Saturday, 16 July 2022

नैना पीक: उत्तराखंड की इस चोटी से नजारा देखकर, मेरे मुंह से निकला ‘वाह’

नैनीताल में टिफिन टॉप का ट्रेक करने के बाद अगले दिन हमें सिर्फ एक ही जगह पर जाना था, नैना देवी पीक। नैना पीक नैनीताल की सबसे ऊंची जगह है। इस चोटी से पूरा नैनीताल दिखाई देता है। नैना पीक समुद्र तल से 2,615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस पीक तक जाने के लिए ट्रेकिंग करनी पड़ती है। पहले मैं और मेरा दोस्त दोनों साथ में जाने वाले थे लेकिन अब मुझे अकेले ही जाना था। मैं सुबह-सुबह जल्दी नैना पीक के लिए निकल पड़ा।

नैनाताल से लगभग 2-3 किमी. दूर एक जगह पड़ती है, टांगे की बैन। इसी जगह से नैना पीक का ट्रेक शुरू होता है। मैंने उस प्वाइंट तक पहुंचने के लिए ही स्कूटी ली थी। मैं स्कूटी से कुछ ही देर में उस जगह पर पहुंच गया। वहां पर छोटी-सी पुलिस चौकी थी और उत्तराखंड टूरिज्म का एक बोर्ड लगा हुआ था। वहीं से ऊपर की ओर रास्ता गया था। मैंने वहीं पर अपनी स्कूटी पार्क की और निकल पड़ा नैना पीक का ट्रेक करने।

बढ़े चलो

मैं आराम-आराम से चला जा रहा था। रास्ता पूरी तरह से खाली था। चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे। जिस दुकान से हमने स्कूटी रेंट पर ली थी। दुकान संचालक ने हमें बताया था कि नैना पीक को पहले चाइना पीक के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बताया कि पहले इस पीक से चाइना दिखाई देता था इसलिए इसे चाइना पीक के नाम से जाना जाता है।

रास्ता पगडंडी वाला था और चौड़ाई में भी काफी छोटा था। जंगल वाला ये रास्ता इतना सुनसान था कि मझे अपने पैरों की आवाज भी सुनाई दे रही थी। अकेला था तो बात करने के लिए भी कोई नहीं था। सोलो ट्रिप में कई बार अकेले होते हैं लेकिन ये अकेलापन मुझे अभी तक अखरा नहीं है। थोड़ी देर में मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी। 7-8 लोगों का एक ग्रुप पीछे-पीछे चला आ रहा था।

ये हसीं वादियां

रास्ते में जगह-जगह बुरांश के फूल लगे हुए थे। एक जगह से मैंने शार्टकट लेने की कोशिश की। वहां से मुझे सुंदर नजारा देखने को तो मिला लेकिन फिसलन वाले रास्ते पर चलने में काफी परेशानी हुई। यहां से दूर-दूर तक हरियाली और एक के पीछे एक पहाड़ दिखाई दे रहे थे। मैं फिर से पगडंडी वाले रास्ते पर चलने लगा। कुछ लोग ऊपर से नीचे की ओर आते हुए दिखाई दिए।

थोड़ी ही दूर आगे बढ़ा तो दो लोग रास्ते पर बैठे हुए दिखाई दिए। उन्होंने बताया कि वो भी ट्रेक करने गए थे लेकिन उनको पीक नहीं मिली और अब वो लौट रहे हैं। बाद में कुछ लोग और मिले जो काफी दूर होने वजह से लौट रहे थे। अब मेरे दिमाग में भी वही चलने लगा कि मेरे साथ भी ऐसा न हो जाए। मुझे नैना पीक को किसी भी हालत में देखना था।

आप सही रास्ते पर हैं

रास्ता थोड़ा कठिन होता जा रहा था लेकिन अब तक शरीर और पैरों को आदत हो चुकी थी। रास्ते पर कुछ लोग और मिले जो नैनी पीक का ट्रेक करके लौट रहे थे। उन्होंने कहा, आप सही रास्ते पर हैं। अभी 2-3 किमी. दूर है पीक। कुछ और आगे चला तो मुझे दो रास्ते मिले। आसपास कोई था भी नहीं जिससे सही रास्ता पूछ जा सके। मैं ऊंचाई वाले रास्ते की ओर बढ़ने लगा। घूमते हुए कई बार आपको ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं। कभी ये सही भी होते हैं और कभी-कभी गलत हो जाते हैं।

