Thursday, 18 August 2022

किन्नौर वैली के नाको गांव से स्पीति घाटी के काजा तक की यात्रा, कल्पना से भी सुंदर

घुमक्कड़ों के लिए हिमाचल प्रदेश किसी खजाने से कम नहीं है। वैसे भी पहाड़ तो हर किसी को लुभाते हैं। कई सारी जगहों के होने के बावजूद लोग जाने क्यों चुनिंदा जगहों पर ही जाते हैं। हिमाचल प्रदेश की इन लोकप्रिय जगहों पर आपको सिर्फ भीड़ ही भीड़ मिलेगी। मैं पहली बार हिमाचल की यात्रा पर आया तो इन फेमस जगहों को छोड़कर कुछ छोटी जगहों पर गया। रामपुर बुशहर से यात्रा को शुरू किया। रिकांगपिओ और कल्पा होते हुए नाको पहुंचा। नाको के बाद अब मुझे स्पीति घाटी की यात्रा पर जाना है।

सुबह-सुबह हम नाको में उठ गए। नाको से स्पीति जाने वाली पहली बस सुबह 9:30 बजे आती है। ये बस काजा तक जाती है। पहले हम ताबो जाने वाले थे लेकिन अब हम काजा जा रहे हैं। होटल से चेक आउट करके हम सुबह 8 बजे ही नाको बस स्टैंड पहुंच गए। हमने सोचा कि बस से पहले कुछ और साधन मिल गया तो उससे काजा निकल जाएंगे। मैं आने जाने वाली गाड़ियों से लिफ्ट मांगने लगा। मैंने काजा की ओर जा रहे ट्रैक्टर से भी लिफ्ट मांगी। लगभग 1 घंटे तक जब सफलता नहीं मिली तो पास के ढाबे पर बैठ गया।

बस आ गई

सुबह से नाश्ता नहीं किया था इसलिए ढाबे पर परांठे का नाश्ता किया और बस का इंतजार करने लगे। 9:30 बज गए लेकिन बस नहीं आई। 10 बज गए लेकिन फिर भी बस नहीं दिखाई दी। मैंने सोचा कि रास्ते में बस बिगड़ तो नहीं गई। ऐसा ही कुछ सोच रहा था तभी सामने से बस आते हुए दिखाई दी। नाको में बस आधे घंटे के लिए रूकती है। हमने पीछे वाली सीट पकड़ ली। तभी एक विदेशी व्यक्ति भी बस में घुसा। उसका नाम तोमरे है और वो इजराइल का है। तोमरे एक महीने से पूरे हिमाचल में घूम रहा है और अब धनकर जा रहा है।

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लगभग 10:30 बजे बस काजा के लिए चल पड़ी। हम फिर से घुमावदार रास्ते पर थे। बस में बिहार के कई लोग बैठे थे जो दशकों से स्पीति में काम कर रहे थे। बस के बाहर नजारा वाकई में खूबसूरत था। रास्ता बेहद खराब मिल रहा था। बस के सामने कोई गाड़ी आ जाती तो बड़ी सावधानी के साथ दोनों गाड़ियां निकलतीं। कई जगहों पर कच्चे रास्तों पर काम भी हो रहा था। इन रास्तों पर गाड़ी चलाना कोई आसान काम नहीं है।

थोड़ी देर बाद हम ऊंचाई से समतल रास्ते पर आ गए। रास्ते के बगल से नदी भी बह रही है। नाको से काजा की दूरी 110 किमी. है। मैंने अनुमान लगाया कि 1 या 2 बजे तक हम काजा पहुंच जाएंगे लेकिन जैसा रास्ता मिल रहा है, उससे अनुमान हो गया काजा पहुंचने में समय लगेगा। अच्छी बात ये थी कि इतने अंदरूनी इलाके में बिजली और नेटवर्क अच्छा था। हर गांव में मुझे एक टावर लगा हुआ दिखाई दे रहा था। कई घंटों की यात्रा के बाद एक आईटीबीपी का चेक पोस्ट आया। यहां पर विदेश से आए लोगों का परमिट चेक किया जाता है। तोमरे का भी परमिट देखा गया।

