Saturday, 19 February 2022

चंदेरी: उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश तक का सफर काफी लंबा लेकिन अच्छा रहा

घुमक्कड़ी का एक अजीब ही दस्तूर होता है। हमको जो जगह अजनबी लगती है, वहाँ पहुँचने के कुछ घंटों के बाद वो जगह, वहाँ की गलियां सब कुछ अपना लगने लगता है। हम उस जगह, गांव या कस्बे में ऐसे बेपरवाह चलते हैं जैसे हम यहाँ सालों से रह रहे हैं। घूमते हुए ऐसे ही कई जगहें अपनी हो जाती हैं। इन जगहों से पहली बार मिलना अजीब होता है लेकिन उत्सुकता भी होती है। मैंने कुछ दिन पहले ऐसी ही एक शानदार जगह की यात्रा की। जगह का नाम है, चंदेरी।

मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा शहर है, चंदेरी। हाल ही में मैंने इस जगह के बारे में सुना था। तब से इस जगह पर जाने का बड़ा मन था। किसी न किसी कारण से नहीं जा पा रहा था। फिर आया 2022 का फरवरी महीना और तारीख 11 फरवरी। मेरे घर से चंदेरी लगभग 250 किमी. दूर है। पहले हम दो लोग जाने वाले थे इसलिए स्कूटी से जाने का प्लान था लेकिन आखिरी वक्त में मैं अकेला रह गया। उसके बाद मैं बस से चंदेरी की यात्रा करने का मन बनाया।

5:40 की बस

11 फरवरी को सुबह 5 बजे उठा। मम्मी मुझसे भी पहले उठ चुकी थीं। उन्होंने रास्ते के लिए खाना बना दिया था। घर से कहीं जाओ तो मम्मी मना करने के बाद भी खाना बना ही देती हैं। अपना छोटा-सा पिठ्ठू बैग लेकर घुप्प अंधेरे में बस वाली जगह पर पहुँच गया। मैंने खिड़की वाली सीट पकड़ ली। बस में कुछ लोग थे और कुछ लोग मेरे बाद आए। 5:40 होते ही रोडवेज बस अंधेरे में चल पड़ी।

लोग इतने शांत थे कि बस के पुर्जे-पुर्जे की आवाज सुनाई दे रही थी। बस को खस्ता हालत में माना जा सकता है लेकिन हमें तो इसकी आदत है। जब तक उजाला नहीं हुआ, हमें बाहर का कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर बाद उजाला भी हो गया। बस हरे-भरे खेत और गांव के बीच से गुजरती जा रही थी। मेरा दिमाग तो तब झन्ना गया जब मुझे कुछ बदबू आई। मुड़कर देखा तो पीछे वाली सीट पर दो लोग बीड़ी पी रहे थे। कुछ देर बाद बीड़ी फंकना बंद हो गया और मैं फिर से बाहर देखने लगा। लगभग 8 बजे बस ने झांसी पहुँचा दिया।

ललितपुर के लिए बस 

झांसी।
झांसी से मुझे अब ललितपुर जाना था। ललितपुर बस या ट्रेन दोनों से जाया जा सकता है लेकिन इस समय कोई ट्रेन नहीं थी इसलिए बस से जाना मुझे ठीक लगा। झांसी बस स्टैंड काफी बड़ा है। मैं कभी ललितपुर गया नहीं था इसलिए बस का कुछ आइडिया नहीं था। पता किया तो अभी बस लगी नहीं थी। मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया था इसलिए पास की दुकान से समोसा रायता ले लिया। रायते के साथ समोसा मेरा पसंदीदा नाश्ता है।

थोड़ी देर में बस आ गई और मैंने ड्राइवर के पास वाली सीट पकड़ ली। विधानसभा चुनाव की वजह से रोडवेज बस चुनाव में लगी हुई थी इसलिए बस में भीड़ भी ज्यादा थी। 8:55 पर बस ललितपुर के लिए चल पड़ी। झांसी के जेल चौराहे से होते हुए बबीना की ओर बढ़ चली। बस हाईवे पर दौड़ रही थी। सड़क के दोनों तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही थी। मुझे बस में खिड़की वाली सीट पर बैठना पसंद है। सबसे आगे कम ही बैठा था। यहाँ से बस का सफर और भी अच्छा लग रहा था।

फिर से बस...