चलते-चलते काफी देर हो चुकी थी। पसीना भी काफी आ रहा था लेकिन आसपास का नजारा सुकून दे रहा था। नैनाताल की भीड़ और शोर से दूर यहां सुकून था। कुछ देर बाद फिर से दो रास्ते मिले। बार-बार ये रास्ते मेरी परीक्षा ले रहे थे। यहां एक खंबा लगा हुआ था जिस पर चाइना पीक लिखा हुआ था और तीर का निशान बना हुआ था। मैं उसी रास्ते पर बढ़ गया।

दूर डगर है

अब रास्ते पर काफी बढ़े-बढ़े पत्थर मिल रहे थे हालांकि उनसे काफी परेशानी हो नहीं रही थी। कुछ देर ऐसे चलने के बाद एक जगह प्लास्टिक की बोतल और पॉलिथीन डली हुई थी। पहाड़ों में ऐसा देखकर खराब लगता है। हम ऐसा करके प्रकृति को और नुकसान पहुंचा रहे होते हैं। अगर आप ट्रेक पर अपने साथ पॉलिथीन लेकर आते हैं तो आपकी जिम्मेदारी है कि उसे वापस भी लेकर जाएं।

हर मोड़ के बाद मुझे ऐसा लगता कि अब नैना पीक आने वाली है लेकिन हर बार एक लंबा रास्ता दिखाई देने लगता। कच्चे रास्ते पर सामने से एक व्यक्ति आते हुए दिखाई दिया। बात करने पर पता चला कि नैना पीक अब दूर नहीं है, 5 मिनट में पहुंचा जा सकता है। ये सुनते ही मेरे कदमों में तेजी आ गई। कुछ देर बाद मैं एक जगह पर पहुंचा जहां एक दो कच्चे घर बने हुए थे।

नैना पीक

यहां एक जगह लिखा हुआ था, पुराना नाम चाइना पीक और नया नाम के सामने नैना पीक लिखा हुआ था। वहीं एक व्यक्ति कुछ काम कर रहा था। उन्होंने बताया कि यही नैना पीक है, आगे व्यू प्वाइंट है। मैं उस व्यू प्वाइंट को देखने के लिए आगे बढ़ गया। यहां चारों तरफ चीड़ और देवदार के पेड़ लगे हुए थे। 100 मीटर चलने के बाद मैंने जो नजारा देखा उसके बाद मेरे मुंह से सिर्फ वाह निकला।

वाकई में नैना पीक से नैनीताल का खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा था। यहां से पूरा नैनीताल और नैनी लेक दिखाई दे रही थी। चारों तरफ हरियाली और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। इस नजारे को देखकर मेरी आंखे थक नहीं रही थी। काफी देर तक यहां बैठने के बाद मैं वापस लौटने लगा। अब मुझे एक और नये सफर पर निकलना था। बिना नैनी पीक ट्रेक के नैनीताल की यात्रा को अधूरा ही माना जाएगा।

टिफिन टॉप ट्रेक की यात्रा यहां पढ़ें।

Wednesday, 6 July 2022

नैनीताल का बेहद खूबसूरत टिफिन टॉप ट्रेक, देखने को मिले बेहद खूबसूरत नजारे

नैनीताल की यात्रा अब तक हमारे लिए शानदार रही थी। हमने अपनी स्कूटी से आज कैंची धाम, भीमताल, नौकुचियाताल, कमलताल और फिर सातताल गए। सातताल के बाद हम नैनीताल लौट आए थे। अभी शाम के 5 बजे थे और हमें गाड़ी लौटानी थी 8 बजे। अब या तो हम गाड़ी अभी लौटा देते और फिर पैदल घूमते या फिर 8 बजे तक स्कूटी से घूमते। तब हमने टिफिन टॉप का ट्रेक करने के बारे में सोचा।

हमें ये तो पता था कि टिफिन टॉप नैनीताल में ही है लेकिन कहां है ये पता नहीं थी। हमने नैनीताल लेक के पास पूछते हुए ग्राउंड के पास पहुंच गए, जहां क्रिकेट खेला जा रहा था। हमने वही खड़े एक पुलिस वाले से टिफिन टॉप का रास्ता पूछा। अब हम छोटी गलियों से स्कूटी लेकर चढ़े जा रहे। चढ़ाई इतनी खड़ी थी कि अगर हमारी स्कूटी में ब्रेक अच्छे नहीं होते तो लुढ़कते हुए वापस नैनीताल पहुंच जाते।

