Tuesday, 14 February 2023

भगवान श्रीकृष्ण के पवित्र शहर मथुरा को मैंने कुछ इस तरह से एक्सप्लोर किया

मथुरा भारत की सबसे पवित्र जगहों में से एक है। दिल्ली से लगभग 150 किमी. की दूरी पर स्थित मथुरा एक ऐतिहासिक और पवित्र शहर है। मथुरा को भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के लिए जाना जाता है। मथुरा में देखने के लिए कई धार्मिक और ऐतिहासिक जगहें हैं। मैं घूमने के लिए बिहार गया था लेकिन किसी काम की वजह से लौटना पड़ा। मेरा मन बिना घूमें मान नहीं रहा था, दिल्ली में बैठे-बैठे मैं घूमने के लिए जगह के बारे में सोच रहा था। मेरे दिमाग़ में उत्तराखंड और मथुरा के बीच कन्फूयजन चल रहा था। काफ़ी जोड़-घटाओ के बाद मैंने भारत के सबसे पवित्र और श्रीकृष्ण के शहर मथुरा जाने का तय किया।

अगले दिन मैं सुबह-सुबह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुँच गया। दिल्ली से मथुरा के लिए बसें भी जाती हैं लेकिन ट्रेन से आराम भी है और समय भी कम लगता है। कुछ ही देर में ट्रेन चल पड़ी। राजस्थान जा रही इस ट्रेन ने 2 घंटे में मुझे मथुरा रेलवे स्टेशन छोड़ दिया। अब मुझे मथुरा में एक ठिकाना खोजना था और वो भी सस्ता। मैंने ऑनलाइन हॉस्टल की बुकिंग की थी। उसका कॉल आया और वो ही रेलवे स्टेशन पर लेने भी गया। कुछ देर में मैं 4 बेड वाले एक हॉल जैसे कमरे में था। सभी बेड ख़ाली थे और ये जगह रेलवे स्टेशन से 1 किमी. की दूरी पर था। मैं थोड़ी देर में तैयार हो गया और घूमने के लिए भी तैयार हो गया।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि

मैंने घूमने के लिए एक स्कूटी ले ली लेकिन बाद में ऐसा लगा कि इस शहर में स्कूटी की ज़रूरत नहीं है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट से इस शहर को अच्छी तरह से घूमा जा सकता है। मथुरा उत्तर प्रदेश के बृज क्षेत्र में आता है। मथुरा में मंदिरों को घूमने के लिए टाइमिंग सही होनी चाहिए। मथुरा में सभी मंदिर सुबह 6 बजे खुल जाते हैं और दिन में 12 बजे बंद हो जाते हैं। 4 घंटे मंदिर बंद रहते हैं, उसके बाद शाम 4 बजे से मंदिर फिर से खुलने शुरू हो जाते हैं और रात 8 बजे तक खुले रहते हैं। आप मथुरा के मंदिरों के सुबह और शाम को देख सकते हैं। मैं कुछ ही देर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पहुँच गया।


इस मंदिर का एक सुनहरा इतिहास है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मथुरा के महाराजा कंस ने अपनी बहन और उसके पति को एक भविष्यवाणी के चलते जेल में बंद कर दिया था। इसी जेल में देवकी ने भगवान श्रीकृष्ण को जन्म दिया था। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा के सबसे भव्य और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर के अंदर मोबाइल, कैमरा, बड़े बैग, हेलमेट, घड़ी और इलैक्ट्रिक सामान ले जाना सख़्त मना है। मंदिर के बाहर इन सामानों को जमा करने के लिए लॉकर बने हुए हैं जिसका मामूली शुल्क लगता है। वही शुल्क देकर मैं भी मंदिर के अंदर पहुँच गया। मंदिर के अंदर जाने का कोई टिकट नहीं लगता है। मंदिर के अंदर सिर्फ़ कारागृह मंदिर नहीं है। इसके अलावा भी कई सारे मंदिर बने हुए हैं। इस पूरे परिसर को घूमने के लिए आपको 1-2 घंटे का समय तो लग ही जाएगा। 