रास्ते में एक टोल प्लाजा भी मिला। रास्ते में बबीना, तालबेहट और बंसी जैसी जगहें मिलीं। दो घंटे के सफर के बाद मैं ललितपुर बस स्टैंड पर पहुँच चुका था। अब यहाँ से चंदेरी के लिए बस लेनी थी। ललितपुर से चंदेरी लगभग 40 किमी. की दूरी पर है। लोगों से पता किया तो चंदेरी जाने वाली बस की जगह बता दी लेकिन वहाँ बस नहीं थी। बात करने पर पता चला कि थोड़ी देर में बस आएगी।

फरवरी के महीने में भी तेज धूप थी। थोड़ी देर बाद चंदेरी की बस आ गई। मैंने फिर से ड्राइवर के बगल वाली सीट पकड़ ली। इस बस में खूब भीड़ थी। लग ही नहीं रहा था कि यहाँ कोरोना जैसी कोई चीज है। थोड़ी देर बाद बस ललितपुर को छोड़कर चंदेरी की ओर बढ़ गई थी। रास्ता सुंदर लग रहा था, वही खेत और हरियाली। 

उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश


रास्ते में एक जगह मिली राजघाट। राजघाट में बेतवा नदी पर बांध भी बना हुआ है। नदी के इस पार उत्तर प्रदेश है और पुल पार करते ही मध्य प्रदेश शुरू हो जाता है। मध्य प्रदेश में घुसते ही नजारे बदलने लगे थे। सड़क के दोनों तरफ हरियाली अब भी थी लेकिन समतल इलाके की जगह छोटे-छोटे पहाड़ दिखाई देने लगे थे। रोड भी काफी सपाट थी। बस अपनी स्पीड से बड़ी जा रही थी।

थोड़ी देर बाद चंदेरी का बोर्ड दिखाई दिया। पूछने पर बगल में बैठे आदमी ने दूर तलक दिखने वाली पहाड़ी की ओर इशारा किया और कहा, उस पहाड़ी के पार चंदेरी। मेरे मन में चंदेरी की ओरछा जैसी छवि थी। उस छवि को बरकरार रखने या तोड़ने के लिए चंदेरी जा रहा था। थोड़ी देर बाद मध्य प्रदेश टूरिज्म का ताना बाना होटल दिखाई दिया। घूमते हुए ऐसे आलीशान होटलों में ठहरना मुझे पैसों की बर्बादी लगती है। मुझे तो बस एक छोटा-सा कमरा चाहिए जिसमें रात को नींद ले सकूं।

चंदेरी

थोड़ी देर बाद चंदेरी आ गया। चंदेरी में एक तरफ ऊंची पहाड़ी दिखाई दे रही थी जिस पर किला जैसा कुछ बना हुआ था। चंदेरी में कई जगह पर सवारियों को उतारने के बाद बस चंदेरी के नये बस स्टैंड पर पहुँच गई। मैंने अपने लिए पहले से एक सस्ता होटल खोज लिया था जो बस स्टैंड से 1 किमी. था। लोगों से श्रीकुंज होटल का रास्ता पता किया और पैदल ही चल दिया।


पैदल चलने का एक फायदा ये था चंदेरी को जानने में आसानी होगी। कहीं पढ़ा था कि किसी नई जगह को अच्छे-से जानना है तो उस जगह को पैदल नापें। पहली नजर में चंदेरी काफी विकसित और बड़ा लग रहा था। लोगों और गाड़ियों की भीड़ भी बहुत थी। कुछ देर बाद मैं श्रीकुंज होटल के सामने खड़ा था। होटल काफी बड़ा था। रिसप्शेन पर पता किया तो कमरा 400 से लेकर 2800 रुपए तक का था। मैंने 400 वाला रूम देखा और बात पक्की कर दी।

होटल के कमरे में टीवी था लेकिन चल नहीं रहा था, मुझे जरूरत भी नहीं था। बाकी मेरे जरूरत की सारी चीजें कमरे में थीं। घर से खाना लाया था तो उसे खाया। चंदेरी को घूमने जाने का मन था लेकिन लंबे सफर की वजह से सिर दर्द हो रहा था। दिमाम में कुछ गुणा भाग किया और थोड़ी देर के लिए लेट गया। अभी तो मध्य प्रदेश के इस ऐतिहासिक और पुराने शहर में सिर्फ एंट्री हुई थी। इस शहर का गलियां, किले, महल और बावड़ियों को देखना था।