दोपहर के 12:30 बजे हमारी बस हुरलिंग में रूकी। हुरलिंग स्पीति वैली का एक छोटा-सा गांव है। धूप बहुत तेज थी और यहां गर्म हवा भी चल रही थी। ऐसा लगा कि पतझड़ का मौसम शुरू हो गया है। हुरलिंग में कुछ होमस्टे दिखाई दे रहे थे। हम तोमरे के साथ एक ढाबे में बैठे। मैंने सूप पिया और तोमरे ने इंडियन थाली मंगवाई। लगभग आधे घंटे के बाद बस फिर से चल पड़ी। अब रास्ते में खूब सारे गांव दिखाई दे रहे थे। गांव का बोर्ड भी रोड पर लगा हुआ था। जिस पर गांव की जनसंख्या भी लिखी है। कुछ गांव की जनसंख्या तो सिर्फ 30 थी। ये गांव वाकई में अद्भुत थे।

काजा अब आएगा

लगभग 2 बजे हमारी बस ताबो में रूकी। एक बार तो मन किया कि यहीं पर उतर जाऊं लेकिन फिर मन को समझाया और बस में बैठकर ही दूर से ही ताबो देखा। गर गांव के बाहर बस रूकती। कुछ लोग उतरते और कुछ लोग चढ़ते। थोड़ी देर बाद सिचलिंग आया और धनकर गोंपा गेट आया। यहीं से धनकर मोनेस्ट्री के लिए रास्ता जाता है। धनकर गोंपा गेट से धनकर 8 किमी. की दूरी पर है। घनकर के पार करते ही खूबसूरत रास्ता शुरू हो गया। जरा कल्पना करिए, चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़, पास मे बहती नदी और आपकी कल्पना से भी साफ आसमान। इससे खूबसूरत रास्ता क्या ही होगा?

ऐसे ही खूबसूरती को निहारने के लिए एक जगह बस 10 मिनट के लिए रूकी और फिर चल पड़ी। सुबह 10 बजे से हम बस में बैठे थे और बढ़े ही जा रहे थे लेकिन काजा आने का नाम ही नहीं ले रहा था। लगभग 4 बजे हमारी बस काजा में घुस गई। हम काजा के बस स्टैंड पर पहुंच गए। हमारी स्पीति की यात्रा इसी काजा से शुरू होने थी। स्पीति की यात्रा में कई रोमांचकारी और सुंदर पल आने अभी बाकी थे।

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Friday, 12 August 2022

हिमाचल प्रदेश का एक सीक्रेट ट्रेक, जहां से मैंने देखा अपनी जिंदगी का सबसे प्यारा सूर्यास्त

मेरा ऐसा मानना है कि हिमालय पूरी दुनिया का सबसे खूबसूरत खजाना है। हिमाचल प्रदेश की किन्नौर वैली का नाको गांव इसी हिमालय का शानदार नगीना है। हमने जब हिमाचल प्रदेश की यात्रा का प्लान बनाया था तो ये तय किया था कि सिर्फ शहर और गांव देखेंगे, कोई ट्रेक नहीं करेंगे। उसके के लिए बाद में अलग से प्लान बनाएंगे लेकिन नाको गांव में हमने एक शानदार ट्रेक किया। मैंने नाको में एक ऊंची पहाड़ी से अपनी जिंदगी का सबसे खूबसूरत सूर्यास्त देखा।

नाको में हम सुबह से हैं। सबसे पहले हमने नाको झील देखी, उसके बाद एक गोंपा देखा और आखिर में शानदार नाको मोनेस्ट्री देखी। 4 बज चुके थे और हम अपने होटल के कमरे में बैठे थे। हमने नाको की किसी ऊंची जगह से सूर्यास्त देखने का प्लान बनाया। काफी सोच-विचार के बाद हमने गोंपा की तरफ जाने का मन बनाया। आपको बता दें कि नाको एक छोटा-सा गांव है। यहां ना कोई एटीएम और न ही पेट्रोल पंप है। नेटवर्क की बात करें तो वोडाफोन को छोड़ दिया जाए तो सारे नेटवर्क अच्छे आ रहे हैं।

