Tuesday, 9 August 2022

हिमाचल में सुंदर वादियों और झील किनारे बसा नाको गांव, कहीं नहीं मिलेगी ऐसी जगह

हिमाचल प्रदेश तो वैसे भी खूबसूरती का नगीना है, यहां की हर जगह प्रकृति का शानदार तोहफा है। हिमाचल में सुंदरता का एहसास करना हो तो आपको मेरी तरह किन्नौर घाटी के नाको गांव जरूर जाना चाहिए। यहां की सुंदरता ने तो मेरा मन मोह लिया। यहां घूमते हुए लगता है कि कुछ दिन इस गांव में ही ठहरा जाए। इस गांव में आना किसी खूबसूरत सपने से कम नहीं है।

रिकांगपिओ में मैंने बस स्टैंड पर जाकर बस के बारे में पता कर लिया था। रिकांगपिओ से काजा के लिए पहले बस सुबह साढ़े 5 बजे जाती है जो नाको होते हुए जाती है। इसके बाद अगली बस 4 घंटे बाद साढ़े 9 बजे निकलती है। हम सुबह-सुबह जल्दी उठे और तैयार होकर बस स्टैंड की ओर निकलने लगे। कमरे से बाहर आकर देखा तो पता चला कि होटल का मेन गेट बंद है। कोई रिसपेशन पर था भी नहीं तो हम दीवार फांदकर बाहर निकले।

कुछ ही मिनटों में हम रिकांगपिओ बस स्टैंड पहुंच गए। यहां बहुत भीड़ थी। लोगों ने 1 घंटे पहले टिकट बुक करा ली थी। बड़ी मुश्किल से मुझे सबसे पीछे वाली सीट मिली। अच्छी बात ये थी कि मुझे खिड़की वाली सीट मिली। अगर आप आगे वाले सीट चाहते हैं तो सुबह 4 बजे आकर टिकट ले लें। 9:30 बजे बस अपने तय समय पर चल पड़ी। मेरे बगल में बिहार और झारखंड के कुछ लोग बैठे थे जो काम करने के लिए हिमाचल आए थे। इस बस से काजा और ताबो जा रहे हैं।

स्पीलो गांव

खूबसूरत वादियों से होकर हमारी बस आगे बढ़ती जा रही है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और बगल में बहती नदी। वैसे तो सुबह-सुबह तो हर शहर अच्छ लगता है और ये तो पहाड़ हैं। 7 बजे हमारी बस स्पीलो में रूकी। स्पीलो गांव में हमने पराठा और चाय पी। 15-20 मिनट के बाद बस चल पड़ी। धूप निकल चुकी थी जो वाकई में अच्छी लग रही थी। कुछ देर बाद खाब आया। इसके बाद शानदार सड़क आई। पहाड़ को काटकर बनाई गई ये सड़क ठीक वैसी ही थी जैसी रामपुर से रिकांगपिओ आते समय मिली थी।

यहां के पहाड़ संगमरमर की तरह दिखाई दे रहे थे। इस रास्ते को देखकर मजा आ रहा था। कुछ देर बाद वो रास्ता खत्म हो गया और घुमावदार रास्ता शुरू हो गया। रास्ता इतना घुमावदार था कि बस बहुत धीमे चल रही थी। धीरे-धीरे बस ऊपर की ओर चढ़ती जा रही थी। कई बार तो लगता था कि बस चल नहीं धड़क रही है। यहां से पहाड़ बंजर हो गए थे लेकिन बेहद खूबसूरत लग रहे थे। मैं पहली बार बंजर पहाड़ों को देख रहा था। लगभग साढ़े 9 बजे हमारी बस नाको पहुंच गई।

नाको गांव

नाको गांव।
जिस जगह बस रूकी थी वहां कुछ दुकानें थीं। हमें तो नाको गांव जाना था तो उस तरफ पैदल चल पड़े। आगे एक बड़ा सा गेट दिखाई दिया जिस पर लिखा है, ग्राम पंचायत नाको आपका हार्दिक स्वागत करती है। हम उस गेट से आगे बढ़ गए। नाको इंडो-चाइना बॉर्डर के पास में स्थित एक छोटा-सा गांव है समुद्र तल से 3,625 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कुछ देर चलने के बाद होटल और होमस्टे आने शुरू हो गए। हने डेलेक हाउस होटल में 800 रुपए में एक कमरा ले लिया। कमरे से नाको का शानदार व्यू दिखाई दे रहा था।
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तैयार होने के बाद हम नाको को देखने के लिए निकल पड़े। हम सबसे पहले नाको गांव में नाको लेक को देखने जा रहे हैं। नाको एक छोटा-सा गांव है। यहां आपको कोई एटीएम और पेट्रोल पंप भी नहीं मिलेगा। सर्दियों में ये गांव बर्फ से ढंक जाता है। इस गांव में लोग खेती करते हुए दिखाई दिए। रास्ते में हमें कई छोटे-बड़े होटल और होमस्टे दिखाई दिए। बहुत सारे लोग नाको में लेक और मोनेस्ट्री को देखने के बाद चले जाते हैं। नाको की खूबसूरती यहां रूककर ही महसूस की जा सकती है।

