Tuesday, 17 March 2020

अजमेर: इस शहर को हमने सबसे खूबसूरत जगह से देखा!

यात्रा का पिछला भाग यहां पढ़ें।

हम किसी जगह पर घूमने क्यों जाते हैं? उस जगह की खूबसूरती को देखकर, कुछ फेमस चीज की वजह से या फिर हमें वो शहर देखना होता है। आजकल शहर को देखने कम ही लोग जाते हैं। लोग जाते हैं तो उस शहर की फेमस जगहों को देखने। हमारा पुष्कर का सफर पूरा हो चुका था और हम अजमेर आ चुके थे। अजमेर को मैंने अजमेर शरीफ की दरगाह और अढाई दिन के झोपड़े से ही जाना था। ये सब मैंने किताबों में पढ़ा था और जब मैं उस शहर में था तो मन किया कि किताबों में पढ़ी इमारतों को हकीकत में देख लेते हैं। अफसोस इस शहर में होने के बावजूद हम इन दोनों को ही नहीं देख पाने वाले थे। शायद यही तो है घुमक्कड़ी। जैसा हम प्लान करते हैं, कई बार वैसा नहीं होता है। अजमेर की यात्रा हमारे लिए वैसा प्लान था।


हम लोग अजमेर बस स्टैंड पर खड़े थे। यहां से हममें से एक का सफर पूरा हो चुका था और अपनी नौकरी वाली जिदंगी में लौटने जा रही थी। कुछ देर बाद बस से वो कहीं दूर निकल गई। हम सब अजमेर घूमने वाले थे ये तो तय हो गया था लेकिन अजमेर के बाद कहां जाना है? ये अभी तक हम तय नहीं कर पाए थे। कुछ लोग कुंभलगढ़ जाना चाहते थे और कुछ जैसलमेर। मैं कुंभलगढ़ जाने के पक्ष में था लेकिन आखिरी में सबकी राय एक हुई और जगह पक्की हुई, जैसलमेर।

अब हम अजमेर देखने के लिए तैयार थे। हम पहले अजमेर शरीफ, अढ़ाई दिन का झोपड़ा या तारागढ़ फोर्ट जा सकते थे। तारागढ़ फोर्ट दूर था तो हमने सबसे पहले वहीं जाने का तय किया। तारागढ़ फोर्ट कोई बस तो नहीं जाती लेकिन जीप जाती है। तारागढ़ फोर्ट के लिए शेयरिंग जीप डिग्गी बाजार से मिलती है, हमें ये यहां के स्थानीय लोगों ने बताया। हमने डिग्गी बाजार के लिए टैक्सी ली। शहर को देखते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे थे। अजमेर, राजस्थान के बाकी शहरों की तरह नहीं है। मुझे ये शहर, यहां के लोग उत्तर प्रदेश और हरियाणा की तरह दिखाई दे रहा था। बीच में एक जगह फ्लाई ओवर का काम चल रहा था। जिससे रास्ते में जाम जैसी स्थिति हो गई थी। कुछ मिनटों की मशक्कत और ऑटो चालक की चालाकी ने हमें जाम से निकालकर डिग्गी बाजार पहुंचा दिया।

दाल पकवान।

डिग्गी बाजार से तारागढ़ फोर्ट की दूरी लगभग 12 किमी. है। यहां कई जीपें लगी हुईं थी जो शेयरिंग में जा रहीं थीं। हमको तारागढ़ जाना था लेकिन उससे पहले हमें कुछ खाने की जरूरत थी। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था और भूख भी बहुत तेज लगी थी। वहीं पास में कुछ ठेले लगे थे, गर्म-गर्म पूड़ी निकल रही थीं। घूमते समय हम खाना खोजते तो हैं लेकिन उसके लिए बड़े-बड़े होटल और रेस्टोरेंट नहीं जाना पड़ता। ऐसे ही किसी गली-कूचे पर मिलने वाले पकवान ही हमारी भूख मिटाते हैं। गर्म-गर्म पूड़ी बन रहीं थी, हमने सबसे पहले उसे ही मंगवाया। थाली में गर्म-गर्म पूड़ी, साथ में आलू की सब्जी, चटनी और सलाद। गर्म-गर्म पूड़ी-सब्जी और वो भी पेड़ के नीचे। पूड़ी-सब्जी और दाल पकवान के बाद हम जाने के लिए तैयार थे।

तारागढ़ फोर्ट

किला नहीं दरगाह।

हमारे जीप में बैठते ही जीप चलने को तैयार थी। कुछ ही देर बाद हम अजमेर से निकलकर तारागढ़ के रास्ते पर थे। तारागढ़ फोर्ट अजमेर से काफी ऊंचाई पर स्थित है। रास्ता कुछ वैसा ही जैसे देहरादून से मसूरी तक का है। गाड़ी बार-बार चक्कर लगाए जा रही थी। लगभग 1 घंटे में हमें गाड़ी ने उतार दिया। जहां हम उतरे वहां कोई किला तो नजर नहीं आ रहा था। हमें सामने एक बोर्ड नजर आया। जिस पर लिखा था, ‘दरगाह हजरत मीसां आपका स्वागत करती है’। हम उसी दरगाह की ओर चल दिए। हम गलियों से होकर आगे बढ़ रहे थे। पहले हमें बहुत सारी दुकानें मिलीं, जहां फूल और चादर मिल रही थी। हमें कुछ नहीं लेना था इसलिए आगे बढ़ गए।