नाको में क्रिकेट

क्रिकेट का मैदान।
हम पैदल चलते-चलते गोंपा के पास में आ गए। यहां खूब सारे पत्थर रखे हुए हैं जिन पर शायद तिब्बती भाषा में कुछ लिखा हुआ है। सुबह ही हमने यहां बोर्ड पर पढ़ा था कि ये नाको पवित्र क्षेत्र है। हम इन पत्थरों को देखते हुए आगे बढ़े तो एक रास्ता ऊपर की ओर जाता हुआ दिखाई दिया। ऊंचाई की ओर जाने वाला ये रास्ता पूरी तरह से ट्रेक की तरह लग रहा था। हमारे पास समय था तो हमने उस रास्ते पर चलने का तय किया।

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कुछ ही आगे बढ़े तो स्थानीय महिलाएं मिलीं। उन्होंने हमसे पूछा कि कहां जा रहे हो? हमने बताया कि ऐसे ही घूम रहे हैं। उन्होंने बताया कि पास में क्रिकेट टूर्नामेंट हो रहा है, उसे देख आओ। हम क्रिकेट देखने के लिए आगे बढ़ गए। थोड़ी देर में हम क्रिकेट के मैदान पर तो पहुंच गए लेकिन वहां कोई मैच नहीं हो रहा था। मैदान के एक तरफ कुछ लोग बैठे हुए थे और एक तरफ टेंट लगा हुआ था। एक लड़का माइक से हिन्दी गाना गा रहा था। एक लड़के से बात करने पर पता चला कि इन्टरविलेज टूर्नामेंट हो रहा है और आज पहला मैच हुआ। मलिंग ने नाको को हरा दिया।

नाको ट्रेक

हमने उस लड़के से विदा ली और आगे बढ़ गए। नाको में अभी तेज धूप थी तो हम चाह रहे थे कि सबसे ऊंची जगह से सूर्यास्त देखा जाए। रास्ता काफी पतला है और पत्थर भी बहुत सारे पड़े हुए हैं। हम धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे हैं। हम जितना चल रहे हैं नाको गांव और लोग छोटे-छोटे दिखाई देने लगे। हम थोड़ी देर में एक जगह पहुंचे जहां झंडा लगा हुआ था। इतनी ऊंचाई पर आकर हवा काफी तेज चल रही थी। नजारा यहां से खूबसूरत था लेकिन मेरा मन और ऊपर जाने का था।

हमारे पास वक्त था तो फिर से आगे बढ़ने लगे। कुछ आगे चले तो सामने से बहुत सारी भेड़ आती हुई दिखाई दी। साथ में एक चरवाहा भी है। उससे बात करने पर पता चला कि वो हर रोज इतनी ऊंचाई पर भेड़ चराने आता है। हमारे पूछने पर उसने बताया कि जून से भेड़ के बाल काटने शुरू कर देते हैं और सितंबर में बाल फिर से आने शुरू हो जाते हैं। ऊन से गर्म कपड़े, कंबल और रजाई बनाते हैं और गांव में ही बेचते हैं, बाहर कहीं बेचने नहीं जाते हैं। उन्होंने ये भी बताया कि हम लोग से भेड़ से दूध नहीं निकालते हैं।

काफी बात करने के बाद हम आगे फिर से बढ़ने लगे। हम धीरे-धीरे चल रहे थे लेकिन सांस काफी फूल रही थी। नाको समुद्र तल से 3,600 मीटर से भी ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित है। जब इतनी ऊंचाई पर ट्रेक करते हैं तो ऑक्सीजन की कमी की वजह से थकावट जल्दी होती है। वैसे ही मेरे साथ हो रहा था। काफी देर के बाद चढ़ाई खत्म हो गई लेकिन ट्रेक अभी खत्म नहीं हुआ था। अब हमारे सामने एक लंबा घास का मैदान था।