यमुना घाट

श्रीकृष्ण जन्मभूमि को देखने के बाद मुझे द्वारिकाधीश मंदिर को देखने के लिए जाना था। उसके पहले कुछ खाने का भी मन किया। श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास में ही एक दुकान पर मैंने कचौड़ी और जलेबी खाई। किसी नई जगह पर जाता हूँ तो उस जगह का ज़ायक़े का स्वाद ज़रूर लेता हूँ। पेट पूजा के बाद मैं द्वारिकाधीश मंदिर की तरफ़ चल पड़ा। काफ़ी देर मथुरा की गलियों में घूमते हुए मैं द्वारिकाधीश मंदिर पहुँच गया। जब मैं मंदिर तक पहुँचा, मंदिर के बंद करने का समय हो गया था। मैंने द्वारिकाधीश मंदिर को बाहर से देखा। इस गली काफ़ी पुराने-पुराने घर दिखाई दे रहे थे। मंदिर के पास में ही विश्राम घाट है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने के बाद इस घाट पर विश्राम किया था। इस वजह से इस घाट का नाम विश्राम घाट पड़ गया। कुछ देर में मैं भी विश्राम घाट पहुँच गया।


विश्राम घाट मथुरा के सबसे पावन जगहों में से एक है। आपको इस घाट पर लोगों की आमद ज़्यादा मिलेगी। इस घाट से ही नौका विहार होती है। मुझे ये देखकर दुख हुआ पवित्र यमुना का पानी काफ़ी गंदा था, एकदम काला। अगर ये यमुना नदी ना होती तो इसको नाला कहने में मुझे कोई हिचक नहीं होती। गंगा की तरह यमुना को भी सफ़ाई की ज़रूरत है। घाट के किनार काफ़ी नाव लगी हुई हैं। वैसे तो सुबह और शाम को नौका विहार करना चाहिए लेकिन मेरे पास समय था तो मैं इसी समय नाव की यात्रा करने के लिए तैयार हो गया। कुछ देर में मैं नाव से यमुना घाट को देख रहा था। नाव से मैं विश्राम घाट से कंस क़िला तक गया और वहाँ से लौट आया।

शाही जामा मस्जिद

मैं स्कूटी से एक बार फिर से मथुरा की गलियों में चल रहा था। तभी मुझे एक बड़ी-सी मस्जिद दिखाई दी। मैं सब्ज़ी मंडी के पास में ही एक दुकान पर लस्सी के लिए रूक गया। कुल्हड़ वाले गिलास में लस्सी पीकर मज़ा ही गया। एकदम तरोताज़ा हो गया। दुकानदार से पूछने पर उसने बताया कि ये विवादित मस्जिद नहीं है, पाक मस्जिद है। 500 साल पुरानी इस मस्जिद को शाही जामा मस्जिद कहते हैं। कुछ देर में मैं उसी मस्जिद के अंदर पहुँच गया। मस्जिद के अंदर जो भी मिले मुझसे आने की वजह पूछे। मुझे ऐसा लगा कि कोई पहली बार इस मस्जिद को देखने आया है।



शाही मस्जिद काफ़ी बड़ी है। इस मस्जिद को मुग़ल के शासक औरंगजेब के शासन में गर्वनर नाबिर खान ने बनवाया था। इस मस्जिद में 4 विशाल मीनार हैं और जो आकर्षण का केन्द्र है। मथुरा में दो प्राचीन मस्जिद हैं। एक तो शाही जामा मस्जिद है और दूसरी ईदगाह जामा मस्जिद है जो श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास में स्थित है। ईदगाह जामा मस्जिद को लेकर काफ़ी विवाद भी चल रहा है। शाही जामा मस्जिद की नक़्क़ाशी काफ़ी शानदार और देखने लायक़ है। मथुरा घूमने आओ तो इस मस्जिद को भी देखने ज़रूर जाना चाहिए। कुछ देर बाद मैं अपने कमरे पर लौट गया। शाम को अपने काम की वजह से मैं मथुरा को घूमने के लिए नहीं जा पाया। मेरी मथुरा की यात्रा एक दिन की रही लेकिन बढ़िया रही। इस धार्मिक और पवित्र शहर में काफ़ी शानदार जगहें देखीं।


