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Saturday, 19 February 2022

चंदेरी: उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश तक का सफर काफी लंबा लेकिन अच्छा रहा

घुमक्कड़ी का एक अजीब ही दस्तूर होता है। हमको जो जगह अजनबी लगती है, वहाँ पहुँचने के कुछ घंटों के बाद वो जगह, वहाँ की गलियां सब कुछ अपना लगने लगता है। हम उस जगह, गांव या कस्बे में ऐसे बेपरवाह चलते हैं जैसे हम यहाँ सालों से रह रहे हैं। घूमते हुए ऐसे ही कई जगहें अपनी हो जाती हैं। इन जगहों से पहली बार मिलना अजीब होता है लेकिन उत्सुकता भी होती है। मैंने कुछ दिन पहले ऐसी ही एक शानदार जगह की यात्रा की। जगह का नाम है, चंदेरी।

मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा शहर है, चंदेरी। हाल ही में मैंने इस जगह के बारे में सुना था। तब से इस जगह पर जाने का बड़ा मन था। किसी न किसी कारण से नहीं जा पा रहा था। फिर आया 2022 का फरवरी महीना और तारीख 11 फरवरी। मेरे घर से चंदेरी लगभग 250 किमी. दूर है। पहले हम दो लोग जाने वाले थे इसलिए स्कूटी से जाने का प्लान था लेकिन आखिरी वक्त में मैं अकेला रह गया। उसके बाद मैं बस से चंदेरी की यात्रा करने का मन बनाया।

5:40 की बस

11 फरवरी को सुबह 5 बजे उठा। मम्मी मुझसे भी पहले उठ चुकी थीं। उन्होंने रास्ते के लिए खाना बना दिया था। घर से कहीं जाओ तो मम्मी मना करने के बाद भी खाना बना ही देती हैं। अपना छोटा-सा पिठ्ठू बैग लेकर घुप्प अंधेरे में बस वाली जगह पर पहुँच गया। मैंने खिड़की वाली सीट पकड़ ली। बस में कुछ लोग थे और कुछ लोग मेरे बाद आए। 5:40 होते ही रोडवेज बस अंधेरे में चल पड़ी।

लोग इतने शांत थे कि बस के पुर्जे-पुर्जे की आवाज सुनाई दे रही थी। बस को खस्ता हालत में माना जा सकता है लेकिन हमें तो इसकी आदत है। जब तक उजाला नहीं हुआ, हमें बाहर का कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर बाद उजाला भी हो गया। बस हरे-भरे खेत और गांव के बीच से गुजरती जा रही थी। मेरा दिमाग तो तब झन्ना गया जब मुझे कुछ बदबू आई। मुड़कर देखा तो पीछे वाली सीट पर दो लोग बीड़ी पी रहे थे। कुछ देर बाद बीड़ी फंकना बंद हो गया और मैं फिर से बाहर देखने लगा। लगभग 8 बजे बस ने झांसी पहुँचा दिया।

ललितपुर के लिए बस 

झांसी।
झांसी से मुझे अब ललितपुर जाना था। ललितपुर बस या ट्रेन दोनों से जाया जा सकता है लेकिन इस समय कोई ट्रेन नहीं थी इसलिए बस से जाना मुझे ठीक लगा। झांसी बस स्टैंड काफी बड़ा है। मैं कभी ललितपुर गया नहीं था इसलिए बस का कुछ आइडिया नहीं था। पता किया तो अभी बस लगी नहीं थी। मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया था इसलिए पास की दुकान से समोसा रायता ले लिया। रायते के साथ समोसा मेरा पसंदीदा नाश्ता है।

थोड़ी देर में बस आ गई और मैंने ड्राइवर के पास वाली सीट पकड़ ली। विधानसभा चुनाव की वजह से रोडवेज बस चुनाव में लगी हुई थी इसलिए बस में भीड़ भी ज्यादा थी। 8:55 पर बस ललितपुर के लिए चल पड़ी। झांसी के जेल चौराहे से होते हुए बबीना की ओर बढ़ चली। बस हाईवे पर दौड़ रही थी। सड़क के दोनों तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही थी। मुझे बस में खिड़की वाली सीट पर बैठना पसंद है। सबसे आगे कम ही बैठा था। यहाँ से बस का सफर और भी अच्छा लग रहा था।

फिर से बस...