एक आखिरी चढ़ाई

घास के मैदान पर एक काला घोड़ा घास खाने में लगा हुआ था। उसने हमारी तरफ देखा तक नहीं। हम जिस पहाड़ पर पहुंचना था उसके लिए इस घास के मैदान को पार करना था। मैं कई सालों बाद ऐसे छिपे हुए ट्रेक को कर रहा था। वाकई में मजा आ रहा था लेकिन किसी भी हालत में सनसेट के पहले उस पहाड़ी तक पहुंचना था। हम जल्दी-जल्दी आगे बढ़ रहे थे। कुछ ही देर बाद हमने घास का मैदान पार कर लिया।

घास के मैदान को पार करने के बाद हमारे सामने एक चुनौती और आ गई। पहले तो हमें बड़-बड़े पत्थर मिले जिनको कुछ ही देर में पार कर लिया। उसके बाद एक खड़ी चढ़ाई थी, जिसका कोई रास्ता नहीं था। हमें रास्ता बनाकर चलना था। अब यहां तक आ गए थे तो ऊपर तो जाना ही था। हिम्मत बांधकर खड़ी पहाड़ी पर चढ़ने लगे। कुछ ही मिनटों में हमने उस खड़ी पहाड़ी को पार कर लिया।

खूबसूरत सूर्यास्त

इस आखिरी चढ़ाई को पार करने के बाद जो नजारा देखने को मिला, वो वाकई में बेहद खूबसूरत था। इस नजारे को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता सिर्फ महसूस किया जा सकता है। चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़, जहां देखो बस पहाड़ ही पहाड़। सामने से डूबता हुआ सूरज और आसमां में फैली हुई लालिमा इस नजारे को और भी शानदार बना रही थी। इतनी ऊंचाई पर हवा भी काफी तेज चल रही थी। हमारे आसपास लगे झंडे लहरा रहे थे।

इतना लंबा रास्ता तय करने के बाद ऐसा नजारा दिख जाए तो सफर यादगार बन जाता है। मैंने नाको में अपनी जिंदगी का सबसे खूबसूरत सूर्यास्त देखा है। इस ट्रेक को किए बिना नाको की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। हर किसी को नाको में एक दिन ठहरना चाहिए और इस ट्रेक को जरूर करना चाहिए। सूर्यास्त होने के बाद हम नीचे उतरने लगे। नाको गांव पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो गया। थकान इतनी ज्यादा थी कि बेड पर लेटते ही नींद के आगोश में चला गया। हिमाचल का सफर अभी खत्म नहीं हुआ था। एक लंबा सफर अभी भी बाकी था।

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Tuesday, 9 August 2022

हिमाचल में सुंदर वादियों और झील किनारे बसा नाको गांव, कहीं नहीं मिलेगी ऐसी जगह

हिमाचल प्रदेश तो वैसे भी खूबसूरती का नगीना है, यहां की हर जगह प्रकृति का शानदार तोहफा है। हिमाचल में सुंदरता का एहसास करना हो तो आपको मेरी तरह किन्नौर घाटी के नाको गांव जरूर जाना चाहिए। यहां की सुंदरता ने तो मेरा मन मोह लिया। यहां घूमते हुए लगता है कि कुछ दिन इस गांव में ही ठहरा जाए। इस गांव में आना किसी खूबसूरत सपने से कम नहीं है।

रिकांगपिओ में मैंने बस स्टैंड पर जाकर बस के बारे में पता कर लिया था। रिकांगपिओ से काजा के लिए पहले बस सुबह साढ़े 5 बजे जाती है जो नाको होते हुए जाती है। इसके बाद अगली बस 4 घंटे बाद साढ़े 9 बजे निकलती है। हम सुबह-सुबह जल्दी उठे और तैयार होकर बस स्टैंड की ओर निकलने लगे। कमरे से बाहर आकर देखा तो पता चला कि होटल का मेन गेट बंद है। कोई रिसपेशन पर था भी नहीं तो हम दीवार फांदकर बाहर निकले।

