Saturday, 20 August 2022

काजा: स्पीति घाटी की सबसे शानदार जगह, अलग-सा सुकून है यहाँ

पहाड़ों में हर बार जाकर सुकून-सा महसूस होता है। बहुत सारे लोग कहते हैं कि पहाड़ों में सभी जगहें एक जैसी ही तो होती है लेकिन मुझे तो पहाड़ों में हर जगह की अलग ही लगती है। हर जगह की अपनी खासियत होती है और अपनी सुरूर होता है। हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी का भी एक अलग सुरूर है। तभी तो इस घाटी की सैर हर घुमक्कड़ करना चाहता है।

किन्नौर घाटी के नाको गाँव से मैं बस से स्पीति घाटी के काजा पहुँच गया। काजा स्पीति घाटी की सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है। काजा समुद्र तल से 3,800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अब तक मैं हिमाचल प्रदेश की जिन जगहों पर गया, वहाँ लोगों की भीड़ कम थी। काजा में उतरते ही ऐसा लगा कि किसी मेले में आ गया हूं। हिमाचल प्रदेश के इतने अंदरूनी इलाके में होने की वजह से यहाँ भीड़भाड़ बहुत थी। अब इसी भीड़भाड़ वाले काजा में हमें रहने का ठिकाना खोजना था।

गाड़ी और कमरा

काजा में रहने के ठिकाने से पहले किराये पर मिलने वाली बाइक के बारे में पता करना चाहते थे। आसपास काफी खोजबीन के बाद एक दुकान मिली, बीडी एंड ट्रेवल्स। उस दुकान पर गए तो पता चला कि उनके पास 11 गाड़ियाँ हैं और सभी सुबह चली गई हैं। उन्होंने बताया कि शाम 7 बजे सभी गाड़ियाँ वापस आएंगी तभी आपकी कल के लिए बुकिंग की जा सकती है। जानकारी से ये भी पता चला कि काजा में वो एकमात्र दुकान है, जहाँ किराए पर बाइक मिलती है। काजा में पहले कई दुकानें थीं, जहाँ बाइक किराए पर मिलती थीं लेकिन अब कॉमर्शियल इस्तेमाल के लिए पीले रंग की नंबर प्लेट वाली गाड़ियाँ होती हैं। काजा में अभी बीडी एंड ट्रेवल्स के पास ही पीले रंग की नंबर प्लेट वाली गाड़ियाँ हैं।

अब इतना तो पक्का हो गया था कि हमें काजा में ही रहना है तो अब हमारा अगला लक्ष्य रहने का ठिकाना खोजना था। मैं और देवेश अलग-अलग जगहों पर रहने की जगह खोजने लगे। देवेश को एक जगह सफलता मिल गई। हमने एक मडहाउस देखा और रहने के लिए फाइनल कर दिया। पहाड़ों में मडहाउस के बारे में मैंने सिर्फ सुना था लेकिन पहली बार उसमें ठहर रहा था। जिस व्यक्ति का मडहाउस है, उनका परिवार भी इसमें रहता है। मडहाउस की छत इतनी नीचे थी कि हमें झुक कर चलना पड़ रहा था। एक कमरे में 5 बिस्तर लगे हुए थे, जिसमें से 2 बिस्तर हम दोनों के थे।

काजा शहर

हम लोगों ने अपना सामान मडहाउस में रखा और काजा में घूमने के लिए निकल पड़े। काजा में इतनी भीड़ देखकर एकदम घुटन-सी हो रही थी। काजा में ज्यादातर लोग हमारे जैसे ही थे, घूमने वाले। हम काजा में बस ऐसे ही चलते जा रहे थे। मुझे एक मोनेस्ट्री दिखाई दी। हम लोग उसी मोनेस्ट्री की तरफ बढ़ने लगे। मोनेस्ट्री से पहले एक मोनेस्ट्री जैसी इमारत दिखाई दी। वहाँ काम कर रहे लोगों से बात करने पर पता चला कि ये लामाओ का स्कूल बनकर तैयार हो गया है जो जल्दी ही शुरू हो जाएगा। उन्होंने लामाओ के पुराने स्कूल की इमारत भी दिखाई।

