Saturday, 3 December 2022

मेरी 15 दिन की राजस्थान ट्रिप, इस तरह से शुरू हुई

राजस्थान की सुंदरता का अंदाजे-ए-बयां ही कुछ अलग है। यहाँ के किले, महल और हवेलियां में वैभवता और राजशाही झलकती है। इसी वैभवशाली राजस्थान के मैंने कई शहर एक्सप्लोर किए हुए हैं लेकिन एक लंबी यात्रा का प्लान दिमाग में चल रहा था। पहले वो प्लान कागज पर उतरा और फिर एक दिन मैं उस प्लान के तहत राजस्थान निकल पड़ा। 

18 नवंबर 2022 को मेरी यात्रा उत्तर प्रदेश के झांसी से शुरू हुई। दोपहर के 2 बजे मैंने जयपुर के लिए ट्रेन पकड़ी। दिन की यात्रा मुझे हमेशा खराब लगती है। रात की यात्रा सबसे बेहतरीन होती है। सीट पर सो जाओ और नींद खुलने पर आप अपने गंतव्य के आसपास ही कहीं होते हैं। लेकिन झांसी से जयपुर के लिए एक ही ट्रेन थी और वो भी दिन के समय। मैंने दिन में समय काटने के लिए स्टेशन से नवीन चौधरी की ढाई चाल किताब ले ली। मैंने इससे पहले उनकी जनता स्टोर किताब को पढ़ा है। थोड़ी देर में ट्रेन चल पड़ी।

रास्ते में घर का खाना

मेरी सीट ऊपर की थी लेकिन नीचे वाली सीट खाली थी तो मैं उसी पर बैठ गया। थोड़ी देर तक तो मैं बाहर देखता रहा फिर उसके बाद घर से लाया हुआ खाना निकाला और खाना शुरू कर दिया। घर से किसी यात्रा पर जाने का यही फायदा होता है कि आपको एक बार का स्वादिष्ट खाना तो मिल ही जाता है। आपको ट्रेन से कुछ लेने की जरूरत नहीं पड़ती है और ना ही किसी होटल में जाने का मसला होता है। 

जब खाना खत्म हो गया तो मैं किताब को पढ़ने लगा। एक बार किताब को पढ़ना शुरू किया तो बस पढ़ता ही रहा। लगभग 7-8 बजे इस शानदार किताब को पूरा पढ़ लिया। रास्ते के नजारों पर तो ज्यादा ध्यान नहीं दिया बस सूर्यास्त के समय जरूर खिड़की के बाहर देखता रहा था। रात होने के बाद तो अब बस जल्दी पहुँचने की जल्दी थी। रात के 11 बजे मेरी ट्रेन जयपुर पहुँच गई। मैं कुछ ही मिनटों में जयपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल आया। 

जयपुर में इंतजार

मैं इससे पहले जयपुर दो बार आ चुका हूं। 2018 में मेरी पहली सोलो ट्रिप जयपुर की ही थी। उसके बाद 2021 में भी दो दिन के लिए जयपुर आया था। मैं दोनों बार में जयपुर को लगभग पूरा घूम चुका हूं। इस बार मैं जयपुर घूमने के लिए नहीं आया था। मुझे राजस्थान के अगले शहर में जाने के लिए जयपुर से रात के 2 बजे एक ट्रेन पकड़नी थी। मुझे यहाँ कुछ घंटे इंतजार करना था।

थोड़ी-थोड़ी भूख तो लग आई थी तो मैं रेलवे स्टेशन के सामने वाले होटल में पहुँच गया। वहाँ मैंने सेव टमाटर की सब्जी और रोटी खाकर पेट पूजा की। इसके बाद वापस रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम एरिया में आ गया। अब बस ट्रेन का इंतजार करना था। ट्रेन अपने समय पर स्टेशन पर आई और हम भी अपने समय पर अपने कोच और सीट पर पहुँच गए। कुछ देर में हमारी ट्रेन जयपुर से चल पड़ी। 

