मुझे हमेशा से इस बात का मलाल रहा है कि मैं जगह-जगह पर घूमने जाता हूँ लेकिन अब तक अपने बुंदेलखंड को सही से नहीं देख पाया हूं। बुंदेलखंड को घूमने के नाम पर अब तक मैं ओरछा, खजुराहो और गढ़कुण्डार ही गया हूं। इन सबके अलावा बुंदेलखंड में ऐसे अनगिनत किले हैं जिनके बारे में कम लोगों को ही पता है। खुशकिस्मती से मुझे इनमें से कुछ के बारे में पता है। अपने मलाल को दूर करने के लिए बुंदेलखंड के कुछ किलों को देखने के लिए निकल पड़ा।
रोड ट्रिप
जहाँ हमें आगे का रास्ता समझ नहीं आता था स्थानीय लोगों से पूछ लेते। यहाँ के लोग ही मेरे लिए गूगल मैप थे। कुछ देर बाद हम एक तिगैला पर पहुँचे। यहाँ पर एक समोसे का ठेला लगा हुआ। मुझे अपनी खजुराहो की यात्रा याद आ गई, जब मैंने पांडव फॉल जाते हुए ऐसी ही किसी दुकान पर समोसा खाया था। यहाँ के समोसे में नमक थोड़ा ज्यादा लग रहा था।
नदी
कुछ समय बाद हम मोंठ में खड़े थे लेकिन हमें किले के बारे में पता नहीं था। लोगों से पूछा तो उन्होंने बताया कि मोंठ से 10 किमी. की दूरी पर अम्मरगढ़ गाँव में ही किला है। कुछ देर हम हाईवे पर बढ़े जा रहे थे। हाईवे से ही किला दिखाई दे रहा था। जब हम उस गाँव में पहुँचे तो पता चला कि इसे अमरा गाँव के नाम से जाना जाता है।
अम्मरगढ़ किला
गाँव के बीच में ही एक मंदिर के बगल से हमने रास्ता ले लिया। इस रास्ते पर चलकर लग रहा था कि हम किसी जंगल में जा रहे हैं। कुछ देर बाद किला एक बड़ा सा गेट दिखाई दिया। जंगलों के बीच से होकर हम किले के दरवाजे पर पहुँचे। बाहर से देखने पर लग रहा था कि किला काफी बड़ा है। ये किला पहाड़ी के पत्थरों पर बनाया गया था।अमरगढ़ किला लगभग 250 साल पुराना है। इस किले को राजा अमर मल ने बनवाया था और उन्हीं के नाम पर इस किले का नाम रखा गया था। किले के बाहर इस किले का कोई बोर्ड या उसकी जानकारी नहीं मिली। एक छोटे से गेट से हम अंदर घुसे और सीढियों से आगे बढ़ने लगे। किले के अंदर पहुँचे तो चारों तरफ घास ही घास दिखाई दे रही थी।
जंगल है या किला
किले में ही धूप सेंक रहे बाबाजी ने बुलाया और अम्मर गुरू मंदिर के दर्शन कराए। उन्होंने बताया कि ये मंदिर आल्हा और ऊदल के गुरु का है। मंदिर को देखने के बाद आगे बढ़े तो किले में ही एक जगह पर बाबा जी का चूल्हा बना हुआ था। आगे बढ़े तो बड़ी-बड़ी घास के बीच से चलना पड़ा। उसके बाद किले की इमारत आई।किला कहीं से जर्जर या खंडहर नहीं हुआ था लेकिन रखरखाव बिल्कुल भी नहीं था। यहाँ आकर मुझे काफी बुरा लग रहा था कि इतना अच्छा किला जंगल में बदलता जा रहा है। यहाँ तक कि किले की छत पर भी घास ही घास थी। किले के सबसे नीचे वाले तल में कूड़े का ढेर पड़ा हुआ था। सबसे ऊपरी तल की दीवारों पर लोगों ने अपनी और अपने प्यार की निशानी दी हुई थी। तीन मंजिल के इस किले की हालत वाकई खराब थी।
फिर से सफर
उस मिठाई वाले ने जवाब देने के बाद कहा कि आप ऋषभ देव है न। मैंने कहा हाँ, तुम नवोदय से हो क्या? पता चला कि जब मैं नवोदय में 12 में था वो कक्षा 8 में था। इस मुलाकात के बाद हमने सोचा कि पहले समथर किला चलते हैं लौटते हुए इस किले को देखा जाएगा। मोंठ को छोड़कर हम समथर की ओर चल पड़े। मोंठ से समथर 15 किमी. है लेकिन रास्ता इतना खराब था कि गाड़ी तेज चला ही नहीं पा रहा था। कुछ मिनटों का रास्ता हमने घंटे भर में पूरा किया।
समथर किला
समथर भी एक छोटा सा कस्बा है। लोगों से पूछते हुए हम समथर किले के पास जा रहे थे। जब हम बाजार में थे तो दूर से ही किला दिखाई दे रहा था। समथर पहले बुंदेलखंड की एक छोटी-सी रियासत हुआ करती थी। दतिया के महाराजा के शासनकाल में समथर में गुर्जर राज्य की स्थापना हुई। समथर की किलेदारी मर्दन सिंह को सौंपी गई। बाद में समथर एक अलग रियासत बन गई।
इस किले के कुछ हिस्से में राजा और उनका परिवार रहा करता है। हम किले के अंदर गए तो देखा कि जहाँ राजा का परिवार रहता है वहाँ तो सब कुछ बेहतरीन है। किले के पीछे तरफ भी बहुत सारी इमारतें बनी हुई हैं लेकिन वहाँ आपको गंदगी और जंगल मिलेगा। इस किले के अंदर एक स्कूल भी चलता है।
किले में जहाँ राजघराना रहता है वहाँ जाने की मनाही है और जहाँ घूमा जा सकता है वहाँ सब कुछ जर्जर हो चुका है। अमरगढ़ किले की तरह यहाँ भी किले के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी। जब हम मोंठ मे थे तो एक बोर्ड पर लोहागढ़ किले का नाम पढ़ा। समथर के बाद हमने उसी किले को देखने का मन बनाया।
एक और किला
लोहागढ़ का किला लोहागढ़ गाँव में स्थित है। कुछ देर बाद हम गाँव से होते हुए किले तक पहुँच गए। ये किला एक कोठी की तरह लग रहा था जिसमे कुछ कमरे थे और एक छत थी। किले रुपी इस इमारत में एक पेड़ भी लगा हुआ था। कमरे में कुछ गड्ढे भी थे। हमने अंदाजा लगाया कि खजाना खोजने के लिए लोगों ने खुदाई की होगी।
लोहागढ़ की छत से पूरा गाँव और हरे-भरे खेत दिखाई दे रहे थे। किला बहुत छोटा था और जर्जर भी बहुत था। इंटरनेट पर जब लोहागढ़ किले के बारे में पता किया तो दूसरों राज्यों के लोहागढ़ किले के बारे में दिखाई दे रहा था लेकिन इस लोहागढ़ के बारे में कोई जानकारी थी। इस किले में हमें कोई दिखाई भी नहीं दिया, जिससे हम ये सब पूछ सकते।
इस किले को देखने के बाद हम वापस लौट चले। हमें मोंठ का किला देखना था लेकिन वक्त की कमी की वजह से हमने अगली बार के लिए टाल दिया। इस रोड ट्रिप में हमने बुंदेलखंड के तीन अनछुए किलों को देखा। किलों ही हालत देखकर निराशा जरुर हुई लेकिन इन किलों को देखा जाना चाहिए क्योंकि यही हमारी धरोहर हैं।