Friday, 22 July 2022

पहली हिमाचल यात्रा: दिल्ली से रामपुर बुशहर की यात्रा काफी लंबी व शानदार रही!

मैंने जब से घूमना शुरू किया है, पहाड़ों में ही सबसे ज्यादा घूमा है। पहाड़ों में इतना घूमने के बाद मैं दावे से कह सकता हूं कि अगर कहीं जन्नत है तो वो इन पहाड़ों में है। इसके बावजूद मेरे मन में एक बात कचोटती थी कि अब तक हिमाचल घूमने नहीं जा पाया हूं। मैं हिमाचल जाना चाहता था लेकिन किसी न किसी वजह से हर बार प्लान कैंसिल हो जाता था। अबकी मेरे पास मौका था तो मेरे हिमाचल जाने का प्लान बनाया और सफल भी हुआ।

मैंने अपनी इस यात्रा के बारे में कई लोगों को बताया। कुछ लोगों ने जाने के लिए हामी भर दी लेकिन कहते हैं न दोस्त तो होते ही हैं प्लान कैंसिल करने के लिए। अंत समय में ज्यादातर लोगों ने हिमाचल जाने से इंकार कर लिया। अब इस हिमाचल यात्रा को दो लोग करने वाले थे। हम दोनों लोग ही पहली बार हिमाचल जा रहे थे।

यात्रा शुरू

3 जून 2022। मैं अपने घर से दिल्ली पहुंच गया। मेरे साथ जाने वाला साथी दिल्ली में ही रहता है। हम दोनों शाम 6 बजे आईएसबीटी कश्मीरी गेट पहुंच गए। मैंने हिमाचल परिवहन की वेबसाइट से पहले ही रोडवेज में टिकट बुक कर ली थी। हम दिल्ली से रामपुर बुशहर जा रहे थे। तय समय से बस भी आ गई और हमने अपनी सीट भी पकड़ ली। शाम 6:30 बजे बस दिल्ली से चल पड़ी।

मुझे पूरा दिल्ली एक जैसा लगता है। इतने साल दिल्ली में रहने के बाद भी ये शहर मुझे अपना नहीं लगा। इस शहर से मैं दूर ही रहना पसंद करता हूं। हम दिल्ली की भीड़भाड़ वाली सड़कों से आगे बढ़ते जा रहे थे। दिल्ली शहर से निकलने के बाद भी दिल्ली से निकलने में काफी समय लगता है। दिल्ली का विकास दिल्ली के आसपास भी फैला हुआ है। बातें करते-करते रात भी हो गई।

रात के बाद सुबह

रात 9 बजे बस अंबाला से पहले नीलखेड़ी में एक ढाबे पर रूकी। हाईवे पर बने इन ढाबों पर बसें रूकती तो हैं लेकिन यहां कभी खाने का मन नहीं करता है। हर सामान यहां बहुच महंगा होता है। लगभग आधे घंटे बस इस ढाबे पर रूकी रही और हम हाईवे के किनारे खड़े होकर आती-जाती गाड़ियों को देखने लगे। कुछ देर में बस चल पड़ी। हम फिर से अंधेरे रास्ते में बढ़ गई।

चंडीगढ़ बस स्टैंड।
अब नींद आने लगी थी लेकिन बस का सफर सोने कहां देता है? हम सो रहे थे लेकिन बार-बार नींद खुल जा रही थी। रात 12 बजे बस चंड़ीगढ़ पहुंची। उसके बाद कालका। कालका वही जगह है, जहां से शिमला के लिए टॉय ट्रेन चलती है। कालका के बाद एक चेक पोस्ट आता है, परवानू चेक पोस्ट। यहीं से हिमाचल प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है। हिमाचल प्रदेश शुरू होते ही हरियाली शुरू हो गई। ऐसा लगा कि कंक्रीट का शहर छोड़कर नई जगह पर आ गए हों।

हिमाचल

अब तक हमारी नींद थोड़ी-थोड़ी देर में खुल रही थी लेकिन अब झटके लग रहे थे। हिमाचल प्रदेश में घुसते ही घुमावदार रास्ते शुरू हो गए। काफी देर यही सिलसिला चलता रहा। सुबह 4 बजने को थे और हमें शिमला दिखाई देने लगा था। ऐसा लग रहा था कि पहाड़ों में किसी ने लाखों जुगनू छोड़ दिए हों। रात में पहाड़ पर चलने वाली लाइटें आसमान में चमकने वाले तारों की तरह लग रही थी।

