मैं कभी छत्तीसगढ़ नहीं गया था। बस सुना था खतरनाक है क्योंकि ये नक्सल क्षेत्र है। मैंने सोचा था कभी जाऊँगा और जैसे ही मुझे मौका मिला तो मैं एक समूह के साथ जाने के लिए तैयार हो गया। 18 सितंबर 2018 को हम राजधानी एक्सप्रेस से जाने वाले थे, पौने चार बजे की ट्रेन थी। सभी लोग स्टेशन पहुंच गए थे सिवाय मेरे। मुझे देर हो गई थी लग रहा था कि छत्तीसगढ़ जाना मेरे नसीब में नहीं है। मैं रोड पर दौड़ रहा था लेकिन पैर भाग ही नहीं रहे थे। एक्सेलटर पर पहुंचा तो देखा कि बहुत लंबी लाइन है और ट्रेन चलने में बस दो मिनट बचे थे।मैंने आखिरी जोर लगाया और सबको पार करकेही भागा और जैसे ही प्लैटफॉर्म पर पहुंचा, गाड़ी चलने लगी। भारी भरकम मेहनत करने के बाद आखिर मैं भी छत्तीसगढ़ के सफर के लिए निकल पड़ा।
दिल्ली से हम दस लोग एसी डिब्बे में बैठकर छत्तीसगढ़ के सफर पर जा रहे थे। खेत-खलिहान से चलते हुए हम शहर को पीछे छोड़ते जा रहे थे। ट्रेन के सफर में सबसे गड़बड़ या गलत चीज मुझे ये लगती है कि सब कुछ एक जैसा दिखता है। शहर,गली, खेत, रास्ते सब कुछ एक जैसा दिखता है। हम दर-दर कई राज्यों से घुसते हुए निकल रहे थे। हम दिल्ली से चलकर हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झांसी तक उत्तर प्रदेश का क्षेत्र था।
शाम के वक्त हम चंबल की पहाड़ियों से गुजर रहे थे। चंबल का नाम सुनते ही हमें डाकू याद आते हैं जो पुलिस की नाक में दम करे रहते थे।हंसी-ठिठोली के बाद सभी लोग अपने-अपने मोबाइल में लग गये l प्रज्ञा मैम नेटफ़िलीक्स में घुस गईं और चन्द्रभूषण भैया कोई किताब पढ़ने लगे और मैं क्या करता? मैं बस यूंही बैठकर देख रहा था इन लोगों को और सोच रहा । कल तक जिनसे ज्यादा बात तक नहीं होती थी आज उनसे दोस्तों की तरह घुलमिल गये थे।
खेत, जंगल, नदियां, शहर और पर्वत शिखर से होते हुये ये सफर मेरे दिमाग में एक अनूठी छाप छोड़ रहा था। जो जिन्दगी भर मेरे दिमाग में अंकित रहने वाला था। मैं पहली बार छत्तीसगढ़ जा रहा था और पहली बार राजधानी से सफर कर रहा था। राजधानी में खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था है लेकिन क्वालिटी नहीं है। रात को खाना खाने के बाद सभी लोग नाराज थे कि इतना पैसा लेने के बाद भी ऐसी व्यवस्था। मैनेजर जब समझाने आया तो लोगों ने उसको उसकी गलतियां बताई और शिकायत करने की धमकी दी। जिसके बाद मैनेजर शिकायत को दबाने के लिए चाय की पेशकश करने लगा। जिसके बाद सब उसको और गलत कहने लगे कि आपको उस खाने पर ध्यान देना चाहिए ना कि हमें फुसलाने में।
रात की आगोश के बाद जब सुबह जागा तो सुबह ने हमारा खूबसूरती ने स्वागत किया। वो खूबसूरती हमें महाराष्ट्र के हरे-भरे जंगलों में दिख रही थी। इन जंगलों में ऐसे पेड़ दिख रहे थे जिनको मैंने कभी नहीं देखा था। जंगलोंमें bबार-बार लंगूर का दिखना मुझे मुस्कुराने को मजबूर कर दिया। यहां का जंगल विशाल था,लेकिन tथोड़ी ही देर बाद मुझे विशाल पहाड़ दिखने लगे। थोड़ी देर बाद ट्रेन राजनंदगाँव रुकी। राजनंदगाँव, छत्तीसगढ़ का पहला स्टेशन है। स्टेशन की दीवारों पर छत्तीसगढ़ की संस्कृति को उकेरा हुआहहै, जो मुझे संस्कृति को बढ़ाने के लिए एक अच्छा उदाहरण लगा।
रायपुर आने में बस कुछ ही देर रह गई थी। शहर के पहले मुझे बस्तियां दिखी, खपरैल घर दिखे, नहर में नहाते लोग और कपड़े धोती महिलाएं दिखीं। जो लोगों की प्रवाहमान जीवन को बताता । इस अच्छे सफर को बनाने का काम किया था राजधानी एक्सप्रेस नेे। जिसने हमें सही समय पर रायपुर पहुंचा दिया था। अब कुछ हफ्ते मुझे इसी छत्तीसगढ़ में टहलना था।
Experience acche se define kiya hai
ReplyDeletewaah mere bhai.bahut sundar safarnama hai.bahut swagt hai cg cg aapka.
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteअति उत्तम भाई
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