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Thursday, 26 January 2023

हिमाचल प्रदेश के बिर बिलिंग में लग्ज़री कैंपिंग का अनुभव

हिमाचल प्रदेश घूमने वालों के लिए एक जन्नत है। यहाँ प्राकृतिक सुंदरता से लेकर रोमांच तक सब कुछ है। मैं पहली बार हिमाचल प्रदेश स्पीति वैली की यात्रा पर आ गया था। तब से बार-बार हिमाचल जाने का मन करता है। इस बार भटकते-भटकते बिर-बिलिंग पहुँच गया। एक बात आपको साफ़ करना चाहता हूँ कि बिर बिलिंग एक जगह नहीं है बल्कि बिर और बिलिंग दोनों अलग-अलग जगह है। बिर में एक ट्रेक और दो शानदार झरनों को देखने के बाद अब एक नया अनुभव लेना बाक़ी था। अगले कुछ दिन हमने हिमाचल प्रदेश की वादियों में कैंपिंग की।

बिर बिलिंग को हमने अभी एक्सप्लोर नहीं किया था और हम बिर को घूमना भी चाहते थे। साथ में ही बिर के पास एक गाँव में कैंपिंग का मौक़ा मिल रहा था। जब मैंने उसका पैकेज देखा तो उसमें बिर को घूमना भी शामिल था। हमने बिर के होटल में बैठकर अगले तीन दिन के लिए कैंपिंग में बुकिंग कर ली। मैं इससे पहले जैसलमेर की रेत में ऐसे लग्ज़री कैंप में ठहरा था। पहाड़ों में ट्रेकिंग के दौरान भी टेंट में रूकने का मौक़ा मिला है लेकिन पहाड़ों में ऐसे लग्ज़री कैंप में ठहरने का पहला अनुभव होने वाला था।

पहला दिन

लग्ज़री कैंपिंग

अगले दिन सुबह-सुबह उठे तो देखा कि बाहर बारिश हो रही है। मौसम काफ़ी ख़राब हो चुका था। हमारी कैंपिंग वालों से बात हो चुकी थी। वो हमें बिर से ही पिक अप करने वाले थे। कुछ देर में बारिश रूक गई। हम पैदल-पैदल सबसे पहले एक चाइनीज़ फ़ूड की दुकान पर गए। वहाँ हमने शानदार थुकपा का स्वाद लिया। इसके बाद हम पैदल चलते हुए लैंडिंग साइट की तरफ़ पहुँच गए। वहाँ हम कुछ देर एक कैफ़े में बैठे रहे और केक भी खाया। कुछ देर में हमें कैंप वालों का फ़ोन आ गया। होटल से सामान उठाया और गाड़ी से चल पड़े एक नये सफ़र पर।

कुछ देर में हम बिर से बाहर निकलकर छोटे-से रास्ते पर बढ़ते जा रहे थे। पहाड़ी और जंगल के रास्ते से लगभग आधे घंटे के बाद हम एक गाँव में पहुँच गए। कुछ ही देर में कैंप साइट पर पहुँच गए। इस कैंप साइट में पाँच लग्ज़री टेंट बने हुए हैं। इसके अलावा एक रेस्टोरेंट जैसा कुछ है, जहां बैठकर आप खाना खा सकते हैं और किचन भी है। पहाड़ों और जंगलों से घिरी ये कैंप साइट वाक़ई में शानदार है। अंदर से भी टेंट काफ़ी शानदार और सज़ा हुआ है। बारिश की वजह से मौसम भी काफ़ी शानदार है। थोड़ी देर बाद फिर से बारिश शुरू हो गई। मैं यही सोच रहा था कि हमने सही समय पर ट्रेकिंग और वाटरफॉल देख लिया। बारिश की वजह से हम पहले दिन कहीं नहीं जा पाए हालाँकि लज़ीज़ खाना ज़रूर खाया।

दूसरा दिन

बैजनाथ धाम

अगले दिन कैंप में नींद जल्दी खुल गई। पहले दिन कहीं जा नहीं पाया, इसका दुख हो रहा था। आज किसी भी हालत में बाहर निकलना था। कैंप के बाहर आकर देखा तो बारिश नहीं हो रही थी हालाँकि मौसम फिर भी ख़राब था। मैं कैंप से बाहर निकलकर गाँव में टहलने के लिए निकल आया। इस गाँव में शांति और सुकून था। यहाँ पक्षियों की आवाज़ साफ़-साफ सुनाई दे रही थी। सुकून और शांति के लिए ऐसे ही गाँवों में जाना ज़रूरी है। थोड़ी देर में हम बैजनाथ जाने के लिए निकलने वाले थे। जैसे ही बाहर निकले तो तेज़ बारिश शुरू हो गई लेकिन गाड़ी बाहर निकल चुकी थी तो हम भी बैजनाथ की तरफ चल पड़े। बारिश के बूँदों के बीच में हम कुछ ही देर में बैजनाथ पहुँच गए। इस जगह को बैजनाथ धाम भी कहा जाता है।