थोड़ी देर में बस शिमला पहुंच गई। हम हिमाचल प्रदेश पहली बार आए थे लेकिन अभी शिमली हमारी लिस्ट में नहीं था। हमें तो रामपुर बुशहर पहुंचना था। लगभग आधे घंटे बाद बस शिमला बस स्टैंड से चल पड़ी। शिमला से बस का ड्राइवर बदल चुका था। सुबह-सुबह शिमला में वो भीड़ नहीं थी जैसा मैंने अब तक सुन रखा था। हर बड़े शहर सुबह-सुबह शांत ही लगते हैं।

कब आएगा रामपुर?

थोड़ी देर में उजाला होने लगा था। सुबह की उजली किरण में पहली बार हिमाचल को देख रहा था। हम गोल-गोल रास्ते से बढ़े जा रहे थे। चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और दूर तक फैली हरियाली दिखाई दे रही थी। इस हरियाली के बीच मैंने हिमाचल प्रदेश में पहली बार सूर्योदय देखा। हिमाचल में सेब की खेती बहुत ज्यादा होती है, ये शिमला से बढ़ते ही समझ में आ रहा था।

दूर-दूर तक सेब के पेड़ लगे हुए थे और उन पर जाली जैसा कुछ डला हुआ था। शायद पेड़ों को कीड़ों से बचाने के लिए ऐसा किया गया हो। थोड़ी देर बाद बस नारकंडा पर रूकी। नारकंडा मेरी बकेट लिस्ट में हमेशा से रहा है लेकिन हमारी इस यात्रा में नारकंडा शामिल नहीं था। फिलहाल तो हमें रामपुर जाना था। बस 13 घंटे घंटे के बाद लग रहा था कि ये रामपुर कब आएगा?

8 बजे हमारी बस एक ढाबे पर रूकी। अब तक गोल-गोल रास्ते पर घूमते हुए दिमाग चकरा गया था। थोड़ी देर के लिए ये ब्रेक जरूरी था। ढाबे के पास में घास पर ही लोट गया। बात करने पर पता चला कि इस जगह का नाम मुर्थल है जो कुमारसैन ब्लॉक में आती है। एक मुरथल दिल्ली के पास में है जहां दिल्ली से लोग कभी-कभार खाना खाने के लिए जाते हैं।

मुर्थल से बस आगे बढ़ती गई। घुमावदार रास्ते के बाद हम सीधे रास्ते पर आ गए। हमारे बाएं तरफ सतलुज नदी बह रही थी। अब बस में लोकल लोग चढ़ रहे थे और उतर रहे थे। बस रूकने पर लोग चढ़ते या उतरते कंडक्टर लगभग हर बार एक ही आवाज देता, ताकी मार मतलब दरवाजा बंद करो। जब बस रूकती तो हम भी कहते. ताकी मार। जब हम रामपुर पहुंचे तब सुबह के 10 बज रहे थे। शहर को पार करने के बाद रामपुर बुशहर का बस स्टैंड आता है। इस छोटे-सी पहाड़ी शहर में हमें अपने लिए एक छोटा-सा कमरा खोजना था।

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Saturday, 16 July 2022

नैना पीक: उत्तराखंड की इस चोटी से नजारा देखकर, मेरे मुंह से निकला ‘वाह’

नैनीताल में टिफिन टॉप का ट्रेक करने के बाद अगले दिन हमें सिर्फ एक ही जगह पर जाना था, नैना देवी पीक। नैना पीक नैनीताल की सबसे ऊंची जगह है। इस चोटी से पूरा नैनीताल दिखाई देता है। नैना पीक समुद्र तल से 2,615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस पीक तक जाने के लिए ट्रेकिंग करनी पड़ती है। पहले मैं और मेरा दोस्त दोनों साथ में जाने वाले थे लेकिन अब मुझे अकेले ही जाना था। मैं सुबह-सुबह जल्दी नैना पीक के लिए निकल पड़ा।

