Tuesday, 26 July 2022

रामपुर बुशहर से रिकांगपिओ होते हुए कल्पा तक की यात्रा शानदार रही

घूमते ही कई बार आप ऐसी जगहों पर पहुँच जाते हैं जिसकी आप कल्पना ही कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश की यात्रा में हमने एक ही ऐसी ही शानदार जगह देखी। कल्पा हमारी कल्पना से भी शांत और खूबसूरत निकला। कल्पा तक पहुँचने की यात्रा हमारी हिमाचल प्रदेश के रामपुर बुशहर से शुरू हुई। हमें हिमाचल आए एक दिन हुआ था लेकिन अभी से मेरा दिल यहाँ लगने लगा था।

5 जून 2022। हम सुबह 4 बजे उठकर तैयार होने लगे थे क्योंकि रामपुर बुशहर से रिकांगपिओ के लिए सुबह 5 बजे पहली बस निकलती है। हम इसी बस से रिकांगपिओ जाना चाहते हैं। रामपुर बुशहर शिमला जिले में आता है और रिकांगपिओ किन्नौर जिले में पड़ता है। अब हम किन्नौर घाटी की यात्रा पर जाने वाले हैं। तैयार होकर थोड़ी देर में हम रामपुर की सड़कों पर चल लगे। रामपुर पूरी से सुनसान था और अंधेरा भी था। सतलुज नदी के बहने की आवाज हमें साफ-साफ सुनाई दे रही है।

रामपुर बुशहर

हम जहाँ रूके थे वहाँ से बस स्टैंड 1 किमी. की दूरी पर है। बस स्टैंड पहुँचने में हमें आधा घंटे का समय लग गया। रामपुर बुशहर बस स्टैंड पर भी अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। हम वहीं एक बेंच पर बैठ गए। थोड़ी देर बाद एक बस स्टार्ट हुई। पता किया तो वही बस रिकांगपिओ जाने वाली थी। हम अपने सामान के साथ बस में बैठ गए। बस पूरी तरह से खाली पड़ी हुई थी। ठीक 5 बजे बस रामपुर बुशहर से चल पड़ी।

थोड़ी देर बाद हम रामपुर बुशहर से निकलकर पहाड़ी रास्तों पर आ गए। उजाला होने लगा लेकिन जब तक सूरज ना निकले दिन का आना नहीं माना जाता। रामपुर बुशहर से रिकांगपिओ की दूरी 90 किमी. है। बस में हमारे अलावा कुछ और भी लोग आ चुके हैं चारों तरफ बस पहाड़ ही पहाड़ नजर आ रहे हैं। रास्ते में कई गाँव भी मिले लेकिन इतनी सुबह होने के चलते लोग कम दिखाई दिए। हालांकि कुछ लोग टहलते हुए जरूर नजर आए। 7 बजे हमारी बस बधाल नाम की जगह पर रूकी। यहाँ पर एक होटल था जहाँ नाश्ता किया जा सकता है, हमने गर्म-गर्म चाय की चुस्की ली।

किन्नौर वैली

थोड़ी देर बाद बस चल पड़ी। मेरे कैमरे को देखकर बस के कंडक्टर ने अपनी सबसे आगे वाली सीट मुझे दे दी। अब नजारे बेहद शानदार दिखाई दे रहे थे जो ड्राइवर देख रहा था, वही मैं देख रहा था। अब मेरी पिओ तक की यात्रा शानदार होने वाली थी। थोड़ी देर बाद एक गेट आया जिस पर लिखा था, किन्नौर जिले में आपका स्वागत है। इस तरह हमने किन्नौर घाटी में प्रवेश कर लिया।

किन्नौर के शुरू होते ही रास्ता और नजारे दोनों खूबसूरत होने लगे। कंडक्टर ने मुझे बताया कि अब वो सड़क आने वाली है जिसे पहाड़ को काटकर बनाया गया है। थोड़ी देर में काले पहाड़ के नीचे से बस गुजरने लगी। ऐसे लग रहा था कि हम किसी गुफा से गुजर रहे हैं जो एक तरफ से खुली हुई है। इन्हीं खूबसूरत नजारों को देखते हुए हमारी यात्रा बढ़ रही थी। बस में बज रहे पुराने गाने इस सफर को और भी शानदार बना रहे थे।