दरगाह के भीतर।

एक जगह हमने अपना सामान और जूते रखे। कुछ देर बाद हम उस दरगाह के अंदर थे। जैसे मंदिर में होता है यहां भी आपको कुछ लोग पकड़ने आएंगे, पैसे ऐंठना चाहेंगे। धर्म कोई भी हो लोग एक जैसे ही होते हैं। मंदिर में भी वही होता है और मस्जिद में भी। बहुत सारे लोग चादर चढ़़ाने जा रहे थे तो कुछ लोग वहीं बैठे थे। हममें से कुछ लोग वहीं बैठ गए और कुछ अंदर चले गए। हमें ले जाने के लिए एक शख्स आया तो हमने मना कर दिया। ये वैसा ही कुछ था जो कोलकाता के कालीघाट मंदिर में हुआ था। अंदर पहुंचा तो मजार थी जिसके आसपास कुछ लोग बैठे थे। मजार वाकई खूबसूरत थी, लग रहा था कि हीरे-जवाहरात से बना कुछ देख रहा हूं। इस खूबसूरत मजार को देखकर जल्दी ही मैं बाहर आ गया।

चलें, बहुत दूर



कुछ देर तक इस दरगाह में घूमने के बाद हम बाहर निकल आए। अब वापस जाना था लेकिन जिस रास्ते से आए थे, उससे नहीं जाना चाहते थे। हमें पैदल रास्ता मिल गया जो दरगाह के पीछे से थे। हम उसी तरफ बढ़े तो कुछ देर बाद हमें वो रास्ता मिल गया। हम अब नीचे की ओर उतरना था। रास्ते में कई दुकानें भी मिल रहीं थीं। उन्हीं में से एक से एक टेप रिकाॅर्डर में अजीब और वाहियात चीज बताई जा रही थी। जिसमें कहा जा रहा था कि अगर आपकी औलाद नहीं हो रही है तो यहां आएं। इस वाहियाद चीज को सुनते हुए हम आगे बढ़ गए। हमारे कुछ साथी फोटो खींचने के चक्कर में काफी पीछे हो गए थे। हम उनके इंतजार के लिए एक जगह बैठ गए। हम जहां बैठे थे वहां से एक और रास्ता दिखाई दे रहा था।

आओ चलें।

ये रास्ता वहीं जा रहा था जहां ये सीढ़ियों वाला रास्ता पहुंच रहा था। इस रास्ते में पत्थर थे, जंगल था और पगडंडियां। मैं इस रास्ते की ओर बढ़ गया। कभी-कभी रास्ता छोड़कर पगडंडियों पर चलना चाहिए। पगडंडियां नये अनुभव देती हैं और गुंजाइश रहती है कुछ नया मिलने की। कुछ देर कंटीले और छोटे रास्ते पर चलने के बाद हम एक पहाड़ी पर पहुंच गए। यहां से बेहद खूबसूरत नजारा दिखाई दिया। आगे का रास्ता और कठिन था, अब हमें सीढ़ीनुमा पत्थरों से नीचे उतरना था। ये रास्ता कठिन था और मैं नहीं चाहता था कि बिना वजह किसी को कोई चोट आए। मगर मेरे सभी साथी इसी रास्ते से जाना चाहते थे। आखिरकार हम उसी कठिन रास्ते से जाने का तय किया। हम आराम-आराम से धीरे बढ़ते गए। जब तक सभी साथी एक जगह नहीं पहुंचते थे, हम आगे नहीं बढ़ते थे। धीरे-धीरे संभल-संभलकर हम आखिरकार नीचे पहुंच गए।

फिर से चढ़ाई

बढ़ना मगर संभलकर।

सभी लोग थक चुके थे। थोड़ी देर आराम किया और वहीं लगी दुकान पर नींबू-पानी पिया। वैसे तो अब हमें नीचे उतरना था लेकिन सबने दूसरी तरफ वाली पहाड़ी पर जाने का प्लान किया। हम एक घूमने वाले अच्छे-से शहर में टेकिंग करने जा रहे थे। हमने सोचा भी नहीं था कि हम अजमेर में पहाड़ चढेंगे लेकिन अब चढ़ रहे थे। कुछ देर बाद हम थक कर एक जगह बैठे हुए थे। कभी-कभी लगता है शहर देखना आसान है और पहाड़ चढ़ना कठिन। मगर बाद में जब उस जगह पर पहुंचता हूं तो थकावट सुकून में बदल जाती है। ऐसे ही कई सफर ने मुझे सुकून दिया है। अजमेर की चढ़ाई वो टेकिंग वाली चढ़ाई नहीं है। मगर हम जहां जा रहे थे, वहां न तो कोई रास्ता था और न ही कोई जाता है। इसलिए हमें थोड़ी परेशानी हो रही थी। ऐसे ही रास्ता बनाते हुए कुछ देर में हम अजमेर के सबसेे ऊँची जगह पर थे।

खूबसूरत अजमेर


कुछ देर सब एक जगह बैठकर शहर को तांकते रहे। सबसे ऊंची जगह से शहर बहुत खूबसूरत लगता है। यहां से बड़ी-बड़ी इमारतें भी बौनी नजर आती हैं, सब कुछ छोटा नजर आता है। यहां से न तो उस शहर का शोर सुनाई देता है और न ही भीड़ नजर आती है। इन बड़े शहरों को दूर से देखना ही अच्छा लगता है। पास जाते हैं तो ये बड़े शहर अपना असली रूप दिखा देते हैं। यहां से हमें पूरा अजमेर, तारागढ़ फोर्ट, जंगल और पहाड़ नजर आ रहे थे। हमें वो झील भी दिखाई दे रही थी, जहां हमें जाना था। हम घंटों यहां बैठते रहे। कुछ देर हम साथ बैठे तो कुछ देर अकेले। मैं कभी शहर को देख रहा था तो कभी खुद के बारे में सोच रहा था।