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इसी रास्ते पर बढ़ते हुए हमें ऊपर की तरफ बौद्ध की मूर्ति दिखाई दी। काजा में ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी जिससे आंखों में एकदम से जलन होने लगी। मैंने देवेश से थोड़ी देर के लिए चश्मा ले लिया। अब आंखों में राहत थी। हम बौद्ध की उसी मूर्ति की तरफ आगे बढ़ने लगे। वहाँ तक पहुँचने के लिए थोड़ी चढ़ाई भी करनी पड़ी। मूर्ति पर कुछ लोग काम कर रहे थे। बात करने पर पता चला कि इसी मूर्ति को हाल ही में रखा गया है। हम काजा कस्बे की सबसे ऊँची जगह पर थे।

यहाँ से पूरा काजा दिखाई दे रहा था। ऊँचाई से हर चीज अच्छी लगती है और ये पहाड़ है। नजारा वाकई में बेहद सुंदर है। दूर-दूर तक ऊँचे-ऊँचे पहाड़, उसके नीचे बहती स्पीति नदी और फिर ढेर सारे क्रंकीट की इमारतें। शाम होने को चली थी हालांकि अभी सनसेट नहीं हुआ था। हमें काजा मोनेस्ट्री भी देखनी थी। हम लोग नीचे उतरने लगे। कुछ ही मिनटों में हम नीचे उतर आए और फिर मोनेस्ट्री भी पहुँच गए। मोनेस्ट्री एकदम खाली थी। इसे काजा साक्या मोनेस्ट्री भी कहा जाता है।

काजा मोनेस्ट्री

काजा मोनेस्ट्री बेहद बड़ी है। मैंने जितनी मोनेस्ट्री देखी हैं उन सबमें काजा मोनेस्ट्री सबसे बड़ी है। इस मोनेस्ट्री का उद्घाटन 2009 में 14वें दलाई लामा ने किया था। शाम होने की वजह से मोनेस्ट्री का गेट बंद था। मैं सिर्फ अंदाजा लगा सकता हूं कि काजा मोनेस्ट्री बाहर से इतनी खूबसूरत है तो अंदर से कितनी सुंदर होगी। काजा मोनेस्ट्री के परिसर में कई इमारतें हैं जिनमें लामा रहते भी हैं।

कुछ देर काजा मोनेस्ट्री में बिताने के बाद हम बाहर आ गए। मोनेस्ट्री के सामने ही रोड पार आई लव स्पीति लिखा हुआ है। उसके पीछे आठ सुंदर-सुंदर स्तूप बने हुए हैं। ये सभी 8 स्तूप महात्मा बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इसके पास में ही एक पेट्रोल पंप भी है। यहाँ पर गाड़ियों की लंबी लाइन लगी हुई थी। घड़ी में समय देखा तो 7 बज चुके थे। हम वापस लौटने लगे और थोड़ी देर बाद बाइक वाले की दुकान पर पहुँच गए। कड़ी मशक्कत के बाद हमें एक बुलेट गाड़ी मिल गई। हमें अगले दिन सुबह 8 बजे आकर इस गाड़ी को यहीं से लेना था।

इसके बाद हमने एक ढाबे पर खाना खाया और फिर वापस अपने मडहाउस में लौट आए। काजा में बाहर इतनी सर्दी थी लेकिन मडहाउस में ठंड का एहसास भी नहीं हो रहा था। बर्फबारी के दौरान काजा में इन घरों में सर्दी कम ही लगती होगी। काजा में आए हुए हमें कुछ ही घंटे हुए थे लेकिन काफी कुछ देख लिया था। स्पीति की असली यात्रा तो अभी शुरू भी नहीं हुई थी।

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