हिमाचल प्रदेश तो वैसे भी खूबसूरती का नगीना है, यहां की हर जगह प्रकृति का शानदार तोहफा है। हिमाचल में सुंदरता का एहसास करना हो तो आपको मेरी तरह किन्नौर घाटी के नाको गांव जरूर जाना चाहिए। यहां की सुंदरता ने तो मेरा मन मोह लिया। यहां घूमते हुए लगता है कि कुछ दिन इस गांव में ही ठहरा जाए। इस गांव में आना किसी खूबसूरत सपने से कम नहीं है।
रिकांगपिओ में मैंने बस स्टैंड पर जाकर बस के बारे में पता कर लिया था। रिकांगपिओ से काजा के लिए पहले बस सुबह साढ़े 5 बजे जाती है जो नाको होते हुए जाती है। इसके बाद अगली बस 4 घंटे बाद साढ़े 9 बजे निकलती है। हम सुबह-सुबह जल्दी उठे और तैयार होकर बस स्टैंड की ओर निकलने लगे। कमरे से बाहर आकर देखा तो पता चला कि होटल का मेन गेट बंद है। कोई रिसपेशन पर था भी नहीं तो हम दीवार फांदकर बाहर निकले।कुछ ही मिनटों में हम रिकांगपिओ बस स्टैंड पहुंच गए। यहां बहुत भीड़ थी। लोगों ने 1 घंटे पहले टिकट बुक करा ली थी। बड़ी मुश्किल से मुझे सबसे पीछे वाली सीट मिली। अच्छी बात ये थी कि मुझे खिड़की वाली सीट मिली। अगर आप आगे वाले सीट चाहते हैं तो सुबह 4 बजे आकर टिकट ले लें। 9:30 बजे बस अपने तय समय पर चल पड़ी। मेरे बगल में बिहार और झारखंड के कुछ लोग बैठे थे जो काम करने के लिए हिमाचल आए थे। इस बस से काजा और ताबो जा रहे हैं।
स्पीलो गांव
यहां के पहाड़ संगमरमर की तरह दिखाई दे रहे थे। इस रास्ते को देखकर मजा आ रहा था। कुछ देर बाद वो रास्ता खत्म हो गया और घुमावदार रास्ता शुरू हो गया। रास्ता इतना घुमावदार था कि बस बहुत धीमे चल रही थी। धीरे-धीरे बस ऊपर की ओर चढ़ती जा रही थी। कई बार तो लगता था कि बस चल नहीं धड़क रही है। यहां से पहाड़ बंजर हो गए थे लेकिन बेहद खूबसूरत लग रहे थे। मैं पहली बार बंजर पहाड़ों को देख रहा था। लगभग साढ़े 9 बजे हमारी बस नाको पहुंच गई।
नाको गांव
नाको गांव। |
तैयार होने के बाद हम नाको को देखने के लिए निकल पड़े। हम सबसे पहले नाको गांव में नाको लेक को देखने जा रहे हैं। नाको एक छोटा-सा गांव है। यहां आपको कोई एटीएम और पेट्रोल पंप भी नहीं मिलेगा। सर्दियों में ये गांव बर्फ से ढंक जाता है। इस गांव में लोग खेती करते हुए दिखाई दिए। रास्ते में हमें कई छोटे-बड़े होटल और होमस्टे दिखाई दिए। बहुत सारे लोग नाको में लेक और मोनेस्ट्री को देखने के बाद चले जाते हैं। नाको की खूबसूरती यहां रूककर ही महसूस की जा सकती है।
नाको झील
नाको झील। |
झील के पास से ही एक रास्ता ऊपर की ओर जा रहा है। हमें उस रास्ते से गोंपा की ओर जाना है। कुछ लंबी चढ़ाई के बाद गोंपा के पास आ गए। यहां कुछ लोग खड़े थे। उन्होंने हमसे पूछा कि क्या यही मोनेस्ट्री है? मैंने उनको बताया कि ये गोंपा है मोनेस्ट्री तो गांव में है। उन्होंने कहा कि फिर लोग यहां आते क्यों हैं? मैंने उनसे कुछ नहीं कहा कि लेकिन उनकी बात सुनकर हंसी जरूर आ गई। मैं तो बस नाको को अच्छे से देखना चाह रहा था और अभी वही कर रहा हूं।
नाको गांव। |
नाको मोनेस्ट्री
उन्होंने एक जगह रूककर कहा, सीधे चले जाना मोनेस्ट्री आ जाएगी। कुछ देर में मोनेस्ट्री का गेट आ गया। गेट के पास दो प्यारे-से बच्चे बैठे थे। मठ परिसर में कई इमारतें देखने को मिलीं। इन मोनेस्ट्री का उद्घाटन 2007 में 14वें दलाई लामा और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने किया था। मोनेस्ट्री की इमारत के गेट के ऊपर दलाई लामा की फोटो लगी है।
मोनेस्ट्री के अंदर भी दलाई लामा भी एक फोटो है। मठ के अंदर वाकई में काफी शांति है। मोनेस्ट्री को कुछ देर हम देखते रहे। मोनेस्ट्री को देखने के बाद हम वापस कमरे पर लौट आए। सुबह से कुछ खाया नहीं था तो नाको बस स्टैंड पर गए और ढाबे पर दबाकर खाना खाया। नाको में हमने कई सारी चीचें देख लीं लेकिन अभी नाको की सबसे सुंदर जगह को देखना बाकी था जो हमारे प्लान में भी नहीं था। नाको जैसा खूबसूरत गांव रोज-रोज देखने को नहीं मिलते।
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