जरा ठहर लेते हैं।

काफी देर तक एक जगह पर बैठे-बैठै वक्त का पता ही नहीं चला। शाम होने को थी और हम अब भी मान रहे थे कि हमें अजमेर शरीफ जाना है। अब हमारे पास दो रास्ते थे। एक तो जिससे आए थे और दूसरा, बढ़ते हैं कहीं तो पहुंचेगे। हम बढ़ गए उस ओर जहां से हम नहीं आए थे। हम चलते जा रहे थे और दूर-दूर तक कोई नहीं दिखाई दे रहा था। रास्ते में चरती हुई बकरियां मिलीं और आगे बढ़े तो चरवाहे। उनके पास कुछ देर बैठे और बात की। उन्होंने बताया कि वे यहीं पास के एक गांव के हैं। उन्होंने ही हमें नीचे जाने का रास्ता बताया। उनके कहे रास्ते पर हम नीचे उतरने लगे।

चढ़ना कठिन या उतरना


जंगल के बीच से।

चलते-चलते कुछ देर बाद हम जंगल में आ गए। हमें रास्ता तो मिल नहीं रहा था लेकिन कांटे जरूर बहुत मिल रहे थे। हम उनको ही पार करते हुए बढ़ रहे थे। एक जगह हमें रास्ता नहीं मिला तो सूखी नहर में उतर गए। सोचा ये तो हमें नीचे पहुंचाएगी। हमें चलते जा रहे थे लेकिन नीचे नहीं पहुंच पा रहे थे। ऐसे ही उतरते-उतरते हमने सूरज को डूबते हुए देखा। सूरज डूबा था लेकिन हम अभी भी चले जा रहे थे। कुछ देर बाद हम एक मजार के पास बैठे थे। हम नीचे आ चुके थे लेकिन चलना अभी खत्म नहीं होने वाला था। ऑटो के लिए हम अजमेर की गलियों में चलते जा रहे थे। गलियों में भीड़ तो बहुत मिल रही थी लेकिन ऑटो नहीं मिल रहा था। हम पूरी तरह से थक चुके थे, हमारे पैर जवाब दे रहे थे। हम चाहकर भी नहीं रूक सकते थे, हमें आगे बढ़ना ही था।

अजमेर शरीफ।

चलते-चलते हमें अढ़ाई दिन का झोपड़ा मिला और फिर अजमेर शरीफ। जिसको देखने लोग अजमेर आते हैं हमने वो सिर्फ दूर से देखा। बिना किसी गुरेज के हम आगे बढ़ गए। जब हमने जैसलमेर के लिए बस पकड़ी तब तक पूरी तरह से थक चुके थे। हम बस सोना चाहते थे और जैसलमेर का ये सफर हमारे लिए वही आराम बनने वाला था। अजमेर को अजमेर शरीफ के लिए जाना जाता है लेकिन मुझे याद रहेगा दाल पकवान के लिए। मुझे याद रहेगा उस जगह के लिए जहां से पूरा अजमेर दिखता है। कभी-कभी शहर को नए तरीके से देखना चाहिए और हमारा ये सफर यही कुछ बयां करता है।

आगे की यात्रा यहां पढ़ें।

Saturday, 15 February 2020

केदारकंठा 3: मुश्किलें मिलती गईं और मैं चलता गया

सुबह-सुबह नींद खुली तो ताजगी का एहसास हो रहा था। टेंट के बाहर का नजारा देखकर मन खिल उठा। इतनी खूबसूरत सुबह कभी नहीं देखी थी। मैंने बस सोचा था कि एक दिन पहाड़ पर टेंट में रात बितााऊंगा और सुबह उठते ही बर्फ देखूंगा। मुझे नहीं पता था कि वो सोच इतने जल्दी सच हो जाएगी। अभी धूप नहीं निकली थी, बाहर अभी ठंड थी। हम वहीं बैठकर धूप का इंतजार करने लगे। हमें यहां कहीं जाने की जल्दी नहीं थी। मुझे नहीं याद मैंने कब सूरज के लिए इतना इंतजार किया था। ये पल भर का इंतजार बेहद अच्छा लग रहा था। जब धूप धीरे-धीरे बढ़ रही थी तो हम उसे साफ-साफ देख पा रहे थे। कुछ ही देर में धूप ने सब कुछ जगमग कर दिया।



कुछ ही पल में नजारा बदल गया और ये बदला हुआ दृश्य हर किसी को लुभा रहा था। ऐसा लग रहा था कि सूरज ने इन पहाड़ों को चमकीले कपड़े पहना दिए हों। हम कुछ देर धूप सेंकते रहे और इस नजारे को देखते रहे। अब हमें भी आगे के सफर के लिए निकलना था। हम सबने अपना टेंट बांधा और निकल पड़े अगले पड़ाव की ओर। हमें बताया गया था कि दूसरा बेस कैंप ज्यादा दूर नहीं है इसलिए हम आराम-आराम से चल रहे थे। शुरूआत में रास्ता सीधा था, चलने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। थोड़ी ही देर में चढ़ाई शुरू हो गई। अब तक हम जैसे रास्ते से चलकर आये थे, ये उससे कठिन था।