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बैजनाथ में एक काफ़ी प्रसिद्ध मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। बैजनाथ में दशहरा पर रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है इसके पीछे एक किंवदंती है। कहा जाता है कि लंकापति रावण ने कड़ी तपस्या की लेकिन जब भगवान ने दर्शन नहीं दिए तो रावण अपने सभी सिरों को काटकर समर्पित करने लगा। जब रावण अपने आख़िरी सिर को काटने वाला था तो भगवान शिव ने दर्शन देकर उसका हाथ पकड़ लिया। रावण ने उनसे शिव के स्वरूप शिवलिंग को लंका में स्थापित करने का वर माँगा। 

भगवान ने शिवलिंग तो दे दी लेकिन साथ में शर्त रखी कि तुम इसको कहीं रखना नहीं है, अगर एक बार कहीं शिवलिंग रख दी तो वहीं स्थापना हो जाएगी। जब रावण लंका की तरफ़ जा रहा था तो उसे पेशाब लगी। उसने पास में ही खड़े चरवाहे को शिवलिंग को पकड़ा दिया और पेशाब करने के लिए चला गया। चरवाहा शिवलिंग का भार नहीं सह पाया और उसने नीचे रख दी। जिस जगह पर शिवलिंग रखी, वहीं पर बैजनाथ मंदिर है। इस वजह से बैजनाथ में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। 

सूर्यास्त

बैजनाथ मंदिर को देखने के बाद हम पास में ही स्थित शेरावलिंग मोनेस्ट्री पहुँच गए। ये मोनेस्ट्री भट्टू गाँव में स्थित है। शेरावलिंग मोनेस्ट्री का परिसर काफ़ी बड़ा है। हमने मोनेस्ट्री को अच्छे से एक्सप्लोर किया। इतनी शानदार मोनेस्ट्री को पहले कभी नहीं देखा था। ये मोनेस्ट्री काफी बड़ी शानदार है। मैंने स्पीति वैली के काजा शहर में मठ देखा था लेकिन ये तो लाजवाब निकली। इसके बाद हम बिर पहुँच गए। बारिश की वजह हमने पैराग्लाइडिंग तो नहीं की लेकिन कैफ़े में बैठकर शानदार सूर्यास्त देखा। पहाड़ों में सूर्यास्त काफ़ी शानदार होता है। हर जगह का सूर्यास्त एक अलग अनुभव देता है।

बिर बिलिंग में लाजवाब सूर्यास्त देखने के बाद हम वापस कैंपिंग पहुँच गए। रात के समय जब लाइट जली तो कैंपिंग साइट और भी सुंदर लगने लगी। इस कैंपिंग साइट में ये हमारा आख़िरी दिन था। लाजवाब खाना खाने के बाद कुछ ही देर में हम नींद की आग़ोश में चले गए। अगले दिन मौसम साफ़ था। लग रहा था कि बिर हमें विदा करने के लिए तैयार था। थोड़ी देर में हम बिर पहुँच गए। तिब्बती कॉलोनी से हमने बस पकड़ी और निकल पड़े एक नई यात्रा पर। ये यात्राएँ ही तो हैं जो हमें ज़िंदा क़ौम का एहसास दिलाती हैं।

Saturday, 21 January 2023

बिर का गुनेहर वाटफॉल और छिपा हुआ बोनगोड़ू झरना

बिर बिलिंग वैसे तो पैराग्लाइडिंग के रोमांच के लिए जाना जाता है लेकिन हम बिना पैराग्लाइडिंग के ही काफी रोमांच देख चुके थे। पहले भीगते हुए फिसलन वाले रास्ते से राजगुंधा पहुँचे। वहाँ पलाचक का ट्रेक किया और फिर लौटे भी खतरनाक रास्ते से। हमने सोचा अब बिर आ गए हैं तो घूमने में वैसा खतरा और कठिनाई वाले रास्ते पर नहीं जाना होगा लेकिन मैं एक बार फिर से गलत निकला। इस बार एक झरने ने मुझे रोमांच और खतरे में डाल दिया।