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Friday, 4 February 2022

सिरपुर: इस छोटी सी जगह ने मेरी छत्तीसगढ़ की यात्रा को यादगार बना दिया

कुछ जगहें ऐसी होती हैं जो पहली नजर में ही भा जाती हैं। एक यात्री के तौर पर मैं किसी जगहों को लेकर पहले से कोई धारणा नहीं बनाता हं लेकिन देखने के बाद उस जगह के बारे में विचार जरूर करता हूं। कभी-कभी घूमने से ज्यादा उस जगह पर बिताये अनुभवों के बारे में सोचने से अच्छा महसूस होता है। छत्तीसगढ़ की जितनी भी जगहों को मैंने देखा है। उनमें से सिरपुर की यात्रा ने सबसे ज्यादा छाप छोड़ी है।

छत्तीसगढ़ के राजिम और चंपारण को देखने के बाद मैं वापस भिलाई आ गया था। मुझे कुछ दिनों में वापस अपने घर लौटना था। मैं चाहता था कि उससे पहले सिरपुर जरूर जाऊं। सिरपुर के बारे में मुझे एक दोस्त ने बताया था। मैंने इंटरनेट पर सिरपुर के बारे में पता किया तो देखने लायक जगह लगी। तब से मेरे दिमाग में सिरपुर की यात्रा का प्लान चलने लगा। रायपुर में मेरा एक दोस्त रहता था, उससे बात की तो वो भी चलने को तैयार हो गया।

लोकल ट्रेन

लोकल ट्रेन से रायपुर5 जनवरी 2022। यही वो तारीख थी जब मुझे भिलाई से रायपुर जाना था। भिलाई से रायपुर जाने के कई साधन थे लेकिन मैं ट्रेन से जाना चाहता था। भिलाई में 3-4 रेलवे स्टेशन हैं। जहां मैं रूका हुआ था, वहां से भिलाई नगर रेलवे स्टेशन पास में था। अगली सुबह 7 बजे मैं भिलाई नगर रेलवे स्टेशन पर था। पूरा स्टेशन कोहरे से ढंका हुआ था। कोहरे की वजह से रेलवे स्टेशन खूबसूरत लग रहा था। कुछ देर बाद लोकल ट्रेन आ गई और दो मिनट बाद चल भी पड़ी।

इससे पहले मैं बंगाल की लोकल ट्रेन में बैठा था। शायद सुबह होने की वजह से ट्रेन में भीड़ कम थी। ट्रेन अपनी गति से चली जा रही थी और मैं बाहर के नजारे को देख रहा था। मैंने रायपुर के अपने दोस्त तेज को कॉल लगाया लेकिन उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था। मैं फिर कॉल लगाया, फिर वही जवाब मिला। मैं परेशान हो गया कि कॉल क्यों नहीं लग रहा है? व्हॉटसएप पर भी मैसेज और कॉल किया लेकिन बात नहीं हुई।

आगे कैसे जाऊंगा?

रायपुर।
तेज से बात होने की वजह से मैंने सिरपुर जाने के लिए दूसरे साधन के बारे में सोचा नहीं था। तेज से बात नहीं हो पा रही थी इसलिए मैंने इंटरनेट पर बस के बारे में पता किया लेकिन कुछ खास मिला नहीं। ट्रेन महासमुंद तक जा रही थी लेकिन वो दिन में थी। मैं तेज को बार-बार कॉल लगाये जा रहा था। मैंने सोच लिया था कि रायपुर पहुंचने के बाद भी अगर तेज का कॉल स्विच ऑफ आया तो बस अड्डा चला जाऊंगा।