नए पड़ाव की ओर 


अभी हम तरोताजा थे, इसलिए चलने में कोई परेशानी नहीं आ रही थी। थोड़ी ही देर में एक टी-प्वाइंट आ गया। हमें यहां न रूकने का मन था और न ही रूकने की वजह। हममें से किसी के पास पैसा नहीं था, इसलिए कुछ लेने की तो सोच भी नहीं सकता था। इसके बावजूद हमारे चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। हमने सोच लिया था, आए हैं तो मंजिल तक पहुंच ही जाएंगे। सफेद चादर के बीच चलना और देखना अब कोई बड़ी बात नहीं रह गई थी। जब आप लगातार जिस चीज के साथ रहते हैं तो उसकी आपको आदत हो जाती है। हमें भी बर्फ में चलने की आदत हो गई थी। हमारे लिए बर्फ देखना वैसा ही था जैसे जमीन। 



कुछ देर चलने के बाद हमारी रफ्तार धीमी हो गई थी। हम बार-बार ठहरकर आगे बढ़ रहे थे। थोड़ी देर बाद हम ऐसी जगह पर आ गए, जहां चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे। यहां धूप पूरी तरह से नीचे नहीं आ पा रही थी। धूप-छांव का खेल यहां हो रहा था। हमारे साथ एक कुत्ता भी चल रहा था। हम रूकते तो वो भी रूकता, हम बढ़ते तो वो भी साथ चलता। हमारे इस सफर में एक और साथी जुड़ गया, बस कुछ देर के लिए। थोड़ी वक्त बाद वो कहीं और निकल गया। जरा-सा आगे बढ़कर पीछे देखा तो बर्फ से ढंकी चोटी हमें देखकर मुस्कुरा रही था। ऐसा लग रहा था कि वो हमारा स्वागत कर रही हो। थोड़ी देर बाद हम फिर से लोगों के शोर के बीच थे।



चारों तरफ फिर से हमें टेंट ही टेंट नजर आ रहे थे। अब हमें अपने टेंट के लिए जगह देखनी थी। चारों तरफ पैकेज वाली कंपनियां टेंट लगाए हुईं थी और जो जगह बची थी वहां टेंट लगाना मुश्किल था। यहां बर्फ ताजी थी जिस वजह से बर्फ धंस रही थी। बड़ी मशक्कत के बाद एक ऐसी जगह मिली, जहां दो टेंट लग सकते थे। वो भी कंपनी वाली जगह थी लेकिन उन्होंने हमें टेंट लगाने दिया। तीसरे टेंट के लिए हमें मेहनत करनी पड़ी। फावड़ा लेकर हमें बर्फ को निकालना पड़ा और उस जगह को सपाट बनाया। मेहनत के बाद हम कुछ देर वहीं पड़ गए।बात करते-करते शाम हो गई। आज हममें से एक का बड्डे था, हम उसके लिए केक लेकर आए थे। जब वो बर्फ के बीच केक काट रहा था, मुझे लगा कि वो इस दुनिया का सबसे खुशनसीब शख्स है। केक काटा, खाया और फिर अपने टेंट में वापस लौट आए। थोड़ी ही देर में सूरज ढलने लगा।

रात के सफर में


मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत शाम में एक और शाम जुड़ गई। अंधेरा होने के बाद एक ही काम रह जाता है बातें करना और सोना। हमें सुबह दो बजे अपनी मंजिल की ओर निकलना था। हम अपना सारा सामान छोड़कर चढ़ाई करनी थी। पहले तो वो बहुत कठिन चढ़ाई थी और दूसरी वजह सुबह हमें यहीं वापस आना था। बात करते-करते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। सोने से पहले मुझे एक ही डर सता रहा था, मेरे जूते। सबने घांघरिया में नए जूते ले लिए थे लेकिन मैंने अपने पुराने जूतों पर विश्वास बनाए रखा था।



हम सभी दो बजे उठ गए और जल्दी-जल्दी तैयार होकर सफर के लिए निकल पड़े। मैंने एक छोटा-सा बैग रख लिया, जिसमें बिस्किट, चाॅकलेट और पानी था। जब मैं चलने लगा तो मेरे एक साथी ने मुझसे ले लिया। मैंने भी ये सोचकर दे दिया कि साथ ही तो रहेगा। मैंने जैसे ही अपना पहला कदम बढ़ाया मैं फिसल गया। उसी एक कदम से मैं समझ गया कि ये मेरी जिंदगी का सबसे मुश्किल सफर होने वाला। मेरे कुछ साथी आगे निकल गए थे और दो साथी साथ थे। मुझे रास्ते पर चलने में बहुत परेशानी हो रही थी। इसलिए मैं ताजी बर्फ में चलने लगा। जहां मुझे दोगुनी मेहनत करनी पड़ रही थी। पहले बर्फ में घुसता फिर उसके बाद निकलता और फिर आगे बढ़ता। जिस वजह से मैं बहुत जल्दी थक रहा था।