ट्रेक शुरू

कुछ देर बाद हम ऐसी जगह पर पहुंचे। जहां से टिफिन टॉप का ट्रेक शुरू होता है। वहां पर टिफिन टॉप का बोर्ड भी लगा हुआ था। टिफिन टॉप का ट्रेक 3-4 किमी. का है। ये बात हमें उस समय पता नहीं थी। शाम होने लगी थी, हमें लग रहा था कि लौटते-लौटते अंधेरे ना हो जाए। फिर भी टिफिन टॉप ट्रेक के रास्ते पर थे। ट्रेक में हमारे साथ कोई नहीं था। शायद शाम होने की वजह से कोई भी यहां नहीं था।

पत्थरों वाला ये ट्रेक मुझे छोटा और आसान ही लग रहा था लेकिन जिन्होंने पहले ट्रेक नहीं किया उनको इसमें भी परेशानी होगी। कुछ ऐसा ही मेरे साथी के साथ हो रही थी। हम आराम-आराम से बात करते हुए बढ़े जा रहे थे। रास्ता पूरा सुनसान था और खूबसूरत भी था। धूप हम तक आ तो नहीं रही थी लेकिन दिखाई दे रही थी कि अब तक सनसेट हुआ नहीं है।

जंगल जंगल



ट्रेक काफी हरा-भरा था। चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे और बहुत सारे फूल भी लगे हुए थे। भीड़ न होने की वजह से यहां इतनी शांति थी कि पंक्षियों की चहचहाहट को आराम से सुना जा सकता था। उसी आवाज तो सुनते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। तभी पीछे से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। तब हमने चैन की सांस ली कि इस ट्रेक में हम अकेले नहीं हैं।

अब हम तीन लोग टिफिन टॉप पर पहुंचने के लिए इस सुनसान रास्ते पर बढ़े जा रहे थे। हम सब यही सोच रहे थे कि अभी कितना दूर है? मुझे छोड़कर बाकी दोनों लोग यहां से वापस लौटने के पक्ष में थे लेकिन मैं तो टिफिन टॉप को देखे बिना वापस लौटने वाला नहीं था। तभी सामने से एक स्थानीय महिला सिर पर लकड़ियां रखकर ऊपर की ओर से आते दिखी। हमने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि आप आ गए हैं, बस थोड़ा दूर है।

खूबसूरत नैनीताल

महिला की बात सुनकर हम सब बढ़े जा रहे थे। अब तक चढ़ाई थोड़ी खड़ी हो गई थी लेकिन चढ़ने में बहुत ज्यादा कठिनाई नहीं हो रही थी। कुछ देर बाद हमें एक जगह पर दुकानें दिखीं। हम समझ गए कि अपनी मंजिल पर पहुंचने वाले हैं। यहां से कुछ सीढ़ियां ऊपर गईं थी और वही टिफिन टॉप था। टिफिन टॉप से क्या खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा था।

टिफिन टॉप से पूरा नैनीताल दिखाई दे रहा था। चारों तरफ हरे-भरे पहाड़ और बीच में कंक्रीट के घर बने हुए थे। अभी भी सनसेट नहीं हुआ था। हम टिफिन टॉप के ऊंचे पहाड़ पर चढ़ गए। यहां से नजारा भी खूबसूरत था और हवाएं भी तेज चल रही थी। हमने यहां से बेहद खूबसूरत सूर्यास्त देखा। नैनीताल की मेरी यात्रा शानदार होते जा रही थी। कुछ देर यहां ठहरने के बाद हमने वहां दुकान पर मैगी खाई।

शाम हो चली थी और अब हमें टिफिन टॉप से नीचे लौटना था। टिफिन टॉप से हम नीचे उतरने लगे और बातों ही बातों में कब नीचे आ गए, पता ही नहीं चला। कुछ देर बाद अब हम नैनीताल लेक के सामने थे। टिफिन टॉप के ट्रेक के बाद नैनीताल का सफर शानदार हो गया था। ऐसे ट्रेक यात्राओं को और भी शानदार बना देते हैं।

नैनीताल के इस सफर में अब एक और शानदार जगह जुड़ना बाकी थी। हमने उस जगह पर जाने के लिए स्कूटी अगले दिन के लिए भी ले ली। हमने स्कूटी लेकर अपने होटल आए और वहीं पर लगा दी। अब हमें इस खूबसूरत यात्रा पर जाने के लिए अगली सुबह का इंतजार करना था।