भिलाई से रायपुर पहुंचने में 1 घंटे का समय लगा। रेलवे स्टेशन से बाहर आकर मैंने परेशान मन से तेज को कॉल लगाया और इस बार मुझे घंटी सुनाई दे रही थी। घंटी की आवाज सुनकर अलग ही खुशी मिली। तेज से बात हुई और उसने कुछ देर इंतजार करने को बोला। कुछ देर बाद तेज की मोटरसाइकिल पर हम दोनों रायपुर की सड़कों पर थे। तेज मुझे रायपुर के बारे में बता रहा था और मुझे 2018 की छत्तीसगढ़ की यात्रा याद आ रही थी। कुछ देर बाद में तेज के ऑफिस में था।

रायपुर से दूर

सिरपुर के रास्ते में।
तेज ने कुछ दिन पहले ही अपना नया दफ्तर खोला था। तेज के ऑफिस को देखने और बाकी काम में 1 घंटे का समय लग गया। कुछ देर बाद हम रायपुर से दूर एक सफर पर चल पड़े। रायपुर से निकलने में ही काफी समय लग गया। जब हम हाईवे पर आये तो तेज हवा से बातें करने लगा। तेज मोटरसाइकिल तेज चला रहा था और मेरे बाल खराब हो रहे थे।

हाईवे के किनारे वाले नजारों को देखते हुए हम बढ़े जा रहे थे। कुछ देर बाद हम आरंग पहुंच गये। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था इसलिए एक दुकान पर रूके। यहां हमने दुकान वाले को समोसा और कचौड़ी के लिए बोल दिया। तेज ने बताया कि आरंग एक ऐतहासिक जगह है। भगवान कृष्ण ने ऋषि का वेश धारण करके यहां के राजा से अपने शेर के लिए उनके बेटे का मांस मांगा था। राजा ने अपने बेटे का सिर काटकर शेर के आगे डाल दिया था। जिसके बाद भगवान कृष्ण ने उनके बेटे का जिंदा कर दिया था। समोसा और कचौड़ी के लाजवाब स्वाद ने इस सफर को और भी शानदार बना दिया।


सिरपुर

कुछ देर बाद हम फिर से अपनी मंजिल की ओर बढ़े जा रहे था। रास्ते में एक पुल मिला। पुल के दोनों तरफ दूर तक महानदी दिखाई दे रही थी हालांकि नदी में पानी बहुत ज्यादा नहीं था। कुछ देर बाद हमने हाईवे को छोड़कर गांवों वाला रास्ता पकड़ लिया। सड़क के दोनों तरफ खूबसूरत जंगल भी मिल रहा था जो वाकई में सुंदर लग रहा था। काफी देर बाद हमें सिरपुर का बोर्ड दिखाई दिया। कुछ ही मिनटों बाद हम सिरपुर के चौराहे पर खड़े थे।

सिरपुर का चौराहा।
पहली नजर में सिरपुर बिल्कुल छोटी-सी जगह लगा। ऐसा लगा कि कोई सिरपुर कोई गांव हो। आगे बढ़े तो समझ में भी आ गया कि सिरपुर एक गांव ही है। हम दायीं तरफ चल पड़े। सड़क के दोनों तरफ कई पुरातत्विक साईट दिखाईं दे रही थीं। जहां सिरपुर खत्म हुआ, हमने उसके सबसे पास वाली जगह को देखने को पक्का किया।

लक्ष्मण मंदिर

लक्ष्मण मंदिर।
हम सबसे पहले लक्ष्मण मंदिर को देखने जा रहे थे। मंदिर परिसर के बायीं तरफ टिकट घर था। 25 रुपए का टिकट लेने के बाद आगे बढ़े तो तेज को अपने गांव का दोस्त मिल गया। वो इसी जगह पर काम करता है। कुछ देर बातें करने के बाद हम मंदिर को देखने के लिए बढ़ गए। ईंटों से बने इस लक्ष्मण मंदिर को महान पाण्डु वंशीय शासक हर्षगुप्त की पत्नी वासटा ने अपने पति की याद में 6वीं शताब्दी में बनवाया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति है।नागर शैली में बनाया गया यह मंदिर भारत का पहला ऐसा मंदिर माना जाता है, जिसका निर्माण लाल ईंटों से हुआ था। लक्ष्मण मंदिर की विशेषता है कि इस मंदिर में ईंटों पर नक्काशी करके कलाकृतियाँ निर्मित की गई हैं, जो बेहद खूबसूरत है। 12वीं शताब्दी में सिरपुर में आए विनाशकारी भूकंप में पूरा श्रीपुर नष्ट हो गया था लेकिन यह लक्ष्मण मंदिर जस का तस रहा।