मुश्किल भरा सफर


थककर जब पीछे मुड़कर देखता तो उस समय अपनी परेशानी को भूलकर बस उस नजारे में खो जाता। दूर तलक बर्फ ही बर्फ, अंधेरे में दिखते कुछ पेड़ और तारों से भरा आसमां। इस मुश्किल रात में ये खूबसूरत नजारा आगे बढ़ने के लिए हौंसले के जैसा था। मेरे साथी भी बार-बार मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत देते और जहां मैं कहता वे रूकते। मुझे इस समय किसी और पर नहीं अपने आप पर, अपने जूतों पर गुस्सा आ रहा था। थकावट की वजह से मुझे प्यास लग रही थी। हमारे पास एक बोतल पानी था और वो हम अब तक के सफर में खत्म कर चुके थे। थकावट, फिसलना, चढ़ाई इन सबसे मैं लड़ ही रहा था। अब एक और चुनौती थी, प्यासे रहकर चलते रहना।बहुत कठिन होता है इतनी सारी मुश्किलों के बीच चलते रहना। थोड़ी देर बाद हमें एक टी-प्वाइंट मिला, जहां हमने पानी के कुछ घूंट पिये। हम ज्यादा देर न रूककर आगे बढ़ने लगे। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, चढ़ाई और कठिन होती जा रही थी।



चढ़ते समय आप रूकना नहीं चाहते लेकिन थकावट के आगे किसी का बस नहीं चलता। कुछ पल यहां रूकते और बस शांति से देखते तो अंदर ही अंदर बहुत अच्छा लगता। हमने धीरे-धीरे कई टीलों को पार करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। एक बार फिर-से प्यासा गला पानी मांग रहा था और मेरा सामान किसी और के पास था। मुझे गुस्सा आ रहा था क्योंकि मुझे पानी चाहिए था? तब लग रहा था कि बैग मुझे किसी को ही देना ही नहीं चाहिए था। कुछ देर बाद हम एक पत्थर के पास पहुंचे तो कुछ आवाज सुनाई दी। पास जाकर देखा तो मेरे ही साथी थे। जब पानी पिया तो सांस में सांस आई।

चलें तो चलें कैसे!


यहां बहुत तेज हवा चल रही थी। इतनी तेज कि हम उसे न चाहते हुए भी सुन रहे थे। इतने कपड़े पहनने के बावजूद भी हम सबको ठंड जकड़ रही थी, खासकर पैरों में। ऐसा लग रहा था कि पैर जम रहे हैं। हम सब पत्थर के नीचे एक-दूसरे से सटकर बैठ गए। फिर भी कुछ फायदा नहीं हो रहा था। तब हम सबने आगे बढ़ते रहना ही सही समझा। हम फिर से कठिन चढ़ाई चढ़ रहे थे। अब चढ़ाई बिल्कुल सीधी थी और रास्ता भी समझ में नहीं आ रहा था। मैं बहुत मुश्किल से बर्फ में घुस-घुसकर आगे बढ़ रहा था। अब मुझे खूबसूरती से ज्यादा से इस चढ़ाई को पूरा करने की जल्दी थी। ज्यादातर लोग पैकेज में आए थे और ग्रुप में चल रहे थे। ग्रुप में उनका गाइड बोल रहा था, चलते रहो, सूरज निकलने वाला है’। इसी सूरज की पहली किरण को देखने के लिए हर कोई चला जा रहा था। हमें भी सूरज की किरण देखनी थी लेकिन ये भी सोच लिया था कि नहीं देख पाए तो कोई गम नहीं। बस उस चोटी तक पहुंचना जरूर है।


थोड़ी देर में हमें कुछ घास दिखाई दी। बर्फ के बीचों-बीचों घास का होना नामुमकिन-सा होता है। हमें दिखाई दी सो हम वहीं पड़ गए। हम घास पर लेटे हुए तारों से सजे आसमान को देखने लगे। खूबसूरत बर्फ भी थी, सामने खड़े पहाड़ भी थे लेकिन इस सफर का सबसे खूबसूरत पल यही था। उस पल कुछ मिनट को जीने के बाद हम फिर आगे बढ़ गए। कुछ ही देर बाद हम केदारकंठा की पीक पर थे। यहां सिर्फ हम नहीं थे लोगों का हुजूम था। हर कोई अपना कैमरा लगाकर एक चीज का इंतजार कर रहा था, सूरज के उगने का। जब सूरज उगा तो लगा कि लगा जहां जीत लिया। यहां दूर-दूर तक वादियां ही वादियां थीं। उसी वादियों के बीच कुछ गीत हमने गुनगुनाए।

आ लौट चलें


हमने यहां मन भर के पहाड़ देखे, बर्फ देखी और सुंदर-सुंदर नजारे। एक तरफ बर्फ से ढंके पहाड़ थे तो दूर तलक हरे-भरे पहाड़ भी नजर आ रहे थे। काफी समय गुजारने के बाद हम वापस लौटन लगे। हमें तीन दिन का सफर एक दिन में ही पूरा करना था। हमने अपनी मंजिल पा ली थी, अब उस एहसास को जीना था। वापस हम चलते हुए नहीं लोटते हुए आए। हम उपर से स्लोप करते हुए नीचे आने लगे। हम थोड़ी देर चलते और जहां स्लोप मिलता हम लोटने लगते। हमने कई किलोमीटर ऐसे ही पार किए। मैं ज्यादा इसलिए नहीं चल रहा था क्योंकि जब चलता तो फिसलने लगता।