रास्ते में एक टोल प्लाजा भी मिला। रास्ते में बबीना, तालबेहट और बंसी जैसी जगहें मिलीं। दो घंटे के सफर के बाद मैं ललितपुर बस स्टैंड पर पहुँच चुका था। अब यहाँ से चंदेरी के लिए बस लेनी थी। ललितपुर से चंदेरी लगभग 40 किमी. की दूरी पर है। लोगों से पता किया तो चंदेरी जाने वाली बस की जगह बता दी लेकिन वहाँ बस नहीं थी। बात करने पर पता चला कि थोड़ी देर में बस आएगी।

फरवरी के महीने में भी तेज धूप थी। थोड़ी देर बाद चंदेरी की बस आ गई। मैंने फिर से ड्राइवर के बगल वाली सीट पकड़ ली। इस बस में खूब भीड़ थी। लग ही नहीं रहा था कि यहाँ कोरोना जैसी कोई चीज है। थोड़ी देर बाद बस ललितपुर को छोड़कर चंदेरी की ओर बढ़ गई थी। रास्ता सुंदर लग रहा था, वही खेत और हरियाली। 

उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश


रास्ते में एक जगह मिली राजघाट। राजघाट में बेतवा नदी पर बांध भी बना हुआ है। नदी के इस पार उत्तर प्रदेश है और पुल पार करते ही मध्य प्रदेश शुरू हो जाता है। मध्य प्रदेश में घुसते ही नजारे बदलने लगे थे। सड़क के दोनों तरफ हरियाली अब भी थी लेकिन समतल इलाके की जगह छोटे-छोटे पहाड़ दिखाई देने लगे थे। रोड भी काफी सपाट थी। बस अपनी स्पीड से बड़ी जा रही थी।

थोड़ी देर बाद चंदेरी का बोर्ड दिखाई दिया। पूछने पर बगल में बैठे आदमी ने दूर तलक दिखने वाली पहाड़ी की ओर इशारा किया और कहा, उस पहाड़ी के पार चंदेरी। मेरे मन में चंदेरी की ओरछा जैसी छवि थी। उस छवि को बरकरार रखने या तोड़ने के लिए चंदेरी जा रहा था। थोड़ी देर बाद मध्य प्रदेश टूरिज्म का ताना बाना होटल दिखाई दिया। घूमते हुए ऐसे आलीशान होटलों में ठहरना मुझे पैसों की बर्बादी लगती है। मुझे तो बस एक छोटा-सा कमरा चाहिए जिसमें रात को नींद ले सकूं।

चंदेरी

थोड़ी देर बाद चंदेरी आ गया। चंदेरी में एक तरफ ऊंची पहाड़ी दिखाई दे रही थी जिस पर किला जैसा कुछ बना हुआ था। चंदेरी में कई जगह पर सवारियों को उतारने के बाद बस चंदेरी के नये बस स्टैंड पर पहुँच गई। मैंने अपने लिए पहले से एक सस्ता होटल खोज लिया था जो बस स्टैंड से 1 किमी. था। लोगों से श्रीकुंज होटल का रास्ता पता किया और पैदल ही चल दिया।


पैदल चलने का एक फायदा ये था चंदेरी को जानने में आसानी होगी। कहीं पढ़ा था कि किसी नई जगह को अच्छे-से जानना है तो उस जगह को पैदल नापें। पहली नजर में चंदेरी काफी विकसित और बड़ा लग रहा था। लोगों और गाड़ियों की भीड़ भी बहुत थी। कुछ देर बाद मैं श्रीकुंज होटल के सामने खड़ा था। होटल काफी बड़ा था। रिसप्शेन पर पता किया तो कमरा 400 से लेकर 2800 रुपए तक का था। मैंने 400 वाला रूम देखा और बात पक्की कर दी।

होटल के कमरे में टीवी था लेकिन चल नहीं रहा था, मुझे जरूरत भी नहीं था। बाकी मेरे जरूरत की सारी चीजें कमरे में थीं। घर से खाना लाया था तो उसे खाया। चंदेरी को घूमने जाने का मन था लेकिन लंबे सफर की वजह से सिर दर्द हो रहा था। दिमाम में कुछ गुणा भाग किया और थोड़ी देर के लिए लेट गया। अभी तो मध्य प्रदेश के इस ऐतिहासिक और पुराने शहर में सिर्फ एंट्री हुई थी। इस शहर का गलियां, किले, महल और बावड़ियों को देखना था।

आगे की यात्रा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

Monday, 6 December 2021

बुंदेलखंड के अनछुए अम्मरगढ़, समथर और लोहागढ़ किले की बेहतरीन रोड ट्रिप

मुझे हमेशा से इस बात का मलाल रहा है कि मैं जगह-जगह पर घूमने जाता हूँ लेकिन अब तक अपने बुंदेलखंड को सही से नहीं देख पाया हूं। बुंदेलखंड को घूमने के नाम पर अब तक मैं ओरछा, खजुराहो और गढ़कुण्डार ही गया हूं। इन सबके अलावा बुंदेलखंड में ऐसे अनगिनत किले हैं जिनके बारे में कम लोगों को ही पता है। खुशकिस्मती से मुझे इनमें से कुछ के बारे में पता है। अपने मलाल को दूर करने के लिए बुंदेलखंड के कुछ किलों को देखने के लिए निकल पड़ा।