करचम डैम

बात करते हुए कंडक्टर ने बताया कि अभी कुछ देर बाद करचम डैम आएगा। डैम से पहले दाई तरफ की ओर पुल गया है। अगर आपको रकचम, सांगला और चितकुल जाना है तो उसी रास्ते से जाना होगा। अगर आपके पास खुद की गाड़ी है तो उस पुल के रास्ते जा सकते है। अगर आप बस से जाना चाहते हैं तो इन जगहों के लिए रिकांगपिओ से आपको बस मिल जाएगी।

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थोड़ी देर बाद करचम बांध भी आ गया। अब हम पिओ के रास्ते पर थे। जैसे ही रिकांगपिओ पास आने लगा बर्फ से ढंके पहाड़ हमें दिखाई देने लगे। इस नजारे को देखकर मन एकदम खुश हो गया। जून के महीने में बर्फ देखने को मिले तो क्या ही कहने? कंडक्टर से बात करने पर पता चला कि कल्पा यहाँ से 10 किमी. है। उसके लिए बस रिकांगपिओ बस स्टैंड के बाहर से मिलेगी। पहले हमारा प्लान रिकांगपिओ और बाद में कल्पा घूमने का था लेकिन अब हम कल्पा जाने वाले थे।

कल्पा

रिकांगपिओ बस स्टैंड।
कुछ देर बाद हम रिकांगपिओ बस स्टैंड पर खड़े थे। सुबह के 9 बजने वाले थे और कल्पा वाली बस 9:30 बजे आने वाली थी। बस में अभी समय भी था और सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। बस स्टैंड के पास में ही एक दुकान में घुस गए। मस्त परांठा खाया और वापस रिकांगपिओ बस स्टैंड के बाहर खड़े गए। थोड़ी देर बाद हिमाचल परिवहन की एक चमचमाती बस आई। हम उसी बस में बैठ गए।

कंडक्टर ने बताया कि ये बस चुगलिंग तक जाएगी। अब हमारे दिमाग में यही था कि कल्पा कैसे पहुँचेंगे। छोटे-छोटे रास्ते से होकर बस बढ़ रही थी और खिड़की से बर्फ से ढंके पहाड़ों का नजारा शानदार दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर बाद बस चीनी मार्केट में रूकी। कंडक्टर ने हमें बताया कि ये मिनी कल्पा और ऊपर कल्पा है। हम आपस में यही बात कर रहे थे, तभी एक स्थीनीय व्यक्ति ने हमें टोका।

उन्होंने बताया कि यही पुराना और असली कल्पा है। ऊपर तो सिर्फ टूरिस्ट प्लेस हैं इसिलए वो ज्यादा फेमस है। कुछ देर में बस आगे चल पड़ी। कुछ ही मिनटों में बस चुगलिंग पहुँच गई। हमारे साथ 20 महिलाएं नीचे उतरीं। सभी महिलाएं पारंपरिक परिधान भी थीं। इन महिलाओं को भी आगे गाँवों में जाना था। उनकी एक गाड़ी आने वाली थी।

कंडक्टर ने उन लोगों से बात करके हमें सुसाइड प्वाइंट तक छोड़ने की बात कर ली। अब हम उस गाड़ी के इंतजार में थे। कई बार मंजिल से ज्यादा खूबसूरत रास्ता होता है। मैं न तो किसी बाइक से था और खुद की गाड़ी से था। हम तो बसों से ही इस हिमाचल यात्रा को कर रहे थे और आगे भी इसी तरह बढ़ने वाले थे लेकिन शिमला जिले से किन्नौर का रास्ते बेहद खूबसूरत है। इस रास्ते पर जाए बिना हिमाचल यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी।