नैनाताल से लगभग 2-3 किमी. दूर एक जगह पड़ती है, टांगे की बैन। इसी जगह से नैना पीक का ट्रेक शुरू होता है। मैंने उस प्वाइंट तक पहुंचने के लिए ही स्कूटी ली थी। मैं स्कूटी से कुछ ही देर में उस जगह पर पहुंच गया। वहां पर छोटी-सी पुलिस चौकी थी और उत्तराखंड टूरिज्म का एक बोर्ड लगा हुआ था। वहीं से ऊपर की ओर रास्ता गया था। मैंने वहीं पर अपनी स्कूटी पार्क की और निकल पड़ा नैना पीक का ट्रेक करने।

बढ़े चलो

मैं आराम-आराम से चला जा रहा था। रास्ता पूरी तरह से खाली था। चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे। जिस दुकान से हमने स्कूटी रेंट पर ली थी। दुकान संचालक ने हमें बताया था कि नैना पीक को पहले चाइना पीक के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बताया कि पहले इस पीक से चाइना दिखाई देता था इसलिए इसे चाइना पीक के नाम से जाना जाता है।

रास्ता पगडंडी वाला था और चौड़ाई में भी काफी छोटा था। जंगल वाला ये रास्ता इतना सुनसान था कि मझे अपने पैरों की आवाज भी सुनाई दे रही थी। अकेला था तो बात करने के लिए भी कोई नहीं था। सोलो ट्रिप में कई बार अकेले होते हैं लेकिन ये अकेलापन मुझे अभी तक अखरा नहीं है। थोड़ी देर में मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी। 7-8 लोगों का एक ग्रुप पीछे-पीछे चला आ रहा था।

ये हसीं वादियां

रास्ते में जगह-जगह बुरांश के फूल लगे हुए थे। एक जगह से मैंने शार्टकट लेने की कोशिश की। वहां से मुझे सुंदर नजारा देखने को तो मिला लेकिन फिसलन वाले रास्ते पर चलने में काफी परेशानी हुई। यहां से दूर-दूर तक हरियाली और एक के पीछे एक पहाड़ दिखाई दे रहे थे। मैं फिर से पगडंडी वाले रास्ते पर चलने लगा। कुछ लोग ऊपर से नीचे की ओर आते हुए दिखाई दिए।

थोड़ी ही दूर आगे बढ़ा तो दो लोग रास्ते पर बैठे हुए दिखाई दिए। उन्होंने बताया कि वो भी ट्रेक करने गए थे लेकिन उनको पीक नहीं मिली और अब वो लौट रहे हैं। बाद में कुछ लोग और मिले जो काफी दूर होने वजह से लौट रहे थे। अब मेरे दिमाग में भी वही चलने लगा कि मेरे साथ भी ऐसा न हो जाए। मुझे नैना पीक को किसी भी हालत में देखना था।

आप सही रास्ते पर हैं

रास्ता थोड़ा कठिन होता जा रहा था लेकिन अब तक शरीर और पैरों को आदत हो चुकी थी। रास्ते पर कुछ लोग और मिले जो नैनी पीक का ट्रेक करके लौट रहे थे। उन्होंने कहा, आप सही रास्ते पर हैं। अभी 2-3 किमी. दूर है पीक। कुछ और आगे चला तो मुझे दो रास्ते मिले। आसपास कोई था भी नहीं जिससे सही रास्ता पूछ जा सके। मैं ऊंचाई वाले रास्ते की ओर बढ़ने लगा। घूमते हुए कई बार आपको ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं। कभी ये सही भी होते हैं और कभी-कभी गलत हो जाते हैं।

चलते-चलते काफी देर हो चुकी थी। पसीना भी काफी आ रहा था लेकिन आसपास का नजारा सुकून दे रहा था। नैनाताल की भीड़ और शोर से दूर यहां सुकून था। कुछ देर बाद फिर से दो रास्ते मिले। बार-बार ये रास्ते मेरी परीक्षा ले रहे थे। यहां एक खंबा लगा हुआ था जिस पर चाइना पीक लिखा हुआ था और तीर का निशान बना हुआ था। मैं उसी रास्ते पर बढ़ गया।

