निखिल सचान युवा हैं, नई उमंग और उत्साह से लबरेज हैं। वे एक आइआइटियन हैं। उनके दिमाग में आइडिया आते रहते हैं और वही आइडिया कहानी का रूप ले लेते हैं। वे उस पात से अलग मिलते हैं जो अंग्रेजी में लिखते हैं। उन्होंने अपना माध्यम हिंदी को बनाया और हिंदी में वे जबर लिखते हैं। उनकी किताब आने पर लोग उसको बेधड़क पड़ते हैं। ‘नमक स्वादानुसार‘ उनकी पहली किताब है। वे कहते हैं कि हिंदी मेरे दिल के करीब है। उनकी एक और किताब है जिंदगी आइस पाइस, जो 2015 में आई थी। उनकी लेखनी बेधड़क चलती रहती है और बढ़ती रहती है। वो हमें वो सब बताती है जो हमारे साथ होता रहता है।
किताब में अगर कहानी ऐसी हो जो हमसे जुड़ाव रखती हो तो वो हमें ज्यादा पसंद आती है। उसमें वो हो जो हमारे साथ कभी हुआ हो या लगे कि काश ऐसा मेरे साथ भी हो। ऐसी किताबें पढ़कर मजा आ जाता है। कुछ कहानी तो ऐसी है जिसको पढ़ने के बाद लगता है कि काश! ऐसा ही मेरे साथ होता तो जिंदगी कितनी अच्छी होती।
आओ न पीछे से जाकर मारें उसको धप्पा
कहें घुमाओ हमको पिठ्ठू लेकर चप्पा चप्पा
यह किताब भी यहीं से शुरू होती है। यह लाइन है जो इस किताब की शुरूआत में ही मिल जाती है।
निखिल सचान की इस किताब में कोई एक कहानी नहीं है इसमें कुछ कहानियां हैं। लेकिन इसकी कहानियां इसके शीर्षक पर फिट बैठती हैं। अक्सर होता है कि किताब का शीर्षक किसी एक अच्छी कहानी का फिट करते हैं। जिससे किताब चल जाये। इससे फायदा भी होता है लेकिन घाटा भी है। पाठक फिर उस पाठ पर जल्दी पहुंचना चाहते हैं क्योंकि हमने उसका नाम उस पन्ने पर लिख दिया है जिससे किताब जानी जायेगी।
किताब में कुछ कहानियां हैं जो हमारे जिंदगी के कुछ पहलुओं को छूती है। इसमें एक कहानी बचपन से जुड़ी हुई है। जिसको पढ़ते हुये लगता है कि हम भी कुछ ऐसा ही करते थे। वो पूरा बचपन आपको याद दिलाता है। हर किसी के अंदर एक शाबू जरूर होता है जो आपके साथ हर जगह खड़ा रहता है। इसमें कुछ कहानी जिंदगी के उस पैबंद की है जब हम दुनिया से लड़ने को तैयार हो जाते हैं। इसमें वो कहानी है जो हमारे समाज की सच्चाई भी है। वो लड़कों से लड़कों वाला प्यार है और समाज क्या कहेगा ये डर भी है।
कहानी वो भी मिलेगी जो नौजवान लोगों को सबसे ज्यादा पसंद आयेगी क्योंकि उसमें प्यार होगा। प्यार वो स्कूल वाला, पहली नजर वाला जो सबको कभी न कभी, किसी न किसी से होता ही है।
जिंदगी आइस पाइस ऐसी ही तो है बिल्कुल निखिल सचान की कहानियों की तरह। कभी हम जिंदगी के किसी छोर में सफल होते हैं और किसी में नहीं। लेकिन ये कहानियां बताती हैं कि इससे जिंदगी खत्म नहीं होती, हंसते-गुनगुनाते चलती ही रहती है।
किताब का छोटा-सा अंश
त्रिपाठी माठ सा‘ब ने बताया कि असिम्प्टोट वो लाइन होती है जो पैराबोला को अनंत पर जाकर मिलती है। मेरे दिल की धड़कनें अचानक और तेज हो गईं। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने हाथ खड़ा किया।
“सर?”
“हां बालक, कहो क्या प्रश्न है?”
“अनंत पर मिलना क्या होता है?”
“अनंत पर मिलना, मतलब इनफिनिटी पर मिलना।”
“हां तो माठ सा‘ब, इनफिनिटी पर मिलना क्या होता है?”
“इनफिनिटी पर मिलना मतलब अनंत पर मिलना।” त्रिपाठी जी ने चीखते हुआ कहा।
“सर आप समझ नहीं रहे हैं। मैंने ये तो समझ लिया कि इनफिनिटी का मतलब अनंत होता है। लेकिन ये ‘मिलना’ क्या होता है?”