जोधपुर

इस ट्रेन में भी मेरी सीट ऊपर की थी लेकिन एक बार फिर से मैं नीचे वाली सीट पर लेटा लेकिन इस बार वजह अलग था। जिसकी सीट नीचे वाली थी वो मेरी सीट पर खर्राटे ले रहा था। टीटीई ने कहा कि उसकी सीट पर लेटना चाहते तो लेट लो नहीं तो मैं उसको जगाता हूं। मैंने टीटीई की बात मान ली और नीचे वाली सीट पर लेट गया। कुछ देर बाद नींद की आगोश में चला गया। जब नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी। कुछ देर बाद हम अपने गंतव्य पर पहुँच गए। इस जगह का नाम है, जोधपुर।

जोधपुर पहुँचने पर हमारी ऑफिशियल राजस्थान की ट्रिप शुरू हो गई। मैं पहली बार इस शहर को एक्सप्लोर करने के लिए आया हूं। अब हमें सबसे पहले जोधपुर में रहने का ठिकाना खोजना था। उसी खोज को दिमाग में लेकर मैं जोधपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल पड़ा। इस तरह हमारी राजस्थान की लंबी यात्रा शुरू हो गई। लगभग 15 दिन की राजस्थान यात्रा का पहला शहर है, जोधपुर।

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Tuesday, 23 August 2022

काजा से लागंजा गांव, हिक्किम, कोमिक और धनकर मोनेस्ट्री की यात्रा

हर घूमने वाला व्यक्ति नई-नई जगहों पर जाना चाहता है। ऐसे ही सफर की तलाश में कहीं न कहीं निकल जाते हैं। ऐसे ही सफर पर मैं निकला था जो दिल्ली से शुरू होकर हिमाचल की स्पीति घाटी में पहुँच गया। स्पीति वैली के काजा शहर में पैदल चला तो लगा कि ये जगह तो लोगों से भरी हुई है लेकिन ऊँचाई से देखने पर ये शहर सुंदर-सा लगा। अब काजा नहीं हमें स्पीति की यात्रा करनी थी।

काजा को हमने लगभग एक्सप्लोर कर लिया था और बुलेट के लिए दुकानदार से बात भी हो गई थी। हम अगले दिन सुबह-सुबह तैयार होकर दुकान पर पहुँच गए। दुकान पर पहुँचे तो दुकान बंद मिली। हमने नंबर लगाया तो उठा नहीं। कुछ देर में हमारी तरह दो लोग और आ गए। उन्होंने कॉल किया तो किस्मत से फोन उठ गया। कुछ देर में दुकान खुल गई। हमने कल की बुकिंग के बारे में बताया। उसने गाड़ी चेक की और हमें टेस्ट ड्राइव के लिए दे दी।

हम काजा से निकलकर एक ऑफ रोड पर टेस्ट ड्राइव के लिए निकल पड़े। मुझे तो बाइक चलानी आती नहीं है तो देवेश को ही पूरे दिन गाड़ी चलानी है। हम फिर से दुकान लौटे और ओके बोलकर निकल पड़े। हम काजा में ही थे की एक जगह हमारी गाड़ी फिसलकर गिर गई। हालांकि हमें कुछ नहीं हुआ और गाड़ी भी ठीक थी। हम थोड़ी देर में पेट्रोल पंप पर पहुँचे। हमने अपनी जरूरत के अनुसार पेट्रोल भरवाया और फिर निकल पड़े स्पीति की यात्रा पर।

रोमांच तो है!

काजा से निकलते ही रास्ता एकदम शानदार मिला। चारों तरफ ऊँची पहाड़ी, बगल में स्पीति नदी और हम इन वादियों के बीच में सरपट दौड़ते है। मैंने सोचा कि पूरा ऐसा रास्ता तो हमारा सफर तो मजेदार हो जाएगा। रास्ते में एक जगह तिराहा मिला। वहाँ एक बोर्ड भी लगा हुआ था। सीधा जाने पर लांगजा पहुँचेंगे और दाहिने तरफ जाने वाला रास्ता कोमिक जा रहा था। हमने लांगजा वाला रास्ता पकड़ लिया। अब यहाँ से कच्चा रास्ता शुरू हो गया।

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पहाड़ों में बाइक चलाने का एक अलग अनुभव होता है। खासकर स्पीति और लद्दाख के इलाके में। हम दोनों को ही वो अनुभव नहीं था। अब तक रास्ता पक्का था तो बुलेट चलाने में दिक्कत नहीं हो रही थी लेकिन कच्चा रास्ते आते ही दिक्कतें शुरू होने लगी। हमारी गाड़ी बार-बार रूक जा रही थी। मोड़ पर सबसे ज्यादा परेशानी हो रही थी। ऐसे ही रूकते हुए हम बढ़ते जा रहे थे। जिनको पहाड़ों में गाड़ी चलाने का अनुभव है, वो हमसे आगे निकलते जा रहे थे।