दूर डगर है

अब रास्ते पर काफी बढ़े-बढ़े पत्थर मिल रहे थे हालांकि उनसे काफी परेशानी हो नहीं रही थी। कुछ देर ऐसे चलने के बाद एक जगह प्लास्टिक की बोतल और पॉलिथीन डली हुई थी। पहाड़ों में ऐसा देखकर खराब लगता है। हम ऐसा करके प्रकृति को और नुकसान पहुंचा रहे होते हैं। अगर आप ट्रेक पर अपने साथ पॉलिथीन लेकर आते हैं तो आपकी जिम्मेदारी है कि उसे वापस भी लेकर जाएं।

हर मोड़ के बाद मुझे ऐसा लगता कि अब नैना पीक आने वाली है लेकिन हर बार एक लंबा रास्ता दिखाई देने लगता। कच्चे रास्ते पर सामने से एक व्यक्ति आते हुए दिखाई दिया। बात करने पर पता चला कि नैना पीक अब दूर नहीं है, 5 मिनट में पहुंचा जा सकता है। ये सुनते ही मेरे कदमों में तेजी आ गई। कुछ देर बाद मैं एक जगह पर पहुंचा जहां एक दो कच्चे घर बने हुए थे।

नैना पीक

यहां एक जगह लिखा हुआ था, पुराना नाम चाइना पीक और नया नाम के सामने नैना पीक लिखा हुआ था। वहीं एक व्यक्ति कुछ काम कर रहा था। उन्होंने बताया कि यही नैना पीक है, आगे व्यू प्वाइंट है। मैं उस व्यू प्वाइंट को देखने के लिए आगे बढ़ गया। यहां चारों तरफ चीड़ और देवदार के पेड़ लगे हुए थे। 100 मीटर चलने के बाद मैंने जो नजारा देखा उसके बाद मेरे मुंह से सिर्फ वाह निकला।

वाकई में नैना पीक से नैनीताल का खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा था। यहां से पूरा नैनीताल और नैनी लेक दिखाई दे रही थी। चारों तरफ हरियाली और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। इस नजारे को देखकर मेरी आंखे थक नहीं रही थी। काफी देर तक यहां बैठने के बाद मैं वापस लौटने लगा। अब मुझे एक और नये सफर पर निकलना था। बिना नैनी पीक ट्रेक के नैनीताल की यात्रा को अधूरा ही माना जाएगा।

टिफिन टॉप ट्रेक की यात्रा यहां पढ़ें।

Wednesday, 6 July 2022

नैनीताल का बेहद खूबसूरत टिफिन टॉप ट्रेक, देखने को मिले बेहद खूबसूरत नजारे

नैनीताल की यात्रा अब तक हमारे लिए शानदार रही थी। हमने अपनी स्कूटी से आज कैंची धाम, भीमताल, नौकुचियाताल, कमलताल और फिर सातताल गए। सातताल के बाद हम नैनीताल लौट आए थे। अभी शाम के 5 बजे थे और हमें गाड़ी लौटानी थी 8 बजे। अब या तो हम गाड़ी अभी लौटा देते और फिर पैदल घूमते या फिर 8 बजे तक स्कूटी से घूमते। तब हमने टिफिन टॉप का ट्रेक करने के बारे में सोचा।

हमें ये तो पता था कि टिफिन टॉप नैनीताल में ही है लेकिन कहां है ये पता नहीं थी। हमने नैनीताल लेक के पास पूछते हुए ग्राउंड के पास पहुंच गए, जहां क्रिकेट खेला जा रहा था। हमने वही खड़े एक पुलिस वाले से टिफिन टॉप का रास्ता पूछा। अब हम छोटी गलियों से स्कूटी लेकर चढ़े जा रहे। चढ़ाई इतनी खड़ी थी कि अगर हमारी स्कूटी में ब्रेक अच्छे नहीं होते तो लुढ़कते हुए वापस नैनीताल पहुंच जाते।