कुछ ही मिनटों में हम रिकांगपिओ बस स्टैंड पहुंच गए। यहां बहुत भीड़ थी। लोगों ने 1 घंटे पहले टिकट बुक करा ली थी। बड़ी मुश्किल से मुझे सबसे पीछे वाली सीट मिली। अच्छी बात ये थी कि मुझे खिड़की वाली सीट मिली। अगर आप आगे वाले सीट चाहते हैं तो सुबह 4 बजे आकर टिकट ले लें। 9:30 बजे बस अपने तय समय पर चल पड़ी। मेरे बगल में बिहार और झारखंड के कुछ लोग बैठे थे जो काम करने के लिए हिमाचल आए थे। इस बस से काजा और ताबो जा रहे हैं।

स्पीलो गांव

खूबसूरत वादियों से होकर हमारी बस आगे बढ़ती जा रही है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और बगल में बहती नदी। वैसे तो सुबह-सुबह तो हर शहर अच्छ लगता है और ये तो पहाड़ हैं। 7 बजे हमारी बस स्पीलो में रूकी। स्पीलो गांव में हमने पराठा और चाय पी। 15-20 मिनट के बाद बस चल पड़ी। धूप निकल चुकी थी जो वाकई में अच्छी लग रही थी। कुछ देर बाद खाब आया। इसके बाद शानदार सड़क आई। पहाड़ को काटकर बनाई गई ये सड़क ठीक वैसी ही थी जैसी रामपुर से रिकांगपिओ आते समय मिली थी।

यहां के पहाड़ संगमरमर की तरह दिखाई दे रहे थे। इस रास्ते को देखकर मजा आ रहा था। कुछ देर बाद वो रास्ता खत्म हो गया और घुमावदार रास्ता शुरू हो गया। रास्ता इतना घुमावदार था कि बस बहुत धीमे चल रही थी। धीरे-धीरे बस ऊपर की ओर चढ़ती जा रही थी। कई बार तो लगता था कि बस चल नहीं धड़क रही है। यहां से पहाड़ बंजर हो गए थे लेकिन बेहद खूबसूरत लग रहे थे। मैं पहली बार बंजर पहाड़ों को देख रहा था। लगभग साढ़े 9 बजे हमारी बस नाको पहुंच गई।

नाको गांव

नाको गांव।
जिस जगह बस रूकी थी वहां कुछ दुकानें थीं। हमें तो नाको गांव जाना था तो उस तरफ पैदल चल पड़े। आगे एक बड़ा सा गेट दिखाई दिया जिस पर लिखा है, ग्राम पंचायत नाको आपका हार्दिक स्वागत करती है। हम उस गेट से आगे बढ़ गए। नाको इंडो-चाइना बॉर्डर के पास में स्थित एक छोटा-सा गांव है समुद्र तल से 3,625 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कुछ देर चलने के बाद होटल और होमस्टे आने शुरू हो गए। हने डेलेक हाउस होटल में 800 रुपए में एक कमरा ले लिया। कमरे से नाको का शानदार व्यू दिखाई दे रहा था।
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तैयार होने के बाद हम नाको को देखने के लिए निकल पड़े। हम सबसे पहले नाको गांव में नाको लेक को देखने जा रहे हैं। नाको एक छोटा-सा गांव है। यहां आपको कोई एटीएम और पेट्रोल पंप भी नहीं मिलेगा। सर्दियों में ये गांव बर्फ से ढंक जाता है। इस गांव में लोग खेती करते हुए दिखाई दिए। रास्ते में हमें कई छोटे-बड़े होटल और होमस्टे दिखाई दिए। बहुत सारे लोग नाको में लेक और मोनेस्ट्री को देखने के बाद चले जाते हैं। नाको की खूबसूरती यहां रूककर ही महसूस की जा सकती है।

