Monday 17 December 2018

ओरछा 3: वो जगह जहां ‘चन्द्रशेखर आजाद’ अपने अज्ञातवास में रहे थे

ओरछा बुंदेलखंड का ऐतहासिक इतिहास है। जो आज भी अपने को समेटे हुए दिखाई पड़ता है। किला और महल बड़ा पर्यटन केन्द्र बन गया है तो कुछ किलों को व्यवस्थता की मार ने चौपट कर दिया है। ये नगर इतिहास से भरी पड़ी है। पहले बुंदेलों का गढ़, रामराजा सरकार का गढ़ और फिर गवाह बना आजाद का गढ़।


गढ़ ओरछा


हम अब तक ओरछा का बहुत भाग देख चुके थे। कुछ महल और बुंदेली इतिहास को आज भी बयां कर रहा है। वहीं कुछ के सिर्फ अवशेष बचे हैं। कुछ जगह को हमने छोड़ दिया अगली बार के लिए। ओरछा की मंदिर वाली भीड़ को पार करके हम मुख्य रास्ते पर चलने लगे। ये रास्ता ओरछा तिगैला की ओर जाता है जहां से हमें अपने घर जाना था। समय हमारे पास काफी था इसलिए हमने पैदल ही रास्ता नापना तय किया।

ओरछा वो जगह नहीं है जहां बड़ी-बड़ी दुकानें हों, माॅल हो और आधुनिकता का पूरा रंग हो। ओरछा एक छोटा-सा नगर है जो बस अपने इतिहास के कारण प्रसिद्ध है। यहां दुकानों के नाम पर मिठाई की दुकान, ढाबारूपी होटल मिल जाएंगे। बड़ी इमारत के नाम पर होटल ही हैं जहां पर्यटक ठहरते हैं। बाकी तो कच्चे-पक्के घर हैं और दिखेगा ग्रामीण परिवेश। सड़क पर गाय-भैंस का जमावड़ा मिल जायेगा। जो आपके सफर को खूबसूरत कर देगा। इसी खूबसूरती को देखते-देखते आगे बढ़ रहे थे।

ओरछा गेट।

हमें पैदल चलना जितना-आसान लग रहा था उतना आसान हो नहीं रहा था। गर्मी हम पर हावी हो रही थी। बार-बार हमें पानी का सहारा लेना पड़ रहा था और पेड़ की छांव में सुस्ता रहे थे। पहाड़ों पर चलते वक्त इतनी थकान नहीं होती थी जितनी सीधे रास्ते पर हो रही थी। आस-पास खेत और जंगल ही दिखाई पड़ रहे थे। ओरछा आते वक्त मुझे पता चला था कि यहां आस-पास कोई ‘आजाद पार्क’ है। मुझे वो देखना नहीं था क्योंकि पार्क तो हर शहर, गांव में सरकार बनवा ही देती है। लेकिन मुझे उसका इतिहास मालूम नहीं था अगर मालूम होता तो सबसे पहले वहीं जाता।

आजाद पार्क


हमने रास्ते में कुछ लोगों से उस पार्क के बारे में पूछा तो वे सोच में पड़ गये। सब लोगों को एक ही जवाब था यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। मैंने भी मान लिया कि ये लोग सही कह रहे हैं। हम ओरछा तिगैला की ओर चल दिए। हम कुछ ही दूर चले थे कि मुझे एक बड़ी सी मूर्ति दिखाई पड़ी। मूर्ति चन्द्रशेखर आजाद की थी और पार्क का नाम था आजाद पार्क। ये पार्क सातार गांव में पड़ता है। पार्क के अंदर जाते ही एक बोर्ड लगा हुआ था। बोर्ड पर इस जगह की महत्वता लिखी पड़ी थी। उसमें लिखा था कि चन्द्रशेखर आजाद 1928 में इस जगह पर भेष बदलकर रहे थे।

इस जगह के बारे में।

आजाद यहां एक कुटिया में रहते थे जो आज भी है। उस कुटिया में आज उनकी फोटो लगी हुई है।
पार्क के पीछे तरफ चलते हैं तो हनुमान मंदिर मिलता है। उसके पास में छोटा-सा कुआ बना हुआ है। जिसे चन्द्रशेखर आजाद ने खोदा था जो आज भी पानी दे रहा है। यहां आजाद लगभग डेढ़ साल रहे थे। वे यहां के जंगलों में गुरिल्ला अभ्यास करते थे और अंग्रेजों से लड़ने की रणनीति बनाते थे। पार्क के आगे की तरफ उनकी बलिष्ठता की प्रतीक में उनकी मूर्ति बनी हुई है। जिसका अनावरण 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था।

चन्द्रशेखर आजाद के द्वारा बनाया कुआं।

पार्क में बड़ी शांति है, कुछ चिड़िया चहचहां रही है, पार्क के बगल से ही बेतवा नदी का रास्ता बना हुआ है। यहां सब कुछ अच्छा है सिवाय यहां की जानकारी के। लोग ओरछा घूमने आते हैं लेकिन इस जगह पर नहीं आते हैं क्योंकि उन्हें इस जगह के बारे में पता ही नहीं रहता। कमी सरकार की तो है ही कुछ यहां रहने वाले लोगों की है। जब यहां के लोगों को इस जगह के बारे में पता नहीं है तो पर्यटकों की बात ही छोड़ दीजिए। जो लोग ओरछा घूमने आते हैं उन्हें इस ऐतहासिक जगह पर भी आना चाहिए। हमारा इतिहास है, हमें नहीं भूलना चाहिए।

यात्रा का पिछला भाग यहां पढ़ें।

1 comment:

  1. कुछ सुधार चाहूंगा ।
    1 आजाद पार्क सातार गांव में नही बल्कि आजादपुरा (पुराना नाम ढिमरपुरा ) में है ।
    2 चंद्रशेखर आजाद यहां 1928 में नही 1924 में आये थे । बोर्ड की फ़ोटो में भी आप पढ़ सकते हैं ।
    3 पार्क के बगल से सातार नदी निकली है, न कि बेतवा नदी के लिए रास्ता गया है ।

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