पहाड़ सुनकर मेरे दिल को जाने क्यों सुकून मिल जाता है। हर बार पहाड़ों में जाना एक नया एहसास होता है जो पैदल चलते हुये रास्तों में होता है, डंडों के टेक से संभलते पैरों में होता है और वो एहसास नयापन ला देता है। ऐसा ही सफर था तुंगनाथ।
हरिद्वार से चोपता की यात्रा बेहद सुकून और थकी भरी रही थी। वजह भी थी इतने घंटों से हम बस गोल-गोल घूमे जा रहे थे। रास्ते में सफेद चादर ने जरूर एनर्जी भर दी थी। हम सफेद चादर को देखकर खुश हो रहे थे क्योंकि हमें लग रहा था वो दूर तलक की सफेद पहाड़ी केदारनाथ की है। लेकिन वो सफेद पहाड़ी को हम कुछ ही देर बाद बिल्कुल नजदीक से देखने वाले थे। वो सफेद चादर हमारा तुंगनाथ में इंतार कर रही थी और हम इस बात से बिल्कुल बेखबर थे।
हमारी बस चोपता शाम के तीन बजे पहुंची। बस के बाहर उतरे तो अचानक सर्द ने हम पर हमला कर दिया। मौसम पूरा सर्द से भरा हुआ था। हमने सोचा नहीं था कि मई के महीने में तुंगनाथ हमारा ठंड से स्वागत करेगा। हम सब अपने गर्म कपड़े लाये थे। थोड़ी ही देर में हम तुंगनाथ की ओर जाने के लिए तैयार हो गये। चोपता के चौराहे पर हम खड़े हुये थे, आसपास कुछ ही दुकानें थे। मैंने अपने काम की दुकान देखी और पहुंच गया डंडा लेने। तुंगनाथ की चढ़ाई चोपता से 3-4 किलोमीटर है लेकिन बस की थकावट हावी थी इसलिए डंडा चढ़ाई करने में कामगर था।
हम सब एक पक्के रोड पर चलने लगे जो शायद तुंगनाथ तक बना हुआ था। शुरूआत में सबकी बड़ी परेशानी थी, थकान। जो हमारे चलने की गति को धीमा कर रही थी और हमें अंधेरे होने से पहले नीचे भी आना था। हमें पहले ही निर्देश मिल चुका था जो जहां तक चढ़ पाये चढ़े और वापसी में इन्हीं लोगों के साथ वापस आ जाये। मैं हार नहीं मानने वाला था। मैं नहीं चाहता था कि तुंगनाथ आकर भी तस्वीर में ही उस जगह को देखूं।
मैं धीरे-धीरे चलने लगा बिल्कुल सामान्य। मैं नहीं चाहता था कि स्पीड के कारण इस सफर का आनंद न ले सकूं। शुरूआत में सबके दिमाग पर थकान छाई हुई थी लेकिन थोड़ी देर बाद हम उस चढ़ाई और थकान में ढलने लगे। हम उस चढ़ाई को एंजाय करने लगे।
मैं जिस सफेद चादर के लिए बस में उछल-कूद कर रहा था वो हमारे सामने ही थी। हम उसके ही पास जा रहे थे। छोटे से रास्ते में बहुत कुछ अच्छा था सुहाना मौसम, शांति और हरा-भरा फैला हुआ मैदान और सफेदी ओढे़ हुये पहाड़। पेड़ों के बीच पहाड़ सुंदर लगते हैं लेकिन सफेदी के लेप में पहाड़ में एक आकर्षण आ जाता है। पहाड़ की इस सुंदरता को देखकर हम असमय ही उसकी तारीफ करने लगते हैं। हम भी वही कर रहे थे कुछ अपने मुंह से तो कुछ तस्वीरों में सहेजकर।