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Saturday, 23 July 2022

रामपुर बुशहर: ऊंचे पहाड़ों और खूबसूरत नदी के किनारे बसा हिमाचल प्रदेश का अद्भुत शहर

कुछ जगहें ऐसी होती हैं जो आपकी घूमने की लिस्ट में नहीं होती हैं लेकिन जब आप उस जगह पर पहुंचते हैं तो आप अचंभित रह जाते हैं। ऐसी छोटी जगहें वाकई में कमाल की होती हैं। ऐसी ही शानदार और कमाल की जगह है, रामपुर बुशहर। हिमाचल की यात्रा के पहले मैंने इस जगह का नाम नहीं सुना था लेकिन हिमाचल में मेरा पहला दिन इसी शहर को देखने में बीता।

सुबह 10 बजे हमारी बस रामपुर बस स्टैंड पर पहुंची। हम बस स्टैंड के पास किसी होटल में रूकना चाहते थे ताकि अगले दिन अगली जगह के लिए जल्दी निकल सकें। हम बस स्टैंड से बाहर रूकने के ठिकाना खोजने के लिए पैदल निकल पड़े। हम चलते जा रहे थे लेकिन अब तक कोई होटल या गेस्ट हाउस नहीं दिखाई दिया। थोड़ी देर बाद हम मुख्य सड़क पर पहुंच गए जहां दोनों तरफ पहाड़ और बीच में सतलुज नदी बह रही थी। वाकई में सुंदर नजारा था।

नई जगह नए लोग

रामपुर बुशहर।
लगभग 1 किमी. चलने के बाद हम एक कमरा मिला। हमें कमरा रोड किनारे मिला। जहां से सामने एक छोटी-सी मोनेस्ट्री, रामपुर का बाजार और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। हमें जल्दी रामपुर बुशहर को देखने के लिए निकलना चाहते थे। कमरे में सामान रखा और नहा धोकर रामपुर बुशहर की सड़कों पर आ गए। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था और भूख जोर की लगी थी।

हम रामपुर बुशहर की सड़क पर खाने की खोज में निकल पड़े। हमारा कुछ चाइनीज खाने का मन था। मुख्य सड़क पर नानवेज वाली दुकानें ज्यादा थीं और कुछ जगहों पर परांठा मिल रहा था। मैंने यहां पर मछली का पकौड़ा दुकान पर बेचते हुए देखा। हम मुख्य सड़क से नीचे गलियों में आ गए। कुछ ही दूर चले थे कि एक दुकान पर चाइनीज फूड मिल रहा था। इस दुकान को महिलाएं चला रहीं थी। दुकान पर कोई मर्द नहीं था, ये देखकर अच्छा लगा।

मैंने थुकपा पहले कभी नहीं खाया था इसलिए उसे ही मंगाया। गर्म-गर्म थुकपा वाकई में शानदार था। बिल्कुल साधारण था, कोई मिर्च मसाला नहीं। थुकपा का स्वाद लेने के बाद हम रामपुर की गलियों में घूमने लगे। बाहर से रामपुर छोटा लग रहा था लेकिन असली रामपुर तो इन गलियों में था। यहां टीवी, फ्रिज से लेकर छोटी-बड़ी हर प्रकार की दुकान थी। बाजार में बहुत ज्यादा भीड़ भी नहीं थी। मुझे तो इस शहर के छोटे-से बाजार से प्यार हो गया था।

मंदिर

रामपुर बुशहर में घूमते हुए हमें एक पुराना मंदिर दिखाई दिया। ये रामपुर बुशहर का भूतेश्वर नाथ मंदिर है। हिमाचली शैली में बने इस मंदिर में कोई नहीं था। इस मंदिर को देखने के बाद अब हमें नदी किनारे जाना था। चलते-चलते नीचे जाते हुए सीढ़ी मिली। ये सीढ़ी हमें नदी के पास में तो ले गईं लेकिन नदी के किनारे नहीं। यहां पर एक मंदिर भी था, श्री जानकी माई गुफा मंदिर।