हमारे गाइड।
हमें यहां एक गाइड मिले जो काफी बुजुर्ग मिले। उन्होंने बताया कि वो आधिकारिक रूप से प्रशिक्षित गाइड नहीं है लेकिन उनके पिताजी गाइड थे। उन्होंने बताया कि ये मंदिर जंगल में छिपा हुआ था। पहले यहां सिर्फ जंगल हुआ करता था। मंदिर में ताला लगा रहता है । उन्होंने बताया कि एक बार मंदिर की मूर्तियां चोरी हो गईं थी इसलिए अब ताला लगा रहा था। मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी थी।

म्यूजियम

संग्रहालय।
लक्ष्मण मंदिर परिसर में म्यूजियम भी है। गाइड अंकल ने बताया कि इस म्यूजियम की मूर्तियां खुदाई में मिली थीं। संग्रहालय में बहुत सारी मूर्ति थी। महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, विष्णु, शिव समेत अनगिनत देवी-देवताओं की मूर्ति इस म्यूजियम में देखने को मिलीं। दो बड़े-बड़े कमरे में ऐसे ही मूर्तियां रखी हुई थी। एक कमरे में कई शिवलिंग रखे हुए थे। लक्ष्मण मंदिर परिसर काफी बड़ा है। मंदिर परिसर में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी। 

राम मंदिर

राम मंदिर।
कुछ देर में हम लक्ष्मण मंदिर परिसर के बाहर थे। सिरपुर चौराहे की तरफ बढ़े तो हमें एक और पुरातात्विक जगह दिखी। बाहर बोर्ड पर राम मंदिर लिखा हुआ था। अच्छी बात ये थी कि अब हमें किसी और जगह को टिकट नहीं लेना था। इस मंदिर को 7वीं शताब्दी में बनवाया गया था लेकिन हमें मंदिर की जगह सिर्फ खंडहर देखने को मिला। 2003-04 की खुदाई में ये मंदिर मिला था। राम मंदिर का चबूतरा बना हुआ था लेकिन दीवारें टूटी हुई थी। राम मंदिर को देखकर हम आगे बढ़ गये।

राम मंदिर के पास में ही बौद्ध विहार है। इस जगह पर बौद्ध धर्म से संबंधित कई जगहें हैं। कुछ देर में हम बौद्ध विहार में थे। इन जगहों को देखकर लग रहा था कि हम अतीत के गलियारे में गोते लगा रहे हैं। कभी-कभी हमें अपना इतिहास हैरान कर देता है। मैं इतिहास का विद्धार्थी नहीं रहा हूं लेकिन शुरू से ही इतिहास में दिलचस्पी रही है। मुझे इतिहास की किताबें भी पसंद हैं और ऐसी जगहों पर आना भी अच्छा लगता है।

बुद्ध विहार

बुद्ध विहार।
बुद्ध विहार में प्रवेश करते ही सामने टीन की चद्दर के नीचे कुछ संरचनाएं बनी हुईं थीं। ये संरचना छतिग्रस्त तो थी लेकिन काफी कुछ बना हुआ भी था। बुद्ध विहार के इस गेट पर बहुत सारी मूर्तियां उकेरी गईं थीं। गेट के अंदर सामने महात्मा बुद्ध की बड़ी-सी मूर्ति रखी हुई थी। बीच में बहुत सारे खंभे बने हुए थे जो टूटे हुए थे। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां कभी मंदिर हुआ करता होगा। बुद्ध विहार का आर्किटेक्चर काफी अच्छा है। खंभों पर बनी नक्काशी तो कमाल की है।

