जब भी पहाड़ों में सुंदरता खोजने की बात आती है तो हमें उत्तराखंड और हिमाचल ही याद आता है। मैं भी यही सोचकर उत्तराखंड के पहाड़ों में कई बार घूमा हूं। उत्तराखंड और हिमचाल की सुंदरता को टक्कर देने का काम कर रहा अबूझमाड़ जंगल। अबूझमाड़ छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में फैला हुआ है। अबूझमाड़ का जंगल पहाड़ों से घिरा हुआ जंगल है जो दिन में तो हरा-भरा दिखता है और शाम में काला और रोशनदार। जिसमें सफेद बादल चार चांद लगा देते हैं।
22 सितंबर 2018 को मैं अपने कुछ साथियों के साथ उसी अबूझमाड़ से घिरे रास्ते से जा रहे थे। हम जैसी ही अपनी गाड़ी से ओरछा की ओर चले तो बारिश ने हमारा स्वागत किया। मैं सोचता था कि छत्तीसगढ़ गर्म क्षेत्र होगा जो गर्मी से हमें झुलसा देगा। लेकिन यहां आकर ऐसा मौसम देखा तो दिल खुश हो गया। आसपास घास की तरह धान खेतों में दिख रही थी जो बड़ी सुंदर लग रही थी और उसी धान से दूर तलक दिख रही थीं अबूझमाड़ की पहाड़ियां। अबूझमाड़ की पहाड़ी में सुंदरता का रस है जो इस क्षेत्र को सुंदरता से भरा रहता है।
कुछ देर बाद हम उस सुहानेपन से निकलकर एक गांव में आ गये। यहां रोड किनारे कुछ घर दिखे। हम सभी वहीं उतर गये और लोगों से बात करने लगे। यहां के गांव में कम ही घर थे और सभी घर दूर-दूर थे। अधिकतर लोग धान की खेती करते थे। मैं अक्सर यही सोचता था कि कितने खुशनसीब हैं कि इतने अच्छे क्षेत्र में रहते हैं। शायद ये भी हमारे बारे में यही सोचते होंगे कि यहां ऐसा क्या है? जो यहां ये लोग आते हैं। कहते हैं न कि कोई भी अच्छी जगह घूमते वक्त ही अच्छी लगती है, वहां रहो तब पता चलता है कि हर अच्छी जगह भी दिक्कतों से भरी है।
जो उत्तराखंड गये हों उन्हें वहां की सड़कें अच्छी तरह से याद होंगी। जो बहुत छोटी रहती हैं और चक्कर खाते हुये गाड़ी आगे बढ़ती जाती है। बिल्कुल वही फील मुझे थोड़ा आगे बढ़ने पर हुआ। मौसम में अभी भी नमी थी रास्ते के किनारे-किनारे कोई नदी बह रही थी। उसका नाम पता नहीं, शायद इन्द्रावती ही होगी जो पूरे बस्तर में फैली हुई है। उस रास्ते पर हम सब एक अच्छा सुहाना सफर देख रहे थे। गाड़ी में बैठे कुछ साथी बता रहे थे कि बिल्कुल ऐसा ही धर्मशाला में है।
उस गोलचक्कर को पार करने के बाद हम सादा रास्ते पर आ गये। यहां भी सुंदरता का अबूझमाड़ फैला हुआ था। जो हम सब को मोहित कर रहा था। ऐसे में इस सुंदरता के साथ फोटो तो होनी ही चाहिये थी। उसी सुंदरता को हमने अपने मोबाइल में अपने साथियों के साथ बटोर लिया किसी ने इमली के साथ तो किसी ने हल्दी के पौधे के साथ। हमारा अधिकतर समय गाड़ी में ही गुजरता था और वहीं से इस अबूझमाड़ की सुंदरता को निहारते थे।
रास्ते में कई झीलें, नहरें मिलीं जो साफ बता रही थी कि इस इलाके में पानी की कमी तो नहीं है। पीने वाले पानी की कमी हो सकती है क्योंकि सभी नहरें और झीलें मटमैली थी जिसमें मछुआरे मछली पकड़ रहे थे।
रोड पर गाड़ी सनसनाती दौड़ रही थी। आसपास बहुत से पेड़ हमसे होकर गुजर रहे थे। उन पेड़ों के झुरमुट से सामने दिखता पहाड़ बेहद सुंदर लग रहा था। मैं चाहकर भी उस दृश्य को सहेज नहीं सकता था क्योंकि गाड़ी में मैं सबसे पीछे बैठा था। जहां से बाहर देखा तो जा सकता था लेकिन फोटो नहीं खींची जा सकती थी। फिर भी मैं खुश था कि कम से कम इस दृश्य को देख तो पा रहा था। अबूझमाड़ की सुंदरता देखकर हम बस एक ही बात बोल रहे थे ‘अरी दादा’।