हम जल्दी ही बेस कैंप पहुंच गए और जब वहां से निकलने लगे तब हमें अपने दो साथी मिल गए। जिन्हें हमने बहुत खोजा, वो हमें सफर से लौटते वक्त। इसके बाद तो सफर अच्छा ही अच्छा था। मैंने अपने एक साथी से जूते भी बदल लिए जो फिसल नहीं रहे थे। हम लौटते वक्त अपने सफर को याद कर रहे थे। चढ़ते वक्त मैं फिसल रहा था लेकिन उतरते वक्त फिसलने का जिम्मा बड्डे बाॅय ने ले लिया था। शाम तक हम घांघरिया पहुंचे, हमने वहां से देहरादून के लिए बस पकड़ी। एक सफर आपको बहुत कुछ सीखा जाता है। मुश्किलों से लड़ना और हमेशा एक बात ठाने रहना, मैं कर सकता हूं। शायद इसलिए मैं इस कठिन सफर को पूरा कर सका। यही वजह मुझे आगे भी ऐसे ही सफर पर ले जाएगी। केदारकंठा का सफर खत्म हो चुका है लेकिन सुरूर आज भी बना हुआ है। 

Wednesday, 22 January 2020

केदारकंठा 2: यहां आकर पहाड़ सिर्फ खूबसूरत नहीं, प्यार बन गया

शुरू से यात्रा यहां पढ़ें।

मैं एक यात्री हूं। यात्रा में यही होता है कि आप चलते-जाते हैं और सब कुछ आपके सामने से गुजरता चला जाता है। कभी वो गुजरने वाला वक्त बहुत सुखद होता है और कभी परेशान कर देने वाला। जैसा भी हो दोनों ही चीजें बार-बार याद आती है। वो सफर उन्हीं पलों की वजह से भी याद रहता है। केदारकंठा के सफर में भी हमें बहुत परेशान होना पड़ा। लेकिन मुझे पता था कि अगर हमने हिम्मत नहीं हारी तो ये सफर सबसे खूबसूरत होने वाला है और हुआ भी वैसा ही। पहाड़ पहले मेरे लिए सिर्फ घूमने वाली एक जगह थी। इस सफर के बाद पहाड़ प्यार है मेरा।


हमने ये रात बड़ी मुश्किल में गुजारी। मैंने सोचा नहीं था कि मुझे उत्तराखंड में खुले में रात बितानी पड़ेगी। हर अनुभव पहली बार ही होता है, ये अनुभव भी पहली बार ही था। जब आंख खुली तो सांकरी भी उठ चुका था। लोगों की चहल-पहल सुनाई दे रही थी। कमरे के बाहर निकला तो एक खूबसूरत नजारा हमारा इंतजार कर रहा था। ऊंचे लेकिन बंजर पहाड़ सामने दिखाई दे रहे थे। खूबसूरती उसके पीछे थी, सफेद चादर। मैं उसी चादर पर चलने के लिए लंबा सफर तय करके यहां आया था। थोड़ी देर में हम तैयार होकर सांकरी के चौराहे पर पहुंच गए। जहां हमें कुछ सामान और एक गाइड मिलने वाला था।

सांकरी एक छोटा-सा गांव है। जहां कुछ दुकानें हैं, गिने-चुने होटल और होमस्टे हैं। यहां नेटवर्क नहीं आता है, यहां बैंक नहीं है, एटीएम नहीं है। यहां आएं तो कैश लेकर आएं क्योंकि बिना कैश के यहां कोई आपकी मदद नहीं करने वाला। हमने ज्यादा पैसे नहीं निकाले थे, जो हमारी बहुत बड़ी भूल थी। सांकरी से ही केदारकंठा ट्रेक शुरू होता है लेकिन यहां उतनी भीड़ नहीं दिखाई दे रही थी। जितना बाकी जगहों पर मैंने देखी थी। मेरे पास अपना टेंट, स्लीपिंग बैग था इसलिए मुझे इन सबकी जरूरत नहीं थी। मैंने इसकी जगह ग्रेटिएर्स और स्टिक ली। बाकी साथियों ने टेंट और स्लीपिंग बैग तीन दिन के लिए भाड़े पर ले लिए। ये सामान लेने पर आपको अपना पहचान-पत्र उसी दुकान पर जमा करना पड़ता है। इन सबके बावजूद हमें अभी तक गाइड नहीं मिला था। फिर हमारी मुलाकात एक शख्स से हुई, जो हमारा गाइड बनने को तैयार था। उसका नाम था, साईंराम। जिसे हम सब साईं बोलते थे।

ट्रेक की शुरूआत में।

साईं के साथ हम 12 लोग अपने सफर पर निकल पड़े। सांकरी से थोड़ी ही आगे निकले तो एक जगह मिली, जहां लिखा था कि आप गोविंदघाट वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी में प्रवेश कर रहे हैं। केदारकंठा भी इसी वन्यजीव अभ्यारण्य में आता है। शायद इसलिए यहां इतनी कड़ी सुरक्षा है। आगे एक जगह हमें सबका परमिट बनवाना था। हमें वहां परमिट के पैसे तो देने ही पड़े। इसके अलावा टेंट को ले जाने के लिए भी पैसे देने पड़े। बस इसी परमिशन से हमसे हमारा सारा कैश छीन लिया। फिर भी हम परेशान नहीं थे, हम तो बस ट्रेक करना चाहते थे। हम नहीं चाहते थे कि यहां से आने के बाद हम वापस लौटें।