बुद्ध विहार में इसी प्रकार की 4 संरचनाएं हमने देखीं। टीन की चद्दर के नीचे वाली संरचना को छोड़ दें तो बाकी संरचनाएं ज्यादा ही क्षतिग्रस्त हैं। एक संरचना में तो सिर्फ छोटे-छोटे कमरें हैं। इन दोनों से दूर एक संरचना में बुद्ध की बड़ी-सी मूर्ति है और सामने छोटे-छोटे खंभे दिखाई देते थे। ऐसी जगहों को देखकर अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि यहां क्या हुआ करता होगा? हालांकि नोटिस बोर्ड पर इस जगह के बारे में काफी जानकारी मिलती है।ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग सिरपुर आए थे। उन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत में सिरपुर का वर्णन करते हुए लिखा है कि 'दक्षिण कोसल की राजधानी में सौ संघाराम थे। इस क्षेत्र का राजा हिंदू था और यहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाता था। यहां सोने-चांदी के गहने बनाने के सांचे, अस्पताल, बंदरगाह आदि के अवशेष मिले हैं।

2003 में खुदाई के दौरान ये बुद्भ स्थल सबके सामने आया था। बौद्ध विहार सिरपुर के राम मंदिर के पास में ही है। सिरपुर के बौद्ध स्थल को दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है। इस बौद्ध विहार का निर्माण छठवीं शताब्दी में सोमवंशी शासक तीवरदेव के समय में हुआ था। इसे तीवरदेव बौद्ध बिहार के नाम से जाना जाता है। इस बौद्ध बिहार में कई संरचनाएं और मूर्तियां हैं। बुद्ध विहार में प्रवेश करते ही सामने टीन की चद्दर के नीचे कुछ संरचनाएं बनी हुईं थीं। ये संरचना छतिग्रस्त तो थी लेकिन काफी कुछ बना हुआ भी था। बुद्ध विहार के इस गेट पर बहुत सारी मूर्तियां उकेरी गईं थीं। गेट के अंदर सामने महात्मा बुद्ध की बड़ी-सी मूर्ति रखी हुई थी। बीच में बहुत सारे खंभे बने हुए थे जो टूटे हुए थे। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां कभी मंदिर हुआ करता होगा। बुद्ध विहार का आर्किटेक्चर काफी अच्छा है। खंभों पर बनी नक्काशी तो कमाल की है।

गंधेश्वर महादेव मंदिर

नदी किनारे बना मंदिर।
तेज का बचपन इसी जगह पर बीता है इसलिए वो इस जगह को अच्छे से जानता है। वो मुझे इस जगह के बारे में बता रहा था। बौद्ध विहार के बाद हम नदी किनारे एक पेड़ के नीचे रुके। उस जगह के बारे में और सामने बनी यज्ञशाला के बारे में कुछ किस्से सुनाये। थोड़ी देर बाद हम दोनों गंधेश्वर महादेव मंदिर के गेट पर थे। अंदर घुसे तो प्रसाद लेने की कुछ दुकानें लगीं थीं। मैं घूमते समय मंदिर को भी घुमक्कड़ की नजर से ही देखता हूं। अगर अनिवार्य न हो तो मैं प्रसाद नहीं लेता हूं। वैसा ही कुछ मैंने यहां किया।

महानदी के तट पर भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर निर्मित है, जिसे गंधेश्वर महादेव का मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण सिरपुर के पुराने मंदिरों और बौद्ध विहार की अवशेष सामग्री को एकत्रित कर किया गया है। मंदिर में विभिन्न कलात्मक मूर्तियां बुद्ध, नटराज, शिव, बराह, गरूड़, नारायण, महिषासुर की मूर्तियां देखने योग्य है।महानदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में बालार्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था। गंधेश्वर महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग 4 फीट लंबा है। मंदिर के खंभे पर शानदार नक्काशी की गई है।

राजिम समूह मंदिर की तरह गंधेश्वर महादेव मंदिर बाहर से पूरा सफेद था। मंदिर के खंभे लाल बलुआ के पत्थर के बने हुए थे। मंदिर के खंभों पर नक्काशी भी बेहद शानदार थी। मंदिर के सामने एक छोटा-सा मंदिर था। वहीं मंदिर के पास में कई देवी-देवताओं की मूर्ति बनी हुई थी। मंदिर के पीछे नदी थी। नदी में पानी कम था लेकिन नजारा खूबसूरत था। नदी के इस किनारे पर दो लोग खड़े थे और बीच नदी में एक लड़का और लड़की चल रहे थे। थोड़ी देर बाद वो नदी के एक कोने पर पहुंच गये। इस ओर खड़े दो लोग चिल्लाकर उनको पुकार रहे थे लेकिन शायद सुन नहीं रहे थे या आवाज नहीं पहुंच रही थी। कुछ देर बाद वो दोनों फिर से नदी में थे।