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Monday, 4 July 2022

इन खूबसूरत झीलों को देखे बिना मेरी नैनीताल की यात्रा अधूरी ही रहती

कुछ जगहें होती हैं जो बहुत मशहूर होती हैं इसलिए यहां भीड़ भी बहुत होती है। मैं ऐसी जगहों पर जाने से दूर रहता हूं लेकिन मैं नैनीताल हमेशा से जाना चाहता था। वजह है यहां की खूब सारी झीलें। मुझे नैनीताल को देखने में इतनी ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी जितनी आसपास की झीलों को देखने में थी। हम नैनीताल में एक दिन पहले आ चुके थे लेकिन असली घुमक्कड़ी अब शुरू होने वाली थी।

27 अप्रैल 2022। हम सुबह-सुबह उठे और तैयार हो गए। हमने मल्लीताल में नाश्ता किया और अब हमें पैदल ही मॉल रोड जाना था। हमें नैनीताल को घूमने के लिए एक स्कूटी की जरूरत थी। हमने एक स्कूटी वाले से बात कर ली थी। सबसे पहले हम नैनी लेक को देखने गए। सुबह-सुबह नैनी लेक खूबसूरत लग रही थी। झील में इस समय बोटिंग नहीं हो रही थी। इस वजह से भी लेक अच्छी लग रही थी।

थोड़ी देर बाद हम मॉल रोड पर स्कूटी वाले की दुकान पर थे। यहां हमने टीवीएस की स्कूटी को 700 रुपए में रेंट पर ले लिया। हम दुकानदार से ही नैनीताल के आसपास की जगहों के रास्ते के बारे में पूछ लिया। अब हम स्कूटी से नैनीताल में थे और थोड़ी देर बाद ही नैनीताल से बाहर थे। हम सबसे पहले भवाली जाना था और वहां से नीम करौली कैंची धाम।

सफर शुरू

नैनीताल से भवाली 10 किमी. की दूरी पर है। हमने एक जगह पेट्रोल भरवाया और फिर आगे बढ़ चले। कुछ देर बाद शहर पीछे छूट गया और हम पहाड़ी रास्ते पर आगे बढ़ चले। घुमावदार रास्ते पर स्कूटी चलाने में वाकई में मुझे मजा आ रहा था। पहाड़ों में स्कूटी चलाने का एक अलग अनुभव होता है। मसूरी के बाद अब मैं नैनीताल में पहाड़ों में स्कूटी पर था। लगभग आधे घंटे बाद हम लोग भवाली पहुंच गए। यहां से हमें तीन रास्ते मिले। एक रास्ता मुक्तेश्वर की ओर जा रहा था। एक रास्ता भीमताल की तरफ और एक कैंची धाम।

हमने नीम करौली कैंची धाम का रास्ता पकड़ लिया। थोड़ी ही दूर चले थे तो हम एक जगह आग लगी दिखी। गर्मियों में पहाड़ों में अक्सर आग लग जाती है। यहां तो चीड़ के पेड़ भी बहुत हैं जिसकी वजह से आग अक्सर लग जाती है। हम फिर से घुमावदार रास्ते पर बढ़ने लगे। कुछ देर बाद हम कैंची धाम पहुंच गए। कैंची धाम नीम करौरी बाबा का है।

कैंची धाम

कैंची धाम।
कैंची धाम रोड किनारे की स्थित है। हम उस आश्रम को देखने के लिए बढ़ गए। परिसर के अंदर फोटो खींचना मना था। हम उसी का पालन करते हुए आश्रम को देख रहे थे। आश्रम में कई सारे मंदिर थे जिसमें एक मंदिर नीम करौरी महाराज का भी था। जिसमें उनकी एक मूर्ति भी रखी हुई है। परिसर को देखने के बाद हम बाहर आ गए। स्कूटी उठाई और भवाली की ओर बढ़ चले। 

अब हम नैनीताल के आसपास की झीलों को देखना था। सबसे पहले हमें भीमताल जाना था। इसके लिए हम वापस उसी रास्ते से भवाली जा रहे थे। कुछ देर बाद हम लोग भवाली पहुंच गए। यहां से हमने भीमताल जाने वाला रास्ता पकड़ लिया। भवाली से भीमताल की दूरी 11 किमी. है। घुमावदार रास्ते से बढ़े जा रहे थे और भीमताल पहुंचने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा।