लांगजा

रास्ता कच्चा तो था ही, साथ में बड़े-बड़े पत्थर भी पड़े हुए थे जिससे काफी परेशानी हो रही थी। नजारे तो खूबसूरत ही थे लेकिन ऑफ रोड वाला ये रास्ता काफी परेशान कर रहा था। रास्ते में कुछ जगहों पर काम भी चल रहा था। काफी घुमावदार रास्तों को पार करने के बाद सीधा रास्ता शुरू हो गया। कुछ देर में हमें दूर से लांगजा गाँव दिखाई देने लगा। लांगजा गाँव से थोड़ी देर पहले पक्का रोड भी शुरू हो गया। हम कुछ देर में लांगजा पहुँच गए।

लांगजा स्पीति की सबसे ऊँचाई पर स्थित गाँव है। समुद्र तल से 14,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस गाँव में पहुँचकर गाड़ी अपनी रोड किनारे लगाई। इसके बाद हम पैदल-पैदल बौद्ध स्टैच्यू की ओर निकल पड़े। बौद्ध स्टैच्यू लांगजा गाँव का मुख्य आकर्षण है। लांगजा तेज और सर्द हवा चल रही थी। स्टैच्यू वाकई में शानदार था। पहाड़ों के बीच में स्थित इतनी बड़ी मूर्ति मुख्य आकर्षण तो होना ही था।

बौद्ध स्टैच्यू को देखने के बाद हम पैदल-पैदल गाँव घूमने लगे। लांगजा गाँव में पारंपरिक मडहाउस बने दिखाई दे रहे थे और सभी पर होमस्टे का बोर्ड लगा हुआ था। हम एक जगह बैठे थे। तभी एक कच्चे घर से औरत निकली और चाय के बारे में पूछा। हम मना नहीं कर पाए और उस कच्चे घर में पहुँच गए। बात करने पर पता चला कि गाँव की कुछ महिलाओं ने मिलकर इस कैफे को शुरू किया है। हमने यहाँ चाय पी और जौ का लड्डू भी खाया। इसके बाद हम वापस अपनी बाइक के पास पहुँच गए। अब हमें यहाँ से हिक्कम जाना था।

हिक्किम

लांगजा की तरह हिक्किम भी एक छोटा-सा गाँव है। जहाँ पर दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित डाकघर है। अब उसी डाकघर को देखने के लिए हम निकल पड़े। रास्ता पक्का तो था तो गाड़ी भी बढ़िया चल रही थी और नजारे तो ऐसे कि हर जगह रूकने का मन कर रहा था। चेहरे पर पड़ने वाली ठंडी-ठंडी हवाएँ इस सफर को और भी शानदार बना रही थी। कुछ देर बाद दो रास्ते दिखाई दिए। पक्का रास्ता कोमिक ले जाता और कच्चा रास्ता हिक्किम के लिए था। हमने कच्चा रास्ता पकड़ लिया।

अब हम धीरे-धीरे कच्चे रास्ते पर बढ़ते जा रहे थे। कुछ देर बाद हम हिक्कि पहुँच गए। यहाँ आकर देखा तो लोगों का हुजूम उमड़ा था। यहाँ पोस्टकार्ड मिल रहे थे। जिन पर स्पीति के मुख्य आकर्षणों की फोटो बनी हुई थी। 30-35 रुपए में मिल रहे पोस्टकार्ड को खरीदा और फिर कुछ लिखा भी। अब हम हिक्किम गाँ की ओर बढ़ चले। डाकघर के पीछे की तरफ मुहर लगवाई और फिर आगे की तरफ जाकर डाकघर के डिब्बे में डाल दिया। मैं डाकघर के अंदर भी गया। दो महिलाएँ थीं, उन्होंने बताया कि ये उनका ही घर है और इसी में एक कमरे में डाकघर है।