रोड ट्रिप

रोड ट्रिप मुझे हमेशा से पसंद आती है। ये आपको आजादी देने का काम करती है। मैंने इस रोड ट्रिप में अपने भाई को भी शामिल कर लिया। हमारी यात्रा झांसी की एक छोटी सी जगह गरौठा से शुरु हुई। हमने सबसे पहले अम्मरगढ़ किले को देखने के बारे में सोचा है। मुझे इसके बारे में सिर्फ इतना पता था कि ये मोंठ के आसपास है। हम गाँव के रास्ते से होते हुए बढ़ते जा रहे थे। दोनों तरफ खेत थे जिनमें थोड़ी-थोड़ी हरियाली आई थी।

जहाँ हमें आगे का रास्ता समझ नहीं आता था स्थानीय लोगों से पूछ लेते। यहाँ के लोग ही मेरे लिए गूगल मैप थे। कुछ देर बाद हम एक तिगैला पर पहुँचे। यहाँ पर एक समोसे का ठेला लगा हुआ। मुझे अपनी खजुराहो की यात्रा याद आ गई, जब मैंने पांडव फॉल जाते हुए ऐसी ही किसी दुकान पर समोसा खाया था। यहाँ के समोसे में नमक थोड़ा ज्यादा लग रहा था।

नदी

हम फिर से अपने रास्ते पर चल रहे थे। कुछ देर बाद हम खिरका घाट पर पहुँचे। घाट के नीचे कई जगह नदी का पानी रुका हुआ था लेकिन कुछ जगहों पर तेज धार पर चल रही थी। सुबह-सुबह नदी की कलकल करती आवाज को सुनकर अच्छा लग रहा था, एक मधुर ध्वनि की तरह। कुछ देर नदी किनारे पत्थरों पर बैठने के बाद हम आगे बढ़ गए।

कुछ समय बाद हम मोंठ में खड़े थे लेकिन हमें किले के बारे में पता नहीं था। लोगों से पूछा तो उन्होंने बताया कि मोंठ से 10 किमी. की दूरी पर अम्मरगढ़ गाँव में ही किला है। कुछ देर हम हाईवे पर बढ़े जा रहे थे। हाईवे से ही किला दिखाई दे रहा था। जब हम उस गाँव में पहुँचे तो पता चला कि इसे अमरा गाँव के नाम से जाना जाता है।

अम्मरगढ़ किला

गाँव के बीच में ही एक मंदिर के बगल से हमने रास्ता ले लिया। इस रास्ते पर चलकर लग रहा था कि हम किसी जंगल में जा रहे हैं। कुछ देर बाद किला एक बड़ा सा गेट दिखाई दिया। जंगलों के बीच से होकर हम किले के दरवाजे पर पहुँचे। बाहर से देखने पर लग रहा था कि किला काफी बड़ा है। ये किला पहाड़ी के पत्थरों पर बनाया गया था।

अमरगढ़ किला लगभग 250 साल पुराना है। इस किले को राजा अमर मल ने बनवाया था और उन्हीं के नाम पर इस किले का नाम रखा गया था। किले के बाहर इस किले का कोई बोर्ड या उसकी जानकारी नहीं मिली। एक छोटे से गेट से हम अंदर घुसे और सीढियों से आगे बढ़ने लगे। किले के अंदर पहुँचे तो चारों तरफ घास ही घास दिखाई दे रही थी।

जंगल है या किला

किले में ही धूप सेंक रहे बाबाजी ने बुलाया और अम्मर गुरू मंदिर के दर्शन कराए। उन्होंने बताया कि ये मंदिर आल्हा और ऊदल के गुरु का है। मंदिर को देखने के बाद आगे बढ़े तो किले में ही एक जगह पर बाबा जी का चूल्हा बना हुआ था। आगे बढ़े तो बड़ी-बड़ी घास के बीच से चलना पड़ा। उसके बाद किले की इमारत आई।

किला कहीं से जर्जर या खंडहर नहीं हुआ था लेकिन रखरखाव बिल्कुल भी नहीं था। यहाँ आकर मुझे काफी बुरा लग रहा था कि इतना अच्छा किला जंगल में बदलता जा रहा है। यहाँ तक कि किले की छत पर भी घास ही घास थी। किले के सबसे नीचे वाले तल में कूड़े का ढेर पड़ा हुआ था। सबसे ऊपरी तल की दीवारों पर लोगों ने अपनी और अपने प्यार की निशानी दी हुई थी। तीन मंजिल के इस किले की हालत वाकई खराब थी।  

