किताबों की दुनिया वाकई बेहद रोचक होती है। जिन बातों के बारे में हम किसी से कह नहीं पाते वो किताबें कह देती हैं। हम सोचते हैं वो बस दिमाग में रहता है लेकिन वो कहानी का रूप ले सकता है। मुझसे कहा जाये तो नहीं, अनगिनत विचार है कैसे कहानी में पिरोया जाये, बेहद मुश्किल है। लेकिन वैसे ही ख्याल आपको किसी किताब में पढ़ने मिले तो उससे जुड़ाव हो जाता है। ऐसी ही कहानियों का संग्रह है ‘ठीक तुम्हारे पीछे’।
‘ठीक तुम्हारे पीछे’ के लेखक हैं मानव कौल। मानव कौल को बहुत से लोग उनको एक्टर के तौर पर जानते हैं। उनको हमने ‘तुम्हारी सुलु’ मूवी में हाल में देखा था। लेकिन वे एक अच्छे लेखक हैं, कवि हैं और थियेटर आर्टिस्ट भी हैं। ठीक तुम्हारे पीछे मानव कौल का पहला कहानी संग्रह है।
किताब के बारे में
‘ठीक तुम्हारे पीछे‘ की हर कहानी एक पड़ाव पर जाती है। पड़ाव पात्रों का, पड़ाव मन का, पड़ाव लेखक का और उसी पड़ाव के कारण पाठक जुड़ते जाते हैं। हर कहानी की एक अलग दिशा है चाहे वो ‘दूसरा आदमी‘ हो या ‘तोमाय गान शोनाबो’। इन कहानियों की एक खासियत है इसमें कहानी आगे धीरे-धीरे बढ़ती है। इन कहानियों में मुख्य पात्र कुछ सोचता है और उसकी वो सोच बहुत असीम होती है। वो सोचता है कि घर में लगे पर्दों के बारे में। किसी लड़की से मिले तो उसके साथ संबंधों के बारे में, उसके हर पहलू के बारे में।इस सोच को शब्दों में पिरोया है और उसे कहानी का रूप दे दिया गया है। बीच-बीच में कुछ बातें होती हैं जो सच में होती हैं लेकिन वो सीधी और सटीक होती हैं। जब कल्पना और सोच का दायरा बढ़ता है तो वो कहानी बन जाती है।
कुछ कहानी हैं जो सीधी हैं ‘मुमताज भाई पतंगवाले’। इस कहानी में कल्पना और सोच कम हैं। इसमें बातें ज्यादा हैं, यादें ज्यादा हैं। फिर भी इसको खराब कहानी नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस कहानी को जिस तरह लिखा गया है वो रोचक है, बिल्कुल फ्लैश बैक की तरह। इन कहानियों को पढ़ने पर बहुत बार लगेगा कि इसमें कहानी कहां है सिर्फ बातें हैं खुद से की गई बातें। लेकिन फिर भी आप कहानी को बीच में नहीं छोड़ सकते क्योंकि अगले ही पल क्या होने वाला है वो रोमांच पैदा करता है। एक कहानी में सस्पेंस भी रहता है जिसमें पता नहीं चलता झूठ कौन बोल रहा है? ऐसी ही सोच और विचारों से भरा है यह कहानी संग्रह ‘ठीक तुम्हारे पीछे’।
एक अदना-सा अंक
रोहन शील को उन दिनों की याद दिलाता था जब उसकी शादी नहीं हुई थी। समीर उस वक्त उसे बिना छुए रह ही नहीं पाता था। कहीं भी बाजार में, रेस्टोरेंट में, किसी दुकान पर। वह समीर को लगातार झिड़कती रहती थी। उसे पता था यह गलत है इसलिये उसमें रोमांच था। उसे यह भी पता था कि समीर के साथ उसका संबंध गलत है, उसके मां-बाप कभी उसके इस संबंध को नहीं स्वीकारेंगे, इसलिए वह संबंध भी रोमांच से भरा था। अब रोहन है जो पूरी तरह से गलत है, इसलिये उसके बारे में सोचना भी शील को रोमांच से भर देता है। इसकी ग्लानि भी है। पीड़ा भी है। डर है। सब कुछ है।
लेखक ने अपनी सोच को, विचारों को कहानी का रूप दिया है या फिर इसे ऐसे कहा जा सकता है। उसने रचनात्मक रूप में कहानियों को लिखा है। विचार हों या रचनात्मक। दोनों ही सूरत में इसे बेहतरी की ओर ले जाती हैं। कहानी के अंत और शुरूआत में लगभग एक ही चीज पा सकते हैं। वक्त खराब है तो आखिर में खराब ही रहेगा और सही है तो शायद सही। ये उस प्रकार की कहानी हैं जो शुरूआत में कुछ जवाब खोजती हैं और अंत में मिल जाते हैं। इसमे अंत तक जवाब नहीं मिलता है। मान लो कहानी कह रही है कि तुमको अपनी उस सोच का जवाब मिला जो तुम सोचते रहते हो।
किताब की खूबी
किताब कई मायनो में अच्छी है। एक पाठक के तौर पर तो बेहद ही नई है। ऐसा कहानी-संग्रह कम लिखा है जिसमें अपनी सोच से खेला गया हो। कहानी रचनात्मक ढंग की है। मानो खुद से खुदकी, की गई बातें। शब्दों का उपयोग भी बेहतर किया गया है। जिनकी कुछ अच्छा, कुछ नया, कुछ बेहतर पढ़ने की इच्छा है वे इसे पढ़ सकते हैं।कौन न पढ़े
इस किताब की भी हर किताब की तरह कुछ खामियां हैं। कहानी को रचनात्मक ढंग से लिखने के चक्कर में लेखनी में कुछ कमी आ गई है। जिससे कहानी को समझने में थोड़ा जोर देना पड़ सकता है। सामान्य पाठक कहानी से भटक भी सकते हैं। इस किताब को हर कोई पढ़ सकते हैं लेकिन अगर इस सोच से खरीद रहे हो कि इसमें हमें साहित्य के बेढंगे शब्द और कहानी मिलेगी तो मुश्किल है। क्योंकि इसमें वैसा कुछ नहीं है। ये तो ठीक तुम्हारे पीछे की कहानियां हैं जिसे हम देख ही नहीं पाते हैं।किताब बेहद ही रोचक और सादगी से लिखी है। पढ़ने पर लगता है कि लेखक के पास कितने विचार और टीस है जो वो कहानियों में पेश कर रहा है। कुछ-कुछ कहानियों में तो लगता है कि ऐसा ही तो मैं सोचता हूं बस लिखता नहीं हूं। लेकिन खुशी है इन कहानियों में वो सब है जिनमें कुछ टीस मेरी भी है।
बुक- ठीक तुम्हारे पीछे
लेखक- मानव कौल
प्रकाशक- हिन्द युग्म।
No comments:
Post a Comment