कोमिक

हिक्किम से एक रास्ता सीधा कोमिक की ओर जाता है। हमने उसी कच्चे रास्ते को पकड़ लिया। कुछ देर बाद ये रास्ता पक्के रास्ते से मिल गया। इतनी ऊँचाई पर होना अपने आप में एक शानदार एहसास है। रास्ते में हरे-भरे बुग्याल थे। इतना साफ और सुनहरा आसमान शायद ही मैंने पहले कभी देखा था। कुछ मिनटों में हम कोमिक पहुँच गए। कोमिक दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित जगह है जहाँ तक मोटरेबल रोड है। कोमिक समुद्र तल से 15,550 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।

कोमिक में दुनिया की सबसे ऊँचाई पर स्थित रेस्टोरेंट भी है। हम सबसे पहले इसी जगह पर पहुँचे। जाहिर है कि यहाँ हर चीज बहुत महंगी थी। हमने यहाँ कुछ नहीं खाया। इस जगह को देखने के बाद मोनेस्ट्री देखने के लिए निकल पड़े। मोनेस्ट्री का गेट बंद था लेकिन यहाँ से सुंदर नजारा देखने को मिला। इस नजारे को देखने के बाद हम एक और मोनेस्ट्री में गए। ये कोई मोनेस्ट्री नहीं है बल्कि लामा यहाँ रहते हैं। यहाँ बहुत सारे कमरे भी बने हुए हैं। इस जगह को देखने के बाद हम वापस लौटने लगे। हमने तय किया कि अब हम किब्बर की तरफ जाएँगे।

काजा

रास्ता शानदार था तो पता ही नहीं चली कि अब लांगजा गाँव पार कर गए। लांगजा गाँव के पार करने के बाद फिर से कच्चा रास्ता शुरू हो गया। हम आराम आराम से चलते जा रहे थे लेकिन एक मोड़ पर हमारा गिरना लिखा हुआ था। मैं, देवेश और गाड़ी तीनों जमीन पर पड़े हुए थे। हल्की-हल्की चोट आई और गाड़ी को भी कुछ चोट आ गई। गिरकर हम उठे और धीरे-धीरे बढ़ने लगे। दिमाग एकदम खराब हो गया और हमें जाना था किब्बर की तरफ लेकिन हम काजा लौट आए।

हमने यहाँ लंच किया और फिर धनकर मोनेस्ट्री देखने का तय किया। धनकर ताबो की तरफ है। उसी रास्ते से हम बस से काजा आए थे तो हमें रास्ता पता था। थोड़ी देर बाद हम उसी रास्ते से धनकर की ओर बढ़ते जा रहे थे। देवेश गिरने से पहले कच्चे रास्तों पर भी गाड़ी भगा रहा था लेकिन अब कोई गाड़ी आती तो देवेश बुलेट को एकदम धीमा कर लेता। लंगती गाँव पार करने के बाद हमें रास्ते में एक खूबसूरत झरना दिखाई दिया।

धनकर

इस वाटरफॉल को देखने के बाद हम घनकर की तरफ बढ़ चले। कुछ देर बाद हम धनकर गोंपा गेट पर पहुँच गए। गेट से धनकर 8 किमी. है। अब इस 8 किमी. के रास्ते को तय करने के लिए हम बढ़ने लगे। धनकर का रास्ता एकदम पक्का था लेकिन घुमावदार भी बहुत था। हम हर मोड़ के बाद ऊँचाई पर चले जा रहे थे। काफी देर बाद हमें धनकर दूर से दिखाई देने लगा और कुछ देर बाद हम धनकर पहुँच गए। इस जगह को दूर से देखने पर लगता कि मिट्टी के पहाड़ पर ये जगह बसी हुई है।

हम सीधे मोनेस्ट्री की तरफ बढ़ते चले गए। मोनेस्ट्री के अंदर फोटो और वीडियो लेना मना है तो हमने वो काम नहीं किया। मोनेस्ट्री के एक कमरे में घुसा तो वहाँ कोई नहीं था सिर्फ एक मूर्ति थी। दूसरे तल पर गया तो वहाँ कुछ लोग और लामा थे। एक कमरे में लामा मंत्र पढ़ रहे थे। मुझे कुछ समझ तो नहीं आया लेकिन मन को अच्छा ही लगा। शाम होने को थी और हमें काजा लौटना था। धनकर में लेक भी है लेकिन उसके लिए ट्रेक करना पड़ता है और हमारे पास उसका समय नहीं है।