22 सितंबर 2018 को मैं अपने कुछ साथियों के साथ उसी अबूझमाड़ से घिरे रास्ते से जा रहे थे। हम जैसी ही अपनी गाड़ी से ओरछा की ओर चले तो बारिश ने हमारा स्वागत किया। मैं सोचता था कि छत्तीसगढ़ गर्म क्षेत्र होगा जो गर्मी से हमें झुलसा देगा। लेकिन यहां आकर ऐसा मौसम देखा तो दिल खुश हो गया। आसपास घास की तरह धान खेतों में दिख रही थी जो बड़ी सुंदर लग रही थी और उसी धान से दूर तलक दिख रही थीं अबूझमाड़ की पहाड़ियां। अबूझमाड़ की पहाड़ी में सुंदरता का रस है जो इस क्षेत्र को सुंदरता से भरा रहता है।
कुछ देर बाद हम उस सुहानेपन से निकलकर एक गांव में आ गये। यहां रोड किनारे कुछ घर दिखे। हम सभी वहीं उतर गये और लोगों से बात करने लगे। यहां के गांव में कम ही घर थे और सभी घर दूर-दूर थे। अधिकतर लोग धान की खेती करते थे। मैं अक्सर यही सोचता था कि कितने खुशनसीब हैं कि इतने अच्छे क्षेत्र में रहते हैं। शायद ये भी हमारे बारे में यही सोचते होंगे कि यहां ऐसा क्या है? जो यहां ये लोग आते हैं। कहते हैं न कि कोई भी अच्छी जगह घूमते वक्त ही अच्छी लगती है, वहां रहो तब पता चलता है कि हर अच्छी जगह भी दिक्कतों से भरी है।
गोल-गोल घूम जा
जो उत्तराखंड गये हों उन्हें वहां की सड़कें अच्छी तरह से याद होंगी। जो बहुत छोटी रहती हैं और चक्कर खाते हुये गाड़ी आगे बढ़ती जाती है। बिल्कुल वही फील मुझे थोड़ा आगे बढ़ने पर हुआ। मौसम में अभी भी नमी थी रास्ते के किनारे-किनारे कोई नदी बह रही थी। उसका नाम पता नहीं, शायद इन्द्रावती ही होगी जो पूरे बस्तर में फैली हुई है। उस रास्ते पर हम सब एक अच्छा सुहाना सफर देख रहे थे। गाड़ी में बैठे कुछ साथी बता रहे थे कि बिल्कुल ऐसा ही धर्मशाला में है।
उस गोलचक्कर को पार करने के बाद हम सादा रास्ते पर आ गये। यहां भी सुंदरता का अबूझमाड़ फैला हुआ था। जो हम सब को मोहित कर रहा था। ऐसे में इस सुंदरता के साथ फोटो तो होनी ही चाहिये थी। उसी सुंदरता को हमने अपने मोबाइल में अपने साथियों के साथ बटोर लिया किसी ने इमली के साथ तो किसी ने हल्दी के पौधे के साथ। हमारा अधिकतर समय गाड़ी में ही गुजरता था और वहीं से इस अबूझमाड़ की सुंदरता को निहारते थे।
रास्ते में कई झीलें, नहरें मिलीं जो साफ बता रही थी कि इस इलाके में पानी की कमी तो नहीं है। पीने वाले पानी की कमी हो सकती है क्योंकि सभी नहरें और झीलें मटमैली थी जिसमें मछुआरे मछली पकड़ रहे थे।
बारिश से अलहदा हुआ हमारी गाड़ी का शीशा। |
रोड पर गाड़ी सनसनाती दौड़ रही थी। आसपास बहुत से पेड़ हमसे होकर गुजर रहे थे। उन पेड़ों के झुरमुट से सामने दिखता पहाड़ बेहद सुंदर लग रहा था। मैं चाहकर भी उस दृश्य को सहेज नहीं सकता था क्योंकि गाड़ी में मैं सबसे पीछे बैठा था। जहां से बाहर देखा तो जा सकता था लेकिन फोटो नहीं खींची जा सकती थी। फिर भी मैं खुश था कि कम से कम इस दृश्य को देख तो पा रहा था। अबूझमाड़ की सुंदरता देखकर हम बस एक ही बात बोल रहे थे ‘अरी दादा’।
सुना है बारिश में अबूझमाड़ बहुत खूबसूरत हो जाता है...आने जाने के साधन और नजदीकी शहर वगैरह भी बताइयेगा...धन्यवाद..
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