“पगला गए हो क्या बालक? बिना बात दिमाग खराब कर रहे हो। इधर आकर मुर्गा बन जाओ।”
“सर आप तो बिला वजह नाराज हो रहे हैं। मन में सवाल था तो पूछ लिया।‘
“सवाल गया बाबा जी की लंगोटी में। अब इधर आकर सीधी तरह मुर्गा बनते हो या नहीं?”
“इनफिनिटी पर मिलना भी कैसा मिलना हुआ सर! ऐसे तो फिर असिम्प्टोट पैराबोला से कभी नहीं मिल सकेगा। सीधे-सीधे आप ये क्यों नहीं कह देते कि दरअसल दोनों कभी मिलते ही नहीं हैं। ऐसा बस प्रतीत होता है कि दोनों कहीं मिल रहे हैं।” मैंने मुर्गा बने हुए घुटनों के बीच से त्रिपाठी जी को घूरते हुए, दुखी मन से जवाब दिया।
मेरा दिल टूट चुका था। साथ में मेरी टांगें भी।
“सर?”
“हां बालक, कहो क्या प्रश्न है?”
“अनंत पर मिलना क्या होता है?”
“अनंत पर मिलना, मतलब इनफिनिटी पर मिलना।”
“हां तो माठ सा‘ब, इनफिनिटी पर मिलना क्या होता है?”
“इनफिनिटी पर मिलना मतलब अनंत पर मिलना।” त्रिपाठी जी ने चीखते हुआ कहा।
“सर आप समझ नहीं रहे हैं। मैंने ये तो समझ लिया कि इनफिनिटी का मतलब अनंत होता है। लेकिन ये ‘मिलना’ क्या होता है?”
“पगला गए हो क्या बालक? बिना बात दिमाग खराब कर रहे हो। इधर आकर मुर्गा बन जाओ।”
“सर आप तो बिला वजह नाराज हो रहे हैं। मन में सवाल था तो पूछ लिया।‘
“सवाल गया बाबा जी की लंगोटी में। अब इधर आकर सीधी तरह मुर्गा बनते हो या नहीं?”
“इनफिनिटी पर मिलना भी कैसा मिलना हुआ सर! ऐसे तो फिर असिम्प्टोट पैराबोला से कभी नहीं मिल सकेगा। सीधे-सीधे आप ये क्यों नहीं कह देते कि दरअसल दोनों कभी मिलते ही नहीं हैं। ऐसा बस प्रतीत होता है कि दोनों कहीं मिल रहे हैं।” मैंने मुर्गा बने हुए घुटनों के बीच से त्रिपाठी जी को घूरते हुए, दुखी मन से जवाब दिया।
मेरा दिल टूट चुका था। साथ में मेरी टांगें भी।
किताब की ताकत
किताब की ताकत है कि लेखक ने इसे बेतरतीब से ढाला है मतलब बिल्कुल सिंपल। इन्होंने कल्पना वो झाड़ नहीं उगाया जो वास्तव में तो होता नहीं है बस किताब में पटक दिया जाता है। किताब की भाषा बेहद ही रोचक है मतलब बिल्कुल शु़द्ध और देसी। कहानी तो अच्छी हैं ही जो हमारे अंदर जुड़ाव बनाये रखती है। ये किताब हर वर्ग के लिये है क्योंकि कहानियां हैं कोई ज्ञान नहीं जो साइंस और काॅमर्स में बंट जायेगा।
किताब की कमी
किताब की कमी मुझे इनकी ताकत ही लगी। ये चाहते तो कहानियों को गोतों और कल्पनाओं में डालकर छानकर परोस सकते थे। इसमें साहित्यिक उतना नहीं है। अक्सर हिंदी किताबों को पढ़ते हैं तो कुछ शब्द ऐसे आ जाते हैं जिनको जानने की जिज्ञासा आती है और सीखने के लिहाज से अच्छा है। लेकिन इस किताब में ऐसा नहीं है। शायद किताब को सिंपल और सरल रखने के लिहाज से ऐसा किया है। ये किताब वे बिल्कुल भी नहीं पढ़ें जिनको लगे कि इससे कुछ सीखने को मिलेगा। हां! सीखने को तो नहीं लेकिन याद करने को मिलेगा। इन कहानियो के जरिये अपनी आस पास की जिंदगी याद आ जाती है।
किताब पढ़ने और गढ़ने के हिसाब से वाकई अच्छी है। कहानी वहीं थीं जो हमारे आसपास चल रही थी। बस किसी में मुस्कुराहट थी तो किसी में मार्मिकता। किताब में कहानी अच्छी तरह से हमको जोड़े रखती है। कुल मिलाकर अच्छी लेखक की अच्छी किताब है ‘जिंदगी आइस पाइस’।