हम शाम 7 बजे से पहले काजा पहुँच गए और बाइक भी लौटा दी। अब हमें लौटना था। हमारे पास दो रास्ते थे। पहला कि जिस रास्ते से आए हैं उसी से लौटे। काजा से शिमला होते हुए लौटना काफी लंबा और टाइम ले रहा था। दूसरा काजा से मनाली के लिए एक बस सुबह-सुबह जाती है। हमने रात में ही बस में टिकट बुक कर ली थी। जब मडहाउस लौटा तो दिन भर में काफी कुछ जी चुका था। कई खूबसूरत जगहें देखीं और गिरा भी तो हूं। स्पीति की कुछ जगहें अभी भी रह गई हैं जो अगली यात्रा के लिए छोड़ दिया हूं।

  

Saturday, 20 August 2022

काजा: स्पीति घाटी की सबसे शानदार जगह, अलग-सा सुकून है यहाँ

पहाड़ों में हर बार जाकर सुकून-सा महसूस होता है। बहुत सारे लोग कहते हैं कि पहाड़ों में सभी जगहें एक जैसी ही तो होती है लेकिन मुझे तो पहाड़ों में हर जगह की अलग ही लगती है। हर जगह की अपनी खासियत होती है और अपनी सुरूर होता है। हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी का भी एक अलग सुरूर है। तभी तो इस घाटी की सैर हर घुमक्कड़ करना चाहता है।

किन्नौर घाटी के नाको गाँव से मैं बस से स्पीति घाटी के काजा पहुँच गया। काजा स्पीति घाटी की सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है। काजा समुद्र तल से 3,800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अब तक मैं हिमाचल प्रदेश की जिन जगहों पर गया, वहाँ लोगों की भीड़ कम थी। काजा में उतरते ही ऐसा लगा कि किसी मेले में आ गया हूं। हिमाचल प्रदेश के इतने अंदरूनी इलाके में होने की वजह से यहाँ भीड़भाड़ बहुत थी। अब इसी भीड़भाड़ वाले काजा में हमें रहने का ठिकाना खोजना था।

गाड़ी और कमरा

काजा में रहने के ठिकाने से पहले किराये पर मिलने वाली बाइक के बारे में पता करना चाहते थे। आसपास काफी खोजबीन के बाद एक दुकान मिली, बीडी एंड ट्रेवल्स। उस दुकान पर गए तो पता चला कि उनके पास 11 गाड़ियाँ हैं और सभी सुबह चली गई हैं। उन्होंने बताया कि शाम 7 बजे सभी गाड़ियाँ वापस आएंगी तभी आपकी कल के लिए बुकिंग की जा सकती है। जानकारी से ये भी पता चला कि काजा में वो एकमात्र दुकान है, जहाँ किराए पर बाइक मिलती है। काजा में पहले कई दुकानें थीं, जहाँ बाइक किराए पर मिलती थीं लेकिन अब कॉमर्शियल इस्तेमाल के लिए पीले रंग की नंबर प्लेट वाली गाड़ियाँ होती हैं। काजा में अभी बीडी एंड ट्रेवल्स के पास ही पीले रंग की नंबर प्लेट वाली गाड़ियाँ हैं।

अब इतना तो पक्का हो गया था कि हमें काजा में ही रहना है तो अब हमारा अगला लक्ष्य रहने का ठिकाना खोजना था। मैं और देवेश अलग-अलग जगहों पर रहने की जगह खोजने लगे। देवेश को एक जगह सफलता मिल गई। हमने एक मडहाउस देखा और रहने के लिए फाइनल कर दिया। पहाड़ों में मडहाउस के बारे में मैंने सिर्फ सुना था लेकिन पहली बार उसमें ठहर रहा था। जिस व्यक्ति का मडहाउस है, उनका परिवार भी इसमें रहता है। मडहाउस की छत इतनी नीचे थी कि हमें झुक कर चलना पड़ रहा था। एक कमरे में 5 बिस्तर लगे हुए थे, जिसमें से 2 बिस्तर हम दोनों के थे।