श्री जानकी माई गुफा मंदिर।
रामपुर बुशहर का श्री जानकी माई गुफा मंदिर लगभग 150 साल पुराना मंदिर है। शिखर शैली में बने इस मंदिर को यहां के स्थानीय महंतों ने बनवाया था। लकड़ी और पत्थर से बने इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों के अलावा भी कई देवी-देवताओं की मूर्ति है। मंदिर में एक पुजारी भी थे जिन्होंने हमें प्रसाद भी दिया। नदी किनारे बना ये मंदिर वाकई में शानदार है।

सतलुज

सतलुज नदी।
मंदिर को देखने के बाद अब वापस रामपुर की गलियों में आ गए। अब हमें नदी किनारे जाना था। रामपुर बुशहर में सतलुज नदी बहती है। हम नदी पर बने पुल पर पहुंच गए। यहां से नजारा तो खूबसूरत था ही हवा भी तेज चल रही थी। नदी के दोनों तरफ रामपुर बुशहर है। इस पुल से स्थानीय लोग आते-जाते हैं। हम भी इसी पुल को पार करके उस पार पहुंच गए।

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थोड़ा आगे चलने पर एक जगह से नदी किनारे जाने के लिए सीढ़ियां गईं थीं। उन सीढ़ियों से उतरकर हम नदी किनारे पहुंच गए। नदी में पैर डाला तो दिमाग झन्ना गया। पानी बहुत ज्यादा ठंडा था। रामपुर बुशहर में सर्दी नहीं थी लेकिन पानी बहुत ज्यादा ठंडा था। यहां से रामपुर बेहद सुंदर लग रहा था। चारों तरफ हरियाली, ऊंचे पहाड़ और पास से कलकल करती हुई नदी। नदी की धार बहुत तेज थी। हम नदी किनारे एक पत्थर पर बैठ गए। नदी किनारे बैठना हमेशा मुझे सुकून देता है।

बौद्ध मंदिर

बौद्ध मंदिर।
काफी देर तक बैठने के बाद हम वापस चल पड़े। घूमते-टहलते हुए अपने कमरे पर वापस आ गए। हमने थोड़ी देर आराम करने का मन बनाया। बेड पर लेटे तो नींद आ गई और आंख खुली शाम 5 बजे। बालकनी से देखा तो शाम हो चुकी थी और पहाड़ों पर धुआं दिखाई दे रहा था। पहाड़ों में गर्मियों के दौरान आग काफी लगती है। थोड़ी देर में हम होटल के बाहर थे।

हमारे कमरे के सामने एक मोनेस्ट्री थी। हम रोड पर पार करके मोनेस्ट्री में पहुंच गए। अंदर आने पर पता चला कि ये दुंग ग्युर बौद्ध मंदिर है। 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और 14वें दलाई लामा ने इस बौद्ध मंदिर का लोकार्पण किया था। बौद्ध मोनेस्ट्री का गेट बंद था तो हम बस चारों तरफ से देखकर बाहर आ गए। हम फिर से रामपुर की गलियों में थे।

हमने दिन में थुकपा खाया था तो अब हम रोटी सब्जी जैसा कुछ खाना चाहते थे। लोग से पूछते-पूछते काफी देर बाद हमें एक छोटा-सा भोजनालय मिला। यहां हमने बेहद लजीज राजमा चावल खाए। पेट पूजा करने के बाद हम रामपुर की गलियों में थे। हमें फिर से एक और मंदिर दिखाई दिया। मैं हनुमान घाट मंदिर में घुस गया। मंदिर काफी खूबसूरत था और पहाड़ी शैली में बना हुआ था। हिमाचल में ज्यादातर मंदिर इसी शैली में बने होते हैं। मंदिर को देखने के बाद हम वापस अपने कमरे में आ गए।