सुरंग टीला

सुरंग टीला।
मंदिर के पास में ही एक दो छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। अब हमें अपने सफर के आखिरी स्थान पर जाना था। थोड़ी देर बाद हम उस जगह के बाहर खड़े थे। गेट के अंदर उस जगह के बारे में थोड़ी जानकारी दी थी। जिसके अनुसार इस जगह को सुरंग टीला के नाम से जाना जाता है। 2006 की खुदाई में इस जगह के बारे में पता चला। आगे बढ़े तो एक छोटी-सी संरचना बनी हुई थी। बाकी जगहों की तरह ये संरचना भी क्षतिग्रस्त थी लेकिन खंभों पर बारीक नक्काशी देखने को मिली।

सिरपुर में चाट।
इसी संरचना के सामने एक बड़ा-सा मंदिर है। जिसके लिए काफी सीढ़िया भी बनी हुई हैं। शुरू की सीढ़िया तेढ़ी बनी हुई हैं। मंदिर के ऊपर से ये जगह और भी शानदार लग रही थी। इस मंदिर में तीन गर्भागृह हैं। एक में भगवान गणेश की मूर्ति है और बाकी में शिवलिंग हैं। गर्भागृह के बाहर कुछ मूर्तियां बनी हुई है। मंदिर में खूब सारे खंभे खड़े हुए हैं जिनमें बारीक नक्काशी और मूर्तियां उकेरी गई हैं। सुरंग टीला का आर्किटेक्चर शानदार है। मेरे लिए सुरंग टीला सिरपुर की सबसे शानदार जगहों में से एक है।

सुरंग टीला को देखने के बाद हमें वापस जाना था लेकिन आरंग के बाद से कुछ खाया नहीं था इसलिए भूख लग आई थी। हमने पास में ही खड़े ठेले पर चाट खाई और रायपुर के लिए वापस लौट चले। कुछ जगहें पहली नजर में ही खुशनुमा लगने लगती हैं और कुछ जगहें धीरे-धीरे अपनी छाप छोड़ती है। सिरपुर को जैसे-जैसे देखता गया और भी खूबसूरत लगता गया। अब सिरपुर के बारे में सोचता हूं तो एक शानदार सफर की याद आती है। ऐसे सफर पर मैं बार-बार जाना चाहता हूं।

Saturday, 15 January 2022

छत्तीसगढ़ का चंपारण: सफर तो अच्छा था, मंजिल ने थोड़ा निराश किया

राजिम वाकई में छत्तीसगढ़ की एक खूबसूरत जगह है। राजिम मुझे कुछ-कुछ खजुराहो की तरह लगा। वैसे ही प्राचीन मंदिर जिनको दूर से ही देखकर दिल खुश हो जाता। राजिम को देखने के बाद अब हमारा लक्ष्य था, चंपारण। कुछ देर बाद मैं अभनपुर की ओर जा रहा था। गाड़ी चलाते हुए मुझे लगा कि गाड़ी में कुछ गड़बड़ हो गई है लेकिन मैंने उसे अनदेखा किया। पेट्रोल पंप पर मैंने देखा कि पहिए में एक कील घुस गई थी। कील निकाली तो पहिए से हवा निकलने लगी। किस्मत से सामने ही गाड़ी रिपेयरिंग की दुकान थी। कुछ देर में गाड़ी और मैं दोनों चंपारण जाने के लिए तैयार थे।

अभनपुर पहुँचने के बाद मैं चंपारण की तरफ चल पड़ा। रास्ते में खेत, जंगल और नहर मिल रही थी। इस रास्ते पर भीड़ नहीं थी जो मेरे सफर को खूबसूरत बना रहा था। आगे बढ़ा तो एक चौराहा आया जहाँ मुझे एक ठेला दिखाई दिया। पहले मैंने वहाँ भेल का स्वाद लिया और फिर गुपचुप। इस जगह से चंपारण 15 किमी. दूर था। मैं फिर से चंपारण के रस्ते पर था। कुछ देर मैं गांवो वाले रास्ते पर था। कुछ देर बाद मैं चंपारण में था।