फिर से सफर

इस किले के बाद हमारा अगला लक्ष्य मोंठ का किला और समथर किले को देखना था। कुछ देर बाद हम मोंठ कस्बे में घूम रहे थे। कुछ देर बाद हम एक चौराहे पर रुके और मिठाई बाले से मोंठ किले के बारे में पूछा तो पता चला कि किला पीछे छूट गया है। यहाँ से आगे समथर का रास्ता जाता है।

उस मिठाई वाले ने जवाब देने के बाद कहा कि आप ऋषभ देव है न। मैंने कहा हाँ, तुम नवोदय से हो क्या?  पता चला कि जब मैं नवोदय में 12 में था वो कक्षा 8 में था। इस मुलाकात के बाद हमने सोचा कि पहले समथर किला चलते हैं लौटते हुए इस किले को देखा जाएगा। मोंठ को छोड़कर हम समथर की ओर चल पड़े। मोंठ से समथर 15 किमी. है लेकिन रास्ता इतना खराब था कि गाड़ी तेज चला ही नहीं पा रहा था। कुछ मिनटों का रास्ता हमने घंटे भर में पूरा किया।

समथर किला

समथर भी एक छोटा सा कस्बा है। लोगों से पूछते हुए हम समथर किले के पास जा रहे थे। जब हम बाजार में थे तो दूर से ही किला दिखाई दे रहा था। समथर पहले बुंदेलखंड की एक छोटी-सी रियासत हुआ करती थी। दतिया के महाराजा के शासनकाल में समथर में गुर्जर राज्य की स्थापना हुई। समथर की किलेदारी मर्दन सिंह को सौंपी गई। बाद में समथर एक अलग रियासत बन गई।

इस किले के कुछ हिस्से में राजा और उनका परिवार रहा करता है। हम किले के अंदर गए तो देखा कि जहाँ राजा का परिवार रहता है वहाँ तो सब कुछ बेहतरीन है। किले के पीछे तरफ भी बहुत सारी इमारतें बनी हुई हैं लेकिन वहाँ आपको गंदगी और जंगल मिलेगा। इस किले के अंदर एक स्कूल भी चलता है।

किले में जहाँ राजघराना रहता है वहाँ जाने की मनाही है और जहाँ घूमा जा सकता है वहाँ सब कुछ जर्जर हो चुका है। अमरगढ़ किले की तरह यहाँ भी किले के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी। जब हम मोंठ मे थे तो एक बोर्ड पर लोहागढ़ किले का नाम पढ़ा। समथर के बाद हमने उसी किले को देखने का मन बनाया।

एक और किला


समथर छोड़कर हम हाईवे पर दौड़े जा रहे थे। मुझे लगा कि इस रास्ते से हम कुछ मिनटों में ही अपनी मंजिल पर पहुँच जाएंगे लेकिन ये मेरी गलतफहमी थी। हमारी स्पीड फिर से धीमी हो गई थी क्योंकि टूटे-फूटे रास्ते से होकर हम गुजर रहे थे। हमें ये भी नहीं पता था कि लोहागढ़ किला कितना दूर है। रास्ते में लोगों से पूछते हुए चले जा रहे थे। कुछ देर बाद दूर से एक पहाड़ी पर बेहद पुरानी छोटी सी इमारत दिखाई दी थी।

लोहागढ़ का किला लोहागढ़ गाँव में स्थित है। कुछ देर बाद हम गाँव से होते हुए किले तक पहुँच गए। ये किला एक कोठी की तरह लग रहा था जिसमे कुछ कमरे थे और एक छत थी। किले रुपी इस इमारत में एक पेड़ भी लगा हुआ था। कमरे में कुछ गड्ढे भी थे। हमने अंदाजा लगाया कि खजाना खोजने के लिए लोगों ने खुदाई की होगी।

लोहागढ़ की छत से पूरा गाँव और हरे-भरे खेत दिखाई दे रहे थे। किला बहुत छोटा था और जर्जर भी बहुत था। इंटरनेट पर जब लोहागढ़ किले के बारे में पता किया तो दूसरों राज्यों के लोहागढ़ किले के बारे में दिखाई दे रहा था लेकिन इस लोहागढ़ के बारे में कोई जानकारी थी। इस किले में हमें कोई दिखाई भी नहीं दिया, जिससे हम ये सब पूछ सकते।

इस किले को देखने के बाद हम वापस लौट चले। हमें मोंठ का किला देखना था लेकिन वक्त की कमी की वजह से हमने अगली बार के लिए टाल दिया। इस रोड ट्रिप में हमने बुंदेलखंड के तीन अनछुए किलों को देखा। किलों ही हालत देखकर निराशा जरुर हुई लेकिन इन किलों को देखा जाना चाहिए क्योंकि यही हमारी धरोहर हैं।