रात में रामपुर बुशहर किसी आसमान के जैसा लग रहा थी जहां तारे-तारे चमक रहे थे। पूरा दिन रामपुर बुशहर में घूमने के दौरान मुझे कोई टूरिस्ट नहीं मिला। ज्यादातर लोग के लिए रामपुर गेटवे की तरह है। वे यहां आते हैं और यहां से रिकांगपिओ, कल्पा और नाको के लिए चले जाते हैं। रामपुर बुशहर बेहद छोटा लेकिन प्यारा शहर है। मैं इस जगह को हिमाचल प्रदेश की सबसे अच्छी जगहों में रखूंगा। 

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Friday, 22 July 2022

पहली हिमाचल यात्रा: दिल्ली से रामपुर बुशहर की यात्रा काफी लंबी व शानदार रही!

मैंने जब से घूमना शुरू किया है, पहाड़ों में ही सबसे ज्यादा घूमा है। पहाड़ों में इतना घूमने के बाद मैं दावे से कह सकता हूं कि अगर कहीं जन्नत है तो वो इन पहाड़ों में है। इसके बावजूद मेरे मन में एक बात कचोटती थी कि अब तक हिमाचल घूमने नहीं जा पाया हूं। मैं हिमाचल जाना चाहता था लेकिन किसी न किसी वजह से हर बार प्लान कैंसिल हो जाता था। अबकी मेरे पास मौका था तो मेरे हिमाचल जाने का प्लान बनाया और सफल भी हुआ।

मैंने अपनी इस यात्रा के बारे में कई लोगों को बताया। कुछ लोगों ने जाने के लिए हामी भर दी लेकिन कहते हैं न दोस्त तो होते ही हैं प्लान कैंसिल करने के लिए। अंत समय में ज्यादातर लोगों ने हिमाचल जाने से इंकार कर लिया। अब इस हिमाचल यात्रा को दो लोग करने वाले थे। हम दोनों लोग ही पहली बार हिमाचल जा रहे थे।

यात्रा शुरू

3 जून 2022। मैं अपने घर से दिल्ली पहुंच गया। मेरे साथ जाने वाला साथी दिल्ली में ही रहता है। हम दोनों शाम 6 बजे आईएसबीटी कश्मीरी गेट पहुंच गए। मैंने हिमाचल परिवहन की वेबसाइट से पहले ही रोडवेज में टिकट बुक कर ली थी। हम दिल्ली से रामपुर बुशहर जा रहे थे। तय समय से बस भी आ गई और हमने अपनी सीट भी पकड़ ली। शाम 6:30 बजे बस दिल्ली से चल पड़ी।

मुझे पूरा दिल्ली एक जैसा लगता है। इतने साल दिल्ली में रहने के बाद भी ये शहर मुझे अपना नहीं लगा। इस शहर से मैं दूर ही रहना पसंद करता हूं। हम दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों से आगे बढ़ते जा रहे थे। दिल्ली शहर से निकलने के बाद भी दिल्ली से निकलने में काफी समय लगता है। दिल्ली का विकास दिल्ली के आसपास भी फैला हुआ है। बातें करते-करते रात भी हो गई।

रात के बाद सुबह

रात 9 बजे बस अंबाला से पहले नीलखेड़ी में एक ढाबे पर रूकी। हाईवे पर बने इन ढाबों पर बसें रूकती तो हैं लेकिन यहां कभी खाने का मन नहीं करता है। हर सामान यहां बहुच महंगा होता है। लगभग आधे घंटे बस इस ढाबे पर रूकी रही और हम हाईवे के किनारे खड़े होकर आती-जाती गाड़ियों को देखने लगे। कुछ देर में बस चल पड़ी। हम फिर से अंधेरे रास्ते में बढ़ गई।

चंडीगढ़ बस स्टैंड।
अब नींद आने लगी थी लेकिन बस का सफर सोने कहां देता है? हम सो रहे थे लेकिन बार-बार नींद खुल जा रही थी। रात 12 बजे बस चंड़ीगढ़ पहुंची। उसके बाद कालका। कालका वही जगह है, जहां से शिमला के लिए टॉय ट्रेन चलती है। कालका के बाद एक चेक पोस्ट आता है, परवानू चेक पोस्ट। यहीं से हिमाचल प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। हिमाचल प्रदेश शुरू होते ही हरियाली शुरू हो गई। ऐसा लगा कि कंक्रीट का शहर छोड़कर नई जगह पर आ गए हों।