ट्रेक शुरू

कुछ देर बाद हम ऐसी जगह पर पहुंचे। जहां से टिफिन टॉप का ट्रेक शुरू होता है। वहां पर टिफिन टॉप का बोर्ड भी लगा हुआ था। टिफिन टॉप का ट्रेक 3-4 किमी. का है। ये बात हमें उस समय पता नहीं थी। शाम होने लगी थी, हमें लग रहा था कि लौटते-लौटते अंधेरे ना हो जाए। फिर भी टिफिन टॉप ट्रेक के रास्ते पर थे। ट्रेक में हमारे साथ कोई नहीं था। शायद शाम होने की वजह से कोई भी यहां नहीं था।

पत्थरों वाला ये ट्रेक मुझे छोटा और आसान ही लग रहा था लेकिन जिन्होंने पहले ट्रेक नहीं किया उनको इसमें भी परेशानी होगी। कुछ ऐसा ही मेरे साथी के साथ हो रही थी। हम आराम-आराम से बात करते हुए बढ़े जा रहे थे। रास्ता पूरा सुनसान था और खूबसूरत भी था। धूप हम तक आ तो नहीं रही थी लेकिन दिखाई दे रही थी कि अब तक सनसेट हुआ नहीं है।

जंगल जंगल



ट्रेक काफी हरा-भरा था। चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे और बहुत सारे फूल भी लगे हुए थे। भीड़ न होने की वजह से यहां इतनी शांति थी कि पंक्षियों की चहचहाहट को आराम से सुना जा सकता था। उसी आवाज तो सुनते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। तभी पीछे से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। तब हमने चैन की सांस ली कि इस ट्रेक में हम अकेले नहीं हैं।

अब हम तीन लोग टिफिन टॉप पर पहुंचने के लिए इस सुनसान रास्ते पर बढ़े जा रहे थे। हम सब यही सोच रहे थे कि अभी कितना दूर है? मुझे छोड़कर बाकी दोनों लोग यहां से वापस लौटने के पक्ष में थे लेकिन मैं तो टिफिन टॉप को देखे बिना वापस लौटने वाला नहीं था। तभी सामने से एक स्थानीय महिला सिर पर लकड़ियां रखकर ऊपर की ओर से आते दिखी। हमने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि आप आ गए हैं, बस थोड़ा दूर है।

खूबसूरत नैनीताल

महिला की बात सुनकर हम सब बढ़े जा रहे थे। अब तक चढ़ाई थोड़ी खड़ी हो गई थी लेकिन चढ़ने में बहुत ज्यादा कठिनाई नहीं हो रही थी। कुछ देर बाद हमें एक जगह पर दुकानें दिखीं। हम समझ गए कि अपनी मंजिल पर पहुंचने वाले हैं। यहां से कुछ सीढ़ियां ऊपर गईं थी और वही टिफिन टॉप था। टिफिन टॉप से क्या खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा था।

टिफिन टॉप से पूरा नैनीताल दिखाई दे रहा था। चारों तरफ हरे-भरे पहाड़ और बीच में कंक्रीट के घर बने हुए थे। अभी भी सनसेट नहीं हुआ था। हम टिफिन टॉप के ऊंचे पहाड़ पर चढ़ गए। यहां से नजारा भी खूबसूरत था और हवाएं भी तेज चल रही थी। हमने यहां से बेहद खूबसूरत सूर्यास्त देखा। नैनीताल की मेरी यात्रा शानदार होते जा रही थी। कुछ देर यहां ठहरने के बाद हमने वहां दुकान पर मैगी खाई।

शाम हो चली थी और अब हमें टिफिन टॉप से नीचे लौटना था। टिफिन टॉप से हम नीचे उतरने लगे और बातों ही बातों में कब नीचे आ गए, पता ही नहीं चला। कुछ देर बाद अब हम नैनीताल लेक के सामने थे। टिफिन टॉप के ट्रेक के बाद नैनीताल का सफर शानदार हो गया था। ऐसे ट्रेक यात्राओं को और भी शानदार बना देते हैं।

नैनीताल के इस सफर में अब एक और शानदार जगह जुड़ना बाकी थी। हमने उस जगह पर जाने के लिए स्कूटी अगले दिन के लिए भी ले ली। हमने स्कूटी लेकर अपने होटल आए और वहीं पर लगा दी। अब हमें इस खूबसूरत यात्रा पर जाने के लिए अगली सुबह का इंतजार करना था।

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