पक्की सड़क पर चलते-चलते काफी देर हो गई थी। अचानक सड़क से मिलता हुआ हरा-भरा मैदान मिला। जहां से चलकर हम आगे जा सकते थे। हम थोड़े आगे चले और वहीं लोट हो गये। देखा-देखी जो भी आता वहीं लोट हो जाता। कुछ देर मखमली हरी-घास पर आराम करने के बाद हमने फिर अपने कदम बढ़ाये। अब चढ़ाई थोड़ी खड़ी हो गई थी जो कुछ लोगों के लिए परेशानी भी थी।
मौसम सर्द पहले से ही था और हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे ऊंचाई की वजह से मौसम और ठंडा हो रहा था, सर्द हवायें भी चल रहीं थीं। चलते-चलते शरीर में गर्मी आ जाती है लेकिन ऊंचाई के कारण हालत खराब होने वाली थी। इन सारी दिक्कतों के कारण चढ़ना और भी मुश्किल हो रहा था। लेकिन हम बीच में रूककर आराम करते और फिर चलते।
रास्ते में बहुत ही कम लोग थे जो हमारे लिए अच्छी बात थी। हम आराम से चल रहे थे भीड़ चलने में परेशानी देती है। रास्ते में हमें एक दुकान मिली जहां हमने कुछ खाने को लिया जो हमें आगे चलने में मदद करता रहे।
हम चलते-चलते काफी ऊपर आ गये थे। यहां से चारो तरफ सुंदरता फैली हुई थी। सामने देखते तो एक लंबा रास्ता और सफेद चादर में लिपटा पहाड़ दिखता जो हमारा इंतजार कर रहा था। पीछे देखते तो अनेकों पहाड़ियां दिखतीं एक के पीछे एक। जो एक दूसरे में एकाकार हो रही थी। यही वो नजारा था जो हमें धीरे-धीरे चला रहा था। हम हर पल को, हर कदम को जी कर चलते जा रहे थे।
हम चल ही रहे थे अचानक चेहरे पर कुछ स्पर्श हुआ, लगा कि शायद बारिश होने वाली है। कुछ देर बाद वो स्पर्श बढ़ गया। वो सफेद सा स्पर्श हमारे चारों-तरफ फैलने लगा। हम इसको देखकर खुशी से चिल्ला ही उठे, हम वहीं रूककर उसी सफेदी में एक-दूसरे को, पहाड़ों को देखने लगे। हमने नहीं सोचा था कि मई के महीने में हमारे चारों तरफ भीनी-भीनी सफेदी बरस रही होगी।
उस सफेद बारिश के बाद मौसम में और ठंड होने लगी लेकिन अब हमें ये मुश्किल अच्छी लग रही थी। मुकेश सर हमें धकेलते और फिर खुद हमारे साथ ही हो लेते। हमें अभी तक सफेद पहाड़ दिख रहे थे लेकिन इतनी ऊंचाई पर पहुंचकर अब तस्वीर साफ होने लगी थी।
हम चलते जा रहे थे लेकिन हमें मंदिर अभी तक नहीं दिख रहा था। कुछ ही देर बाद हम ऐसी जगह पहुंचे जहां से हमें मंदिर दिखाई दे रहा था। कुछ देर बाद हम मंदिर के रास्ते पर ही थे। मंदिर के नीचे कुछ दुकानें थीं जो मंदिर के लिए प्रसाद लेने के लिए थी। मंदिर वैसा ही था जैसा उत्तराखंड में सभी केदार हैं।
जब मंदिर जाने के लिये जूते उतारे और जमीन पर पैर रखा तो ठंड के कारण अचानक कपकपी उठी। अब जमीन पर चलना बर्फ की सिल्ली पर चलना लग रहा था। थोड़ी ही देर में ठंड ने मेरी घिग्घी बांध दी। जब मंदिर के अंदर गया तो चैन मिला और जब बाहर आकर वही हाल हो रहा था तो जल्दी से अपने जूतों में पैर डालकर उनको सुकून दिया।