हिमाचल

अब तक हमारी नींद थोड़ी-थोड़ी देर में खुल रही थी लेकिन अब झटके लग रहे थे। हिमाचल प्रदेश में घुसते ही घुमावदार रास्ते शुरू हो गए। काफी देर यही सिलसिला चलता रहा। सुबह 4 बजने को थे और हमें शिमला दिखाई देने लगा था। ऐसा लग रहा था कि पहाड़ों में किसी ने लाखों जुगनू छोड़ दिए हों। रात में पहाड़ पर चलने वाली लाइटें आसमान में चमकने वाले तारों की तरह लग रही थी।

थोड़ी देर में बस शिमला पहुंच गई। हम हिमाचल प्रदेश पहली बार आए थे लेकिन अभी शिमली हमारी लिस्ट में नहीं था। हमें तो रामपुर बुशहर पहुंचना था। लगभग आधे घंटे बाद बस शिमला बस स्टैंड से चल पड़ी। शिमला से बस का ड्राइवर बदल चुका था। सुबह-सुबह शिमला में वो भीड़ नहीं थी जैसा मैंने अब तक सुन रखा था। हर बड़े शहर सुबह-सुबह शांत ही लगते हैं।

कब आएगा रामपुर?

थोड़ी देर में उजाला होने लगा था। सुबह की उजली किरण में पहली बार हिमाचल को देख रहा था। हम गोल-गोल रास्ते से बढ़े जा रहे थे। चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और दूर तक फैली हरियाली दिखाई दे रही थी। इस हरियाली के बीच मैंने हिमाचल प्रदेश में पहली बार सूर्योदय देखा। हिमाचल में सेब की खेती बहुत ज्यादा होती है, ये शिमला से बढ़ते ही समझ में आ रहा था।

दूर-दूर तक सेब के पेड़ लगे हुए थे और उन पर जाली जैसा कुछ डला हुआ था। शायद पेड़ों को कीड़ों से बचाने के लिए ऐसा किया गया हो। थोड़ी देर बाद बस नारकंडा पर रूकी। नारकंडा मेरी बकेट लिस्ट में हमेशा से रहा है लेकिन हमारी इस यात्रा में नारकंडा शामिल नहीं था। फिलहाल तो हमें रामपुर जाना था। बस 13 घंटे घंटे के बाद लग रहा था कि ये रामपुर कब आएगा?

8 बजे हमारी बस एक ढाबे पर रूकी। अब तक गोल-गोल रास्ते पर घूमते हुए दिमाग चकरा गया था। थोड़ी देर के लिए ये ब्रेक जरूरी था। ढाबे के पास में घास पर ही लोट गया। बात करने पर पता चला कि इस जगह का नाम मुर्थल है जो कुमारसैन ब्लॉक में आती है। एक मुरथल दिल्ली के पास में है जहां दिल्ली से लोग कभी-कभार खाना खाने के लिए जाते हैं।

मुर्थल से बस आगे बढ़ती गई। घुमावदार रास्ते के बाद हम सीधे रास्ते पर आ गए। हमारे बाएं तरफ सतलुज नदी बह रही थी। अब बस में लोकल लोग चढ़ रहे थे और उतर रहे थे। बस रूकने पर लोग चढ़ते या उतरते कंडक्टर लगभग हर बार एक ही आवाज देता, ताकी मार मतलब दरवाजा बंद करो। जब बस रूकती तो हम भी कहते. ताकी मार। जब हम रामपुर पहुंचे तब सुबह के 10 बज रहे थे। शहर को पार करने के बाद रामपुर बुशहर का बस स्टैंड आता है। इस छोटे-सी पहाड़ी शहर में हमें अपने लिए एक छोटा-सा कमरा खोजना था।

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