नाको झील

नाको झील।
कुछ देर बाद एक रास्ता नीचे की ओर गया। हम उन सीढ़ियों को रखकर लेक के पास पहुंच गए। नाको लेक वाकई में खूबसूरत है पानी शीशे की तरफ साफ है। झील के चारों तरफ पहाड़ और हरियाली है। मुझे अच्छी बात ये लगी कि हमारे अलावा यहां सिर्फ 1-2 लोग ही हैं। कुछ देर में वो भी चले गए। लेक के किनारे एक कुत्ता आराम फरमा रहा था। हमने लेक का एक पूरा चकक्कर लगाया। कुछ देर यहां बैठे और फिर आगे बढ़ गए।

झील के पास से ही एक रास्ता ऊपर की ओर जा रहा है। हमें उस रास्ते से गोंपा की ओर जाना है। कुछ लंबी चढ़ाई के बाद गोंपा के पास आ गए। यहां कुछ लोग खड़े थे। उन्होंने हमसे पूछा कि क्या यही मोनेस्ट्री है? मैंने उनको बताया कि ये गोंपा है मोनेस्ट्री तो गांव में है। उन्होंने कहा कि फिर लोग यहां आते क्यों हैं? मैंने उनसे कुछ नहीं कहा कि लेकिन उनकी बात सुनकर हंसी जरूर आ गई। मैं तो बस नाको को अच्छे से देखना चाह रहा था और अभी वही कर रहा हूं।

नाको गांव।
इस गोंपा से दूर-दूर तक पहाड़ और नाको गांव दिखाई दे रहा था। पास में एक जगह है, जहां लिखा हुआ है आई लव नाको। इसके पास में कुछ पुराने गोंपा बने हुए हैं। यहां पर एक बोर्ड लगा हुआ है जिस पर लिखा हुआ है कि गर्भवती और महावारी के दौरान महिलाओं के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र है। मुझे ऐसा कुछ दिखाई देता है तो अजीब लगता है लेकिन हर चीज को बदलने में समय लगता है। ये पुरानी सोच भी नये लोगों द्वारा शायद बदली जाएगी।

नाको मोनेस्ट्री

नाको के गोंपा को देखने के बाद हम नीचे की ओर लौटने लगे। अब हमारा अगला लक्ष्य नाको मोनेस्ट्री है। अब हम नाको गांव से होकर नाको मोनेस्ट्री की ओर चलने लगे। रास्ते में कच्चे घर, पुआल और बाड़े में बंधी गाय दिखाई दीं। काफी हद तक नाको वैसा ही है जैसा मेरा गांव है। बस यहां चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं। रास्ते में एक महिला मिलीं उनसे मोनेस्ट्री का रास्ता पूछा तो उन्होंने साथ चलने को कहा। हम नाको गांव में चलते जा रहे थे।

उन्होंने एक जगह रूककर कहा, सीधे चले जाना मोनेस्ट्री आ जाएगी। कुछ देर में मोनेस्ट्री का गेट आ गया। गेट के पास दो प्यारे-से बच्चे बैठे थे। मठ परिसर में कई इमारतें देखने को मिलीं। इन मोनेस्ट्री का उद्घाटन 2007 में 14वें दलाई लामा और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने किया था। मोनेस्ट्री की इमारत के गेट के ऊपर दलाई लामा की फोटो लगी है। 

मोनेस्ट्री के अंदर भी दलाई लामा भी एक फोटो है। मठ के अंदर वाकई में काफी शांति है। मोनेस्ट्री को कुछ देर हम देखते रहे। मोनेस्ट्री को देखने के बाद हम वापस कमरे पर लौट आए। सुबह से कुछ खाया नहीं था तो नाको बस स्टैंड पर गए और ढाबे पर दबाकर खाना खाया। नाको में हमने कई सारी चीचें देख लीं लेकिन अभी नाको की सबसे सुंदर जगह को देखना बाकी था जो हमारे प्लान में भी नहीं था। नाको जैसा खूबसूरत गांव रोज-रोज देखने को नहीं मिलते।

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