नैनीताल में टिफिन टॉप का ट्रेक करने के बाद अगले दिन हमें सिर्फ एक ही जगह पर जाना था, नैना देवी पीक। नैना पीक नैनीताल की सबसे ऊंची जगह है। इस चोटी से पूरा नैनीताल दिखाई देता है। नैना पीक समुद्र तल से 2,615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस पीक तक जाने के लिए ट्रेकिंग करनी पड़ती है। पहले मैं और मेरा दोस्त दोनों साथ में जाने वाले थे लेकिन अब मुझे अकेले ही जाना था। मैं सुबह-सुबह जल्दी नैना पीक के लिए निकल पड़ा।
नैनाताल से लगभग 2-3 किमी. दूर एक जगह पड़ती है, टांगे की बैन। इसी जगह से नैना पीक का ट्रेक शुरू होता है। मैंने उस प्वाइंट तक पहुंचने के लिए ही स्कूटी ली थी। मैं स्कूटी से कुछ ही देर में उस जगह पर पहुंच गया। वहां पर छोटी-सी पुलिस चौकी थी और उत्तराखंड टूरिज्म का एक बोर्ड लगा हुआ था। वहीं से ऊपर की ओर रास्ता गया था। मैंने वहीं पर अपनी स्कूटी पार्क की और निकल पड़ा नैना पीक का ट्रेक करने।बढ़े चलो
मैं आराम-आराम से चला जा रहा था। रास्ता पूरी तरह से खाली था। चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे। जिस दुकान से हमने स्कूटी रेंट पर ली थी। दुकान संचालक ने हमें बताया था कि नैना पीक को पहले चाइना पीक के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बताया कि पहले इस पीक से चाइना दिखाई देता था इसलिए इसे चाइना पीक के नाम से जाना जाता है।रास्ता पगडंडी वाला था और चौड़ाई में भी काफी छोटा था। जंगल वाला ये रास्ता इतना सुनसान था कि मझे अपने पैरों की आवाज भी सुनाई दे रही थी। अकेला था तो बात करने के लिए भी कोई नहीं था। सोलो ट्रिप में कई बार अकेले होते हैं लेकिन ये अकेलापन मुझे अभी तक अखरा नहीं है। थोड़ी देर में मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी। 7-8 लोगों का एक ग्रुप पीछे-पीछे चला आ रहा था।
ये हसीं वादियां
रास्ते में जगह-जगह बुरांश के फूल लगे हुए थे। एक जगह से मैंने शार्टकट लेने की कोशिश की। वहां से मुझे सुंदर नजारा देखने को तो मिला लेकिन फिसलन वाले रास्ते पर चलने में काफी परेशानी हुई। यहां से दूर-दूर तक हरियाली और एक के पीछे एक पहाड़ दिखाई दे रहे थे। मैं फिर से पगडंडी वाले रास्ते पर चलने लगा। कुछ लोग ऊपर से नीचे की ओर आते हुए दिखाई दिए।थोड़ी ही दूर आगे बढ़ा तो दो लोग रास्ते पर बैठे हुए दिखाई दिए। उन्होंने बताया कि वो भी ट्रेक करने गए थे लेकिन उनको पीक नहीं मिली और अब वो लौट रहे हैं। बाद में कुछ लोग और मिले जो काफी दूर होने वजह से लौट रहे थे। अब मेरे दिमाग में भी वही चलने लगा कि मेरे साथ भी ऐसा न हो जाए। मुझे नैना पीक को किसी भी हालत में देखना था।
आप सही रास्ते पर हैं
चलते-चलते काफी देर हो चुकी थी। पसीना भी काफी आ रहा था लेकिन आसपास का नजारा सुकून दे रहा था। नैनाताल की भीड़ और शोर से दूर यहां सुकून था। कुछ देर बाद फिर से दो रास्ते मिले। बार-बार ये रास्ते मेरी परीक्षा ले रहे थे। यहां एक खंबा लगा हुआ था जिस पर चाइना पीक लिखा हुआ था और तीर का निशान बना हुआ था। मैं उसी रास्ते पर बढ़ गया।
दूर डगर है
हर मोड़ के बाद मुझे ऐसा लगता कि अब नैना पीक आने वाली है लेकिन हर बार एक लंबा रास्ता दिखाई देने लगता। कच्चे रास्ते पर सामने से एक व्यक्ति आते हुए दिखाई दिया। बात करने पर पता चला कि नैना पीक अब दूर नहीं है, 5 मिनट में पहुंचा जा सकता है। ये सुनते ही मेरे कदमों में तेजी आ गई। कुछ देर बाद मैं एक जगह पर पहुंचा जहां एक दो कच्चे घर बने हुए थे।
नैना पीक
यहां एक जगह लिखा हुआ था, पुराना नाम चाइना पीक और नया नाम के सामने नैना पीक लिखा हुआ था। वहीं एक व्यक्ति कुछ काम कर रहा था। उन्होंने बताया कि यही नैना पीक है, आगे व्यू प्वाइंट है। मैं उस व्यू प्वाइंट को देखने के लिए आगे बढ़ गया। यहां चारों तरफ चीड़ और देवदार के पेड़ लगे हुए थे। 100 मीटर चलने के बाद मैंने जो नजारा देखा उसके बाद मेरे मुंह से सिर्फ वाह निकला।
वाकई में नैना पीक से नैनीताल का खूबसूरत नजारा दिखाई दे रहा था। यहां से पूरा नैनीताल और नैनी लेक दिखाई दे रही थी। चारों तरफ हरियाली और पहाड़ दिखाई दे रहे थे। इस नजारे को देखकर मेरी आंखे थक नहीं रही थी। काफी देर तक यहां बैठने के बाद मैं वापस लौटने लगा। अब मुझे एक और नये सफर पर निकलना था। बिना नैनी पीक ट्रेक के नैनीताल की यात्रा को अधूरा ही माना जाएगा।