राजगुंधा वैली से लौटने के बाद हमने बिर में एक सस्ता सा होटल ले लिया। इस दिन तो हमने आराम करके दो दिन की पूरी थकावट मिटाया। हमने जो स्कूटी किराए पर ली थी वो हमारे पास अगले दिन 12 बजे तक थी। अगले दिन सुबह उठकर एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार हो गए। हमारे पास स्कूटी थी तो मैंने सोचा क्यों ना इसका फायदा उठा जाए। हमने सबसे पहले बिर में झरने को देखने के बारे में सोचा। बिर के आसपास दो झरने हैं, गुनेहर और बोनगोड़ू वाटरफॉल।

गुनेहर

मैंने गूगल किया तो गुनेहर गाँव बिर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर दिखाई दे रहा था। हमने स्कूटी उठाई और गुनेहर की तरफ चल पड़े। बिर की काफी गलियों को पार करने के बाद एक जगह आई जहाँ गुनेहर का बोर्ड लगा हुआ था। हमें लगा कि आगे गुनेहर गाँव है तो यहीं झरना होगा हालांकि गूगल कहीं और दिखाई दे रहा था। वहीं एक स्थानीय व्यक्ति से बात की तो पता चला की गुनेहर गाँव तो यहीं लेकिन झरना यहाँ नहीं है। उसके लिए आगे बिलिंग रोड की तरफ जाना पड़ेगा।

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हम बिलिंग रोड की तरफ चल पड़े। कुछ किलोमीटर बाद एक जगह पर एक व्यक्ति बैठे थे। वो बिलिंग की तरफ जा रहे लोगों से 20 रुपए ग्रीन टैक्स के ले रहे थे। उन्होंने ही बताया कि आगे जाने पर दाहिने तरफ एक रास्ता नीचे की ओर जाएगा जो सीधा गुनेहर वाटरफॉल ले जाएगा। कुछ देर में हम उस रास्ते पर पहुँच गए जिसके बारे में पता किया था। उस रास्ते पर चलते हुए हम एक गाँव में पहुँच गए जिसका नाम बोनगोड़ू है। हमने एक घर के सामने अपनी गाड़ी को पार्क कर दिया।

पहला झरना

लोगों से बात की तो पता चला कि यहाँ एक नहीं बल्कि दो झरने हैं। एक तो गुनेहर वाटरफॉल है जिसको हम देखने आए थे और दूसरा बोनगोड़ू झरना है जिसको यहाँ हिडन वाटरफॉल भी कहा जाता है। लोगों ने ये भी कहा कि गुनेहर वाटरफॉल तो पास में ही है लेकिन दूसरे झरने को देखने के लिए आपको गाइड करना ही पड़ेगा। मैंने उनकी बात को नजरंदाज किया और गुनेहर झरने को देखने के लिए निकल पड़ा। गाँव से निकलते ही बायीं तरफ एक बड़ा-सा झरना है जो वाकई में बेहद शानदार है।

हम थोड़ा ऊपर चढ़कर गुनेहर झरने के पास गए। पानी काफी ऊँचाई से गिर रहा था और काफी तेज भी थी। ऐसी जगहों पर आकर मन को तसल्ली-सी मिलती है। हम यहाँ कुछ देर ठहरे और फिर बोनगोड़ू वाटरफॉल को देखने के लिए निकल पड़े। हमने सोचा कि गाइड नहीं करते हैं और अगर झरना मिल जाएगा तो देख लेंगे और नहीं मिलेगा तो वापस लौट आएंगे। यहाँ से पहाड़ का दृश्य भी बेहद सुंदर है। ऐसा लग रहा है कि किसी ने पहाड़ों पर हरी चादर बिछा दी हो। पहाड़ों के बीच से बहती नदी इस नजारो को और भी सुंदर बना रही थी।

कहाँ है झरना?