तुंगनाथ से सामने सफेद सुंदरता ओढ़े पहाड़ दिख रहे थे। सफेद आसमान को छूते पहाड़ बहुत सुंदर लग रहे थे। हम अब नीचे की ओर आ रहे थे। हम बार-बार मुड़-मुड़कर उस जगह को देख रहे थे जहां हम अभी कुछ देर पहले खड़े थे।
हम कुछ दूर ही चले तो हमें एक पक्षी दिखा, बिल्कुल मोर की तरह बस छोटा था। मुकेश सर ने बताया कि ये ‘मोनाल’ पक्षी है, उत्तराखंड का राज्यीय पक्षी। अंधेरा होने लगा था और हम नीचे चलते जा रहे थे। इस अंधेरे के साथ ही सफर खत्म हो जाना था लेकिन भीनी सफेदी का स्पर्श हमेशा ताजा रहने वाला था, ताउम्र।
हरिद्वार से चोपता की यात्रा बेहद सुकून और थकी भरी रही थी। वजह भी थी इतने घंटों से हम बस गोल-गोल घूमे जा रहे थे। रास्ते में सफेद चादर ने जरूर एनर्जी भर दी थी। हम सफेद चादर को देखकर खुश हो रहे थे क्योंकि हमें लग रहा था वो दूर तलक की सफेद पहाड़ी केदारनाथ की है। लेकिन वो सफेद पहाड़ी को हम कुछ ही देर बाद बिल्कुल नजदीक से देखने वाले थे। वो सफेद चादर हमारा तुंगनाथ में इंतार कर रही थी और हम इस बात से बिल्कुल बेखबर थे।
हमारी बस चोपता शाम के तीन बजे पहुंची। बस के बाहर उतरे तो अचानक सर्द ने हम पर हमला कर दिया। मौसम पूरा सर्द से भरा हुआ था। हमने सोचा नहीं था कि मई के महीने में तुंगनाथ हमारा ठंड से स्वागत करेगा। हम सब अपने गर्म कपड़े लाये थे। थोड़ी ही देर में हम तुंगनाथ की ओर जाने के लिए तैयार हो गये। चोपता के चौराहे पर हम खड़े हुये थे, आसपास कुछ ही दुकानें थे। मैंने अपने काम की दुकान देखी और पहुंच गया डंडा लेने। तुंगनाथ की चढ़ाई चोपता से 3-4 किलोमीटर है लेकिन बस की थकावट हावी थी इसलिए डंडा चढ़ाई करने में कामगर था।
तुंगनाथ चढ़ाई
मैं धीरे-धीरे चलने लगा बिल्कुल सामान्य। मैं नहीं चाहता था कि स्पीड के कारण इस सफर का आनंद न ले सकूं। शुरूआत में सबके दिमाग पर थकान छाई हुई थी लेकिन थोड़ी देर बाद हम उस चढ़ाई और थकान में ढलने लगे। हम उस चढ़ाई को एंजाय करने लगे।
हरा मैदान
पक्की सड़क पर चलते-चलते काफी देर हो गई थी। अचानक सड़क से मिलता हुआ हरा-भरा मैदान मिला। जहां से चलकर हम आगे जा सकते थे। हम थोड़े आगे चले और वहीं लोट हो गये। देखा-देखी जो भी आता वहीं लोट हो जाता। कुछ देर मखमली हरी-घास पर आराम करने के बाद हमने फिर अपने कदम बढ़ाये। अब चढ़ाई थोड़ी खड़ी हो गई थी जो कुछ लोगों के लिए परेशानी भी थी।
मौसम सर्द पहले से ही था और हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे ऊंचाई की वजह से मौसम और ठंडा हो रहा था, सर्द हवायें भी चल रहीं थीं। चलते-चलते शरीर में गर्मी आ जाती है लेकिन ऊंचाई के कारण हालत खराब होने वाली थी। इन सारी दिक्कतों के कारण चढ़ना और भी मुश्किल हो रहा था। लेकिन हम बीच में रूककर आराम करते और फिर चलते।