सफर में खुशी।

थोड़ी देर बाद वो जगह आ गई, जहां से हमारा ट्रेक शुरू हुआ। हमारी पीठ पर एक बैगपैक, टेंट और स्लीपिंग बैग लदे हुए थे। शुरूआत में हमें जंगलों के बीच से गुजरना था। हम आराम-आराम से चल रहे थे। ट्रेक में भीड़ बहुत थी, जिस वजह से हमें बार-बार रूकना पड़ रहा था। थोड़ी ही देर में चढ़ते हुए हमें पसीना आने लगा। जहां हम थकते तो रूक जाते और फिर आगे बढ़ जाते। कुछ देर बाद पत्थर वाला रास्ता हटकर मिट्टी वाला रास्ता आ गया था। रास्ते के ठीक बगल में एक नदी बह रही थी, उसकी बहने की आवाज कानों को बहुत अच्छी लग रही थी। दूर तलक एक चोटी दिख रही थी, बर्फ वाली।

दूर तलक दिखती एक चोटी।

रास्ते में चीड़ के ही पेड़ नजर आ रहे थे। चीड़ के सूखे पत्ते हमारे कदमों में पड़ी हुई थी। रास्ते को उसने सुर्ख लाल बना दिया था। सूरज की किरण उस पर पड़ रही थी तो वो और खूबसूरत नजर आ रही थी। इस जगह की अपनी आवाज थी, इस जंगल की, पहाड़ की और नदी की भी। चलते हुए मैं इन सबको देख भी रहा था और सुन भी रहा था। मैंने अब तक पत्थर से बने हुए रास्ते पर ट्रेक किया था। मैं हमेशा से मिट्टी के रास्ते पर ट्रेक करना चाहता था। अब मैं वैसे ही रास्ते पर चल रहा था तो खुशी हो रही थी। ये खुशी एक सपने को पूरा होने जैसी थी।

सफर में एक पथिक।

थोड़ी देर बाद चलते हुए हम सब जोड़े में बंट गए। कुछ लोग आगे चल रहे थे और कुछ लोग पीछे। हम रास्ते में बीच-बीच में रूकते और इकट्ठा होते फिर आगे बढ़ते। ऐसी ही एक जगह पर रूके तो हमारे एक साथी ने आगे जाने से मना कर दिया। वो वापस लौटना चाह रहा था, शायद थकावट उस पर हावी हो रही थी। थकावट से ज्यादा वो अकेला चल रहा था इसलिए दिक्कत आ रही थी। हम लोगों ने उसे समझाया और आगे बढ़ने का हौंसला दिया। अबकी बार वो अकेला नहीं चल रहा था, हममें में से कोई न कोई उसके साथ था। रास्ते में हल्की-हल्की बर्फ नजर आ रही थी, जो रास्ते पर चिपकी हुई थी। जिस पर पैर रखने पर फिसलन हो रही थी। हम ऐसी जगह से बचने की कोशिश कर रहे थे। थोड़ी देर बाद हमें बर्फ दिखाई भी दे रही थी और हम उस पर चल भी रहे थे।

ठंडा-ठंडा पानी।

एक ऐसी जगह आई, जहां हमें बहता हुआ पानी मिला। हमने पानी पिया और बोतल भरकर आगे बढ़ने लगे। बने हुए रास्ते पर चलना हुआ आसान नहीं था, उस पर थकान हो रही थी। मैं ताजा बर्फ पर चलने की कोशिश कर रहा था। बर्फ अभी इतनी गहरी नहीं थी इसलिए रास्ते से दूर जाने में कोई खतरा भी नहीं था। अभी बर्फ ज्यादा नहीं दिख रही थी लेकिन पहली बार इतनी ज्यादा बर्फ देखने का सुकून ही अलग होता है। सुकून कुछ अलग करने का, खुशी कुछ नया पाने की, एहसास इस जगह पर आने का। यहां आने के बाद ऐसा लग रहा था कि अब कुछ कमाल होने वाला है। हमारे शुरूआती सफर में बहुत कुछ हमारे मुताबिक नहीं हुआ था लेकिन यहां आने पर जो खुशी हो रही थी। वो काफी था कि ये तो खुशी की शुरूआत भर है।

बर्फ ही बर्फ।

थोड़ी ही देर में हम ऐसी जगह पर पहुंच गए, जहां टेंट लगे हुए थे। मुझे लगा कि यही जुड़ा का तालाब है, जहां हम ठहरने वाले थे। पर अंदर-अंदर लग रहा था कि इतने जल्दी पहले दिन का सफर खत्म नहीं हो सकता। मैंने अपने गाइड से बात की तो पता चला कि ये तो टी-प्वाइंट है, बेस कैंप तो अभी बहुत आगे है। इस जगह पर कुछ टी-प्वाइंट बने हुए थे। लोग आकर यहां थोड़ी देर रूक रहे थे और फिर आगे बढ़ रहे थे लेकिन हम बिना रूके ही आगे बढ़ गए। अब रास्ता बर्फीला हो चला था। हमारे चारों ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रही थी। रास्ते में अब कुछ ही लोग नजर आ रहे थे। बर्फीले रास्ते की शांति बेहद खूबसूरत लग रही थी। कभी-कभी होता है कि आपका बात करने का मन नहीं करता, हम बस चलते-रहते हैं। ऐसा ही कुछ इस समय मेरे साथ हो रहा था।