हम सीधे रास्ते पर चलते हुए एक जगह पहुँचे, जहाँ भूस्खलन से रास्ता टूट चुका था। वहाँ मिले लोगों ने बताया कि आपको यहाँ से घूमकर पहाड़ चढ़ना और फिर नीचे उतरना होगा। मैं बिना गाइड उस पहाड़ पर चढ़ने लगा। ये कोई रास्ता नहीं है लेकिन पुराना रास्ता टूट गया है तो लोग इसी से आते-जाते रहते हैं। कुछ देर बाद मैं सामान्य रास्ते पर लौट आया। एक जगह तो पत्थर पर झरने का नाम लिखा था। इससे मुझे अंदाजा हो गया कि मैं सही रास्ते पर हूं।

एक जगह से तो मुझे ऊँचाई से झरना दिखाई दे रहा था तो मुझे लगा कि अब तो झरने के पास पहुँच ही जाऊँगा। काफी चलने के बाद एक रास्ता नीचे की ओर जा रहा था। मैं उस रास्ते पर ही नीचे पानी तक पहुँच गया लेकिन झरना नहीं मिला। मैं थका-हारा पीछे की तरफ लौट आया। वहाँ मुझे एक रास्ता नीचे की ओर दिखाई दिया और उस पर निशान भी बना हुआ था। मुझे लगा कि अब तो झरना मिल जाएगा लेकिन नीचे पहुँचकर पानी मिला लेकिन झरना नहीं मिला। मुझे पानी की तेज आवाज तो आ रही थी लेकिन मुझे ये नहीं लगा कि इतने अंदर झरना होगा।

आखिर में गाइड

मुझे झरना नहीं मिल रहा था और मुझे काफी दुख रहा था। तब मुझे लगा कि गाइड कर ही लेना चाहिए था। मैं वापस लौटने के बारे में मन बना चुका था तभी मुझे याद आया कि कुछ लोगों के यहाँ पर घर हैं। वहाँ पर लोगों से पूछता हूं कि वाटरफॉल कहाँ है? काफी चलने के बाद वहाँ पहुँचा और एक घर के बाहर से आवाज लगाई तो एक बच्चा आया। उससे मैं झरने का रास्ता पूछा तो वो साथ चलने को तैयार हो गया। अब मैं एक स्थानीय बच्चे के साथ छुपे हुए झऱने को देखने के लिए निकल पड़ा।

मैं पहले तो काफी थक चुका था और वो बच्चा पहाड़ पर काफी तेज चल रहा था। मैं थक रहा था और वो आराम से कदम बढ़ाते जा रहा था। रास्ते में उसका का ही जान पहचान का एक व्यक्ति मिला। उसने ही बताया कि वो गाइड है। मैंने इस बार उसको हाथ से नहीं जाने दिया। अब मैं झरने को देखने के लिए दो लोगों के साथ जा रहा था। मैं अकेले दूसरी बार जिस तरह से नीचे उतरा था, ये लोग मुझे नीचे ले गए। अब मुझे पता चला कि मैं आया तो सही रास्ते पर था लेकिन असली कठिनाई तो पानी के अंदर चलना था।

हिडन वाटरफॉल

मैं पहला कदम जैसे ही पानी में रखा तो ऐसा लगा कि रूह और जिस्म दोनों अलग हो गए हों। पानी बहुत ही ज्यादा ठंडा है और अब मुझे काफी देर तक इसी पानी में चलना है। दो लोगों की मदद से पानी में चलता जा रहा थी। रास्ते में बड़ी-बड़ी चट्टानें मिलीं जिस पर अकेले चढ़ना नामुमकिन-सा है। उन दोनों लोगों की मदद से थोड़ी आसानी तो हो रही थी। एक जगह तो मैं फिसलकर गिर भी गया लेकिन ये सब तो घूमने में चलता ही रहता है। आखिर में मैं उस हिडन वाटरफॉल के पास पहुँच गया।

पानी इतनी ऊँचाई और तेजी से गिर रहा था कि हम 100 मीटर दूर खड़े थे और पानी की बौछारें हम तक पहुँच गईं थीं। हम उन बौछारों से भीग गए थे। यहाँ तक पहुँचना जरूर कठिन है लेकिन जब मैंने इस झरने को देखा तो लगा कि इस खूबसूरत वाटरफॉल को देखने के लिए तो इतनी कठिनाई तो बनती है। कहते हैं ना कि सबसे कठिन रास्तों के बाद ही सबसे सुंदर नजारों के दीदार होते हैं। बोनगोड़ू वाटरफॉल को देखने के बाद हम उसी रास्ते से गाँव तक पहुँचे। वहाँ से स्कूटी उठाई और बिर पहुँच गए। हमने समय से स्कूटी को वापस भी कर दिया और एक खूबसूरत सफर को भी तय कर लिया।

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