नाको झील

नाको झील।
कुछ देर बाद एक रास्ता नीचे की ओर गया। हम उन सीढ़ियों को रखकर लेक के पास पहुंच गए। नाको लेक वाकई में खूबसूरत है पानी शीशे की तरफ साफ है। झील के चारों तरफ पहाड़ और हरियाली है। मुझे अच्छी बात ये लगी कि हमारे अलावा यहां सिर्फ 1-2 लोग ही हैं। कुछ देर में वो भी चले गए। लेक के किनारे एक कुत्ता आराम फरमा रहा था। हमने लेक का एक पूरा चकक्कर लगाया। कुछ देर यहां बैठे और फिर आगे बढ़ गए।

झील के पास से ही एक रास्ता ऊपर की ओर जा रहा है। हमें उस रास्ते से गोंपा की ओर जाना है। कुछ लंबी चढ़ाई के बाद गोंपा के पास आ गए। यहां कुछ लोग खड़े थे। उन्होंने हमसे पूछा कि क्या यही मोनेस्ट्री है? मैंने उनको बताया कि ये गोंपा है मोनेस्ट्री तो गांव में है। उन्होंने कहा कि फिर लोग यहां आते क्यों हैं? मैंने उनसे कुछ नहीं कहा कि लेकिन उनकी बात सुनकर हंसी जरूर आ गई। मैं तो बस नाको को अच्छे से देखना चाह रहा था और अभी वही कर रहा हूं।

नाको गांव।
इस गोंपा से दूर-दूर तक पहाड़ और नाको गांव दिखाई दे रहा था। पास में एक जगह है, जहां लिखा हुआ है आई लव नाको। इसके पास में कुछ पुराने गोंपा बने हुए हैं। यहां पर एक बोर्ड लगा हुआ है जिस पर लिखा हुआ है कि गर्भवती और महावारी के दौरान महिलाओं के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र है। मुझे ऐसा कुछ दिखाई देता है तो अजीब लगता है लेकिन हर चीज को बदलने में समय लगता है। ये पुरानी सोच भी नये लोगों द्वारा शायद बदली जाएगी।

नाको मोनेस्ट्री

नाको के गोंपा को देखने के बाद हम नीचे की ओर लौटने लगे। अब हमारा अगला लक्ष्य नाको मोनेस्ट्री है। अब हम नाको गांव से होकर नाको मोनेस्ट्री की ओर चलने लगे। रास्ते में कच्चे घर, पुआल और बाड़े में बंधी गाय दिखाई दीं। काफी हद तक नाको वैसा ही है जैसा मेरा गांव है। बस यहां चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं। रास्ते में एक महिला मिलीं उनसे मोनेस्ट्री का रास्ता पूछा तो उन्होंने साथ चलने को कहा। हम नाको गांव में चलते जा रहे थे।

उन्होंने एक जगह रूककर कहा, सीधे चले जाना मोनेस्ट्री आ जाएगी। कुछ देर में मोनेस्ट्री का गेट आ गया। गेट के पास दो प्यारे-से बच्चे बैठे थे। मठ परिसर में कई इमारतें देखने को मिलीं। इन मोनेस्ट्री का उद्घाटन 2007 में 14वें दलाई लामा और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने किया था। मोनेस्ट्री की इमारत के गेट के ऊपर दलाई लामा की फोटो लगी है। 

मोनेस्ट्री के अंदर भी दलाई लामा भी एक फोटो है। मठ के अंदर वाकई में काफी शांति है। मोनेस्ट्री को कुछ देर हम देखते रहे। मोनेस्ट्री को देखने के बाद हम वापस कमरे पर लौट आए। सुबह से कुछ खाया नहीं था तो नाको बस स्टैंड पर गए और ढाबे पर दबाकर खाना खाया। नाको में हमने कई सारी चीचें देख लीं लेकिन अभी नाको की सबसे सुंदर जगह को देखना बाकी था जो हमारे प्लान में भी नहीं था। नाको जैसा खूबसूरत गांव रोज-रोज देखने को नहीं मिलते।

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