बर्फ में बने कुछ घर।

अब सफर खूबसूरत हो चला था। दूर-दूर तक बर्फ ही बर्फ नजर आ रही थी। बर्फ के बीच-बीच कुछ पेड़ों का होना इसे और भी खूबसूरत बना रहा था। हम चलते-चलते कभी छांव में होते तो कभी धूप में। चलते-चलते चढ़ाई खड़ी ही होती जा रही थी और सफर खूबसूरत हो रहा था। शायद ये सफर उतना खूबसूरत नहीं होता अगर आसपास बर्फ नहीं होती। ये भी हो सकता है कि हरे-भरे बुग्याल होते तो भी हम इसे सुंदर ही कहते। थोड़ी देर बाद हम एक ऐसी जगह पर पहुंचे जहां हमें कैंप नजर आ रहे थे। हम थके हुए तो थे लेकिन पहले बैस कैंप पर आने की खुशी थी। अब हम इन टेंटों को देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। हम अपने दो साथियों को भी आवाज दे रहे थे, जो हमसे अपने पैकेज की वजह से अलग थे। इस बैस कैंप को पार करके हम जुड़ा के तालाब पर जाना चाहते थे।

इन वादियों में।

बेस कैंप से जुड़ा का तालाब कुछ दूरी पर था। हम धीरे-धीरे उसी ओर चल दिए। धूप थी लेकिन पेड़ों और पहाड़ों की वजह से हम तक नहीं आ पा रही थी। थोड़ी देर में हमें एक बोर्ड दिखाई दिया। हरे रंगे के इस बोर्ड पर लिखा था, जुड़ा का तालाब। जुड़ा का तालाब समुद्र तल से 2,770 मीटर की उंचाई पर स्थित है। यहां आगे बढ़े तो बहुत सारे टेंट लगे हुए दिखाई दिए। आगे चलने पर एक जमा हुआ तालाब दिखाई दिया, यही जुड़ा का तालाब है। तालाब के बाहर एक बोर्ड लगा है। जिस पर लिखा है, कृप्या तालाब में जूते न ले जाएं। फिर भी यहां जो आ रहा था जूते पहनकर उस जमे हुए तालाब में जा रहा था। हम उस तालाब के अंदर नहीं गए।


वहीं पास में ही एक टी-प्वाइंट भी था, हम सब वहीं धूप में बैठ गए। हमारे पास अभी खूब टाइम था, सो हम बातें करने लगे। बातें करते-करते हम गाना गाने लगे, थोड़ी देर बाद हम झूमने भी लगे। हम जहां बैठे थे वहां से शानदार नजारा दिखाई दे रहा था। चारों तरफ बर्फ, जमी हुई झील और उसके आसपास देवदार के पेड़। उन पेड़ों पर बर्फ के गोलों वैसे ही लटके हुए थे, जैसे किसी पेड़ पर फल लदे रहते हैं। हमें बताया गया था कि ये तीन दिन का ट्रेक है। हमें लगा कि अभी तो हमें और चलना होगा लेकिन वहां के लोगों ने बताया कि आगे चलने पर थोड़ी ही देर में बेस कैंप आ जाएगा। इसलिए आज यहीं रूका जाए, हालांकि मैं इसके पक्ष में नहीं था लेकिन हम फिर भी यहां रूकने को तैयार हो गए।

वादियों के बीच सुर साधते साथी।

शाम होने वाली थी इसलिए हम अपना-अपना टेंट लगाने लगे। बर्फ के बीच में भी कुछ खाली जगह होती ही है। ऐसी ही खाली जमीन पर हमने अपने टेंट लगाए और कुछ देर के लिए उसी में घुस गए। बातें करते-करते थोड़ी देर में अंधेरा भी छा गया। हमारे पास पैसे तो थे नहीं इसलिए हम कुछ खरीदकर खा तो नहीं सकते लेकिन हमारे अपने बैग में खाने को बहुत कुछ चीजें थीं। हम अपने साथ ब्रेड, कैचप, बिस्कुट और बहुत सारी चाॅकलेट ले गए थे। हमने रात को इन्हीं को खाकर भूख मिटाई। मैं तो अब बस टेंट में घुसकर सोना चाहता था लेकिन मेरे साथी मुझे बाहर बुला रहे थे। मैं न चाहता हुए भी बाहर जाने लगा। अगर नहीं जाता तो शायद बहुत कुछ मिस कर देता। बाहर आया तो देखा कि अंधेरा हो गया था लेकिन सफेद चादर चांदनी रात का काम कर रही थी।

जुड़ा का तालाब

आसमां की ओर नजर उठाई तो नजरें वहीं ठहर गईं। मैं आसमां को देखकर अवाक था। पूरा आसमां तारों की चादर से भरा हुआ था। जमीं पर अंधेरा था और आसमान रोशनी से भरा हुआ था। मैंने इतना सुंदर आसमान पहले कभी नहीं देखा था। मौसम ठंडा हो रहा था लेकिन इस नजारे से दूर जाने का मन नहीं हो रहा था। कुछ जगहें होती हैं जिसे तस्वीरों में कैद नहीं किया जा सकता। ये रात भी उस जगह और पलों में से एक है। मैं उस समय उस दिन के बारे में नहीं, सिर्फ इस रात के बारे में सोच रहा था। मैं इसे काफी वक्त तक निहार रहा था ताकि ये मेरे जेहन में हमेशा के लिए चिपक जाए। थोड़ी देर बाद मैं इस तस्वीर को जेहन में लेकर नींद की आगोश में चला गया, एक खूबसूरत सुबह के लिए ।