चंपारण चलें

मैंने सोचा था कि चंपारण में लोग कम और देखने को कम लोग होंगे लेकिन ऐसा नहीं था। यहाँ बड़ा सा मंदिर दिखाई दिया जिसको देखकर ही मन खराब हो गया। मंदिर बहुत खूबसूरत था मतलब महल जैसा। इस मंदिर को देखकर लग रहा था कि कुछ ज्यादा ही सजावट कर दी है। चंपारण महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली के लिए जाना जाता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य ने पूरे भारत की पैदल यात्रा की। वो जहाँ पर भी रुके, वहाँ पर बैठक बनाई गई। चंपारण में भी दो बैठकें हैं। चंपारण का महाप्रभुजी प्राकट्य बैठक जी मंदिर बेहद खूबसूरत है। इस मंदिर को देखकर लगेगा कि आप किसी महल में आ गये हों। मुझे प्राचीन मंदिर पसंद हैं जिनके बारे में जानकर अच्छा लगता है। मंदिर के पूरे परिसर को देखने के बाद मैं बाहर आ गया।

चंपारण आया था तो लग रहा था कि किसी ऐसी जगह पर जाना चाहिए जो मुझे अच्छी लगे। तभी मुझे एक बोर्ड दिखाई दिया। जिस पर डिपरेश्वर मंदिर की दूरी 5 किमी. दिखा रहा था। मैंने स्थानीय लोगों से वहाँ जाने का रास्ता बता दिया और मैं निकल पड़ा। मैं फिर से गांवों और खेतों को देखते हुए बढ़ रहा था। कुछ देर बाद मैं मंदिर के सामने था। चंपारण से 5 किमी. दूर सेमरा गांव में महानदी के किनारे हनुमान जी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति है। इसके अलावा भगवान शिव की भी मूर्ति भी रखी हुई है। नदी किनारे बना ये मंदिर वाकई खूबसूरत है। आप घंटों नदी किनारे बैठक दूर तलक दिखनी वाली हरियाली, मछली पकड़ते मछुआरों और नदी मे नहाते हुए लोगों को निहार सकते हैं।

नदी किनारे 

हनुमान जी के मंदिर में इतना कुछ खास नहीं था लेकिन मंदिर के पीछे महानदी का नजारा था। नदी के पास गया तो देखा कि कुछ लोग वहाँ बैठे हैं और दो बच्चे नदी में नहा रहे हैं। उन बच्चों को देखकर मुझे अपना बचपन याद आ गया। जब दोस्तों के सुबह-सुबह नदी में नहाने जाते थे और घंटों नहाते रहते थे। मैं वहीं बैठ गया। नदी के दूर तलक दो नावें दिख रहीं थीं जिसमें बैठे लोग मछली पकड़ने के लिए जाल फेंक रहे थे। मैं इस जगह पर लगभग 1 घंटे बैठा रहा।

यहाँ से अब सीधा भिलाई के लिए निकलना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तभी वहाँ बैठे लोग आपस में बात कर रहे थे कि यहाँ से कुछ ही दूरी पर हनुमानजी की बहुत बड़ी मूर्ति है। मुझे इस जगह के बारे में पता नहीं था लेकिन अब पता चल गया था तो जाने का मन हो गया। मैं जल्दी से उठा और चल पड़ा। रास्ते में मिले एक बच्चे ने मंदिर जाने का रास्ता बताया। लगभग 5 किमी. बाद मैं उस जगह पर पहुँच गया। 

वाकई महानदी के तट पर हनुमानजी की बहुत बड़ी मूर्ति थी। इस जगह को रामोदर वीर हनुमान जी टीला के नाम से जाना जाता है। 185 फुट ऊंची हनुमान जी की मूर्ति महानदी के गाय घाट पर स्थित है। इस जगह पर सबसे खूबसूरत नजारा है नदी का। नदी के बीच से महासमुंद के लिए एक छोटा सा पुल भी बना है। इस खूबसूरत नजारे को देखने के बाद मैं फिर से चल पड़ा अपने सफर के लिए। अभी छत्तीसगढ़ की और जगहों को इस भागदौड़ भरी जिंदगी में देखना था।

राजिम की यात्रा के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।