पहाड़ में हर शहर, हर गांव सुंदर ही होता है लेकिन कुछेक जगह सबसे ऊपर होती हैं। मेरे अनुभव में उस जगह को टिहरी कहते हैं। मैंने इस जगह के बारे में बहुत सुन रखा था लेकिन जाने का कभी प्लान ही नहीं बन पाया। फिर अचानक काॅलेज खत्म होने को आये तो ऐसा प्रोजेक्ट सामने आया जिसके लिये हमने चुना ‘टिहरी’।
इन्हीं पहाड़ों में रमने का मन करता है। |
7 मार्च 2018 के दिन मैं और मेरा साथी मृत्युंजय पांडेय टिहरी के लिये निकल पड़े। टिहरी जाने के लिये सबसे पहले ऋषिकेश जाना था और वहां से बस लेनी थी। हम शाम के वक्त ऋषिकेश बस स्टैण्ड पहुंचे तो पता चला कि टिहरी के लिये कोई बस ही नहीं है। वहीं एक व्यक्ति ने बताया कि आगे कोई चैक है वहां से मिल सकती है। वहां जल्दी-जल्दी में पहुंचे लेकिन कोई गाड़ी नहीं थी। इंतजार करते-करते घंटा हो गया लेकिन न गाड़ी आई और न ही बस।
तभी अचानक एक गाड़ी वाले ने कहा कि टिहरी जाना है हमारे अंदर खुशी की लहर दौड़ गई। गाड़ी चंबा तक जा रही थी, वहां से टिहरी दूर नहीं था। रात के अंधेरे में गाड़ी गोल-गोल चक्कर लगाये जा रही थी। दो घंटे बाद गाड़ी चैराहे पर रूक गई सामने लिखा था ‘चंबा में आपका स्वागत है। रात वहीं गुजारनी थी सो एक कमरा ले लिया, सामान रखा और बाहर घूमने के लिये निकल पड़े। रात के 8 बज चुके थे, पूरा चंबा अंधेरे आगोश में था। चारों तरफ बस शांत माहौल था, शहर के शोरगुल से इस जगह पर आना अच्छा लग रहा था। बदन में ठंडक आ रही थी, हम थोड़ी देर में ही कमरे में चले गये। इस वायदे के साथ कि कल जल्दी उठेंगे।
चंबा
चंबा पहाड़ों से घिरी हुई सुंदर जगह थी। यहां मंसूरी, नैनीताल की तरह भीड़ नहीं थी। मुझे यहां कोई पर्यटक नजर नहीं आ रहा था। चैराहे पर गाड़ियों और लोगों की भीड़ थी। धूप सिर पर आ गई थी लेकिन ये धूप अच्छी लग रही थी, शरीर को सुकून दे रही थी। हमारे प्लान में चंबा नहीं था लेकिन अब रूक ही गये थे तो थोड़ी देर निहारने में क्या जा रहा था?
पहाड़ों के रास्ते |
हमें पास में ही एक पुल दिखाई दिया, वो ऊंचाई पर था वहां से पूरा चंबा दिख सकता था। मैं और पांडेय कुछ देर में उस पुल पर थे, वो चंबा के पहाड़ों, चौराहे को अपने कैमरे में सहेजने लगा। मैं उन चोटियों को देख रहा था जो रात के अंधेरे में हम नहीं देख पाये थे।
चंबा वाकई एक सुंदर शहर है जहां आराम से कुछ दिन गुजारे जा सकते हैं यहां दूसरे शहरों की तरह न पार्क हैं, न झरने हैं और न ही टूरिस्ट जैसा माहौल। लेकिन यहां सुन्दरता, शांति और सुकून है जो हम महसूस कर पा रहे थे। यहां पर्यटक नहीं शायद इसलिये क्योंकि सरकार ने यहां को टूरिस्ट प्लेस में रखा ही नहीं है। हम वहां कुछ घंटे रूके उस शहर की गलियां अपने कदमों से नापीं। हमें टिहरी जाना था, वहां के लिये बस भी थी और गाड़ी। हमने बस की जगह गाड़ी ली और चल पड़े अपने अगले पड़ाव पर, जहां हमें कुछ दिन गुजारना था और लोगों से मिलना था।
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