काजा शहर

हम लोगों ने अपना सामान मडहाउस में रखा और काजा में घूमने के लिए निकल पड़े। काजा में इतनी भीड़ देखकर एकदम घुटन-सी हो रही थी। काजा में ज्यादातर लोग हमारे जैसे ही थे, घूमने वाले। हम काजा में बस ऐसे ही चलते जा रहे थे। मुझे एक मोनेस्ट्री दिखाई दी। हम लोग उसी मोनेस्ट्री की तरफ बढ़ने लगे। मोनेस्ट्री से पहले एक मोनेस्ट्री जैसी इमारत दिखाई दी। वहाँ काम कर रहे लोगों से बात करने पर पता चला कि ये लामाओ का स्कूल बनकर तैयार हो गया है जो जल्दी ही शुरू हो जाएगा। उन्होंने लामाओ के पुराने स्कूल की इमारत भी दिखाई।

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इसी रास्ते पर बढ़ते हुए हमें ऊपर की तरफ बौद्ध की मूर्ति दिखाई दी। काजा में ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी जिससे आंखों में एकदम से जलन होने लगी। मैंने देवेश से थोड़ी देर के लिए चश्मा ले लिया। अब आंखों में राहत थी। हम बौद्ध की उसी मूर्ति की तरफ आगे बढ़ने लगे। वहाँ तक पहुँचने के लिए थोड़ी चढ़ाई भी करनी पड़ी। मूर्ति पर कुछ लोग काम कर रहे थे। बात करने पर पता चला कि इसी मूर्ति को हाल ही में रखा गया है। हम काजा कस्बे की सबसे ऊँची जगह पर थे।

यहाँ से पूरा काजा दिखाई दे रहा था। ऊँचाई से हर चीज अच्छी लगती है और ये पहाड़ है। नजारा वाकई में बेहद सुंदर है। दूर-दूर तक ऊँचे-ऊँचे पहाड़, उसके नीचे बहती स्पीति नदी और फिर ढेर सारे क्रंकीट की इमारतें। शाम होने को चली थी हालांकि अभी सनसेट नहीं हुआ था। हमें काजा मोनेस्ट्री भी देखनी थी। हम लोग नीचे उतरने लगे। कुछ ही मिनटों में हम नीचे उतर आए और फिर मोनेस्ट्री भी पहुँच गए। मोनेस्ट्री एकदम खाली थी। इसे काजा साक्या मोनेस्ट्री भी कहा जाता है।

काजा मोनेस्ट्री

काजा मोनेस्ट्री बेहद बड़ी है। मैंने जितनी मोनेस्ट्री देखी हैं उन सबमें काजा मोनेस्ट्री सबसे बड़ी है। इस मोनेस्ट्री का उद्घाटन 2009 में 14वें दलाई लामा ने किया था। शाम होने की वजह से मोनेस्ट्री का गेट बंद था। मैं सिर्फ अंदाजा लगा सकता हूं कि काजा मोनेस्ट्री बाहर से इतनी खूबसूरत है तो अंदर से कितनी सुंदर होगी। काजा मोनेस्ट्री के परिसर में कई इमारतें हैं जिनमें लामा रहते भी हैं।

कुछ देर काजा मोनेस्ट्री में बिताने के बाद हम बाहर आ गए। मोनेस्ट्री के सामने ही रोड पार आई लव स्पीति लिखा हुआ है। उसके पीछे आठ सुंदर-सुंदर स्तूप बने हुए हैं। ये सभी 8 स्तूप महात्मा बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इसके पास में ही एक पेट्रोल पंप भी है। यहाँ पर गाड़ियों की लंबी लाइन लगी हुई थी। घड़ी में समय देखा तो 7 बज चुके थे। हम वापस लौटने लगे और थोड़ी देर बाद बाइक वाले की दुकान पर पहुँच गए। कड़ी मशक्कत के बाद हमें एक बुलेट गाड़ी मिल गई। हमें अगले दिन सुबह 8 बजे आकर इस गाड़ी को यहीं से लेना था।

इसके बाद हमने एक ढाबे पर खाना खाया और फिर वापस अपने मडहाउस में लौट आए। काजा में बाहर इतनी सर्दी थी लेकिन मडहाउस में ठंड का एहसास भी नहीं हो रहा था। बर्फबारी के दौरान काजा में इन घरों में सर्दी कम ही लगती होगी। काजा में आए हुए हमें कुछ ही घंटे हुए थे लेकिन काफी कुछ देख लिया था। स्पीति की असली यात्रा तो अभी शुरू भी नहीं हुई थी।

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