भीमताल लेक

भीमताल लेक।
भीमताल लेक के चारों तरफ सड़क है हालांकि लेक के आसपास लोगों की भीड़ न के बराबर थी। इस लेक में भी बोटिंग होती है लेकिन हमारा ऐसा करने का कोई मन नहीं था। भीमताल नैनीताल जिले का एक कस्बा है। झील का पानी एकदम हरा और साफ था। यहां पर हम कुछ देर रूके और फिर आगे बढ़ चले।

भीमताल से अब हमें नौकुचियाताल जाना था। भीमताल से नौकुचियाताल लगभग 9 किमी. की दूरी पर है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, रास्ता सुंदर होता जा रहा था। लोगों से लेक का रास्ता पूछते हुए हम नौकुचियाताल पहुंच गए। हमने अपनी गाड़ी पास में ही पार्क कर दी और लेक देखने पहुंच गए। नौकुचियाताल लेक भीमताल लेक से बड़ी लग रही थी।

नौकुचियाताल लेक

नौकुचियाताल लेक।
नौकुचियाताल लेक के चारों तरफ हरे-भरे पेड़ और खूबसूरत पहाड़ थे। लेक में लोग बोटिंग कर रहे थे। किनारे में कुछ बत्तख भी थीं। नौकुचियाताल लेक नैनीताल की सबसे गहरी झील में से एक है। ये लेक 983 मीटर लंबी, 693 मीटर चौड़ी और 40 मीटर गहरी है। हमने सुबह से कुछ खाया नहीं था इसलिए यहीं एक दुकान पर मैगी खाई।

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नौकुचियाताल लेक के ठीक बगल पर एक और छोटी सी झील है। इस लेक का पानी काफी गंदा था। मैगी वाले ने बताया कि ये कमलताल लेक है। कुछ दिनों के बाद पूरी झील कमल से भर जाती है। वाकई में वो खूबसूरत नजारा होता होगा। दोनों झीलों को देखने के बाद हम आगे बढ़ गए। अब हमे सात ताल लेक देखने जाना था।

सातताल लेक

सातातल झील।
हम फिर से अपनी स्कूटी से आगे बढ़े जा रहे थे। इस बार हमें कुछ लंबी दूरी नापनी थी। नौकुचियाताल से सात ताल लगभग 17 किमी. की दूरी पर है। सबसे पहले हम भीमताल आए और वहां से सात ताल के रास्ते पर चल पढ़े। कुछ देर चलने के बाद हम मुख्य सड़क से गांवों वाले रास्ते पर चलने लगते हैं। सातताल लेक तक का रास्ता वाकई में शानदार है। गांवों से होकर जाने वाले इस रास्ते में हरियाली ही हरियाली है। रास्ते में हमें बहुत ज्यादा गाड़ियां भी नहीं मिलीं।

हमें बहुत जोर की भूख लगी थी और हमें कुमाऊंनी थाली भी खानी थी। सात ताल में पहुंचने के बाद हमने अपने लिए एक ढाबे से कुमाऊंनी थाली मंगवा ली। इस कुमाऊंनी थाली में हमें आलू के गुटके, भट्ट की दाल, कुमाऊंना रायता, झोली, भांग की चटनी, मडुवा की रोटी और चावल मिले। थाली वाकई में शानदार थी। पेट पूजा करने के बाद हम सात ताल लेक को देखने लिए निकल पड़े।

सातताल लेक सात ताजे पानी की झीलों से मिलकर बनी हुई है। ये झील काफी बड़ी भी है। ये काफी सुंदर भी है। सातताल में लोगों की भीड़ भी कम थी और चारों तरफ हरियाली भी बहुत थी। यहां पर भी बोटिंग होती है लेकिन हमें पैदल घूमने में ही अच्छा लग रहा था। हम लेक के पास ही एक जगह जाकर बैठ गए। यहां हम काफी देर बैठे रहे। एक बुजुर्ग व्यक्ति रस्सी के सहारे पानी में गोते लगा रहा था और उसकी पत्नी फोटो खींच रही थी। ऐसे ही कई नजारों को सातताल में हम देख रहे थे। नैनीताल का सफर अभी खत्म नहीं हुआ था। अभी तो हमें कई सारे एडवेंचर करने थे।

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