवन का हर कमरा शीशे से बंद है। सबसे पहले वो कमरा दिखता है जिसमें नेहरू परिवार की बैठक होती थी। यहीं पर अतिथियों से मुलाकात होती थी और चर्चायें होती थीं। कमरे में गद्देदार कुर्सियां हैं। कमरे की दीवार पर मोतीलाल नेहरू की तस्वीर है।

इंदिरा गांधी को लिखे नेहरू के पत्र।
इसी भूतल पर मोतीलाल नेहरू का भी एक कमरा है और एक अध्ययन कक्ष भी है। जहां पर वे अध्ययन किया करते थे। उसके ठीक बगल में उनकी पत्नी स्वरूपरानी देवी का कमरा है। इस कमरे में एक बिस्तर है और दीवार पर एक तस्वीर है। जो शायद उनकी ही है। इस कमरे को देखने के बाद आगे बड़ते हैं तो एक बरामदा आता है जिस पर लिखा होता है- ‘यहां इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी का विवाह संपन्न हुआ था। इसके बाद हम भवन के दूसरे तल पर जाते हैं।

यही जगह है जहां इंदिरा और फिरोज का विवाह हुआ था।

दूसरा तल


दूसरे तल पर जो पहला कमरा पड़ता है। उसमें इंदिरा गांधी की तस्वीर लगी है औ कुर्सी लगी है। शायद ये इंदिरा गांधी का कमरा है। इसके बगल में ही जो कमरा है उसमें सफेद चादर वाला कमरा पड़ता है। जिसके जमीन पर कुछ बैठने की पालकी बिछी हुई है। इस कमरे में गांधीजी के तीन बंदर भी बैठे हुये हैं। इसके कमरे की सबसे खूबसूरत है वो तस्वीर। जिसमें गांधीजी अपने बिस्तर पर बैठे हंस रहे हैं और उनके साथ बैठी हैं छोटी-सी इंदिरा।

विदेश दौरे पर जाने वाले जवाहर लाल नेहरू के कुछ संगी।

आगे चलने पर वो कमरा आता है जो कई महान निर्णयों का साक्षी बना। जिस कमरे में नेहरू, गांधी, पटेल और कांग्रेसी नेता चर्चाएं करते थे। ये कमरा अब तक के देखे सभी कमरों में सबसे बड़ा है। कमरे में दीवार के एक तरफ किताबें हैं जिन्हें देखकर लगता है कि कानून की किताबें हैं। बाकी पूरे कमरे के फर्श पर गद्दीदार बिस्तर लगा हुआ है।


इसके बाद जो कमरे हैं उसमें नेहरू परिवार की कुछ अहम चीजों को सहेज कर रखा गया है।आगे वाले कमरे में जवाहर लाल नेहरू की कुछ अहम चीजें हैं। जैसे विदेश पहनकर जाने वाले कपड़े, खाने की चम्मचें, स्त्री, चरखा, इंदिरा को लिखे कुछ पत्र भी हैं और वो बहुत बड़ा कलश भी है। जिसमें जवाहर लाल नेहरू की अस्थियां रखी गईं थीं। इसके आगे चलने पर आखिरी में जवाहर लाल नेहरू का अध्ययन रूम मिलता है। जिसमें कुर्सी, टेबल और किताबें रखीं हुई हैं और दीवार पर एक तस्वीर लगी हुई है। जिसमें जवाहर लाल नेहरू कुछ लिखतें हुये दिखाई दे रहे हैं।

जवाहर लाल नेहरू का अध्ययन कक्ष।
आनंद भवन को देखने के बाद मुझे इतिहास की झलक तो दिखी। लेकिन मैं बस यही सोच रहा था कि ये भवन आज इतना आलीशान है तो उस जमाने में तो इसका महत्व ज्यादा होगा। भवन की हर चीज सफेद है बिल्कुल संगमरमर की भांति। चीजें पुरानी होते हुये भी कुछ भी धुंधला नहीं है हर चीज साफ है। भवन में नेहरू परिवार की झलक तो है ही। महात्मा गांधी की भी परछाई है जिसका हर एक वाक्य इस परिवार ने अपनाया।

ये यात्रा का आठवां भाग है, यात्रा का आखिरी पड़ाव यहां पढ़ें।