रास्ते में बहुत ही कम लोग थे जो हमारे लिए अच्छी बात थी। हम आराम से चल रहे थे भीड़ चलने में परेशानी देती है। रास्ते में हमें एक दुकान मिली जहां हमने कुछ खाने को लिया जो हमें आगे चलने में मदद करता रहे।
भीनी-भीनी बर्फ
हम चलते-चलते काफी ऊपर आ गये थे। यहां से चारो तरफ सुंदरता फैली हुई थी। सामने देखते तो एक लंबा रास्ता और सफेद चादर में लिपटा पहाड़ दिखता जो हमारा इंतजार कर रहा था। पीछे देखते तो अनेकों पहाड़ियां दिखतीं एक के पीछे एक। जो एक दूसरे में एकाकार हो रही थी। यही वो नजारा था जो हमें धीरे-धीरे चला रहा था। हम हर पल को, हर कदम को जी कर चलते जा रहे थे।
हम चल ही रहे थे अचानक चेहरे पर कुछ स्पर्श हुआ, लगा कि शायद बारिश होने वाली है। कुछ देर बाद वो स्पर्श बढ़ गया। वो सफेद सा स्पर्श हमारे चारों-तरफ फैलने लगा। हम इसको देखकर खुशी से चिल्ला ही उठे, हम वहीं रूककर उसी सफेदी में एक-दूसरे को, पहाड़ों को देखने लगे। हमने नहीं सोचा था कि मई के महीने में हमारे चारों तरफ भीनी-भीनी सफेदी बरस रही होगी।
चढ़ाई के बीच में कुछ ठहराव। |
उस सफेद बारिश के बाद मौसम में और ठंड होने लगी लेकिन अब हमें ये मुश्किल अच्छी लग रही थी। मुकेश सर हमें धकेलते और फिर खुद हमारे साथ ही हो लेते। हमें अभी तक सफेद पहाड़ दिख रहे थे लेकिन इतनी ऊंचाई पर पहुंचकर अब तस्वीर साफ होने लगी थी।
तुंगनाथ और ठंड
हम चलते जा रहे थे लेकिन हमें मंदिर अभी तक नहीं दिख रहा था। कुछ ही देर बाद हम ऐसी जगह पहुंचे जहां से हमें मंदिर दिखाई दे रहा था। कुछ देर बाद हम मंदिर के रास्ते पर ही थे। मंदिर के नीचे कुछ दुकानें थीं जो मंदिर के लिए प्रसाद लेने के लिए थी। मंदिर वैसा ही था जैसा उत्तराखंड में सभी केदार हैं।
जब मंदिर जाने के लिये जूते उतारे और जमीन पर पैर रखा तो ठंड के कारण अचानक कपकपी उठी। अब जमीन पर चलना बर्फ की सिल्ली पर चलना लग रहा था। थोड़ी ही देर में ठंड ने मेरी घिग्घी बांध दी। जब मंदिर के अंदर गया तो चैन मिला और जब बाहर आकर वही हाल हो रहा था तो जल्दी से अपने जूतों में पैर डालकर उनको सुकून दिया।
तुंगनाथ से सामने सफेद सुंदरता ओढ़े पहाड़ दिख रहे थे। सफेद आसमान को छूते पहाड़ बहुत सुंदर लग रहे थे। हम अब नीचे की ओर आ रहे थे। हम बार-बार मुड़-मुड़कर उस जगह को देख रहे थे जहां हम अभी कुछ देर पहले खड़े थे।
हम कुछ दूर ही चले तो हमें एक पक्षी दिखा, बिल्कुल मोर की तरह बस छोटा था। मुकेश सर ने बताया कि ये ‘मोनाल’ पक्षी है, उत्तराखंड का राज्यीय पक्षी। अंधेरा होने लगा था और हम नीचे चलते जा रहे थे। इस अंधेरे के साथ ही सफर खत्म हो जाना था लेकिन भीनी सफेदी का स्पर्श हमेशा ताजा रहने वाला था, ताउम्र।
शानदार...
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